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जयपुर नगर का जैन समाज / 195
जयपुर जैन समाज का अतीत एवं वर्तमान
जयपुर नगर को विगत 40 वर्षों से राजस्थान की राजधानी रहने का सौभाग्य प्राप्त है । लेकिन इससे पूर्व भी वह अपने ही नाम की रियासत की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। देखा जावे तो जबसे इस नगर की विधिवत स्थापना हुई इसके नक्षत्र सदा ही प्रबल रहे और मुगल शासन एवं अंग्रेजी शासन दोनों में ही जयपुर नगर का महत्व बना रहा। यहां का हवामहल विश्वविख्यात निधि है। देशी विदेशी पर्यटक इसी को देखने के लिये यहाँ आते रहे हैं । जैन कवि बख्तराम साह ने भी अपनी काव्य कृति बुद्धिविलास में जयपुर को इन्द्रपुरी बताकर उसकी प्रशंसा की है।
इस नगर के संस्थापक महाराजा जयसिंह अपने समय के प्रसिद्ध शासक, योद्धा एवं दूरदर्शी थे। उन्होंने नगर की स्थापना के समय जैनों का विशेष ध्यान रखा। आमेर एवं सांगानेर नगर के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों के जैन व्यापारियों एवं योग्य व्यक्तियों को यहां लाकर बसाया गया। चौकड़ी मोदीखाना एवं चौकड़ी घाट दरवाजा
उनको रहने एवं मंदिरों के निर्माण के लिये विशेष सुविधायें दी गई इसलिये उसमें चारों ओर से जैन परिवार आकर बसने लगे। मंदिर बनने लगे और अपनी स्थापना काल के 10-15 वर्षों में ही जयपुर जैनपुरी कहलाने लगा। शासन में जैनों का प्रमुख हाथ, शांति, सुरक्षा एवं अहिंसक वातावरण ने भी जैन समाज का हृदय जीत लिया और जयपुर जयपुर न रहकर जैनपुर बन गया। जो आज भी उसी नाम से जाना जाता है
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जयपुर नगर राजस्थान की राजधानी है। जनसंख्या की दृष्टि से भी जयपुर राजस्थान का सबसे बड़ा नगर है जहाँ 15 से 20 लाख तक नागरिक रहते हैं। पिछले 20-30 वर्षों में जयपुर का खूब विकास हुआ है। सैकड़ों उप-नगर बस गये हैं। ऐसे नगरों में शास्त्री नगर, जवाहर नगर, बापू नगर, मालवीया नगर, मानसरोवर, गोविन्दनगर जैसे बड़े उपनगरों के अतिरिक्त 100 से भी अधिक छोटे-छोटे उपनगर होंगे। लाखों की संख्या में राजस्थान के गांवों के कस्बों के एवं नगरों के निवासी रोजगार के लिये, नौकरी के लिये एवं व्यापार के लिये यहाँ आकर बस गये हैं । इसलिये जयपुर की जनसंख्या में राजस्थान के दूसरे नगरों की दृष्टि से अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है ।
जैन समाज की दृष्टि से भी जयपुर नगर का प्रथम स्थान हैं। यहां दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी एवं तेरहपंथी सभी समाजों के अच्छी संख्या में परिवार हैं लेकिन दिगम्बर जैन समाज की सबसे घनी बस्ती है। जिसकी संख्या 80 हजार से ऊपर होगी । पहिले यहां प्रायः दिगम्बर समाज में खण्डेलवाल जैन एवं अग्रवाल जैनों के ही परिवार थे लेकिन वर्तमान में पल्लीवाल, जैसवाल, श्रीमाल, बघेरवाल एवं हूंबड समाज के भी कुछ परिवार आ गये हैं । मुलतानी जैन समाज के 200 परिवार यहां सन् 1947 में पाकिस्तान से आये थे । उनका आदर्श नगर प्रमुख केन्द्र है लेकिन धीरे-धीरे मुलतान जैन समाज भी दिगम्बर जयपुर जैन समाज में घुलमिल