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66. जैन समाज का वृहद इतिहास
देता है । दर्शन, पूजा पाठ आदि में खूब रुचि लेते हैं। यहां के निवासियों पर भी दोनों ही आर्यिका माताजी का अच्छा प्रभाव है। यहां पर भी उनका विहार हो चुका है।
डिब्रूगढ़ में सबसे अधिक सहयोग हमारे समधी श्री चांदगल जी साहब गंगवाल से मिला, इसके लिये मैं उनका आभारी हूं । इसी प्रवास में मुझे अमरचन्द जो पाटनी के निवास पर ठहरना पड़ा । उनके सुपुत्र बा. निर्मलकुमार जी से जो आतिथ्य मिला वह भी स्मरणीय रहेगा।
नलबाड़ी: ___मैं गौहाटी से दिनांक 29 सितम्बर, 80 को नलबाड़ी गया । पूर्वाञ्चल प्रदेश का यह क्षेत्र अन्तिम स्टेशन था । वहां मैं दो दिन रहा तथा महावीर प्रसाद जी रारा का आतिथ्य स्वीकार किया। नलबाड़ी एन.टी.रोड पर स्थित आसाम प्रदेश का अच्छा व्यापारिक नगर है। अहिंसा युवा परिषद् द्वारा संकलित सूचना के अनुसार यहां दि. जैन परिवारों की संख्या 19 है जिनमें पुरुष 194, महिला 260, लड़के 29ti, लड़कियां 223, कर्मचारी ने इस प्रकार 441 की संख्या है । यहां संवका, सेठी, छाबड़ा, पाटनी, बड़जात्या, रारा, गंगवाल, पहाडिया, झांझरी, गोधा, काला, बगड़ा, पाण्ड्या, ठोलिया गोत्रों के परिवार हैं।
नलबाड़ी का जैन मन्दिर करीब 50-55 वर्ष पुराना है। जिस समय यहां मन्दिर निर्माण की योजना बनी उस समय वहां केवल 8-9 घर ही थे और वे भी सम्पत्र नहीं थे। नौकरी करते थे इसलिये आते-जाते रहते थे। लेकिन कुछ श्रावकों के बिना दर्शन किये भोजन नहीं करने का नियम था इसलिये मन्दिर निर्माण कराना आवश्यक हो गया । मन्दिर निर्माण में सर्व श्री फतेहलाल जी छाबड़ा, चम्पालाल जी छाबड़ा, शिवचन्द राम सरा, मोतीलाल जी रारा, हरिबक्स जी काला के नाम उल्लेखनीय हैं । प्रारंभ में जमीन खरीदी गई । शास्त्रों को रखकर तथा भगवान की फोटो के ही दर्शन किये जाने लगे। जब समाज की संख्या बढ़ने लगी और धार्मिक प्रवृत्ति जागृत हुई तो नव मन्दिर निर्माण की योजना बनी और उसी योजना के फलस्वरूप यहां विशाल मन्दिर का निर्माण हो सका है। वर्तमान मे मन्दिर विशाल एवं उत्तुंग शिखर वाला है। जिनालय तीन तल्ले वाला है। तीनों ही तल्लों में वेदियां हैं। शिखर की जमीन से 108 फीट ऊंचाई है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है । पूरा मन्दिर मकराना का बनाया गया है । मन्दिर के अतिरिक्त यहां एक जैन प्राइमरी स्कूल चलता है । धार्मिक अध्ययन की व्यवस्था है । एक जैन भवन निर्माण की भी योजना है। यहां के उल्लेखनीय श्रावकों में श्री चांदमल जी छाबड़ा के सुपुत्र श्री प्रो. चिरंजीलाल जी छाबड़ा, गवर्नमेन्ट कॉलेज टिहूं में प्रोफेसर के पद पर हैं। श्री रूपचन्द जी छाबडा वाराणसी के शास्त्री हैं । पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के शिष्य रहे हुये है। श्री धर्मचन्द जी काला, हिन्दी के प्रोफेसर हैं, समाज सेवी हैं । जनता पार्टी के सेक्रेट्री हैं । नथमल जी रारा यहां के प्रतिष्ठित वकील हैं। मन्दिर में प्रतिदिन शास्त्र प्रवचन करते हैं। श्री महावीर प्रसाद जी रारा आतिथ्य प्रेमी हैं, सर्राफ हैं । आपकी पत्नी श्रीमती मनभर देवी ने खूखार डाकुओं को भगा दिया था। यहां रारा गोत्र वाले परिवारों की अधिक संख्या है। रारा गोत्र वाले सेस गांव से निकले हुये बताये जाते हैं।