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6621 जैन मम्गज का बृहद इतिहाम श्री चिरंजीलाल लुहाड़िया जैनदर्शनाचार्य
श्री लहाइया जी जयपुर के प्रथम जेंटदर्शनाचार्य हैं । लेकिन लक्ष्मी पुत्र होने के कारण आपने पंडिताई न करके व्यवसाय में ही हिना पसन्द किया . आपका जन्म 3 अगम्म न 1127 को हुआ । पं.चैनमुखदय जी न्यायतीर्थ के पास सन 1954 में जैनदर्शनाचार्य किया । आप अत्यधिक मरल,शान्त स्वभावों एवं धार्मिक प्रकृति के विद्वान है, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख प्रकाशित होने रहते हैं। 24 जनवरः सन् 1943 को आपका विवाह भंवरबाई के माथ हुआ जिनसे आपको तीम पुत्र महेशचंद सुरेश एवं जिनेश तथा चार पुत्रियाँ पुन्नादेवी, जयन्ती इन्द्रा एवं आशा बाई । सभी पुत्र एवं पुत्रियाँ बिगहित हैं । आपके तीनों पुत्र जवागरात का कार्य करते हैं।
पर महाड़िया गान मान, हार-मार्ग सपो': स्यपुर) श्री जयकुमार जैन सिंघवी
मुलतान् दिगमा जैन समाज के प्रमुख मदम्य श्री जयकुमए जैन समाज सेवा के प्रतीक हैं : समाज सेवा में आप अहर्निश समर्पित रहते हैं। सन् 1947 में मुलतान जैन समाज के समस्त परिवारों को सकुशल जयपुर लाने में आपने अपनी सूझबूझ एवं दक्षता का जो परिव्य दिया वह वर्षों तक चर्चा का विषय रहा । मुलतान जैन समाज के आप वर्षों नक मंत्री रहे तथा डा.कारलीवाल दास "मुलतान जैन समाज- इतिहास के आलोक में" पुस्तक का प्रकाशन भी आपके जाल में स्पन्न हुआ। आदर्श नगर में मुलतान समाज द्वारा विशाल एवं भव्य दिगम्यर जैन मन्दिर का निर्माण हुआ है उसमें आपका प्रमुख सहयोग रहा हैं।
पता- चौथूराम जयकुमार जैन जौहरी बाजार रार श्री जयचन्द जैन याटनी
श्री पाटनी जलभक्त शिरोमणि स्व. श्री न्यालचन्द जी पाटनी के सुपुत्र हैं। आपका जन्म 20 अगस्त सन् 1938 को हुआ था। आपकी माता का नाम श्रीमती फूला देवी पाटनी है। आपने बी.कॉप साहित्यरत्न एवं प्रभाकर किया है । श्री ऋषभकुमार एवं अजितकुमार आपके भाई हैं। श्री अजितकुमार जी बी कॉम आनर्स) एवं मी.ए. हैं ।
व्यवसाय- चाय के निर्माता एवं व्यवसायी
विशेष- आप अहिंसा प्रचार समिति कलकत्ता, दि. जैन विद्यालयांद. जैन बालिका विद्यालय के सदस्य हैं श्री महादीर 'शशु विहार के मंत्री.दि जैन सम्मेलन के उपप्रचार मंत्री टी एरगेखिये के निवर्तमान उपाध्यक्ष हैं।
___सामाजिक एवं धार्पिक । - आपके पिताजो न खण्डगरों उदयगिरी में पंचकल्याणक प्रतिष्टा कराई थी : वर्तमान में आपके काकानी नेमीचंद जी लाइन के पंचकल्याण पल्ष्ठिा में भगवान के माता-पिता, सौधर्म इन्द्र बने थे ।