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474/ जैन समाज का वृहद इतिहास
स्व, सेठ भागचंद जी सोनी, अजमेर
___ स्व. सेठ भागचन्द जी सोनी का एक युग रहा जिसमें उनको समाज में सर्वोच्च सम्माननीय स्थान मिला। उन्होंने भी समाज के प्रत्येक कार्य में अपना सहयोग देना अपना कर्तव्य समझा । उनका घराना विगत 4'पीढ़ियों से समाज में प्रमुख पराना माना जाता रहा। उनके पिता श्री रायबहादुर टीकमचंद सोनी एवं पितामह रायबहादर मूलचंदजी सोनी भी समाज में विशिष्ट स्थान रखते थे। उनके पूर्वजों द्वारा बनाई हुई नशियां एवं मंदिर दोनों ही दर्शनीय हैं । नशियां दो वर्तमान में भी अजमेर के दर्शनीय स्थानों में मानी जानी है।
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स्व.सेठ साहब का जन्म ।। नवम्बर 1904 में हुआ। धार्मिक शिक्षा के साथ गवर्नमेन्ट हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यवसाय एवं समाजसेवा में लग गये। भारत की आजादी के पूर्व और आजादी के पश्चात देश के अनेकानेक शासनाध्यक्षों ने आपको उच्चतम उपाधियों से अलंकृत करके स्वयं को गौरवान्वित किया। भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा कैप्टिन की मानद उपाधि तथा स्वतंत्रता पूर्व औ बीई,सर नाइट हुड़ तथा आनरेरी लेफ्टिनेर आदि अनेक सम्मानजनक उपाधियाँ प्रदान की गईं । आप अजमर नगरपरिषद के चैयरमैन केन्द्रीय असेम्बली के एम.एल.ए.,भादि.जैन महासभा के अध्यक्ष एवं संरक्षक, पा.दि.जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी दि.जैन महासमिति एवं अनेक प्रान्तीय तथा स्थानीय संस्थाओं के उच्च पदाधिकारी रहे । सामाजिक उपाधियां तो आपके आगे पीछे चलती रही। भाग्य मातेश्वरी कन्या पाठशाला, श्री भागचंद विद्या भवन, स्व. टीकमचंद जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय जैसी संस्थायें आपके उज्जवल शिक्षा प्रेम का प्रमाण है। आपका विशाल एवं आकर्षक व्यक्तित्व देखते ही बनता था। आपका स्वर्गवास दि. 3-8-1-983 को हुआ।
स्व. सेठ के निधन से अजमेर नगर ही नहीं किन्तु पूरा जैन समाज अपने आपको असहाय समझने लगा । समाज का मार्गदर्शन उठ गया और एक गेसी हस्ती उठ गई जिसकी प्रत्येक शास में समाज सेवा का खत भरा हुआ था । सर सेठ साहब युग पुरुष थे । इतिहाम निर्माता थे । समाज उनके पद चिन्हों पर चलता था ।
सर सेठ के दो विवाह हुए। प्रथम पत्नी स्व.तारादेवी सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर की पुत्री थी । उसके एक पुत्र प्रभाचन्द सोनी एवं एक पुत्री चान्दराजा बाई हुई । प्रभाचन्द जी का युवावस्था में स्वर्गवास हो गया । दूसरी पत्नी का नाम श्रीमती रत्नप्रपा देवी है जो ब्रुहरानपुर के सेठ केशरीमल लुहाड़िया की पुत्री है । उससे उनको दो पुत्र निर्मलचन्द जी एवं सुशीलचन्द जी एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई।
श्री निर्मलचन्द जी बहुत ही सामाजिक एवं पार्मिक प्रकृति के हैं । श्री सुशीलचन्द जी कलकत्ता में व्यवसायस्त है । दोनों ही भाता अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने वाले हैं । समाज को आपसे बहुत आशाएं है ।