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258/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
श्री निर्मल कुमार पांड्या - श्री पाड्याजी मूलतःसुजानगढ (राजस्थान )के हैं । वहां से आपके पिताजी श्री कुन्दनमल जी व्यवसाय के लिये कलकत्ता चले गये और वहीं सन् 1968 में मई मास में आपका निधन हो गया। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उमराव बाई धार्मिक स्वपाव की महिला है । श्री निर्मलकुमार जी का विवाह 2 जुलाई 1971 को श्रीमती कनकलता से साथ हुआ। कनकलता जी बी.ए.प्रथम वर्ष तक पढ़ी हैं। श्री सूरजमल जी जैन सब्जी वाले आपके पिता है । पांड्या जी को दो पुत्रियों नीतू एवं प्रिया के पिता बनने का गौरव प्राप्त है । आप धार्मिक प्रवृत्ति वाले युवक हैं । प्रतिदिन दर्शन एवं अभिषेक करते हैं । मधुवन स्थित पार्श्वनाथ दि.जैन मंदिर में वेदी निर्माण आपकी ओर से
आपके दो बड़े भाई श्री धनराज जी एवं सतीशकुमार जी पांड्या हैं दोनों ही अपना-अपना व्यवसाय करते हैं।
पता : बी-15 मधुवन कालोनी, बरकत नगर,जयपुर - 15 श्री निहालचन्द कासलीवाल
जवाहरात व्यवसाय में श्री गुलाबचन्द जी कासलीवाल का अच्छा नाम था। उनका जन्म सन 1911 में तथा निथन सन 1972 में हुआ था । अपने 61 वर्ष के छोटे से जीवन में समाज की चुपचाप सेवा करने में विश्वास रखते थे तथा सामाजिक जागृति एवं उत्थान की पूर्ण उत्कंठा बनी रहती थी। उनकी पत्नी श्रीमती सौभागदेवी धार्मिक स्वभाव की महिला थी तथा अष्टान्हिका एवं दशलक्षण व्रत के उपवास लगातार आठ वर्ष तक करती रही । उनके श्री नेमीचन्द, निहालचन्द, कमलचन्द एवं नरेशचन्द, चार पुत्र हुये। इनमें नरेश जी ज्यादातर हांगकांग रहते हैं लेकिन वहां रहते हुये भी उनका पूर्णतः धार्मिक जीवन है । वे हांगकांग में ही दो बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं।
श्री निहालचन्द जी आपके दूसरे पुत्र हैं जिनकी जन्मतिथि 24 मई 1940 है । उनका जन्म जयपुर में ही हुआ था। लेकिन अध्ययन बंबई में किया और वहीं से इन्टरमीजियर (साइन्स) किया । आपका विवाह श्री गोपीचन्द जी गंगवाल की सुपुत्री मैना देवी से दिनांक 23 मई 62 को संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्रों- योगेश,हरीश एवं चारू के पिता होने का सौभाग्य मिला । आप विगत 30 वर्षों से बंबई में ही व्यवसाय करते हैं ।
सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से श्री निहालचन्द जी का जीवन स्वच्छ एवं सरल है । उदार स्वभाव के हैं। अखिल भारतीय तीर्थक्षेत्र कमेटी के स्थायी सदस्य हैं । यात्रा प्रेमी हैं इसलिये अपने परिवार एवं संबंधियों को चार बार यात्रा करा चुके हैं । बाहुबली सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक के अवसर पर 15 रजत कलश लेकर सभी को अभिषेक का अवसर दिया था। दि.जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय जयपुर के संरक्षक सदस्य,श्री महावीर मंथ अकादमी एवं जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान जयपुर के सदस्य हैं । दि.जैन औषधालय के विकास में आप आर्थिक सहयोग देते रहते हैं । सन् 1967 में आप एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। जयपुर जैन समाज को आपसे सहयोग की पूर्ण आशा है। पता- 1. 35 सागर महल,65 बालकेश्वर रोड,बंबई-6
2-जे 47, कृष्णा मार्ग,सी-स्कीम,जयपुर।