Book Title: Jain Samaj ka Bruhad Itihas
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 667
________________ 652/ जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष - श्री बडजात्या जी हस्तिनापुर जम्बूद्वीप पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में सौधर्म इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं । नागौर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में माता-पिता बन चुके हैं । श्रेयान्स के रूप में भगवान को आहार भी दे चुके हैं। नागौर के बडे मंदिर में चंवरी का निर्माण करवाया तथा नागौर,पिडावा,मद्रास एवं हस्तिनापुर में भी प्रतिमाएं विराजमान कर चुके नियम से शुर खानपान वाले हैं । शुद्ध खान पान की प्रतिज्ञा आपने मुनि चन्टसागर जी महाराज से ली थी। महासभा के प्रमुख कार्यकर्ता, निर्वाण शताब्दि समारोह पर नागौर की नशियाँ में महावीर स्मारक मनवाया । मद्रास मंदिर के संरक्षक तथा आपके द्वितीय पुत्र राजकुमार मंत्री हैं। सभी तीर्थों की तीन बार वंदना कर चुके हैं। पता • सरावगी ट्रेडर्स,85 गोडाउन स्ट्रीट,पलक मार्केट,मद्रास-1 श्री श्रीपाल काला श्री काला जी के पूर्वज राजस्थान के नागौर जिले का पिताक्ट माम के निवासी थलेकिन 150 वर्ष पूर्व वहां से हैदराबाद आकर रहने लगे । आपका जन्म 9 अप्रैल 1942 को हुआ । उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद से बी कॉम किया और स्पेयर पार्टस आटो मोबाइल्स का व्यवसाय करने लगे। सन् 1959 में आपका विवाह श्रीमती गुणमालाजी के साथ हुआ जो अखेचन्द जी पहाड़िया की पुत्री है। सन् 1970 में आपके पिताजी श्री लूणकरण जी का स्वर्गवास हो गया । आपकी माताजी कीली बाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। हैदराबाद के केशर बाग के मंदिर में आपने जैन मूर्ति विराजमान की थी । समाज के आप सक्रिय कार्यकर्ता हैं । लाइन्स क्लब के वर्तमान अध्यक्ष हैं | आपके 5 छोटे भाई और है जो सभी हैदराबाद में ही व्यवसाय कर रहे हैं। पता : 3-6-729/4 हिमायत नगर, हैदराबाद डा.(श्रीमती) सरयू वी.दोशी भारतीय स्तर एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न उपाधियों से सम्मानित डा.(श्रीमती) सरयू वी दोशी का साहित्य, कला एवं चित्रित पाण्डुलिपियों के क्षेत्र में भारतीय स्तर एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विद्वज्जनों एवं कला प्रेमियों में विशेष स्थान है । सर्वप्रथम आपने मिशीगन विश्वविद्यालय अमेरिका से सन् 1971 में इतिहास में बी.ए. किया। सन् 1971 में बम्बई विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास एवं कला के अन्तर्गत जैन चित्रित पाण्डुलिपियों पर पीएचड़ी.उपाधि प्राप्त की । सन् 1973 में शिकागो विश्वविद्यालय से मुगल पेन्टिग्स में उच्चतर उध्ययन एवं अनुसंधान कार्य किया । आपके गहन अध्ययन के कारण देश एवं विदेशों के विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त की गई और सन् 1981 से 86 तक "मार्ग" पत्रिका की सम्पादिका रही । सन् 1985 में आपकी पुस्तक मास्टर पीसेज आफ जैन आर्ट मार्ग प्रकाशन बम्बई से प्रकाशित हुई। इसके पश्चात् भारतीय फोटोग्राफी, भारतीय नारी जैसी कलात्मक

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