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414/ जैन समाज का वृहद इतिहास
यहां की भट्टारक गादी चन्द्रप्रभु स्वामी के मंदिर में है । जो बीस पंथ आम्नाय का है । अंतिम भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति जी थे जिनकी समाधि हैदराबाद में बनी हुई है । भट्टारकीय गादी वाले मंदिर में एक विशाल शास्त्र भंडार है जिसमें हजारों हस्तलिखित ग्रंथों का अलभ्य एवं दुर्लभ संकह है। यहां वि.सं. 2043 में बीसपंथी मंदिर में तथा सन् 1972 में साढ़े सोलहपंधी गति में प्रतापगम प्रशिता को दुक में यहां के श्री रतनलाल जी पहाड़िया ने मुनि दीक्षा ली थी तथा आचार्य धर्मसागर जी के संघ में रहे थे। आपका स्वर्गवास हो चुका है। श्री सोहनसिंह जी कानूनगों यहां के सबसे प्रतिष्ठित सज्जन थे। कुचामन सिटी :
कुचामन सिटी नागौर जिले का एक प्रमुख नगर है जिसकी स्थापना संवत् 1701 में हुई थी। पहिले यह जोधपुर राज्य में जागीरदारी नगर था लेकिन वर्तमान में यह नागौर जिले का प्रमुख नगर है । वर्तमान में यहां 150 दि.जैन परिवार रहते हैं यहां तीन मंदिर, दो नशियां एवं दो चैत्यालय हैं । यहां नागौर एवं अजमेर दोनों ही भट्टारकों का केन्द्र था इसलिये यहां के मंदिर नागौरी मंदिर एवं अजमेरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं । दोनों ही मंदिर किले के नीचे मुख्य बाजार में आमने सामने हैं। एक ओर अजमेरी मंदिर का शिखर अत्यधिक कलापूर्ण है। वहां नागौरी मंदिर के शिखर के अन्दर के भाग में सोने का कार्य दर्शनीय है। दोनों ही मंदिर विशाल एवं दर्शनीय हैं। दोनों ही मंदिरों के नीचे एक एक नशियां है । कुचामन में स्व. गंभीरमल जी पांड्या बहुत बड़े समाजसेवी हुये हैं जिन्होंने लोहड साजन बडसाजन आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई थी। राजश्री पिक्चर्स के मालिक स्व. मोहनलाल जी बड़जात्या कुचामन के ही थे । वर्तमान में उनके पुत्र ताराचन्द जी बड़जात्या एवं उनका परिवार बम्बई रहता है तथा फिल्म जगत में भारत में विख्यात है।
कुचामन में सबसे वयोवृद्ध श्री जमनालाल जी पाटोदी से जब लेखक ने भेंट की तो वे 106 वर्ष पार कर चके थे। उन्होंने अपनी परी अचल संपत्ति जिनेश्वर राय दि जैन विद्यालय को भेंट कर दी थी। वे प्रतिदिन अपने हाथों से 500 मन अनाज तोल देते थे। उन्होंने 13/-रुपया मन का घी खाया था तथा एक रुपया का 54 सेर बाजरा देखा था जो घटते-घटते 3 रुपया सेर हो गया था । वे गरीबी के कारण जन्म भर कुंवारे ही रहे । उनकी बहिन नाराणी का भी पैसे के अभाव में एक वृद्ध के साथ विवाह करना पड़ा।
कुचामन विद्यालय में स्व. पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ ने कितने ही वर्षों तक पढ़ाया था तथा तोरावाटी गौडावाटी सभा भी स्थापित की थी।
नावां शहर में 60 घर हैं जो सभी खण्डेलवाल जैन जाति के हैं। यहां भी नागौरी, अजमेरी एवं साहों का मंदिर है। यहां श्री किशनलाल जी रावका बहुत ही सेवाभावी व्यक्ति हो चुके हैं । कूकनवाली में 50 परिवार हैं। पांचवा ग्राम में 30 परिवार हैं । यहां चतुर्भज जी अजमेरा प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं जिन्होंने यहां विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन किया था।