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572/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
जी गंगवाल के अतिरिक्त वर्तमान में श्री प्रकाशचन्द जी सेठी एवं श्री बाबूलाल जी पाटोदी के नाम उल्लेखनीय हैं । जैन समाज के नेताओं में सर सेठ हुकमचन्द जी के पश्चात् उनके पुत्र रायबहादुर स्व.श्री राजकुमार सिंह जी कासलीवाल ने समाज की बागडोर संभाली । वर्तमान में श्री देवकुमार सिंह जी कासलीवाल, श्री कैलाश चंद चौधरी के नाम विशेषत: उल्लेखनीय हैं। यहां के प्रमुख विद्वानों में पं. नाथूलाल जी शास्त्री, डा. नेमीचन्द जैन, पं. धर्मचन्द जी आयुर्वेदाचार्य के नाम लिये जा सकते हैं । सन् 1986 की जैन जनगणना रिपोर्ट के अनुसार यहाँ 24 जिनालय एवं चैत्यालय हैं। मंदिरों के अतिरिक्त 20 धर्मशालायें, 12 चिकित्सालय, 32 सेवाभावी संगठन, 22 शैक्षणिक संस्थाएं एवं 26 अन्य संस्थाएं हैं जिनका सामाजिक विकास में योगदान है। वैसे यहाँ 26 विद्वान एवं पंडित हैं जो समाज को धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं । 115 चिकित्सक हैं जो समाजसेवा में लगे हुए हैं। 72 इंजीनियर हैं जो विभिन्न संगठनों में लगे हुए हैं। 55 अभिभाषक हैं, 19 कर सलाहकार है । 34 प्रोफेसर एवं प्राध्यापक हैं जो विश्वविद्यालय एवं कालेजों में पढ़ा रहे हैं। 41 शासकीय अधिकारी हैं जो शासन में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। 49 औद्योगिक संस्थान हैं ।
यहाँ की जैन जातियों की संख्या 20 है जो एक रिकार्ड है । इन जातियों की सन् 1986 की जनसंख्या निम्न प्रकार है :
खण्डेलवाल 10402, परवार 3260, हूंबड 2372, पोरवाड़ 822, गोलालारे 1245, नरसिंहपुरा 1115, अग्रवाल 841, सेतवाल 523, जैसवाल 680, बघेरवाल 361, लमेचू 77, गोलापूर्व 442, खरोआ 61, श्रीमाल 65, पल्लीवाल 139, पद्यावती पोरवाल 443, जांगड़ा पोरवाल 144, तारण पंथी 22, चतुर्थ 7 एवं अन्य 88 इस प्रकार इन्दौर की जैन जनसंख्या 23119 है । यद्यपि नगर की जनसंख्या के अनुसार यह संख्या अधिक नहीं है फिर भी यहाँ पूरे जैन जातियों की 40 प्रतिशत जातियाँ रहती हैं यह विशेषता की बात है।
नगर में कांच का मंदिर एवं नव निर्मित गोम्मगिरी, दर्शनीय मंदिरों में से हैं। यहां से तीर्थंकर मासिक पत्र का प्रकाशन होता है । जिसके सम्पादक डा. नेमीचंद जैन हैं । यहाँ एक दि. जैन उदासीनाश्रम है जिसमें कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ स्थापित है और जिसकी ओर से अर्हत वचन त्रैमासिक पत्रिका प्रकाशन होने लगी है।
इन्दौर नगर विगत एक शताब्दी में होने वाले आचार्यों एवं साधुओं के चरणों से पवित्र होता रहा है। आचार्य शांतिसागर जी छाणी से लेकर वर्तमान आचार्यों ने नगर में चातुमार्स करके अथवा अल्पकालीन विहार करके नगर को धार्मिक प्रवचनों से लाभान्वित किया है। आचार्य विद्यानन्द जी महाराज के चातुर्मास में यहाँ अनेक साहित्यिक कार्य संपन्न हुये। भगवान महावीर 2500 वाँ परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष (सन् 1974-75) एवं भगवान बाहुबली सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह वर्ष (1981) में यहाँ की समाज ने प्रशंसनीय कार्य किया तथा समाज को नेतृत्व प्रदान किया था।