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384/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
घर,खरोवाद में 3 घर एवं सांगोद में 5 घर हैं जबकि सांगोद में बघेरवाल जैन समाज के 40 घर हैं । सभी गांवों में एक-एक मदिर
बारां :
जैसाकि प्रारंभ में कहा गया है बारां नगर जैनाचार्यों का प्रमुख केन्द्र रहा था । शहर के बाहर नशियां में आचार्य पद्यनंदि के चरण चिन्ह हैं । इन्होंने जम्बूद्वीप प्रशस्ति की यहीं पर ठहर कर रचना की थी। बारां नगर में वर्तमान में दिगम्बर जैनों के 100 घर हैं जिनमें खण्डेलवाल जैनों के हाथ अग्रवाल जैनों के 3th घर शेष बघेरवाल.श्रीमाल.परवार जाति के घर है। यहां 2 मंदिर एवं 2 नशियां हैं।
बूंदी जिला:
बूंदी :- बूंदी हाडौती प्रदेश का प्राचीनतम नगर है तथा उसका मुख्यालय है । बूंदी पहिले रियासत थी लेकिन अब यह राजस्थान का एक जिला मात्र है । इस जिले में चार तहसीलें हैं जिनके नाम बूंदी,नैणवां,हिण्डोली एवं कैशोरायपाटन हैं। इन चारों तहसीलों में 735 प्राम एवं नगर हैं । सन् 1971 की जनगणना में जहाँ बूंदी जिले की जनसंख्या करीब चार लाख थी वहीं सन् 1981 की जनगणना में वहां की संख्या 586982 हो गई है जिससे पता चलता है कि इस जिले की उपजाऊ जमीन होने के कारण वहां के निवासी विकासशील हैं । बूंदी जिले में खण्डेलवाल,बघेरवाल,अपवालों के अतिरिक्त श्रीमाल जाति के भी परिवार मिलते हैं।
इस जिले में 90 से भी अधिक ग्राम एवं नगरों में जैन परिवार मिलते हैं इनमें 35 ऐसे ग्राम हैं जिनमें जैन घर हैं लेकिन मंदिर नहीं हैं। कुछ गांवों में पांच से भी अधिक परिवार होने पर भी मंदिर नहीं होने के कारण वहां के जैन बन्धुओं को दर्शन लाभ नहीं होता है। नैणवां तहसील
जैन धर्म, संस्कृति एतं साहित्य की दृष्टि से नैणवां तहसील सबसे महत्वपूर्ण तहसील है जिसके 23 गांवों एवं कस्बों में दिगम्बर जैन परिवार एवं मंदिर मिलते हैं । इनमें नैणवां के अतिरिक्त बासी.दुगारी,देई,दाहुन करवर सूसा, आजरदा जैसे कस्बों के नाम उल्लेखनीय हैं । नैणवा नगर में 1.30 से अधिक दिगम्बर जैन परिवार हैं । जिनमें खण्डेलवाल के 2-2 घर अग्रवाल 81 घर,बघेरवाल 23 घर,श्रीमालों के 4 घर हैं । आठ मंदिर तथा चैत्यालय हैं । नैणवां के विभिन्न नाम मिलते हैं जिनमें नैणवाहपत्तन, नयनपुर,लोचनपुर एवं चक्षुपुर के नाम उल्लेखनीय हैं । नैणवां के मंदिरों में पुरातत्त्व की विशाल एवं महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है । जिसका संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है - श्री दिगम्बर जैन मंदिर बघेरवाल (ठोला)
इस मंदिर में 12 वीं-13 वीं शताब्दी की प्रतिमायें विराजमान हैं । नेमिनाथ स्वामी की संवत् 1202, शांतिनाथ स्वामी की संवत् 1219 एवं पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति पर संवत् 1217 के लेख अंकित हैं।