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राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /359
अलवर रियासत में भी जैन दीवान एक के बाद दूसरे रहे। दीवान रामसेवक जी प्रथम दीवान थे महाराजा प्रतापसिंह जी के साथ माचेडी से आये थे। इनके पश्चात् दीवान बख्तावरसिंह, दीवान साहब बगराम जी एवं दीवान बालमुकुन्द जी दीवान हुये। ये सभी दिगम्बर जैन पल्लीवाल थे। दीवान रामचन्द्र सैलवाल थे। बहुत ही योग्य शासक थे । इनको अन्त में फाँसी की सजा दी गई।
इनमें दि. जैन खण्डेलवाल मंदिर का विशाल गुम्बज है। अन्दर स्वर्ण का कार्य है। ऐसा लगता है मानों आज ही कार्य किया गया हो। दीवारों पर भित्तिचित्र भी कलापूर्ण है । दि जैन अग्रवाल मंदिर भी विशाल मंदिर है। पूर्व की ओर जो वेदी है उसमे संवत् 1144 पोष ख़ुदी 2 की एक प्रतिमा जो कि प्रतिष्ठित है जिसे जयसेनाचार्य के उपदेश से प्रतिष्ठित की गई थी। जयसेनाचार्य समयसार के तात्पर्यवृत्ति टीका के टीकाकार थे। ये खण्डेलवाल जैन जाति में उत्पन्न हुये थे ।
अलवर जिले में तिजारा में श्री दि. जैन चन्द्रप्रभु स्वामी का अतिशय क्षेत्र है जिसका उद्भव सन् 1956 में हुआ। जिसने अपने 35 वर्षों के जीवन में ही भारतीय स्तर की ख्याति प्राप्त करली हैं। यहां विशाल मंदिर है। धर्मशालायें हैं तथा यात्रियों की सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा गया है । तिजारा ग्राम में सभी अग्रवाल जैनों के ही परिवार हैं।
इस जिले में लछमनगढ तहसील में दि. जैनों के अच्छी संख्या में परिवार हैं। लक्ष्मणगढ़, गोविन्दगढ, हामाणा, बड़ौदामेव, कटूमार, खेरलीगंज में खण्डेलवाल जैनों के अच्छी संख्या में घर मिलते हैं। बडोदा मेव में खण्डेलवालों के 45 घर हैं, कठूमर में 10 घर हैं। प्रायः सभी गाँवों में मंदिर है। इस जिले में पहिले सभी पल्लीवाल दि. जैन थे लेकिन श्वेताम्बर साधुओं के प्रभाव से कुछ परिवार श्वेताम्बर धर्म को मानने लगे ।
इस तरह राजगढ़ में भी खण्डेलवाल जैनों के ही 6 परिवार रहते हैं ।
भरतपुर एवं धौलपुर
पहिले धौलपुर भरतपुर जिले का ही एक भाग था लेकिन सन् 1990 में इसे बाड़ी, बसेड़ी, राजाखेड़ी एवं धौलपुर को मिलाकर एक नया जिला बना लिया गया। सन् 1981 की जनगणना में भरतपुर जिले के जैनों की संख्या 5700 थी जो कामों, नगर, डीग, नदबई, भरतपुर, कुम्हेर, बेर, बयाना, रूपवास, बसेडी, बाड़ी, धौलपुर एवं राजाखेडा नगरों एवं गाँवों में रहती थी। धौलपुर एवं राजाखेड़ा में खण्डेलवाल, अग्रवाल जैनों के अतिरिक्त जैसवाल जैन भी मिलते हैं। लेकिन दोनों ही जिलों में अग्रवाल एवं खण्डेलवाल जैनों की ही प्रमुखता है ।