________________
448/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
इसी तरह गलियाकोट के दिगम्बर जैन नया मंदिर में संवत् 1632 (सन् 1575) का एक लेख अंकित है जो भ, सुमतिकीर्ति के समय का है तथा राजाधिराज रावल श्री आसकरण के शासन में डूंगरपुर के निवासी हूंबड जातीय श्राविका फतली ने प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन करवाया था।
सागवाडा से गलियाकोट जाने वाले मार्ग पर एक प्राचीन खंडहर जैन मंदिर है जिसे कालाडेहरा के नाम से पुकारा जाता है । इस मंदिर में एक लेख संवत् 1314 का है जो इस प्रदेश की जैन संस्कृति के विकसित चरणों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करता है । सागवाड़ा के ही जूना मंदिर में संवत् ।1:26 की मणिभद्र की पाषाण की मूर्ति है।
सागवाडा के नये मंदिर में 5 फिट 8 इंच x 6.6 फिट की संवत् 1761 (सन् 1703) की प्रतिष्ठित विशाल नेमिनाथ स्वामी की मूर्ति भ. क्षेमकीर्ति द्वारा निर्माण करवाई गई तथा उन्हीं के शिष्य भ. नरेन्द्र कीर्ति द्वारा प्रतिष्ठित कराई गई । वास्तव में इतनी विशाल पद्मासन मूर्ति का निर्माण स्वयं ही आश्चर्यजनक घटना है।
सागवाड़ा के समान गलियाकोट में भी जैन मंदिरों की प्राचीनता तथा उनकी मंदिर निर्माण कला देखने योग्य है और वे जैनधर्म के प्राचीन उत्कर्ष की याद दिलाते हैं।
मेवाड़ एवं बागड़ प्रदेश उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़ जिले मेवाड़ प्रदेश के नाम से जाने जाते हैं तथा डूंगरपुर. बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, कुशलगढ़ के क्षेत्र बागड़ प्रदेश में आते हैं तथा कुछ विद्वान इस पूरे क्षेत्र को ही बागड़ प्रदेश कहते हैं । इन जिलों में राजस्थान के अन्य भागों जैसी स्थिति नहीं है। यहां खण्डेलवाल जैन समाज एवं अग्रवाल जैन समाज अल्पसंख्यक समाज है और नागदा, नरसिंहपुरा, हूंबड, चित्तौड़ा जैसी जैन जातियां जो सभी दस्सा एवं बीसा में बंटी हुई है, बहुसंख्यक समाज है । यह पूरा समाज धर्म भीरू समाज है, साधु संतों की सेवा में तत्पर रहने वाला समाज है । अधिक शिक्षित नहीं है । खेती एवं व्यापार व्यवसाय करने मे ही संतोष करते हैं। मोटा खाना और मोटा पहिनना इनका स्वभाव बन गया है। आज भी पुरानी वेशभूषा में रहना चाहते हैं । इस प्रदेश ने प्राचीन काल में अनेक भट्टारक दिये हैं। भट्टारक सकलकीर्ति, ज्ञानभूषण, ब्रह्मजिनदास, शुभचन्द्र, कुमुदचन्द्र, रत्नकीर्ति जैसे भट्टारक इसी बागड़ क्षेत्र के थे । और वर्तमान युग में आचार्य शांतिसागर जी छाणी जैसे आचार्य एवं आर्यिका दयामती जैसी आर्यिका थी । बागड़ क्षेत्र में बड़े-बड़े आचार्यों के चतुर्मास होते रहते हैं । आचार्य धर्मसागर जी महाराज ने उदयपुर, सलुम्बर एवं ऋषभदेव में चातुर्मास किये तथा उनके शिष्य आचार्य अजितसागर जी महाराज ने तो बागड़ प्रदेश को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया। उनके शिष्य वर्धमान सागर जी महाराज का पारसोला में पट्टाभिषेक हुआ और इसके पश्चात् उन्होंने बागड़ प्रदेश में विहार करने को प्राथमिकता दी है।
बागड़ प्रदेश के प्रमुख गांवों एवं नगरों में आचार्य श्रेयान्ससागर जी महाराज भी बागड़ प्रदेश मे चातुर्मास कर चुके हैं । जहां जैन परिवार एवं जैन मन्दिर मिलते हैं उनमें दाहोद, लेमडी, जालह, रामपुर, गलियाकोट, अरथूना,