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राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /409
हैं। परम पूज्य योगीराज आचार्य विमल सागर जी महाराज एवं उनके संघ को एक बार चांदखेडी से महावीर जी तथा दूसरी बार उन्हीं के संघ को निवाई से महावीर जी तक सकुशल पहुंचाने में स्मरणीय सहयोग दिया तथा संघ के साथ रहकर साधु संतों की अपूर्व सेवा की, इसी तरह आचार्यप्रवर विद्यासागर जी महाराज के संघ में जाकर उनकी यथोचित सेवा सुश्रुषा करके अपने जन्म को धन्य बना लिया है।
विपत्र एवं साधनहीन महिलाओं को सभी तरह से आर्थिक सहयोग देने में आप विशेष रुचि लेती हैं। ओम कोठारी फाउन्डेशन के माध्यम से आप प्रसूति के समय सैंकड़ों बहिनों की सेवा सुश्रुषा करके उन्हें यथोवित आर्थिक सहयोग भी देती रहती हैं। इस कार्य के लिये आपके घर के द्वार सदैव खुले रहते हैं । महिलाओं में शिक्षा का प्रचार हो सके उसके लिये भी आप यथेष्ट सक्रिय रहती हैं । बालिकाओं की फीस जमा कराना तथा उन्हें पुस्तकें आदि दिलवाने में आगे रहती हैं।
समाज में होने वाले सामहिक विवाहों के आयोजन में कोठारी परिवार की ओर से पूर्ण आर्थिक सहयोग दिया जाता है। राजस्थान के देवली नैनवा हिण्डोली आदि स्थानों पर होने वाले सामहिक विवाहों के अवसर पर नव विवानि को गृहस्थी को आवश्यक वस्तुएं उपहार में देकर सामूहिक विवाह प्रथा के प्रचार प्रसार में भी योग देकर अपने कर्तव्य का पालन किया है।
तीर्थों पर आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिये आपने गोम्मटगिरी इन्दौर तथा चांदखेडी राजस्थान अतिशय क्षेत्रों पर अतिथि भवनों (गेस्ट हाऊस) का निर्माण करवाकर एक अच्छी परम्परा को जन्म दिया है ।
इस तरह राजस्थान के ही चंवलेश्वर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र के चहुंमुखी विकास में आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कोटा की प्राचीन नशियों का जीर्णोद्धार करवाकर उसली घार रनों के मन मार्यों के चरण चिन्ह स्थापित किये हैं। आचार्य विमल सागर जी महाराज के आदेशानुसार आपने विभिन्न सात स्थानों पर आचार्य समन्त भद्र,मानतुंग,नेमीचन्द्र जैसे आचार्यों के चरण स्थापित करके इतिहास को सुरक्षित रखने में उल्लेखनीय योगदान दिया है ।
आपने कोठारी जी के साथ 42 जैन बन्धुओं को लेकर लेस्टर में आयोजित पंचकल्याणक में भाग लेकर पुण्य संपादित किया है। अमेरिका में स्थित सिद्धाचलम मन्दिर में आप एवं आपके परिवार द्वारा भगवान बाहुबलि की एक मनोप्य प्रतिमा को विराजमान करवाकर विदेश में भी जैन संस्कृति के प्रचार का एक स्थायी कार्य किया है।
श्रीमती लाडदेवी एवं श्री त्रिलोकचंद जी कोठारी को गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में आयोजित पंच कल्याणक महोत्सव में तीर्थंकर भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। वैसा ही दुबारा सौभाग्य आप दोनों को 16 जनवरी 1991 में परमपूज्य आचार्य विद्यानन्द जी महाराज के सानिध्य में भगवान आदिनाथ के बावनगजा महामस्तकाभिषेक के अवसर पर होने वाले पंचकल्याणक महोत्सव में माता-पिता बनने का पुन: सौभाग्य प्राप्त हुआ है । सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास में इस प्रकार के बहुत कम व्यक्ति मिलेंगे जिनको जीवन में एक बार से अधिक माता-पिता बनने का परम सौभाग्य मिला हो।
___ कोटा से आपकी विशेष प्रेरणा से पदयात्रा श्री अतिशय क्षेत्र केशोरायपाटन जो 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है समाज के साथ करते हुये समाज का धार्मिक उत्साह बढ़ाया है।