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राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 381
हाडौती प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी
हाडौती प्रदेश का इतिहास
पूर्व इतिहास :- हाडौती प्रदेश राजस्थान का एक प्रमुख प्रदेश है । राजस्थान का कोटा,बूंदी एवं झालावाड़ का सम्मिलित प्रदेश हाती देश कहलाता है। प्रदेश की डी ालवा की सीमाओं से मिलने के कारण यहां की प्रत्येक सांस्कृतिक एवं साहिरियक गतिविधियों पर एक दूसरे का बड़ा प्रभाव पड़ता है। इस प्रदेश के बारां, नैणत्रा, बंदी, केशोरायपाटन,कोषवर्धन (शेरपुर), श्री नगर, अटरू,बिलाप,खानपुर, जैसे प्राचीन सांस्कृतिक केन्द्र रहे हैं तथा जिन्होंने सारे देश को प्रभावित किया है।
बारां नगर में आचार्य पद्मनंदि ने आठवीं शताब्दि में जम्बूद्वीप पण्णति की रचना की थी। उम सभय बारा जैन धर्मानुयायियों एवं मंदिरों से परिपूर्ण था । शक्तिकुमार वहाँ का शासक था । बारां नगर उस समय मूलसंघ के भट्टारकों का प्रमुरत केन्द्र था । शेरगढ़ में 11 वीं शताब्दी में किसी क्षत्रिय द्वारा प्रतिष्ठित तीन विशाल प्रतिमायें हैं । रायगढ़ के समीप ही पहाड़ियों में उत्कीर्ण जैन गफायें हैं। इन गफाओं में जैन साध निवास करते थे । इन्हीं गफाओं के आसपास तीर्थकरों की मूर्तियां भी उकेरी हुई हैं। इसी नगर में मलसंघ की भडारक गादी की स्थापना सन 1083 में माषचन्द्र द्वितीय ने स्थापित की थी।
अटरू भी हाडौती प्रदेश का प्रमुख सांस्कृतिक नगर था। यहाँ के रेल्वे स्टेशन के पास ही आज भी जैन मूर्तियों के अवशेष मिलते हैं। कहते हैं एक मूर्ति तो आज भी वहां उपलब्ध होती है। यहां दो जैन मंदिर हैं जिनका निर्माण 12 वीं, 15वीं शताब्दि में हुआ था। इसी तरह अटरू से 12 मील आगे कृष्णा बिलास नगर में जैन संस्कृति के प्राचीन अवशेष उपलब्ध होते हैं। जिन्हें विद्वानों ने आठवीं से 12 वीं शताब्दी तक का स्वीकार किया है। इसी तरह कोटा से 25 मील की दूरी पर स्थित शाह बाद के निकट जैन मंदिर के अवशेष बिखरे पड़े हैं।
खानपुर के निकट चांदखेड़ी का प्राचीन अतिशय क्षेत्र है। यहां के मंदिर को प्रतिष्ठा संवत् 1745 में हुई थी और वहां का प्रतिष्ठा महोत्सव स्वयं कोटा निवासियों की अगुवाई में हुआ था। चांदखेड़ी में विशाल जैन मंदिर है और उसमें विशाल मूर्ति विराजमान है, यह प्रतिष्ठा महोत्सव कृष्णदास बघरेवाल ने कराई थी। प्रतिष्ठा महोत्सव आमेर गादी के तत्कालीन भजगत्कीर्ति द्वारा कराई गई थी।
कोटा नगर के विभिन्न जैन मंदिरों में 12 वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियां बिराजमान हैं। जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हाडौती का यह भाग जैन धर्म की दृष्टि से पर्याप्त रूप से प्राचीन है।
बूंदी हाडौती का ही एक भाग है और जैन धर्म की दृष्टि से यह प्रदेश सैंकड़ो वर्षों तक हाडौती प्रदेश का प्रमुख केन्द्र बना रहा । यहां के पास में ही स्थित केशोरायपाटन इस प्रदेश का प्राचीनतम स्थान है जिसमें जैनाचार्य नेमिचन्द ने वर्षों तक