Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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१० / मो. सा. जीवकाण्ड
farara चौदह गुग्णस्थानों की एवं सिद्धों में श्रपशमिकादि भावों को प्रा प्रो विदिए पुरण पारिणामित्रो भावो । खप्रोवस मिश्रो अविरदसम्मम्मि तिष्णेव ॥ ११ ॥
मिच्छे खलु मिस्से
एदे भाषा यिमा दंसरणमोहं पडुच्च भरिणदा हु । चारितं रात्थि जदो प्रविरद ते ठाणेसु ॥ १२ ॥
गाथार्थ - मिथ्यात्व गुणस्थान में नियम से प्रदयिकभाव होता है, पुन: द्वितीय सासादन गुणस्थान में पारिणामिकभाव मिश्रगुरणस्थान में क्षायोपशमिक भाव और अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में श्रमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीनों भाव सम्भव हैं ||११|| ये भाव दर्शनमोहनीय कर्म की अपेक्षा कहे गए हैं क्योंकि अविरत सम्यग्दष्टि गुणास्थान तक चारित्र नहीं होता है || १२ ||
विशेषार्थ - यद्यपि मिथ्यात्व गुणस्थान में क्षायोपशमिक ज्ञान, दर्शन, लाभ, वीर्य आदि होते हैं, जीवत्व भव्यत्व - अभव्यत्वरूप पारिणामिक भाव भी होते हैं तथापि दर्शनमोहनीय कर्म की अपेक्षा मात्र एक औदयिक भाव होता है।
गाथा में 'मिच्छे' शब्द मिथ्यात्व का द्योतक है। औपशमिक आदि पाँच भावों में से यह श्रीदयिक भाव है। कर्मोदय से जो भाव हो वह प्रदयिक भाव है। मिध्यात्वकर्म के उदय से उत्पन्न होने वाला मिथ्यात्वभाव कर्मोदयजनित है अतएव प्रदयिक है | दर्शनमोहनीय कर्म की एक मिथ्यात्व प्रकृति का उदय ही मिथ्यात्वभाव का कारण है यतः यह भाव प्रदयिक है।
सासादन गुणस्थान में पारिणामिक भाव है ।
शङ्का सासादन सम्यग्दृष्टिपना भी सम्यक्त्व और चारित्र इन दोनों के विरोधी अनन्तानुबन्धी चतुष्क के उदय के बिना नहीं होता इसलिए सासादन सम्यष्टि को औदयिक क्यों नहीं मानते ?
समाधान- यह कहना सत्य है; किन्तु उस प्रकार की यहाँ विवक्षा नहीं, क्योंकि आदि के चार गुणस्थानसम्बन्धी भावों की प्ररूपणा में दर्शनमोहनीयकर्म के अतिरिक्त शेष कर्मों की विवक्षा का प्रभाव है। इसलिए विवक्षित दर्शनमोहनीय कर्म के उदय से, उपशम से, क्षय से अथवा क्षयोप्रथम से नहीं होता अतः यह सासादनसम्यक्त्व निष्कारण है और इसलिए इसके पारिणामिकपना भी है ।
जाता ?
शङ्का - इस न्याय के अनुसार तो सभी भावों को पारिणामिकपने का प्रसंग प्राप्त होता है ।
समाधान यदि उक्त न्याय के अनुसार सभी भावों के पारिणामिकपने का प्रसंग श्राता है तो माने दो, कोई दोष नहीं है, क्योंकि इसमें कोई विरोध नहीं जाता है ।
शा-यदि ऐसा है तो फिर अन्य भावों में पारिणामिकपने का व्यवहार क्यों नहीं किया