Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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प्रस्थान १९ समाधान नहीं, क्योंकि सासादन सम्यक्त्व को छोड़कर विवक्षितकर्म से नहीं उत्पन्न होने वाला अन्य कोई भाव नहीं पाया जाता ।'
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सम्यग्मिथ्यादृष्टि यह क्षायोपशमिक भाव है, क्योंकि प्रतिबन्धी कर्म के उदय होने पर भी जीव के गुण का जो अवयव ( अ श ) पाया जाता है वह गुणांश क्षायोपशमिक कहलाता है । शङ्का - कैसे ?
समाधान गुणों को सम्पूर्ण रूप से घातन की शक्ति का प्रभाव क्षय कहलाता है । क्षयरूप ही जो उपशम होता है वह क्षयोपशम कहलाता है । उस क्षयोपशम में उत्पन्न होने वाला भावक्षायोपशमिक कहलाता है।
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शङ्का - सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के उदय रहते हुए सम्यक्त्व की कणिका भी प्रवशिष्ट नहीं रहती है, अन्यथा सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के सर्वघातिपना नहीं बन सकता इसलिए सम्यग्मिध्यात्वभाव क्षायोपशमिक है, यह कहना घटित नहीं होता ?
समाधान सम्यग्मिथ्यात्व कर्म का उदय होने पर श्रद्धानाश्रद्धानात्मक करंचित् अर्थात् शवलित या मिश्रित जो परिणाम उत्पन्न होता है । उसमें जो श्रद्धानांश है, वह सम्यक्त्व का श्रवयव है, उसे सम्यग्मिथ्यात्कर्म का उदय नष्ट नहीं करता इसलिए सम्यग्मिथ्यात्व भाव क्षायोपशमिक है।
शङ्का - अश्रद्धानभाग के बिना केवल श्रद्धानभाग के ही 'सम्यग्मिथ्यात्व' यह संज्ञा नहीं है ग्रतः सम्यग्मिथ्यात्व क्षायोपशमिक नहीं है ?
समाधान - उक्त प्रकार की विवक्षा होने पर सम्यग्मिथ्यात्व भले ही क्षायोपशमिक न होवे, किन्तु अवयवी के निराकरण और अवयव के निराकरण की अपेक्षा वह क्षायोपशमिक है अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्यकर्म का उदय रहते हुए अवयवीरूप सम्यक्त्वगुरण का तो निराकरण रहता है, किन्तु सम्यक्त्वगुण का अवयवरूप अंश प्रगट रहता है। इस प्रकार क्षायोपशमिक भी सम्यग्मिध्यात्वद्रव्यकर्म सर्वघाती होवे, क्योंकि जात्यन्तरभूत सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के सम्यक्त्वता का प्रभाव है, किन्तु श्रद्धानभाग अश्रद्धानभाग नहीं हो जाता, क्योंकि श्रद्धान और श्रद्धान में परस्पर एकता का विरोध है | श्रद्धानभाग कर्मोदयजनित भी नहीं है, क्योंकि इसमें विपरीतता का प्रभाव है । उसमें सम्यग्मिथ्यात्व संज्ञा का प्रभाव भी नहीं है, क्योंकि समुदायों में प्रवृत्त हुए शब्दों की उनके एकदेश में भी प्रवृत्ति देखी जाती है इसलिए यह सिद्ध हुआ कि सम्यग्मिथ्यात्व क्षायोपशमिकभाव है । २
सम्यग्मिथ्यात्वलब्धि क्षायोपशमिक है, क्योंकि वह सम्यग्मिथ्यात्वकर्म के उदय से उत्पन्न
होती है ।
शङ्का - सम्यग्मिथ्यात्वकर्म के स्पर्धक सर्वधानी ही होते हैं इसलिए इनके उदय से उत्पन्न हु सम्यग्मिथ्यात्व उभय प्रत्ययिक ( क्षायोपशमिक) कसे हो सकता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्वकर्म के स्पर्द्धकों का उदय सर्वघाती नहीं होता 1
१. प. पु. ५. पृ. १६६-१६७ २. श्र. ५ . १६८-१९६ ।