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108/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
छोटे पुत्र श्री भागचन्द 53 वर्षीय युवा हैं । आपकी धर्मपत्नी रजनी है। इन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया पिताजी डिबूगढ़ के उत्तर में जालभारी (जिला ढकोहखाना) में आये और फिर वहां से गौहाटी आकर व्यवसाय करने लगे।
आपका जीवन पूर्णत : सामाजिक एवं धार्मिक रहा है। संवत् 2043 दिनांक 18 मार्च,1986 को सम्पत्र नलबाडी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप दोनों ने माता-पिता बनकर पुण्य लाभ लिया था । आपने ही (फर्म चिरंजीलाल चैनसुख) संवत् 2093 में गौहाटी के जैन मन्दिर के ऊपर शिखर निर्माण करवाया । दि.जैन समाज गौहाटी के गत वर्षों से अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहे हैं। पटावीर भवन गोदरी के गाजीवटी है । आप, दाट कोही के उपाध्यक्ष भी हैं।
आपके शुद्ध खान-पान का नियम है । इन नियमों को आपने आर्यिका इन्दुमती माताजी से लिये थे। पुनियों को आहार आदि से खूब सेवा करते हैं । परम मुनिभक्त तथा आर्षमार्गी हैं । आपने लगातार दस वर्ष तक (वर्ष 1978-79 से 1988-89 तक) दशलक्षण व्रत
करके एक कीर्तिमान स्थापित किया । आप सरल स्वभावी हैं तथा सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में पूरा आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। आप जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान,जयपुर के परम संरक्षक हैं ।
पता : मैसर्स मदनलाल भागचन्द, एस.आर.सी.वी.रोड़,गौहाटी (आसाम) श्री मन्नालाल बाकलीवाल
जन्मतिथि: 23 पई, 1933, शिक्षा : बी.कॉम. (1952) दिडला इन्स्टीटयूट, पिलानी पिता : स्व.श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल के तृतीय पत्र । मातृश्री : स्व.मलकूदेवी बाकलीवाल व्यवसाय : पेट्रोलियम एवं ट्रान्सपोर्ट । विवाह : अषाढ़ सुदी 2 संवत्, 1952 पत्नी का नाम: श्रीमती चिन्तामणि जी,सपत्री श्री शिखरीलाल जी गंगवाल,लाडनू । सन्तान पुरी -1 ममता, विवाहित । पुत्र-5 : महेन्द्र, राजेन्द्र,देबेन्द्र, जिनेन्द्र एवं नरेन्द्र । इनमें महेन्द्रराजेन्द्र एवं देवेन्द्र कुमार विवाहित हैं । विशेषता:
श्री मत्रालाल जी का जीवन अत्यधिक सादा एवं धार्मिक है । सौम्यता एवं सरलता उनके जीवन के विशेष गुण हैं । वे मधुरभाषी हैं तथा आतिथ्य प्रेमी हैं।
चार कार्य विजयनगर पंचकल्याणक के अवसर पर सौधर्म इन्द्र के पद को सुशोभित कर चुके हैं। एक बार आचार्य विसर जी महाराज के सानिध्य में वृहद शान्ति विधान सम्पत्र कराने का श्रेय प्राप्त किया था। सुजानगढ़ में आपके पिताश्री
से एक चैत्यालय का निर्माण करवाया तथा उसमें तीन मूर्तियां विराजमान की। आपने बाहुबली सहस्त्राब्दी
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