Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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१४/गो. मा. जीन काण्ड
होने वाले भाव को क्षायिक कहते हैं। सम्यक्त्वप्रकृति के देशघाती स्पर्धकों के उदय के साथ रहने वाला सम्यक्त्व परिणाम क्षायोपशमिक कहलाता है। मिथ्यात्व के सर्वघाती स्पर्धकों के उदयाभाव क्षय से, उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम से और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति के सर्वघाती स्पर्धकों के उदयक्षय से तथा उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम से अथवा अनुदय रूप उपशमन से एवं सम्यक्त्वप्रकृति के देशघाती स्पर्धको के उदय से क्षायोपशमिकभाव कितने ही प्राचार्य कहते हैं, किन्तु यह कथन घटित नहीं होता, क्योंकि बसा मानने पर अतिव्याप्ति दोष का प्रसंग आता है।
शङ्का- तो फिर लायोपशामिकमाव करे पास होता है।
समाधान - यथास्थित अर्थ के श्रद्धान को घात करने वाली शक्ति सम्यक्त्वप्रकृति के स्पर्धकों में क्षीण है, अतः उनकी क्षायिकसंज्ञा है। क्षीणस्पर्धकों के उपशम को क्षयोपशम कहते हैं, उसमें उत्पन्न होने से वेदक सम्यक्त्व क्षायोपशमिक है. यह कथन घटित हो जाता है। इस प्रकार सम्यक्त्व में तीन भाव होते हैं, अन्यभाव नहीं होते ।
शङ्का . . असंयतसम्यग्दृष्टि में गति, लिङ्ग प्रादि भाव पाये जाते हैं, फिर उनका ग्रहण क्यों नहीं किया?
समाधान-असंयतसम्यग्दृष्टि में भले ही गति, लिङ्ग आदि भावों का अस्तित्व रहा पावे, किन्तु उनसे सम्यक्त्व उत्पन्न नहीं होता, इसलिए सम्यग्दृष्टि औदयिक प्रदि भावों के व्यपदेश को नहीं प्राप्त होता है, ऐया अर्थ ग्रहण करना चाहिए।
सम्यक्त्वलब्धि सायोपशामिक है, क्योंकि वह सम्यक्त्वप्रकृति के उदय से उत्पन्न होती है ।
शङ्का - सम्यक्त्वप्रकृति के स्पर्धक देशघाती ही होते हैं । उसके उदय से उत्पन्न हुमा सम्यक्त्व उभयप्रत्यायिक (क्षायोपमिक) कैसे हो सकता है ?
समाधान · नहीं, क्योंकि सम्यक्त्व के देशघाती स्पर्धकों के उदय से सम्यक्त्व की उत्पत्ति होती है, इसलिए तो वह आर्थिक है और वह औपमिक भी है, क्योंकि वहाँ सर्वघाती स्पर्धकों के उदय का अभाव है।
सम्यक्त्वप्रकृति दर्शनमोहनीय का एक भेद है। उसके (दर्शनमोहनीय के) सर्वघातीरूप से उपशम को प्राप्त हुए और देशघातीरूप से उदय को प्राप्त हुए स्पर्धकों का वेदकसम्यक्त्व (क्षयोपशमसम्यक्त्व) कार्य है, इसलिए वह तदुभय प्रत्ययिक कहा गया है, यह उक्त कथन का तात्पर्य है ।
उपशमसम्यक्त्व से वेदकसम्यक्त्व को प्राप्त हुए जीव के ऐसी अवस्था में मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतियों के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय नहीं पाया जाता है, क्योंकि इन दोनों प्रकृतियों के स्पर्धक अन्नरायाम से बाह्य स्थित हैं, मात्र सम्यक्त्व प्रकृति की उदीरणा होकर उदय हुआ है। अथवा क्षायिक सम्यक्त्व के अभिमुख जिसने मिथ्यात्वप्रकृति व सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति का क्षय कर दिया है उसके इन दोनों प्रकृतियों का सत्व ही नहीं रहा, उस जीव के भी मात्र
१. ध. पु. ५ पृ. २०७। २. प. पु. १४ पृ. २१-२२ ।