Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गुणस्थान/१३
मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी के सर्वघाती स्पर्घकों के उदयाभावी क्षय से तथा सदवस्थारूप उपशम से, सम्यक्त्वप्रकृति के देशघाती स्पर्धकों का उदयक्षय होने से, सत्ता में स्थित उन्हीं देशघाती 1. स्पर्शकों का उदयाभावलक्षण उपशम होने से और सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के सवंघाती स्पर्धकों का उदय
होने से सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान उत्पन्न होता है, इसलिए वह क्षायोपमिक है। यहाँ इस प्रकार जो , सम्यग्मिथ्यात्व गुरास्थान को क्षायोपशमिक कहा है वह केवल सिद्धान्त के पाठ का प्रारम्भ करने बालों को परिज्ञान कराने के लिए ही कहा है। वासाब में तो सम्यग्मिथ्यात्वकर्म निरन्वय रूप से माप्त-पागम और पदार्थ विषयक श्रद्धा का नाश करने के लिए असमर्थ है, किन्तु उसके उदय से सत्समीचीन और असत्-असमीचीन पदार्थों का युगपत् विषय करने वाली श्रद्धा उत्पन्न होती है, इसलिए १ सम्पम्मिथ्यात्व गुणस्थान क्षायोपमिक कहा जाता है। यदि इस मुलस्थान में सम्बारेमथ्यात्व-प्रकृति के उदय से सत् और असत् पदार्थ को विषय करने वाली मिश्रसचिरूप क्षयोपशमता न मानी जावे तो उपशमसम्यग्दृष्टि के सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होने पर उस सम्याग्मिथ्यात्व गुणास्थान में क्षयोपशमता नहीं बन सकती है, क्योंकि उपशम सम्यक्त्व से तृतीयगुणस्थान में आये हए जीव के । ऐसी अवस्था में सम्यक्त्वप्रकृति, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी इन तीनों का उदयाभावीक्षय नहीं पाया जाता।
शङ्का - उपशमसम्यक्त्व मे पाये हुए जीव के तृतीयगुणस्थान में सम्यक्त्वप्रकृति, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी इन तीनों का उदयाभावरूप उपशम तो पाया जाता है ?
समाधान - नहीं, क्योंकि इस प्रकार तृतीयगुणस्थान में प्रौपशमिकभाव मानना पड़ेगा ।
शङ्का तृतीय गुरगस्थान में प्रौपणमिकभाव भी मान लिया जाये ? ___ समाधान नहीं, क्योंकि तृतीयगुणस्थान में प्रौपशमिक भाव का प्रतिपादन करने वाला कोई पार्षवाक्य नहीं है। अर्थात् प्रागम में तृतीयगुण स्थान में प्रीपशमिकभाव नहीं बताया है।
यदि तृतीयगुणस्थान में मिथ्यात्वादि कमों के क्षयोपशम से क्षयोपशमभाव की उत्पत्ति मान । ली जाबे तो मिथ्यात्वगुणस्थान को भी क्षायोपभिक मानना पड़ेगा, क्योंकि सादि मिथ्यादृष्टि की । अपेक्षा मिथ्यात्वगुगास्थान में भी सम्यक्त्वप्रति सम्यग्मिथ्यात्वकर्म के उदयावस्था को प्राप्त हुए स्पर्धकों का क्षय होने से, सत्ता में स्थित उन्हीं का उदयाभाव लक्षण उपशम होने से तथा मिथ्यात्व
कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों का उदय होने से मिथ्यात्वगुणस्थान की उत्पत्ति पाई जाती है । इतने 1 कथन में तात्पर्य यह समझना चाहिए कि तृतीयगुरणस्थान में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व प्रकृति और अनन्ता
नुबन्धी कर्म के क्षयोपशम से भायोपमिव भाव न होकर केवल मिश्रप्रकृति के उदय से मिश्रभाव होता है।'
असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन सा भाव है ? औपमिकभाव भी है, क्षायिक भाव भी है और शायोपशमिक भाव भी है। मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति के मघाती स्पर्धकों के तथा सम्यक्त्वप्रकृति के देशघाती स्पर्धकों के उदयाभावरूप लक्षणवाले उपशम से उपशमसम्यक्त्व उत्पन्न होता है. इसलिए असंयतसम्यग्दृष्टि' यह भाव औपशमिक है। इन्हीं तीनों प्रकृतियों के क्षय से उत्पन्न
१. प. पु. १ पु. १६८ से १७०; सूत्र ११ की टीका ।