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महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज/639
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पुत्र सुकुमाल सेलम में व्यवसाय करते हैं। उनकी पत्नी नीता एक पुत्र की माँ है । छठा पुत्र प्रदीप बी.कॉम. है । पत्नी का नाम अरुणा है | सप्तम पुत्र अशोक कुमार बी.ए.एल.एल.बी. है । पली का नाम वंदना है।
आपका पूरा परिवार मुनिभक्त है। माताजी राजमती जी एवं विजयमति के चातुर्मास में आपने पूरा सहयोग दिया था। आचार्य निर्मल सागर जी महाराज के विहार में भी आपका पूरा सहयोग रहा था । पांडीचेरी में आयोजित पंचकल्याणक में आप दोनों भगवान के माता-पिता बने थे तथा आपके द्वितीय पुत्र धागचन्द सौधर्म इन्द्र के पद से अलंकृत हुए थे।
पता : 4, भारतीय स्ट्रीट,पाण्डीचेरी। श्री चिरंजीलाल बडजाते
वर्धा के स्व.श्री चिरंजीलाल जी बडजाते राष्ट्रीय स्तर के नेता थे । वे कांग्रेस के प्रमुख नेता श्री जमनालालं जी बजाज के विश्वस्त सहयोगी थे। वे दोनों बीस वर्ष तक साथ रहे। आपका जन्म राजस्थान के जयपुर जिले के उपास में खण्डेलवाल जाति को पहनात्यागोन में आसोज सुदी 8 सं. 1952 (12 दिसम्बर सन. 1895) को हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा मोजमाबाद में हुई। 18 वर्ष की आयु में इन्होंने सर्विस करना प्रारम्भ कर दिया। फिर वे वर्धा में पन्नालाल जी के गोद चले गये। आपका विवाह भी मोजमाबाद में हुआ। जब व्यापार में उन्हें सफलता नहीं मिली तो सन् 1977 में सेठ जमनालाल जी बजाज की सेवा में चले गये और जीवन के अन्त तक उनसे जुड़े रहे ।
भारत जैन महामंडल से आप सन 1936 से ही जडे । उसके महामंत्री भी रहे । सन् 1966 में उसका शानदार अधिवेशन वर्धा में कराया। इसी के साथ नागपुर प्रान्तीय दि.जैन खण्डेलवाल सभा का अधिवेशन भी कराया 1 बड़जाते जी ने कितने ही ट्रस्टों का निर्माण किया। उनके माध्यम से खूब जन सेवा एवं समाज सेवा की। उन्होंने अपने जीवन में कुल मिलाकर 69 हजार रुपया दान में दिया ।
बड़जाने जी शुद्ध राष्ट्रीय विचारों के व्यक्ति थे । जमनालाल जी बजाज के साथ उन्होंने खूब काम किया तथा राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के साथ खूब रहे । वे 12 वर्ष तक वर्धा म्यूनिसिपल मेम्बररहे । आपका वर्धा समाज की ओर से कितनी ही बार सम्मान समारोह आयोजित किये गये थे। आपके 74वीं जन्म दिवस के उपलक्षय में आपका परिचय प्रकाशित हुआ था। श्री जयचन्द लुहाड़े
विशाल व्यक्तित्व के धनी एवं कर्मठ समाजसेवी,श्री जयचंद लुहाड़े दक्षिण भारत की एक प्रमुख हस्ती हैं। अ. भारतवर्षीय दि.जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के महामंत्री के रूप में उन्होंने । पर्याप्त यश उपार्जन किया है तथा अपनी सूझबूझ एवं लगन से तीर्थों का विकास किया है ! ।
आप मूलत:नांदगांव के निवासी हैं । सन् 1950 में नांद गांव से यहां आकर बस गये। लेकिन उन्होंने बदलाया कि.25(1-300 वर्ष पहिले वे राजस्थान के किसी गांव के निवासी थे। आपके बड़े भाई श्री पूनमचंद जी लुहाड़े तो आज भी बहीं रहते हैं।