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राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /439
श्री राजकुमार पाटनी, सीकर
राणोली के युवा समाजसेवी श्री राजकुमार पाटनी का जन्म 7 जुलाई सन् 1950 को हुआ । आपके पिताजी का नाम श्री रतनलाल जी पाटनी एवं माता श्रीमती महताबदेवी है। इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप कलकत्ता में अपना व्यवसाय करने लगे। सन् 1973 में आपका विवाह श्रीमती विमला देवी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको एक पुत्र विकास एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपके तीन भाई एवं दो बहने हैं। दोनों बहिनों का विवाह हो चुका है।
श्री पाटनी राजनीति में भी प्रभाव रखते हैं। जिला युवा लोकदल सीकर के कोषाध्यक्ष हैं । एक बार दांतारामगढ़ से विधान सभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं।
पता: पाटनी सदन ,राणोली (सीकर) राजस्थान श्री राजकुमार पाटनी
लाडनूं में 31 मार्च सन् 1942 को जन्मे श्री राजकुमार पाटनी लाडनूं के युवा समाजसेवी हैं । आपके पिताजी का नाम डूंगरमल जी पाटनी एवं माताजी श्रीमती देवकी देवी हैं । सन् 1965 में आपने कलकत्ता में दि.विद्यालय से बी.कॉम.आनर्स किया तथा उसी वर्ष आपका विवाह श्रीमती निर्मला जी के साथ हुआ । उनसे आपको एक पुत्र दीवान पाटनी एवं एक पुत्री निशा पाटनी के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चूका है।
पाटनी जी सुखदेव आश्रम के व्यवस्थापक हैं। जिनकूदेवी जैन बालिका विद्यालय के कोषाध्यक्ष तथा श्री दि.जैन मंदिर एवं पंचायत के व्यवस्थापक हैं।
पाटनी जी सतत् क्रियाशील रहते हैं तथा समाज में ऊंचाइयों को छूने वाले हैं।
पता : सेठ बच्छराज रोड़,लाडनूं (राज) श्री रिखबचंद पहाड़िया
कुचामन के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री रिखबचंद पहाड़िया अपनी धार्मिक लगन, समाजसेवा एवं साधुओं के प्रति भक्ति के लिये सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। आपका जन्म चैत्र सुदी 3 संवत् 1961 को हुआ। 86 वर्ष के होने पर भी आप अभी तक अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण सजग हैं । 11 वर्ष की अवस्था में आपका विवाह भंवरीदवी के साथ हुआ जिनका अभी 7 वर्ष पहिले ही स्वर्गवास हुआ है। आपको 4 पुत्र एवं 4 पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त
आप स्वयं दो प्रतिमाधारी हैं जिनको उन्होंने आचार्य वीरसागर जी महाराज से ग्रहण की थी । कुचामन पंचकल्याणक में आपका एवं आपके परिवार का पूरा सहयोग था । आपने अपने घर में चैत्यालय बनवा रखा है जिसकी स्थापना आचार्य वीरसागर जी महाराज के संघ आपके घर पदापर्ण के अवसर पर की गई थी। आप प्रति दिन इसी चैत्यालय में पूजा पाठ करते हैं। इनमें तीन पातु की प्रतिमायें एवं एक सिद्ध यंत्र है। वीरसागर जी महाराज के चरण भी हैं।