Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ले. डॉ. शीवप्रसाद खंड-२ Jain Education internet Fortivate Personal use Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर ग्रंथावली क्रमांक-५३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भाग-२ : लेखक : डॉ. शिवप्रसाद : प्रकाशक: आ. ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर सुभाषचौक, गोपीपुरा, सूरत Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (खंड २ ) ले. डॉ. शिवप्रसाद JAIN SWETAMBAR GACHCHHO KA SAMKSHIPTA ITIHAS By: Dr. Sivaprasad मूल्य प्रत : मुद्रक : प्राप्ति स्थान : २०० रूपये ५०० • आ० ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर सुभाष चौक, गोपीपुरा, सूरत - ३९५००१ E-mail : omkarsuri@rediffmail.com mehta_sevantilal@yahoo.co.in (मो.) ९८२४१५२७२७ (सेवंतीभाई महेता) ॐकार साहित्य निधि विजयभद्र चेरिटेबल ट्रस्ट हाईवे, भीलडीयाजी (बनासकांठा ) फोन : ०२७४४-२३३१२९, २३४१२९ • सरस्वती पुस्तक भंडार हाथीखाना, रतनपोल, अहमदाबाद- ३८०००१ • मोतीलाल बनारसीदास 40-UA, नेहरूनगर, नई दिल्ली. किरीट ग्राफिक्स - अहमदाबाद (मो०) ९८९८४९००९९ E-mail : kiritgraphics@yahoo.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में पूर्वमध्यकाल और मध्यकाल में उद्भूत विभिन्न गच्छों में नागपुरीयतपागच्छ (नागौरी तपागच्छ) भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है कि यह गच्छ तपागच्छ की एक शाखा के रूप में असित्त्व में आया होगा, किन्तु इस गच्छ की स्वयं की मान्यतानुसार बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि ने अपने चौबीस शिष्यों को एक साथ आचार्य पद प्रदान किया, जिनमें पद्मप्रभसूरि भी एक थे। पद्मप्रभसूरि द्वारा नागौर में उग्र तप करने के कारण वहां के शासक ने प्रसन्न होकर उन्हें 'नागौरीतपा' विरुद् प्रदान किया। इस प्रकार उनके नाम के साथ 'नागौरीतपा' शब्द जुड़ गया और उनकी शिष्य सन्तति 'नागपुरीयतपागच्छीय' कहलायी । इसी गच्छ से आगे चल कर १६वीं शताब्दी में पार्श्वचन्द्रगच्छ अस्तित्त्व में आया और आज भी उस गच्छ के अनुयायी श्रमण-श्रमणी विद्यमान हैं। नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध ग्रन्थ प्रशस्तियों एवं पट्टावलियों में यद्यपि इसे वि० सं० ११७४/ई० सन् १११८ में बृहद्गच्छ से उद्भूत बतलाया गया है, किन्तु इस गच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य विक्रम सम्वत् की १६ वीं- १७ वीं शताब्दी से पूर्व के नहीं हैं। नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य है वि० सं० १५५१/ई० स० १४९५ में प्रतिष्ठापित शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख । महोपाध्याय विनयसागर ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ ६७३ सं० १५५१ व० मा० २ सोमे उ० ज्ञा० सोनीगोत्रे सं० चांपा भा० चांपलदे पु० हया रामा हृदा पितृनि० आ० श्रे० श्री शीतलनाथ बिं० कारि० प्रति० नागुरी (नागपुरीय) तपाग० भ० सोमरत्नसूरिभिः ।।। प्रतिष्ठा स्थान - ऋषभदेव जिनालय, मालपुरा आदिनाथ जिनालय, नागौर में एक शिलापट्ट पर उत्कीर्ण वि० सं० १५९६ का एक खंडित अभिलेख प्राप्त हुआ है । इस अभिलेख में राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्लकीर्तिसूरि का नाम मिलता है। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है: ॥ॐ॥ स्वास्तिश्रीसंवत् १५९६ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे नवमी तिथौ सोमवारे नागपुरकोटे श्रीमालवंशे संकियाप्य (?) गोत्रे सं० नोल्हा पु० सं० चूहड़ सं० लक्ष्मीदास सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भार्या सं० सरूपदे नाम्नी हे............... ........................श्री राजरत्नसूरिपट्टे सं० श्रीरत्नकीर्तिसूरि प्रतिष्ठिता ॥ ............ शिलापट्ट प्रशस्ति, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर उक्त अभिलेख से राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्नकीर्तिसूरि किस गच्छ के थे, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती किन्तु उक्त जिनालय में ही मूलनायक के रूप में स्थापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख से इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । महोपाध्याय विनयसागर जी ने इस लेख का मूलपाठ दिया है, जो निम्नानुसार है: ॥ॐ॥ सं० १५९६ वर्षे फाल्गुन सुदि नवम्यां तिथौ ......... ........... गोत्रे सं० नोल्हा पु० सं० तेजा पु० सं० चूहड भा० सं० रमाइ पु सं० लक्ष्मीदास सं० सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भा० ....... कल्याणमल्ल तत्र लक्ष्मीदास भार्या सरूपदेव्यौ कर्मनिर्जरार्थं श्री आदिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं ....... ...... भट्टारक श्रीसोमरत्नसूरिपट्टे भट्टारिक Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास श्री श्रीराजरत्नसूरयस्तत्पट्टे श्रीरत्नकीर्तिसूरि ........... श्रीसंघस्य। __ मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर। ___ इस अभिलेख में रत्नकीर्तिसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलने के साथ-साथ उनके गुरु राजरत्नसूरि और प्रगुरु सोमरत्नसूरि का भी नाम मिलता है : सोमरत्नसूरि राजरत्नसूरि रत्नकीर्तिसूरि (वि० सं० १५९६ में आदिनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं नागपुरीयतपागच्छीय सोमरत्नसूरि का वि० सं० १५५१ के एक लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है । अतः इन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर रत्नकीर्ति के प्रगुरु और राजरत्नसूरि के गुरु सोमरत्नसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १६६७ का है। इस लेख का मूलपाठ भी हमें विनयसागर जी द्वारा ही प्राप्त होता है जो इस प्रकार है : Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ ६७५ सम्वत् १६६७ फाल्गुन कृष्णा ६ गुरौ.......उसवालज्ञातीय दूगड़गोत्रे सा० सालिग पुत्र साह राजपाल पुत्र सा० खीमाकेन भार्या कुशलदे पुत्र गिरिधर सा० मानसिंघयुतेन श्री श्रेयासनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं नागौरीतपागच्छे श्रीचन्द्रकीर्तिसूरिपट्टे श्रीसोमकीर्तिसूरिपट्टे श्रीदेवकीर्तिसूरि श्री अमर........ । प्रतिष्ठितं नागौरी तपागच्छे श्री आगरानगरे मानसिंघेन लिपीकृतं ॥ मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, श्रेयांसनाथ जिनालय, हिंडोन इस प्रकार इस अभिलेख में नागपुरीयतपागच्छ के चार मुनिजनों के नाम मिल जाते हैं, जो इस प्रकार हैं : चन्द्रकीर्तिसूरि I सोमकीर्ति देवकीर्तिसूरि अमर (कीर्ति) वि० सं० १५९६ के प्रतिमा के लेख में उल्लिखित रत्नकीर्तिसूरि और वि० सं० १६६७ के उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित चन्द्रकीर्तिसूरि के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध था, यह बात उक्त प्रतिमालेख से ज्ञान नहीं होता है । नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध यद्यपि यही चार अभिलेखीय साक्ष्य आज मिलते हैं, किन्तु इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से ये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्य नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है इस गच्छ के आचार्य चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा वि० सं० १६२३ / ई० सन् Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १५६७ में रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति, जिसमें रचनाकार ने अपनी गुरु- परम्परा की लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अति मूल्यवान है । गुर्वावली इस प्रकार है : वादिदेवसूरि I पद्मप्रभसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि | गुणसमुद्रसूरि | जयशेखरसूरि 1 वज्रसेनसूरि तिलकसूरि T रत्नशेखरसूरि 1 पूर्णचन्द्रसूरि 1 प्रेम (हेम) हंससूरि रत्नसागरसूरि हेमसमुद्रसूरि हेमरत्नसूरि सोमरत्नसूरि Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ ६७७ राजरत्नसूरि चन्द्रकीर्तिसूरि (सारस्वतव्याकरणदीपिका की हर्षकीर्ति प्रथमादर्शप्रति के लेखक) चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित धातुपाठविवरण, छन्दकोशटीका आदि कई कृतियां प्राप्त होती हैं । इसी प्रकार इनके शिष्य हर्षकीर्ति भी अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे । इनके द्वारा रचित सारस्वतव्याकरण धातुपाठ (रचनाकाल वि० सं० १६६३/ई० स० १६०७), योगचिन्तामणि अपरनाम वैद्यकसारोद्धार, शारदीयनाममाला, अजियसंतिथव (अजितशांतिस्तव), उवसग्गहरथोत्त (उपसर्गहरस्तोत्र), धातुपाठ, नवकारमंत्र, (नमस्कारमंत्र), बृहच्छांतिथव (बृहदशान्तिस्तव), लघुशान्तिस्तोत्र, सिन्दूरप्रकर आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं। गोपालभट्ट द्वारा रचित सारस्वतव्याकरण पर वृत्ति के रचनाकार भावचन्द्र भी नागपुरीयतपागच्छ के थे। अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है: चन्द्रकीर्तिसूरि पद्मचन्द्र भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरणवृत्ति अपरनाम गोपालटीका के रचनाकार) ऊपर सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं कि किन्ही पद्मचन्द्र की प्रार्थना पर उक्त कृति की रचना की गयी थी। इससे यह प्रतीत होता है कि मुनि पद्मचन्द्र का रचनाकार से अवश्य ही निकट सम्बन्ध रहा होगा । ऊपर हम गोपालटीका की प्रशस्ति में देख Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चुके हैं कि टीकाकार भावचन्द्र ने पद्मचन्द्र को चन्द्रकीर्तिसूरि का शिष्य और अपना गुरु बतलाया है। इस प्रकार सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रथमादर्शप्रति के लेखक हर्षकीर्ति और उक्त कृति की रचना हेतु आचार्य चन्द्रकीर्ति को प्रेरित करने वाले पद्मचन्द्र परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं। चन्द्रकीतिसूरि (वि० सं० १६२३ में सारस्वतव्याकरणदीपिका के रचनाकार) पद्मचन्द्र हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरण (सारस्वतव्याकरण दीपिका की रचना के लिए दीपिका की प्रथमादर्श प्रार्थना करने वाले) प्रति लेखक) भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरणवृत्ति अपरनाम गोपालटीका के रचनाकार) हर्षकीर्ति द्वारा रचित कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका नामक एक अन्य कृति भी प्राप्त होती है, जिसका संशोधन उनके शिष्य महोपाध्याय देवसुन्दर ने किया। इसी प्रकार इनके एक शिष्य शिवराज ने अपने गुरु द्वारा रचित बृहद्शांतिस्तव की वि० सं० १६७६ में प्रतिलिपि की२।। वि० सं० १६५६ में लिखी गयी सिरिवालचरिय (श्रीपालचरित्र) की प्रतिलेखन प्रशस्ति१३ में भी इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, जो इस प्रकार हैं - चन्द्रकीर्तिसूरि मानकीर्ति Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ ६७९ अमरकीर्ति मुनिधर्म (वि० सं० १६५७/ई० स० १६०१ में सिरिवालचरिय के प्रतिलिपिकार) ___ उक्त छोटी-छोटी प्रशस्तियों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : चन्द्रकीर्तिसूरि (सारस्वतव्याकरणदीपिका के रचनाकार) हर्षकीर्ति | मानकीर्ति (कल्याणमंदिर स्तोत्रटीका __एवं अन्य कृतियों के कर्ता पद्मचन्द्र (सारस्वतव्याकरण दीपिका की रचना के प्रेरक) अमरकीर्ति भावचन्द्र (गोपालटीका के रचनाकार) । महो० देवसुन्दर शिवराज | (कल्याणमंदिर। स्तोत्रटीका के संशोधक) मुनिधर्म (वि० सं० १६५७ /ई० स० १६०१ में ___ श्रीपालचरित के प्रतिलिपिकार) Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में उल्लिखित रचनाकार चन्द्रकीर्ति के गुरु राजरत्नसूरि और प्रगुरु सोमरत्नसूरि समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित राजरत्नसूरि और उनके गुरु सोमरत्नसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं । इस आधार पर चन्द्रकीर्तिसूरि और रत्नकीर्तिसूरि-सोमरत्नसूरि के प्रशिष्य, राजरत्नसूरि के शिष्य और परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते है । इस प्रकार इस गच्छ के मुनिजनों का जो वंशवृक्ष बनता है, वह इस प्रकार है : सोमरत्नसूरि (वि० सं० १५५१) प्रतिमालेख ६८० चन्द्रकीर्तिसूरि (वि० सं० १६२३ में सारस्वतव्याकरणदीपिका के कर्ता प्रसिद्ध रचनाकार) I राजरत्नसूरि मानकीर्तिसूरि हर्षकीर्ति | (नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करनेवाला सर्वप्रथम साक्ष्य) रत्नकीर्तिसूरि (वि० सं० १५९६) प्रतिमालेख पद्मचन्द्र सारस्वतव्याकरण- ( इसकी प्रार्थना की प्रथमादर्श प्रति के लेखक पर सारस्वतव्याकरणदीपिका Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ | अमरकीर्तिसूरि I | महो० देवसुन्दर मुनिधर्म (वि० सं० १६५७ में की रचना हुई) | भावचन्द्र (गोपालटीका के कर्ता) शिवराज श्रीपालचरित्र के प्रतिलिपिकार) ६८१ चूंकि नागपुरीयतपागच्छ का वि० सं० १५५१ से पूर्व कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता, अतः चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्तिगत गुर्वावली में आचार्य सोमरत्नसूरि से पूर्ववर्ती हेमरत्नसूरि, हेमसमुद्रसूरि, हेमहंससूरि, पूर्णचन्द्रसूरि आदि जिन मुनिजनों का उल्लेख मिलता है, उन्हें किस गच्छ से सम्बद्ध माना जाये, यह समस्या सामने आती है । इस सम्बन्ध में हमें अन्यत्र प्रयास करना पड़ेगा । दूह : तपागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में हमें हेमरत्नसूरि (वि० सं० १५३३), हेमरत्नसूरि के गुरु हेमसमुद्रसूरि (वि० सं० १५१७ - २८) और हेमसमुद्रसूरि के गुरु तथा पूर्णचन्द्रसूरि के शिष्य हेमहंससूरि (वि० सं० १४५३ - १५१३) का उल्लेख प्राप्त होता है । इनका विवरण इस प्रकार है : I Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तपागच्छीय आचार्य पूर्णचन्द्रसूरि के पट्टधर हेमहंससूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण क्रमांक संवत् माह तिथि दिन संदर्भ ग्रन्थ १. | १४५३ ............. सुदि| जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४८९ | १४६५ माघ वदि १३ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ६१९ १४६६ चैत्र सुदि १३ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९१७ ४. | १४६९ कार्तिक सुदि १५ | बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ६४१ १४७५ मार्गसिर वदि ४ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२४० १४८५ माघ वदि १४ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बुधवार लेखांक १३१४ १४८५........... वदि ५ वही, लेखांक ७२९ १४८६ ज्येष्ठ सुदि १३ जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६५८ १४८७ माघ सुदि ३ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५१ ९. | १४९० फाल्गुन सुदि ९ | जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३२९ १०. | १४९६ वैशाख सुदि १२ | वही, भाग २, लेखांक १४८१ ११. | १४९८ फाल्गुन वदि १० | वही, भाग २, लेखांक १३६७ | Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८३ - १३. नागपुरीयतपागच्छ क्रमांक संवत् माह तिथि दिन संदर्भ ग्रन्थ १२. | १५०१..... वदि ६ । वही, भाग २, लेखांक १४८२ बुधवार १५०३ ज्येष्ठ सुदि ११ । बीकानेरजैनलेखसंग्रह, शुक्रवार लेखांक ८६५ १५०३ ॥ ॥ वही, लेखांक १४३३ १५०३ मार्गशीर्ष वदि १० वही, लेखांक १५१२ १५०४ फाल्गुन वदि ११ | जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११४७ | १५१० चैत्र वदि ४ वही, भाग २, लेखांक ११५२ शनिवार १५११ माघ वदि ९ वही, भाग २, लेखांक १४०१ १५१२ फाल्गुन वदि ५ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९४ | १५१३ पौष सुदि ८ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०८९ २१. | १५१३ ,, ,, वही, भाग २, लेखांक १२६६ २२. | १५१३ ,, ,, वही, भाग २, लेखांक १३७४ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास हेमहंससूरि के पट्टधर हेमसमुद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण क्रमांक संवत् माह तिथि दिन संदर्भ ग्रन्थ १. | १५१७ मार्गशीर्ष सुदि २ । प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, शनिवारलेखांक ५६९ १५१७ माघ सुदि १० । वही, भाग १, लेखांक ५७३ सोमवार . १५१८ माघ सुदि २ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, शनिवार लेखांक १२२६ १५२१ वैशाख सुदि १३ | वही, लेखांक १२९३ सोमवार १५२१ माघ सुदि १२ । जैनलेखसंग्रह, भाग २, बुधवार लेखांक ४४३ १५२२ माघ सुदि २ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, गुरुवार लेखांक १२० १५२८ वैशाख वदि६ । बीकानेरजैनलेखसंग्रह, सोमवार लेखांक १२४९ ॐ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ क्रमांक संवत् माह तिथि दिन १५३३, माघ सुदि ६ १. २. ३. समुद्रसूरि के पट्टधर हेमरत्नसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण संदर्भ ग्रन्थ ४. १५३३ १५३७ मार्गशीर्ष जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३५३ सुदि १२ १४४२ वैशाख सुदि १३, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, रविवार लेखांक १६८ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर जो पट्टक्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार है - पूर्णचन्द्रसूरि | महंससूरि ६८५ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७६४ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११९१ (वि० सं० १४५६ - १५१३) (वि० सं० १५१७- १५२८) ( वि० सं० १५३३ - १५४२) इस प्रकार तपागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में न केवल उक्त मुनिजनों के नाम मिलते हैं, बल्कि उनका पट्टक्रम भी ठीक उसी प्रकार का है जैसा कि चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं । सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में पूर्णचन्द्रसूरि के गुरु का T हेमसमुद्रसूरि I हेमरत्नसूर Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ — जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नाम रत्नशेखरसूरि और प्रगुरु का नाम हेमतिलकसूरि दिया गया है । रत्नशेखरसूरि द्वारा रचित सिरिवालचरिय (श्रीपालचरित्र) रचनाकाल वि० सं० १४२८/ई० स० १३७२; लघुक्षेत्रसमास स्वोपज्ञवृत्ति, गुरुगुणषट्त्रिंशिका, छंदकोश, सम्बोधसत्तरीसटीक, लघुक्षेत्रसमाससटीक आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं । सिरिवालचरिय की प्रशस्ति५ में उन्होंने अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य तथा रचनाकाल आदि का निर्देश किया है, जो इस प्रकार है: सिरिवज्जसेणगणहरपट्टप्पहूहेमतिलयसूरीणं। सीसेहिं रयणसेहरसूरीहिं इमा ऊण संकलिया ।। ३८॥ तस्सीसहेमचंदेण साहुणा विक्कमस्स वरसंमि। चउदस अट्ठावीसे लिहिया गुरुभत्तिकलिएणं ॥३९॥ वज्रसेनसूरि हेमतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि हेमचन्द्र यह उल्लेखनीय है कि रत्नशेखरसूरि ने उक्त प्रशस्ति में अपने गच्छ का निर्देश नहीं किया है। यही बात उनके द्वारा रचित अन्य कृतियों में भी देखी जा सकती है। वि० सं० १४२२ के एक प्रतिमालेख में तपागच्छीय? किन्हीं रत्नशेखरसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु उपदेशक के रूप में नाम मिलता है । यहि हम इस वाचना को सही मानें तो उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित रत्नशेखरसूरि को समसामयिकता और नाम साम्य के आधार पर उक्त प्रसिद्ध रचनाकार रत्नशेखरसूरि से समीकृत किया जा सकता है। एक रचनाकार द्वारा अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ ६८७ तथा रचनाकाल का उल्लेख करना जितना महत्त्वपूर्ण है, वहीं उनके द्वारा अपने गच्छ का निर्देश न करता उतना ही आश्चर्यजनक भी है। कर्परप्रकर नामक कृति की प्रशस्ति१६ में रचनाकार हरिषेण ने स्वयं को वज्रसेन का शिष्य और नेमिनाथचरित्र का कर्ता बतलाया है, किन्तु इन्होंने न तो कृति के रचनाकाल का कोई निर्देश किया है और न ही अपने गच्छ आदि का। ऊपर सिरिवालचरिय (रचनाकाल वि० सं० १४२८/ई० स० १३७२) प्रशस्ति में हेमतिलकसूरि के गुरु का नाम वज्रसेनसूरि आ चुका है, अतः नामसाम्य के आधार पर उक्त दोनों प्रशस्तियों में उल्लिखित वज्रसेनसूरि के एक ही व्यक्ति होने की संभावना व्यक्त की जा सकती है। इस संभावना के आधार पर कर्पूरप्रकर, नेमिनाथचरित्र आदि के रचनाकार हरिषेण और सिरिवालचरिय तथा अन्य कई कृतियों के कर्ता रत्नशेखरसूरि के गुरु परस्पर गुरुभ्राता माने जा सकते हैं। । सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में ऊपर हम देख चुके हैं वज्रसेनसूरि के गुरु का नाम जयशेखरसूरि और प्रगुरु का नाम गुणसमुद्रसूरि तथा उनके गुरु का नाम प्रसन्नचन्द्रसूरि बतलाया गया है जो इस परम्परा के आदिपुरुष पद्मप्रभसूरि के शिष्य थे। छन्दकोश पर रची गयी वृत्ति की प्रशस्ति में रचनाकार चन्द्रकीर्ति ने पद्मप्रभसूरि को दीपकशास्त्र का रचनाकार बतलाया है : वर्षेः चतुःसप्ततियुक्तरुद्रशतै- ११७४-रतीतैरथ विक्रमार्कात् । वादीन्द्रमुख्यो गुरु देवसूरिः सूरीश्चतुर्विंशतिमभ्यर्षिचत् ।। तेषां च यो दीपकशास्त्रकर्ता पद्मप्रभः सूरिवरो वभूव । यदिय शाखा प्रथिता क्रमेण ख्याता क्षितौ नागपुरी तपेति ।। ठीक यही बात विक्रम सम्वत् की १८ वीं शती के अंतिम चरण के आस-पास रची गयी नागपुरीयतपागच्छ की पट्टावली में भी कही गयी है, किन्तु वहां ग्रन्थ का नाम भुवनदीपक बतलाया गया है। इसी गच्छ की Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास दूसरी पट्टावली (रचनाकाल - विक्रम सम्वत् बीसवीं शताब्दी का अंतिम चरण) में तो एक कदम और आगे बढ़ कर भुवनदीपक का रचनाकाल (वि० सं० १२२१) का भी उल्लेख कर दिया गया है। किन्ही पद्मप्रभसूरि नामक मुनि द्वारा रचित भुवनदीपक अपरनाम ग्रहभावप्रकाश नामक ज्योतिष शास्त्र की एक कृति मिलती है, परन्तु उसकी प्रशस्ति में न तो रचनाकाल ने अपने गुरु, गच्छ आदि का नाम दिया है और न ही इसका रचनाकार ही बतलाया है, फिर भी नागपुरीयतपागच्छीय साक्ष्यों - छन्दकोशवृत्ति की प्रशस्ति तथा इस गच्छ की पट्टावली के विवरण को प्रामणिक मानते हुए विद्वानों ने इन्हें वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से अभिन्न माना है। नागपुरीयतपागच्छीयपट्टावली (रचनाकाल २० वीं शताब्दी का अंतिम भाग) में उल्लिखित भुवनदीपक के जहां तक रचनाकाल का प्रश्न है, चूंकि इस सम्बन्ध में किन्ही भी अन्य साक्ष्यों से कोई सूचना नहीं मिलती, दूसरे अर्वाचीन होने से इसमें अनेक भ्रामक और परस्पर विरोधी सूचनायें संकलित हो गयी हैं अतः इसकी प्रामणिकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है । पद्मप्रभसूरि की परम्परा में हुए हरिषेण एवं रत्नशेखरसूरि द्वारा अपने गच्छ का उल्लेख न करना तथा इसी परम्परा में बाद में हुए चन्द्रकीर्तिसूरि, मानकीर्ति, अमरकीर्ति आदि द्वारा स्वयं को नागपुरीय तपागच्छीय और अपनी परम्परा को बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि से सम्बद्ध बतलाना वस्तुत: इतिहास की एक अनबूझ पहेली है जिसे पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में सुलझा पाना कठिन है और यह प्रश्न अभी तो अनुत्तरित ही रह जाता है। सन्दर्भ सूची : १-२ (अ) तीर्थे वीरजिनेश्वरस्य विदिते श्रीकौटिकाख्ये गणे । श्रीमच्चान्द्रकुले वटोद्भवबृहद्गच्छे गरिम्नान्विते || श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपाप्राप्तावदातेऽधुना । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ ६. स्फूर्ज्जद्भूरिगुणान्विता गणधर श्रेणी सदा राजते ॥२॥ वर्षे वेद- मुनीन्द्र - शंङ्कर (१९७४) मिते श्रीदेवसूरिः प्रभुः । ज्ञेऽभूत् तदनु प्रसिद्धमहिमा पद्मप्रभः सूरिराट् ॥ सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति A. P. Shah, Ed, Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss, Muni Punya VijayaJis Collection, Part II, L. D. Series No- 5, Ahmedabad 1965 A. D., No. 5974. Pp 376-377. (ब) "नागपुरीयतपागच्छ पट्टावली", मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१, पृष्ठ ४८-५२. (स) “नागपुरीयतपागच्छपट्टावली" मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, नवीनसंस्करण, संपा०- डो० जयन्त कोठारी, भाग ९, मुम्बई १९९७ ई०, पृष्ठ ७. ९८-१०५. महोपाध्याय विनयसागर, संपा०- प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, कोटा १९५३ ईस्वी, लेखांक ८६५. वही, लेखांक ९९४. वही, लेखांक ९९५. वही, लेखांक १०९२. सारस्वतव्याकरण दीपिका की प्रशस्ति : सुबोधिकायां क्लृप्तायां सूरिश्रीचन्द्रकीर्त्तिभिः । कृत्प्रत्ययानां व्याख्यानं बभूव सुमनोहरम् ॥१॥ तीर्थे वीरजिनेश्वरस्य विदिते श्रीकौटिकाख्ये गणे, श्रीमच्चान्द्रकुले बटोद्भवबृहद्गच्छे गरिम्नान्विते । श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपाप्राप्तावदातेऽधुना, स्फूर्ज्जद्भूरिगुणान्विता गणधर श्रेणी सदा राजते ॥२॥ वर्षे वेद-मुनीन्द्र-शङ्कर (११७४) मिते श्रीदेवसूरिः प्रभुः । जज्ञेऽभूत् तदनु प्रसिद्धमहिमा पद्मप्रभः सूरिराट् ॥ तत्पट्टे प्रथितः प्रसन्नशशिभृत सूरिः सतामादिमः । सूरीन्द्रास्तदनन्तरं गुणसमुद्राह्वा बभूवुर्बुधाः ||३|| ६८९ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तत्पट्टे जयशेखराख्यसुगुरुः श्रीवज्रसेनस्ततस्तत्पट्टे गुरुहेमपूर्वतिलकः शुद्धक्रियोद्योतकः । तत्पट्टे प्रभुरत्नशेखरगुरुः सूरीश्वराणां वरस्तत्पट्टाम्बुधिपूर्णचन्द्रसदृशः श्रीपूर्णचन्द्रप्रभुः ॥४॥ तत्पट्टेऽजनि प्रेमहंससुगुरुः सर्वत्र जाग्रद्यशाः, आचार्या अपि रत्नसागरवरास्तत्पट्टपद्मार्यमा । श्रीमान्हेमसमुद्रसूरिरभवठ्ठीहेमरत्नस्ततस्तपट्टे प्रभुसोमरत्नगुरुवः सूरीश्वराः सद्गुणाः ।।५।। तत्पट्टोदयशैलहेलिरमलश्रीजेसवालान्वयाऽलङ्कारः कलिकालदर्पदमनः श्रीराजरत्नप्रभः । तत्पट्टे जितविश्ववादिनिवहा गच्छाधिपाः संप्रति, सूरिश्रीप्रभुचन्द्रकीर्तिगुरवो गाम्भीर्यधैर्याश्रयाः ॥६॥ तैरियं पद्मचन्द्राह्वोपाध्यायाभ्यर्थना कृता । शुभा सुबोधिकानाम्नी श्रीसारस्वतदीपिका ॥७॥ श्रीचन्द्रकीर्तिसूरीन्द्रपादाम्भोजमधुकरः । श्रीहर्षकीर्तिरिमां टीकां प्रथमादर्शकेऽलिखत् ॥८॥ अज्ञातध्वान्तविध्वंसविधाने दीपिकानिभा । दीपिकेयं विजयतां वाच्यमाना बुधैश्चिरम् ।।९।। स्वल्पस्य सिद्धस्य सुबोधकस्य सारस्वतव्याकरणस्य टीकाम् । सुबोधिकाख्यां रचयाञ्चकार सूरीश्वरः श्रीप्रभुचन्द्रकीतिः ॥१०॥ गुण-पक्ष-कला (१६२३) संख्ये वर्षे विक्रमभूपतेः । टीका सारस्वतस्येषा सुगमार्था विनिर्मिता ॥११||) इति श्रीमन्नागपुरीयतपागच्छाधिराजभट्टारकश्रीचन्द्रकीर्तिसूरिविरचिता श्रीसारस्वतव्याकरणस्य दीपिका समाप्ता । अस्मिन् समाप्ते । समाप्तोऽयमिति ग्रन्थः । A. P. Shah, Ibid, Part II, No. 5974, Pp 376-377. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ ६९१ मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि, सुरत २००६ ईस्वी० पृष्ठ ३८८, कंडिका ८६२. सारस्वतव्याकरणवृत्ति की प्रशस्ति स्वस्ति श्रीमति सत्प्रभावकलिते विद्वद्गणालंकृते श्रीमन्नागपुरीयसंज्ञकतपागच्छे प्रसिद्धे भुवि। जाग्रद्भारतिसुप्रसादसुरभिस्फारस्फुरत्तेजसि सूरीन्द्रप्रवरे चिरं विजयिनि श्रीचन्द्रकीर्तिप्रभौ ॥१॥ नित्यं तेऽत्र जयन्ति गणैर्मान्याः समासादित (?), क्षेत्राधीशवराश्च पाठकवराः श्रीपद्मचन्द्राभिधाः ।। तच्छिष्योत्तमभावचन्द्रवचसा सारस्वतस्य स्फुटां, टीका चारुविचारसाररुचिरां गोपालभट्टो व्यधात् ॥२॥ A. P. Shah, Ibid, Part IV, L. D. Series No- 20, Ahmedabad 1968 A. D. No. 954, Pp. 94-95. १०. तैरियं पद्मचन्द्राह्वोपाध्यायाभ्यर्थना कृता । शुभा सुबोधिकानाम्नी श्रीसारस्वतदीपिका ॥६।। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति, द्रष्टव्य- संदर्भ क्रमांक ७. श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपागच्छाधिपाः सत्क्रियाः, सूरिश्रीप्रभचन्द्रकीर्तिगुरवस्तेषां विनेयो वरः। वाच्यः पाठक हर्षकीर्तिरकरोत् कल्याणसास्तवे, मेधामंदिर देवसुन्दरमहोपाध्यायराजो महान् ॥१॥ यत्किचिन्मतिमन्दत्वात् यच्चात्रानवधानतः । व्याख्यातं वैपरीत्येन तद् विशोध्यं विचक्षणैः ।।२।। A. P. Shah, Ibid, Part I, No- 1671, Pp 97-98. इतिश्रीबृहच्छांतिटीका समाप्ताः ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीरस्तुः ॥ संवत् १६७६ वर्षे वैशाख मासे । शुक्लपक्षे । द्वितीयां तिथौ । च(च)द्रवासरे लिपिकृताः ॥ श्रीमन्नागपुरीयतपागच्छे । भ० श्री श्रीमानकीर्तिसूरिस्तेषांपट्टे उ० श्रीहर्षकीर्ति । तच्छिष्य (ष्य) शिवराजेन लिखितमस्तिः । स्वपठनाय लेखक पाठकः (:) श्रीरस्तु। ११. १२. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९२ १३. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ___H. R. Kapadia, Ed. Descriptive Catalogue of the Govt. Collections of Mss. Deposited at B.O.R.I. Vol. XVIII, Part IV, Poone 1948, A. D.P- 121. संवत् १६५७ वर्षे आषाढ़ मासे शुक्लपक्षे । प्रतिपदायां तिथौ। सोमवारे श्रीनागपुरमध्ये । पातसाहि श्रीअकबर राज्ये । श्रीवर्धमानतीर्थे सुधर्मास्वामिनोऽन्वये । कौटिकगणे । वइरीशाखायां चंद्रकुले । पूर्वं श्रीमद्धृहद्गच्छे सांप्रतं प्राप्तनागपुरीय तपा इति प्रसिद्धावदाते । वादि श्री देवसूरिसंताने । भ० श्री चन्द्रकीर्तिसूरिवरास्तेषां पट्टे सर्वत्र जेगीयमानकीर्ति भ० श्रीमानकीर्तिसूरिपुरंदरास्तेषां शिष्या आचार्य श्री श्री ५ अमरकीर्तिसूरयस्तेषां शिष्येण मुनिधर्माह्वयेन लिपीचक्रे। अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा०, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैनसाहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराजक समाज, अहमदाबाद वि० सं० १९९३, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ६२८, पृष्ठ १५९-६०. १४. देसाई, जैन साहित्यनो...., द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २९, कंडिका ६८. 84. P. Peterson : A Fourth Report of Operation in search of Sanskrit ___MSS. P. 118, No. 1348. श्रीवब्रसेनस्य गुरोस्त्रिषष्ठिसारप्रबंधस्फुट सद्गुणस्य ।। शिष्येण चक्रे हरिणेयमिष्टा, सूक्तावली नेमिचरित्रकर्ता । कर्परप्रकर की प्रशस्ति, प्रकाशक-बालाभाई कलक भाई, मांडवी पोल, अहमदाबाद वि० सं० १९८२/ई० सन् १९२६. १७. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगुर्जरकविओ, भाग ८ द्वितीय संस्करण, पृष्ठ ४८, पाद टिप्पणी १. १८-१९. द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक १ और २ २०. ग्रहभावप्रकाशाख्यं शास्त्रमेतत्प्रकाशितम् । लोकानामुपकाराय श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः ॥१७०|| भुवनदीपक का अंतिम श्लोक. प्रकाशक-गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास, श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर स्टीम प्रेस, बम्बई वि० सं० १९९६/ ई० स० १९३९. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास उत्तर भारतीय निर्ग्रन्थ संघ के अल्पचेल (बाद में श्वेताम्बर) सम्प्रदाय के अन्तर्गत नागेन्द्रकुल (बाद में नागेन्द्रगच्छ) का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था | अब से लगभग ४०० वर्ष पूर्व तक विद्यमान इस गच्छ की उत्पत्ति कोटिक गण के नाइल ( नागिल्य – नागेन्द्र) शाखा से हुई, ऐसा माना जाता है । पर्यूषणाकल्प' की ' स्थविरावली' (जिसका प्रारम्भिक भाग ई० सन् १०० के बाद का माना जाता है) के अनुसार आर्यवज्र के प्रशिष्य और आर्य वज्रसेन के शिष्य आर्य नाइल से नाइली शाखा का उद्भव हुआ' । देववाचककृत नन्दीसूत्र की 'स्थविरावली' (रचनाकाल प्रायः ई० सन् ४५०) ४ में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है तथापि वहाँ इसे नाइलकुल कहा गया है।' ऐसा मालूम होता है कि पाँचवी - छठीं शताब्दी से कुछ शाखाएँ कुल कहलाने लगी थीं और गुप्तयुग के पश्चात् तथा मध्ययुग के प्रारम्भपूर्व तथा मध्युग की शुरुआत में नागेन्द्रकुलरूपेण ही उल्लेख प्राप्त होता है और इससे सम्बद्ध साक्ष्य मिलने लगते हैं । नन्दीसूत्र की ' स्थविरावली' में आर्य नागार्जुन (जिनकी अध्यक्षता में ई० सन् की चतुर्थ शताब्दी के तृतीय चरण में आगम ग्रन्थों के संकलन के लिये वलभी में वाचना हुई थी) और उनके शिष्य आर्य भूतदिन्न को नाइलकुल का बतलाया गया है । आर्य नाइल के पश्चात् और आर्य नागार्जुन के पूर्व इस कुल में कौन-कौन से आचार्य हुए इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है । ठीक यही बात आर्य भूतदिन्न के पट्टधर परम्परा के विषय में भी कही जा सकती है । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त साक्ष्यों के आधार पर नागेन्द्रकुल के प्रारम्भिक आचार्यों को निम्नलिखित क्रम में रखा जा सकता है आर्य वज्र ६९४ कल्पसूत्र 'स्थविरावली' । आर्य वज्रसेन नन्दीसूत्र 'स्थविराली' आर्य नाइल 1 आर्य नागार्जुन | - आर्य भूतदिन्न (भूतदत्त) नाइलकुल से सम्बद्ध अगला साक्ष्य गुप्तकाल का है । पउमचरिय ( रचनाकाल प्राय: ई० सन् ४७३) के रचयिता विमलसूरि भी इसी कुल के ७ । ग्रन्थ की प्रशस्ति में उन्होंने न केवल अपने कुल बल्कि अपने गुरु और प्रगुरु का भी नामोल्लेख किया है' आर्य राहु ―― 1 आर्य विजय T विमलसूरि ( ई० सन् की प्रथम शताब्दी) (नागेन्द्र) ( ई० सन् की चौथी शताब्दी का तृतीय चरण) (प्राय: ई० सन् ४७३ में 'पउमचरिय' के रचनाकार) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __६९५ नागेन्द्रगच्छ आर्य नागार्जुन और आर्य भूतदिन्न से सम्बद्ध नाइलकुल की परम्परा तथा विमलसूरि द्वारा उल्लिखित इस कुल की गुरु-परम्परा के बीच क्या सम्बन्ध था, यह अस्पष्ट ही है। इसी प्रकार विमलसूरि के अनुगामियों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिलती। उक्त सभी साक्ष्यों के पश्चात् इस कुल से सम्बद्ध जो साक्ष्य मिलते हैं वे इनसे २०० साल बाद के हैं । ये गुजरात में अकोटा से प्राप्त दो मितिविहीन धातुप्रतिमाओं पर उत्कीर्णं हैं। इनमें से प्रथम प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में नागेन्द्रकुल के सिद्धमहत्तर की शिष्या आर्यिका खम्बलिया का नाम मिलता है । डॉ० उमाकान्त शाह ने प्रतिमा के लक्षण और उस पर उत्कीर्ण लेख की लिपि के आधार पर उसे ई० सन् की सातवीं शताब्दी का बतलाया है। द्वितीय प्रतिमा पर नागेन्द्रकुल के ही एक श्रावक सिंहण का नाम मिलता है। शाह ने इस लेख को भी सातवीं शताब्दी के आसपास का ही दर्शाया है। सातवीं शताब्दी तक इस कुल के आचार्यों को श्वेताम्बर श्रमणसंघ में अग्रगण्य स्थान प्राप्त हो चुका था। इसी कारण उस युग की एक महत्त्वपूर्ण रचना व्यवहारचूर्णी में उनके मन्तव्यों को स्थान प्राप्त हुआ।१३ आठवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में इस कुल से सम्बद्ध दो साहित्यिक प्रमाण मिलते हैं । जम्बूचरियं और रिसिदत्ताचरिय के रचनाकार गुणपाल नागेन्द्रकुल से ही सम्बद्ध थे। रिसिदत्ताचरिय की प्रशस्ति के अनुसार गुणपाल के प्रगुरु का नाम वीरभद्र था, जो नाइलकुल के थे । उक्त प्रशस्ति में यह भी कहा गया है कि उक्त ग्रन्थ हाइकपुर में वर्षावास के समय पूर्ण किया गया। जम्बूचरियं की प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी दी है जिसके अनुसार नाइलकुल में प्रद्युम्नसूरि (प्रथम) नामक आचार्य हुए । उनके शिष्य का नाम वीरभद्र था । वीरभद्र के शिष्य प्रद्युम्नसूरि (द्वितीय) हुए । जम्बूचरियं के रचनाकार गुणपाल इन्हीं के शिष्य थे।१५ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कुवलयमालाकहा (रचनाकाल शक सं०७०० / ई० सन् ७७८) के कर्ता उद्योतनसूरि ने अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति में अपने सिद्धान्तगुरु के रूप में किन्हीं वीरभद्रसूरि का उल्लेख किया है जिन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर गुणपालकथित वीरभद्रसूरि से समीकृत किया जा सकता है१७ - प्रद्युम्नसूरि (प्रथम) वीरभद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि (द्वितीय) उद्योतनसूरि (ई० सन् ७७८ में गुणपाल कुवलयमलाकहा (रिसिदत्ताचरिय एवं के रचनाकार) जम्बूचरियं के रचनाकार) नागेन्द्रकुल से सम्बद्ध अगला साक्ष्य ईस्वी सन् की १०वीं शताब्दी के तृतीय चरण का है । जम्बूमुनि द्वारा रचित जिनशतक की पंजिका (रचनाकाल वि० सं० १०२५/ ई० सन् ४६९) के रचनाकार साम्बमुनि इसी कुल के थे ।१८ भृगुकच्छ से प्राप्त शक संवत् ४१०/ ई० सन् ४८८ की पीतल की एक त्रितीर्थी जिनप्रतिमा पर नागेन्द्रकुल के पाश्विलगणि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में उल्लेख मिलता है। वहीं उक्त मुनि के गुरु और प्रगुरु का भी नाम दिया गया है - १. आसीन्नागांद्रकुल लक्ष्मणसूरिनितांतसांत २. मतिः ॥ तद्गाच्छे गुरुतरुयन्नाम्नासीत् सीलरुद्रगणि Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ ___ ६९७ ३. : । सिष्येण मूलवसातो जिनत्रयमकार्य्यत ।। भृगु ४. कच्छे तदीयन पाश्विल्लगणिना वरं । सकसं ५. वत् ।। ४१० ॥ उक्त उत्कीर्ण लेख में तालव्य श के स्थान पर दन्त्य स का प्रयोग हुआ है। इसे कुछ सुधार के साथ आधुनिक पद्धति से निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है° - आसीन्नागेन्द्रकुले लक्ष्मणसूरिनितान्तशान्तमतिः । तद्गच्छे गुरुतरुयन् नाम्नाऽऽसीत् शीलरु(भ) द्रगणिः । शिष्येण मूलवसतौ जिनत्रयमकार्यत। भृगुकच्छे तदीयेन पाश्विल्लगणिना वरम् ॥ शक संवत् ९१० लक्ष्मणसूरि शीलभद्रगणि पाश्विल्लगणि (शक सं० ४१०/ई० सन् ४८८ में त्रितीर्थी जिनप्रतिमा के प्रतिष्ठापक) पार्श्विलगणि के प्रगुरु लक्ष्मणसूरि ई० सन् की १०वीं शताब्दी के द्वितीय चरण में विद्यमान माने जा सकते हैं। ईस्वी सन् की ११वीं शताब्दी से इस कुल के बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होने लगते हैं । इस शताब्दी के पाँच प्रतिमालेखों में इस कुल का नाम मिलता है। वि० सं० १०८६/ ई० सन् १०३०२१ और वि० सं० १०९३/ई० सन् १०३७२२ के दो धातु प्रतिमा लेखों में नागेन्द्रकुल और इससे उद्भूत सिद्धसेनदिवाकरगच्छ का उल्लेख है। राधनपुर से प्राप्त वि० सं० १०४१/ई० सन् १०३५ की धातुप्रतिमा पर भी नागेन्द्रकुल (भ्रमवश Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पढ़ा गया पाठ कानेन्द्रकुल) का उल्लेख मिलता है ।२३ ओसियां से प्राप्त वि० सं० १०८८/ ई० सन् १०३२ के एक प्रतिमालेख में सर्वप्रथम नागेन्द्रकुल के स्थान पर नागेन्द्रगच्छ का नाम मिलता है। इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य वासुदेवसूरि को नागेन्द्रगच्छीय बतलाया गया है। महावीर जिनालय, जूनागढ़ से प्राप्त अम्बिका की एक प्रतिमा (वि० सं० १०४२/ ई० स० १०३६) पर भी इस कुल का उल्लेख हुआ है। समुद्रसूरि के शिष्य और भुवनसुन्दरीकथा (प्राकृतभाषामय, रचनाकाल शक सं० ९७५/ई० सन् १०५३) के रचनाकार विजयसिंहसूरि भी इसी कुल के थे।२६ ___ महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल के पितृपक्ष के कुलगुरु और प्रसिद्ध आचार्य विजयसेनसूरि भी नागेन्द्रगच्छ के थे। उनके शिष्य उदयप्रभसूरि ने स्वरचित धर्माभ्युदयमहाकाव्य (रचनाकाल वि० सं० १२४० से पूर्व) की प्रशस्ति में अपने गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है जिसके अनुसार नागेन्द्रगच्छ में महेन्द्रसूरि नामक एक आचार्य हुए जो आगमों के महान् ज्ञाता और तर्कशास्त्र में पारंगत थे। उनके शिष्य शान्तिसूरि हुए जिन्होंने दिगम्बरों को शास्त्रार्थ में हराया । उनके आनन्दसूरि और अमरचन्द्रसूरि नामक दो शिष्य हुए । चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-११९८/ई० सन् १०९४-११४२) ने उन्हें 'व्याघ्र शिशुक' और 'सिंह शिशुक' की उपाधि प्रदान की थी क्योंकि उन्होंने बाल्यावस्था में ही प्रतिवादियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। अमरचन्द्रसूरि के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने सिद्धान्तार्णव की रचना की थी। इनके शिष्य हरिभद्रसूरि हुए जो अपने अमोघ देशना के कारण 'कलिकालगौतम' के नाम से विख्यात थे । हरिभद्रसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि हुए जो महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल के पितृपक्ष के कुलगुरु थे । धर्माभ्युदयमहाकाव्य के रचनाकार उदयप्रभसूरि इन्हीं के शिष्य थे ।२९ वि० सं० १३०२/ ई० सन् १२४६ के एक प्रतिमालेख में विजयसेनसूरि के एक अन्य Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ ३० शिष्य यशो (देव) सूरि का भी उल्लेख मिलता है । " पुरातनप्रबन्धसंग्रह ( रचनाकाल ई० सन् की १५वीं शताब्दी) के अन्तर्गत एक प्रशस्ति के अनुसार उदयप्रभसूरि के शिष्य जिनभद्रसूरि ने वि० सं० १२९०/ई० सन् १२३४ में नानाकथानकप्रबन्धावली की रचना की। ३१ आनन्दसूरि (व्याघ्र शिशुक) यशो (देव) सूरि (वि० सं० १३०२ ) ( प्रतिमालेख ? महेन्द्रसूरि 1 शान्तिसूरि अमरचन्द्रसूरि (सिंह शिशुक) | हरिभद्रसूरि (कलिकालगौतम) विजयसेनसूरि (महामात्य वस्तुपाल के गुरु) उदयप्रभसूर धर्माभ्युदयमहाकाव्य तथा अनेक कृतियों के रचनाकार) 1 जिनभद्रसूरि (वि० सं० १२८० / ई० सन् १२३४ में ६९९ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 006) विजयसिंहसूरि 1 जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा नागेन्द्रगच्छ की एक दूसरी शाखा का भी पता चलता है । चन्द्रप्रभचरित (रचनाकाल वि० सं० १२६४/ई० सन् १२०८ ) के रचनाकार देवेन्द्रसूरि और वासुपूज्य - चरित ( रचनाकाल वि० सं० १२४४ / ई० सन् १२४३) के रचनाकार वर्द्धमानसूरि ने उक्त कृतियों की प्रशस्तियों में नागेन्द्रगच्छ, जिससे वे सम्बद्ध थे, अपनी विस्तृत गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है ३३ - नानाकथानकप्रबन्धावली के रचनाकार) वीरसूरि 1 वर्धमानसूरि | रामचन्द्रसूरि I चन्द्रसूरि I देवसूरि 1 अभयदेवसूरि | धनेश्वरसूरि देवेन्द्रसूरि (वि० सं० १२६४ / ई० सन् १२०८ में चन्द्रप्रभचरित के रचनाकार) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ वर्धमानसूरि (द्वितीय) (वि० सं० १२९९ / ई० सन् १२४३ में वासुपूज्यचरित के रचनाकार) अजाहरा पार्श्वनाथ जिनालय के निकट से कुछ साल पूर्व धातु की कुछ भूमिगत जिन - प्रतिमायें प्राप्त हुई थीं । इस संग्रह में शीतलनाथ की भी एक सलेख प्रतिमा है, जिस पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार नागेन्द्रगच्छीय विजयसिंहसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि ने वि० सं० १३०५ / ई० सन् १२४४ में इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी। श्री शिवनारायण पाण्डेय ने इस प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख की वाचना दी है३४ जिसे प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी ने संशोधन के साथ प्रस्तुत किया है ३५ जो इस प्रकार है - संवत् १३०५ ज्येष्ठ वदि ८ शने श्री प्राग्वाटान्वये विवरदेव मंत्रिणी महाणु श्रेयोऽर्थं सुतमण्डलिकेन श्री शीतलनाथ बिबं कारितं श्रीनागेन्द्रगच्छे श्रीवीरसूरि संताने श्रीविजयसिंहसूरिशिष्यैः श्रीवर्धमानसूरिभिः प्र (ति) ष्ठितम् ॥ ७०१ ३७ ये वर्धमानसूरि वासुपूज्यचरित के कर्ता से अनन्य मालूम होते हैं । वासुपूज्यचरित की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुर्वावली के साथ-साथ अपने एक शिष्य उदयप्रभसूरि का भी नाम दिया है । ३६ वि० सं० १३३०/ई० सन् १२७४ के गिरनार के लेख में भीं किन्हीं उदयप्रभसूरि का नाम मिलता है । यद्यपि इस लेख में उक्त सूरि के गच्छ, गुरु आदि के नाम का उल्लेख नहीं है किन्तु इस काल में नागेन्द्रगच्छ को छोड़कर किसी अन्य गच्छ में उक्त नाम के कोई अन्य मुनि नहीं हुए हैं । अत: इन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर नागेन्द्रगच्छीय वर्धमानसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। ३८ इसी प्रकार वि० सं० १३३८ / ई० सन् १२८२ में प्रतिष्ठापित और वर्तमान में मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा में संरक्षित धातु की एक Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चौबीसी जिन-प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में उल्लिखित प्रतिमा प्रतिष्ठापक नागेन्द्रगच्छीय महेन्द्रसूरि के गुरु उदयप्रभसूरि समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर पूर्वोक्त वर्धमानसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं । स्याद्वादमंजरी (रचनाकाल वि० सं० १३४८/ई० सन् १२४२) के कर्ता मल्लिषेणसूरि ने भी अपने गुरु का नाम नागेन्द्रगच्छीय उदयप्रभसूरि बतलाया है जिन्हें प्रायः सभी विद्वान् वस्तुपाल-तेजपाल के गुरु विजयसेनसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न मानते हैं किन्तु प्राध्यापक ढांकी ने सटीक प्रमाणों के आधार पर मल्लिषेणसूरि को उपरोक्त वर्धमानसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से भिन्न सिद्ध किया है। इस प्रकार उक्त उदयप्रभसूरि के दो शिष्यों का भी पता चलता है। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर नागेन्द्रगच्छ के इस शाखा की गुरुशिष्य परम्परा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार वीरसूरि वर्धमानसूरि (प्रथम) रामसूरि चन्द्रसूरि देवसूरी अभयदेवसूरि धनेश्वरसूरि Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ विजयसिंहसूरि देवेन्द्रसूरि | (वि० सं० १२६४/ई० सन् १२०८ में चन्द्रप्रभचरित के रचनाकार) वर्धमानसूरि (द्वितीय) (वि० सं० १२४४/ ई० सन् १२४३ में वासुपूज्यचरित के रचनाकार, वि० सं० १३०५/ ई० सन् १२४३ में शीतलनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) उदयप्रभसूरि (वासुपूज्यचरित की प्रशस्ति तथा वि० सं० १३३०/ई० सन् १२७४ के गिरनार के अभिलेख में उल्लिखित) महेन्द्रसूरि (वि० सं० १३३८/ ई० सन् १२८२ में चौबीसी मल्लिषेणसूरि (वि० सं० १३४८/ ई० सन् १२४२ में स्याद्वादमंजरी के रचनाकार) Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जिनप्रतिमा के प्रतिष्ठापक) नागेन्द्रगच्छ की उपरोक्त उपशाखा और महामात्य वस्तुपाल के गुरु विजयसेनसूरि और उनके शिष्य उदयप्रभसूरि से सम्बद्ध नागेन्द्रगच्छ की उपशाखा के बीच परस्पर क्या सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता। साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा इस गच्छ की एक तीसरी उपशाखा का भी पता चलता है । मुनि धर्मकुमार द्वारा रचित शालिभद्रचरित्र (रचनाकाल वि० सं० १३३४/ई० सन् १२७८) की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरुपरम्परा दी है"३, जो इस प्रकार है - हेमप्रभसूरि धर्मधोषसूरि सोमप्रभसूरि विबुधप्रभसूरि मुनिधर्मकुमार (वि० सं० १३३४/ ई० सन् १२७८ में शालिभद्रचरित्र के रचनाकार) यह उपशाखा भी १२वीं-१३वीं शताब्दी में विद्यमान थी, परन्तु उसका सम्बन्ध पूर्वकथित दो अन्य उपशाखाओं से क्या रहा, इसका पता नहीं चलता। प्रबन्धचिन्तामणि " (रचनाकाल वि० सं० १३६१/ई० सन् १३०५) के रचनाकार मेरुत्तुंगसूरि भी इसी गच्छ के थे। ग्रन्थ की प्रशस्ति में उन्होंने Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०५ नागेन्द्रगच्छ अपने गच्छ, ग्रन्थ के रचनाकाल के साथ-साथ अपने गुरु चन्द्रप्रभसूरि का भी उल्लेख किया है। लेकिन इसके अतिरिक्त अपने गच्छ की परम्परा के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है। उत्तरमध्यकाल में भी इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं । इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है - गुणदेवसूरि के शिष्य गुणरत्नसूरि द्वारा मरु-गुर्जर भाषा में रचित ऋषभरास और भरतबाहुबलिरास ये दो कृतियाँ मिलती हैं। ६ गुणरत्नसूरि के शिष्य सोमरत्नसूरि ने वि० सं० १५२० के आस-पास कामदेवरास की रचना की। इसी प्रकार गुणदेवसूरि के एक अन्य शिष्य ज्ञानसागर द्वारा वि० सं० १५२३/ई० सन् १४६७ में जीवभवस्थितिरास और वि० सं० १५३१/ई० सन् १४७५ में सिद्धचक्रश्रीपालचौपाई की रचना की गयी। गुणदेवसूरि गुणरत्नसूरि ज्ञानसागर (ऋषभरास एवं (वि० सं० १५२३ में भरतबाहुबलिरास जीवभवस्थितिरास के रचनाकार) एवं वि० सं० १५३१ में सिद्धचक्रश्रीपालसोमरत्नसूरि चौपाई के कर्ता) (वि० सं० १५२० के आसपास कामदेवरास के कर्ता) अकोटा से प्राप्त धातु की दो जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख को नागेन्द्रकुल का पुरातन अभिलेखीय साक्ष्य माना जा सकता है । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ डॉ० उमाकान्त शाह ने इनकी वाचना दी है ४९ जो निम्नानुसार है - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १. ॐ नागेन्द्र कुले सिद्धमहत्तर २. सिष्यायाः खंभिल्याजिकायाः यह लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है I द्वितीय लेख तीर्थंकर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इसका मूलपाठ निम्नानुसार है. - १. ॐ देवधर्मोयं नागेन्द्र २. कुलिकस्य । । सिहणो श्रा ३. वकस्य ० ॥ इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें प्राप्त होती हैं जो वि० सं० १०८८ से वि० सं० १५८३ तक की हैं। इनके अतिरिक्त वि० सं० १६१७ और वि० सं० १७१५ की एक-एक जिन प्रतिमाओं पर भी इस गच्छ का उल्लेख मिलता है । इनका विवरण निम्नानुसार है. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १०८८ फाल्गुन वासुदेवसूरि - जैनमन्दिर, | पूरनचन्द नाहर, वदि ४ ओसिया संपा०, जैनलेख संग्रह, भाग १, लेखांक ७९२ एवं अम्बालाल पी० शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खण्ड १, पृ० १७४ २. १०९१ पार्श्वनाथ की शामला पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, त्रितीर्थी धातु- | जिनालय, संपा०, रा० प्र० प्रतिमा का | राधनपुर ले० सं०, खंडित लेख लेखांक २ ७०७ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7001 लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३. |१०९२ अम्बिका की | महावीर जिनालय, लक्ष्मण भोजक, धातुप्रतिमा का | जूनागढ़ 'जूनागढनी अम्बिकानी धातुप्रतिमानो लेख' Aspects of Jainology, |Vol. II, Gujarati |Section, P. १७९ ४. |११६१ / माघ ११ | विजयतुंगसूरि | पंचतीर्थी जिन | सुविधिनाथ नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा पर जिनालय, घोघा, भाग २, उत्कीर्ण लेख काठियावाड़ लेखांक १७६७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५. १२०१ । - मानतुंगाचार्य- | पार्श्वनाथ की | जैन मन्दिर, बुद्धिसागर, संपा०, संतानीय | धातुप्रतिमा झंडाल जैनधातुप्रतिमाका लेख लेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७७४ ६. १२४०/- विजयदेवसूरि- | अरिष्टनेमि की | महावीर जिनालय मुनि विशालविजय, संतानीय धातुप्रतिमा तंबोलीशेरी, पूर्वोक्त, का लेख राधनपुर लेखांक २२ ७. |१२४७ / वैशाख । विजयसिंहसूरि | चौबीसी जिन | सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा पर जैसलमेर भाग ३, उत्कीर्ण लेख लेखांक २१७६ ८. १२६२ | ज्येष्ठ । वर्धमानसूरि चतुर्विशतिपट्ट पर | पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, सुदि १० उत्कीर्ण लेख करेड़ा लेखांक १४२० शनिवार Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० वही, क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९. १२८७ | फाल्गुन | विजयसेनसूरि प्रशस्ति लेख लूणवसही, आबू मुनि जयन्तविजय, वदि ३ संपा०, अर्बुदरविवार प्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक २५० १०. १२८७ महेन्द्रसूरि संतानीय | प्रशस्ति लेख वही शान्तिसूरि लेखांक २५१ के शिष्य एवं जिनविजय, आनन्दसूरि संपा०, प्राचीनके शिष्य जैनलेखसंग्रह, हरिभद्रसूरि भाग २, के शिष्य लेखांक ६६ विजयसेनसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११. | १२८८ | फाल्गुन नेमिनाथ प्रासाद मुनि जिनविजय, सुदि १० गिरनार पूर्वोक्त, भाग २, बुधवार लेखांक ३८-४२ १२. १२८८ उदयप्रभसूरि लेखांक ४३ १३. |१२९३ / चैत्र विजयसेनसूरि | देवकुलिका का | लूणवसही, आबू मुनि जयन्तविजय, वदि ८ | लेख, लूणवसही पूर्वोक्त, शुक्रवार लेखांक ३२५ १४. १२९३ लेखांक २८४ १५. १२९३ | वैशाख नेमिनाथ की वही, सुदि १५ देवकुलिका लेखांक ३१३ शनिवार का लेख वही, Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ । स्तम्भलेख १६. १२९३ पार्श्वनाथ की वही, देवकुलिका लेखांक २७ का लेख १७. १२९३ | मार्ग (मार्ग अभिनन्दनस्वामी शीर्ष ?) की प्रतिमा लेखांक ३५३ सुदि १० का लेख १८. १२९५ | वैशाख पार्श्वनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि १२ पंचतीर्थी प्रतिमा | रतलाम संपा०, प्रतिष्ठाका लेख लेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५८ १९. १२९६ | वैशाख आदिनाथ नन्दीश्वर चैत्य, मुनि जयन्तविजय, सुदि ३ देवकुलिका, लूणवसही, आबू पूर्वोक्त, नन्दीश्वर चैत्य लेखांक ३५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ + क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २०. १२९८ | भाद्रपद | विजयसिंहसूरि श्रेयांसनाथ की | पोसीना पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि १ के श्रावक धातुप्रतिमा देरासर, ईडर पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक १४८३ २१. | १२९८ | फाल्गुन | विजयसेनसूरि | शिलालेख | जैन मन्दिर, U. P. Shah “A वदि १४ शत्रुजय (वर्तमान |Documentary रविवार में लेख का पता Epigraph From नहीं चलता) the Mount Shatrunjaya" Journal of Asiatic Society of Bombay, Vol. 30, Parti, Bombay ७१३ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २२. २३. तिथि १३०२ वैशाख सुदि १० १३०५ | ज्येष्ठ वदि ८ शनिवार आचार्य का नाम विजयसेनसूरि के शिष्य यशो (?) सूरि वीरसूरि के संतानीय विजयसिंहसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पोसीना पार्श्वनाथ देरासर, ईडर संदर्भ ग्रन्थ 1955, A. D. pp. 100-113. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १४७६ अजाहरा पार्श्वनाथ जिनालय के निकट |पाण्डेय, शिवनारायण भूमि से प्राप्त प्रतिमा “श्री अजाहरा पार्श्वनाथ जैन तीर्थथी मणी | आवेला अमुक शिल्पो", स्वाध्याय, ७१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख जिल्द ७, अंक १, पृ० ४५-४७ २४. १३०५ / ज्येष्ठ | विजयसेनसूरि धातु प्रतिमा पर | जैन देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि७ के शिष्य | उत्कीर्ण लेख सौदागर पोल, पूर्वोक्त, भाग १, उदयप्रभसूरि अहमदाबाद . लेखांक ७८८ २५. | १३१४ | वैशाख पजूनसूरि | आदिनाथ की मनमोहन पार्श्वनाथ वही, भाग २, वदि १३ के संतानीय | धातुप्रतिमा का | जिनालय, चौकसी लेखांक ८२३ पोल, खंभात २६. | १३३० वैशाख उदयप्रभसूरि प्रशस्तिलेख नेमिनाथ जिनालय, आचार्य गिरजाशंकर सुदि १५ गिरनार वल्लभजी,संपा०, गुजरातना ऐतिहासिक लेखो, भाग ३, पृ० २१० श्रावक | लेख Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3801 क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २७. |१३३८ | ज्येष्ठ । उदयप्रभसूरि धातु की चौबीसी | मनमोहन पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि १२ के शिष्य | जिनप्रतिमा देरासर, पटोलिया पूर्वोक्त, भाग २, बुधवार | महेन्द्रसूरि का लेख | पोल, बड़ोदरालेखांक ९४ ।। २८. |१३४९ / ज्येष्ठ | गुणसेनसूरि | शारदा की पाषाण मनमोहन पार्श्वनाथ वही, भाग २, वदि६ | संतानीय आचार्य | मूर्ति का लेख |जिनालय, लेखांक ७६० बुधवार | श्री जिन......? जीरारवाडो, खंभात २९. |१३६१ चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, जैसलमेर भाग ३, लेखांक २२४३ २९A |१३६६ | वैशाख भुवनानन्दसूरि धातु की चौबीसी वासुपूज्य चैत्य, दौलतसिंह लोढ़ा, वदि ८ के पट्टधर जिनप्रतिमा का थराद संपा०, श्रीप्रतिमापद्मचन्द्रसूरि लेखसंग्रह, लेखांक ५७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास | लेख Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् ३०. ३१. ३२. ३३. तिथि १३८२ | वैशाख वदि ८ गुरुवार १३८५ ज्येष्ठ वदि ४ बुधवार १३८७ | माघ सुदि ५ सोमवार १३९४ | तिथि विहीन आचार्य का नाम पद्मचन्द्रसूरि श्रीवेगाणंदसूरि हेमचन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान अनुपूर्ति लेख, आबू भण्डारस्थ धातु प्रतिमा, चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, पटोलिया पोल, बडोदरा कुआ वाला देरासर ईडर संदर्भ ग्रन्थ मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ५५२ अगरचन्द नाहटा, संपा०, बीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक ३०८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६७ वही, भाग १, लेखांक १४२० नागेन्द्रगच्छ ७१७ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३४. ३५. ३६. ३७. तिथि १४०२ | आषाढ़ सुदि २ सोमवार १४०५ वैशाख सुदि ५ १४०५ ज्येष्ठ सुदि ३ १४०८ वैशाख सुदि ५ गुरुवार आचार्य का नाम विनयप्रभसूरि रतनागरसूरि श्रीर..... लसूरि नागेन्द्रसूरि के शिष्य गुणाकरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैनमन्दिर अहमदाबाद शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर बड़ा मन्दिर, कनासा पाडो, पाटण भण्डारस्थ धातुप्रतिमा, चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ विजयधर्मसूरि, संपा०, प्राचीन लेखसंग्रह, लेखांक ६८ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०४८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २४६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४१६ ७१८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि १४१० | वैशाख सुदि. ३८. ३९. ४०. ४१. शुक्रवार १४१४ वैशाख सुदि ११ शुक्रवार १४१५ तिथि विहीन १४१४ फाल्गुन वदि ३ बुधवार आचार्य का नाम गुणाकरसूरि कमलप्रभसूरि पद्मचन्द्रसूरि के पट्टधर रत्नाकरसूरि नागेन्द्रसूरि के शिष्य गुणाकरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख पंचतीर्थी जिन प्रतिमा का लेख महावीर की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर अनुपूर्ति लेख, आबू चौसठियाजी का मन्दिर, नागौर वीर जिनालय, रीच रोड, अहमदाबाद संदर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२६६ मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ५७३ विनयसागर, संपा०, प्रतिष्ठा लेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १५१ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९४२ नागेन्द्रगच्छ ७१९ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ४२. ४३. ४४. ४५. तिथि १४२१ वैशाख वदि ५ शनिवार १४२१ वैशाख सुदि ५ शनिवार १४२१ तिथि विहीन १४२२ वैशाख सुदि ११ बुधवार आचार्य का नाम गुणाकरसूरि " रत्नप्रभसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख " वासुपूज्य की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख 11 पार्श्वनाथ की धातु वासुपूज्य चैत्य, प्रतिमा का लेख थराद पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान बालावसही, शत्रुंजय शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग १, लेखांक ९७५ लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक ६ मुनि कान्तिसागर, शत्रुंजयवैभव, लेखांक ४१ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०५३ ७२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४६. | १४३३ / वैशाख | गुणाकरसूरि आदिनाथ की | गौड़ी पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि ९ धातुप्रतिमा का जिनालय, देरापोल, पूर्वोक्त, भाग २, लेख बाबाजीपुरा, लेखांक २१२ बड़ोदरा ४७. | १४३६ / वैशाख पद्मप्रभ की धातु | सींमधरस्वामी का वही, भाग १, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | देरासर, अहमदाबाद लेखांक ११८६ रविवार ४८. | १४३७ | वैशाख रत्नप्रभसूरि के । पार्श्वनाथ की |सुपार्श्वनाथ का | नाहर, पूर्वोक्त, वदि ११ | उपदेश में प्रतिमा | पंचतीर्थी जिन | पंचायती बड़ा भाग २, सोमवार | की प्रतिष्ठा । | प्रतिमा का लेख | मन्दिर, जयपुर लेखांक ११३६ ४९. | १४३७ माघ पजूनसूरि बड़ा जैन मन्दिर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ कनासा पाड़ो, पूर्वोक्त, भाग १, पाटण लेखांक ३३८ - Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ - - - - - क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५०. १४४१ | फाल्गुन | गुणाकरसूरि चिन्तामणि पार्श्वनाथ | विनयसागर, सुदि १० जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार किशनगढ़ लेखांक १६७ ५१. १४४६ । वैशाख रत्नप्रभसूरि अजितनाथ की प्रेमचन्द मोदी की नाहर, पूर्वोक्त, वदि ३ | पंचतीर्थी प्रतिमा | टोंक, शत्रुजय । भाग १, सोमवार का लेख लेखांक ६८९ ५२. १४४७ फाल्गुन रत्नाकरसूरि पद्मप्रभ की धातु | बडा जैन मंदिर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ के पट्टधर की पंचतीर्थी कनासानो पाडा, पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार रत्नप्रभसूरि प्रतिमा का लेख | पाटण लेखांक ३५९ ५३. १४४९ / वैशाख उदयदेवसूरि संभवनाथ की भण्डारस्थ नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ धातुप्रतिमा का धातुप्रतिमा, लेखांक ११२४ एवं सोमवार लेख चिन्तामणिजी का विजयधर्मसूरि, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख मन्दिर, बीकानेर पूर्वोक्त, लेखांक ९२ ५४. | १४५० | मार्गसिर | रत्नसिंहसूरि शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, वदि ६ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | जिनालय, उदयपुर भाग २, रविवार देवगुप्तसूरि लेखांक १०५८ ५५. | १४५० | फाल्गुन | रत्नशेष(सिंह)सूरि विजयधर्मसूरि, वदि २ | के पट्टधर पूर्वोक्त, देवप्रभसूरि लेखांक ९३ ५६. | १४५२ | वैशाख ___ उदयदेवसूरि सुमतिनाथ की घरदेरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ६ धातुप्रतिमा बडोदरा पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार का लेख लेखांक २४५ Col Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः | संवत् ५७. ५८. ५९. ६०. तिथि १४५३ | वैशाख सुदि ५ सोमवार १४५६ | ज्येष्ठ सुदि ७ सोमवार १४५७ | वैशाख सुदि १३ शनिवार १४६१ | ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार आचार्य का नाम " रत्नसूरि रत्नप्रभसूरि शान्तिसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा का लेख 11 प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, जिनालय, डोसी पोल, राधनपुर पूर्वोक्त, लेखांक ८५ शीतलनाथ बुद्धिसागरसूरि, जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, कुम्भारवाडो, खंभात लेखांक ६५२ बालावसही, शत्रुंजय मुनि कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक ५२ नमिनाथ की धातु | प्राचीन जैन मंदिर, विजयधर्मसूरि, की प्रतिमा का लिंबडी लेख पूर्वोक्त, लेखांक ९९ ७२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ थराद - - विहीन क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६१. १४६५ / वैशाख रत्नसिंहसूरि संभवनाथ की आदिनाथ चैत्य, लोढा, पूर्वोक्त, सुदि ३ धातुप्रतिमा का लेखांक १८३ गुरुवार लेख ६२. | १४६६ / तिथि। सिंहसूरि अभिनन्दनस्वामी | बालावसही, | मुनि कान्तिसागर,. की प्रतिमा का शत्रुजय पूर्वोक्त, लेख लेखांक ५७ ६३. | १४७२ | ज्येष्ठ रत्नसिंहसूरि शान्तिनाथ की मोटीपावड चैत्य, लोढा, पूर्वोक्त, वदि ११ धातु की चौबीसी | थराद लेखांक ३६९ सोमवार प्रतिमा का लेख ६४. |१४७४ | माघ । सिंहदत्तसूरि मुनिसुव्रत की शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ७ प्रतिमा का लेख | जिनालय, उदयपुर | भाग २, शुक्रवार लेखांक १०६५ - - - ७२५ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६५. १४८३ / वैशाख | गुणसागरसूरि संभवनाथ की सीमंधरस्वामी का मुनि बुद्धिसागर, सुदि ३ धातुप्रतिमा का मन्दिर, खारवाडो, पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार खंभात लेखांक १०५६ ६६. १४८३ तिथि | रत्नप्रभसूरि शान्तिनाथ की घरदेरासर, दिल्ली नाहर, पूर्वोक्त, विहीन | के पट्टधर प्रतिमा का लेख भाग १, सह(सिंह)दत्तसूरि लेखांक ५२१ ६७. १४८४ | ज्येष्ठ | पद्माणंदसूरि संभवनाथ की शीतलनाथ' वही, भाग २, सुदि ५ प्रतिमा का लेख जिनालय, उदयपुर लेखांक १०७३ बुधवार ६८. १४८५ / वैशाख गुणसागरसूरि वासुपुज्य की जैनमन्दिर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ६ धातुप्रतिमा का सादरा पूर्वोक्त, भाग १, लेख लेखांक ६१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास रविवार Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६९. १४८६ / वैशाख । पद्माणंदसूरि सुमतिनाथ की | नवखंडा पार्श्वनाथ | विजयधर्मसूरि, सुदि १० धातुप्रतिमा का | देरासर, घोघा पूर्वोक्त, बुधवार लेख लेखांक १३७ ७०. | १४८६ | ज्येष्ठ - उदयदेवसूरि धर्मनाथ की धातु | बड़ा जैन मन्दिर, वही, सुदि १२ | के पट्टधर की प्रतिमा का कातरग्राम लेखाक १४५ शनिवार | गुणसागरसूरि लेख ७१. | १४९२ | वैशाख गुणसागरसूरि के | सुविधिनाथ की जैन मन्दिर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ पट्टधर धातुप्रतिमा का डभोई पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार ___ गुणसमुद्रसूरि । लेख लेखांक ५ ७२. १४९७ | ज्येष्ठ पद्माणंदसूरि चौमुख शान्तिनाथ वही, भाग १, सुदि २ देरासर, लेखांक ८९८ सोमवार अहमदाबाद ७२७ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ 7260 क्रमाङ्क संवत् । तिथि । आचार्य का नाम । प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ७३. १४९७ |" संभवनाथ की धातुप्रतिमा का चिन्तामणि पार्श्वनाथ वही, भाग २, | जिनालय, खंभात लेखांक ५५८ लेख २ माघ ७४. |१४९९ । वदि ५ रविवार ७५. १४९९ माघ सुदि १० शुक्रवार ७६. १४९९ तिथि विहीन सुमतिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, धातुप्रतिमा का माणेकचौक, खंभात लेखांक ४३४ लेख संभवनाथ की महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, धातुप्रतिमा का बीकानेर लेखांक १३२७ लेख सुविधिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख ग्वालियर भाग २, लेखांक १३९८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गुणसमुद्रसूरि Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ थराद क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ७७. | १५०१ | पौष । पद्माणंदसूरि सुमतिनाथ की आदिनाथ चैत्य, लोढा, पूर्वोक्त, वदि ६ | के पट्टधर धातुप्रतिमा का लेखांक ४६ शुक्रवार विनयप्रभसूरि लेख ७८. | १५०३ | ज्येष्ठ गुणसागरसूरि मुनिसुव्रत की विमलनाथ विनयसागर, सुदि ७ के शिष्य | पंचर्तीथी प्रतिमा | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार | गुणसमुद्रसूरि | का लेख सवाईमाधोपुरलेखांक ३६६ ७९. | १५०५ | वैशाख सुमतिनाथ की भण्डारस्थ | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ धातुप्रतिमा का जिनप्रतिमा, लेखांक ८८९ सोमवार लेख चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर ८०. | १५०५ | आषाढ़ शान्तिनाथ की | महावीर जिनालय, | वही, सुदि ६ धातुप्रतिमा का बीकानेर लेखांक १२५५ रविवार लेख Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख | ८१. १५०५ | पौष शीतलनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, सुदि ७ धातु की पंचतीर्थी | जिनालय, गौड़ीजी पूर्वोक्त, गुरुवार प्रतिमा का लेख की खड़की, राधनपुर लेखांक १४६ ८२. १५०५ | पौष नमिनाथ की धातु | भण्डारस्थ नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ७ की प्रतिमा का जिनप्रतिमा, लेखांक ८४१ गुरुवार लेख चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर ८३. १५०५ | माघ । पद्माणंदसूरि धर्मनाथ की | जगवल्लभ पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० के पट्टधर धातुप्रतिमा का देरासर, नीशापोल, पूर्वोक्त, भाग १, रविवार | विनयप्रभसूरि लेख अहमदाबाद लेखांक ११४४ ८४. १५०७ | माघ । कुंथुनाथ की आदिनाथ चैत्य, लोढा, पूर्वोक्त, सुदि १० धातुप्रतिमा का थराद लेखांक १४६ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लेख Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८५. | १५०७ | माघ । गुणसमुद्रसूरि विमलनाथ की | नेमिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, सुदि ११ धातु की प्रतिमा | घोघा पूर्वोक्त, का लेख लेखांक २२७ ८६. | १५१० | फाल्गुन | जैन मन्दिर, सूरत वही, वदि १० लेखांक २६२ शुक्रवार ८७. |१५१० | फाल्गुन कुंथुनाथ की लुआणा चैत्य, लोढा, पूर्वोक्त, सुदि ३ चौबीसीप्रतिमा का थराद लेखांक ३६५ गुरुवार८८. १५११ / कार्तिक | विज(न)यप्रभसूरि | कुथुनाथ की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ धातुप्रतिमा का | झवेरीवाड़, पूर्वोक्त, भाग १, रविवार अहमदाबाद लेखांक ८२२ लेख लेख Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८९. | १५१२ | ज्येष्ठ | विनयप्रभसूरि संभवनाथ की | धर्मनाथ, जिनालय, वही, भाग १, सुदि ५ धातुप्रतिमा का डभोई लेखांक ५५ रविवार लेख ९०. १५१३ | पौष पद्माणंदसूरि सुविधिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ५ के पट्टधर | धातुप्रतिमा मांडल पूर्वोक्त, रविवार - विनयप्रभसूरि का लेख लेखांक २८३ ९१. १५१३ सुमतिनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, धातुप्रतिमा का | देवसानो पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, लेख अहमदाबाद लेखांक ११०३ ९२. १५१३ श्रेयांसनाथ की वही, भाग १, धातुप्रतिमा का लेखांक ४११ " जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लेख Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९३. | १५१३ | माघ | गुणसमुद्रसूरि शांतिनाथ की संभवनाथ देरासर, वही, भाग १, सुदि ५ धातुप्रतिमा झवेरीवाड़, लेखांक ८३३ रविवार का लेख अहमदाबाद ९४. | १५१४ | वैशाख गुणसागरसूरि पद्मप्रभ की धातु | शांतिनाथ जिनालय, | विजयधर्मसूरि, सुदि ५ के पट्टधर | की चौबीसी घोघा पूर्वोक्त, गुरुवार गुणसमुद्रसूरि प्रतिमा का लेख लेखांक २४६ ९५. । १५१५ । माघ विनयप्रभसूरि धर्मनाथ की जैन मन्दिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १ धातुप्रतिमा | चेलपुरी, दिल्ली | भाग १, शुक्रवार का लेख लेखांक ४८१ ९६. | १५१६ | फाल्गुन सुविधिनाथ की | पार्श्वनाथ जिनालय, | बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ धातुप्रतिमा माणेक चौक, पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार का लेख खंभात लेखांक ४६० Cb Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९७. ९८. ९९. १००. तिथि १५१७ फाल्गुन सुदि ६ गुरुवार १५१८ | ज्येष्ठ सुदि २ शनिवार १५१९ वैशाख वदि ११ शुक्रवार १५१९ | ज्येष्ठ वदि २ सोमवार आचार्य का नाम गुणसमुद्रसूरि के पट्टधर गुणदेवसूरि गुणसमुद्रसूरि के पट्टधर श्री ... ... (?) गुणसमुद्रसूरि गुणसमुद्रसूरि के पट्टधर गुणदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख संभवनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख अभिनन्दनस्वामी की धातु की चौबीसी संभवनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन मंदिर, चीराखाना, दिल्ली जैन देरासर, पामोल संदर्भ ग्रन्थ पार्श्वनाथ जिनालय, | माणेकचौक, खंभात नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५१० बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६४७ आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, जामनगर पूर्वोक्त, लेखांक ३३४ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ९५० ७३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ . - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०१. | १५१९ | कार्तिक । गुणसमुद्रसूरि । अरनाथ की बड़ा जैन मन्दिर, विजयधर्मसूरि, वदि १ धातुप्रतिमा कातरग्राम | पूर्वोक्त, सोमवार का लेख लेखांक ३२८ १०२. | १५२० | वैशाख __गुणसमुद्रसूरि शांतिनाथ की महावीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ एवं सर्वसूरि पंचतीर्थी प्रतिमा | डीसा भाग २, शुक्रवार का लेख लेखांक २१०३ १०३. | १५२० | वैशाख गुणसमुद्रसूरि शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | शांतिनाथ पोल, पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार गुणदेवसूरि अहमदाबाद लेखांक १२७२ १०४. १५२० माघ । भवानन्दसूरि के | महावीर स्वामी | आदिनाथ जिनालय, वियधर्मसूरि, वदि ११ | शिष्य पद्मचन्द्रसूरि | की धातुप्रतिमा पूर्वोक्त, बुधवार का लेख लेखांक ३४३ जामनगर - Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जामनगर क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०५. | १५२२ माघ । विनयप्रभसूरि । शांतिनाथ की जैन मन्दिर, डभोई बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ | धातुप्रतिमा प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख लेखांक १८ १०६. | १५२५ | चैत्र गुणदेवसूरि पार्श्वनाथ की आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ३ धातुप्रतिमा पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख लेखांक ३४५ १०७. | १५२५ / ज्येष्ठ । कमलचन्द्रसूरि | | आदिनाथ की शांतिनाथ देरासर, वही, वदि १ के पट्टधर | धातुप्रतिमा लेखांक ३९९ शुक्रवार ___ हेमरत्नसूरि का लेख १०८. १५२५ | आषाढ़ गुणसमुद्रसूरि जीवितस्वामी की शांतिनाथ देरासर, वही, सुदि ३ । के पट्टधर धातुप्रतिमा का राधनपुर लेखांक ४०० सोमवार गुणदेवसूरि लेख जामनगर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ नागेन्द्रगच्छ | माघ संभवनाथ देरासर, | बुद्धिसागरसूरि, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८१६ बड़ा जैन मन्दिर, वही, भाग १, लेखांक ३९४ माणसा क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १०९. | १५२५ श्रेयांसनाथ की सुदि ५ धातुप्रतिमा का गुरुवार लेख ११०. | १५२५ | माघ । धर्मनाथ की सुदि ५ धातुप्रतिमा का गुरुवार लेख १११. १५२७ वैशाख श्रेयांसनाथ की वदि ५ धातुप्रतिमा गुरुवार का लेख ११२. १५२७ पौष आदिनाथ की वदि ५ धातुप्रतिमा का शुक्रवार नवखंडा पार्श्वनाथ वही, भाग २, जिनालय, लेखांक ८७० भोयरापाडो, खंभात बावन जिनालय, वही, भाग १, पेथापुर लेखांक ७०३ लेख Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११३. १५२७ ११४. १५२७ ११५. तिथि ११६. १५२७ " माघ वदि ५ गुरुवार १५२७ माघ वदि ५ शुक्रवार 11 आचार्य का नाम कमलचन्द्रसूरि के पट्टधर हेमरत्नसूरि कमलचन्द्रसूरि विनयप्रभसूरि एवं सोमरत्नसूरि पद्माणंदसूरि के संतानीय प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नमिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख वासुपूज्य की धातुप्रतिमा का लेख संभवनाथ की धातुप्रतिमा का लेख कुथुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा प्रतिष्ठा स्थान जैन मन्दिर, लिंबडीपाडा, पाटण भण्डारस्थ धातुप्रतिमा, चिन्तामणिजी का संदर्भ ग्रन्थ प्राचीन जैन मन्दिर, विजयधर्मसूरि, लिंबडी मंदिर, बीकानेर माणिकसागर जी का मन्दिर, कोटा वही. भाग १, लेखांक २६० पूर्वोक्त, लेखांक ४०७ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०५३ | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, ७३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि ११७. ११८. ११९. १५२९ | ज्येष्ठ सुदि ५ मगलवार १५२९ | माघ १५३१ सुदि ५ रविवार वैशाख सुदि ३ शनिवार आचार्य का नाम विजयप्रभसूरि के पट्टधर हेमरत्नसूरि कमलप्रभसूर के पट्टधर हेमरत्नसूरि सोमरत्नसूरि कमलचन्द्रसूरि के पट्टधर हेमरत्नसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख का लेख चन्द्रप्रभ की धातुप्रतिमा का लेख नेमिनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पद्मप्रभ जिनालय, साणंद नौलखा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली सीमंधर स्वामी का मन्दिर, खारवाडो, खंभात संदर्भ ग्रन्थ लेखांक ६९६ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६२६ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८१४ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०७१ नागेन्द्रगच्छ ७३९ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १२०. १५३१ १२१. १५३१ १२२. १२३. तिथि 11 11 १५३१ | मिति विहीन १५३३ | चैत्र वदि २ गुरुवार आचार्य का नाम "1 पद्मचन्द्रसूरि विनयप्रभसूरि के पट्टधर सोमरत्नसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य की धातुप्रतिमा का लेख शीतलनाथ की धातुप्रतिमा का लेख धातु की जिन प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आदिनाथ जिनालय वही, भाग २, माणेकचौक, लेखांक १००२ खंभात शांतिनाथ जिनालय, चौकसीचौक, वही, भाग २, लेखांक ८३१ खंभात सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर कुंआ वाला देरासर, वही, भाग १, ईडर लेखांक १४४३ वही, भाग २, लेखांक ५११ ७४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२४. | १५३३ वैशाख गुणदेवसूरि | सुविधिनाथ की बड़ा जैन मन्दिर, लोढा, पूर्वोक्त, सुदि ६ धातुप्रतिमा का थराद लेखांक २१५ . शुक्रवार लेख १२५. | १५३३ वासुदेव चैत्य, | वही, थराद लेखांक ३९ १२६. १५३३ सुमतिनाथ की | आदिनाथ जिनालय नाहर, पूर्वोक्त, पंचतीर्थी प्रतिमा | कसैरीगली, भाग २, का लेख उदयपुर लेखांक १८९४ १२७. १५३६ आषाढ़ हेमरत्नसूरि श्रेयांसनाथ की मोतीशाह की ट्रॅक, मुनि कांतिसागर, सुदि २ प्रतिमा का लेख | शत्रुजय पूर्वोक्त, रविवार लेखांक २२० 606) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२८. १५४४ | वैशाख सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ५ धातुप्रतिमा प्रतिमा जामनगर पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख लेखांक ४९१ १२९. |१५४६ / वैशाख सुणादेवसूरि संभवनाथ की वीर जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ धातुप्रतिमा | अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक ८७३ १३०. १५५५ | माघ हेमहंससूरि | धर्मनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ९ पंचतीर्थी का लेख जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८८३ १३१. १५५८ | कार्तिक कमलचन्द्रसूरि शीतलनाथ की संभवनाथ जिनालय नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ के पट्टधर धातुप्रतिमा | फूलवाली गली, भाग २, रविवार हेमरत्नसूरि का लेख लखनऊ लेखांक १६०५ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १३२. १३३. १३४. १३५. १५६० वैशाख सुदि ३ बुधवार १५६० तिथि १५६६ 11 १५६३ | वैशाख वदि ११ शुक्रवार फाल्गुन सुदि ३ सोमवार आचार्य का नाम सोमरत्नसूरि के पट्टधर हेमसिंहसूर " श्रीरत्नसूरि हेमहंससूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की धातुप्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की धातुप्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वीरचैत्य, थराद वीर जिनालय, रीची रोड, अहमदाबाद शान्तिनाथ जिनालय, नदियाड चिन्तामणि जिनालय, किशनगढ़ संदर्भ ग्रन्थ लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक १२२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९८८ वही, भाग २, लेखांक ३७८ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९३१ नागेन्द्रगच्छ ७४३ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि १५६८ | वैशाख वदि ३ १३६. १३७. १३८. गुरुवार १५७० | वैशाख सुदि १३ मंगलवार १५७० माघ सुदि १३ बुधवार आचार्य का नाम हेमसिंहसूरि "" 17 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमितनाथ की धातुप्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की धातुप्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, अहमदाबाद शांतिनाथ जिनालय, वीसनगर संदर्भ ग्रन्थ गुलाबचंद ढढ्ढा का देरासर, जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९१८ वही, भाग १, लेखांक ५१५ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १२१३ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९४६ ७४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ - - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३९. | १५७१ / वैशाख | गुणरत्नसूरि | चन्द्रप्रभ की पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि १३ धातुप्रतिमा लोद्रवा, जैसलमेर भाग ३, शुक्रवार का लेख लेखांक २५५१ १४०. | १५७१ वैशाख महीरत्नसूरि आदिनाथ की । | अरनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ धातुप्रतिमा जीरारवाडो, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार का लेख लेखांक ७७० १४१. १५७२ | वैशाख गुणरत्नसूरि संभवनाथ की | बालावसही, मुनि कांतिसागर, वदि.. के पट्टधर चौबीसी प्रतिमा शत्रुजय पूर्वोक्त, सोमवार गुणवर्धनसूरि का लेख लेखांक २६९ १४२. | १५७२ वैशाख वासुपूज्य की बड़ा जैन मन्दिर, विनयसागर, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | नागौर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख लेखांक ९५१ ७४५ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् १४३. १४४. १४५. तिथि १४६. १५७२ वैशाख सुदि १३ सोमवार १५७२ वैशाख सुदि ५ सोमवार आचार्य का नाम १५७३ | माघ गुणरत्नसूरि के पट्टधर गुणवर्धनसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख हेमसिंहसूरि संभवनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख अजितनाथ वदि २ जिनालय, कोचरों रविवार का चौक, बीकानेर १५८३ वैशाख मुनिसुव्रत की वीर जिनालय, सुदि १० धातु की प्रतिमा का लेख रीज रोड, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९९५ शुक्रवार अहमदाबाद नोट :- लेखांक १४१ और १४३ एक ही लेख प्रतीत होते हैं । इसी प्रकार लेखांक १४२ और १४४ भी समान मालूम होते हैं । प्रतिष्ठा स्थान गांव का बड़ा जैन मन्दिर, पालिताना कुंथुनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख संदर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६७७ आदिनाथ जिनालय वही, भाग २, नागौर लेखांक १३०१ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १५६० ७४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत १४७. १४८. तिथि १६१७ | ज्येष्ठ सुदि ५ १७१५ | तिथि विहीन आचार्य का नाम ज्ञानसूरि पद्मचन्द्रसूरि के पट्टधर रत्नाकरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख विमलनाथ की धातुप्रतिमा का लेख पंचतीर्थी जिन प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान वीर चैत्य, थराद आदिनाथ जिनालय, नागौर संदर्भ ग्रन्थ लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक २७ नाहटा, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३१२ नागेन्द्रगच्छ ७४७ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है इस गच्छ के सम्बद्ध पूर्वमध्यकाल एवं मध्यकाल के पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य मिलते हैं । इनमें इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, परन्तु उनमें से कुछ के पूर्वापर सम्बन्ध ही स्थापित हो सके हैं, जो निम्नानुसार हैं : ७४८ भुवनान्दसूरि के पट्टधर पद्मचन्द्रसूरि वि० सं० १३६९ वैशाख वदि ८ पद्मचन्द्रसूरि के पट्टधर रत्नाकरसूरि वि० सं० १४१५ रत्नाकरसूरि के पट्टधर रत्नप्रभसूरि वि० सं० १४२२ वैशाख सुदि ११ ........... बुधवार वि० सं० १४४६ वैशाख वदि ३ सोमवार वि० सं० १४४७ फाल्गुन सुदि ८ सोमवार रत्नप्रभसूरि के पट्टधर सिंहदत्तसूरि वि० सं० १४६६ . वि० सं० १४७४ माघ सुदि ७ शुक्रवार वि० सं० १४८३ .. उदयदेवसूरि वि० सं० १४४९ वैशाख सुदि ३ सोमवार श्री० प्र० ले० सं०, लेखांक ५८ प्र० ले० सं०, लेखांक १५१ जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक १०५३ वही, भाग १, लेखांक ६८९ जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३५९ श० वै०, लेखांक ५७ जै० ले० सं०. भाग २, १०६५ वही, भाग, लेखांक ५२१ लेखांक वही, भाग २, लेखांक ११२४ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ वि० सं० १४५३ वैशाख सुदि ५ सोमवार उदयदेवसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि वि० सं० १४८३ वैशाख सुदि ३ शनिवार वि० सं० १४८५ वैशाख सुदि ६ रविवार वि० सं० १४८९ ज्येष्ठ सुदि १२ शनिवार गुरुवार वि० सं० १४९९ माघ सुदि ५ गुणसागरसूरि के पट्टधर गुणसमुद्रसूरि वि० सं० १४९२ वैशाख सुदि ३ गुरुवार वि० सं० १४९९ माघ सुदि १० वि० सं० १४९९ मितिविहीन वि० सं० १५०३ ज्येष्ठ सुदि ७ सोमवार वि० सं० १५०५ वैशाख सुदि ३ सोमवार रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ८५ वि० सं० १५०५ आषाढ सुदि ९ रविवार वि० सं० १५०५ पौष वदि ७ गुरुवार जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १०५६ वही, भाग १, लेखांक ६१० प्रा० लं० सं०, लेखांक १४५ जै० ० धा० प्र० ले० सं०. भाग १, लेखांक ५ प्रा० ले० सं०, लेखांक १७५ बी० जै० ले० सं०, लेखांक १३२७ जै० लै० सं०. भाग २, लेखांक १३९८ प्र० ले० सं०, लेखांक ३६६ बी० जै० ले० सं०, लेखांक ८८९ वही, लेखांक १२५५ रा० प्र० ले० सं०, लेखांक १४६ ७४९ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १५०५ माघ सुदि ११ प्रा० ले० सं०, लेखांक २२१ वि० सं० १५१० फाल्गुन वदि १० प्रा० ले० सं०, शुक्रवार लेखांक २६२ वि० सं० १५१० फाल्गुन वदि ३ श्री० प्र० ले० सं०, गुरुवार लेखांक ३६५ वि० सं० १५१३ माघ सुदि ५ जै० धा० प्र० ले० सं०, रविवार भाग १, लेखांक ८३३ वि० सं० १५१४ वैशाख सुदि ५ प्रा० ले० सं०, गुरुवार लेखांक २९६ वि० सं० १५१९ वैशाख वदि ११ प्रा० ले० सं०, शुक्रवार लेखांक ३३४ वि० सं० १५१९ कार्तिक वदि १ प्रा० ले० सं०, लेखांक ३२८ गुणसमुद्रसूरि के प्रथम पट्टधर गुणदत्तसूरि वि० सं० १५२३ वैशाख सुदि ३ जै० धा० प्र० ले० सं०, गुरुवार भाग १, लेखांक १०१८ गुणसमुद्रसूरि के द्वितीय पट्टधर गुणदेवसूरि वि० सं० १५१७ फाल्गुन सुदि ९ जै० ले० सं०, भाग १, . गुरुवार लेखांक ५१० वि० सं० १५१९ ज्येष्ठ वदि २ जै० धा० प्र० ले० स०, सोमवार - भाग २, लेखांक ९५० वि० सं० १५२० वैशाख सुदि ५। जै० धा० प्र० ले० सं०, गुरुवार भाग १, लेखांक १२७२ वि० सं० १५२५ चैत्र वदि ३ प्रा० ले० सं०, गुरुवार लेखांक ३९५ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ वि० सं० १५२५ आषाढ़ सुदि ३ प्रा० ले० सं०, सोमवार लेखांक ४०० वि० सं०१५२५ माघ सुदि ५ जै० धा० प्र० ले० सं०, गुरुवार भाग १, लेखांक ८१६ वि० सं० १५२७ वैशाख सुदि ५ । वही, भाग २, गुरुवार लेखांक ८७० वि० सं० १५२७ पौष वदि ५ वही, भाग १, शुक्रवार लेखांक ७०३ वि० सं० १५३३ वैशाख सुदि ६ श्री० प्र० ले० सं०, शुक्रवार लेखांक २१५ वि० सं० १५३५ वैशाख वदि ७ जै० ले० सं०, सोमवार भाग ३, लेखांक २३५५ परमाणंदसूरि वि० सं० १४८४ ज्येष्ठ सुदि ४ जै० ले० सं०, भाग २, बुधवार लेखांक १०७३ वि० सं० १४८६ वैशाख सुदि १० प्रा० ले० सं०, बुधवार - लेखांक १३७ वि० सं० १४९७ ज्येष्ठ सुदि २ जै० धा० प्र० ले० सं०, सोमवार भाग १, लेखांक ८९८ वि० सं० १४९९ माघ वदि ५ वही, भाग २, रविवार लेखांक ९३८ परमाणंदसूरि के शिष्य विनयप्रभसूरि वि० सं० १५०१ पौष वदि ६. श्री० प्र० ले० सं०, शुक्रवार लेखांक ९६ वि० सं० १५०५ माघ सुदि १० जै० धा० प्र० ले० सं०, रविवार भाग १, लेखांक ११९९ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवार ७५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १५०७ माघ सुदि १० श्री० प्र० ले० सं०, सोमवार लेखांक १९७ वि० सं० १५११ कार्तिक वदि ५ जै० धा० प्र० ले० सं०, रविवार भाग १, लेखांक ८२२ वि० सं० १५१२ ज्येष्ठ सुदि ५ वही, भाग १, रविवार लेखांक ५५ वि० सं० १५१३ वैशाख वदि २ वही, भाग १, शुक्रवार लेखांक १२२ वि० सं० १५१५ माघ सुदि १ जै० ले० सं०, शुक्रवार भाग १, लेखांक ४८१ वि० सं० १५१७ फाल्गुन सुदि ३ जै० धा० प्र० ले० सं०, शुक्रवार भाग २, लेखांक ९७० विनयप्रभसूरि के शिष्य सोमरत्नसूरि वि० सं० १५२७ माघ वदि ५ बी० जै० ले० सं०, शुक्रवार लेखांक १०५३ वि० सं० १५२९ माघ सुदि ५ जै० ले० सं०, रविवार भाग १, लेखांक ८१९ विनयप्रभसूरि के पट्टधर क्षेमरलसूरि वि० सं० १५२७ माघ वदि ५ प्र० ले० सं०, ___ शुक्रवार लेखांक ६९६ सोमरत्नसूरि के शिष्य हेमसिंहसूरि वि० सं० १५६० वैशाख सुदि ३ श्री० प्र० ले० सं०, बुधवार लेखांक १२२ वि० सं० १५७० माघ सुदि १३ जै० धा० प्र० ले० सं०, मंगलवार भाग १, लेखांक ५१५ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ वि० सं० १५७३ माघ वदि ३ रविवार वि० सं० १५८३ वैशाख सुदि १० तालिका : २ शुक्रवार भाग १, उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर नागेन्द्रगच्छीय मुनिजनों के गुरु- परम्परा की तीन अगल-अलग तालिकायें संगठित की जा सकती हैं, जो निम्नानुसार हैं : तालिका : १ ? ७५३ बी० जै० ले० सं०, लेखांक १५६० लेखांक ९९५ भाग १, जै० धा० द० ले० सं०, लेखांक ४४५ ? भुवनानन्दसूरि पद्मचन्द्रसूरि (वि० सं० १३६९) रत्नाकरसूरि (वि० सं० १४१५ ) ' रत्नप्रभसूरि (वि० सं० १४२२ - १४४७) 1 सिंहदत्तसूरि (वि० सं० १४६६ - १४८३) उदयदेवसूरि (वि० सं० १४४९ - १४५३ ) ' गुणसागरसूरि (वि० सं० १४८३ - १४८५ - १४८९) Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गुणसमुद्रसूरि (वि० सं० १४९२-१५१९) गुणदत्तसूरि (वि० सं० १५२३) तालिका :३ गुणदेवसूरि (वि० सं० १५१७-१५३५) पद्माणंदसूरि (वि० सं० १४८४-१४९९) विनयप्रभसूरि (वि० सं० १५०१-१५१७) क्षेमरत्नसूरि (वि० सं० १५२७) सोमरत्नसूरि (वि० सं० १५२७-१५२९) ___ हेमसिंहसूरि ___ (वि० सं० १५६०-१५८३) जैसा कि इसी निबन्ध में साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत हम देख चुके हैं इस गच्छ के १६ वीं शताब्दी के तीन ग्रन्थकारों - गुणरत्नसूरि और ज्ञानसागरसूरि ने अपने गुरु तथा सोमरत्नसूरि ने प्रगुरु के रूप में गुणदेवसूरि का उल्लेख किया है। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित उपरोक्त तालिका - २ में भी गुणदेवसूरि का नाम मिलता है जिन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मान लेने में कोई बाधा नहीं दिखायी देती। इस प्रकार उक्त दोनों गुर्वावलियों के परस्पर समायोजन से १६वीं शती में इस गच्छ के मुनिजनों के एक शाखा की गुरु-शिष्य परम्परा का जो स्वरुप उभरता है, वह इस प्रकार है - Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ तालिका : ४ उदयदेवसूरि (वि० सं० १४४९-१४५३) । प्रतिमालेख गुणदेवसूरि (वि० सं० १४८३-१४८९) । प्रतिमालेख गुणसमुद्रसूरि (वि० सं० १४९२-१५१९) प्रतिमालेख गुणदत्तसूरि (वि० सं० १५२३) प्रतिमालेख गुणदेवसूरि (वि० सं० १५१७-१५३५) प्रतिमालेख गुणरत्नसूरि (ऋषभरास (एवं बाहुबलिरास के रचनाकार) ज्ञानसागरसूरि (वि० सं० १५२३ में जीवभवस्थितिरास एवं वि० सं० १५३१ में सिद्धचक्रश्रीपालचौपाई के रचनाकार) सोमरत्नसूरि (वि० सं० १५२० के आसपास कामदेवरास के रचनाकार) Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६ - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इस गच्छ के प्रमुख ग्रन्थकारों का विवरण निम्नानुसार है : गुणपाल जैसा कि इसी निबन्ध के प्रारम्भिक पृष्ठों में हम देख चुके हैं ये वीरभद्रसूरि के प्रशिष्य और प्रद्युम्नसूरि 'द्वितीय' के शिष्य थे। इनके द्वारा रची गयी दो कृतियाँ मिलती हैं - जंबूचरियं और रिसिदत्ताचरिय, जो प्राकृत भाषा में हैं । जंबूचरियं में १६ उद्देश्य हैं । इसकी शैली पर हरिभद्रसूरि के समराइच्चकहा और उद्योतनसूरि के कुवलयमालाकहा (शक सं० ७००/ई० सन् ७७८) का प्रभाव बतलाया जाता है। इस ग्रन्थ में भगवान् महावीर के शिष्य जम्बूस्वामी का जीवनचरित्र वर्णित है । जम्बूस्वामी पर रची गयी कृतियों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है । रिसिदत्ताचरिय की वर्तमान में दो प्रतियाँ मिलती हैं, एक पूना स्थित भण्डारकर प्राच्य विद्या संस्थान५३ में और दूसरी जैसलमेर के ग्रन्थ भंडार५४ में संरक्षित है, ऐसा मुनि जिनविजय जी ने उल्लेख किया है। शाम्बमुनि इन्होंने चन्द्रकुल के जम्बूनाग द्वारा रचित जिनशतक पर वि० सं० १०२५/ई० सन् ९६९ में पंजिका की रचना की५ । इनके गुरु-शिष्य परम्परा तथा उक्त कृति के अतिरिक्त किसी अन्य रचना के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। विजयसेनसूरि मध्ययुग में नागेन्द्रगच्छ की प्रथम शाखा के आदिम आचार्य महेन्द्रसूरि की परम्परा में हुए हरिभद्रसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि महामात्य वस्तुपाल के पितृपक्ष के कुलगुरु और प्रभावक जैनाचार्य थे । इन्हीं के उपदेश से वस्तुपाल और उसके भ्राता तेजपाल ने संघ यात्रायें की और नूतन जिनालयों के निर्माण के साथ साथ कुछ प्राचीन जिनालयों का जीर्णोद्धार भी कराया । वस्तुपाल द्वारा निर्मित उपलब्ध सभी जिनालयों में इन्हीं के करकमलों से जिन प्रतिमायें प्रतिष्ठापित की गयीं। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ ७५७ ५६ विजयसेनसूरि अपने समय के उद्भट विद्वान् थे । इनके द्वारा रचित रैवंतगिरिरास " नामक एकमात्र कृति मिलती है जो अपभ्रंश भाषा में है । यह वस्तुपाल की गिरनार यात्रा के समय रची गयी । इन्होंने चन्द्रगच्छीय आचार्य बालचन्द्रसूरि द्वारा रचित विवेकमंजरीवृत्ति ( रचनाकाल वि० सं० की तेरहवीं शती का अंतिम चरण) का संशोधन किया। इसी गच्छ प्रद्युम्नसूर (समरादित्यसंक्षेप के रचनाकार) ने इनके पास न्यायशास्त्र का अध्ययन किया था । यद्यपि विजयसेनसूरि द्वारा रचित केवल एक ही कृति मिलती है। फिर भी सम्भव है कि इन्होंने कुछ अन्य रचनायें भी की होंगी, जो आज नहीं मिलतीं । उदयप्रभसूर ये विजयसेनसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। महामात्य वस्तुपाल ने इनके शिक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था की थी और इनके दीक्षा-प्रसंग पर बहुत द्रव्य व्यय किया था । इनके द्वारा रची गयी कई कृतियाँ मिलती हैं, जो निम्नानुसार हैं : ५८ १. २. ३. ४. ५. ६. ७. सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी (रचनाकाल वि० सं० १२७७ / ई० स० १२२१) स्तम्भतीर्थस्थित आदिनाथ जिनालय की १९ श्लोकों की प्रशस्ति ( रचनाकाल वि० सं० १२८१ / ई० स० १२२५) धर्माभ्युदयमहाकाव्य अपरनाम संघपतिचरित्र ( वि० सं० १२९० / ई० स० १२३४ से पूर्व ) वस्तुपाल की गिरनार प्रशस्ति (वि० सं० १२८८/ई० स० १२३२) उपदेशमालाटीका (वि० सं० १२४४ ई०स०१२३२) आरम्भसिद्धि (ज्योतिष ग्रन्थ) वस्तुपालस्तुति Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इसके अतिरिक्त इन्होंने प्रद्युम्नसूरि द्वारा रचित समरादित्यसंक्षेप ( रचनाकाल वि० सं० १३२४ / ई० स० १२६८) का संशोधन भी किया । सुकृतकीर्तिकल्लोकिनी ९ १७९ श्लोकों की लम्बी प्रशस्ति है जो शत्रुंजय के आदिनाथ जिनालय में किसी शिलापट्ट पर उत्कीर्ण कराने लिये रची गयी थी | इसमें चापोत्कट ( चावड़ा) और चौलुक्य नरेशों के विवरण के अतिरिक्त वस्तुपाल के शौर्य, उसकी तीर्थयात्राओं के विवरण के साथसाथ उसके वंशवृक्ष, उसके मंत्रित्त्वकाल एवं उसके परिवार की प्रशंसा की गयी है | रचना के अन्तिम भाग में ग्रन्थकार ने अपने गच्छ की लम्बी गुर्वावली देते हुए अपने गुरु विजयसेनसूरि के प्रति अत्यन्त आदरभाव प्रदर्शित किया है। 1 ७५८ धर्माभ्युदयमहाकाव्य १५ सर्गों में विभाजित है । इसमें कुल ५०४१ श्लोक हैं । इस ग्रन्थ में वस्तुपाल द्वारा की गयी संघयात्राओं को प्रसंग बनाकर धर्म के अभ्युदय का सूचन करने वाली धार्मिक कथाओं का संग्रह है । इस कृति के भी अन्त में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका देते हुए अपने गुरु की प्रशंसा की है । यह वि० सं० १२९० से पूर्व रची गयी कृति मानी जाती है। इसकी वि० सं० १२९० की स्वयं महामात्य वस्तुपाल द्वारा लिपिबद्ध की गयी एक प्रति शान्तिनाथ ज्ञान भण्डार, खम्भात में संरक्षित है६२ .६१ I ६३ उदयप्रभसूरि ने वस्तुपाल द्वारा स्तम्भतीर्थ (खंभात) में निर्मित आदिनाथ जिनालय में उत्कीर्ण कराने हेतु १९ श्लोकों की एक प्रशस्ति की भी रचना की | इसका अन्तिम भाग गद्य में है । इसमें जिनालय के निर्माता और उसके कुलगुरु विजयसेनसूरि के विद्यावंशवृक्ष के अतिरिक्त अन्य कोई सूचना नहीं मिलती । इन्हीं के द्वारा रचित ३३ श्लोकों की वस्तुपालस्तुति नामक कृति भी मिलती है जो किसी घटना विशेष के अवसर पर या किसी सुकृति की स्मृति में रची गयी प्रतीत नहीं होती बल्कि भिन्न-भिन्न अवसरों पर वस्तुपाल की प्रशंसा में रचे गये पद्यों का संकलन है। उदयप्रभसूरि द्वारा रचित ५ श्लोकों की एक अन्य प्रशस्ति Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ ७५९ भी मिलती है६४ जिसमें आदिनाथ एवं नेमिनाथ के प्रति भक्तिभाव व्यक्त करते हुए वस्तुपाल की दानशीलता, धार्मिकता आदि की चर्चा के साथ उसके दीर्घायु होने की कामना की गयी है । वस्तुपाल द्वारा धवलक्क में निर्मित उपाश्रय में प्रवास करते हुए उदयप्रभसूरि ने धर्मदासगणितकृत उपदेशमाला ( रचनाकाल प्रायः ईस्वी सन् छठीं शताब्दी का मध्य भाग) पर वि० सं० १२९९ / ई० सन् १२४३ में कर्णिका नामक टीका की रचना की ६५ । इसकी प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि टीकाकार ने अपने गुरु के आदेश पर इसकी रचना की । कनकप्रभसूरि के शिष्य और प्रसिद्ध ग्रन्थसंशोधक प्रद्युम्नसूरि ने इसका संशोधन किया था । उदयप्रभसूरि ने आरम्भसिद्धि नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ की भी रचना की । इन्हीं के द्वारा ४९ गाथाओं में रचित शब्दब्रह्मोल्लास नामक एक अपूर्ण ग्रन्थ भी मिलता है जो पाटण के खेतरवसही भण्डार में संरक्षित है। वस्तुपाल का गिरनार शिलालेख इन्हीं की कृति है । देवेन्द्रसूरि ६७ ये मध्ययुग में नागेन्द्रगच्छ की द्वितीय शाखा के आदिम आचार्य वीरसूरि की परम्परा में हुए धनेश्वरसूरि के शिष्य और विजयसिंहसूरि के कनिष्ठ गुरुभ्राता थे । इनके द्वारा रचित एकमात्र कृति है चन्द्रप्रभचरित जो वि० सं० १२६४ की रचना है । संस्कृत भाषा में रचित इस ग्रन्थ में ५३२५ श्लोक हैं । इनके बारे में विशेष विवरण नहीं मिलता। वर्धमानसूरि जैसा कि लेख के प्रारम्भ में हम देख चुके हैं ये वीरसूरि की परम्परा में हुए धनेश्वरसूरि के प्रशिष्य और विजयसिंहसूरि के शिष्य थे। इनके द्वारा रचित वासुपूज्यचरित (रचनाकाल वि० सं० १२९९) १२वें तीर्थंकर पर संस्कृत भाषा में उपलब्ध एकमात्र काव्य है । इसमें ५४९४ श्लोक हैं और यह सरल भाषा में है । ग्रन्थ के अन्त में २८ श्लोकों की लम्बी Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रशस्ति के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी विस्तृत गुर्वावली के साथ-साथ रचना-काल और रचना-स्थान का भी उल्लेख किया है जिसका इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। मल्लिषेणसूरि ये वर्धमानसूरि के प्रशिष्य और उदयप्रभसूरि के शिष्य थे । इन्होंने आचार्य हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका नामक कृति पर संस्कृत भाषा में वि० सं० १३४८/ई० सन् १२९३ में स्याद्वादमंजरी नामक टीका की रचना की जिसका संशोधन (खरतरगच्छीय) आचार्य जिनप्रभसूरि ने किया । पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह के अनुसार इन्होंने दिगम्बाराचार्य जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण द्वारा रचित भैरवपद्मावतीकल्प का भी संशोधन किया । लेकिन दिगम्बराचार्य मल्लिषेण द्वारा रचित त्रिशष्टिमहापुराण या महापुराण नामक एक अन्य कृति भी मिलती है जो वि० सं० ११०४/शक सं० ९६८ में रची गयी है। अतः इनका काल विक्रम संवत् की ११वीं शती का अन्त और १२वीं शती का प्रारम्भ सुनिश्चित है। साथ ही उक्त आचार्य कर्णाटक के थे, गुजरात के नहीं । इस आधार पर शाह जी का उपरोक्त मत भ्रामक सिद्ध होता है।७२ स्याद्वादमंजरी की प्रशस्ति में इन्होंने अपने गच्छ की लम्बी गुर्वावली न देते हुए मात्र अपने गुरु उदयप्रभसूरि और ग्रन्थ के रचनाकाल का ही उल्लेख किया है । अतः वर्तमान युग के विभिन्न इतिहासकारों ने केवल गच्छ और नामसाम्य के आधार पर इनके गुरु उदयप्रभसूरि को वस्तुपालतेजपाल के गुरु विजयसेनसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न मान लिया था। परन्तु अब उक्त धारणा निर्मूल सिद्ध हो चुकी है। मेरुतुंगसूरि ये नागेन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य थे। इन्होंने बढवाण में रहते हुए वि० सं० १३६१/ई० सन् १३०५ में संस्कृत भाषा में प्रबन्धचिन्तामणि की रचना की । इस कार्य में उन्हें अपने शिष्य गुणचन्द्र Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ ७६१ गणि से सहायता प्राप्त हुई । सम्पूर्ण ग्रन्थ ५ प्रकाशों (खण्डों) में विभाजित है। गुजरात के इतिहास का यह एक अपूर्व ग्रन्थ है। जिस प्रकार कल्हण ने राजतरंगिणी में काश्मीर का इतिहास लिखा है उसी प्रकार मेरुतुंग ने अपनी इस कृति में गुजरात के इतिहास का वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में वि० सं० ८०२ से लेकर वि० सं० १२५० (कुछ विद्वानों के अनुसार वि० सं० १२७७) तक की घटनाओं का तिथियुक्त वर्णन है किन्तु राजतरंगिणी की तुलना में इस ग्रन्थ में सबसे बड़ा दोष यह है कि लेखक ने अपने समय की घटनाओं का प्रत्यक्ष ज्ञान होते हुए भी उसे पूर्णरूपेण उपेक्षित कर दिया है । साथ ही इसमें विभिन्न राजाओं की दी गयी अधिकांश तिथियाँ प्रायः ठीक नहीं है फिर भी वे कुछ माह या वर्ष से अधिक अशुद्ध नहीं हैं। इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ९, ए० के० मजुमदार तथा कुछ अन्य विद्वानों ने स्थविरावली अपरनाम विचारश्रेणी नामक रचना को भी इसी मेरुतुंग की कृति बतलायाहै । इस कृति में पट्टधर आचार्यों के साथ-साथ चावड़ा, चौलुक्य और वघेल नरेशों की तिथि सहित सूची दी गयी है जो प्रबन्धचिन्तामणि से भिन्न है। चूंकि एक ही ग्रन्थकार अपने दो अलग-अलग ग्रन्थों में समान घटनाओं की अलग-अलग तिथियाँ नहीं दे सकता है, अतः यह सम्भावना बलवती लगती है कि दोनों कृतियों के रचनाकार समान नाम वाले होते हुए भी अलग-अलग व्यक्ति हैं एक नहीं, जैसा कि अनेक विद्वानों ने मान लिया है। विचारश्रेणी में अंचलगच्छ की वीर० सं० १६३९/वि० सं० १२०९ में आर्यरक्षितसूरि से उत्पत्ति बतलायी गयी है । इस गच्छ में भी मेरुतुंग नामक एक प्रसिद्ध आचार्य हो चुके हैं जिनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं और इनका काल वि० सम्वत् की १५वीं शती के प्रथम चरण से लेकर तृतीय चरण तक सुनिश्चित है । इस प्रकार वे प्रबन्धचिन्तामणि के कर्ता से लगभग एक शताब्दी Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - mo ७६२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बाद के विद्वान् हैं । इस आधार पर भी यह सुनिश्चित हो जाता है कि प्रबन्धचिन्तामणि और विचारश्रेणी के रचनाकार अलग-अलग व्यक्ति हैं। ___नागेन्द्रगच्छीय मेरुतुंगसूरि द्वारा रचित दूसरी कृती है महापुरुषचरितः । संस्कृत भाषा में निबद्ध इस कृति में ५ सर्ग हैं जिनमें ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व और महावीर इन पाँच तीर्थंकरों का वर्णन है । ग्रन्थ के मंगलाचरण में ग्रन्थकार ने अपने गुरु चन्द्रप्रभसूरि का और अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत प्रथम श्लोक में अपने गच्छ का उल्लेख किया है। सन्दर्भ सूची :१. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, संपा० मुनि दर्शनविजय, वीरमगाम १९३३ ई० सन्, पृष्ठ ३, ८. २. प्रो० मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा पर आधारित. ३. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृष्ठ ३. देववाचक की तिथि के लिये द्रष्टव्य - एम० ए० ढांकी 'दत्तिलाचार्य अने भद्राचार्य (गुजराती) स्वाध्याय, जिल्द XVIII, अंक २, बड़ोदरा १९८६ ई० सन्० पृ० १६१. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृ० १३-१४. वही M. A. Dhaky- “The Nagedra gaccha" Dr. H. G. Shastri Felicitation Volume, Ed., P. C. Parikh & others, Ahmedabad 1994, pp. 37-42. पङमचरिउ, संपा० मुनि पुण्यविजय, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, ग्रन्थांक १२, अहमदाबाद १९६८ ई० सन्, पृ० ५९७-५९८. ९. U. P. Shah, Akota Bronzes, Bombay 1956. A. D. p. 35. १०. Ibid ११. Ibid, p.34. १२. Ibid १३. मुनि पुण्यविजय, "जैन आगमधर और प्राकृत वाङ्मय", ज्ञानाञ्जलि, बड़ोदरा १९६९ ई० सन्, हिन्दी खण्ड, पृ० ३०-३२. 3 & ; Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ ७६३ १४. जम्बूचरियं, संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४४, बम्बई १९५९ ई० स०, हिन्दी भूमिका, पृ० ५. १५. वही, पृ० १९८-१९९, भूमिका, पृ० ३. १६. कुवलयमालाकहा, संपा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४५, बम्बई १९५६ ई० स०, पृ० २८२-२८३. १७. M. A. Dhaky- "The Nagendra Gachha", p. 38. १८. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, (गुजराती), बम्बई, १९३२ ई० सन्, पृ० १९२. पं० लालचन्द भगवानदास गाँधी "शक सं० ९१०नो गुजरातनी मनोहर जिनप्रतिमा" ऐतिहासिकलेखसंग्रह, श्री सयाजी साहित्यमाला, ग्रन्थांक ३३५, बड़ोदरा १९६३, ई० सन्. पृ० ३२०-३३०. २०. वही, पृष्ठ ३२४. २१. अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, संपा० बीकानेरजैनलेखसंग्रह, कलकत्ता, वीर निर्वाण संवत् २४८२ (ई० स० १९५६), पृ० ३९२, लेखांक २७६६. S. R. Rao, “Jaina Bronzes from Lilavdeva” Journal of Indian __Museums. Vol. XI, 1955, A. D., p. 33 and U. P. Shah "Some Bronzes from Lilvadeva (Panch Mahals)", Bulletin of the Baroda Museum and Picture Gallery, Baroda, Vol. IX 1952-53 A. D., pp. 43-51 and plates I-II. मुनि विशालविजय, संपा०, राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, भावनगर १९६० ई०, पृ० ३, लेखांक २ । मालपुरा से प्राप्त पार्श्वनाथ की धातु की एक तिथिविहीन प्रतिमा पर भी नागेन्द्रकुल का उल्लेख मिलता है। प्रो० एम० ए० ढांकी ने इसे ई० सन् की १० ११ वीं शती का बतलाया है. २४. पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, जिल्द १, भाग २, अहमदाबाद १९५३ ई०, पृ० १७४. लक्ष्मणभोजक, "जूनागढ़नी अम्बिका देवीनी धातुप्रतिमानो लेख" जैनसाहित्य के आयाम, भाग २, पं० बेचरदास दोशी स्मृतिग्रन्थ, संपा०, प्रो० एम० ए० ढांकी और प्रो० सागरमल जैन, वाराणसी १९८७ ई० स०, गुजराती विभाग, पृ० १७९. २६. पं० लालचन्द भगवानदास गाँधी, "सिद्धराज अने जैनो" ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृ० ७९. २२. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास २७. भोगीलाल साण्डेसरा, महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल और संस्कृत साहित्य को उसके देन, सन्मति ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १५, वाराणसी १९५७ ई० सन्, पृ० ३६-३८. २८. धर्माभ्युदयमहाकाव्य, संपा० मुनि पुण्यविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४, वि० सं० २००५. २९. वही, प्रशस्ति, पृ० १८८ - १९० . ३०. बुद्धिसागरसूरि, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४२६. ३१. पुरातनप्रबन्धसंग्रह, संपा०, मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २, शान्तिनिकेतन १९३६ ई० सन्, पृ० १३६. ३२. चन्द्रप्रभचरित, संपा० - संशोधक, विजयजिनेन्द्रसूरि, श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, लाखाबावल, शान्तिपुरी, सौराष्ट्र वि० सं० २०४२, प्रशस्ति, पृ० ३९५. ३३. वासुपूज्यचरित, जैन धर्म प्रचारक सभा, भावनगर वि० सं० १९८२ / ई० सन् १९२६, प्रशस्ति, पृ० १६० - १६१. शिवनारायण पाण्डेय - "श्री अजाहरा पार्श्वनाथ जैन तीर्थथी मणि आवेला अमुक शिल्पो", स्वाध्याय, पु० १७, अंक १, पृ० ४५-४७. ३४. ३५. मधुसूदन ढांकी – “स्याद्वादमंजरीकर्तृ मल्लिषेणसूरिना गुरु उदयप्रभसूरि कोण" ? सामीप्य, अप्रैल १९८८, सितम्बर १९८८, पृष्ठ २०-२६. ३६. द्रष्टव्य, सन्दर्भ संख्या ३३. ३७. आचार्य गिरजाशंकर वल्लभजी शास्त्री, संपा०, गुजरातना ऐतिहासिक लेखो, भाग ३, श्री फार्बस गुजराती सभा ग्रन्थावली १५, श्री फार्बस गुजराती सभा, मुम्बई १९४२ ई० सन्, पृ० २१०. ३८. ढांकी, पूर्वोक्त. ३९. बुद्धिसागरसूरि, संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, बड़ोदरा १९१७ ई० सन्, पृ० १६, लेखांक ३४. ४०. स्याद्वादमंजरी, संपा०, आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव, बम्बई १९३२ ई० सन्, प्रशस्ति, पृ० १७९-१८०. ४१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ४१६, कंडिका ६०१. - आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव, पूर्वोक्त, पृष्ठ XIII, "अंग्रेजी प्रस्तावना ", भगवानदास गाँधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृ० २. लालचन्द Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागेन्द्रगच्छ ७६५ त्रिपुटी महाराज, जैन परम्परानो इतिहास, भाग २, श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५४, अहमदाबाद १९६० ई० सन्, पृ० ७. हीरालाल रसिकलाल कापडिया, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, खण्ड २.उपखण्ड १. श्री मुक्ति कमल जैन मोहनमाला, बड़ोदरा १९६८ ईस्वी, पृ० ३४४. ४२. ढांकी, पूर्वोक्त, पृष्ठ २०-२४. ४३. देसाई. पर्वोक्त. कण्डिका ५९८. ४४. प्रबन्धचिन्तामणि, संपा०, मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १. शान्तिनिकेतन १९३३ ई० सन्. ४५. वही, प्रशस्ति, पृ० १२५. ४६. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैन गुर्जर कविओ, भाग १, नवीन संस्करण, संपा० डॉ० जयन्त कोठारी, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई ई० सन् १९८६, पृ० ६६-६८. ४७. वही, पृ० १२७-१२९. ४८. वही, पृ० १३९-१४२. ४९. द्रष्टव्य, सन्दर्भ संख्या ९. द्रष्टव्य, सन्दर्भ संख्या, १४ एवं १५. ५१. गुलाबचन्द चौधरी, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २०, वाराणसी १९७३ ई०, पृष्ठ १५६-१५७. ५२. मुनि जिनविजय, संपा० जम्बूचरियं, प्रस्तावना, पृ० ३. ५३. वही, पृ० ३. ५४. वही, पृ० ६. ५५. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० १९२. ५६. सी० डी० दलाल, संपा०, प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला, क्रमांक १३, बड़ोदरा १९२० ई०, पृष्ठ १-७. ५७. Muni Punyavijaya -Catalogue of Palm Leaf Mss in the Shanti natha Jain Bhandar, Cambay G. O. S. No. 149, Baroda 1966 A. D. "विवेकमंजरीप्रकरणवृत्ति" की प्रशस्ति, श्लोक १४, पृ० २७८. ५८. द्रष्टव्य - सन्दर्भ क्रमांक २७. ५०. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ५९. मुनि पुण्यविजय, संपा० सुकृतिकीर्तिकल्लोलिन्यादिवस्तुपालप्रशस्तिसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५, बम्बई १९६१ ई०, पृ० १-१६. ६०. मुनि पुण्यविजय, संपा०, धर्माभ्युदयमहाकाव्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४, बम्बई १९४८ ई०. ६१. वही, प्रशस्ति, पृ० १८८-१९०. ६२. Muni Punyavijaya-op. cit., p. 382 ६३-६४ साण्डेसरा, पूर्वोक्त, पृ० ९९. ६५. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० ३८६. ६६. साण्डेसरा, पूर्वोक्त, पृ० ९९. ६७.a C. D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Mss in the Jain Bhandars at Pattan, G. O. S. No. 76, Baroda 1937 A. D., p.279. ६७. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ३२. ६८-६९ द्रष्टव्य, सन्दर्भ क्रमांक ३३. ७०. द्रष्टव्य, सन्दर्भ क्रमांक ४०. ७१. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, "भाषा अने साहित्य" रसिकलाल छोटालाल परीख और हरिप्रसाद शास्त्री, संपा०, गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास, ग्रन्थ ४, "सोलंकीकाल" संशोधन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६९. भो० जे० अध्ययन संशोधन विद्याभवन, अहमदाबाद १९७६ ई०, पृ० ३२८. ७२. Mohanlal Bhagwan Das Jhavery - Comparative and Critical Study of Mantarashastra, Shree Jain Kala Sahitya Samsodhak Series No. 1, Ahmedabad 1944 A. D., pp. 300- 301. ७३. द्रष्टव्य, सन्दर्भ क्रमांक ४०. ७४. द्रष्टव्य, सन्दर्भ क्रमांक ४१. ७५. द्रष्टव्य, सन्दर्भ क्रमांक ३५. ७६. मुनि जिनविजय, संपा०, प्रबन्धचिन्तामणि, प्रशस्ति, पृ० १२५. ७७. वही, मंगलाचरण, पृ० १. ७८. A. K. Majumdar, Chaulukyas of Gujarat, Bombay 1956 A. D. pp. 417-418. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६७ नागेन्द्रगच्छ ७९. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० ४३०-४३१. ८०. Majumdar, Ibid, pp. 417-418. ८१. G. C. Chaudhary Political History of Northern India From Jain Sources, Amritsar 1963 A. D. ८२. तथा श्रीवीरमोक्षात् १६३९ विक्रमात् १२६ (०) ९ वर्षेः श्री विधिपक्षमुख्याभिधानं श्रीमदंचलगच्छे श्री आर्यरक्षितसूरयः स्थापयामासुः । मेरुतुंगाचार्य विरचित विचारश्रेणी, मुनि जिनविजय, संपा०, जैन साहित्य संशोधक, वर्ष २, अंक ३-४ पूना १९२५. विचारश्रेणी की एक मुद्रित प्रति प्रो० एम० ए० ढांकी के पास भी है, परन्तु उसमें प्रकाशन सम्बन्धी सूचनाओं का अभाव है। ८३. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० ४४२. P. Peterson, Sixth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, April 1885- March 1889 A. D. pp 43-46 एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी, प्रबन्धचिन्तामणि (हिन्दी अनुवाद), सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ३, शान्तिनिकेतन १९४० ई० सन्, प्रस्तावना, (लेखक - मुनि जिनविजय) पृ० 'ठ' ८५. P.Peterson, Ibid, pp. 43-46. संकेत सूची :जै० ले० सं० - जैन लेख संग्रह, भाग १-३, संपा०, पूरनचन्द नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, १९२९ ई० सन्. प्रा० जै० ले० सं० - प्राचीन जैन लेख संग्रह, भाग २, संपा०, मुनि जिनविजय, जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर. जै० धा० प्र० सं०- जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह, भाग १-२, संपा०, बुद्धिसागरसूरि, अध्यात्म ज्ञान प्रसार मण्डल, पादरा १९१८ और १९२४ ई० सन्. प्रा० ले० सं० - प्राचीन लेख संग्रह, संपा०, विजयधर्मसूरि, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९२६ ई० सन्. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ प्र० ले० सं० - बी० जै० ले० सं० - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रतिष्ठा लेख संग्रह, भाग १, संपा०, विनयसागर, सुमति सदन,कोटा १९५३ ई० सन्. बीकानेर जैन लेख संग्रह, संपा०, अगरचन्द नाहटा एवं भवर लाल नाहटा, नाहटा ब्रदर्स, ४ जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता १९५६ ई० सन्. श्री प्रतिमा लेख संग्रह, संपा०, दौलत सिंह लोढा,यतीन्द्र साहित्य सदन, धामणिया, मेवाड़ १९५१ ई० सन्. शत्रुजय वैभव, मुनि कान्तिसागर, कुशल संस्थान, पुष्प ४, जयपुर १९९० ई० सन्. श्री० प्र० ले० सं० - श० वै० - Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवृत्तिकुल का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के चैत्यवासी गच्छों में निवृत्तिकुल (बाद में निवृत्तिगच्छ) भी एक है । पर्युषणाकल्प की ' स्थविरावली' में इस कुल का उल्लेख नहीं मिलता, इससे स्पष्ट होता है कि यह कुल बाद में अस्तित्व में आया । इस कुल का सर्वप्रथम उल्लेख अकोटा से प्राप्त दो प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में प्राप्त होता है, जिनका समय उमाकान्त शाह ने ई० स० ५२५ से ५५० के बीच माना है । इस कुल में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, शीलाचार्य अपरनाम शीलाङ्कसूरि, सिद्धर्षि, द्रोणाचार्य, सूराचार्य आदि कई प्रभावक एवं विद्वान् आचार्य हुए हैं । निवृत्तिकुल से सम्बद्ध अभिलेखीय और साहित्यिक दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं और ये मिलकर विक्रम संवत् की छठीं शती उत्तरार्ध से लेकर वि० सं० की १६वीं शती तक के हैं, किन्तु इनकी संख्या अल्प होने के कारण इनके आधार पर इस कुल के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर पाना प्राय: असंभव है । फिर भी प्रस्तुत लेख में उनके आधार पर इस कुल के बारे में यथासंभव प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । ऊपर कहा जा चुका है कि इस कुल का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य है अकोटा से प्राप्त धातु की दो प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख | उमाकान्त शाह' ने इनके वाचना इस प्रकार दी है : १. ॐ देवधर्मोयं निवृत्ति कुले जिनभद्रवाचनाचार्यस्य । २. ॐ निवृत्तिकुले जिनभद्रवाचनाचार्यस्य । Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वाचनाचार्य और क्षमाश्रमण समानार्थक माने गये हैं, अतः इस लेख में उल्लिखित जिनभद्रवाचनाचार्य और विशेषावश्यकभाष्य आदि ग्रन्थों के रचयिता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण एक ही व्यक्ति हैं । उक्त प्रतिमाओं में मूर्तिकला की कालगत विशेषताओं के आधार पर शाह जी ने दूसरी जगह इनका काल ई० स० ५५० से ६०० के बीच माना है, जो विशेष सही है । परम्परानुसार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की आयु १०४ वर्ष थी, अतः पं० मालवणिया ने इनका जीवनकाल वि० सं० ५४५ से वि० सं० ६५० / ई० स० ४८९ से ई० स० ५९४ माना है। आचाराङ्ग और सूत्रकृताङ्ग की टीका' के रचयिता शीलाचार्य अपरनाम तत्त्वादित्य तथा चउप्पन्नमहापुरिसचरियं (वि०सं० ९२५ / ई० सन् ८३९) के रचनाकार शीलाचार्य अपरनाम विमलमति अपरनाम शीलाङ्क भी स्वयं को निवृत्तिकुलीन बतलाते हैं । मुनि जिनविजय, आचार्य सागरानन्दसूरि', श्रीमोहनलाल दलीचन्द देसाई आदि विद्वानों ने आचाराङ्ग-सूत्रकृताङ्ग की टीका के रचनाकार शीलाचार्य अपरनाम तत्त्वादित्य तथा चउप्पन्नमहापुरिसचरियं के कर्ता शीलाचार्य अपरनाम विमलमति अपरनाम शीलाङ्क को समसामयिकता के आधार पर एक ही व्यक्ति माना है । पं० मालवणिया और प्रा० मधुसूदन ढांकी ने भी इन आचार्यों की समसामयिकता एवं उनके समान कुल के होने के कारण उक्त मत का समर्थन किया है । इसके विपरीत चउप्पनमहापुरिसचरियं के सम्पादक श्री अमृतलाल भोजक' का मत है कि यद्यपि दोनों शीलाचार्यों की समसामयिकता असंदिग्ध है, किन्तु उन दोनों आचार्यों ने अपना पृथक्-पृथक् अस्तित्व स्पष्ट करने के लिए ही अपना अलग-अलग अपरनाम भी सूचित किया है, अतः दोनों भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं और उन्हें एक मानना उचित नहीं । चूंकि एक ही समय में, एक ही कुल में, एक ही नाम वाले दो आचार्यों का होना उसी प्रकार असंभव है जैसे एक ही परिवार में एक ही पिता के दो सन्तानों का एक ही नाम होना, अतः इस Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवृत्तिकुल ७७१ आधार पर भोजक का मत सत्यता से परे मालूम होता है । अलावा इसके उस जमाने में श्वेताम्बर परम्परा के मुनिजनों की संख्या भी अल्प ही थी। उपमितिभवप्रपंचकथा (वि० सं० ९६२ / ई० स० ९०६), सटीक न्यायावतार, उपदेशमालाटीका आदि के रचयिता सिद्धर्षि भी निवृत्तिकुल के थे । उपमितिभवप्रपंचकथा की प्रशस्ति१२ में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है: सूर्याचार्य देल्लमहत्तर दुर्गस्वामी । सिद्धर्षि उक्त प्रशस्ति में सिद्धर्षि ने अपने गुरु और स्वयं को दीक्षित करने वाले आचार्यरूपेण गर्गर्षि का नाम भी दिया है। संभवतः यह गर्गर्षि और कर्मसिद्धान्त के ग्रन्थ कर्मविपाक के रचयिता गर्गर्षि१३ एक ही व्यक्ति रहे हों । इसके अलावा पंचसंग्रह के रचयिता पार्श्वर्षि के शिष्य चन्द्रर्षि१४ भी नामाभिधान के प्रकार को देखते हुए संभवतः इसी कुल के रहे होंगे। ___अकोटा की वि० सं० की १०वीं शती की तीन धातु प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में प्रतिमा-प्रतिष्ठापक के रूप में निवृत्तिकुल के द्रोणाचार्य का उल्लेख मिलता है। इनमें से एक प्रतिमा पर प्रतिष्ठा वर्ष वि० सं० १००६ / ई० स० ९५० दिया गया है। इस प्रकार इनका कार्यकाल १०वीं शताब्दी का उत्तरार्ध रहा होगा। निवृत्तिकुल में द्रोणाचार्य नाम के एक अन्य आचार्य भी हो चुके हैं। प्रभावकचरित के अनुसार ये चौलुक्यनरेश भीमदेव प्रथम के संसारपक्षीय मामा थे। आचार्य हेमचन्द्र के द्वयाश्रयमहाकाव्य के अनुसार चौलुक्यराज Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भीमदेव के पिता नागराज नड्डल के चाहमानराज महेन्द्र की भगिनी लक्ष्मी से विवाहित हुए थे। इस देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उक्त द्रोणाचार्य नड्डल के राजवंश से सम्बद्ध रहे होंगे । इनकी एकमात्र कृति है ओघनियुक्ति की वृत्ति । नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि द्वारा नौ अंगों पर लिखी गयी टीकाओं का इन्होंने संशोधन भी किया। इनके इस उपकार का अभयदेवसूरि ने सादर उल्लेख किया है। परन्तु इनके गुरु कौन थे, इस सम्बन्ध में न तो स्वयं इन्होंने कुछ बतलाया है और न किन्हीं साक्ष्यों से इस सम्बन्ध में कोई सूचना प्राप्त होती है। ___ द्रोणाचार्य के शिष्य और संसारपक्षीय भतीजा सूराचार्य भी अपने समय के उद्भट्न विद्वान् थे° । परमारनरेश भोज (वि० सं० १०६६११११) ने अपनी राजसभा में इनका सम्मान किया था२१ । इनके द्वारा रचित दानादिप्रकरण२२ नामक एक ग्रन्थ उपलब्ध है। ये संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान् थे। निवृत्तिकुल से सम्बद्ध तीन अभिलेख विक्रम संवत् की ११वीं शती के हैं। इनमें से प्रथम लेख वि० सं० १०२२ / ई० स० ९६६ का है जो भाषा की दृष्टि से कुछ हद तक भ्रष्ट है और धातु की एक चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री अगरचन्द नाहटा ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी गच्छे श्रीनृवितके तते संताने पारस्वदत्तसूरीणांवृसभ पुत्र्या सरस्वत्याचतुर्विंशति पटकं मुक्त्यथ चकारे ।। प्राप्तिस्थान-चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । द्वितीय लेख आबू के परमार राजा कृष्णराज के समय का वि० सं० १०२४ / ई० स० ९६८ का है, जो आबू के समीप केर नामक स्थान से, प्राप्त हुआ है । यह लेख यहां स्थित जिनालय के गूढमंडप के बांयी ओर स्तम्भ पर उत्कीर्ण था। मुनि जयन्तविजय जी ने इस लेख की वाचना दी है, जो कुछ सुधार के साथ यहां दी जा रही है : Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७३ निवृत्तिकुल विष्टितक (निवृत्तक) कुले गोष्ठ्या वि (व)मानस्य कारितं । (सुरूपं) मुक्तये बिंबं कृष्णराजे महीपतौ ॥ अ (आ)षाढ़सु (शु) द्धषष्ठ्यां समासहस्रे जिनैः समभ्यधिके (१०२४) हस्तोत्तरादि संस्थे निशाकरे (रित) सपरिवारे ॥ (ना वा) हरे रं - : नरादित्यः सुशोभतां घटितवान् वीरनाथस्य शिल्पिनामग्रणीः पर (म्) ॥ यद्यपि इस लेख में निवृत्ति कुल के किसी आचार्य या मुनि का कोई उल्लेख नहीं है, परन्तु आबू के परमारनरेशों के काल-निर्धारण में यह लेख अत्यन्त मूल्यवान है। वि० सं० की ११वीं शताब्दी का तृतीय लेख वि० सं० १०९२ / ई० स० १०३६ का है । इस लेख में निवृत्तिकुल के आम्रदेवाचार्यगच्छ का उल्लेख है। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : संवत् १०९२ फाल्ग (ल्गु) न सुदि ९ रवौ श्री निवृत्तककुले श्रीमदानदेवाचार्यगच्छे नंदिग्रामचैत्ये सोमकेन जाया........ सहितेन तत्सुतसहजुकेन च निजपुत्रसंवीरणसहिलान्वितेन नि (:) श्रेयसे वृषभजिनप्रतिमा - वार्थ (?) कारिता । प्रतिष्ठास्थान - नांदिया, प्राप्ति स्थान - जैन मंदिर, अजारी, वि० सं० की १२वीं शताब्दी के चार लेखों२६ (वि० सं० ११३० - ई० स० १०७४, तीन प्रतिमा लेख और वि० सं० ११४४ - ई० स० १०८८ एक प्रतिमालेख) में भी निवृत्तिकुल के पूर्वकथित आम्रदेवाचार्यगच्छ का उल्लेख है। इन लेखों का मूलपाठ इस प्रकार है : संवत् ११३० ज्येष्ठ शुक्लपंचम्यां श्री निर्वृत्तककुले श्रीमदाम्रदेवाचार्यगच्छे कोरेस्व (श्व) रसुत दुल्ल (ल) भश्रावकेणेदं मुक्तये कारितं जिनयुग्ममुत्तमं ॥ प्राप्तिस्थान - आदिनाथ जिनालय, लोटाणा । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ___(संवत् ११३०) ज्येष्ठशुक्लपंचम्यां श्री निर्वृत्तककुले श्रीमदाम्रदेवाचार्यगच्छे कोरेस्व (श्व) रसुत दुर्लभ (श्रावकेणे) दं मुक्तये कारितं जिनयुग्ममुत्तमम् ।। कायोत्सर्ग प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्राप्तिस्थान - पूर्वोक्त । संवत् ११३० ज्येष्ठ शुक्लपंचम्यां तिहे (निर्वृ)तककुले श्रीमदा(म्रदेवाचार्यगच्छे)....... ____ कायोत्सर्गप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्राप्तिस्थान - पूर्वोक्त । ॐ ॥ संवत् ११४४ ज्येष्ठ वदि ४ श्री त (नि)वृत्तककुले श्रीमदाम्रदेवाचार्यगच्छे लोटाणकचैत्ये प्राग्वाटवंशोद्भवः यांयश्रेष्ठिस (हितेन) आहिल श्रेष्ठिकि (कृ) तं आसदेवेन मोल्यः (?) श्री वीरवर्धमानसा (स्वा) मिप्रतिमा कारिता । कायोत्सर्गप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान एवं प्राप्तिस्थान - पूर्वोक्त। उक्त लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इस गच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि निवृत्तिकुल की यह शाखा (आम्रदेवाचार्यगच्छ) ईस्वी ११वीं शती के प्रारम्भ में अस्तित्व में आयी होगी। वि० सं० ११४४ - ई० स० १०८८ के पश्चात् आम्रदेवाचार्यगच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिलता, अतः यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि वि० सं० की १२वीं शती के अन्त तक निवृत्तिकुल की इस शाखा का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया होगा। वि० सं० १२८८ - ई० स० १२३२ का एक लेख, जो नेमिनाथ की धातु की सपरिकर प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में निवृत्तिगच्छ के आचार्य शीलचन्द्रसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है । नाहटा द्वारा इस लेख की वाचना इस प्रकार दी गयी है : सं० १२८८ माघ सुदि ९ सोमे निवृत्तिगच्छे श्रे० वौहड़ि सुत यसहडेन देल्हादि पिवर श्रेयसे नेमिनाथ कारितं प्र० श्री शीलचन्द्रसूरिभिः Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७५ निवृत्तिकुल प्राप्तिस्थान - महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर । वि० सं० १३०१ / ई० स० १२४५ का एक लेख, जो शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में इस गच्छ के आम्रदेवसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है। मुनि कान्तिसागर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : सं. १३०१ वर्षे हुंबडज्ञातीय निवृत्तिगच्छे श्रे० जरा (श) वीर पुत्र रेना सहितेन स्वश्रेयसे शांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठिता श्रीयामदेवसूरिभिः ॥ प्राप्तिस्थान - बालावसही, शत्रुञ्जय । वि० सं० १३७१ / ई० स० १३१५ में इसी कुल के पार्श्वदेवसूरि के शिष्य अम्बदेवसूरि ने समरारासु की रचना की । पार्श्वदेवसूरि के गुरु कौन थे, क्या अम्बदेवसूरि के अलावा पार्श्वदेवसूरि के अन्य शिष्य भी थे, इन सब बातों को जानने के लिये हमारे पास इस वक्त कोई प्रमाण नहीं है। वि० सं० १३८९ / ई० स० १३२३ का एक लेख, जो पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में इस कुल के पार्श्वदत्तसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है। बुद्धिसागरसूरिजी३° ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : । सं० १३८९ वर्षे वैशाख सुदि ६ बुधे श्री निवृत्तिगच्छे हूवट (हुंबड) ज्ञा० पितृपीमडमातृपीमलदे श्रेयसे श्रीपद्मप्रभस्वामि बिंबं का० प्र० श्रीपार्श्वदत्तसूरिभिः । प्राप्तिस्थान - मनमोहनपार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा । इस गच्छ का विक्रम की १५वीं शताब्दी का केवल एक लेख मिला है, जो वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। आचार्य विजयधर्मसूरि२१ ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : सं० १४६९ वर्षे फागुण वदि २ शुक्रे हूंबडज्ञातीय ठ० देपाल भा० सोहग पु० ठ० राणाकेन मातृपितृ श्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं निवृत्तिगच्छे श्रीसूरिभिः ॥श्रीः।। श्री पूरनचन्द नाहर३२ ने भी इस लेख की वाचना दी है, किन्तु Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उन्होंने वि० सं० १४६९ को १४९६ पढ़ा है। इन दोनों वाचनाओं में कौन सा पाठ सही है, इसका निर्णय तो इस लेख को फिर से देखने से ही संभव है। निवृत्तिगच्छ से सम्बद्ध एक और लेख एक चतुर्विंशतिपट्ट पर उत्कीर्ण है। श्री नाहर२३ ने इसे वि० सं० १५०६ (?) का बतलाया है और इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : ___ॐ ।। श्रीमन्निवृतगच्छे संताने चाम्रदेव सूरीणां । महणं गणि नामाद्या चेल्ली सर्व्वदेवा गणिनी । वित्तं नीतिश्रमायातं वितीर्य शुभवारया । चतुर्विंशति पट्टाकं कारयामास निर्मलं । प्राप्तिस्थान - आदिनाथ जिनालय, कलकत्ता । इस गच्छ का एक लेख वि० सं० १५२९ / ई० स० १४७३ का भी है। पं० विनयसागर३४ ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : सं० १५२९ वर्षे वैशाख वदि ४ शुक्रे हुंबडज्ञातीय मंत्रीश्वरगोत्रे । दोसी वीरपाल भा० वारु सु० सोमा. करमाभ्यां स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का० निवृत्तिगच्छे । पु० श्रीसिंघदेवसूरिभिः जिनदत्त चांपा । प्राप्तिस्थान - आदिनाथ जिनालय, करमदी। वर्तमान में उपलब्धता की दृष्टि से इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम लेख वि० सं० १५६८ / ई० स० १५१२ का है।५ । यह लेख मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इसका मूलपाठ इस प्रकार सं० १५६८ वर्षे सुदि ५ शुक्रे हूँब० मंत्रीश्वर गोत्रे । दोसी चांपा भा० चांपलदे सु० दिनकर वना निव्रत्तगच्छे । श्री मुनिसुव्रतबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीसंघदत्तसूरिभिः ॥ प्राप्तिस्थान -शांतिनाथ जिनालय, रतलाम । इस गच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, यह कुल या गच्छ कब अस्तित्वमें आया, इस बारे में उक्त साक्ष्यों से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवृत्तिकुल | ওওও और न ही उनके आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की कोई व्यवस्थित तालिका ही बन पाती है। यद्यपि मध्यकालीन पट्टावलियों में नागेन्द्र, चन्द्र और विद्याधर कुलों के साथ निवृत्तिकुल के उत्पत्ति का भी विवरण है, किन्तु ये पट्टावलियां उत्तरकालीन एवं अनेक भ्रामक विवरणों से युक्त होने के कारण किसी भी गच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन के लिये सर्वथा प्रामाणिक नहीं मानी जा सकतीं । इतना जरूर है कि इस कुल - गच्छ के मुनिगण प्राय: चैत्यवासी परम्परा के रहे होंगे। महावीर की पुरातन परम्परा में तो निवृत्तिकुल का उल्लेख नहीं मिलता, अतः क्या यह कुल पार्खापत्यों की परम्परा से लाट देश में निष्पन्न हुआ था ? यह अन्वेषणीय है। सन्दर्भ सूची :१. U. P. Shah, Akota Bronzes, Bombay 1959, pp 29-30 २. पं० दलसुख मालवणिया, गणधरवाद, अहमदाबाद १९५२, पृ० ३०-३१. ३. वही. ४. वही, पृ० ३२-३४ ५. मोहनलाल मेहता, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ३, प्रथम संस्करण, वाराणसी १९६७, पृ० ३८२ और आगे. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, सं० पं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, गन्थाङ्क ३, वाराणसी १९६१, प्रशस्ति, पृ० ३३४. मुनि जिनविजय, जीतकल्पसूत्र, प्रस्तावना. (मूल ग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह उद्धरण श्री भोजक द्वारा लिखित चउप्पनमहापुरिसचरियं की प्रस्तावना, पृ० ५५ के आधार पर दिया गया है। यहां उन्होंने ग्रन्थ का प्रकाशनस्थान एवं वर्ष सूचित नहीं किया है।) ८. प्रस्तावना, चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, पृ० ५५. ९. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० १८०-८१. १०. पं० दलसुख मालवणिया और प्रो० मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७८ ११. प्रस्तावना, चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, पृ० ५४ और आगे. १२. उपमितिभवप्रपंचकथा, हिन्दी अनुवादक पं० विनयसागर एवं लालचन्द जैन, प्रथम एवं द्वितीय खण्ड, प्राकृत भारती, पुष्प ३१, जयपुर १९८५, प्रशस्ति, पृ० ४३७-४४०. १३. मोहनलाल मेहता, पूर्वोक्त, भाग ३, पृ० १११, १२५. १४. वही, पृ० १२४ - १२५. १५. शाह, पूर्वोक्त, पृ० ५७-५९. १६. “श्रीसूराचार्यचरितम्, " प्रभावकचरित, सं० मुनिजिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १३, अहमदाबाद १९४०, पृ० १५२. १७. दुर्गाशंकर केवलराम शास्त्री, गुजरातनो मध्यकालीन राजपूत इतिहास, भाग १ - २, अहमदाबाद १९५३, पृ० १९४ और आगे. १८. मोहनलाल मेहता, पूर्वोक्त, पृ० ३९४-९५. १९. वही. २०. प्रभावकचरित, पृ० १५२ - १६०. २१. वही. २२. दानादिप्रकरण, सं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक एवं नगीन जे० शाह, लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ९०, अहमदाबाद १९८३. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास २३. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, सं० अगरचंद भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता, वीर संवत् २४८२ ( ई० सं० १९५५), लेखांक ५७. २४. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, सं० मुनि जयन्तविजय, भावनगर वि० सं० २००३ (ई० स० १९४६), लेखाङ्ग ४८६. २५. वही, लेखांक ३९६. २६. वही, लेखांक ४७०, ४७१, ४७२, ४७३. २७. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक. १३३५. लेखांक १६. २८. मुनि कान्तिसागर, शत्रुञ्जयवैभव, जयपुर १९९०, २९. 'समरारासु,' प्राचीनगूर्जरकाव्यसंग्रह, सं० चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १३, प्रथम संस्करण, बड़ोदरा १९२०, पृ० २७-३८. ३०. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सं० बुद्धिसागरसूरि, भाग २, पादरा ई० सन् १९२४, लेखांक ८१. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवृत्तिकुल ७७९ ३१. प्राचीनलेखसंग्रह, सं० आचार्य विजयधर्मसूरि, भावनगर १९२९, लेखांक १०६. ३२. जैनलेखसंग्रह, सं० पूरनचन्द नाहर, भाग - २, कलकत्ता १९२७, लेखांक १०७८. ३३. वही, लेखांक १००३. ३४. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, सं० विनयसागर, कोटा १९५३, लेखांक ७१२. ३५. वही, भाग १, लेखांक ९३७. ३६. त्रिपुटी महाराज, जैन परम्परानो इतिहास, भाग १, अहमदाबाद १९५२, पृ० ३०१ और आगे. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय में चन्द्रकुल से समय-समय पर अस्तित्व में आए विभिन्न गच्छों में पल्लीवालगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है वर्तमान राजस्थान प्रान्त में अवस्थित पाली (प्राचीन पल्ली) नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया । इस गच्छ में महेश्वरसूरि 'प्रथम', अभयदेवसूरि, महेश्वरसूरि 'द्वितीय', नन्नसूरि, अजितदेवसूरि, हीरानंदसूरि आदि कई रचनाकार हो चुके हैं। इस गच्छ से संबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं, जो वि०सं० १२५७ से लेकर वि०सं० १६८१ तक के हैं। इस गच्छ की दो पट्टावलियां भी मिलती हैं, जो सद्भाग्य से प्रकाशित हैं। यहां उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम पट्टावलियों, तत्पश्चात् ग्रन्थ प्रशस्तियों और अन्त में अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण एवं इन सभी का विवेचन किया गया है । जैसा कि ऊपर कहा गया है पल्लीवालगच्छ की आज दो पट्टावलियाँ मिलती हैं। प्रथम पट्टावली वि०सं० १६७५ के पश्चात् रची गई है। इसमें उल्लिखित गुरु-परंपरा इस प्रकार है- महावीर 1 सुधर्मा Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ दिनेश्वरसूरि ( पाली में ब्राह्मणों को जैन धर्म में दीक्षित करने वाले) महेश्वरसूरि (वि०सं० १९५० में स्वर्गस्थ ) 1 -44HF-1-1-1-1-4 सोमतिलकसूरि ७८१ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास हर्षसूरि | भट्टारक कमलचन्द्र 1 गुणमाणिक्यसूरि पल्लीवालगच्छ की द्वितीय पट्टावली वि०सं० १७२८ में रची गई है। इसमें भगवान् महावीर के ८ वें पट्टधर स्थूलिभद्र से लेकर ६१ वें पट्टधर उद्योतनसूरि तक का विवरण दिया गया है, जो इस प्रकार है- ८. T सुन्दरचन्द्रसूरि (वि०सं० १६७५ में स्वर्गस्थ ) ९. I प्रभुचन्द्रसूरि (वर्तमान) T महावीर स्थूलिभद्र सुहस्तिसूरि I १०. इन्द्रदिन्नसूरि T सुधर्मा / Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ ११. आर्यदिन्नसूरि | सिंहगिरि १२. १३. १४. १५. १६. १८. १९. T वज्रस्वामी २०. I वज्रसेन I १७. यशोदेवसूरि 1 चन्द्रसूरि T शांतिसूरि F नन्नसूरि 1 उद्योतनसूरि 1 महेश्वरसूरि २१. अभयदेवसूरि 1 २२. आमदेवसूरि 1 I I ७८३ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास २९. नन्दसूरि (वि०सं० १०९८ में स्वर्गस्थ) ४०. उद्योतनसूरि (वि०सं० ११२३ में स्वर्गस्थ) ४१. महेश्वरसूरि (वि०सं० ११४५ में स्वर्गस्थ) ४२. अभयदेवसूरि (वि०सं० ११६९ में स्वर्गस्थ) ४३. आमदेवसूरि (वि०सं० ११९९ में स्वर्गस्थ) ४४. शांतिसूरि (वि०सं० १२२४ में स्वर्गस्थ) ४५. यशोदेवसूरि (वि०सं० १२३४ में स्वर्गस्थ) नन्नसूरि (वि०सं० १२३९ में स्वर्गस्थ) ४७. उद्योतनसूरि (वि०सं० १२४३ में स्वर्गस्थ) महेश्वरसूरि (वि०सं० १२७४ में स्वर्गस्थ) ४९. अभयदेवसूरि (वि०सं० १३२१ में स्वर्गस्थ) ५०. आमदेवसूरि (वि०सं० १३७४ में स्वर्गस्थ) ५१. शांतिसूरि (वि०सं० १४४८ में स्वर्गस्थ) Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ ५२. ५३. ५४. ५५. ५८. ७८५ यशोदेवसूरि (वि०सं० १४८८ में स्वर्गस्थ ) 1 नन्नसूरि (वि०सं० १५३२ में स्वर्गस्थ ) T उद्योतनसूरि (वि०सं० १५७२ में स्वर्गस्थ ) ५६. अभयदेवसूरि (वि० सं० १५९५ में स्वर्गस्थ ) (वि०सं० ६०. T महेश्वरसूरि (वि०सं० १५९९ में स्वर्गस्थ ) I ५७. आमदेवसूरि (वि० सं० १६३४ में स्वर्गस्थ ) | शांतिसूरि (वि०सं० १६६१ में स्वर्गस्थ ) T ५९. यशोदेवसूरि (वि० सं० १६९२ में स्वर्गस्थ ) I नन्नसूरि (वि०सं० १७१८ में स्वर्गस्थ ) ६१. उद्योतनसूरि (वि०सं० १७३७ में स्वर्गस्थ ) इस पट्टावली में ४१ वें पट्टधर महेश्वरसूरि के वि०सं० ११४५ में निधन होने की बात कही गई है। प्रथम पट्टावली में भी महेश्वरसूरि का नाम मिलता है और वि०सं० १९५० में उनके निधन होने की बात कही गई है । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रभावक आचार्य थे। इसी कारण दोनों पट्टावलियों में न केवल इनका नाम मिलता है, बल्कि इन्हें समसामयिक भी बतलाया गया है। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पल्लीवालगच्छ का उल्लेख करने वाला महत्वपूर्ण साक्ष्य है महेश्वरसूरि द्वारा रचित कालकाचार्यकथा की वि०सं० १३६५ में लिखी गई प्रति की दाताप्रशस्ति, जो इस प्रकार है - इति श्रीपल्लीवालगच्छे श्री महेश्वरसूरिभिर्विरचिता कालिकाचार्य ७८६ कथासमाप्त ॥ श्री पालवंशोऽस्ति विशालकीर्तिः, श्रीशांतिसूरिप्रतिबोधित डीडाकाख्यः । श्रीविक्रमाद्वेदनभर्महर्षिवत्सरै: ( ? ), श्री आदिचैत्यकारापित नवहरे च ॥ १ ॥ स्वश्रेयसे कारितकल्पपुस्तिका ... पुण्योदयरत्नभूमि: । श्रीपल्लिगच्छे स्वगुणौकधाम्ना वाचिता श्रीमहेश्वरसूरिभिः ॥१०॥ नृपविक्रमकालातीत सं० १३६५ वर्षेभाद्रपदवदौ नवम्यां तिथौ श्रीमेदपाटमंडले वऊणाग्रामे कल्पपुस्तिका लिखिता ||छ || उदकानल चौरेभ्यः मूषकेभ्यस्तथैव च । रक्षणीया प्रयत्नेन यत कष्टेन लिख्यते ॥ १ ॥ संवत् १३७८ वर्ष भाद्रपद सुदि ४ श्रावक मोल्हासुतेन भार्याउदयसिरिसमन्वितेन पुत्रसोमा-लाखा-खेतासहितेन श्रावकऊदाकेन श्रीकल्पपुस्तिकां गृहीत्वा श्री अभयदेवसूरीणां समर्पिता वाचिता च । इस प्रशस्ति में रचनाकार ने यद्यपि अपनी गुरु- परम्परा, रचनाकाल आदि का कोई निर्देश नहीं किया है, फिर भी पल्लीवालगच्छ से संबद्ध सबसे प्राचीन साक्ष्य होने इसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। इस प्रशस्ति के अंत में वि०सं० १३७८ में किन्हीं अभयदेवसूरि को पुस्तक समर्पण की बात कही गई है। ये अभयदेवसूरि कौन थे । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ ७८७ महेश्वरसूरि से उनका क्या सम्बन्ध था, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । पल्लीवालगच्छ की द्वितीय पट्टावली में हम देख चुके हैं कि महेश्वरसूरि के पट्टधर के रूप में अभयदेवसूरि का नाम आता है। इस आधार पर इस प्रशस्ति में उल्लिखित अभयदेवसूरि महेश्वरसूरि के शिष्य सिद्ध होते हैं। पल्लीवालगच्छ से संबद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य है वि०सं० १५४४/ ई० स० १४८८ में नन्नसूरि द्वारा रचित सीमंधरजिनस्तवन । यह ३५ गाथाओं में रचित एक लघुकृति है। नन्नसूरि के गुरु कौन थे, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। वि०स० १५७४/ई०स० १५१९ में प्राकृत भाषा में ८८ गाथाओं में रची गई विचारसारप्रकरण की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार महेश्वरसूरि द्वितीय भी पल्लीवालगच्छ के थे। उपासकदशाङ्ग और आचारांग की वि०सं० १५९१-ईस्वीसन् १५३५ में लिखी गई प्रति की पुष्पिकाओं में भी पल्लीवालगच्छ के नायक के रूप में महेश्वरसूरि का नाम मिलता है। _ वि.सं. की १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण में पल्लीवालगच्छ में अजितदेवसूरि नामक एक प्रसिद्ध रचनाकार हो चुके हैं। इनके द्वारा रचित कई कृतियाँ मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं-- १. कल्पसिद्धान्तदीपिका २. पिण्डविशुद्धिदीपिका (वि०सं० १६२७) ३. उत्तराध्ययनसूत्रबालावबोध (वि०सं० १६२९) ४. आचारांगदीपिका ५. आराधना ६. जीवशिखामणाविधि ७. चन्दनबालाबेलि ८. चौबीस जिनावली Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कल्पसिद्धान्तदीपिका की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को महेश्वरसूरि .९ शिष्य कहा है ७८८ इतिश्री चंद्रगच्छां भोजदिनमणीनां श्रीमहेश्वरसूरिसर्व्वसूरिशिरोमणीनां पट्टे श्री अजितदेवसूरिणा विरचिता श्रीकल्पसिद्धान्तदीपिका समाप्ता । अजितदेवसूरि के शिष्य हीरानन्दसूरि हुए जिनके द्वारा रचित चौबोलीचौपाई नामक कृति प्राप्त होती है । इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु- प्रगुरु आदि का उल्लेख किया है। १० पालीवाल विरुदे प्रसिद्ध, चंद्रगच्छ सुपहाण । सूरि महेसर पाटधर, तेजै दीपइ भाण ||७|| तासु पसायै हर्षधर, पभणै हीरानंद ॥८॥ चौबोलीचौपाई की वि०सं० १७७० में लिखी गई एक प्रति जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भण्डार, बीकानेर में संरक्षित है । ११ पल्लीवालगच्छ से संबद्ध पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जो वि०सं० १२५७ से लेकर वि०सं० १६८१ तक के हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख १. १२५७ - प्रतिमालेख पल्लीवालगच्छ १२ २. | १३४३ माघ सुदि| आचार्य का नाम | पार्श्वनाथ की | शीतलनाथ अनुपलब्ध प्रतिमा का लेख / जिनालय, कुम्भारवाडो, मुनि कांतिसागर, संपा० शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक ११ बुद्धिसागरसूरि, संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, | भाग-२, लेखांक ६५५ अगरचंद नाहटा, संपा० बीकानेरजैन लेखसंग्रह, लेखांक २०० खंभात ३. महेश्वरसूरि १३४५ / माघ सुदि १२ रविवार | चिंतामणिजी का मंदिर, बीकानेर Pron ७/२ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ४. १३४५ ५. ६. ७. तिथि १३६१ आषाढ सुदि ३ १३७३ वैशाख सुदि १२ १३८३ माघ सुदि १० सोमवार आचार्य का नाम " गुणाकरसूरि महेश्वरसूरि के पट्टधर अभयदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख "" "" प्रतिष्ठा स्थान केशरियाजी का मंदिर, देशनोक, बीकानेर चितामणिजीका मंदिर, बीकानेर जैन मंदिर, आर्वी शांतिनाथ जिना. भोंयरापाडो खंभात संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक २२४४ वही, लेखांक २२७ मुनि कांतिसागर, संपा० जैनधातु प्रतिमालेख, लेखांक २७ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ८९९ ७९० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८. |१४०९ | फाल्गुन | अभयदेवसूरि | आदिनाथ को चिंतामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ११ धातु की प्रतिमा । मंदिर, बीकानेर लेखांक ४२४ गुरुवार का लेख ९. १४३५ | फाल्गुन अभयदेवसूरि के | चंद्रप्रभ की | आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, संपा० सुदि २ पट्टधर धातु की प्रतिमा | मालपुरा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, शुक्रवार आमदेवसूरि का लेख भाग १, लेखांक १६२ १०. १४५३ वैशाख शांतिसूरि | पार्श्वनाथ की चिंतामणि पार्श्वनाथ वही, भाग १, सुदि २ पंचतीर्थी प्रतिमा | जिनालय, लेखांक १७७ का लेख किशनगढ़ ११. १४५६ / माघ वासुपूज्य नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १३ जिनालय, बीकानेर लेखांक १३९० शनिवार Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२. १४५८ फाल्गुन ___ शांतिसूरि सुमतिनाथ की | आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, वदि ११ धातु की प्रतिमा | हीरावाडी, नागौर पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार का लेख लेखांक १८३, एवं पूरनचंद नाहर, संपा०, जैनलेखसंग्रह, भाग-२, लेखांक १२३७ १३. १४८२ यशोदेवसूरि श्रेयांसनाथ की | बावन जिनालय, वही, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | करेड़ा भाग-२ लेखांक १९३१ १४. १४८५ / मार्गशीर्ष शांतिनाथ की | महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि २ प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक १३१७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५. | १४८६ / माघ । यशोदेवसूरि | पार्श्वनाथ की शांतिनाथ विनयसागर, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | जिनालय, रतलाम | पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक २६२ १६. |१४८६ | माघ शांतिनाथ की | महावीर जिनालय, वही, भाग १, सुदि ११ प्रतिमा का लेख | सांगानेर लेखांक २६१ शनिवार १७. १४९३ / माघ हरिभद्रसूरि धातु प्रतिमा पर | विजयगच्छीय वही, भाग १, सुदि... उत्कीर्ण लेख जिनालय, लेखांक २९७ जयपुर १८. | १४९३ | वैशाख यशोदेवसूरि संभवनाथ की | चिंतामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ७६७ सुदि ३ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 886 - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १९. १४९७ | ज्येष्ठ । यशोदेवसूरि | कुन्थुनाथ की चिंतामणिजी का वही, सुदि ३ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ७९५ सोमवार २०. | १५०१ | ज्येष्ठ शांतिसूरि के पट्टधर | धर्मनाथ की सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागर, वदि १२ | यशोदेवसूरि प्रतिमा का लेख | बावन जिनालय, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ४८५ २१. १५०१ | कातिक सुमतिनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, मुनि कांतिसागर, सुदि १५ प्रतिमा का लेख | भिंडी बाजार, पूर्वोक्त, लेखांक ९५ २२. |१५०३ | आषाढ़ संभवनाथ की | महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक १२७६ गुरुवार मातर मुंबई जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास | सुदि Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि १५०३ | तिथिविहीन २३. २४. १५०४ वैशाख सुदि ७ बुधवार 3 आचार्य का नाम यशोदेवसूरि नन्नाचार्य संतानीय शांतिसूरि के पट्टधर यशोदेवसूरि के पट्टधर नन्नसूरि के पट्टधर उद्योतनसूरि... के पट्टधर प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख नमिनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की पाषाण प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान अनुपूर्ति लेख, आबू नाकोड़ा तीर्थ संदर्भ ग्रन्थ मुनि जयंतविजय, संपा० अर्बुद प्राचीनजैनलेख संदोह, लेखांक ६३६ विनयसागर, लेखक श्रीनाकोड़ातीर्थ, लेखांक १९ पल्लीवालगच्छ ७९५ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् २५. १५०७ २६. २७. तिथि फाल्गुन वदि ३ १५०८ | वैशाख वदि २ १५१० | तिथि विहीन आचार्य का नाम शांतिसूरि के पट्टधर यशोदेवसूरि यशोदेवसूरि नन्नसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ सीमंधर स्वामी का विजयधर्मसूरि मंदिर, तालाबवाला संपा० प्राचीन पोल, सूरत लेखसंग्रह, लेखांक२२९ धर्मनाथ जिनालय, विनयसागर, खजवाना पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४३० मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग १, मालपुरा लेखांक ४७० ७९६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् तिथि २८. २९. ३०. ३१. १५१३ १५२८ | वैशाख सुदि ५ १५२८ माघ.... १५२८ माघ वदि ५ आचार्य का नाम यशोदेवसूरि श्री रत्नसूरि यशोदेवसूरि के पट्टधर नन्नसूरि "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, नाकोड़ा संदर्भ ग्रन्थ भाग- २, लेखांक १८८७ कुन्थुनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, राधनपुर संपा० राधनपुर प्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक २५८ घरदेरासर, बडोदरा जैन मंदिर, खंडप, मारवाड बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग-२, | लेखांक २२८ नाहर, पूर्वोक्त, भाग- २, लेखांक २१११ पल्लीवालगच्छ ७९७ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३२. १५३० वैशाख श्रेयांसनाथ की | पार्श्वनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ९ धातु की प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ७२० ३३. | १५३३ | ज्येष्ठ उद्योतनसूरि धर्मनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग १, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | बूंदी लेखांक ७५९ शुक्रवार का लेख ३४. |१५३६ / वैशाख सुविधिनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | नापासर लेखांक २३३३ गुरुवार ३५. | १५३६ वैशाख | नन्नसूरि के पट्टधर | चंद्रप्रभ की | महावीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, उद्योतनसूरि प्रतिमा का लेख | बोहारनटोला, भाग-२ सोमवार लखनऊ लेखांक १५५५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३६. १५३६ आषाढ़ सुदि ६ ३७. ३८. ३९. तिथि शुक्रवार १५३६ आषाढ़ सुदि ९ १५३७ | ज्येष्ठ वदि ४ सोमवार १५४० आषाढ वदि १ आचार्य का नाम अजूण (उद्योतन) सूरि "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की सपरिकर प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान बालावसही, शत्रुंजय संदर्भ ग्रन्थ शत्रुंजयवैभव, लेखांक २१८ स्वामीजी का मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, रोशन मुहल्ला, आगरा आदिनाथ की छत्री के बाहर आले में सपरिकर मूर्ति, नाकोड़ा तीर्थ पार्श्वनाथ देरासर, सरधना भाग- २, लेखांक १४६२ श्रीनाकोड़ातीर्थ, लेखांक ५७ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८२३ पल्लीवालगच्छ ७९९ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०० क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४०. १५५० | फाल्गुन धर्मनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, श्रीनाकोड़ातीर्थ, सुदि ११ पंचतीर्थी प्रतिमा | नाकोड़ा तीर्थ लेखांक ५९ गुरुवार का लेख ४१. १५५१ | पौष नमिनाथ की | विमलनाथ जिना., विनयसागर, सुदि १० प्रतिमा का लेख | सवाई माधोपुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८६३ ४२. १५५६ | पौष शीतलनाथ की | महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १५ प्रतिमा का लेख | डांगों में, बीकानेर लेखांक १५३७ सोमवार ४३. १५५८ चैत्र नन्नसूरि के जिनदत्तसूरि की शत्रुञ्जयवैभव, वदि १३ | पट्टधर उद्योतनसूरि दादावाड़ी, शत्रुजय लेखांक २५८ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ४४. १५५९ आषाढ़ सुदि १० बुधवार ४५. १५६६ ४६. तिथि ४७. माघ वदि २ रविवार १५७५ आषाढ़ वदि ७ रविवार १५८३ | फाल्गुन वदि १ शुक्रवार आचार्य का नाम "" महेश्वरसूरि "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान महावीर जिनालय, सांगानेर वीर जिनालय, बडोदरा महावीर जिनालय, मेड़तासिटी विमलनाथ जिना०, सवाई माधोपुर संदर्भ ग्रन्थ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९०१ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ४४ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९५६ वही, लेखांक ९७३ पल्लीवालगच्छ ८०१ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४८. १५९३ | आषाढ़ पद्मप्रभ की वासुपूज्य जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक १३१५ रविवार ४९. १६२४ | आषाढ आमदेवसूरि श्रेयांसनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, वदि ८ प्रतिमा का लेख | कोचरों में, बीकानेर लेखांक १६२७ ५०. १६६७ | भाद्रपद यशोदेवसूरि | शिलापट्टप्रशस्ति | पार्श्वनाथ जिनालय, | श्रीनाकोड़ातीर्थ, | सुदि ९ के समय, नाकोड़ा लेखांक ९० शुक्रवार सुमतिशेखर (शिलालेख के रचनाकार) ५१. १६७८ | द्वितीय | यशोदेवसूरि के शिलापट्टप्रशस्ति | पार्श्वनाथ जिनालय, वही, आषाढ़ समय उपा० (चौकी मंडप में) | नाकोड़ा लेखांक ९१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख सुदि २ | कनकशेखर के रविवार शिष्य सुमतिशेखर एवं देवशेखर (शिलालेख के रचनाकार) ५२. | १६८१ | माघ । श्री ...शेखरसूरि | शांतिनाथ की | भंडारस्थ प्रतिमा, | वही, सुदि ४ प्रतिमा का लेख शांतिनाथ जिनालय, लेखांक ९२ शनिवार नाकोड़ा ५३. | १६८१ चैत्र यशोदेवसूरि के . शिलालेख, रंगमंडप, वदि ५ | समय हरशेखर के | नाकोड़ा लखाक ९५ पार्श्वनाथ जिनालय, लेखांक ९५ वही, Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख मंगलवार | शिष्य कनकशेखर नाकोड़ा के शिष्य देवशेखर एवं सुमतिशेखर (शिलालेख के रचनाकार) ५४. १६८१ | आषाढ | शिलालेख नाभिमंडप, वही, वदि६ पार्श्वनाथ जिनालय, लेखांक ९७ सोमवार नाकोड़ा तीर्थ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ ८०५ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के आचार्यों का जो पट्टक्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार है. ? महेश्वरसूरि (प्रथम) अभयदेवसूरि T आमसूरि शांतिसूरि यशोदेवसूरि T नन्नसूरि T उद्योतनसूरि (वि०सं० १३४५ - १३६१) (वि०सं० १३८३ - १४०९) (वि०सं० १४३५) (वि० सं० १४५३ - १४५८) (वि०सं० १४७६ - १५१३) (वि० सं० १५२८ - १५३०) (वि० सं० १५३३ - १५६६) महेश्वरसूरि (द्वितीय) (वि०सं० १५७५ - १५९३) अभयदेवसूरि (कोई लेख उपलब्ध नहीं ) 1 आमसूरि (वि०सं० १६२४) (कोई लेख उपलब्ध नहीं) शांतिसूरि I (वि० सं० १६६७ - १६८१) यशोदेवसूरि अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित महेश्वरसूरि 'प्रथम' (वि०सं० १३४५ - १३६१) और कालकाचार्यकथा (वि०सं० १३६५ / ई०स० १३०९ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास की उपलब्ध प्रति) के रचनाकार महेश्वरसूरि को समसामयिकता, नामसाम्य आदि को दृष्टिगत रखते हुए एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक यही बात अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात नन्नसूरि (वि०सं० १५२८-१५३०) और सीमंधरजिनस्तवन (रचनाकाल वि०सं० १५४४-ई० सन् १४८८) के रचनाकार नन्नसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार वि० सं० १५७३/ई०स० १५२४ में विचारसारप्रकरण के रचनाकार महेश्वरसूरि और वि०सं० १५७५-१५९३ के मध्य विभिन्न जिनप्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक महेश्वरसूरि 'द्वितीय' भी एक ही व्यक्ति मालूम पड़ते हैं। जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं, अजितदेवसूरि ने भी अपनी कृतियों में स्वयं को महेश्वरसूरि का शिष्य बताया है, जिन्हें महेश्वरसूरि ‘द्वितीय' से अभिन्न माना जा सकता है। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पल्लीवालगच्छीय मुनिजनों की गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है - महेश्वरसूरि प्रथम (वि०सं० १३४५-१३६१) प्रतिमा लेख कालकाचार्यकथा के रचनाकार अभयदेवसूरि (वि०सं० १३८३-१४०९) प्रतिमा लेख (कालकाचार्यकथा की वि०सं० १३६५/ई०स० १३०९ में लिखी गई प्रति वि०सं०१३७८-ई०स० १३२२ में इन्हें समर्पित की गई) आमसूरि (वि०सं० १४३५) प्रतिमालेख Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ शांतिसूरि | यशोदेवसूरि नन्नसूरि ८०७ (वि०सं० १४५३-१४५८) प्रतिमालेख (वि०सं० १४७६-१५१३) प्रतिमालेख (वि०सं० १५२८-१५३०) प्रतिमालेख (वि०सं० १५४४ में सीमंधर जिनस्तवन के रचनाकार) (वि०सं० १५३३-१५५६) प्रतिमालेख (वि०सं० १५७५-१५९३) प्रतिमालेख (वि०सं० १५७३ में विचारसारप्रकरण के रचनाकार) उद्योतनसूरि महेश्वरसूरि - अजितदेवसूरि (पिंडविशुद्धि- अभयदेवसूरि (साक्ष्यअनुपलब्ध) दीपिका, कल्पसिद्धान्तवीपिका आदि के कर्ता) हीराचंद (चौबोलीचौपाई के आमसूरि (वि०सं० १६२४) कर्ता) | प्रतिमालेख । ---- - शांतिसूरि (साक्ष्य अनुपलब्ध) Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास यशोदेवसूरि (वि०सं० १६६७ -१६८१) प्रतिमालेख जहां तक पल्लीवाल गच्छ की उक्त दोनों पट्टावलियों के विवरणों की प्रामाणिकता का प्रश्न है, उसमें प्रथम पट्टावली का यह कथन कि महेश्वरसूरि की शिष्यसंतति पल्लीवालगच्छीय कहलाई, सत्य के निकट प्रतीत होता है। चूकि इस पट्टावली के अनुसार वि०सं० ११४५ में उनका निधन हुआ, अत: यह निश्चित है कि उक्त तिथि के पूर्व ही यह गच्छ अस्तित्व में आ चुका था। यद्यपि इस पट्टावली में उल्लिखित अनेक बातों का किन्हीं भी अन्य साक्ष्यों से समर्थन नहीं होता, अतः उन्हें स्वीकार कर पाना कठिन है, फिर भी इसमें पल्लीवालगच्छ के उत्पत्ति सम्बन्धी साक्ष्य उपलब्ध होने के कारण इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। ___जहां तक दूसरी पट्टावली की प्रामाणिकता की बात है, इसमें यशोदेव- नन्नसूरि- उद्योतनसूरि- महेश्वरसूरि- अभयदेवसूरि- आमसूरिशांतिसूरि- इन पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति दर्शाई गई है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं, साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से इसका समर्थन होता है। इस प्रकार इस पट्टावली में दिए गए पट्टधर आचार्यों के नाम और उनके पट्टक्रम की प्रामाणिकता प्रायः सिद्ध हो जाती है, किन्तु इसमें ५७वें पट्टधर आमसूरि, ५८वें पट्टधर शांतिसूरि और ५९वें पट्टधर यशोदेवसूरि से संबद्ध तिथियों को छोड़कर प्रायः सभी तिथियां मात्र अनुमान के आधार पर कल्पित होने के कारण अभिलेखीय या अन्य साहित्यिक साक्ष्यों से उनका समर्थन नहीं होता तथापि पल्लीवाल गच्छ से संबद्ध आचार्यों का प्रामाणिक पट्टक्रम प्रस्तुत करने के कारण इसकी महत्ता निर्विवाद है । इस पट्टावली में ४१वें पट्टधर महेश्वरसूरि का निधन वि०सं० ११५० में बतलाया गया है। प्रथम पट्टावली में भी वि०सं० ११४५ में Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्लीवालगच्छ ८०९ महेश्वरसूरि के निधन की बात कही गई है और उन्हें पल्लीवालगच्छ का प्रवर्तक बताया गया है। दोनों पट्टावलियों द्वारा महेश्वरसूरि को समसामयिक सिद्ध करने से यह अनुमान ठीक लगता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रतिष्ठापक रहे होंगे । मुनि कांतिसागर के अनुसार प्रद्योतनसूरि के शिष्य इन्द्रदेव से विक्रम संवत् की १२वीं शती में यह गच्छ अस्तित्व में आया, किन्तु उनके इस कथन का आधार क्या है, ज्ञात नहीं होता । उपकेशगच्छ से निष्पन्न कोरंटगच्छ में हर तीसरे आचार्य का नाम नन्नसूरि मिलता है१३, इससे यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि पल्लीवालगच्छ भी उक्त गच्छों में से किसी एक गच्छ से उद्भूत हुआ होगा । इस गच्छ से संबद्ध १६वीं शती की ग्रन्थ- प्रशस्तियों में इसे कोटिकगण और चंद्रकुल से निष्पन्न बताया गया है, परंतु इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति को देखते हुए इसे चैत्यवासी गच्छ मानना उचित प्रतीत होता है । वस्तुत: यह गच्छ सुविहितमार्गीय था या चैत्यवासी, इसके आदिम आचार्य कौन थे, यह कब और क्यों अस्तित्व में आया साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाते हैं । सन्दर्भसूची २. ३. मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रंथमाला, ग्रन्थांक ५३, मुंबई १९६१ ई०., पृष्ठ ७२-७६. श्री अगरचंद नाहटा, पल्लीवालगच्छपट्टावली । श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई, संपा० श्री आत्मानन्दजी शताब्दी ग्रंथ, मुंबई १९३६ ई०. हिन्दी खण्ड, पृष्ठ १८२ - १९६. उक्त दोनों पट्टावलियां श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने स्वसंपादित जैनगुर्जरकविओ भाग-३, खंड-२, पृष्ठ २२४४ - २२५४ में भी प्रकाशित की हैं. Muni Punyavijaya, Ed. Catalogue of Palm Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandara, Cambay, G.O.S. No. 135, Baroda, 1961, A.D., pp 81-82. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४-५. श्री अगरचंद नाहटा, पल्लीवालगच्छपट्टावली, श्री आत्मानन्दजी शताब्दी ग्रंथ, पृष्ठ १९१. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muni Shree Punya __Vijayji's Collection, Vol. I, L. D. series No. 5, Ahmedabad 1965, A.D. P- 189, No. 3343. श्री आत्मानन्द शताब्दी ग्रंथ, पृष्ठ १९१-१९२. ८. वही, पृष्ठ १९२. ९. वही, पृष्ठ १९४-१९५. १०-११. वही, पृष्ठ १९२. १२. मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, कुशल पुष्प ४, कुशल संस्थान, जयपुर १९९० ई०, पृष्ठ ३७२. १३. द्रष्टव्य इसी पुस्तकके अ-तर्गत कोरंटगच्छ का संक्षिप्त इतिहास Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास श्वेताम्बर परम्परा में समय-समय पर अस्तित्व में आये विभिन्न गच्छों में नागपुरीयतपागच्छ भी एक है। इस गच्छ की पट्टावलियों के अनुसार वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि द्वारा नागौर में उग्र तप करने के कारण वहां के शासक द्वारा उन्हें 'तपा' विरुद् प्रदान किया गया । धीरे-धीरे उनकी शिष्य सन्तति इसी आधार पर नागपुरीयतपागच्छ के नाम से विख्यात् हुई। इस गच्छ में कई विद्वान् और प्रभावशाली मुनिजन हो चुके हैं। इसी गच्छ में वि० सम्वत् की १६वीं शती के अंतिम चरण में हुए आचार्य हेमहंससूरि की परम्परा में हुए आचार्य साधुरत्नसूरि के शिष्य पार्श्वचन्द्रसूरि अपने समय के एक प्रखर विद्वान् और प्रभावशाली जैन आचार्य थे । उनके द्वारा रची गयी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियां मिलती हैं । उनके पश्चात् इनकी शिष्यसंतति इन्हीं के नाम पर पार्श्वचन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई और आज भी इस परम्परा के अनुयायी मुनिजन एवं साध्वियां विद्यमान हैं Į पार्श्वचन्द्रगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये आवश्यक साहित्यिक एवं अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित ग्रन्थों की प्रशस्तियों तथा उनके प्रेरणा से लिखवायी गयी या स्वयं अध्ययनार्थ लिखे गये ग्रन्थों की प्रशस्तियों के साथ-साथ इस गच्छ की तीन पट्टावलियाँ भी मिलती हैं । इन सब के साथ-साथ इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं, जो विक्रम सम्वत् की १८वीं शती से लेकर वि०सं० की २०वीं शती तक के हैं । साम्प्रत निबन्ध में उन सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास करने का एक प्रयास किया गया है । अध्ययन की सुविधा के लिये सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों-ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियों तथा पट्टावलियों और इनके पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है। जैसा की ऊपर कहा जा चुका है आचार्य पार्श्वचन्द्रसूरि अपने समय के विद्वान् और प्रभावक जैन मुनि थे । उनके द्वारा रची गयी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ मिलती हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं : १. आचारांगप्रथमश्रुतस्कन्धबालावबोध २. तंदुलवेचारियपयन्नाबालावबोध ३. प्रश्नव्याकरणसूत्रबालावबोध ४. औपपातिकसूत्रबालावबोध ५. सूत्रकृतांगसूत्रबालावबोध ६. रूपकमाला (रचनाकाल वि०सं० १५८६) ७. साधुवंदना ८. चारित्रमनोरथमाला ९. श्रावकमनोरथमाला १०. संगरंगप्रबन्ध ११. वस्तुपाल तेजपालरास (रचनाकाल वि०सं० १५९७) १२. मुंहपत्तिछत्तीसी १३. केशिप्रदेशीबंध १४. खंधकचरित्र (रचनाकाल वि०सं० १६००) इनके शिष्य समरचन्द्र भी विद्वान् जैनाचार्य थे। अपने गुरु पार्श्वचन्द्रसूरि की स्तुति में इन्होंने पार्श्वचन्द्रसूरिस्तुतिसंझाय की रचना की । इनके द्वारा रचित अन्य कृतियों का विवरण निम्नानुसार है : १. चतुर्विंशतिजिननमस्कार (रचनाकाल वि०सं० १५८८) २. प्रत्याख्यानचतुःसप्ततिका Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ३. पंचविंशतिक्रियासंझाय ४. आवश्यकअक्षरप्रमाणसंझाय ५. शत्रुंजयमंडनपार्श्वनाथस्तवन ६. शांतिनाथजिनस्तवन ७. ब्रह्मचारी ८. उपदेशसाररत्नकोश ९. ऋषभस्तव १०. कल्याणस्तव ११. शंखेश्वरस्तव १२. नेमिस्तव अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में इन्होंने अपने गुरु पार्श्वचन्द्रसूरि का सादर स्मरण किया है । ४ पार्श्वचन्द्रसूरि के दूसरे शिष्य विनयदेवसूरि हुए जिनसे सुधर्मगच्छ अस्तित्व में आया । विनयदेवसूरि के प्रशिष्य मनजी ऋषि ने वि०सं० १६४६ में विनयदेवसूरिरास की रचना की । पार्श्वचन्द्रगच्छ से सम्बद्ध अन्य साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण इस प्रकार है । सम्यकत्त्वकौमुदीरास - वि० सं० १६४२ में रची गयी इस कृति के रचनाकार के रूप में वच्छराज नामक मुनि का उल्लेख मिलता है । मरु- गूर्जर भाषा में रचित उक्त कृति की प्रशस्ति' में रचनाकार ने अपने गच्छ, गुरुपरम्परा, रचनाकाल आदि का सुन्दर विवरण दिया है, जो निम्नानुसार है : पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचन्द्रसूरि ८१३ वाचक रत्नचारित्र रत्नचारित्र ऋषि वच्छराज Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (वि०सं० १६४२ में सम्यकत्त्वकौमुदीरास के रचनाकार) ऋषि वच्छराज द्वारा रचित नीतिशास्त्रपंचाख्यान अपरनाम पंचतंत्रचोपाई (रचनाकाल वि०सं० १६४८) नामक एक अन्य कृति भी प्राप्त होती है। पार्श्वचन्द्रसूरिना ४२ दोहा - पार्श्वचन्द्रगच्छीय जयचन्द्रसूरि द्वारा रचित इस कृति की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है : पार्श्वचन्द्र पट्टोधरण, रामचंद्र गुरु सूर, परेत गुरुने पालीया पंच महाव्रत पूर । समरचंद्र गुरु सारिखा, राजचंद्र तिणरात, खडगधार चारित्र खरो चढे धरा लग बात । गच्छधोरी गाजे गुहिर विमलचंद्र वडवार, पट्टोधरण प्रगटीयो जयचंद्र जगे आधार । जे राजा परजाह जे सहुके नामे शीष, जयचंद आयो जोधपुर पुगी सवहि जगीस। अर्थात् पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचंद्रसूरि विमलचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि (वि०सं० १७वीं शती के तृतीय चरण आस-पास __पार्श्वचन्द्रसूरिना सैंतालिस-दोहा के रचनाकार) इनके द्वारा रचित राजरत्नरास (वि०सं० १६५४), रायचन्द्रसूरिरास आदि कृतियां भी मिलती हैं। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ८१५ आरामशोभाचरित्र के रचनाकार पूंजाऋषि भी इसी गच्छ के थे। अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा एवं रचनाकाल आदि का निर्देश किया है, जो इस प्रकार है : पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि रायचन्द्रसूरि हंसचन्द्रसूरि पूंजाऋषि (वि०सं० १६५२ /ई०स० १५९६ में आरामशोभाचरित्र के रचनाकार) वि०सं० १६६३/ई० सन् १६०७ में रचित अंजनासुन्दरीरास की प्रशस्ति° से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार विमलचारित्र भी इसी गच्छ से सम्बद्ध थे। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो निम्नानुसार है : पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचन्द्रसूरि वाचक रत्नचारित्र विमलचारित्र (वि०सं० १६६३/ई०स० १६०७ में अंजनासुन्दरीरास के रचनाकार) वि०सं० १६६४/ई०स० १६०८ में रची गयी नलदमयन्तीरास के रचनाकार मेघराज ने भी स्वयं को पार्श्वचन्द्रगच्छ के मुनि के रूप में उल्लिखित किया है। इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचंद्रसूरि श्रवणऋषि वाचक मेघराज (वि०सं० १६६४/ई०स० १६०८ में नलदमयन्तीरास के रचनाकार) वाचक मेघराज द्वारा रची गयी सोलहसतीरास, पार्श्वचन्द्रस्तुति, सद्गुरुस्तुति, राजप्रश्नीयउपांगबालावबोध (वि०सं० १६७०), समवायांगसूत्रबालावबोध, उत्तराध्ययनसूत्रबालावबोध, औपपातिकसूत्रबालावबोध, साधुसमाचारी (वि०सं० १६६१), क्षेत्रसमासबालावबोध (वि०सं० १६७०) आदि विभिन्न कृतियां मिलती हैं। जम्बूपृच्छारास (रचनाकाल वि०सं० १७२८/ई०स० १६७२) की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार वीरचन्द्र भी पार्श्वचन्द्रगच्छ से सम्बद्ध थे । इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा निम्नलिखित रूप से बतलायी पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचन्द्रसूरि देवचन्द्र वीरचन्द्र (वि०सं० १७२८/ई०स० १६७२ में जम्बूपृच्छारास के रचनाकार) जयचन्द्रसूरि के एक शिष्य वाचक प्रमोदचंद्र हुए, जिनके द्वारा भी Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ८१७ रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य कर्मचन्द्र द्वारा वि०सं० १७३०(७) में रचित रोहिणीअशोकचंद्र चौपाई नामक कृति प्राप्त होती है, जिसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपने प्रगुरु, गुरु, गुरुभ्राता आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : जयचन्द्रसूरि प्रमोदचन्द्र पद्मचन्द्रसूरि कर्मचन्द्र मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७३०(७) में रोहिणीअशोकचन्द्र चौपाई के रचनाकार) इस गच्छ की पट्टावलियों में भी जयचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में पद्मचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। जयचन्द्रसूरि के एक अन्य शिष्य हीरचंद्र हुए जिनके द्वारा रचित यद्यपि कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके प्रशिष्य लक्ष्मीचंद्र द्वारा रचित गणसारिणी (रचनाकाल वि०सं० १७६०) नामक कृति मिलती है, जिसकी प्रशस्ति५ में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : जयचन्द्रसूरि हीरचंद्रसूरि जगच्चन्द्रसूरि लक्ष्मीचंद्रसूरि (वि०सं० १७६० में गणसारिणी के कर्ता) उक्त साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परंपरा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है: Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रष्टव्य-तालिका क्रमांक - १ पार्श्वचन्द्रसूरि (पार्श्वचन्द्रगच्छ के प्रवर्तक एवं अनेक कृतियों के रचनाकार) विनयदेवसूरि (सुधर्मगच्छ के प्रवर्तक) समरचन्द्रसूरि (अनेक संज्झाय, स्तवन आदि के रचयिता) विनयकीर्तिसूरि राजचन्द्रसूरि रत्नचारित्र मनजीऋषि (वि०सं० १६४६ में विमलचन्द्र हंसचन्द्र देवचन्द्र श्रवणऋषि- विमलचारित्र वच्छराज | विनयदेवसूरिरास सरि (वि०सं० १६५७ में (वि०सं०१६६३ में (वि०सं०१६४२ में । के रचनाकार) वि०सं० ऋषिदत्तारास जना | अंजनासुंदरीरास सम्यकत्त्वकौमुदीरास | के कर्ता) के कर्ता) के कर्ता) जयचन्द्रसूरि पूंजाऋषि वीरचन्द्र मेघराज वि०सं० १६४२ में वि०सं० १७२८में वि०सं० १६६४में आरामशोभाचरित्र जम्बूपृच्छारास नलदमयन्तीरास तथा अन्य के रचनाकार के कर्ता) कृतियों के रचनाकारः जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमोदचन्द्र कर्मचन्द वि०सं० १७३० में (रोहिणी अशोकचन्द्रचौपाई के रचनाकार) हीरचन्द्र जगच्चन्द्र लक्ष्मीचन्द्र (वि० सं० १७६० में गणसारिणी के कर्ता) पार्श्वचन्द्रगच्छ ८१९ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है पार्श्वचन्द्रगच्छ की चार पट्टावलियां आज प्राप्त होती हैं । इनमें से प्रथम पट्टावली१६ वि०सं० की १८वीं शती में रची गयी प्रतीत होती है तथा अन्य तीनों विक्रम सम्वत् की २०वीं शती के अंतिम दशक में । प्रथम पट्टावली का प्रारम्भ सुधर्मा स्वामी से होता है । चूंकि इस गच्छ का उद्भव नागपुरीयतपागच्छ से माना जाता है और नागपुरीयतपागच्छ का बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से । अतः इस पट्टावली में पद्मप्रभसूरि और उनके बाद के जिन पट्टधर आचार्यों का नाम और क्रम मिलता है, वह इस प्रकार है : तालिका - २ पद्मप्रभसूरि (भवुनदीपक के प्रणेता) प्रसन्नचन्द्रसूरि (वि०सं० ११७४ में नागपुरीयतपागच्छ के | प्रवर्तक) गुणसमुद्रसूरि जयशेखरसूरि (वि०सं० १३०१ में आचार्य पद प्राप्त) वज्रसेनसूरि (वि०सं० १३४२ में आचार्य पद प्राप्त) हेमतिलकसूरि (वि०सं० १३९९ में दिल्ली के अधिपति फिरोजशाह तुगलक से भेंट किया) रत्नशेखरसूरि (फिरोजशाह तुगलक के प्रतिबोधक) हेमचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२४ में आचार्य पद प्राप्त) Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ८२१ हेमहंससूरि (वि०सं० १४५३ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित) पंन्यास लक्ष्मीनिवास पंन्यास पुण्यरत्न (सर्वविद्याविशारद, वि०सं० १४९९ में विद्यमान) पंन्यास साधुरत्न पार्श्वचन्द्रसूरि (वि०सं० १५३७ में जन्म, १५४७ में दीक्षा, वि०सं० १५५४ में उपाध्याय पद, वि०सं० १५६५ में क्रियोद्धार, अनेक ग्रन्थों के रचनाकार, वि०सं० १६१२ में स्वर्गस्थ) विनयदेवसूरि समरचन्द्रसूरि (वि०सं० १६०५ में आचार्य पद प्राप्त, वि०सं० १६२६ में स्वर्गस्थ) राजचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि पद्मचन्द्रसूरि (वि०सं० १६८८ में दीक्षा, वि०सं० १७४४ में स्वर्गस्थ) मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७२२ में आचार्य पद, वि०सं० १७४४ में भट्टारक पद, वि०सं० १७५० में निधन) (वि०सं० १७५० में भट्टारक पद प्राप्त) नेमिचन्द्रसूरि Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पार्श्वचन्द्रगच्छ की दूसरी पट्टावली में पद्मप्रभसूरि से लेकर मुनिवृद्धिचन्द्र तक का पट्टक्रम प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है : तालिका - ३ पद्मप्रभसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि गुणसमुद्रसूरि जयशेखरसूरि वज्रसेनसूरि हेमतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि हेमचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि हेमहंससूरि लक्ष्मीनिवाससूरि पुण्यरत्नसूरि पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ जयचन्द्रसूरि पद्मचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि नेमिच T कनकचन्द्रसूरि शिवचन्द्रसूरि T भानुचन्द्रसूरि विवेकचन्द्रसूरि 1 लब्धिचन्द्रसूरि 1 हर्षचन्द्रसूरि मुक्तिचन्द्रसूरि भ्रातृचन्द्रसूरि ८२३ (वि०सं० १९२० में जन्म, वि०सं० १९३५ में दीक्षा, वि०सं० १९३७ में क्रियोद्धार, वि०सं० १९६७ में आचार्य पद, १९७२ में निधन ) सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १९४३ में जन्म, १९५८ में दीक्षा, वि०सं० १९९३ में आचार्य पद, वि०सं० १९९५ में स्वर्गस्थ ) मुनिवृद्धिचन्द्र तृतीय पट्टावली तो गच्छ के प्रवर्तक पार्श्वचन्द्रसूरि से ही प्रारम्भ होती है | इसमें भी सागरचन्द्रसूरि तक का पट्टक्रम प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२४ तालिका ४ पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि I राजचन्द्रसूरि I विवेकचन्द्रसूरि 1 लब्धिचन्द्रसूरि 1 हर्षचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि 1 जयचन्द्रसूरि (वि०सं० १६९९ में स्वर्गस्थ) पद्मचन्द्रसूरि (वि० सं० १७४४ में स्वर्गस्थ ) मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७९७ में स्वर्गस्थ ) कनकचन्द्रसूरि शिवचन्द्रसूरि 1 भानुचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास I (वि० सं० १५७२ में नागपुरीयतपागच्छ से अलग होकर वि०सं० १५७५ में अपना मत प्रकट किया) (वि० सं० १९१३ में स्वर्गस्थ ) हेमचन्द्रसूरि (वि० सं० १९४० में स्वर्गस्थ ) 1 भ्रातृचन्द्रसूरि (वि०सं० १९७२ में स्वर्गस्थ ) 1 सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १९१३ में स्वर्गस्थ ) (वि० सं० १८२३ में स्वर्गस्थ ) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ८२५ चतुर्थ पट्टावली श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई द्वारा संपादित जैनगूर्जर कविओ भाग २ (प्रथम संस्करण) में दी गयी है । इसमें भी आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से लेकर देवचंद्रसूरि तक का अपेक्षाकृत विस्तार से परिचय दिया गया है, जो इस प्रकार है : तालिका - ५ वादिदेवसूरि पद्मप्रभसूरि प्रसन्नचन्द्र (वि०सं० १२३६ में आचार्य पद : वि०सं० १२८६ में स्वर्गस्थ ) गुणसमुद्रसूरि (वि० सं० १३०१ में स्वर्गस्थ ) जयशेखरसूरि (वि० सं० १३०१ में नागौर में आचार्य पद प्राप्त) 1 वज्रसेनसूरि (वि०सं० १९९४ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित, भुवनदीपक नामक ज्योतिषशास्त्र की कृति के रचनाकार वि०सं० १२४० में स्वर्गस्थ ) हेमचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि हेमतिलकसूरि (वि०सं० १३९९ या १४०० में बीलाडा में आचार्य पद प्राप्त) (श्रीपालचरित आदि अनेक कृतियों के कर्ता) (श्रीपालचरित की प्रथमादर्शप्रति के लेखक ) (वि०सं० १४३० में आचार्य पद प्राप्त) (लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, गुरुगुण षट्त्रिंशका आदि के कर्ता) Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास हेमहंससूरि (वि०सं० १४५३ में आचार्य पद प्राप्त) हेमसमुद्र पंन्यासलक्ष्मीनिवास (वि०सं० १४७० में विद्यमान) पंन्यास पुण्यरत्न (वि०सं० १४९९ में विद्यमान) पंन्यास साधुरत्न (वि०सं० १५३७ में आचार्य पद, वि०सं० १५६५ में स्वर्गस्थ) पार्श्वचन्द्रसूरि (वि०सं० १५६५ में आचार्य पद, वि०सं० १५७२ में नागपुरीयतपागच्छ से अलग होकर वि०सं० १५७५ में अपना मत प्रकट किया, वि०सं० १६१२ में स्वर्गस्थ) समरचन्द्रसूरि (वि०सं० १६०५ में आचार्य पद, वि०सं० १६२६ में स्वर्गस्थ) राजचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि (वि०सं० १६९९ में स्वर्गस्थ) Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ देवचन्द्रसूरि I पद्मचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि कनकचन्द्रसूरि शिवचंन्द्रसूरि भानुचन्द्रसूरि विवेकचन्द्रसूरि T लब्धिचन्द्रसूरि 1 हर्षचन्द्रसूरि ८२७ (वि० सं० १७४४ में स्वर्गस्थ ) (वि०सं० १७४४ में आचार्य पद, वि० सं० १७५० में स्वर्गस्थ ) (वि० सं० १७५० में आचार्य पद, वि०सं० १७९० में स्वर्गस्थ) (वि०सं० १९१३ में स्वर्गस्थ) हेमचन्द्रसूरि (वि०सं० १९४० में स्वर्गस्थ ) मुक्तिचन्द्रसूरि (वि०सं० १८२३ में स्वर्गस्थ ) भ्रातृच॑न्द्रसूरि (वि०सं० १९६७ में आचार्यपद वि०सं० १९७२ में स्वर्गस्थ ) सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १९९५ में स्वर्गस्थ ) मुनि वृद्धिचन्द्र Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जैसा कि ऊपर देख चुके हैं प्रथम पट्टावली में पद्मप्रभसूरि के पट्टधर प्रसन्नचन्द्रसूरि द्वारा वि०सं० ११७४ में नागपुरीयतपागच्छ की स्थापना का उल्लेख है। चूंकि नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध ग्रन्थ प्रशस्तियों तथा अन्य सभी पट्टावलियों में समान रूप से पद्मप्रभसूरि को यह श्रेय दिया गया है, अतः उक्त विवरण को पट्टावलीकार की भूल मानी जाये अथवा लेहिया की या ग्रन्थ के सम्पादक की, यह विचारणीय है। चूंकि पार्श्वचन्द्रगच्छ का प्रादुर्भाव नागपुरीयतपागच्छ के मुनि साधुरत्न के शिष्य पार्श्वचन्द्रसूरि से हुआ है और जैसा कि पट्टावलियों में ऊपर हम देख चुके हैं इनमें पार्श्वचन्द्रसूरि और इनकी शिष्य परम्परा में हुए पट्टधर आचार्यों का क्रम एक-दो नामों को छोड़कर प्रायः समान रूप से मिलता है, जिसे एक तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है : तालिका - ६ पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि पद्मचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ हेमचन्द्रसूरि देवचन्द्रसूरि कनकचन्द्रसूरि शिवचन्द्रसूरि I भानुचन्द्रसूरि विवेकचन्द्रसूरि I लब्धिचन्द्रसूरि | हर्षचन्द्रसूरि भ्रातृचन्द्रसूरि मुक्तिचन्द्रसूरि सागरचन्द्रसूरि मुनिवृद्धिचन्द्र २०अ पट्टावलियों के पार्श्वचन्द्रसूरि के केवल एक शिष्य समरचन्द्र का नाम मिलता है, किन्तु ग्रन्थप्रशस्तियों से उनके एक अन्य शिष्य विनयदेवसूरि का भी ज्ञात होता है, जिनसे सुधर्मागच्छ अस्तित्व में आया । इसी प्रकार पट्टावलियों से जहाँ समरचन्द्रसूरि के एक शिष्य राजचन्द्रसूरि का नाम ज्ञात होता है, वहीं ग्रन्थ प्रशस्तियों से उनके दूसरे शिष्य रत्नचारित्र तथा प्रशिष्यों विमलचारित्र और वच्छराज का भी पता चलता है । इनके द्वारा रची गयी विभिन्न कृतियां मिलती हैं। राजचन्द्रसूरि के अन्य शिष्यों हंसचन्द्र, देवचन्द्र, श्रवणऋषि तथा उनके प्रशिष्यों पूंजाऋषि, वीरचन्द्र, मेघराज आदि के नाम ग्रन्थ प्रशस्तियों से ही ज्ञात होते हैं । इसी प्रकार जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं पट्टावलियों में जयचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में पद्मचन्द्रसूरि का नाम मिलता है । ८२९ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इनके द्वारा रचित शालिभद्रचौढालिया ( रचनाकाल वि०सं० १७२१/ ई० सन् १६६५) नामक एक कृति प्राप्त होती है । इनके पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि और मुनिचन्द्रसूरि के नेमिचन्द्रसूरि हुए, जिनकी वि०सं० १७९८ में बीकानेर के श्रीसंघ ने चरणपादुका स्थापित करायी २२ । मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर कनकचन्द्रसूरि हुए जिनका नाम वि०सं० १८३२/ ई० सन् १७७६ में प्रतिलिपि की गयी श्रीपालकथाटब्बा की दाता प्रशस्ति में भी मिलता है । २३ जैसा कि पट्टावलियों में ऊपर हम देख चुके हैं कनकचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में शिवचन्द्रसूरि का नाम मिलता है । इनके द्वारा वि०सं० १८१५ में अपने गुरु कनकचन्द्रसूरि की चरणपादुका स्थापित करायी गयी । २४ संवत् १८१५ वर्षे मासोत्तम श्री फाल्गुनमासे कृष्ण पक्षे षष्टी तिथौ रविवारे श्रीपूज्य श्रीकनकचंद्रसूरिणां पादुका कारापिता च भट्टारक श्रीशिवचंद्रसूरिश्वरैः कनकचंद्रसूरि के एक अन्य शिष्य वक्तचन्द्र हुए जिनके एक शिष्य सागरचन्द्र ने वि० सं० १८८४ में अपने गुरु की चरणपादुका स्थापित करायी। २५ संवत १८८४ मिति जेठ सुदि ६ शुक्रवारे भट्टारक श्री १०८ श्री कनकचंद्रसूरिजी संतानीय पं० श्रीवक्तचंदजीकानां पादुका प्रतिष्ठापिता श्री बीकानेर नगरे | पट्टावलियों में उल्लिखित शिवचन्द्रसूरि के पट्टधर भानुचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर विवेकचंद्रसूरि के बारे में किन्हीं अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । प्रायः यही बात विवेकचन्द्रसूरि के पट्टधर लब्धिचंद्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इनके पट्टधर हर्षचन्द्रसूरि हुए, जो अपने समय के प्रभावशाली आचार्य थे। इनके द्वारा रचित चौबीसजिनपूजा नामक कृति प्राप्त होती है । २६ वि०सं० १९०२ में Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ८३१ इन्होंने अपने गुरु लब्धिचंद्रसूरि की चरणपादुका स्थापित की । ___ संवत् १९०२ शाके १९६७ प्रा मासोत्तमे आषाढ़ मासे कृष्णपक्षे ८ अष्टम्यां तिथौ शुक्रवासरे श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिगच्छाधिराज भट्टारकोत्तम भट्टारक पुरन्दर भट्टाराकाणां श्री १०८ श्री श्री श्री लब्धिचंद्रसूरिश्वराणं पादुके प्रतिष्ठापिता तंच्छिष्य भट्टारकोत्तम भट्टारक श्रीहर्षचन्द्रसूरि जिद्भि श्रीरस्तुतराम्। वि०सं० १९०९ में अन्तरंगकुटुम्बकबीलाचौढालिया के रचनाकार वीरचन्द्र भी हर्षचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और मुनि इन्द्रचन्द्र के शिष्य थे ।२८ जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं पट्टावलियों में हर्षचन्द्रसूरि के दो अलगअलग शिष्यों हेमचन्द्रसूरि और मुक्तिचन्द्रसूरि का नाम मिलता है और इन दोनों मुनिजनों के पट्टधर के रूप में भ्रातृचन्द्रसूरि का । भ्रातृचन्द्रसूरि के दो शिष्य सागरचन्द्र और देवचन्द्र हुए । इनका पट्टावलियों में ऊपर नाम आ चुका है। सागरचन्द्रसूरि के पट्टधर उनके शिष्य मुनि वृद्धिचन्द्र हुए । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पट्टावलियों से जहाँ इस गच्छ के केवल पट्टधर आचार्यों के नाम ज्ञात हो जाते हैं । यह बात सभी गच्छों के इतिहास के अध्ययन के संदर्भ में प्रायः समान रूप से कही जा सकती है । उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की एक विस्तृत तालिका निर्मित की जा सकती है, इस प्रकार है : द्रष्टव्य - तालिका क्रमांक ७ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३२ पार्श्वचन्द्रसूरि (पार्श्वचन्द्रगच्छ के आदिपुरुष) विनयदेवसूरि सागरचन्द्रसूरि विनयकीर्तिसूरि राजचन्द्रसूरि रत्नचारित्र मनजीऋषि विमलचन्द्रसूरि हंसचन्द्र देवचन्द्र श्रवणऋषि विमलचारित्र वच्छराज जयचन्द्रसूरि पूंजाऋषि वीरचन्द्र मेघराज (वि०सं० १७२१ में शालिभद्र चौढालिया के कर्ता)पद्मचन्द्रसूरि प्रमोदचन्द्र हीरचन्द्र मुनिचन्द्रसूरि कर्मचन्द्र जगच्चन्द्र जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (वि०सं० १७९८ में बीकानेर संघ ने इनकी पादुका स्थापित की) नेमिचन्द्रसूरि लक्ष्मीचन्द्र (वि०सं० १७६० में गणसारिणी के कर्ता) कनकचन्द्रसूरि Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (वि० सं० १८८४ में अपने गुरु की पादुका का स्थापक) वक्तचन्द्र सागरचन्द्र शिवचन्द्रसूरि (वि०सं० १८१५ में गुरु की पादुका के प्रतिष्ठापक) भानुचन्द्रसूरि विवेकचन्द्रसूरि लब्धिचन्द्रसूरि हर्षचन्द्रसूरि (वि०सं० १९०२ में गुरु की पादुका के प्रतिष्ठापक) हेमचन्द्रसूरि मुक्तिचन्द्रसूरि मुनि इन्द्रचन्द्र I मुनि वीरचन्द्र (वि०सं० १९०९ में अतरंगकुटुंबचौढालिया के कर्ता) सागरचन्द्रसूरि मुनिवृद्धिचन्द्र भातृचन्द्रसूरि देवचन्द्रसूरि पार्श्वचन्द्रगच्छ ८३३ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ॐ ८३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वर्तमान में इस गच्छ के नायक मुनि मुक्तिचन्द्रजी है। इनकी निश्रा में ८ साधु और ६२ साध्वियाँ हैं, जो राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में विचरण कर रही हैं । संदर्भ : १. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग १, नवीन संस्करण, बम्बई १९८६ ई० पृ०, २८८-३०५. वही, पृ० ३४३-३५०. ३. वही, पृ० ३४३-३५०. ४. वही, पृ० ३२१-३३३. वही, भाग २, पृ० १९२-९३. ६. वही, पृ० १९४-९७. वही, पृ० २९३-९७. ८. वही, पृ० २९३-९७. ९. वही, पृ० २८६-८७. १०. वही, भाग ३, पृ० ८१-८३. ११. वही, पृ० ४-८. १२. वही, पृष्ठ ४-८. १३. वही, भाग ४, पृ० ४२४ १४. वही, पृ० ४२८-३० १५. A. P. Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss : Muniraja Shree Punya Vijayaji's Collection, Vol. III, L.D. ___Series No. 15, Ahmedabad 1968 A.D. No. 6713, p. 429. १६. मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६९ ई०, 'नागपुरीय तपागच्छपट्टावली', पृ० ४८-५२. १७. मुनि कल्याणविजयगणि, संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह, कल्याणविजय शास्त्रसंग्रह समिति, जालोर, १९६६, ई०सं०, पृ० Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ____ ८३५ २२८-२९. १८. वही, पृ० २३०. १९. जैनगूर्जर कविओ, प्रथम संस्करण, भाग २, पृ० ७५७-६४. २०. द्रष्टव्य, सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति A. P. Shah, Ibid, Part II, No. 5974, Pp. 376-77. २०अ. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ४. २१. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृ० ३१०-११. २२. अगरचंद भंवरलाल नाहटा, संपा० बीकानेरजैनलेखसंग्रह, कलकत्ता १९५६ ई०स०, लेखांक २०१६, २०१७. २३. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ६, पृ. ४१५. २४. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २०१३. २५. वही, लेखांक २०१९. २६. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३७२. २७. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २०१२. २८. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ६, पृ० ३५८-५९. २९. बाबू लाल जैन 'उज्जवल' संपा० समग्र जैन चातुर्मास सूची १९९५, बम्बई १९९५ ई०स०, पृष्ठ २८५-८७. Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ धर्म के श्वेताम्बर आम्नाय के अन्तर्गत पूर्वमध्यकाल और मध्यकाल में विभिन्न गच्छों के रूप में अनेक भेद - प्रभेद उत्पन्न हुए । चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) के आचार्य उद्योतनसूरि ने वि०सं० ९९४/ई० सन् ९३८ में अर्बुदगिरि की तलहटी में स्थित धर्माण ( वरमाण) नामक सन्निवेश में वटवृक्ष के नीचे अपने आठ शिष्यों को आचार्य पद प्रदान किया, जिनकी शिष्यसंतति वटवृक्ष के कारण वडगच्छीय कहलायी । इसी गच्छ में विक्रम सम्वत् की १२वीं शती के मध्य में आचार्य सर्वदेवसूरि, उनके शिष्य आचार्य शांतिसूरि और प्रशिष्य विजयसिंहसूरि हुए । पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध उत्तरकालीन साक्ष्यों के अनुसार आचार्य शांतिसूरि ने पीपलवृक्ष के नीचे विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को आचार्य पद दिया, इसप्रकार वडगच्छ की एक शाखा के रूप में पिप्पलगच्छ का उद्भव हुआ । अन्यान्य गच्छों की भाँति पिप्पलगच्छ में भी अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ । विभिन्न साक्ष्यों से इस गच्छ की त्रिभवीयाशाखा और तालध्वजीयाशाखा का पता चलता है । पिप्पलगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के परवर्ती मुनिजनों द्वारा रची गयी कुछ कृतियों की प्रशस्तियों में उल्लिखित गुरु-परम्परा के साथ-साथ इसी गच्छ के धर्मप्रभसूरि नामक मुनि के किसी शिष्य द्वारा रचित पिप्पलगच्छगुर्वावली तथा किसी अज्ञात कवि द्वारा अपभ्रंश भाषा में रचित पिप्पलगच्छगुर्वावलीगुरहमाल Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ ८३७ का उल्लेख किया जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की जा सकती है । ऐसे लेख बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं । ये वि० सं० १२०८ से वि०सं० १७७८ तक के हैं। यहां उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । पिप्पलगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है विक्रम संवत् की पन्द्रहवीं शती के तृतीय चरण के आस-पास इस गच्छ के धर्मप्रभसूरि के किसी शिष्य द्वारा रचित पिप्पलगच्छगुरुस्तुति' या पिप्पलगच्छगुर्वावली | संस्कृत भाषा में १८ श्लोकों में निबद्ध इस कृति में रचनाकार ने पिप्पलगच्छ तथा इसकी त्रिभवीया शाखा के अस्तित्व में आने एवं अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इसप्रकार है : सर्वदेवसूरि | नेमिचन्द्रसूरि महेन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि देवचन्द्रसूरि पद्मचन्दसूरि पूर्णचन्द्रसूरि जयदेवसूरि हेमप्रभसूरि जिनेश्वरसूरि देवभद्रसूरि I धर्मघोषसूरि | शीलभद्रसूरि I I शांतिसूरि Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३८ परिपूर्णदेवसूरि विजयसेनसूरि 1 धर्मदेवसूरि (त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक) जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास I धर्मचन्द्रसूरि 1 धर्मरत्नसूरि धर्मतिलकसूरि धर्मसिंहसूरि | धर्मप्रभसूरि I धर्मप्रभसूरिशिष्य (नाम - अज्ञात) (पिप्पलगच्छगुरुस्तुति के रचनाकार) पिप्पलगच्छीय सागरचन्द्रसूरि ने वि० सं० १४८४ / ई० सन् १४२९ में सिंहासनद्वात्रिंशिका की रचना की । कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने स्वयं को जयतिलकसूरि का शिष्य बतलाया है : . ? जयतिलकसूरि सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४८४ / ई० सन् १४२९ में सिंहासनद्वात्रिंशिका के Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ रचनाकार) पिप्पलगच्छीय हीराणंदसूरि की कई कृतियाँ मिलती हैं, जैसे रचनाकाल वि० सं० १४८४ । रचनाकाल वि०सं० १४८५ । रचनाकाल वि०सं० १४८६ । रचनाकाल वि० सं० १४९४ । रचनाकाल अज्ञात | स्थूलभद्रबारहमास रचनाकाल अज्ञात । अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में उन्होंने अपने को पिप्पलगच्छीय वीरदेवसूरि का प्रशिष्य और वीरप्रभसूरि का शिष्य बतलाया है ' : ? वस्तुपालतेजपालरास विद्याविलासपवाडो कलिकालरास जम्बूस्वामीनुंविवाहलु दर्शाणभद्ररास वीरदेवसूरि T वीरप्रभसूर हीराणंदसूरि (ग्रन्थकार) इसी गच्छ के आनन्दमेरुसूरि ने वि०सं० १५१३ / ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने खुद को गुणरत्नसूरि का शिष्य बतलाया है : ? ८३९ I गुणरत्नसूरि I Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास आनन्दमेरु (वि०सं० १५१३/ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास के रचनाकार) कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार भी यही आनन्दमेरुसूरि माने जाते हैं। पिप्पलगच्छीय नरशेखरसूरि ने वि०सं० १५८४/ई० सन् १५२८ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने खुद को शांति (प्रभ) सूरि का शिष्य बतलाया है : शान्तिप्रभसूरि नरशेखरसूरि (वि०सं० १५८४/ई० सन् १५२८ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास के रचनाकार) २१ श्लोकों की अज्ञातकृतक पिप्पलगच्छगुर्वावली नामक एक रचना भी उपलब्ध हुई है। श्री भंवरलाल नाहटा ने इसे प्रकाशित किया है। इसमें उल्लिखित गुरु-परम्परा इसप्रकार है : शांतिसूरि विजयसिंहसूरि देवभद्रसूरि Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ ८४१ धर्मघोषसूरि शीलभद्रसूरि परिपूर्णदेवसूरि विजयसेनसूरि धर्मदेवसूरि (त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक) धर्मचन्द्रसूरि धर्मतिलकसूरि धर्मसिंहसूरि धर्मप्रभसूरि धर्मशेखरसूरि धर्मसागरसूरि धर्मवल्लभसूरि यही इस गच्छ से सम्बद्ध प्रमुख साहित्यिक साक्ष्य हैं । धर्मप्रभसूरिशिष्यविरचित पिप्पलगच्छगुरुस्तुति और पिप्पलगच्छीय उपरोक्त गुर्वावली में धर्मप्रभसूरि तक पट्टधर आचार्यों की नामावली और Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उनका क्रम समान रूप से मिल जाता है। जैसा कि इन दोनों गुर्वावलियों के विवरण से स्पष्ट होता है ये पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा से सम्बद्ध हैं। अभिलेखीय साक्ष्य यद्यपि पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १२९१/ई० सन् १२३५ का है, किन्तु वि०सं० १४६५/ई० सन् १४०९ के एक प्रतिमालेख से ज्ञात होता है कि इस गच्छ के (पुरातन) आचार्य विजयसिंहसूरि ने वि०सं० १२०८ में डीडिला ग्राम में महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी जिसे वि०सं० १४६५ में वीरप्रभसूरि ने पुनर्स्थापित की।° वर्तमान में यह प्रतिमा कोरटा स्थित एक जिनालय में संरक्षित है । यदि उक्त प्रतिमालेख के विवरण को सत्य मानें तो पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि० सं० १२०८ का माना जा सकता है। इस गच्छ के कुल १७२ लेख मिले हैं जो वि०सं० १७७८ तक के है। इनमें १६वीं शती के लेख सर्वाधिक हैं जब कि १७वीं शती का केवल एक लेख मिला है। इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है : Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण क्रमाङ्कः | सवत् तिथि आचार्य का नाम प्रतिमालेख / प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १२०८ २. १२९१ ३. ४. -- माघ सुदि ५ गुरुवार १३७१ तिथि विहीन १३८० ज्येष्ठ (?) सुदि १० रविवार विजयसिंहसूरि सर्वदेवसूरि विबुधप्रभसूरि धर्मरत्नसूरि महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख युगलजिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अस्पष्ट जैन मंदिर, कोटरा, पूरनचन्द्र नाहर, सिरोही पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९६६ वीर चैत्य, थराद दौलतसिंह लोढा, पूर्वोक्त लेखांक ३४ आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, मांडवीपोल, खंभात चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६३३) नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक २८५ पिप्पलगच्छ ८४३ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ६. ७. ८. १३८३ तिथि माघ वदि ११ बुधवार १३८६ वैशाख वदि १२ १३८९ | ज्येष्ठ वदि २ सोमवार १३९० | वैशाख वदि ११ शनिवार आचार्य का नाम विबुधप्रभसूरि धर्मदेवसूरि पद्मचन्द्रसूरि गुणाकरसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" "" "" "" प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक २९७ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ३११ वही, लेखांक ३३२ वही, लेखांक ३४० ८४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९. १०. ११. १२. १३९६ तिथि १४०४ मिति - विहीन १३...१ ज्येष्ठ वदि ३ गुरुवार वैशाख सुदि १२ १४०६ | फाल्गुन सुदि ११ आचार्य का नाम जिनदत्तसूरि के शिष्य आमदेवसूरि विबुधप्रभसूरि " 17 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख तीर्थङ्कर की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की पंचतीर्थी प्रतिष्ठा स्थान महावीर जिनालय, बडोदरा बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ४७ चिन्तामणिपार्श्वनाथ | वही, भाग-२, लेखांक ८१८ देरासर, चौकसीपोल, संदर्भ ग्रन्थ खंभात चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त जैसलमेर भाग ३, | लेखांक २२६४ मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त चन्द्रप्रभ जिनालय, तंबोलीशेरी, पिप्पलगच्छ ८४५ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख गुरुवार प्रतिमा पर राधनपुर लेखांक ५७ उत्कीर्ण लेख १३. १४१४ | वैशाख... वीरदेवसूरि । | आदिनाथ की धातु जैन देरासर, लींच विजयधर्मसूरि, की प्रतिमा पर पूर्वोक्त, उत्कीर्ण लेख लेखांक ७३ १४. १४१७ | वैशाख उदयानन्दसूरि वासुपूज्य की धातु वासुपूज्यजिनालय, लोढा, पूर्वोक्त, सुदि २ के पट्टधर प्रतिमा पर थराद लेखांक १३ रविवार । गुणदेवसूरि उत्कीर्ण लेख १५. १४१७ | ज्येष्ठ । | पद्मप्रभसूरि पार्श्वनाथ की धातु शांतिनाथजिनालय, |बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० | की प्रतिमा पर शांतिनाथ पोल, पूर्वोक्त, भाग-१, शुक्रवार उत्कीर्ण लेख लेखांक १३३१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास थराद Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १६. | १४२० | वैशाख | वीरदेवसूरि आदिनाथ की सुदि १० प्रतिमा पर शुक्रवार उत्कीर्ण लेख १७. | १४२० गुणसमुद्रसूरि | गूढमण्डप, मुनि जयन्तविजय, पित्तलहर, आबू आबू, भाग-२, लेखांक ४२४ चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्तमंदिर, बीकानेर लेखांक ४४३ विमलनाथ चैत्य, लोढा, पूर्वोक्त, | देसाई शेरी, थराद | लेखांक २४५ १८. | १४२२ | ज्येष्ठ । मुनिप्रभसूरि विमलनाथ की सुदि २ प्रतिमा पर शुक्रवार उत्कीर्ण लेख १९. | १४२४ | वैशाख | धर्मतिलकसूरि | आदिनाथ की वदि ५ धातु की प्रतिमा चिन्तामणिपार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, | जिनालय, पूर्वोक्त, 6087 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 787 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख शनिवार पर उत्कीर्ण लेख | चिन्तामणिशेरी, लेखांक ६६ राधनपुर २०. १४२६ / माघ रत्नप्रभसूरि शांतिनाथ की | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त सुदि... के शिष्य | धातु की प्रितमा | मंदिर, बीकानेर लेखांक ४८१ गुणसमुद्रसूरि | का लेख २१. १४३० । माघ धर्मदेवसूरि आदिनाथ की | वीरचैत्यार्तगत लोढा, पूर्वोक्त - वदि ८ के संतानीय | प्रतिमा पर आदीश्वरचैत्य, लेखांक १०५ सोमवार प्रीतिसूरि उत्कीर्ण लेख थराद २२. १४३१ ज्येष्ठ । राजशेखरसूरि शांतिनाथ की धातु नेमिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ की प्रतिमा पर | मेहतापोल, बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग-२, शुक्रवार उत्कीर्ण लेख लेखांक १७५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पिप्पलगच्छ थराद क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २३. |१४३४ / वैशाख | मुनिप्रभसूरि वीर चैत्य अन्र्तगत लोढा, पूर्वोक्तवदि २ आदीश्वरचैत्य, लेखांक १०२ बुधवार २४. | १४३६ | वैशाख । विजयप्रभसूरि | पार्श्वनाथ की वही, लेखांक ११२ वदि ११ के पट्टधर | प्रतिमा पर मंगलवार - उदयाणंदसूरि उत्कीर्ण लेख २५. १४३७ | वैशाख । धर्मतिलकसूरि वासुपूज्य की धातु पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि६ की प्रतिमा पर | माणेक चौक, पूर्वोक्त, भाग-२, रविवार उत्कीर्ण लेख | खंभात लेखांक ९३१ २६. | १४३७ | वैशाख । जय (धर्म) आदिनाथ की | वीरचैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्त - सुदि ११ तिलकसूरि प्रतिमा पर आदीश्वरचैत्य, लेखांक २०२ सोमवार उत्कीर्ण लेख थराद Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न - क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २७. |१४४० | पौष | उदयानन्दसूरि शांतिनाथ की जैन देरासर, पाटडी विजयधर्मसूरि, सुदि १२ धातु प्रतिमा पर पूर्वोक्त, बुधवार उत्कीर्ण लेख लेखांक ८५ २८. १४४२ | वैशाख सागरचन्द्रसूरि आदिनाथ की वीरचैत्यार्तगत लोढा, पूर्वोक्तवदि १० धातु की प्रतिमा | आदीश्वरचैत्य, लेखांक १६१ रविवार पर उत्कीर्ण लेख | थराद २९. १४४७ / फाल्गुन जय.....सूरि गौड़ी पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, सुदि ९ जिनालय, गौडीजी | पूर्वोक्तसोमवार खड़की राधनपुर लेखांक ८१ ३०. |१४५४ | वैशाख गुप्त (गुण) अजितनाथ की । धर्मनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ११ | समुद्रसूरि के धातु की डभोई पूर्वोक्त, भाग-१, रविवार | पट्टधर शांतिसूरि प्रतिमा पर लेखांक ५३ उत्कीर्ण लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ३१. १४५६ ३२. ३३. १४६१ तिथि १४६१ | ज्येष्ठ ३४. १४६१ माघ सुदि १३ शनिवार सुदि १० शुक्रवार " " आचार्य का नाम राजशेखरसूरि वीरप्रभसूरि " उदयचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख संदर्भ ग्रन्थ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणि पार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्तजिनालय, बीकानेर लेखांक ५७४ पद्मप्रभ की पञ्चतीर्थी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु शान्तिनाथदेरासर, बुद्धिसागरसूरि, अहमदाबाद शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त फैजाबाद भाग- २, लेखांक १६७५ चिन्तामणिपार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्तजिनालय, बीकानेर लेखांक ५९८ पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ११४४ पिप्पलगच्छ ८५१ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाटण क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३५. १४६१ | ,, सागरचन्द्रसूरि वासुपूज्य की शान्तिनाथ देरासर, वही, भाग-१, धातु की प्रतिमा | कनासा पाडो, लेखांक ३६६ का लेख ३६. १४६४ / पौष वीरप्रभसूरि महावीर स्वामी | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्तवदि ११ की धातु की | मंदिर, बीकानेर लेखांक ६११ शुक्रवार प्रतिमा का लेख ३७. १४६९ | माघ लेख वही, सुदि ६ लेखांक ६४३ रविवार ३८. १४६७ चैत्र मुनिचन्द्रसूरि के शांतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि १ पट्टधर | धातुप्रतिमा का | लिंबडी पाडा, पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार __ सोमचन्द्रसूरि लेख पाटण लेखांक २६६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३९. | १४७६ जैन देरासर, लींच | विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ११६ ४०. | १४७८ | वैशाख । कमलचन्द्रसूरि | पार्श्वनाथ की | शंखेश्वर पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सदि १३ | के पट्टधर धातुप्रतिमा | देरासर, वीरमगाम | पूर्वोक्त, भाग-१, सोमवार | प्रभानन्दसूरि । का लेख लेखांक १५०७ ४१. | १४७८ त्रुटित परिकर का | जिनदत्तसूरि | मुनि कान्तिसागर, लेख दादाबाडी, | सम्पा० पालिताना शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक ६३ ४२. | १४८२ / वैशाख सागरचन्द्रसूरि | संभवनाथ की | वीर चैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्तवदि ४ प्रतिमा पर | आदीश्वरचैत्य, लेखांक १६४ गुरुवार उत्कीर्ण लेख | थराद -- - Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ४३. ४४. ४६. तिथि १४८२ तिथि विहीन ४५. १४८४ १४८४ वैशाख वदि ११ रविवार "" १४८४ वैशाख सुदि ८ शुक्रवार आचार्य का नाम वीरप्रभसूरि धर्मशेखरसूरि धर्मसागरसूरि सोमचन्द्रसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख धर्मनाथ की धातु प्रतिमा का उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातुप्रतिमा का उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ वीरचैत्यान्तर्गत आदीश्वर चैत्य, थराद शांतिनाथ देरासर, कनासानो पाडो, पाटण नाहटा, पूर्वोक्त - लेखांक ७२१ चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त जैसलमेर भाग-३ लेखांक ५५४७ लोढा, पूर्वोक्त लेखांक १८६ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ३६४ ८५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४७. | १४८९ | वैशाख शांतिनाथ की वीरचैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि १ प्रतिमा पर आदीश्वरचैत्य, लेखांक १९८ सोमवार उत्कीर्ण लेख थराद ४८. | १४८९ / वैशाख शांतिसूरि के धर्मनाथ की धातु | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ पट्टधर | की चौबीसी शांतिनाथ पोल, पूर्वोक्त- भाग १, बुधवार मुनिशेखरसूरि प्रतिमा पर लेखांक १३१० उत्कीर्ण लेख ४९. | १४८९ / ज्येष्ठ पद्मचन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की धातु | चिन्तामणि पार्श्वनाथ| नाहटा, पूर्वोक्त - वदि... की प्रतिमा का जिनालय, बीकानेर लेखांक ७४१ सोमवार ५०. |१४९१ | फाल्गुन ललितचन्द्रसूरि | संभवनाथ की | राजसी सेठ का विजयधर्मसूरि, वदि २ धातु की प्रतिमा | शांतिनाथ देरासर, । पूर्वोक्त, सोमवार का लेख लेखांक १५४ अहमदाबाद लेख जामनगर Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५१. १४९१ , सोमचन्द्रसूरि वासुपूज्य की पंचायती जैन नाहर, पूर्वोक्त, के पट्टधर प्रतिमा का लेख । मन्दिर, मिर्जापुर भाग-१, उदयदेवसूरि लेखांक ४३० ५२. |१४९५ । माघ संभवनाथ की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, वदि ८ धातु प्रतिमा पर | देरासर, खंभात पूर्वोक्त, भाग-२, | शनिवार उत्कीर्ण लेख लेखांक ५३६ ५३. १४९६ । ज्येष्ठ । वीरप्रभसूरि आदिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्तसुदि ५ धातु प्रतिमा पर | मंदिर, बीकानेर लेखांक ७९० शुक्रवार उत्कीर्ण लेख ५४. १४९६ | फाल्गुन प्रीतिरत्नसूरि कुन्थुनाथ की | वीरचैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्त - वदि ३ प्रतिमा का लेख | आदीश्वर चैत्य, लेखांक १८५ रविवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास थराद Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि ५५. १४.... वैशाख ? ५६. ५७. ५८. सुदि १० बुधवार १४९९ । माघ वदि ९ गुरुवार १५०१ फाल्गुन वदि ७ बुधवार १५०३ | ज्येष्ठ सुदि ११ आचार्य का नाम धर्मशेखरसूरि वीरप्रभसूरि "" वीरप्रभसूरि एवं हीरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख संभवनाथ की धातुप्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की धातुप्रतिमा का लेख महावीर की धातुप्रतिमा का लेख धर्मनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान नवपल्लव पार्श्वनाथ जिनालय, संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त- भाग-२, बोलपीपलो, खंभात लेखांक १०९५ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर "" नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ८०८ वही, लेखांक ८५४ आदिनाथ जिनालय, आबू, भाग-५, वासा लेखांक ५३४ पिप्पलगच्छ ८५७ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५९. १५०३ / मार्गशीर्ष | धर्मशेखरसूरि तीर्थंकर की जैन मंदिर, वणा विजयधर्मसूरि, सुदि ८ धातुप्रतिमा का पूर्वोक्त, शनिवार लेख लेखांक १९१ ६०. १५०३ | माघ । सोमचन्द्रसूरि के सुविधिनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, नाहटा, पूर्वोक्त - वदि ५ पट्टधर | चौबीसी प्रतिमा | भीनासर, बीकानेर लेखांक २१९२ उदयदेवसूरि | का लेख ६१. १५०३ / माघ विजयदेवसूरि | आदिनाथ की शांतिनाथजिनालय, मुनि विशालविजय, धातु की प्रतिमा | खजूरी शेरी, पूर्वोक्त, का लेख राधनपुर लेखांक १३९ ६२. १५०४ | ज्येष्ठ उदयदेवसूरि | वासुपूज्य की | जैन मंदिर, ऊंझा बुद्धिसागरसूरि, धातुप्रतिमा का पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक १८७ सुदि .....? जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सुदि ९ लेख Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् ६३. ६४. ६५. ६६. तिथि १५०५ वैशाख सुदि २ १५०६ शुक्रवार १५०५ पौष सुदि १५ गुरुवार माघ सुदि ५ शनिवार १५०६ माघ सुदि १० शुक्रवार आचार्य का नाम धर्मशेखरसूरि उदयदेवसूरि विजयदेवसूरि चन्द्रप्रभसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद जामनगर संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणिपार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, देरासर, चिन्तामणि पूर्वोक्त, लेखांक १४५ खड़की, राधनपुर आदिनाथजिनालय, विजयधर्मसूरि, वीरचैत्यान्तर्गत आदीश्वरचैत्य, थराद वही, भाग-१, लेखांक ८०८ पूर्वोक्त, लेखांक २१८ लोढ़ा, पूर्वोक्त | लेखांक ७७ पिप्पलगच्छ ८५९ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६७. १५०६ धर्मशेखरसूरि के संभवनाथ की वही, लेखांक १५६ पट्टधर प्रतिमा का लेख विजयदेवसूरि ६८. १५०७ | वैशाख गुणरत्नसूरि वासुपूज्य की | जैन मंदिर, प्रांतिज विजयधर्मसूरि, वदि ४ धातुप्रतिमा का पूर्वोक्त, सोमवार लेख लेखांक २३१ ६९. |१५०८ / चैत्र । सागरचन्द्रसूरि शीतलनाथ की वीरचैत्यान्तर्गत लोढ़ा, पूर्वोक्तसुदि ५ के पट्टधर चौबीसी प्रतिमा | आदीश्वरचैत्य, लेखांक ७४ शुक्रवार शुभचन्द्रसूरि | का लेख ७०. |१५०९ / ज्येष्ठ उदयदेवसूरि संभवनाथ की शांतिनाथ देरासर, विजयधर्मसूरि, वदि ९ धातु की चौबीसी | मांडल पूर्वोक्तशुक्रवार प्रतिमा का लेख लेखांक २५५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास थराद Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ७१. | १५०९ | ज्येष्ठ | गुणरत्नसूरि वीर जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ गीपटी, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, रविवार लेखांक ७०० ७२. | १५०९ | माघ सोमचन्द्रसूरि धर्मनाथ की | पद्मप्रभजिनालय, वही, भाग २, सुदि २ के पट्टधर | धातुप्रतिमा का | दलाल का टेकड़ा, | लेखांक ४३५ गुरुवार उदयदेवसूरि लेख खेड़ा ७३. |१५०९ | माघ । शीतलनाथ की | वासुपूज्य जिनालय, लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि १० धातु की चौबीसी | थराद लेखांक-२२ शनिवार प्रतिमा का लेख ७४. |१५१० | कातिक गुणदेवसूरि धर्मनाथ की | चिन्तामणिपार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्त वदि ४ के पट्टधर धातुप्रतिमा का | जिनालय, बीकानेर | लेखांक ९३९ रविवार चन्द्रप्रभसूरि । लेख Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि ७५. १५१० फाल्गुन वदि ३ ७६. ७७. ७८. शुक्रवार १५११ ज्येष्ठ वदि ९ रविवार १५११ ज्येष्ठ वदि ९ रविवार १५११ "" आचार्य का नाम गुणरत्नसूरि उदयदेवसूरि "" विजयदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख नमिनाथ की प्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की धातुप्रतिमा का लेख अजितनाथ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान लोढण पार्श्वनाथ देरासर, डभोई वीरचैत्यार्न्तगत आदीश्वरचैत्य, थराद संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३७ लोढ़ा, पूर्वोक्त लेखांक ११८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ८६५ अहमदाबाद आदिनाथ जिना० विजयधर्मसूरि, जामनगर पूर्वोक्त, लेखांक २७१ ८६२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ पिप्पलगच्छ वही, लेखांक २६५ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ७९. १५११ माघ सोमचन्द्रसूरि चन्द्रप्रभ की सुदि ५ के पट्टधर धातुप्रतिमा का गुरुवार उदयदेवसूरि लेख ८०. | १५१२ | वैशाख सुमतिनाथ की सुदि ३ धातुप्रतिमा का गुरुवार लेख ८१. १५१२ | वैशाख श्रेयांसनाथ की सुदि..... धातुप्रतिमा का + शांतिनाथदेरासर, बुद्धिसागरसूरि, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ११२६ | नवखंडा पार्श्वनाथ |वही, भाग-२, देरासर, भोयरा लेखांक-८७७ पाडो, खंभात कुंथुनाथ जिना०, नाहटा, पूर्वोक्त - रागड़ी चौक, लेखांक १६९२ बीकानेर लेख ८२. | १५१२ / मार्गशीर्ष | उदयदेवसूरि सुदि ५ गुरुवार कुंथुनाथ की धातुप्रतिमा का लेख Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८३. |१५१२ | फाल्गुन गुणरत्नसूरि आदिनाथ की घर देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ धातुप्रतिमा का | बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग-२, शनिवार लेख लेखांक २४७ ८४. १५१२ | तिथि सुमतिनाथ की | वीर जिनालय, कान्तिसागर, विहीन धातु की चौबीसी | पायधुनी, मुम्बई पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख लेखांक १३३ ८५. १५१३ | वैशाख | रत्नशेखरसूरि शांतिनाथ की राजसीशाह का विजयधर्मसूरि, सुदि ३ धातुप्रतिमा का घरदेरासर, पूर्वोक्त, गुरुवार लेख जामनगर लेखांक २८९ ८६. १५१३ | पौष गुणरत्नसूरि | सुमतिनाथ की | केशरियानाथ का नाहर, पूर्वोक्त, वदि ४ प्रतिमा का लेख | मंदिर मोती चौक, भाग १, जोधपुर लेखांक ६०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८७. | १५१३ | माघ । शांतिसूरि के धर्मनाथ की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १३ पट्टधर धातुप्रतिमा का | झवेरीवाड़ पूर्वोक्त, भाग-१, रविवार गुणरत्नसूरि अहमदाबाद लेखांक ८२१ ८८. |१५१५ | वैशाख चन्द्रप्रभसूरि आदिनाथ की | वीरचैत्यान्तर्गत लोढ़ा, पूर्वोक्त, वदि २ धातु की चौबीसी | आदीश्वर चैत्य, लेखांक ३६ गुरुवार प्रतिमा का लेख | थराद ८९. १५१५ | वैशाख विजयदेवसूरि चन्द्रप्रभ की वही, सुदि १३ के उपदेश से प्रतिमा का लेख लेखांक १४४ रविवार शालिभद्रसूरि ९०. | १५१५ / वैशाख विमलनाथ की पार्श्वनाथ जिना०, कान्तिसागर, सुदि ६ धातुप्रतिमा का पूर्वोक्त, लेख लेखांक १५२ भद्रावती Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | Im क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९१. १५१५ माघ उदयदेवसूरि धर्मनाथ की धातु आदिनाथ जिना०, बुद्धिसागरसूरि, सुदि६ की चौबीसी बडोदरा पूर्वोक्त, भाग-२, गुरुवार प्रतिमा का लेख लेखांक ९८ ९२. १५१५ , नेमिनाथ की वीर जिना० वही, भाग-१, धातु की प्रतिमा | रीची रोड, लेखांक ९४१ का लेख अहमदाबाद ९३. १५१६ । वैशाख सुमतिनाथ की वही, भाग-१, वदि २ धातु की प्रतिमा लेखांक ९२२ गुरुवार का लेख ९४. १५१६ । वैशाख विजयदेवसूरि शांतिनाथ की | पंचायती जैन नाहर, पूर्वोक्त, सुदि २ के पट्टधर | धातु की प्रतिमा | मंदिर, जयपुर भाग-२, शालिभद्रसूरि का लेख लेखांक ११५५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, लेखांक ५५३ २५. १५१६ | आषाढ़ | सोमचन्द्रसूरि | नमिनाथ की वीर चैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्त सुदि १ के पट्टधर । प्रतिमा का लेख | आदीश्वर चैत्य, लेखांक ८३ शुक्रवार उदयदेवसूरि थराद ९६. |१५१७ / चैत्र विजयदेवसूरि | विमलनाथ की । पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त वदि ८ के उपदेश से चौबीसी प्रतिमा | लोद्रवा भाग-३, शुक्रवार शालिभद्रसूरि का लेख लेखांक २५५४ ९७. | १५१७ / वैशाख गुणरत्नसूरि शांतिनाथ की वीर जिनालय, बुद्धिसागर, सुदि ३ के उपदेश से धातु की प्रतिमा | रीचीरोड, पूर्वोक्त भाग-१, सोमवार | गुणसागरसूरि का लेख अहमदाबाद लेखांक ९५८ - - Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९८. |१५१७ |,, सुमतिनाथ की | बड़ा जैन मंदिर, विजयधर्मसूरि, धातु की प्रतिमा | लींबड़ी पूर्वोक्तका लेख लेखांक ३१३ ९९. १५१७ | वैशाख । गुणरत्नसूरि श्रेयांसनाथ वीरचैत्यार्तगत लोढा, पूर्वोक्त, सुदि १३ की धातु की आदिनाथ चैत्य, लेखांक १३० मंगलवार प्रतिमा का लेख | थराद १००. |१५१७ | माघ गुणदेवसूरि धर्मनाथ की जीरावला देरासर, विजयधर्मसूरि, सुदि १० के पट्टधर | धातु की प्रतिमा | घोघा पूर्वोक्तबुधवार चन्द्रप्रभसूरि का लेख लेखांक ३०६ १०१. | १५१७ फाल्गुन | अभयचन्द्रसूरि आदिनाथ जिना०, वही, लेखांक ३०९ सुदि १० शुक्रवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जामनगर Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ सोमवार क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०२. | १५१८ | माघ । उदयदेवसूरि | मुनिसुव्रत की पोसीना पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ के पट्टधर | देरासर, ईडर पूर्वोक्त, भाग-१, रत्नदेवसूरि लेखांक १४७१ १०३. | १५१९ / वैशाख | मुनिसिंहसूरि नमिनाथ की शांतिनाथ देरासर, वही, भाग-१, वदि १० के पट्टधर धातु की प्रतिमा कनासा पाडो लेखांक ३०७ शुक्रवार __ अमरचन्द्रसूरि का लेख १०४. | १५१९ / ज्येष्ठ । विजयदेवसूरि | सुमतिनाथ की संभवनाथ देरासर, विजयधर्मसूरि, वदि ६ के पट्टधर धातुप्रतिमा का | अमरेली पूर्वोक्त, बुधवार | शालिभद्रंसूरि | लेख लेखांक ३४१ १५१९ । मुनिसुन्दरसूरि शीतलनाथ की । वीरचैत्यान्तर्गत लोढ़ा, पूर्वोक्त, वदि २ के पट्टधर | धातु की चौबीसी आदिनाथ चैत्य, लेखांक ३५ शनिवार अमरचन्द्रसूरि प्रतिमा का लेख | थराद पाटण माघ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७० क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०६. १५२० । वैशाख उदयदेवसूरि नमिनाथ की नवखंडापार्श्वनाथ विजयधर्मसूरि, सुदि ५ के पट्टधर धातुप्रतिमा देरासर, घोघा पूर्वोक्त, गुरुवार रत्नदेवसूरि | का लेख लेखांक ३५१ १०७. १५२२ | माघ श्रेयांसनाथ की | बावन जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १३ धातुप्रतिमा पेथापुर पूर्वोक्त, भाग-१, बुधवार का लेख लेखांक ६९१ १०८. |१५२३ | माघ गुणदेवसूरि | कुंथुनाथ की आदिनाथ जिना०, विजयधर्मसूरि, वदि १० के पट्टधर | धातु की प्रतिमा पूर्वोक्त, गुरुवार चन्द्रप्रभसूरि | का लेख लेखांक ३६९ १०९. | १५२३ | वैशाख धर्मसागरसूरि कुंथुनाथ की | आदिनाथ जिनालय, कान्तिसागर, सुदि ९ धातुप्रतिमा का | भायखला, मुम्बई पूर्वोक्त, लेख लेखांक १९२ जामनगर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि १५२४ | वैशाख ११०. १११. १५२४ ११२. ११३. वदि २ सोमवार "" १५२४ वैशाख सुदि ३ सोमवार १५२४ |तिथि विहीन आचार्य का नाम उदयदेवसूरि के पट्टधर रत्नदेवसूरि गुणरत्नसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि उदयदेवसूरि के पट्टधर रत्नदेवसूरि "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख अभिनन्दननाथ की धातु की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की धातुप्रतिमा का लेख धर्मनाथ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान नवखंडा पार्श्वनाथ देरासर, घोघा वही वीर चैत्यार्न्तगत आदीश्वरचैत्य, संदर्भ ग्रन्थ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ३८२ वही, लेखांक ३८३ लोढ़ा, पूर्वोक्त लेखांक १४५ थराद संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, कड़ी पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ७३३ पिप्पलगच्छ ८७१ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 267 वढवाण पूर्वोक्त, लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११४. १५२५ । पौष आदिनाथ की जैन देरासर, |विजयधर्मसूरि, वदि २ धातुप्रतिमा का मंगलवार लेखांक ३८९ ११५. १५२५ माघ गुणरत्नसूरि | नमिनाथ की चन्द्रप्रभ जिना० बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ के पट्टधर धातु की प्रतिमा | सुल्तानपुरा, पूर्वोक्त, भाग-२, गुरुवार गुणसागरसूरि का लेख बड़ोदरा लेखांक २०० ११६. १५२५ फाल्गुन गुणरत्नसूरि चिन्तामणि पार्श्वनाथ वही, भाग-२, सुदि ९ धातु की प्रतिमा | जिना०, भरुच लेखांक ५५९ शुक्रवार का लेख ११७. १५२६ | कातिक अमरचन्द्रसूरि धर्मनाथ की चन्द्रप्रभ जिना०, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग - ३, मंगलवार लेखांक २७६५ -- जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | क्रमाङ्क संवत् तिथि ११८. ११९. १२०. १२१. १५२७ "" १५२७ पौष १५२७ वदि ४ गुरुवार १५२७ पौष वदि ५ गुरुवार माघ सुदि १३ रविवार आचार्य का नाम " विजयदेवसूरि के शिष्य शालिभद्रसूरि उदयदेवसूरि के पट्टधर रत्नदेवसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख "" सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की धातुप्रतिमा का लेख धर्मनाथ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शीतलनाथ जिना०, जैसलमेर वीर चैत्यान्तर्गत आदिनाथ चैत्य, थराद संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद दादा पार्श्वनाथ जिना० नरसिंहजी की पोल, बडोदरा संदर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग-३, लेखांक २३९३ लोढ़ा, पूर्वोक्त, | लेखांक १३४ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ८३१ वही, भाग-२, लेखांक १२१ पिप्पलगच्छ ८७३ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 807 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२२. १५२८ | वैशाख गुणरत्नसूरि | चन्द्रप्रभ की चन्द्रप्रभ देरासर, विजयधर्मसूरि, वदि... के पट्टधर | धातु की चौबीसी | घोघा पूर्वोक्त, सोमवार गुणसागरसूरि प्रतिमा का लेख लेखांक ४१६ १२३. |१५२८ | वैशाख विजयदेवसूरि कुंथुनाथ की वर्धमानशाह का वही, सुदि ३ के पट्टधर धातुप्रतिमा का शांतिनाथ देरासर, लेखांक ४१५ शनिवार शालिभद्रसूरि लेख जामनगर १२४. | १५२८ । वैशाख गुणरत्नसूरि सुविधिनाथ की शांतिनाथ जिना०, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १२ के पट्टधर धातु की प्रतिमा | माणेकचौक, पूर्वोक्त, भाग-२, सोमवार गुणसागरसूरि का लेख खंभात लेखांक ९८७ १२५. |१५२८ | माघ उदयदेवसूरि | शांतिनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ६ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | जैसलमेर |भाग ३, शुक्रवार रत्नदेवसूरि लेखांक २३५० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि १२६. १५२९ आषाढ़ सुदि ५ गुरुवार माघ सुदि ५ रविवार १५३० वैशाख वदि ५ १२७. १२८. १५२९ बुधवार १२९. १५३० कार्तिक सुदि १२ सोमवार आचार्य का नाम गुणसागरसूरि अमरचन्द्रसूरि के उपदेश से सर्वदेवसूरि विजयदेवसूरि मुनिसिंहसूरि के पट्टधर अमरचन्द्रसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की धातु प्रतिमा का लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिना०, दीयाणा स्तम्भन पार्श्वनाथ जिना०, खारवाडो, खंभात शांतिनाथ जिना०, भानीपोल, राधनपुर वीरचैत्यान्तर्गत आदिनाथचैत्य, थराद संदर्भ ग्रन्थ आबू, भाग-५, लेखांक ४९३ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक १०५१ विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २३० लोढ़ा, पूर्वोक्त लेखांक ९० पिप्पलगच्छ ८७५ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३०. | १५३० । पौष गुणदेवसूरि | विमलनाथ की पार्श्वनाथ जिना०, नाहर, पूर्वोक्त वदि ६ __ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | श्रीमालों का मुहल्ला, भाग-२, रविवार चन्द्रप्रभसूरि जयपुर लेखांक १२२२ १३१. १५३१ | वैशाख | शालिभद्रसूरि संभवनाथ की। | गौड़ीपार्श्वनाथ शत्रुञ्जयवैभव, सुदि १३ प्रतिमा का लेख जिनालय, लेखांक २०८ सोमवार पालिताना १३२. १५३१ | वैशाख संभवनाथ की | शांतिनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ८ धातुप्रतिमा का | ॐझा पूर्वोक्त-भाग-१, सोमवार लेख लेखांक २३८ १३३. |१५३१ | माघ धर्मसागरसूरि विमलनाथ की । | शांतिनाथ जिना०, वही, भाग-२, सुदि १० धातुप्रतिमा चौकसीपोल, लेखांक ८४६ सोमवार का लेख खंभात जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १३४. १५३२ १३५. १३६. १३७. चैत्र सुदि ४ शुक्रवार माघ सुदि १३ शुक्रवार १५३४ | फाल्गुन सुदि ९ बुधवार १५३४ ज्येष्ठ तिथि १५३४ वदि १ शनिवार आचार्य का नाम चन्द्रप्रभसूरि शालि (भद्र) सूरि धर्मसुन्दरसूरि के पट्टधर धर्मसागरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शीतलनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख नमिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा का लेख विमलनाथ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन देरासर, घोघा विजयधर्मसूरि पूर्वोक्त, लेखांक ४४३ शांतिनाथ देरासर, भिडीबाजार, मुम्बई शामला पार्श्वनाथ जिनालय, बंबा वाली शेरी, राधनपुर संदर्भ ग्रन्थ संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक २३० मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त लेखांक २८६ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ८३६ पिप्पलगच्छ ८७७ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७८ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३८. | १५३६ / मार्गशिर मुनिसिंधु(सिंह)सूरि | शांतिनाथ की सुमतिनाथ जिना०, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ६ | के पट्टधर धातु प्रतिमा अजीमगंज, भाग-१, शुक्रवार अमरचन्द्रसूरि का लेख मुर्शिदाबाद लेखांक ६ १३९. |१५३६ | माघ सोमचन्द्रसूरि आदिनाथ की शांतिनाथ जिना० मुनि विशालविजय, सुदि ५ के पट्टधर | धातु की प्रतिमा खजूरी शेरी, पूर्वोक्त, रविवार | उदयदेवसूरि का लेख राधनपुर लेखाङ्क २९७ १४०. | १५३६ / वैशाख शालिप्रभसूरि जैन मंदिर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ३ डभोई पूर्वोक्त, भाग-१, गुरुवार लेखांक ३० १४१. |१५३७ माघ अमरचन्द्रसूरि | नमिनाथ की | वीर जिनालय, विनयसागर, सुदि २ धातु की प्रतिमा | सांगानेर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख लेखांक ८१३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४२. | १५४२ / कार्तिक | पद्माणंदसूरि संभवनाथ की | संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि २ धातु की प्रतिमा | झवेरीवाड़, पूर्वोक्त-भाग-१, बुधवार का लेख लेखांक ८५६ १४३. १५४५ | पौष....५ पार्श्वनाथ की | बालावसही, शत्रुञ्जयवैभव, प्रतिमा का लेख | शत्रुजय लेखांक २३४ ब १४४. | १५४६ | मार्गशीर्ष गुणसागरसूरि धर्मनाथ की धातु | नेमिनाथ जिना०, विशालविजय, सुदि ६ की प्रतिमा का | गेलासेठ की शेरी, पूर्वोक्तशुक्रवार लेख राधनपुर लेखांक ३०५ १४५. १५४७ माघ श्रीसूरि तीर्थंकर की धातु | अजितनाथ जिना० बुद्धिसागरसूरि, सुदि १२ प्रतिमा का लेख | शेखनो पाडो, पूर्वोक्त-भाग-१, अहमदाबाद लेखांक १००६ - । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८० क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४६. | १५४८ वैशाख | रत्नदेवसूरि के | मुनिसुव्रत की चन्द्रप्रभ जिना० । बुद्धिसागरसूरि, वदि १० । के पट्टधर | धातु की प्रतिमा | खंभात पूर्वोक्त, भाग-२, रविवार __पद्माणंदसूरि का लेख लेखांक ८९५ १४७. १५४८ ,, शीतलनाथ की | वीरचैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्तप्रतिमा का लेख | आदिनाथ चैत्य, लेखांक १३१ थराद १४८. | १५५२ | ज्येष्ठ । देवप्रभसूरि | आदिनाथ की | आदिनाथ जिना०, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १३ धातु की प्रतिमा । परा, खेड़ा पूर्वोक्त, भाग-२, बुधवार का लेख लेखांक ४१३ १४९. १५५३ | वैशाख पद्माणंदसूरि सुमतिनाथ की वीरचैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्तसुदि १३ प्रतिमा का लेख | आदिनाथ चैत्य, लेखांक ६८ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास थराद Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५०. | १५५३ | माघ । धर्मवल्लभसूरि नमिनाथ की धातु | अमीझरा पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि, सुदि १२ की चौबीसी | देरासर, पूर्वोक्त-भाग-२, शनिवार प्रतिमा का लेख | जीरारपाडो, खंभात लेखांक ७७५ १५१. | १५५३ शीतलनाथ की सीमंधरस्वामी वही, भाग-२, धातुप्रतिमा का जिना०, खारवोडा, | लेखांक १०६५ लेख खंभात १५२. | १५५४ | वैशाख । वीरप्रभसूरि आचार्य की वीर जिनालय, आबू, भाग-५, सुदि १२ प्रतिमा पर अजारी लेखांक ४३२ रविवार उत्कीर्ण लेख १५३. | १५५४ | फाल्गुन गुणसागरसूरि शीतलनाथ की | शंखेश्वर पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ के पट्टधर धातु की प्रतिमा देरासर, भरुच पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार | शांतिप्रभसूरि का लेख लेखांक ३४० Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि १५५५ कार्तिक वदि २ बुधवार १५५६ | वैशाख सुदि ११ १५४. १५५. १५६. १५५७ १५७. १५६३ शुक्रवार फाल्गुन सुदि २ शुक्रवार माघ सुदि १५ आचार्य का नाम रत्नसागरसूरि के पट्टधर देवचन्द्रसूरि सर्वसूरि पद्माणंदसूरि देवप्रभसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुविधिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख शीतलनाथ की धातुप्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, जिना०, राधनपुर पूर्वोक्त, लेखांक ३१८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ८५८ मुनिसुव्रत जिना०, अलिंग, खंभात संदर्भ ग्रन्थ वीर जिनालय, रीचीरोड, अहमदाबाद चिन्तामणि जीका मंदिर, बीकानेर वही, भाग-१, लेखांक ९२० नाहटा, पूर्वोक्त - लेखांक ११३१ ८८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ गुणप्रभसूरि - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५८. १५६६ पौष । पद्माणंदसूरि कुंथुनाथ की आदिनाथ जिना०, बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ - के पट्टधर धातु की चौबीसी | बीजापुर पूर्वोक्त, भाग-१, सोमवार | विनयसागरसूरि | का लेख लेखांक ४४४ १५९. | १५६६ / तिथि पार्श्वनाथ की पार्श्वनाथ जिना०, नाहटा, पूर्वोक्त - विहीन प्रतिमा का लेख | सूरतगढ़, बीकानेर | लेखांक २५२३ १६०. १५७३ फाल्गुन । विनयसागरसूरि वासुपूज्य की पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागर, सुदि ८ धातु की प्रतिमा | देवसा पाडो, पूर्वोक्त-भाग-१, सोमवार का लेख अहमदाबाद लेखांक १०५४ १६१. | १५७६ / वैशाख आदिनाथ की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ वही, भाग१, सुदि ६ धातु की प्रतिमा । देरासर, बीजापुर लेखांक ४३० सोमवार का लेख Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १६२. १६३. १६४. १६५. तिथि १५७९ वैशाख सुदि ५ सोमवार १५७९ वैशाख सुदि ५ सोमवार १५८० वैशाख सुदि ५ शनिवार १६१७ पौष सुदि १३ सोमवार आचार्य का नाम धर्मवल्लभसूरि के पट्टधर धर्मविमलसूरि श्रीसूरि धर्मविमलसूरि उदयरत्नसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख श्रेयोसनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा का लेख " प्रतिष्ठा स्थान धर्मनाथ जिना०, राधनपुर पार्श्वनाथ देरासर, लाडोल वीर जिनालय, नांदिया शांतिनाथ देरासर, कनासा पाडो, खंभात संदर्भ ग्रन्थ मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३३७ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४५२ आबू, भाग-५, लेखांक ४६५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २९७ ८८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १६६. १६४६ | मार्गशीर्ष | गुणसागरसूरि . शीतलनाथ की। शीतलनाथ जिना० नाहर, पूर्वोक्त, सुदि... | के पट्टधर की चौबीसी | जैसलमेर भाग ३, | शुक्रवार | शांतिसूरि प्रतिमा का लेख लेखांक २४३१ १६७. १७७८ धर्मप्रभसूरि सुमतिनाथ की | प्रेमचन्द मोदी वही, भाग १, प्रतिमा का लेख | की टोंक, लेखांक ६९५ शत्रुजय Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ? धर्मशेखरसूरि 1 विजयदेवसूरि | शालिभद्रसूरि ? शांतिसूरि | गुणरत्नसूरि I गुणसागरसूरि | शांतिप्रभसूरि ? मुनिसिंहसूरि I (वि० सं० १४८४ - १५०६) प्रतिमालेख (वि०सं० १५०३ - १५३०) प्रतिमालेख (वि०सं० १५१५-१५३४) प्रतिमालेख (वि०सं० १५०७ - १५१७) प्रतिमालेख (वि० सं० १५१७ - १५४६) प्रतिमालेख (वि० सं० १५५४) प्रतिमालेख Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ ८८७ अमरचन्द्रसूरि । (वि०सं० १५१९-१५३६) प्रतिमालेख सर्वदेवसूरि (वि०सं० १५२९) प्रतिमालेख घोघा स्थित नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय के निकट भूमिगृह से प्राप्त २४० धातु प्रतिमाओं में से ६ प्रतिमाओं पर पिप्पलगच्छीय मुनिजनों के नाम उत्कीर्ण है। इन प्रतिमाओं पर ई० सन् १३१५, १४४७, १४४९, १४५० और १४५७ के लेख खुदे हुए हैं । चूकि ढांकी ने अपने उक्त निबन्ध में प्रतिमालेखों का मूल पाठ नहीं दिया है अतः इन लेखों में आये आचार्यों के नाम आदि के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। जैसा कि प्रारम्भ में कहा चुका है इस गच्छ की दो शाखाओंत्रिभवीया और तालध्वजीया - का पता चलता है। प्रथम शाखा से सम्बद्ध पिप्पलगच्छगुरुस्तुति और पिप्पलगच्छ गुर्वावली का पूर्व में उल्लेख आ चुका है। इसके अनुसार धर्मदेवसूरि ने गोहिलवाड़ (वर्तमान गुहिलवाड़, अमरेली, जिला भावनगर, सौराष्ट्र) के राजा सारंगदेव को उसके तीन भव बतलाये इससे उनकी शिष्यसन्तति त्रिभवीया कहलायी । यह सारंगदेव कोई स्थानीय राजा रहा होगा। पिप्पलगच्छीय प्रतिमालेखों की पूर्वप्रदर्शित लम्बी सूची में किन्ही धर्मदेवसूरि द्वारा वि०सं० १३८३ में प्रतिष्ठापित एक जिन प्रतिमा का उल्लेख आ चुका है। चूंकि उक्त गुरुस्तुति में रचनाकार ने अपने गुरु धर्मप्रभसूरि को त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक धर्मदेवसूरि से ५ पीढ़ी बाद का बतलाया है, साथ ही पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की पूर्वप्रदर्शित तालिका में भी धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १४७१-१४७६) का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है। इसप्रकार अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित धर्मदेवसूरि Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास और धर्मप्रभसूरि के बीच लगभग १०० वर्षों का अन्तर है और इस अवधि मे पाँच पट्टधर आचार्यों का पट्टपरिवर्तन असम्भव नहीं, अतः समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर वि० सं० १३८६ / ई० सन् १३३० में प्रतिमाप्रतिष्ठापक पिप्पलगच्छीय धर्मदेवसूरि और इस गच्छ के त्रिभवीया शाखा के प्रवर्तक धर्मदेवसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। ठीक यही बात पिप्पलगच्छगुरुस्तुति के रचनाकार के गुरु धर्मप्रभसूरि और पिप्पलगच्छीय धर्मप्रभसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। ८८८ - ४८ ऐसे भी प्रतिमालेख मिलते हैं जिनपर स्पष्ट रूप से पिप्पलगच्छ त्रिभवीयाशाखा का उल्लेख है । इनका विवरण निम्नानुसार है : Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि २. ३. ४. १४१३ | ज्येष्ठ वदि २ १४७१ शुक्रवार माघ सुदि ३ १४७६ | तिथि विहीन १४८२ वैशाख वदि ४ बुधवार आचार्य का नाम धर्मसंवरसूरि के पट्टधर धर्मसागरसूरि धर्मप्रभसूरि धर्मप्रभसूरि के पट्टधर धर्मशेखरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ देरासर, लिबडीपाड़ा, पाटण वीरचैत्यान्तर्गत आदिनाथ चैत्य, थराद चन्द्रप्रभ जिनालय, केकड़ी वीरचैत्यार्न्तगत आदिनाथ चैत्य, थराद संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक २८८ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक १५२ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क २१७ लोढ़ा, पूर्वोक्तलेखांक ६० पिप्पलगच्छ ८८९ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ६. ७. ८. तिथि १४८४ | वैशाख सुदि ८ शुक्रवार माघ सुदि १० शनिवार १४८५ १४८७ | माघ सुदि १० शनिवार १४८८ | ज्येष्ठ सुदि ३ सोमवार आचार्य का नाम धर्मप्रभसूरि के पट्टधर धर्मशेखरसूरि " धर्मशेखरसूरि के पट्टधर देवचन्द्रसूरि धर्मशेखरसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख "" देवकुलिका के स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान शामलापार्श्वनाथ मुनि विशालविजय जिनालय, बंबावाली पूर्वोक्त, शेरी, राधनपुर लेखांक १०९ विमलनाथ चैत्य, लोढ़ा, पूर्वोक्त देसाई शेरी, थराद लेखांक २३० जीरावलातीर्थ, चैत्यदेवकुलिका, थराद वीरचैत्यान्तर्गत आदिनाथ चैत्य, संदर्भ ग्रन्थ विमलनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण थराद लेख वही, लेखांक ३१६ वही, लेखांक ५८ ८९० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Beliwny जामनगर । श्रावण क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९. १४८९ | ज्येष्ठ शांतिनाथ की आदिनाथ जिना०, विजयधर्मसूरि, सुदि १२ धातुप्रतिमा का पूर्वोक्तशनिवार लेख लेखांक १४६ १०. |१४९४ शांतिनाथ की वीरचैत्यान्तर्गत लोढ़ा, पूर्वोक्तवदि ९ पंचतीथीं प्रतिमा आदिनाथचैत्य, लेखांक १९६ शनिवार का लेख ११. १४९७ | वैशाख आदिनाथ की जैन देरासर, विजयधर्मसूरि, वदि ५ धातु की प्रतिमा कनासानो पाडो, पूर्वोक्तबुधवार का लेख लेखांक १७२ १२. |१४९९ | कातिक लोढा, पूर्वोक्त, सुदि १५ लेखांक ५० गुरुवार थराद पाटण Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३. १४९९ ,, शांतिनाथ की वीर चैत्य के वही, धातु की प्रतिमा | अन्तर्गत आदिनाथ | लेखांक ७८ का लेख चैत्य, थराद १४. १४९९ , संभवनाथ की वही, धातु की प्रतिमा लेखांक १३२ का लेख १५. १४९९ ,, शांतिनाथ की वही, धातु की प्रतिमा लेखांक १९० का लेख १६. १४९९ । ,, शीतलनाथ की | विमलनाथ चैत्य, वही, लेखांक २३८ प्रतिमा का लेख | देसाई शेरी, थराद जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् १७. १८. १९. २०. तिथि १५०१ | वैशाख सुदि १३ शनिवार १५०३ | माघ वदि ३ १५०३ | माघ वदि ३ १५०५ | वैशाख सुदि ३ शुक्रवार आचार्य का नाम धर्मसुन्दरसूरि धर्मशेखरसूरि "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा का लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ वासुपूज्य देरासर, विजयधर्मसूरि, जामनगर पूर्वोक्त, लेखांक १८५ आदिनाथ देरासर, वही, जामनगर जैन देरासर, कोलीयाक (कठियावाड़) | लेखांक १९४ शांतिनाथ देरासर, वही, जामनगर लेखांक १९४ वही, लेखांक २१० पिप्पलगच्छ ८९३ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९४ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २१. १५०६ | वैशाख श्रेयांसनाथ की वीरचैत्यान्तर्गत- लोढा, पूर्वोक्तसुदि ८ धातु की प्रतिमा | आदिनाथ चैत्य, लेखांक ४३ रविवार पर उत्कीर्ण लेख | थराद २२. १५०६ वही, लेखांक ४६ २३. १५०६ । वैशाख चन्द्रप्रभ स्वामी | विमलनाथ चैत्य, वही, सुदि ८ की धातु की | देसाई शेरी, थराद लेखांक २२८ रविवार चौबीसी प्रतिमा का लेख २४. १५०६ | माघ सुविधिनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | जिनालय, पूर्वोक्त, शुक्रवार का लेख . चिन्तामणि शेरी, लेखांक १४९ राधनपुर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् २५. २६. २७. २८. तिथि १५०६ | वैशाख सुदि ११ सोमवार १५०९ चैत्र १५१० वदि ... १५१० कार्तिक वदि ४ रविवार माघ सुदि ५ रविवार आचार्य का नाम चन्द्रप्रभसूरि धर्मशेखरसूरि क्षेमशेखरसूरि धर्मशेखरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान विमलनाथ चैत्य, देसाई शेरी, थराद शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की धातु धर्मनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय मडार की पंचती थीं प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, वीरचैत्यान्तर्गत आदिनाथ चैत्य थराद संदर्भ ग्रन्थ "" लोढ़ा, पूर्वोक्त लेखांक २४८ आबू-भाग-५, लेखांक ८३ लोढ़ा, पूर्वोक्तलेखांक ८१ वही, लेखांक ४२ पिप्पलगच्छ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि २९. ३०. ३१. ३२. १५१० पौष |(१५१७) वदि ६ (?) गुरुवार १५११ माघ सुदि ५ गुरुवार १५१३ चैत्र वदि ६ शुक्रवार १५१५ वैशाख सुदि १३ रविवार आचार्य का नाम धर्मसागरसूरि धर्मशेखरसूरि के पट्टधर धर्मसुन्दरसूरि धर्मसुन्दरसूरि के पट्टधर धर्मसागरसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की धातुप्रतिमा का लेख वासूपज्य की धातुप्रतिमा का लेख अभिनन्दनस्वामी की धातु की प्रतिमा का लेख "" " प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ वीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर वही, लेखांक ५९ वही, लेखांक ८६ पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९१६ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक १२०८ ८९६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३३. ३४. ३५. ३६. तिथि १५१५ माघ सुदि ६ बुधवार १५१६ चैत्र वदि ५ गुरुवार १५१७ पौष वदि ५ गुरुवार १५१७ | पौष वदि ७ गुरुवार (?) आचार्य का नाम धर्मसागरसूरि "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य की धातु प्रतिमा का लेख विमलनाथ की धातु प्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिना०, शांतिनाथपोल, अहमदाबाद चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ वीरचैत्यार्न्तगत आदिनाथ चैत्य थराद बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त- भाग-१, लेखांक १२९१ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ९९४ जैनमंदिर, साहूकार नाहर, पूर्वोक्त पेठ, मद्रास भाग २, लेखांक २०७३ लोढ़ा, पूर्वोक्तलेखांक १०० पिप्पलगच्छ ८९७ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क संवत् । तिथि । आचार्य का नाम - प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ३७. १५२० वैशाख सुदि ९ ३८. धर्मसूरि थराद श्रेयांसनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, धातु की प्रतिमा | रांधेजा पूर्वोक्त-भाग १, का लेख लेखांक ७१६ कुन्थुनाथ की | वीर चैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्त - धातुप्रतिमा | आदिनाथ चैत्य, लेखांक १४३ का लेख लालचंदजी का विनयसागर, मंदिर, रतलाम पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६४० विमलनाथ की | वीर जिनालय, वही, भाग १, धातु की प्रतिमा सांगानेर लेखांक ६७७ का लेख १५२० / चैत्र वदि ५ बुधवार १५२४ वैशाख सुदि ३ सोमवार १५२५ माघ..... ३९. धर्मसागरसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४०. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४१. | १५२८ | वैशाख शांतिनाथ की | वासुपूज्य जिना०, लोढ़ा, पूर्वोक्तसुदि ३ धातु प्रतिमा थराद लेखांक १२ शनिवार का लेख ४२. | १५२८ कार्तिक विमलनाथ की | वही वही, सुदि ३ धातु प्रतिमा लेखांक ५ शनिवार का लेख ४३. १५३० पौष गुणदेवसूरि श्रीमालों का मन्दिर, विनयसागर, वदि६ के पट्टधर जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, रविवार चन्द्रप्रभसूरि लेखांक ७२३ ४४. १५३० माघ धर्मसागरसूरि शांतिनाथ की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि६ धातु की चौबीसी | झवेरीवाड़, पूर्वोक्त-भाग १, बुधवार प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद लेखांक ८०४ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४५. १५३५ | आषाढ़ धर्मनाथ की धातु | शांतिनाथ देरासर, वही, भाग २, सुदि ५ की प्रतिमा का छाणी, बडोदरा लेखांक २६८ गुरुवार लेख ४६. १५३७ | वैशाख आदिनाथ की नया जैन मंदिर, मुनि कांतिसागर, सुदि ३ धातु की प्रतिमा | नासिक पूर्वोक्तसोमवार का लेख लेखांक २३९ ४७. १५६१ / माघ धर्मसागरसूरि | नमिनाथ की धातु | वीरचैत्यार्तगत लोढ़ा, पूर्वोक्त वदि ५ के पट्टधर की प्रतिमा का | आदिनाथ चैत्य, लेखांक ८९ शुक्रवार - धर्मप्रभसूरि लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ ९०१ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु परम्परा का जो क्रम निश्चित होता है, वइ इस प्रकार है : ? | धर्मप्रभसूरि धर्मशेखरसूरि देवचन्द्रसूरि धर्मसुन्दरसूरि (वि०सं० (वि०सं० १४८७) १५११) प्रतिमालेख प्रतिमालेख 1 धर्मसागरसूरि (वि० सं० १४७१ - १४७६) प्रतिमालेख (वि० सं० १४८४ - १५१०) प्रतिमालेख धर्मसूरि (वि०सं० १५२०) प्रतिमालेख (वि०सं० १४८४ - १५३५) प्रतिमालेख । धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १५६१) प्रतिमालेख पिप्पलगच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की पूर्व प्रदर्शित सूची में किन्हीं धर्मशेखरसूरि (वि०सं० १४८४ - १५०५ ) का नाम आ चुका है १२ जिन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर त्रिभवीयाशाखा के धर्मशेखरसूरि से अभिन्न माना जा सकता है यही बात उक्त सूची में ही उल्लिखित धर्मशेखरसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि और प्रशिष्य शालिभद्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है । इस प्रकार त्रिभवीयाशाखा के मुनिजनों के गुरुपरम्परा की तालिका को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है : Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०२ १४८७) प्रतिमालेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ? धर्मप्रभसूरि 1 7 देवचन्द्रसूरि विजयदेवसूरि धर्मसुन्दरसूरि धर्मसूरि (वि०सं० (वि०सं० (वि०सं० (वि०सं० (वि०सं० १४७१ - १४७६) प्रतिमालेख धर्मशेखरसूरि (वि०सं० १४८२ - १५१० ) प्रतिमालेख १५०३ - १५३०) प्रतिमालेख १५११) १५२०) प्रतिमालेख प्रतिमालेख | शालिभद्रसूरि धर्मसागरसूरि (वि०सं० (वि०सं० १५१६-२८) (१४८४ - १५३५) प्रतिमालेख प्रतिमालेख | धर्मप्रभसूरि (वि० सं० १५६१) प्रतिमालेख पिप्पलगच्छीयगुरुस्तुति द्वारा त्रिभवीयाशाखा के धर्मप्रभसूरि के पूर्ववर्ती आचार्यों के नाम से ज्ञात हो चुके हैं। पिप्पलगच्छगुर्वावली १३ से हमें धर्मसागरसूरि के एक अन्य शिष्य धर्मवल्लभसूरि का बी पता चलता है 1 इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०३ पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा की गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : सर्वदेवसूरि (वडगच्छीय) नेमिचन्द्रसूरि (वडगच्छीय) शांतिसूरि (वि०सं० ११८१/ई० सन् ११२५ में पिप्पलगच्छ के प्रवर्तक) शांतिसूरि महेन्द्रसूरि विजयसूरि देवचन्द्रसूरि पद्मचन्दसूरि पूर्णचन्द्रसूरि जयदेवसूरि देवप्रभसूरि जिनेश्वरसूरि देवभद्रसूरि धर्मघोषसूरि शीलभद्रसूरि परिपूर्णदेवसूरि विजयसेनसूरि धर्मदेवसूरि [त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक, वि० सं० १३८६ / ई० स० १३३० के प्रतिमालेख में उल्लिखित] Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास धर्मचन्द्रसूरि धर्मरत्नसूरि धर्मतिलकसूरि धर्मसिंहसूरि धर्मप्रभसूरि । (वि०सं० १४७१-१४७६) पिप्पलगच्छगुरुस्तुति के रचयिता धर्मप्रभसूरिशिष्य (वि०सं० १४८२-१५१०) प्रतिमालेख देवचन्द्रसूरि विजयदेवसूरि धर्मसुन्दरसूरि धर्मसूरि (वि०सं० (वि०सं० (वि०सं० (वि०सं० १४८७) १५०३-१५३०) १५११) १५२०) प्रतिमालेख प्रतिमालेख प्रतिमालेख प्रतिमालेख शालिभद्रसूरि धर्मसागरसूरि (वि०सं० (वि०सं० १५२७-२८) (१४८५-१५३५) प्रतिमालेख प्रतिमालेख धर्मप्रभसूरि (वि० सं० १५६१) धर्मवल्लभसूरि (पिप्पलगच्छगुर्वावली में उल्लिखित) Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ ९०५ वि०सं० १५२८ और वि०सं० १५५९ के प्रतिमालेखों में पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा का उल्लेख मिलता है । सम्भवत: सौराष्ट्र में स्थित ताजा नामक स्थान से यह शाखा अस्तित्व में आयी हो। इन प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार है : १. सं० १५२८ वर्षे वैशाष (ख) विदि (वदि) सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० सामल भार्या वान्ह सुत सं० हासाकेन भार्या वीजू द्वितीय भार्या सहिजलदे सुत समधर कीका युतेन श्रीचन्द्रप्रभ- चतुर्विंशतिपट्ट (:) कारित: प्र० पिप्पलगच्छे तालध्वजीय श्रीगुणरत्नसूरिपट्टे पू० श्रीगुणसागरसूरिभिः घोघा वास्तव्य श्रीः । विजयधर्मसूरि - सम्पा०, प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४१६ २. सं० १५५९ फागुण सुदि ७ दिने श्रीश्रीमालज्ञातीय साहमाणिकभा० अपूरवपु० भाइआकेन स्वमातृपित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंब कारितं तलाझीआ श्रीशांतिसूरिभिः प्रतिष्ठितं । बुद्धिसागरसूरि - सम्पा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग - २. लेखांक ३०२ -- प्रथम लेख में गुणरत्नसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है । पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों के आधार पर पूर्वप्रदर्शित आचार्य परम्परा की छोटी-छोटी तालिकाओं में से एक में गुणरत्नसूरि के शिष्य गुणसागरसूरि का नाम आ चुका है। शांतिसूर I गुणरत्नसूरि (वि० सं० १५०७ - १५१७) प्रतिमालेख (वि० सं० १५१७- १५४६) प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित पिप्पलगच्छीय गुणसागरसूरि (वि०सं० 1 गुणसागरसूरि Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १५१७-१५४६-प्रतिमालेख) और तालध्वजीयाशाखा के गुणसागरसूरि (वि०सं० १५२८-प्रतिमालेख) को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती । ठीक इसी प्रकार तालध्वजीयाशाखा के शांतिसूरि (वि०सं० १५५९-प्रतिमालेख) और पिप्पलगच्छीय शांतिप्रभसूरि (वि०सं० १५५४-प्रतिमालेख) को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। इसी प्रकार लेख के प्रारम्भ में साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित कालकसूरिभास (रचनाकाल वि०सं० १५१४/ई०सन् १४५७) और कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार पिप्पलगच्छीय आनन्दमेरु१५ के गुरु गुणरत्नसूरि भी समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर तालध्वजीयाशाखा के ही गुणसागरसूरि (वि०सं० १५१७-१५४६प्रतिमालेख) के गुरु गुणरत्नसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। ठीक यही बात पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास (रचनाकाल वि०सं० १५८४/ई०सन् १५२८) के रचनाकार पिप्पलगच्छीय नरशेखरसूरि और उनके गुरु शांति (प्रभ) सूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह निम्नानुसार शांतिसूरि गुणरत्नसूरि आनन्दमेरु गुणसागरसूरि Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ (वि०सं० १५१३ में कालकसूरिभास तथा कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार (वि०सं० १५१७-१५४६) प्रतिमालेख शांतिप्रभसूरि रचनाकार) (वि०सं० १५५४-१५५९) प्रतिमालेख नरशेखरसूरि (वि०सं० १५८४ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास के रचनाकार) पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। जहाँ तक पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति में वडगच्छीय शांतिसूरि द्वारा विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को पीपलवृक्ष के नीचे आचार्यपद देने और इस प्रकार पिप्पलगच्छ के अस्तित्व में आने के विवरण की प्रामाणिकता का प्रश्न है और यह सत्य है कि वडगच्छ में शांतिसूरि और उनके शिष्य विजयसिंहसूरि हुए और उनके द्वारा क्रमशः रचित पृथ्वीचंद्रचरित" (रचनाकाल वि०सं० ११६१/ई० सन् ११०५) और श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी (रचनाकाल वि०सं० ११८३/ई०सन् ११२६) उपलब्ध हैं किन्तु इनकी प्रशस्ति में इन्हें कहीं भी पिप्पलगच्छीय नहीं कहा गया है। चूंकि किसी भी गच्छ की अवान्तर शाखायें अपने उत्पत्ति के एक-दो पीढ़ी बाद ही नामविशेष से प्रसिद्ध होती हैं अतः उक्त गुर्वावली के उपरकथित विवरण को प्रामाणिक माना जा सकता है। जैसा कि पीछे कहा जा चुका है पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि०सं० १२९१ का है किन्तु वि०सं० १४६५ में एक प्रतिमालेख से Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ज्ञात होता है कि वि०सं० १२०८ में वीरस्वामी की एक प्रतिमा को इस गच्छ के विजयसिंहसूरि ने डीडिला नामक ग्राम में स्थापित की थी। यदि इस विवरण को सत्य मानें तो वि०सं० १२०८ में इस गच्छ का अस्तित्त्व भी मानना पड़ेगा और ऐसी स्थिति में श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी के रचनाकार विजयसिंहसूरि और वि०सं० १२०८ में प्रतिमाप्रतिष्ठापक विजयसिंहसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं । इसप्रकार यह माना जा सकता है कि विक्रम सम्वत् की तेरहवीं शती के प्रारम्भिक दशक में बृहद्गच्छ की एक शाखा के रूप में यह अस्तित्त्व में आ चुकी थी और तेरहवी शताब्दी के उत्तरार्ध में पिप्पलगच्छ के रूप में इसका नामकरण हुआ होगा। पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों से यद्यपि इस गच्छ के अनेक मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं किन्तु उनमें से कुछ को छोड़कर शेष मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, फिर भी इतना स्पष्ट है कि धर्मघोषगच्छ, पूर्णिमागच्छ, चैत्रगच्छ आदि की भाँति पिप्पलगच्छ भी १६वीं शती तक विशेष प्रभावशाली रहा । १७वीं-१८वीं शताब्दी से अमूर्तिपूजक स्थानकवासी सम्प्रदाय के उदय और उसके बढ़ते हुए प्रभाव के कारण खरतरगच्छ, तपागच्छ और अंचलगच्छ को छोड़कर शेष अन्य मूर्तिपूजक गच्छों का महत्त्व क्षीण होने लगा और इनके अनुयायी ऐसी परिस्थिति में उक्त तीनों प्रभावशाली मूर्तिपूजक गच्छों में या स्थानकवासी परम्परा में सम्मिलित हो गये होंगे। सन्दर्भ : श्रीमत्यर्बुदतुंगशैलशिखरच्छायाप्रतिष्ठास्पदे, धर्माणाभिधसन्निवेशविषये न्यग्रोधवृक्षो बभौ । यत्शाखाशतसंख्यपत्रबहलच्छायास्वपायाहतं, सौख्येनोषितसंघमुख्यशटकश्रेणीशतीपंचकम् ॥१॥ लग्ने क्वापि समस्तकार्यजनके सप्तग्रहालोकेन, ज्ञात्वा ज्ञानवशाद् गुरुं......देवाभिधः । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलगच्छ २. ३. ४. ६. आचार्यान् रचयांचकार चतुरस्तंस्मात् प्रवृद्धो बभौ वंद्रोऽयं वटगच्छनाम रुचिरो जीयाद् युगानां शतीम् ॥२॥ बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि०सं० १२३८ / ई० सन् १९८२) की प्रशस्ति Muni Punyavijaya, Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandar, Cambay, G. O. S. No. 149, Baroda - 1966 A.D., p.p. 284-286. उक्त प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने बृहद्गच्छ के उत्पत्ति की तो चर्चा की है, परन्तु उक्त घटना की तिथि के सम्बन्ध में वे मौन हैं । मध्यकाल में रची गयी विभिन्न पट्टावलियों यथा तपागच्छीय मुनिसुंदरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली (रचनाकाल वि०सं० १४६६ / ई० सन् १४०९), तपागच्छीय आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागरसूरि द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली (रचनाकाल वि०सं० १६४८ / ई० सन् १५९२), बृहद्गच्छीय मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली (रचनाकाल वि०सं० १७५१ / ई० सन् १६१५) आदि में यह घटना वि०सं० ९९४ में हुई बतलायी गयी है किन्तु पश्चात् कालीन होने से उल्लिखित उक्त मत की प्रामाणिकता संदिग्ध मानी जा सकती है। इस सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास पं० दलसुखभाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ, वाराणसी १९९२ ई०, पृष्ठ १०५-११७. P. Peterson Bombay 1896 A.D. pp. 125-126. - ९०९ Operation in Search of Sanskrit MSS. Vol-V, पुहवीचंदचरिय (पृथ्वीचंद्रचरित्र), सम्पा० - मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थांक १६, अहमदाबाद - वाराणसी १९७२ ई० सन्, इसी ग्रन्थ की प्रस्तावना में भी उक्त गुरु-स्तुति प्रकाशित है जिसका आधार प्रो० पीटर्सन का उक्त ग्रन्थ ही है । A. P. Shah - Catalogue of Sanskrit and Prakrit MSS : Muni Shree Punyavijayaji's Collection, L.D. Series No. 5, Ahmedabad 1965 A.D., No. 5479, p. 349. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैनगूर्जरकविओ, भाग-१, नवीन संस्करण, सम्पा० डॉ० जयन्त कोठारी, अहमदाबाद, १९८६ ई०, पृष्ठ-५२. वही वही, भाग-१, पृष्ठ १०५. Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ७. वही ८. वही, भाग-१, पृष्ठ ३९७. ९. पिप्पलगच्छगुर्वावली, सम्पा०, भंवरलाल नाहटा, आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रन्थ, बम्बई १९५६ ई०, हिन्दी खण्ड, पृष्ठ १३-२२. पूर्वं डींडिलाग्राम मूलनायकः श्री महावीरः संवत् १२०८ वर्षे पिप्पलगच्छीय श्रीविजयसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितः पश्चात् वीर पल्या प्रा० साह सहदेव कारिते प्रासादे पिप्पलाचार्य श्रीवीरप्रभसूरिभिः स्थापितः । संवत् १४६५ वर्षे । प्रतिष्ठा स्थान - जैन मंदिर कोटरा, सिरोही, पूरनचन्द नाहर - जैनलेखसंग्रह, भाग-१, कलकत्ता १९१८ ई०, लेखांक ९६६। १०अ. मधुसूदन ढांकी अने हरिशंकर प्रभाशंकर शास्त्री - घोघानो जैन प्रतिमानिधि, श्री फार्बस गुजराती सभा, जनवरी-मार्च १९६५ ई०, पृष्ठ १९-२२. ११. धनु धनु धर्मदेवसूरि, सारंग रा प्रतिबोधिउ। उगमतई नितु सूरि, सुहगुरु नितु नितु पणमीए ॥१०॥ त्रिनि भव सारंग राय, देवाएसिंहिं गुरि कहीय । घूघल जंग विक्खाय, पडिबोही त्रिनि भव कहीया ॥११॥ पिप्पलगच्छगुर्वावलि-गुरहमाल, द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९. ११अ. द्रष्टव्य-पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की सूची - लेख क्रमांक ६. १२. वही, लेख क्रमांक ६२, ६६, ६८, ७९. १३. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९. १४. द्रष्टव्य, लेख क्रमांक १५६. १५. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ६-७. १६. संदर्भ क्रमांक ८. १७. पृथ्वीचंद्रचरित - संपा० मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, ग्रन्थांक १६, अहमदाबाद-वाराणसी १९७२ ई० सन्. १८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी की प्रशस्ति C.D. Dalal and L.B. Gandhi - Descriptive Catalogue of MSS in the Jaina Bhandars at Pattan, G. 0. S. No. 76, Baroda - 1937A.D. pp. 389-90. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णतल्लगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से उद्भूत मध्यकालीन गच्छों में पूर्णतल्लगच्छ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है यह गच्छ राजस्थान प्रान्त के जोधपुर मंडल में स्थित प्राचीन पूर्णतल्लक या पूर्णतल्ल, वर्तमान पुन्ताला, नामक स्थान से अस्तित्व में आया प्रतीत होता है।' इस गच्छ में आम्रदेवसूरि, श्रीदत्तसूरि, यशोभद्रसूरि, प्रद्युम्नसूरि, गुणसेनसूरि, देवचन्द्रसूरि, कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि, प्रसिद्ध नाट्यशास्त्री रामचन्द्र - गुणचन्द्र आदि कई प्रसिद्ध और विद्वान् आचार्य हो चुके हैं । जहाँ प्रायः सभी गच्छों से सम्बद्ध अनेक ग्रन्थप्रशस्तियां, दो-एक पट्टावलियां तथा पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हैं जिनके आधार पर गच्छ विशेष के इतिहास की पुनर्रचना की जाती है, वहीं इस गच्छ की न तो कोई पट्टावली मिलती है और न ही बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य ही मिलते हैं । इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ ग्रन्थ प्रशस्तियां मिलती हैं, किन्तु वे भी सीमित संख्या में हैं, फिर भी उनसे इस गच्छ के उद्भव और विकास का कुछ हद तक स्पष्ट स्वरूप प्रकाश में आ जाता है इनका विवरण इस प्रकार है : I Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मूलशुद्धिप्रकरणसटीक - पूर्णतल्लगच्छीय प्रद्युम्नसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रची गयी कृति मूलशुद्धिप्रकरण पर उनके प्रशिष्य देवचन्द्रसूरि ने वि० सं० १९४६ / ई० सन् १०९० में वृत्ति की रचना की, जिसकी प्रशस्ति' में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का विवरण दिया है । इसके अनुसार चन्द्रकुल के अन्तर्गत पूर्णतल्लगच्छ में आम्रदेवसूरि नामक आचार्य हुए । उनके शिष्य का नाम श्रीदत्तगणि था, जिनके शिष्य यशोभद्रसूरि हुए; जिन्होंने उज्जयन्तगिरि पर सल्लेखनापूर्वक शरीर त्याग किया। उनके पट्टधर प्रद्युम्नसूरि हुए, जिन्होंने मूलशुद्धिप्रकरण अपरनाम स्थानकप्रकरण का निर्माण किया। उनके शिष्य गुणसेनसूरि थे, जिनके पट्टधर देवचन्द्रसूरि ने वि० सं० ११४६ / ई. सन् १०९० में मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति की रचना की । इस कार्य में उन्हें अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता अभयदेवसूरि तथा अपने शिष्य अशोकचन्द्र से सहायता प्राप्त हुई । इसे तालिका के रूप में इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है : आम्रदेवसूरि ९१२ | श्रीदत्तगणि ' यशोभद्रसूरि [ उर्ज्जयन्तगिरि पर समाधिमरण] देवचन्द्रसूरि [वि० सं० १९४६ / 1 प्रद्युम्नसूरि [ मूलशुद्धिप्रकरण अपरनाम स्थानकप्रकरण के रचनाकार ] 1 गुणसेनसूरि अभयदेवसूरि [वृत्तिलेखन में सहायक] Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णतल्लगच्छ ई० सन् १०९० में मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति के रचनाकार] अशोकचन्द्र [मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति की रचना में अपने गुरु के सहायक] ___ आचार्य देवचन्द्रसूरि की दूसरी कृति है शांतिनाथचरित जो प्राकृत भाषा में वि० सं० ११६० / ईस्वी सन् ११०४ में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी संक्षिप्त गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : यशोभद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि गुणसेनसूरि देवचन्द्रसूरि [वि० सं० ११६० / ईस्वी सन् ११०४ में खंभात में शांतिनाथचरित के रचनाकार] महावीरचरित- आचार्य देवचन्द्रसूरि के शिष्य कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का १०वां पर्व महावीरचरित्र के रूप में है। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने भी संक्षिप्त रूप से अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है : यशोभद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास T गुणसेनसूरि I देवचन्द्रसूरि 1 हेमचन्द्रसूरि [ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के रचनाकार ] त्रिषष्टिशलाकारपुरुषचरित का रचनाकाल वि० सं० १२१६-२८ के मध्य माना जाता है I इसी संदर्भ में एक अन्य प्रशस्ति का भी उल्लेख किया जा सकता है, वह है वि० सं० १२०६ / ईस्वी सन् १९५१ में रची गयी उत्पादसिद्धिप्रकरण की प्रशस्ति यद्यपि इसमें पूर्णतल्लगच्छ का उल्लेख नहीं है, फिर भी इसके रचनाकार चन्द्रसेन ने अपने गुरु प्रद्युम्नसूरि को सिद्धहेमगुरु का गुरुभ्राता बतलाया है, जो निश्चय ही कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि से अभिन्न हैं। [देवचन्द्रसूरि ] प्रद्युम्नसूरि हेमचन्द्रसूरि | चन्द्रसेन [वि० सं० १२०७ / ईस्वी सन् १९५१ में उत्पादसिद्धिप्रकरणसटीक के रचनाकार ] आचार्य हेमचन्द्रसूरि के करीब ८ शिष्यों का उल्लेख मिलता है, जिनके नाम हैं रामचन्द्रसूरि, गुणचन्द्रसूरि, बालचन्द्रसूरि, देवचन्द्रसूरि, सागरचन्द्र, यशचन्द्र, महेन्द्रसूरि उदयचन्द्र और वर्धमानगणि । किन्हीं उदयचन्द्रसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि का भी उल्लेख मिलता है जिन्होंने Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णतल्लगच्छ ९१५ हेमचन्द्राचार्य विरचित सिद्धहेमशब्दानुशासनबृहद्वृत्ति पर दुर्गपदव्याख्या की रचना की । कतिपय विद्वान् इस उदयचन्द्र को हेमचन्द्रसूरि का शिष्य मानते हैं। जैसा कि पीछे कहा जा चुका है इस मच्छ का उल्लेख करने वाला सबसे प्राचीन साक्ष्य है मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति की प्रशस्ति, जो आचार्य देवचन्द्रसूरि द्वारा वि० सं० ११४६ / ई० स० १०९० में रची गयी है। इसमें टीकाकार ने अपने पूर्ववर्ती ५ पट्टधर आचार्यों का उल्लेख किया है। यदि इसमें से प्रत्येक आचार्य का नायकत्त्वकाल २५ वर्ष माना जाये तो देवचन्द्रसूरि से ५ पीढ़ी पूर्व हुये आचार्य आम्रदेवसूरि का समय वि० सं० १०२५ / ई० सन् ९६९ के आसपास माना जा सकता है। यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इसके प्रारम्भिक आचार्य कौन थे, यद्यपि इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिल पाती, फिर भी इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ईस्वी सन् की १० वीं शती के अंतिम चरण में यह गच्छ अस्तित्व में था। देवचन्द्रसूरि के समय इस गच्छ को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त थी। इस समय उदयन जैसे उच्चशासनाधिकारी इस गच्छ के अनुयायी थे। आचार्य देवचन्द्रसूरि के शिष्य एवं पट्टधर हेमचन्द्राचार्य की असाधारण प्रतिभा से गुर्जरभूमि में एक नई स्फूति उत्पन्न हुई, जिससे न केवल पूर्णतल्लगच्छ बल्कि समग्र श्वेताम्बर परम्परा अपनी लोकप्रियता की पराकाष्ठा पर पहुंच गयी। आचार्य हेमचन्द्र सदैव नई सूझ-बूझ से कार्य लेते थे और सभी पर अपनी तलस्पर्शी मेघा का एक चमत्कारिक प्रभाव छोड़ देते थे। संभवतः उनकी चेतना की इसी विलक्षणता ने ही महापराक्रमी गुर्जरेश्वर जयसिंह सिद्धराज को आकृष्ट किया था। सिद्धराज एक महान् शासक और प्रजा के संरक्षक के रूप में सम्मानीय थे तो हेमचन्द्र धार्मिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण थे। आचार्य हेमचन्द्र का कुमारपाल के साथ गुरु-शिष्य का सम्बन्ध था । उसकी राजनैतिक सफलता, सामाजिक नवसुधार की योजना आदि के पीछे आचार्य का व्यक्तित्व, उनकी प्रेरणा एवं उनका वरदहस्त था। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ____ आचार्य हेमचन्द्र का शिष्य समूह भी उन्हीं के समान प्रतिभाशाली व्यक्तित्व सम्पन्न था। रामचन्द्रसूरि, गुणचन्द्रसूरि, बालचन्द्रसूरि, महेन्द्रसूरि, वर्धमानगणि, देवचन्द्रसूरि आदि उनके सुविख्यात शिष्य थे । इन्होंने हेमचन्द्र की कृतियों पर टीकायें तथा वृत्तियां लिखी हैं; साथ ही इनके द्वारा लिखे गये स्वतंत्र ग्रन्थ भी मिलते हैं। रामचन्द्रसूरि इन सभी शिष्यों में अग्रगण्य थे । इनमें कवि की अलौकिक प्रतिभा और श्रमणत्व का अलौकिक तेज था । इन्हें शतप्रबन्धकर्ता के रूप में जाना जाता है। इन्होंने अपने गुरुभ्राता गुणचन्द्रसूरि के साथ नाट्यदर्पण और द्रव्यालंकार की टीका के साथ रचना की । महेन्द्रसूरि ने अपने गुरु हेमचन्द्रसूरि की कृति अनेकार्थसंग्रहकोश पर अनेकार्थकैरवाकरकौमुदी की रचना की तथा देवचन्द्रसूरि ने चन्द्रलेखाविजयप्रकरण नामक नाटक का प्रणयन किया। किन्ही शांत्याचार्य द्वारा रचित न्यायावतारवार्तिकवृत्ति, तिलकमंजरीटिप्पण, वृन्दावनकाव्यटिप्पण, घटकर्परकाव्यटिप्पण, मेघाभ्युदयकाव्यटिप्पण, शिवभद्रकाव्यटिप्पण, चन्द्रदूतकाव्यटिप्पण आदि कई कृतियां मिलती हैं । न्यायावतारवार्तिकवृत्ति की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को चन्द्रकुल के वर्धमानसूरि का शिष्य बतलाया है तथा तिलकमंजरीटिप्पण की प्रशस्ति में अपने को पूर्णतल्लगच्छीय कहा है। पं० दलसुख मालवणिया ने विभिन्न प्रमाणों के आधार पर इनका काल वि० संवत् की ११ वी - १२वीं शती का मध्य निश्चित किया है। चूंकि इन्होंने अपने गुरु के अतिरिक्त अपने गच्छ के किन्ही अन्य मुनि या आचार्य का उल्लेख नहीं किया है, अतः मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति, शांतिनाथचरित, महावीरचरित, उत्पादसिद्धिप्रकरणसटीक आदि की प्रशस्तियों में उल्लिखित पूर्णतल्लगच्छीय मुनिजनों के साथ इनका सम्बन्ध स्थापित कर पाना कठिन है, फिर भी इतना तो स्पष्ट है कि पूर्णतल्लगच्छ की उक्त शाखा के अतिरिक्त एक और शाखा भी विद्यमान थी, जिसमें वर्धमानसूरि, Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णतल्लगच्छ ९१७ शांतिसूरि आदि आचार्य हुए और यह विक्रम सम्वत् की १२ वी शती में अस्तित्व में थी। ___ महामात्य तेजपाल द्वारा वि० सं० १२९८ । ई० सन् १२४२ में शत्रुजय महातीर्थ पर एक पाषाणखंड पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में जहां विभिन्न गच्छों के आचार्यों का उल्लेख है, वही राजगुरु हेमसूरि की परम्परा में हुए किन्ही मेरुप्रभसूरि का नाम मिलता है । राजगुरु हेमसूरि यदि कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि से अभिन्न माने जायें तो विक्रम सम्वत् की १३ वीं शती के अन्त तक इस गच्छ का अस्तित्व प्रमाणित होता है। उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ की गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका इस प्रकार निर्मित की जा सकती है : द्रष्टव्य : तालिका संख्या - १ पूर्णतल्लगच्छ के प्रमुख आचार्यों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : प्रद्युम्नसूरि - जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है ये यशोभद्रसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। इनके द्वारा रचित एकमात्र कृति है मूलशुद्धिप्रकरण अपरनाम स्थानकप्रकरण अपरनाम सिद्धान्तसार जो २५२ गाथाओं में महाराष्ट्रीय प्राकृत में निबद्ध है ।१३ इस ग्रन्थ में सम्यक्त्व के बारे में विवरण प्राप्त होता है। इसकी वि० सं० ११८६ / ई० सन् ११३० में लिखी गयी एक प्रति अहमदाबाद स्थित विमलगच्छीय उपाश्रय में संरक्षित है। जैसलमेर और खंभात" के ग्रन्थ भंडारों से भी इसकी प्रतियां प्राप्त होती हैं। इनके पट्टधर गुणसेनसूरि हुए। । देवचन्द्रसूरि - ये उक्त गुणसेनसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। इन्होंने अपने प्रगुरु प्रद्युम्नसूरि की कृति मूलशुद्धिप्रकरण पर वि० सं० ११४६/ ईस्वी सन् १०९० में १३००० श्लोक परिमाण वृत्ति की रचना की। इस ग्रन्थ के कुछ कथानकों की गाथायें निर्वृत्तिकुलीन शीलांकसूरि द्वारा रचित चउपन्नमहापुरिसचरिय रचनाकाल वि० सं० ९२५ / ई० सन् ८६९ से अक्षरशः मिलती है, जिसके आधार पर इस ग्रन्थ पर उक्त कृति का प्रभाव Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बतलाया जाया है। इनकी दूसरी कृति सांतिनाहचरिय[ शांतिनाथचरित] वि० सं० ११६०/ई० सन् ११०४ में स्तम्भतीर्थ (वर्तमान खंभात) में रची गयी है।" यह १२००० श्लोक परिमाण है। १६ वें तीर्थंकर पर प्राकृत भाषा में रची गयी कृतियों में यह सबसे प्राचीन और विशाल है। देवचन्द्रसूरि अपने समय के एक प्रतिभाशाली और विद्वान् आचार्य थे। अपने भावी शिष्य के रूप में एक शैव धर्मानुययायी गृहस्थ की अनुपस्थिति में उसकी अनुमति के बिना उसके अल्पवयस्क पुत्र को प्राप्त करना तथा इससे उत्पन्न तत्कालिक समस्याओं का मंत्री उदयन के सहयोग से सर्वमान्य हल ढूंढ निकालना इनकी विलक्षण प्रतिभा का परिचायक है। हेमचन्द्रसूरि - पूर्वोक्त आचार्य देवचन्द्रसूरि के सुविश्रुत शिष्य और पट्टधर आचार्य हेमचन्द्रसूरि श्वेताम्बर जैन परम्परा में 'कलिकालसर्वज्ञ' के नाम से प्रसिद्ध हैं और इनका काल हैमयुग या सुवर्णयुग के नाम से जाना जाता है। विद्या और साहित्य के क्षेत्र में हेमचन्द्र का योगदान अद्वितीय है। इन्होंने अपने बारे में स्वरचित व्याश्रयमहाकाव्य [संस्कृत और प्राकृत], सिद्धहेमशब्दानुशासन की प्रशस्ति तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रशस्ति में कुछ जानकारी दी है, किन्तु उत्तरकालीन विभिन्न श्वेताम्बर जैन ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों में इनके जीवनचरित पर पर्याप्त प्रकाश डाला है ।२° इनका विवरण इस प्रकार है : ग्रन्थ रचनाकार १. मोहराजपराजय मंत्री यशश्चन्द्र, रचनाकाल वि० सं० १२२८-३२/ ई० सन् ११७२-७६ २. कुमारपालप्रतिबोध वडगच्छीय सोमप्रभसूरि, रचनाकाल वि० सं० १२४१ / ई० सन् ११८३ ३. प्रभावकचरित राज्यगच्छीय प्रभाचन्द्रसूरि, रचना काल वि० सं० १३३४ । ई० सन् १२७८ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१९ पूर्णतल्लगच्छ ४. प्रबन्धचिन्तामणि नागेन्द्रगच्छीय मेरुतुंगसूरि, रचना काल वि०सं० १३६१ । ई० सन् १३०५ ५. कल्पप्रदीप अपरनाम खरतरगच्छीय आचार्य जिनप्रभसूरि, विविधतीर्थकल्प रचनाकाल वि० सं० १३८९ / ई० सन् १३३३ ६. प्रबन्धकोश मलधारगच्छीय राजशेखरसूरि, रचना काल वि० सं० १४०५/ ई० सन् १३४९ ७. पुरातनप्रबन्धसंग्रह अज्ञात, रचनाकाल विक्रम सम्वत् की १५ वीं शताब्दी के आसपास ८. कुमारपालचरित्र कृष्णर्षिगच्छीय आचार्य जयसिंहसूरि, रचनाकाल वि० सं० १४२२ / ई० सन् १३६६ ९. कुमारपालप्रबन्ध तपागच्छीय जिनमण्डनगणि, रचना काल वि० सं० १४९२/ ई० सन् १४३६ प्राप्त विवरणानुसार इनका जन्म वि० सं० ११४५ / ई० सन् १०८९ में धंधूका नगरी में हुआ था। इनके पिता का नाम चाचिग और माता का नाम पाहिणी था। ये श्रीमोढ़ वणिक ज्ञाति के थे। चाचिग शैवधर्मानुयायी थे और उनकी पत्नी पाहिणी जैन धर्मानुयायी थी । साम्प्रदायिक सद्भाव का यह उच्च आदर्श आज भी जैन परम्परा में विद्यमान है। हेमचन्द्र का बचपन का नाम चांगदेव था । ८ वर्ष की आयु में स्तम्भतीर्थ (वर्तमान खंभात) में इनकी दीक्षा हुई और सोमचन्द्र नाम रखा गया । अल्पायु में ही इन्होंने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया और वि० सं० ११६६ / ई० सन् १११० में हेमचन्द्र के नाम से आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये । जयसिंह सिद्धराज के ये सम्माननीय विद्वत् मित्र थे Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास और सिद्धराज का उत्तराधिकारी कुमारपाल (वि० सं० ११९९ - १२२९ / ई० सन् ११४४ - ११७३) इन्हें अपना गुरु मानता था । इन्हीं के प्रभाव से उसने अनेक जिनालयों का निर्माण कराया, तीर्थयात्रायें की तथा अपने साम्राज्य में वर्ष के विशेष दिनों में पशुवध पर रोक लगा दी। वि० सं० १२२९ में ८४ वर्ष की आयु में हेमचन्द्रसूरि का देहावसान हुआ। आचार्य हेमचन्द्र की साहित्य-साधना का क्षेत्र विशाल था । व्याकरण, छंद, अलंकार, कोश एवं काव्यविषयक इनकी अद्वितीय रचनाओं से प्रभावित होकर पाश्चात्य विद्वानों ने इन्हें 'ज्ञानमहोदधि' कहा है। हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है ।२१ व्याकरण - सिद्धहेमशब्दानुशासन, सिद्धहेमशब्दानु शासनलघुवृत्ति, सिद्धहेमशब्दानुशासनबृहद्वृत्ति, सिद्धहैमशब्दानुशासनप्राकृतवृत्ति, धातुपारायण, लिंगानुशासन, बृहन्न्यास, उणादिगणविवरण अभिधानचिन्तामणि स्वोपज्ञ टीका सहित, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टुशेष स्वोपज्ञ टीका सहित, देशीनाममाला स्वोपज्ञ टीका सहित अलंकार काव्यानुशासन स्वोपज्ञ अलंकारचूड़ामणि और विवेकवृत्ति के साथ छन्द - छन्दानुशासन स्वोपज्ञटीका के साथ दर्शन - प्रमाणमीमांसा स्वोपज्ञ वृत्ति के साथ इतिहास, काव्य - संस्कृतद्वयाश्रयमहाकाव्य एवं व्याकरण - प्राकृतद्वयाश्रयमहाकाव्य पौराणिक - त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, परिशिष्ट एवं पर्व, - योगशास्त्रसटीक कोश योग Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२५ पूर्णतल्लगच्छ इसके अतिरिक्त इन्होंने वीतरागस्तोत्र, अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका और महादेवस्तोत्र की भी रचना की है। रामचन्द्रसूरि - ये हेमचन्द्रसूरि के योग्यतम शिष्य थे और उनके निधन के पश्चात् वि० सं० १२२९ / ई० स० ११७३ में उनके पट्टधर बने । इनकी विद्वत्तता की ख्याति पूरे देश में थी और उस काल के विद्वानों में हेमचन्द्रसूरि के पश्चात् इन्हीं का स्थान था। इनके ज्ञाति, जन्मस्थान, मातापिता आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज ने इनकी विद्वता से प्रभावित होकर इन्हें 'कविकटारमल्ल' की उपाधि दी थी। हेमचन्द्रसूरि की मृत्यु से दुःखी कुमालपाल के शोक का शमन रामचन्द्रसूरि ने ही किया था। कुमारपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल (वि० सं० १२२९-१२३२ / ई० सन् ११७३-११७६) और अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता एवं प्रतिद्वन्द्वी बालचन्द्र के सम्मिलित षड्यन्त्र से राजद्रोह के अभियोग में रामचन्द्रसूरि को असमय मृत्यु का वरण करना पड़ा। रामचन्द्रसूरि अपने समय के श्रेष्ठतम विद्वानों में से थे। इन्होंने अपने ग्रन्थों में प्रबन्धशतकर्तृ इस इस विशेषण का प्रयोग किया है। पं० लालचंद भगवान गांधी का मत है कि इन्होंने १०० प्रबन्ध अवश्य लिखे होंगे, जिनमें से कुछ आज अनुपलब्ध हैं ।२२ डो० भोगीलाल सांडेसरा का मत है कि 'प्रबन्धशत' शब्द किसी संख्या को सूचित नहीं करता अपितु इस नाम का कोई स्वतंत्र ग्रन्थ ही रचा गया होगा। उनके द्वारा रची गयी प्रमुख कृतियां इस प्रकार हैं। रघुविलास, यदुविलास, सत्यहरिश्चन्द्र, निर्भयभीमव्यायोग, मल्लिकामकरन्दप्रकरण, रोहिणीमृगांकप्रकरण, वनमालानाटिका, कौमुदीमित्रानन्द, नलविलास आदि ११ नाटक तथा सुधाकलश नामक सुभाषित संग्रह, युगादिदेवद्वात्रिंशिका, प्रासादद्वात्रिंशिका, आदिदेवस्तव, मुनिसुव्रतद्वात्रिंशिका आदि कई स्तोत्र । कुमारविहारशतक और Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उदयनविहारप्रशस्ति५ भी इन्हीं की कृतियां हैं। अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता गुणचन्द्र के साथ इन्होंने द्रव्यालंकार और नाट्यदर्पण की वृत्ति के साथ रचना की। इसके अतिरिक्त इनकी अन्य कृतियां भी मिलती हैं। रामचन्द्र मुद्रावाले जो अनेक स्तोत्र प्राप्त हुए हैं, वे इन रामचन्द्र के न होकर जावालिपुर के बृहद्गच्छीय रामचन्द्रसूरि के अब सिद्ध हुए हैं। महेन्द्रसूरि - ये हेमचन्द्र के शिष्यों में एक थे। इन्होंने अपने गुरु द्वारा रचित अनेकार्थसंग्रहकोष पर उनके निधन के पश्चात् उन्हीं के नाम पर अनेकार्थंकैरवाककौमुदी नामक टीका की रचना की । इनके द्वारा रचित अन्य किसी कृति का उल्लेख नहीं मिलता है । हेमचन्द्र के अन्य शिष्यों वर्धमानगणि और देवचन्द्र की कृतियों का पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है। उनके अन्य शिष्यों के किन्हीं कृतियों की सूचना नहीं मिलती। पूर्णतल्लगच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया; यद्यपि इस बारे में कोई साक्ष्य नहीं मिलता है, फिर भी ईस्वी सन् की १० वीं शताब्दी के अंतिम चरण में इस गच्छ का अस्तित्व प्रमाणित होता है। हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा के कारण जयसिंह सिद्धराज और कुमारपाल के समय यह गच्छ गच्छविशेष की संकीर्णता से ऊपर उठकर श्वेताम्बर श्रमण संघ का पर्याय बन गया। हेमचन्द्र के मृत्योपरान्त उनकी शिष्य मंडली में उत्पन्न कलह तथा इसी समय कुमारपाल की मृत्यु के बाद जैनों के प्रति उत्पन्न राजकीय कोप से इस गच्छ का प्रभाव समाप्तप्राय हो गया । यद्यपि वि० सम्वत् की १३वी शती के अन्त तक इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध होता है, फिर भी इस समय तक यह अपने पूर्व गौरवमय स्थिति से निश्चितरूप से च्युत हो चुका था। किन्तु जनमानस में हेमचन्द्र का आज भी वही आदरपूर्ण स्थान है जो जयसिंह और कुमारपाल के समय में था और यह अपने आप में अभूतपूर्व है। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णतल्लगच्छ तालिका संख्या - १ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णतल्लगच्छीय मुनिजनों का विद्यावंशवृक्ष आम्रदेवसूरि श्रीदत्तगणि यशोभद्रसूरि [उ यन्तगिरि पर समाधिमरण] प्रद्युम्नसूरि 'प्रथम' [मूलशुद्धिप्रकरण अपरनाम । स्थानकप्रकरण के रचनाकार] गुणसेनसूरि देवचन्द्रसूरि [वि० सं० ११४६ / ई० सन् १०९० में मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति तथा वि० सं० ११६० / ई० सन् ११०४ में शांतिनाथचरित के रचनाकार] अभयदेवसूरि [मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति के लेखन में अपने गुरुभ्राता के सहायक Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अशोकचन्द्र हेमचन्द्रसूरि प्रद्युम्नसूरि [द्वितीय] [मूलशुद्धिप्रकरण- [जयसिंह सिद्धराज वृत्ति के लेखन एवं कुमारपाल में अपने गुरु के समकालीन, अनेक के सहायक] ग्रन्थों के रचनाकार] गुणचन्द्र रामचन्द्रसूरि बालचन्द्र [अनेक कृतियों के कर्ता] चन्द्रसेन [वि० सं० १२०७ / ई० सन् ११५१ में [वि० सं० १२०७ / उत्पादसिद्धिप्रकरण सटीक के रचनाकार ] देवचन्द्र यशश्चन्द्र उदयचन्द्र सागरचन्द्र वर्धमानगणि . - - - मुनिमेरुप्रभ [वि० सं० १२९८/ ईस्वी सन् १२४२ के शत्रुजय के एक शिलालेख में उल्लिखित] Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णतल्लगच्छ संदर्भ सूची: १. Dasharatha Sharma - Early Chauhans Dynesties, New Delhi ___1959,A. D., p. 24. आसीच्चन्द्रकुलाम्बरैकशशिनि श्रीपूर्णतल्लीयके, गच्छे दुर्धरशीलधारणसहै: संपूरिते संयतैः । निःसम्बन्धविहारहारिचरितश्चचरित्रः शुचिः श्रीसूरिर्मलवर्जितोर्जितमतिश्चाम्रिदेवाभिधः ॥ १ ॥ तच्छिष्य श्रीदत्तो, गणिरभवत् सर्वसत्त्वसमचित्तः । नरनायकादिवित्तः, सद्वृत्तो वित्तनिर्मुक्तः ॥ २ ॥ सूरिस्ततोऽभूद् गुणरत्नसिन्धुः, श्रीमान् यशोभद्र इतीद्धसंज्ञः । विद्वान् क्षितीशैर्नतपादपाः, सन्नैष्ठिको निर्मलशीलधारी ॥ ३ ॥ नीरोगोऽपि विधानतो निजतत्तं (y) संलिख्य सर्वादरात्, सर्वाहारविवर्जनादनशनं कृत्वोज्जयन्ते गिरौ । कालेऽप्यत्र कलौ त्रयोदशदिनान्याञ्चर्यहेतुर्जने, शस्यं पूर्वमुनीश्वरीयचरितं संदर्शयामास यः ॥ ४ ॥ तच्छिष्यो भूरिबुद्धिर्मुनिवरनिकरैः सेवित: सर्वकालं, ___ सच्छास्त्रार्थप्रबन्धप्रवरवितरणाल्लब्धविद्वत्सुकीर्तिः । येनेदं स्थानकानां विरचितमनघं सूत्रमत्यन्तरम्यं, श्रीमत्प्रद्युम्नसूरिजितमदनभटोऽभूत् सतामग्रगामी ॥ ५ ॥ राद्धान्त-तर्क-साहित्य-शब्दशास्त्रविशारदः । निरालम्बविहारी च, यः शमाम्बुमहोदधिः ॥ ६ ॥ सिद्धान्तदुर्गम महोदधिपारगामी, कन्दर्पदर्पदलनोऽनघकीर्तियुक्तः। दान्ताऽ तिदुर्दुमहषीकमहातुरङ्गः ___ श्रीमांस्ततः समभवद् गुणसेनसूरिः ॥ ७ ॥ जगत्यपि कृताश्चर्य, सुराणामपि दुर्लभम् । निशाकरकराकारं, चारित्रं यस्य राजते ॥ ८ ॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तच्चरणरेणुकल्पः सूरि श्रीदेवचन्द्रसंज्ञोऽभूत् । तच्छिष्यो गुरुभक्तस्तद्धिधधिषणो विनिर्मुक्त ॥ ९ ॥ श्रीमदभयदेवाभिधसूरेर्यो लघुसहोदरः स इह । स्थानकवृत्तिं चक्रे सूरिः श्रीदेवचन्द्राख्यः ॥ १० ॥ मतिविकलेनापि मया, गुरुभक्तिप्रेरितेन रचितेयम् । तस्मादियं विशोध्या, विद्वद्भिर्मयि कृपां कृत्वा ॥ ११ ॥ आवश्यक - सत्पुस्तकलेखन - जिनवन्दनाऽर्चनोद्युक्तः । शय्यादानादिरतः, समभूदिह वीहकः श्राद्धः ॥ १२ ॥ तद्गुणगणानुयायी, श्रीवत्वस्तत्सुतः समुत्पन्नः। तद्वसतावधिवसता, रचितेयं स्तम्भतीर्थपुरे ॥ १३ ॥ - युग-रुद्रै (१९४६) वीतैर्विक्रम संवत्सरात् समाप्तेयम् । फाल्गुनसितपञ्जम्यां, गुरुवारे प्रथमनक्षत्रे ॥ १४ ॥ अणहिलपाटकनगरे, वृत्तिरियं शोधिता सुविद्वद्भिः । श्रीशीलभद्रप्रमुखैराचार्यैः शास्त्रतत्त्वज्ञैः ॥ १५ ॥ साहाय्यमत्र विहितं, निजशिष्याशोकचन्द्रगणिनाम्ना । प्रथमप्रतिमालिखता, विश्रामविवर्जितेन भृशम् ॥ १६ ॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्या ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । अनुष्टुभां सहस्राणि संपूर्णानि त्रयोदश ॥ १७ ॥ मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति की प्रशस्ति रस श्री जितेन्द्र बी० शाह, नियामक, शारदाबेन चिमनभाई एजुकेशन रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद के सौजन्य से उक्त प्रशस्ति प्राप्त हुई है, जिसके लिये लेखक उनका हृदय से आभारी है। श्री अम्बालाल पी० शाह द्वारा सम्पादित कालिकाचार्यकथासंग्रह [ अहमदाबाद १९४९ इ० सन्] के पृष्ठ २३-२४ पर भी उक्त प्रशस्ति दी गयी है । - C.D. Dalal. A Descriptiue Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, Vol. 1 GO.S. No. - LXXVI, Baroda 1937 A.D., Pp335-343. Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२७ - पूर्णतल्लगच्छ ४. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर से ईस्वी सन् १९०६ - १९१३ में प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रन्थ का १०वां पर्व महावीरचरित के रूप में है, जो वि० सं० १९६५ / ई० सन् १९०९ में प्रकाशित हुआ है। कृति के अन्त में ग्रन्थकार ने २१ श्लोकों की प्रशस्ति दी है। इसका एच० जानसन द्वारा किया गया आंग्लभाषानुवाद गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला के अन्तर्गत - ६ भागों में प्रकाशित हो चुका है। मायापरैर्हतपरैः स्फुटमिन्द्रकल्पैस्तीर्थंकल्पकुविकल्पशविलुप्ता। दृष्टिर्यदीरितपदत्रमन्त्रात् सम्यक्तववमेति भविनां जयताज्तिनोऽसौ ॥ १ ॥ कुदृष्टो यद्वशतः सुदुष्टिभावं ययुस्त्यक्तविरोधसङ्गाः। शिवं शिवं तज्जिनशासनं नस्तनोतु निःशेषसमृद्धिहेतुः ॥ २ ॥ श्रीमांश्चान्द्रकुलेऽभवद्गुणनिधिः प्रद्युम्नसूरिप्रभुबन्धुर्यस्य स सिद्धहेमविधये श्रीहेमसूरिविधिः । तच्छिष्यावयवोऽत्र सूरिरजनि श्रीचन्द्रसेनाभिधस्तेनेदं रचितं प्रकाशपदवीं नेयं पुनः साधुभिः ॥ ३ ॥ कृत्वा प्रकरणमेतद् यत्कुशलमिहार्जितं मया किञ्जित् । तस्मात्तत्त्वैकरुचिर्भवतु जनः सिद्धसद्बोधः ॥ ४ ॥ द्वादशवर्षशतेषु श्रीविक्रमतो गतेषु मुनिभिः । चैत्रे संपन्नमिदं साहाय्यं चात्र ये नेमेः ॥ ५ ॥ इति श्री सिद्धहेमगुरुभ्रातृश्रीप्रद्युम्नसूरिशिष्यश्रीचंद्रसेनाचार्यरचित स्वोपज्ञं श्रीउत्पादादिसिद्धद्वात्रिशिकाविवरण समाप्तं । यह कृति ऋषभदेव केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम द्वारा वि० सं० १९९३ / ई० सन् १९३६ में प्रकाशित हो चुकी है। भोगीलाल सांडेसरा - हेमचन्द्राचार्य का शिष्य मंडल, जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, वाराणसी १९५१ ई०, पृ० ३-२०. एम०ए० ढांकी - 'कवि रामचन्द्र अने कवि सागरचन्द्र' सम्बोधि, वर्ष ११, अंक १-४, अहमदाबाद १९८५ ईस्वी, पृष्ठ ६८-८०. ७. सांडेसरा, पूर्वोक्त, पृष्ठ १९ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास 6. G. Buhler - The Life of Hemachandracharya, Translated from Original German By Mani Lal Patel, Singhi Jaina Series No. 11, Shantiniketan 1936 A.D. सांडेसरा, पूर्वोक्त सूरिश्चन्द्रकुलामलैकतिलकश्चारित्र रत्नाम्बुधिः सारे लाघवमादधाति च गिरेर्यो वर्धमानाभिधः । तच्छिष्यावयवः स सूरिरभवच्छीशान्तिनामा कृता येनेयं विवृतिर्विचारकलिका नामा स्मृतावा (त्मनः) ॥ १ ॥ अवज्ञानं हीने समधिकगुणे द्वेषमधिकम् समाने संस्पर्धा गुणवति गुणी यत्र कुरुते । तदस्मिन् संसारे विरलसुजनेऽपास्तविषया प्रतिष्ठाशा शास्त्रे तदपि च भवेत् कृत्यकरणम् ॥ २॥ पं० दलसुख मालवणिया - संपा०. न्यायावतारवार्तिकवृत्ति, सिंघी जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थांक २०, बंबई वि० सं० २००५, प्रशस्ति, पृष्ठ १२२. श्रीशांतिसूरिरिह श्रीमति पूर्णतले (ल्ले) गच्छे वरो मंतिमतां बहुशास्त्रवेत्ता । तेनामलं विरचित बहुधा विमृश्य संक्षेपतो वरमिगं बुद्ध ! टिप्पितं भोः ।। इदं विधाय यत् पुण्यं निर्मलं समुपार्जितं । तेन भव्या दिवं लब्ध्वा पश्चात् निर्वांतु मानवाः ।। शांत्याचार्यकृत तिलकमंजरीटिप्पन की प्रशस्ति दलाल, पूर्वोक्त, पृ० ८७.. मेघाभ्युदयकाव्यटिप्पन की प्रशस्ति में भी उन्होंने अपना गच्छ पूर्णतल्ल ही बतलाया है: श्रीपूर्णतल्लगच्छसम्बन्धिश्रीवर्धमानाचार्यस्वपट्टस्थापितश्रीशांतिसूरिविरचिता मेघाभ्युदयकाव्यवृत्तिः समाप्ताः ॥ Munu Punyavijaya - ED. New Catalogue of Saskrit and Prakrit Manuscripts : Jesalmer Collection L.D. Series No. 36, Ahmeabad - 1972 A.D. P., 149. 12. U.P. Shah - ‘A Forgotten chapter in the History of Svetambara Jaina Church' Journal of the Asiatic Society of Bombay, Vol. 32 Part I, 1955 A.D., p.p. 100-113. Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णतल्लगच्छ 13. १४. १५. ९२९ H. D. Velankar - Jinaratnakosa, Government Oriental Series, Class C, No. 4, Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona - 1944 A.D., P-312-13 मूलशुद्धिप्रकरण के चार स्थानक देवचन्द्रसूरि कृत वृत्ति के साथ श्री अमृतलाल मोहनलाल भोजक द्वारा सम्पादित और प्राकृत टेक्ट सोसायटी अहमदाबाद द्वारा ई० सन् १९७१ में प्रकाशित हो चुके हैं। शेष भाग अभी भी अप्रकाशित ही है । Muni Punyavijaya - A New Catalogue of Samskrit and Prakrit Mss : Jesalmer Collection, P.60. Muni Punyavijaya - Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Santinatha Jain Bhandar, Cambay, GO. S. No. 135 - 149, Baroda, 1961-66 A.D. Pp 158, 163, 168, 180. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या २. १६. १७. गुलाबचन्द्र चौधरी, जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग-६, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २०, वाराणसी १९७३ ई०, पृष्ठ ८६. १८. एकारसहिं सएहिं विक्कमसंवच्छराउ सट्ठेहिं । इयं खंभाइत्थे रज्जे जयसिंघरायस्स ॥ C. D. Dalal A Descriptive Catalogue of Mss In the Jaina Bhandars at Pattan P. 339. शांतिनाथचरित अद्यावधि अप्रकाशित है। - १९. बुहलर, पूर्वोक्त. २०. R.C. Parikha An Introduction of Kavyanusasana, Vol. II, Part I, Bombay 1938, PP. I-CCCXXX. वि० भा० मुसलगांवकर आचार्य हेमचन्द्र, भोपाल १९७१ ई०, पृष्ठ ५ और आगे. २१. मोतीचन्द गिरधरलाल कापडिया - 'श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यनी कृतियो' श्री हेम सारस्वत सत्र, पाटण, अहेवाल अने निबंध संग्रह, बम्बई १९४९ ई०, पृष्ठ १७७-१९१. संपा० नलविलास, २२. जी० के० श्रीगोन्डेकर एवं लालचन्द्र भगवानदास गांधी बड़ोदरा १९२६ ईस्वी, प्रस्तावना, पृष्ठ २३, और आगे. २३. वही, पृष्ठ ३२. २४. सांडेसरा, पूर्वोक्त, पृष्ठ ७-८ . Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास २५. लालचन्द्र भगवानदास गांधी – 'उदयनविहार' जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १९, पृष्ठ ७५, १०७, १५७, १७४, २२२ आदि. २६. ढांकी, पूर्वोक्त, पृष्ठ ६८-७३. Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ का संक्षिप्त इतिहास मध्ययुग में श्वेताम्बर श्रमण संघ का विभिन्न गच्छों और उपगच्छों के रूप में विभाजन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। श्वेताम्बर श्रमण संघ की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शाखा चन्द्रकुल [ बाद में चन्द्रगच्छ] का विभिन्न कारणों से समय-समय पर विभाजन होता रहा, परिणामस्वरूप अनेक नये-नये गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ, इनमें पूर्णिमागच्छ भी एक है । पाक्षिकपर्व पूर्णिमा को मनायी जाये या चतुर्दशी को ? इस प्रश्न पर पूर्णिमा का पक्ष ग्रहण करने वाले चन्द्रकुल के मुनिगण पूर्णिमापक्षीय या पूर्णिमागच्छीय कहलाये । वि० सं० ११४९ / ई० सन् १०९३ अथवा वि० सं० ११५९ / ई० सन् ११०३ में इस गच्छ का आविर्भाव माना जाता है। चन्द्रकुल के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि इस गच्छ के प्रथम आचार्य माने जाते हैं । इस गच्छ में धर्मघोषसूरि, देवसूरि, चक्रेश्वरसूरि, समुद्रघोषसूरि, विमलगणि, देवभद्रसूरि तिलकाचार्य, मुनिरत्नसूरि, कमलप्रभसूरि आदि तेजस्वी विद्वान् एवं प्रभावक आचार्य हुए हैं । इस गच्छ के पूनमियागच्छ, राकापक्ष आदि नाम भी बाद में प्रचलित हुए। इस गच्छ से कई शाखायें उद्भूत हुई, जैसे प्रधानशाखा या ढंढेरिया शाखा, साधुपूर्णिमा या सार्धपूर्णिमाशाखा, कच्छोलीवालशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, बटपद्रीयाशाखा, बोरसिद्धीयाशाखा, भृगुकच्छीयाशाखा, छापरियाशाखा आदि । पूर्णिमागच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये सद्भाग्य से हमें विपुल परिमाण में साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा लिखित ग्रन्थों Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास की प्रशस्तियों, गच्छ के विद्यानुरागी मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपि की प्रशस्तियां तथा पट्टावलियां प्रमुख हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों के अर्न्तगत इस गच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की जा सकती है। यहां उक्त साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छ के इतिहास पर संक्षिप्त रूप में प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है । अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है : दर्शनशुद्धि - यह पूर्णिमागच्छ के प्रकटकर्ता आचार्य चन्द्रप्रभसूरि की कृति है । इनकी दूसरी रचना है - प्रमेयरत्नकोश । इन रचनाओं में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख तो नहीं किया है, परन्तु इनके प्रशिष्य विमलगणि ने अपने दादागुरु की रचना पर वि० सं० १९८१ / ई० सन् ११२५ में वृत्ति लिखी, जिसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है' वह इस प्रकार है : सर्वदेवसूरि I जयसिंहसूरि 1 चन्द्रप्रभसूरि | धर्मघोषसूरि I विमलगणि [ दर्शनशुद्धि के रचनाकार ] [वि० सं० १९८१ / ई० सन् ११२५ में दर्शनशुद्धिवृत्ति के रचनाकार ] Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३३ पूर्णिमागच्छ दर्शनशुद्धिबृहद्वृत्ति - पूर्णिमागच्छीय विमलगणि के शिष्य देवभद्रसूरि ने वि० सं० १२२४/ ई० सन् ११६८ में अपने गुरु की कृति दर्शनशुद्धिवृत्ति पर बृहद्वृत्ति की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि समन्तभद्रसूरि धर्मघोषसूरि विमलगणि देवभद्रसूरि [वि० सं० १२२४ /ई० सन् ११६८ __ में दर्शनशुद्धिबृहद्वृत्ति के रचनाकार] प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति - यह पूर्णिमागच्छीय हेमप्रभसूरि की कृति है। रचना के अंत में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है: चन्द्रप्रभसूरि धर्मघोषसूरि यशोघोषसूरि Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास [वि० सं० १२२३ / ई० सन् ११६७ में प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति के रचनाकार ] हेमप्रभसूर अममस्वामिचरितमहाकाव्य - पूर्णिमागच्छीय समुद्रघोषसूरि के विद्वान् शिष्य मुनिरत्नसूरि द्वारा यह प्रसिद्ध कृति वि० सं० १२५२ / ई० सन् १९९६ में रची गयी है। रचना के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि [पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक] | धर्मघोषसूरि समुद्रघोषसूरि | मुनिरत्नसूरि प्रश्नोत्तरसंग्रहवृत्ति - पूर्णिमागच्छीय मलयचन्द्रसूरि ने वि० सं० १२६० / ई० सन् १२०४ में अपने गुरु मानतुंगसूरि द्वारा रचित जयन्तीचरित्र अपरनाम प्रश्नोत्तरसंग्रह पर वृत्ति की रचना की । वृत्तिकार के गुरु- परम्परा इस प्रकार मिलती है: अ [वि० सं० ११५२/ ई० सन् ११९६ में अममस्वामिचरित महाकाव्य के रचनाकार ] सर्वदेवसूरि I जयसिंहसूरि I Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ चन्द्रप्रभसूरि धर्मघोषसूरि शीलगुणसूरि मानतुंगसूरि [जयन्तीचरित्र अपरनाम प्रश्नोत्तरसंग्रह के रचनाकार] मलयचन्द्रसूरि [वि० सं० १२६० में जयन्तीचरित्र अपरनाम प्रश्नोत्तरसंग्रह पर वृत्ति के रचनाकार] प्रत्येकबुद्धचरित - पूर्णिमागच्छीय शिवप्रभसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि अपरनाम तिलकाचार्य ने वि० सं० १२६१ / ई० सन् १२०५ में इस ग्रन्थ की रचना की। श्रीतिलकसूरि द्वारा रचित कई कृतियां मिलती हैं। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इनकी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि [पूर्णिमागच्छ के प्रकटकर्ता] धर्मघोषसूरि चक्रेश्वरसूरि शिवप्रभसूरि Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास श्रीतिलकसूरि [वि० सं० १२६१ / ई० सन् १२०५ में प्रत्येकबुद्धचरित के रचनाकार] प्रत्येकबुद्धचरित अभी अप्रकाशित है। शान्तिनाथचरित - यह कृति पूर्णिमागच्छ के अजितप्रभसूरि द्वारा वि० सं० १३०७ में रची गयी है । जैसलमेर और पाटण के ग्रन्थ भंडारों में इसकी प्रतियां संरक्षित हैं । कृति के अन्त में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि देवसूरि तिलकप्रभसूरि वीरप्रभसूरि अजितप्रभसूरि [वि० सं० १३०७ /ई० सन् १२५१ में शांतिनाथचरित के रचनाकार] पुण्डरीकचरित - पूर्णिमापक्षीय चन्द्रप्रभसूरि की परम्परा में हुए रत्नप्रभसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि ने वि० सं० १३७२/ ई० सन् १३१६ में उक्त कृति की रचना की । कृति के अन्त में प्रशस्ति के अर्न्तगत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का इस प्रकार विवरण दिया है : चन्द्रप्रभसूरि घार Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ चकेश्वरसूरि 1 त्रिदशप्रभसूरि - | धर्मप्रभसूरि T अभयप्रभसूरि 1 रत्नप्रभसूरि T कमलप्रभसूरि क्षेत्रसमासवृत्ति यह कृति पूर्णिमागच्छीय पद्मप्रभसूरि के शिष्य देवानन्दसूरि द्वारा वि० सं० १४५५ / ई० सन् १३९९ में रची गयी है। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी लम्बी गुरु- परम्परा का उल्लेख किया है, इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि I धर्मघोषसूरि भद्रेश्वरसूरि T मुनिप्रभसूर ९३७ [वि० सं० १३७२ / ई० सन् १३१६ में पुण्डरीकचरित के रचनाकार ] Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सर्वदेवसूरि सोमप्रभसूरि रत्नप्रभसूरि चन्द्रसिंहसूरि देवसिंहसूरि पद्मतिलकसूरि श्रीतिलकसूरि देवचन्द्रसूरि पद्मप्रभसूरि देवानन्दसूरि [वि०सं० १४५५ /ई० सन् १३९९ में क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार श्रीपालचरित - पूर्णिमागच्छीय गुणसमुद्रसूरि के शिष्य सत्यराजगणि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित ५०० श्लोकों की यह कृति वि० सं० १५१४ में रची गयी है। इसकी वि० सं० १५७५ / ई० सन् १५१९ की एक प्रतिलिपि जैसलमेर Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ९३९ के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है । रचना के अन्त में प्रशस्ति के अर्न्तगत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत परिचय न देते हुए मात्र अपने गुरु का ही नामोल्लेख किया है : गुणसमुद्रसूरि सत्यराजगणि [वि०सं० १५१४/ई० सन् १४५८ में श्रीपालचरित के रचनाकार पूर्णिमागच्छगुर्वावली - यह गुर्वावली पूर्णिमागच्छ के सुमतिरत्नसूरि के शिष्य उदयसमुद्रसूरि द्वारा वि० सं० १५८०/ई० सन् १५२४ में रची गयी है । इसमें उल्लिखित पूर्णिमागच्छ के आचार्यों का क्रम निम्नानुसार है : चन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि [पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक] धर्मघोषसूरि देवभद्रसूरि जिनदत्तसूरि शांतिभद्रसूरि भुवनतिलकसूरि रत्नप्रभसूरि हेमतिलकसूरि Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास हेमरत्नसूरि हेमप्रभसूरि रत्नशेखरसूरि रत्नसागरसूरि गुणसागरसूरि गुणसमुद्रसूरि सुमतिप्रभसूरि पुण्यरत्नसूरि सुमतिरत्नसूरि उदयसमुद्रसूरि [वि०सं० १५८०/ई० सन् १५२४ में पूर्णिमागच्छ गुर्वावली के रचनाकार] पूर्णिमागच्छीय रचनाकारों की पूर्वोक्त कृतियों की प्रशस्तियों से उपलब्ध छोटी-बड़ी गुर्वावलियों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका की संरचना की जा सकती है, जो इस प्रकार है: द्रष्टव्य - तालिका संख्या - १. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका १ : प्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमापक्ष के आचार्यों की गुरु-परम्परा सर्वदेवसूरि शीलगुणसूरि 1 मानतुंगसूरि [ जयन्ती प्रश्नोत्तर संग्रह के कर्ता ] T मलययप्रभसूरि [वि. सं. १२६० में जयन्ती प्रश्नोत्तर संग्रहवृत्ति के कर्ता धर्मघोषसूरि समुद्रघोषसूरि 1 मुनिरत्नसूरि [वि. सं. १२२५ में अममस्वामिचरितमहाकाव्य के कर्ता] यशोघोषसूरि 1 हेमप्रभसूरि प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति वि. सं. १२४३] जयसिंहसूरि | चन्द्रप्रभसूरि चक्रेश्वरसूरि - शिवप्रभसूरि 1 तिलकाचार्य [वि. सं. १२६१ में प्रत्येकबुद्धचरित आदि अनेक ग्रंथों के रचनाकार ] धर्मप्रभसूरि | [ पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक वि. सं. ११५९ / ई. सन् ११०२] अभयप्रभसूरि | रत्नप्रभसूरि कमलप्रभसूरि त्रिदशप्रभसूरि [वि. सं. ११८१ में दर्शनशुद्धि वृत्ति के रचनाकार ] विमलगणि | देवभद्रसूरि [दर्शनशुद्धि बृहद्वृत्ति वि. सं. १२२४] जिनदत्तसूरि www शांतिभद्रसूरि 1 भुवनतिलकसूरि | रत्नप्रभसूरि समन्तभद्र भद्रेश्वरसूरि I मुनिप्रभसूरि -1-1-1-1 देवसूरि तिलकप्रभसूरि | वीरप्रभसूरि | अजितप्रभसूरि (वि. सं. १३०७ शांतिनाथ चरित) पूर्णिमागच्छ ९४१ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [वि. सं. १३७२ में पुण्डरीकचरित के रचनाकार] ९४२ हेमतिलकसूरि देवसिंहसूरि हेमरत्नसूरि पद्मतिलकसूरि हेमप्रभसूरि श्रीतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि देवचन्द्रसूरि रत्नसागरसूरि पद्मप्रभसूरि गुणसागरसूरि -1-1-1-1-1-1-1-14 देवानन्दसूरि [वि. सं. १४५५ में क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार] गुणसमुद्रसूरि अभयचन्द्रसूरि सत्यराजगणि सुमतिप्रभसूरि रामचन्द्रसूरि [वि. सं. १४९० में विक्रमचरित के रचनाकार] पुण्यरलसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सुमतिरत्नसूरि उदयसमुद्रसूरि [वि. सं. १५८० में पूर्णिमापक्ष गुर्वावली के रचनाकार] Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ९४३ पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ४०० से अधिक जिन प्रतिमायें आज मिलती हैं। इन पर वि० सं० १३६८ से वि०सं० १७७४ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इन प्रतिमालेखों में इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम मिलते हैं, परन्तु उनमें से कुछ के पूर्वापर सम्बन्ध ही स्थापित हो पाते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : सर्वाणंदसूरि इनकी प्ररेणा से प्रतिष्ठापित तीन प्रतिमायें मिली हैं जिनपर वि०सं० १४८० से वि० सं० १४८५ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनका विवरण इस प्रकार है वि० सं० १४८० ज्येष्ठ सुदि ७ मंगलवार वि० सं० १४८९ वैशाख वदि १२ रविवार वि० सं० १४८५ ज्येष्ठ सुदि ७ मंगलवार गुणसागरसूरि आपकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमायें मिली हैं, जिन पर वि० सं० १४८३ से वि० सं० १५११ तक के लेख उत्कीर्ण हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि०सं० १४८३ वि०सं० १४८३ प्र० ले० सं० लेखांक २२३ भाग १ बी० जै० ले० लेखांक ७०४ सं० जै० ले० सं० लेखांक १२४१ भाग-२ वैशाख सुदि ५ जै० धा० प्र० लेखांक ४६५ गुरुवार ले० सं०, भाग २ फाल्गुन सुदि १० वही, भाग २ लेखांक १०१४ गुरुवार वि० सं० १४८३ फाल्गुन सुदि १० वही, भाग १ लेखांक ११७८ गुरुवार Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वैशाख सुदि ३ वही, भाग १ लेखांक १०६७ वि० सं० १४८६ वि० सं० १५०४ ज्येष्ठ सुदि ९ वही, भाग १ लेखांक ११७१ रविवार वि० सं० १५११ आषाढ वदि ९ बी० जै० लेखांक ९४५ शनिवार ले० सं० वि० सं० १५११ के लेख में सर्वाणंदसूरि के पट्टधर (?) के रूप में इनका उल्लेख मिलता है। गुणसागरसूरि के शिष्य हेमरत्नसूरि __इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिली हैं, जो वि० सं० १४८६ और वि० सं० १५२१ की हैं : वि० सं० १४८६ ज्येष्ठ सुदि ९ जै० धा० प्र० लेखांक १३९ बुधवार ले० सं०, भाग २ वि०सं० १५२१ वैशाख सुदि ३ वही, भाग १ लेखांक ८४७ सोमवार गुणसागरसूरि के पट्टधर गुणसमुद्रसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २१ जिन प्रतिमायें मिली हैं, जो वि०सं० १४९२ से वि०सं० १५१२ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १४९२ वैशाख सुदि ३ प्रा० ले० सं० लेखांक १५८ गुरुवार वि० सं० १५०१ वैशाख सुदि १३ जै० धा० प्र० लेखांक २२५ गुरुवार ले० सं०, भाग १ वि० सं० १५०१ ज्येष्ठ वदि ९ जै० ले० सं०, लेखांक १५६५ रविवार भाग १ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४५ प्रा० ले० सं० लेखांक २०५ जै० धा० प्र० लेखांक ८१२ ले० सं०, भाग २ जै० प्र० ले० सं० लेखांक ३६० पूर्णिमागच्छ वि० सं० १५०४ ज्येष्ठ वदि ९ रविवार वि० सं० १५०५ वैशाख सुदि ५ रविवार वि० सं० १५०५ माघ सुदि ५ रविवार वि० सं० १५०६ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार वि० सं० १५०६ माघ वदि ७ बुधवार वि० सं० १५०७ ज्येष्ठ सुदि ६ गुरुवार वि० सं० १५०७ माघ सुदि ११ बी० जै० ले० सं० लेखांक २४७८ जै० धा० प्र० लेखांक १०७९ ले० सं०, भाग वही, भाग १ लेखांक ४२५ वही, भाग २ लेखांक ४४१ बुधवार वि० सं० १५०८ वैशाख सुदि ३ वही, भाग २ लेखांक ९५७ शनिवार वि० सं० १५०८ ज्येष्ठ सुदि १३ जै० ले० सं०, लेखांक २३२६ बुधवार भाग ३ वि० सं० १५०८ ज्येष्ठ सुदि १० जै० धा० प्र० लेखांक १०१७ बुधवार ले० सं०, भाग १ वि० सं० १५०९ ज्येष्ठ सुदि १० वही, भाग २ लेखांक १०३४ गुरुवार वि० सं० १५१० फाल्गुन सुदि ११ वही, भाग २ लेखांक ९६४ शनिवार वि० सं० १५११ ज्येष्ठ वदि १० वही, भाग २ लेखांक १३८ सोमवार Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४६ वि० सं० १५११ ज्येष्ठ वदि १० सोमवार वि० सं० १५११ वि० सं० १५११ वि० सं० १५११ गुरुवार वि० सं० १५१२ ज्येष्ठ वदि ९ आषाढ़ सुदि ५ शुक्रवार माघ वदि ३ बुधवार माघ सुदि ५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही भाग २ लेखांक ४६२ , वही, भाग २ लेखांक ३७७ प्रा० ले० सं० लेखांक २६७ रा० प्र० ले० सं०लेखांक १७१ जै० ले० सं०, लेखांक २१३६ भाग ३ गुरुवार गुणसमुद्रसूरि के पट्टधर पुण्यरत्नसूरि पुण्यरत्नसूरिकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ३० सलेख जिन प्रतिमायें मिली हैं, जो वि०सं० १५१२ से वि०सं० १५३६ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १५१२ चैत्र वदि ८ वि० सं० १५१७ शुक्रवार वि० सं० १५१२ ज्येष्ठ सुदि ८ रविवार वि० सं० १५१५ फाल्गुन सुदि ९ रविवार वि० सं० १५१७ वैशाख वदि ८ शुक्रवार माघ वदि ८ बुधवार वि० सं० १५१८ फाल्गुन वदि १ सोमवार अ० प्र० जै० लेखांक ५८२ ले० सं० जै० धा० प्र० लेखांक १०६ ले० सं०, भाग १ रा० प्र० ले० सं० लेखांक १९२ जै० ले० सं०, लेखांक २०८५ भाग २, श्री० प्र० ले० सं० लेखांक ७१ जै० धा० प्र० लेखांक १७० ले० सं०, भाग २ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४७ जै० ले० सं० लेखांक १५६७ भाग २ जै० धा० प्र० लेखांक ८२२ ले० सं०, भाग २ रा० प्र० ले० सं०लेखांक २२९ वही, लेखांक १८० पूर्णिमागच्छ वि० सं० १५१९ वशाख वदि ११ शुक्रवार वि० सं० १५१९ वैशाख वदि ११ शुक्रवार वि० सं० १५२० वैशाख सुदि ११ बुधवार वि० सं० १५२० माघ सुदि १० बुधवार वि० सं० १५२२ फाल्गुन सुदि ३ सोमवार वि० सं० १५२४ वैशाख सुदि ३ सोमवार वि० सं० १५२४ वैशाख सुदि ३ सोमवार वि० सं० १५२४ वैशाख सुदि ३ सोमवार वि० सं० १५२४ वैशाख सुदि ३ जै० धा० प्र० लेखांक ५३३ ले० सं०, भाग २ वही, भाग १ लेखांक ११७० बी० जै० ले० सं० लेखांक १८७७ जै० ले० सं०, लेखांक २५८४ भाग ३ जै० धा० प्र० लेखांक १०८१ ले० सं०, भाग २ श० वै० लेखांक १९० सोमवार श्री०प्र० ले० सं० लेखांक ७९ वि० सं० १५२७ ज्येष्ठ वदि १० बुधवार वि० सं० १५२७ ज्येष्ठ वदि १० बुधवार वि० सं० १५२८ माघ वदि ५ गुरुवार वि० सं० १५३० तिथिविहीन जै० धा० प्र० लेखांक ८८७ ले० सं०, भाग १ रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २७२ भाग १ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १५३१ वैशाख वदि ११ जै० ले० सं०, लेखांक ६६ सोमवार भाग १ वि० सं० १५३१ वैशाख वदि ११ जै० धा० प्र० ले० लेखांक २१९ सोमवार वि० सं० १५३१ वैशाख वदि ११ प्रा० ले० सं०, लेखांक ४३८ सोमवार लेखांक ४३९ सोमवार वि० सं० १५३१ वैशाख वदि ११ वही, लेखांक ४४० सोमवार वि० सं० १५३१ वैशाख वदि ११ वही, लेखांक ४४१ सोमवार वि० सं० १५३१ वैशाख वदि ११ जै० धा० प्र० ले० लेखांक ४४० सोमवार सं०, भाग २, वि० सं० १५३१ वैशाख वदि ११ वही, भाग २ लेखांक ४४९ सोमवार वि० सं० १५३२ वैशाख वदि २ प्र० ले० सं०, लेखांक ७४३ शुक्रवार भाग १ वि० सं० १५३४ वैशाख सुदि २ वही, लेखांक ७६९ रविवार वि० सं० १५३६ तिथि विहीन श्री० प्र० ले० सं० लेखांक ११ गुणसमुद्रसूरि के पट्टधर गुणधीरसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित १९ जिनप्रतिमायें मिलती हैं जो वि० सं० १५१६ से वि० सं० १५३६ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार हैं : वि० सं० १५१६ वैशाख वदि १० जै० धा० प्र० लेखांक ९६० ले० सं०, भाग १ गुरुवार Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ वि० सं० १५१६ वि० सं० १५१६ वि० सं० १५१६ वि० सं० १५१६ वि० सं० १५१७ ज्येष्ठ वदि ९ शुक्रवार आषाढ़ सुदि ३ रविवार शुक्रवार वि० सं० १५१८ ज्येष्ठ वदि १० रविवार वि० सं० १५१९ आषाढ़ सुदि ३ रविवार वि० सं० १५१८ ज्येष्ठ वदि १० रविवार वि० सं० १५१८ आषाढ़ सुदि ३ गुरुवार वि० सं० १५१८ आषाढ़ सुदि ३ वि० सं० १५१९ तिथिविहीन फाल्गुन सुदि ३ गुरुवार वि० सं० १५१८ आषाढ़ सुदि ३ गुरुवार आषाढ सुदि १ सोमवार ९४९ जै० ले० सं० लेखांक २४८१ भाग ३ जै० धा० प्र० लेखांक १०९ ले० सं०, भाग १ श्री० प्र० ले० सं०, लेखांक १४० लेखांक ३२ वही, जै० धा० प्र० ले० लेखांक १६५ प्रा० ले० सं०, लेखांक ३२५ जै० ले० सं० लेखांक २१९१ भाग ३, जै० धा० प्र० ले० लेखांक १६६ सं० भाग प्रा० ले० सं० लेखांक ३२६ जै० ले० सं० लेखांक २१३० भाग ३ एवं. बी० जै० ले० सं० लेखांक २८१२ अ० प्र०जै० लेखांक १८७ ले० सं०. आषाढ वदि ११ जै० धा० प्र० ले०लेखांक १०२२ शुक्रवार सं०, भाग १ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५० वि० सं० १५२१ वैशाख सुदि १० रविवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अ० प्र० जै० लेखांक १८४ ले० सं० जै० स० प्र०, वर्ष ६, अंक १० श० वै० वि० सं० १५२४ वैशाख सुदि २ रविवार माघ सुदि १० शुक्रवार वि० सं० १५३१ वैशाख सुदि १० शनिवार वि० सं० १५३० वि० सं० १५३२ वैशाख वदि ५ सोमवार वि० सं० १५३६ फाल्गुन सुदि ३ सोमवार जै० धा० प्र० ले० लेखांक ७५० सं०, भाग २ जै० ले० सं०, लेखांक २५२२ चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, चिन्तामणिशेरी - राधनपुर में प्रतिष्ठापित श्रेयांसनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर वि०सं० १५१२ माघ सुदि १० बुधवार का लेख उत्कीर्ण है । इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठाकी प्रेरणा देने वाले आचार्य पुण्यरत्नसूरि तथा उनके पूर्ववर्ती तीन आचार्यों गुणसागरसूरि, गुणसमुद्रसूरि और सुमतिप्रभसूरि का भी नाम मिलता है, जो इस प्रकार है : I गुणसागरसूरि 1 गुणसमुद्रसूरि 1 पुण्यरत्नसूरि लेखांक २०३ भाग ३ श्री० प्र० ले० सं० लेखांक ९५ I सुमतिप्रभसूर [वि०सं० १५१२ में श्रेयांसनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक ] Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ९५१ इस प्रकार पुण्यरत्नसूरि का गुणसमुद्रसूरि और सुमतिप्रभसूरि दोनों के पट्टधर के रूप में उल्लेख मिलता है । ऐसा प्रतीत होता है कि सुमतिप्रभसूरि और पुण्यरत्नसूरि दोनों परस्पर गुरुभ्राता थे और इन दोनों मुनिजनों के गुरु थे गुणसमुद्रसूरि । गुणसमुद्रसूरि के पश्चात् उनके शिष्य सुमतिप्रभसूरि उनके पट्टधर बने और सुमतिप्रभसूरि के पट्टधर उनके कनिष्ठ गुरुभ्राता पुण्यरत्नसूरि हुए । इसीलिये गुणसमुद्रसूरि और सुमतिप्रभसूरि दोनों के पट्टधर के रूप में पुण्यरत्नसूरि का उल्लेख मिलता है । उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की जो छोटी-छोटी गुर्वावली प्राप्त होती है उन्हें इस प्रकार समायोजित किया जा सकता है : हेमरत्नसूर [वि०सं० १४८६ ] सुमतिप्रभसूरि [मुख्यपट्टधर] तालिका २ सर्वाणंदसूर I गुणसागरसूरि | [वि०सं० १४८० - १४८५ ] [वि० सं० १४८३ - १५११] गुणसमुद्रसूरि [वि० सं० १४९२ - १५१२] पुण्यरत्नसूरि [पट्टधर] [वि०सं० १५१२ १५३४] प्रतिमालेख गुणधीरसूरि [शिष्यपट्टधर] [वि०सं० १५१६ १५३६] प्रतिमालेख Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों से कुछ अन्य मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध भी स्थापित होते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : मुनिशेखरसूरि के पट्टधर साधुरत्नसूरि पूर्णिमागच्छीय साधुरत्नसूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २८ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं । इन पर वि० सं० १४८५ से १५२७ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १४८५ वैशाख सुदि६ जै० धा० प्र० ले० लेखांक ७७ रविवार वि० सं० १४८५ ज्येष्ठ वदि ५ बी० जै० ले० सं० लेखांक ७२८ रविवार वि० सं० १४८५ ज्येष्ठ वदि ११ वही, लेखांक १५९८ शनिवार वि० सं० १४८७ कार्तिक वदि ५ जै० ले० सं० लेखांक २३०० गुरुवार भाग ३ वि० सं० १४८७ माघ सुदि ५ श०गि०द०, लेखांक ४६७ गुरुवार वि० सं० १४८९ वैशाख सुदि प्रा० ले० सं० लेखांक १४४ वि० सं० १४८९ फाल्गुन सुदि ३ जै० ले० सं० लेखांक २३०५ भाग ३ वि० सं० १५०२ पौष वदि १० । बी० जै० ले० लेखांक ८६१ बुधवार सं० वि० सं० १५०३ ज्येष्ठ सुदि ७ प्रा० ले० सं० लेखांक १९६ सोमवार वि० सं० १५०६ माघ सुदि १३ ।। जै० धा० प्र० लेखांक ११३० रविवार ले० सं० Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ वि० सं० १५०९ वि० सं० १५०९ पौष वदि ५ रविवार वि० सं० १५१० ज्येष्ठ सुदि ३ गुरुवार वि० सं० १५१० माघ सुदि १० बुधवार वि० सं० १५१२ माघ सुदि ५ सोमवार वि० सं० १५१३ पौष वदि २ वैशाख सुदि ३ शनिवार बुधवार वि० सं० १५१३ पौष वदि ३ वि० सं० १५१५ वि० सं० १५१५ गुरुवार ज्येष्ठ सुदि ९ माघ सुदि १ शुक्रवार माघ सुदि १ वि० सं० १५१५ शुक्रवार वि० सं० १५१६ वैशाख वदि १२ शुक्रवार एवं जै० ९५३ बी० जै० ले० सं० ० धा० प्र० लेखांक १४३५ ले० सं० प्र० ले० सं०, लेखांक ४६० लेखांक १४३५ एवं रा० प्र० ले० सं० लेखांक १६७ श्री०प्र० ले० सं० लेखांक २२१ श०गि०द०, जै० धा० प्र० लेखांक १२३२ ले० सं०, भाग १ वही, भाग २ लेखांक ७९० लेखांक ४२२ श्री० प्र० ले० सं० लेखांक २ प्रा० ले० सं०, लेखांक २९९ जै० धा० प्र० लेखांक ९४९ ले० सं० भाग २ जै. ले. सं. भाग १ लेखांक ५५४ प्र० ले० सं० लेखांक ५५२ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १५१७ माघ सुदि ५ श०गि०द०, लेखांक ४८५ गुरुवार वि० सं० १५१९ वैशाख सुदि ३ रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २२१ गुरुवार वि० सं० १५१९ मार्गशिर सुदि ४ श्री० प्र० ले० सं०, लेखांक ८ गुरुवार वि० सं० १५२२ ज्येष्ठ वदि ८ जै० ले० सं०, लेखांक २३४६ सोमवार भाग ३ वि सं. १५२७ ज्येष्ठ वदि ७ जै० स० प्र० पृष्ठ ३०३ सोमवार वर्ष ८, अंक १० लेखांक १६ साधुरत्नसूरि के शिष्य ( ? ) श्रीसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जिस पर वि०सं० १४८६ ज्येष्ठ सुदि ६ रविवार का लेख उत्कीर्ण है। साधुरत्नसूरि के पट्टधर साधुसुन्दरसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित प्रतिमायें मिली हैं जो वि०सं० १५०७ से वि०सं० १५३३ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १५०७ वैशाख वदि ११ जै० धा० प्र० लेखांक १००४ बुधवार ले० सं०, भाग १ वि० सं० १५१५ फाल्गुन सुदि ४ श्री०प्र० ले० सं० लेखांक २६२ वि० सं० १५१५ फाल्गुन सुरि ८ अ० प्र० जै० लेखांक १७१ शनिवार ले० सं० वि० सं० १५१५ , जै० धा० प्र० ले० लेखांक १५० वि० सं० १५१५ ,, जै० स० प्र०, वर्ष ५, अंक ४ "धातु Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुक्रवार पूर्णिमागच्छ ____ ९५५ प्रतिमाना लेखो" संपा० मुनि कांतिसागर लेखांक २५ । वि० सं० १५१७ ज्येष्ठ वदि ५ जै० धा० प्र० लेखांक ८८५ ले० सं०, भाग १ वि० सं० १५१७ फाल्गुन सुदि ३ रा०प्र० ले० सं०, लेखांक २१० शुक्रवार वि० सं० १५१७ ,, जै० धा० प्र० लेखांक ९८३ ले० सं०, भाग २ वि० सं० १५१७ ,, वही, भाग २, लेखांक ११३० वि० सं० १५१७ ,, वही, भाग १, लेखांक ३४५ वि० सं० १५१७ फाल्गुन सुदि वही, भाग २, लेखांक १०२६ शनिवार वि०सं० १५१८ वैशाख सुदि ३ श० वै० लेखांक १५९ शनिवार एवं ३५९ वि० सं० १५१८ ,, जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १६७ वि० सं० १५१८ ,, जै० धा० प्र० लेखांक ८७४ ले० सं०, भाग १ वि० सं० १५१९ वैशाख वदि ११ वही, भाग १, लेखांक ८८३ शुक्रवार वि० सं० १५१९ ,, प्रा० ले० सं०, लेखांक ३३७ वि० सं० १५१९ माघ सुदि ४ वही, लेखांक ३३१ रविवार वि० सं० १५२१ जै० धा० प्र० लेखांक ६१८ शुक्रवार ले० सं०, भाग २, Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५६ वि० सं० १५२१ फाल्गुन सुरि ५ गुरुवार वि० सं० १५२२ पौष वदि १ गुरुवार वि० सं० १५२३ वैशाख सुदि ४ बुधवार एवं वि० सं० १५२३ वैशाख सुदि ९ सोमवार वि० सं० १५२३ वि० सं० १५२३ वि० सं० १५२५ माघ सुदि १ बुधवार वि० सं० १५२५ वैशाख वदि १ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अ० प्रा० जै० लेखांक ५०९ ले० सं० रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २४१ "" वि० सं० १५२६ वि० सं० १५२५ पौष वदि ५ सोमवार "" आषाढ़ सुदि ८ शुक्रवार प्र० ले०सं०, लेखांक ६२७ जै० ले० सं० लेखांक ११५६ भाग २, जै० स० प्र०, वर्ष ५ अंक ४ "धातु प्रतिमाना लेखो" संपा० मुनि कांतिसागर, लेखांक ३२ जै० ० धा० प्र० ले०, लेखांक १८७ वही, लेखांक १८८ प्र० ले० सं०, लेखांक ६५६ जै० ० धा० प्र० लेखांक २२६ ले० सं०, भाग २, जै० धा० प्र० लेखांक २७ ० सं० भाग १, वही, भाग १, लेखांक ४५ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ वि० सं० १५२७ वैशाख वदि ६ शुक्रवार एवं वि० सं० १५२७ वि० सं० १५२७ वैशाख वदि १० वि० सं० १५२७ वैशाख वदि ११ बुधवार माघ सुदि६ सोमवार एवं वि० सं० १५२९ "" गुरुवार एवं वि० सं० १५३२ कार्तिक वदि १ सोमवार ९५७ प्र० ले० सं०, लेखांक ६८३ जै० ले० सं०, लेखांक ७६८ भाग १ प्रा० ले० सं०, जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १ प्रा० ले० सं०, लेखांक ४१२ प्र० ले० सं०, लेखांक ७१७ वि० सं० १५३० पौष वदि २ बुधवार वि० सं० १५३१ कार्तिक सुदि १२ जै० धा० प्र० लेखांक ४७ शनिवार ० सं० भाग १ वि० सं० १५३२ चैत्र वदि २ प्र० ले० सं०, लेखांक ७४० लेखांक ४१० लेखांक ८०७ जै० ले० सं० लेखांक १२८१ भाग २ प्रा० ले० सं०, लेखांक ४२७ जै० ले० सं० लेखांक ५६१ भाग १, जै० धा० प्र० लेखांक १०३९ ले० सं०, भाग २ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५८ वि० सं० १५३३ वैशाख सुदि ४ बुधवार साधुसुन्दरसूरि के पट्टधर देवसुन्दरसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमायें मिली हैं जिनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १५४५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रा० ले० सं० लेखांक ४५२ फाल्गुन वदि २ मंगलवार श्री प्रतिमा लेखांक २१७ ले० सं०, प्रा० ले० सं०, लेखांक ४९५ वि० सं० १५४७ माघ सुदि १० गुरुवार वि० सं० १५४८ कार्तिक सुदि १२ शुक्रवार आधार पर पूर्णिमागच्छीय गुरु उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों के परम्परा की एक संक्षिप्त तालिका इस प्रकार बनायी जा सकती है : रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३१० Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ तालिका ३ मुनिशेखरसूरि साधुरत्नसूरि [वि०सं० १४८५ - १५१९] २३ प्रतिमालेख श्रीसूरि [वि०सं० १४८६] १ प्रतिमालेख साधुसुन्दरसूरि [वि०सं० १५०६ - १५३३] ३७ प्रतिमालेख देवसुन्दरसूरि [वि०सं० १५४५-१५४८] ३ प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छ के कुछ अन्य मुनिजनों के भी पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं, परन्तु उनके आधार पर इस गच्छ की गुरु-परम्परा की किसी तालिका को समायोजित कर पाना कठिन है। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : १. जयप्रभसूरि [वि० सं० १४६५] २. जयप्रभसूरि के पट्टधर जयभद्रसूरि [वि० सं० १४८९-१५१९] ३. विद्याशेखरसूरि के पट्टधर गुणसुन्दरसूरि [वि० सं० १५०४ - १५२४] ४. जिनभद्रसूरि [वि० सं० १४७३ - १४८१] Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ५. जिनभद्रसूरि के पट्टधर धर्मशेखरसूरि [वि० सं० १५०३ - १५२०] ६. धर्मशेखरसूरि के पट्टधर विशालराजसूरि [वि० सं० १५२५ - १५३०] ७. वीरप्रभसूरि [वि० सं० १४६४ - १५०६] ८. वीरप्रभसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि [वि० सं० १५१० - १५३३] अभिलेखीय साक्ष्यों से पूर्णिमागच्छ के अन्य बहुत से मुनिजनों के नाम भी ज्ञात होते हैं, परन्तु वहां उनकी गुरु-परम्परा का नामोल्लेख न होने से उनके परस्पर सम्बन्धों का पता नही चल पाता । साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरु-शिष्य परम्परा [तालिका संख्या १] के साथ भी इन मुनिजनों का पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता, फिर भी इनसे इतना तो स्पष्ट रूप से सुनिश्चित हो जाता है कि इस गच्छ के मुनिजनों का श्वेताम्बर जैन समाज के एक बड़े वर्ग पर लगभग ४०० वर्षों के लम्बे समय तक व्यापक प्रभाव रहा। ___अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका संख्या ३ का साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरुशिष्य परम्परा की तालिका संख्या १ के साथ परस्पर समायोजन संभव नहीं हो सका, किन्तु तालिका संख्या १ और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संकलित तालिका संख्या २ के परस्पर समायोजन से पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की जो विस्तृत तालिका बनती है, वह इस प्रकार Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका ४ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छीय गुरु-शिष्य परम्परा ? शिलगुणसूरि मानतुंगसूरि मलयप्रभसूरि वि०सं०१२६० मे जयंती प्रसोत्ता के कर्ता यशोदेव मानदेव धर्मघोषसूरि समुद्रघोषसूरि मुनिरलसूरि [वि. सं. १२२५ अममस्वामिचरितमहाकाव्य के कर्ता] प्रद्युम्न यशोघोषसूरि सर्वदेवसूरि T जयसिंहसूरि - चन्द्रप्रभसूरि I हेमप्रभसूरि वि. सं. सं. १२४३ प्रश्नोत्तररत्नमाला वृत्ति अजितसिंह [वि. सं. ११४९/५९ पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक] चक्रेश्वरसूरि शिवप्रभसूरि 1 तिलकाचार्य [वि. सं. १२६१ प्रत्येकबुद्धचरित] 1 धर्मप्रभसूरि I (उद्योतनसूरि द्वितीय के समकालीन प्रमुख आचार्य ] त्रिदशप्रभसूरि समन्तभद्र विमलगणि [वि. सं. १९८१ दर्शनशुद्धिवृत्ति ] 1 देवभद्रसूरि [वि. सं. १२२४ दर्शनशुद्धिबृहद्वृत्ति ] 1 जिनदत्तसूरि 1 शांतिभद्रसूरि 1 भद्रेश्वरसूरि 1 1 1 मुनिप्रभसूरि सर्वदेवसूरि 1 सोमप्रभसूरि I देवसूरि I तिलकप्रभसूरि I वीरप्रभसूरि 1 अजितप्रभसूरि (वि. सं. १३०७ शांतिनाथचरित के कर्ता) पूर्णिमागच्छ ९६१ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यराजगणि अभयप्रभसूरि I रत्नप्रभसूरि | कमलप्रभसूरि [वि. सं. १३६२ में पुण्डरीकचरित के रचनाकार ] गुणधीरसूरि [वि. सं. १५१६-१५३६] I पुण्यरत्नसूरि सुमतिरत्नसूरि I भुवनतिलकसूरि रत्नप्रभसूरि हेमतिलकसूरि |·|·|-·|-·|·|-·| हेमरत्नसूरि हेमप्रभसूरि रत्नशेखरसूरि रत्नसागरसूरि I गुणसागरसूरि [वि. सं. १४८३-१५११ प्रतिमालेख] | गुणसमुद्रसूरि सुमतिप्रभसूरि [वि. सं. १५१२-१५३६ - प्रतिमालेख ] रत्नप्रभसूरि 1 चन्द्रसिंहसूरि I देवसिंहसूर I पद्मतिलकसूरि I श्रीतिलकसूरि 1 देवचन्द्रसूरि I पद्मप्रभसूरि I देवानन्दसूरि [वि. सं. १४५५ में क्षेत्रसमासवृत्ति के कर्ता] T अभयचन्द्रसूरि रामचन्द्रसूरि [वि. सं. १४९० विक्रमचरित के रचनाकार ] उदयसमुद्रसूरि [वि. सं. १५८० पूर्णिमागच्छ्गुर्वावली के रचनाकार ] ९६२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ संदर्भसूची : १. तस्मिन्नुग्रविशालशीलकलितस्वाध्यायध्यानोद्यतो त्सर्पच्चारुतपः सुसंयमयुतश्रेयः सुधाः... लयः । सच्छीलांगदलः कलंकविकलो ज्ञानादिगंधोद्धरः सेव्यो देवनृपद्विरेफसुततेः श्रीचन्द्रगोऽबुजः ॥ ४ ॥ तस्मिंस्तीर्थविभूषकेऽभवदथ श्रीसर्वदेवप्रभ: सूरि सीलनिधिधिया जितमरुत्सूरिः सतामग्रणीः । तस्याऽप्यद्भुतचारुचंचदमलोत्सर्पद्गुणैकास्पदं ___ स्याच्छिष्यो जयसिंहसूरिरमलस्तस्यापि भूभूषणम् ॥ ५ ॥ हेलानिर्जितवादिवृंदकलिकालाशेषलुप्तव्रता चारोत्सर्पितसत्पथैककदिनः सिंहः कुमार्गद्विपे। चंचच्चंचलचित्तवृत्तिकरणग्रामाश्वघातो वभू ___ श्रीचंद्रप्रभसूरिचारुचरितश्चारित्राणामग्रणीः ॥ ६ ॥ ज्ञानादित्रयरत्नरोहणगिरिः सच्छीलपाथोनिधि भॊरो धीधनसाधुसंहतिपतिः श्रीधर्मधूर्धारकः । स्यात् सिद्धांतहिरण्यघर्षणकृते पट्टः पटुः शुद्धधीः शिष्यो गच्छपतिः प्रतापतरणिः श्रीधर्मघोषप्रभुः ॥ ७ ॥ तच्छिप्यविमलगणिना कृतिना भ्रात्राऽनुजेन शास्त्रस्य। अस्योच्चैर्वृत्तिरियं विहिता साहाय्यतः सुधिया ॥८॥ दर्शनशुद्धिवृत्ति की प्रशस्ति Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm - Leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay [G.O.S. No. 135 and 149] Baroda 1961 - 66 A.D., pp. 269-270. C.D. Dalal - A Descriptive Catalogue of Mss in the Jaina Bhandars at Pattan [G.O.S. No. LXXVI] Baroda - 1937. A.D., Pp. 5-7. Muni Punyavijaya - New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss : Jesalmer Collection, [L.D. Series No. 36] Ahmedabad 1972 A.D. p. 79. Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 ९६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास 8. Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm - Leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay, pp. 349-356. ४अ. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मुंबई १९३३ ई०, कंडिका ४९४. वही, कंडिका ४९५. वही, पृष्ठ ४१०. ७. वही, पृष्ठ ४३२. वही, पृष्ठ ४४४. Muni Punyavijaya - New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss : Jesalmer Collection, P. 236. देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३७९ गुलाबचंद्र चौधरी - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६ (पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २०) वाराणसी १९७३ ई०, पृष्ठ ५१५. मुनिजिनविजय - संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह. सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३ बम्बई १९६१ ई० पृष्ठ २३२ - २३४. मुनि कल्याणविजय - संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह, श्री कल्याणविजय शास्त्र संग्रह समिति, जालौर १९६६ ई० पृष्ठ २१९. संकेत सूची जै० ले० सं० - जैनलेखसंग्रह, भाग १-३, संपा० पूरनचन्द नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, १९२९ ई० प्रा०जै० ले० सं०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, संपा० मुनि जिनविजय, जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर १९२१ ई० प्रा० ले० सं० - प्राचीनलेखसंग्रह, संपा० विजयधर्मसूरि, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला भावनगर १९२९ ई० जै० धा० प्र० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १-२, संपा० बुद्धिसागरसूरि, श्री ले० सं० अध्यात्मज्ञान प्रसारक मंडल, पादरा १९२४ ई० अ०प्रा०० - अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह (आबू) - भाग २, संपा० मुनि ले० सं० जयन्तविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, उज्जैन वि० सं० १९९४ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ अ० प्र० जै० ले० सं० जै० धा० प्र० ले० - जैनधातुप्रतिमालेख, संपा० मुनि कांतिसागर, प्रकाशक- श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, सूरत १९५० ई० प्र० ले० सं० बी० जै० ले० सं०- बीकानेरजैनलेखसंग्रह, संपा० अगरचन्द नाहटा व भंवरलाल नाहटा, नाहटा ब्रदर्स, ४ जगमोहन मलिक लेन, कलकत्ता १९५५ ई० जै० ९६५ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, आबू - भाग ५, संपा० मुनि जयन्तविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि० सं० २००५ श्री प्र० ले० सं०- श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० दौलतसिंह लोढ़ा, प्रका०- यतीन्द्र साहित्य सदन, धामणिया, मेवाड १९५१ ई० जैन सत्य प्रकाश ० स० प्र० श०गि०५० श० वै० प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, संपा० महोपाध्याय विनयसागर, सुमतिसदन, कोटा - राजस्थान १९५३ ई० शत्रुंजयगिरिराजदर्शन, संपा० मुनि कंचनसागर, प्रका० - आगमोद्धारक ग्रन्थमाला, कपडवज १९८२ ई० शत्रुंजयवैभव, संपा० मुनि कांतिसागर, कुशलसंस्थान, पुष्प ४, जयपुर १९९० ई रा० प्र० ले० सं०- राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० मुनि विशालविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९६० ई Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ - प्रधानशाखा अपरनाम ढंढेरियाशाखा का संक्षिप्त इतिहास चन्द्रकुल के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य आचार्य चन्द्रप्रभसूरि द्वारा वि०सं० ११४९/ई० सन् १०९३ अथवा वि० सं० ११५९ /ई० सन् ११०३ में प्रवर्तित पूर्णिमागच्छ की कई अवान्तर शाखायें समय-समय पर अस्तित्व में आयीं, यथा प्रधानशाखा या ढंढेरियाशाखा, कच्छोलीवालशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, सार्धपूर्णिमाशाखा, भृगुकच्छीयाशाखा, वटप्रदीयाशाखा आदि । इन शाखाओं में प्रधानशाखा या ढंढेरियाशाखा सबसे प्राचीन मानी जाती है। आचार्य चन्द्रप्रभसूरि के प्रशिष्य समुद्रघोषसूरि के द्वितीय शिष्य सुरप्रभसूरि इस शाखा के प्रथम आचार्य माने गये हैं । इस शाखा में आचार्य जयसिंहसूरि, जयप्रभसूरि, भुवनप्रभसूरि, यशस्तिलकसूरि, कमलप्रभसूरि, पुण्यप्रभसूरि, महिमाप्रभसूरि, ललितप्रभसूरि आदि कई प्रखर विद्वान् आचार्य हो चुके हैं। पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये इस शाखा के मुनिजनों द्वारा रची गयी कृतियों की प्रशस्तियां तथा बड़ी संख्या में दूसरों से लिखवायी गयी अथवा स्वयं उनके द्वारा की गयी प्रतिलिपियों की प्रशस्तियां, पट्टावली, प्रतिमालेख आदि उपलब्ध हैं । अध्ययन की सुविधा के लिए यहां सर्वप्रथम ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियों तत्पश्चात् पट्टावली और अन्त में अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६७ पूर्णिमागच्छ पूर्णिमागच्छ की इस शाखा से सम्बद्ध लगभग ५७ ग्रन्थप्रशस्तियां और पुस्तकप्रशस्तियां या प्रतिलेखनप्रशस्तियां मिलती हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है : Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक संवत् १. २. १५२० तिथि/ मिति चैत्र सुदि ५ सोमवार ग्रन्थ का नाम मूल प्रशस्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति किरातार्जुनीय - मूल प्रशस्ति अवचूरि १५२० माघ सुदि क्रियाकलाप |५ गुरुवार प्रतिलेखन प्रशस्ति प्रशस्तिगत प्रतिलिपि आचार्य / कार मुनि का नाम संदर्भ ग्रन्थ जयप्रभसूरि जयप्रभसूरि Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss : Muniraja Shree Punyavijayaji's Collection, Ed. A.P. Shah, | Ahmedabad - 1963-68 A. D. जयप्रभसूरि एवं जयप्रभसूरि वही, उनके शिष्य पूर्णकलश क्रमांक ६०३३, पृ० ३८८ ९६८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक संवत् तिथि/ मिति ३. ४. ५. ६. १५२१ मार्गशीर्ष नन्दीसूत्र वदि ४ ग्रन्थ का नाम रविवार १५२३ कार्तिक प्रश्नोत्तर सुदि २ रत्नमाला शुक्रवार १५२७ चैत्र शब्दपदार्थी सूत्रवृत्ति सुदि ७ गुरुवार १५२९ फाल्गुन न्यायप्रवेशवृत्ति सुदि १ शुक्रवार मूल प्रशस्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति "" "" "" " प्रशस्तिगत प्रतिलिपि आचार्य / कार मुनि का नाम जयसिंहसूरि के शिष्य जयप्रभसूर जयप्रभसूरि जयप्रभसूरि एवं उनके शिष्य यशस्तिलकमुनि "" संदर्भ ग्रन्थ जयप्रभसूरि वही, क्रमांक ७२६, पृ० ६३ जयप्रभसूरि वही, क्रमांक ३३९६, पृ० १९३ जयप्रभसूरि वही, क्रमांक १५२ पृ० १३ जयप्रभसूरि वही, क्रमांक १९० | पृ० १६ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा ९६९ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्ति वही, क्रमांक संवत् | तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ । मिति प्रतिलेखन ___ आचार्य/ कार प्रशस्ति | मुनि का नाम ७. | १५५१ | आश्विन | कर्पूरप्रकरण । प्रतिलेखन जयप्रभसूरि एवं | जयप्रभसूरि वही, शुक्ल १ उनके शिष्य क्रमांक ३८०५, बुधवार जयमेरु पृष्ठ २२० ८. | १५५३ | चैत्र पाक्षिकसूत्र- , भुवनप्रभसूरि सुद ८ अवचूरि एवं उनके शिष्य क्रमांक ९५० रविवार कमलसंयम तथा पृ० ७८ वीरकलश ९. | १५५५ | आश्विन |स्नात्रपंचाशिका भुवनप्रभसूरि | वीरकलश वही, सुद १३ एवं शिष्य क्रमांक २२७८ वीरकलश पृष्ठ ११० १०. | १५५५ | भाद्रपद | चतुःशरण जयप्रभसूरि जयप्रभसूरि |वही, क्रमांक ४६४, सुदि ९ अवचूरि पृ० ४३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा क्रमांक | संवत् | तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति । नाम । प्रतिलेखन | आचार्य/ प्रशस्ति । मुनि का नाम ११. | १५५५ / मार्गशीर्ष | पाक्षिकसूत्र भुवनप्रभसूरि | मुनिरत्नमेरु |वही, वदि ४ अवचूरि एवं उनके शिष्य क्रमांक ९५१, रविवार मुनि रत्नमेरु पृ०७८ १२. | १५६५ | भाद्रपद | प्रज्ञापनासूत्र । | प्रतिलेखन | भुवनप्रभसूरि वही, वदि ४ की दाता क्रमांक २६६, रविवार प्रशस्ति पृ० ३५ १३. | १५६६ | श्रावण | भगवतीसूत्र भुवनप्रभसूरि वही, प्रतिपदा | वृत्ति क्रमांक ३८८, पृ० ३५ १४. | १५६६ / कातिक प्रतिक्रमणसूत्र । प्रतिलेखन - भुवनप्रभसूरि । मुनि वही, वदि ४ वृत्ति प्रशस्ति एवं उनके शिष्य | राजसुन्दर क्रमांक ८००, कमलप्रभसूरि पृ० ६१ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार क्रमांक | संवत् | तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम प्रतिलेखन आचार्य/ प्रशस्ति | मुनि का नाम १५. | १५७८ | ज्येष्ठ वत्सकुमारकथा | प्रतिलेखन | भुवनप्रभसूरि राजमाणिक्य वही, वदि ९ प्रशस्ति एवं उनके शिष्य क्रमांक ४८७७, कमलप्रभसूरि पृ० ३०७ एवं उनके शिष्य राजमाणिक्य १६. | १५७४ | चैत्र आदिनाथ जयप्रभसूरि मुनि रत्नमेरु वही, सुदि १३ महाकाव्य के शिष्य क्रमांक ४७४८, बुधवार भुवनप्रभसूरि पृ० २७२ एवं उनके शिष्य मुनिरत्नमेरु जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक संवत् तिथि / मिति १७. १५७५ १८. १९. १५८८ ज्येष्ठ वदि ४ गुरुवार तिथि विहीन ग्रन्थ का नाम कृतकर्मनृप चरित्र प्रमाणमंजरी १५९० वैशाख दशवैकालिक सुदि ५ शुक्रवार वृत्ति मूल प्रशस्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति "" "" प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति प्रशस्तिगत आचार्य / मुनि का नाम कमलप्रभसूरि एवं उनके शिष्य राजमाणिक्य जयसिंहसूरि एवं उनके शिष्य यशस्तिलकसूरि कमलप्रभसूरि एवं उनके पट्टधर पुण्यप्रभसूरि प्रतिलिपि कार संदर्भ ग्रन्थ राजमाणिक्य वही, क्रमांक ३८९१, पृ० २२४ यशस्तिलक- वही, सूरि क्रमांक १४४, पृ० १२ वही, क्रमांक १०३५, | पृ० ८४ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा ९७३ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७४ क्रमांक | संवत् । तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम प्रतिलेखन | आचार्य/ कार प्रशस्ति । मुनि का नाम २०. | १५९६ | पौष दशवैकालिक पुण्यप्रभसूरि | भीमा वही, वदि ५ अवचूरि एवं उनके शिष्य क्रमांक १०८४ भीमा पृ० ८७ २१. | १५९९ | तिथि संगीतोपनिषत् वही, विहीन सारोद्धार क्रमांक ६३६५, पृ० ४१७-४१८ २२. | १५९९ / कार्तिक औपपातिकसूत्र | प्रतिलेखन कमलप्रभसूरि वही, सुदि६ की दाता एवं उनके क्रमांक ३५१ शनिवार प्रशस्ति | पट्टधर पृ० ३२ पुण्यप्रभसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा क्रमांक | संवत् | तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम | प्रतिलेखन | आचार्य/ प्रशस्ति । मुनि का नाम २३. | १६०५ / भाद्रपद आचारांग भुवनप्रभसूरि वही, क्रमांक २०६, वदि ५ दीपिका एवं उनके पृ० १८ शुक्रवार पट्टधर कमलप्रभसूरि एवं उनके पट्टधर पुण्यप्रभसूरि २४. | १६०८ | वैशाख । यतिदिनचर्या कमलप्रभसूरि वही, सुदि १३ एवं उनके क्रमांक २८००, शुक्रवार पट्टधर पृ० १४० पुण्यप्रभसूरि Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ क्रमांक | संवत् | तिथि/| ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ || मिति नाम प्रतिलेखन | आचार्य/ कार प्रशस्ति । मुनि का नाम २५. | १६०९ | चैत्र प्रज्ञापनावृत्ति । प्रतिलेखन भुवनप्रभसूरि वही, सुदि ५ की दाता के पट्टधर क्रमांक ३९६, प्रशस्ति कमलप्रभसूरि पृ० ३६ के पट्टधर पुण्यप्रभसूरि २६. | १६११ | पौष |जिनस्तवन- प्रतिलेखन | पुण्यप्रभसूरि वही, सुदि ९ |अवचूरि । प्रशस्ति क्रमांक ११९३, मंगलवार पृ० ९० २७. | १६२४ / चैत्र | त्रिष्टिशलाका भुवनप्रभसूरि वही, सुदि ५ पुरुषचरित एवं के शिष्य क्रमांक ३७८३, शनिवार | परिशिष्टपर्व पुण्यप्रभसूरि के पृ० २१६-२१७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा - क्रमांक | संवत् | तिथि// ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि-/ संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम प्रतिलेखन आचार्य/ | कार प्रशस्ति | मुनि का नाम पट्टधर विद्याप्रभसूरि २८. | १६५० | कातिक | तत्त्वचिन्तामणि | प्रतिलेखन विद्याप्रभसूरि वही, सुदि ५ की दाता के शिष्य क्रमांक ९५, प्रशस्ति ललितप्रभसूरि पृ० १० २९. | १६५४ | आषाढ़ | पंचवस्तुकवृत्ति | प्रतिलेखन । | ललितप्रभसूरि वही, सुदि १३ की दाता क्रमांक २३६२, शुक्रवार प्रशस्ति पृ० १२१ ३०. | १६७५ | आषाढ़ | कल्पसूत्रान्त- | प्रतिलेखन वही, सुदि १३ र्वाच्य की दाता क्रमांक ६९१, गुरुवार प्रशस्ति पृ० ५९ - Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // कार - क्रमांक | संवत् | तिथि// ___ ग्रन्थ का |मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम | प्रतिलेखन | आचार्य/ | प्रशस्ति । मुनि का नाम ३१. | १६७७ | आश्विन | कल्पान्तरवाच्य | प्रतिलेखन | ललितप्रभसूरि | वाचक वही, वदि ३ | टिप्पनक की दाता गुणजी क्रमांक ७००, बुधवार प्रशस्ति पृ० ६१ ३२. | १६९८ | ... वदि | भगवतीबीजक | प्रतिलेखन | ललितप्रभसूरि | मुनिहेमराज |वही, १० प्रशस्ति | के पट्टधर क्रमांक २८०, विनयसूरि के पृ० २७ पट्टधर मुनिहेमराज ३३. | १७०१ / आश्विन शब्दशोभा विनयप्रभसूरि १० क्रमांक ५९५१, मंगलवार पृ० ३७४-७५ - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा क्रमांक | संवत् | तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम प्रतिलेखन | आचार्य/ कार प्रशस्ति । मुनि का नाम ३४. | १७१४ | ज्येष्ठ उत्तराध्ययनसूत्र | प्रतिलेखन । विनयप्रभसूरि विनयप्रभसूरि वही, वदि १३ की संस्कृत की दाता के शिष्य क्रमांक ९९८, शुक्रवार छाया प्रशस्ति | मुनिकीर्तिरत्न पृ०८१ ३५. | १७२२ | आश्विन औपपातिक विनयप्रभसूरि विनयप्रभसूरि वही, वदि ३ स्तवन क्रमांक ३६०, मंगलवार पृ० ३३ ३६. | १७३७ | चैत्र १४ न्यायसिद्धान्त- | प्रतिलेखन | महिमाप्रभसूरि महिमाप्रभसूरि वही, मंगलवार मंजरी लघु- | प्रशस्ति क्रमांक १०८, चिन्तामणि पृ० १०-११ ३७. | १७५० | तिथि वरडाक्षेत्रपाल- मूलप्रशस्ति | महिमाप्रभसूरि - वही, विहीन स्तोत्र अवचूरि पट्टधर क्रमांक ४३४३, भावप्रभसूरि पृ० २६५ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक संवत् तिथि / मिति ३८. ३९. ४०. १७६१ आश्विन तत्त्वार्थसूत्रवदि २ बालावबोध मंगलवार १७६२ ग्रन्थ का नाम माघ ज्ञानसार अष्टक सुदि १३ बालावबोध मंगलवार १७६२ श्रावण वीतराग सुदि ११ कल्पलता मूल प्रशस्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति "" प्रशस्तिगत आचार्य / मुनि का नाम भावरत्नसूरि पुण्यप्रभसूरि के शिष्य महिमाप्रभसूरि मुनि सहजरत्न वही, के शिष्य मुनि सहजरत्न महिमाप्रभसूरि भावरत्नसूरि वही, के शिष्य विद्याप्रभसूरि के शिष्य प्रतिलिपि कार ललितप्रभसूरि के शिष्य संदर्भ ग्रन्थ क्रमांक ३४७३, पृ० २०० क्रमांक २४८८, | पृ० १२५-२६ वहीं, क्रमांक २५३३, |पृ० १२९-१३० ९८० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा क्रमांक | संवत् | तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम | प्रतिलेखन | आचार्य/ कार प्रशस्ति । मुनि का नाम विनयप्रभसूरि के शिष्य महिमाप्रभसूरि ४१. १७६४ संग्रहणीप्रकरण महिमाप्रभसूरि के भावरत्नसूरि वही, पट्टधर क्रमांक ३०७७, भावरत्नसूरि पृ० १६९ ४२. | १७६७ | तिथि शब्दरत्नाकार विनयप्रभसूरि के | भावरत्नसूरि वही, विहीन पट्टधर क्रमांक ६२१४, भावरत्नसूरि पृ० १६९ ४३. | १७६७ | मार्गशीर्ष | अंचलमत महिमाप्रभसूरि | मुनिलाल वही, वदि ९ दलन के शिष्य क्रमांक ३२४७, बालावबोध मुनिलाल पृ० १७८-१७९ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार क्रमांक | संवत् | तिथि/| ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम | प्रतिलेखन | आचार्य/ | प्रशस्ति । मुनि का नाम ४४. | १७७२ | कार्तिक सिद्धान्तकौमुदी प्रतिलेखन | महिमाप्रभसूरि वही, सुदि ५ प्रशस्ति के शिष्य क्रमांक ५८१२, मंगलवार भावप्रभसूरि पृ० ३६९ ४५. | १७८१ / मार्गशीर्ष | श्रीपालचरित्र । प्रतिलेखन | महिमाप्रभसूरि | भावप्रभसूरि वही, शुक्ल की दाता के शिष्य क्रमांक ४२०६, चतुर्दशी प्रशस्ति भावप्रभसूरि पृ० २३९ ४६. | १७८१ अष्टाहिका- मूलप्रशस्ति विनयप्रभसूरि के धुराख्यान पट्टधर क्रमांक २३३३, (गद्य) महिमाप्रभसूरि पृ० ११७ के पट्टधर भावप्रभसूरि वही, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आच पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा क्रमांक | संवत् | तिथि/ ग्रन्थ का मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत | प्रतिलिपि- संदर्भ ग्रन्थ मिति नाम | प्रतिलेखन । आचार्य/ | कार प्रशस्ति | मुनि का नाम ४७. | १७८२ / ज्येष्ठ | फाल्गुन विद्याप्रभसूरि वही, शुक्ल ५ चातुर्मासी के पट्टधर क्रमांक २३२६, व्याख्यान ललितप्रभसूरि पृ० ११२ के पट्टधर विनयप्रभसूरि के पट्टधर महिमाप्रभसूरि के पट्टधर भावप्रभसूरि ४८. | १७९० माघ द्वादशव्रतोच्चार | प्रतिलेखन भावप्रभसूरि वही, वदि १३ | विधि प्रशस्ति क्रमांक २४२४, बुधवार पृ० १२१ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक संवत् तिथि/ मिति ४९. १७९० ५०. ५१. १७९१ १७९२ माघ सुदि ...? ग्रन्थ का नाम पौष वदि २ शनिवार भाद्रपद जिनधर्मवर वदि ८ स्तव सोमवार नैषधमहाकाव्य प्रतिलेखन प्रशस्ति मूल प्रशस्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति कल्पसूत्र अन्तरवाच्य मूलप्रशस्ति "" प्रशस्तिगत प्रतिलिपि - संदर्भ ग्रन्थ आचार्य/ कार मुनि का नाम महिमाप्रभसूरि के पट्टधर भावप्रभसूरि भावप्रभसूरि एवं उनके भावप्रभसूरि वही, क्रमांक ४७७९, पृ० २७८-७९ मुनिलाल वही, क्रमांक १५११, | पृ० ९६ गुरुभ्राता मुनिलाल भावप्रभसूरि भावप्रभसूरि वही, एवं उनके शिष्य भावरत्न क्रमांक ६६२, पृ० ५४ ९८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक संवत् तिथि/ मिति ५२. १७९३ ५३. १७९५ ५४. १७९५ ५५. ग्रन्थ का नाम माघ सुदि ७ लघुवृत्ति प्रतिमाशतक- मूलप्रशस्ति गुरुवार तिथि धातुपाठ विहीन विवरण मूल प्रशस्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति भाद्रपद महावीरस्तोत्र वदि १३ वृत्ति प्रतिलेखन प्रशस्ति मूल प्रशस्ति गुरुवार १७९८ तिथि मुद्रितकुमुदचन्द्र प्रतिलेखन विहीन प्रशस्ति प्रशस्तिगत प्रतिलिपि - आचार्य/ कार मुनि का नाम भावप्रभसूरि भावप्रभसूरि के पट्टधर भावरत्नसूरि भावप्रभसूरि संदर्भ ग्रन्थ पट्टधर भावप्रभसूरि पूर्वोक्त, क्रमांक ३२६३, पृ० १८० - १८१ भावरत्नसूरि वही, क्रमांक ६००९, पृ० ३८७ वही, क्रमांक १७५९, पृ० १०० महिमाप्रभसूरि के भावप्रभसूरि वही, क्रमांक ५१९६, | पृ० ३३७-३३८ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा ९८५ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रशस्तियों की उक्त तालिका में उल्लिखित मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्धों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : । १. जयसिंहसूरि के पट्टधर जयप्रभसूरि २. जयप्रभसूरि के पट्टधर यशस्तिलकसूरि, भुवनप्रभसूरि और जयमेरुसूरि भुवनप्रभसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि, मुनि राजसुन्दरसूरि, मुनिरत्नमेरुसूरि, कमलसंयमसूरि और वीरकलशसूरि ४. कमलप्रभसूरि के पट्टधर राजमाणिक्य और पुण्यप्रभसूरि पुण्यप्रभसूरि के पट्टधर विद्याप्रभसूरि विद्याप्रभसूरि के पट्टधर ललितप्रभसूरि ललितप्रभसूरि के पट्टधर विनयप्रभसूरि विनयप्रभसूरि के पट्टधर कीर्तिरत्नसूरि, मुनि हेमराजसूरि और महिमाप्रभसूरि महिमाप्रभसूरि के पट्टधर भावप्रभसूरि, भावरत्नसूरि और मुनिलाल १०. भावप्रभसूरि के पट्टधर भावरत्नसूरि और ज्योतिरत्नसूरि उक्त विवरण के आधार पर इन मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका अथवा विद्यावंशवृक्ष तैयार होता है, जो इस प्रकार है - 3 ; . Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमलप्रभसूरि प्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छ (प्रधानशाखा) के मुनिजनों का वंशवृक्ष यशस्तिलक [वि० सं० १५२७ - १५२९] प्रशस्ति राजमाणिक्यसूरि [वि०सं० १५७४ में वैरकुमारकथा प्रतिलिपिकर्ता मुनिराजसुन्दरसूरि [वि०सं० १५६६ ] प्रशस्ति ? जयसिंहसूरि | जयप्रभसूर [वि० सं० १५२० - १५५१] प्रशस्ति भुवनप्रभसूरि [वि०सं० १५६५ - १५६६] प्रशस्ति मुनिरत्नमेरुसूरि [वि० सं० १५७४ में आदिनाथमहाकाव्य के प्रतिलिपिकार ] कमलसंयमसूरि [वि० सं० १५५३ में इनके सानिध्य में पाक्षिकसूत्रअवचूरि की प्रतिलिपि की गयी ] पुण्यप्रभसूरि [वि०सं० १५९० - १६११] दाताप्रशस्ति जयमेरुरि [वि० सं० १५५१] प्रशस्ति 1 विद्याप्रभसूरि [वि० सं० १६२४ ] प्रतिलेखनप्रशस्ति मुनिवीरकलश [वि० सं० १५५५ में स्नात्रपंचाशिका के प्रतिलिपिकार ] पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा ९८७ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८८ ललितप्रभसूरि [वि० सं० १६५० - १६७७] दाताप्रशस्ति विनयप्रभसूरि [वि० सं० १७१४ - १७२२] प्रतिलेखनप्रशस्ति कीतिरत्नसूरि [वि० सं० १७१४ में प्रतिलिपित उत्तराध्ययनसूत्र की दाताप्रशस्ति में उल्लिखित] मुनिहेमराजसूरि [वि. सं. १६९८] प्रतिलेखनप्रशस्ति महिमाप्रभसूरि [वि० सं० १७३६] प्रतिलेखनप्रशस्ति सहजरत्नसूरि [वि० सं० १७६१] प्रतिलिपि प्रशस्ति भावप्रभसूरि [वि० सं० १७८१-१७९३] भावरत्नसूरि [वि० सं० १७६२-१७९२] मुनिलाल [वि० सं० १७६७-१७९१] ज्योतिरत्नसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा ९८९ श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने पूर्णिमागच्छ और उसकी कुछ शाखाओं की पट्टावली दी है। इनमें पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा अपरनाम ढंढेरियाशाखा की भी एक पट्टावली है, जिसमें उल्लिखित इस शाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि [पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक] धर्मघोषसूरि समुद्रघोषसूरि सुरप्रभसूरि [पूर्णिमापक्षीय प्रधानशाखा के प्रवर्तक] जिनेश्वरसूरि भद्रप्रभसूरि पुरुषोत्तमसूरि देवतिलकसूरि रत्नप्रभसूरि तिलकप्रभसूरि ललितप्रभसूरि Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास हरिप्रभसूरि जयसिंहसूरि जयप्रभसूरि भुवनप्रभसूरि कमलप्रभसूरि पुण्यप्रभसूरि विद्याप्रभसूरि ललितप्रभसूरि विनयप्रभसूरि महिमाप्रभसूरि भावप्रभसूरि पूर्णिमापक्षीय प्रधानशाखा के मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई है जो वि० सं० १५१२ से वि० सं० १७६८ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : जयसिंहसूरि के पट्टधर जयप्रभसूरि __इनकी प्रेरणा द्वारा द्वारा प्रतिष्ठापित ९ प्रतिमायें मिली हैं । इनका विवरण इस प्रकार है : Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा ९९१ वि० सं० १५१२ माघ सुदि ५ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सोमवार भाग २, संपा० बुद्धिसागरसूरि लेखांक ९६३ वि० सं० १५१९ कार्तिक वदि ५ वही, लेखांक ७४३ शुक्रवार वि० सं० १५१९ , प्राचीनलेखसंग्रह, संग्राहक विजयधर्मसूरि, लेखांक ३२९ वि० सं० १५१९ माघ सुदि ५ श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० सोमवार दौलतसिंह लोढा, लेखांक २६१ वि० सं० १५२१ माघ पूर्णिमा बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक ५७८ वैशाख वदि ११ वही, भाग १, लेखांक १४९२ रविवार वि० सं० १५२५ माघ वदि ५ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, संपा० विनयसागर, लेखांक ६६७ वि० सं० १५२८ कार्तिक सुदि १२ जैनलेखसंग्रह, भाग ३, संपा० शुक्रवार पूरनचन्द नाहर, लेखांक २३४९ वि० सं० १५३१ फाल्गुन सुदि ८ राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह संपा० सोमवार मुनि विशालविजय, लेखांक २७४ जयप्रभसूरि के पट्टधर जयभद्रसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित तीन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं । इनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १५२५ वैशाख सुदि ३ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, संपा० सोमवार अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, लेखांक १३१५ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १५३४ आषाढ़ सुदि १ वही, लेखांक १४३४ गुरुवार वि० सं० १५३६ आषाढ़ सुदि ५ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक ७९६ जयप्रभसूरि के द्वितीय पट्टधर भुवनप्रभसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १५५१ पौष सुदि १३ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, शुक्रवार लेखांक २२०२ वि० सं० १५७२ वैशाख वदि ४ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक १०१ रविवार कमलप्रभसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जो संभवनाथ की है। यह प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, थराद में है । इसका विवरण निम्नानुसार है :वि० सं० १५८२ वैशाख सुदि ३ लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक २०७ कमलप्रभसूरि के पट्टधर पुण्यप्रभसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिलती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १६०८ वैशाख सुदि १३ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार लेखांक १२४ वि० सं० १६१० फाल्गुन वदि २ मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, सोमवार लेखांक ३४८ विद्याप्रभसूरि के पट्टधर ललितप्रभसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा मिली है, जिस पर विनो सं० १६५४ का लेख उत्कीर्ण है : Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९३ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा वि० सं० १६५४ माघ वदि १ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक १०१ महिमाप्रभसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठित वि०सं० १७६८ की एक प्रतिमा मिली है : वि० सं० १७६८ वैशाख सुदि६ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक ३३२ __ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा पूर्णिमापक्ष की प्रधानशाखा के जिन मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, उनमें जयप्रभसूरि के शिष्य जयभद्रसूरि को छोड़कर शेष सभी नाम पुस्तकप्रशस्तियों में भी मिलते हैं साथ ही उनका पूर्वापर सम्बन्ध भी सुनिश्चित किया जा चुका है। श्री देसाई द्वारा दी गयी पूर्णिमापक्ष-प्रधानशाखा की पट्टावली में सर्वप्रथम पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक चन्द्रप्रभसूरि का उल्लेख है । इसके बाद धर्मघोषसूरि एवं उनके बाद समुद्रघोषसूरि का नाम आता है । उक्त पट्टावली के अनुसार समुद्रघोषसूरि के शिष्य सुरप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा का आविर्भाव हुआ। वि० सं० १२५२ में पूर्णिमागच्छीय मुनिरत्नसूरि द्वारा रचित अममस्वामिचरित्रमहाकाव्य' की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता सुरप्रभसूरि का उल्लेख किया है । पट्टावली में सुरप्रभसूरि के बाद जिनेश्वरसूरि, भद्रप्रभसूरि, पुरुषोत्तमसूरि, देवतिलकसूरि, रत्नप्रभसूरि, तिलकप्रभसूरि, ललितप्रभसूरि, हरिप्रभसूरि आदि ८ आचार्यों का पट्टानुक्रम से जो उल्लेख है, उनके बारे में अन्यत्र कोई सूचना नहीं मिलती । हरिप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लेख मिलता है । चूंकि भुवनप्रभसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें वि० सं० १५१२ से वि० सं० १५३१ तक की हैं अतः उनके गुरु जयसिंहसूरि का समय वि० सं० १५०० के आस-पास माना जा सकता है। चूंकि इस शाखा के प्रवर्तक सुरप्रभसूरि के गुरुभ्राता मुनिरत्नसूरि का समय वि० सं० की Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तेरहवीं शती का द्वितीयचरण [वि० सं० १२५२] सुनिश्चित है, अतः यही समय सुरप्रभसूरि का भी माना जा सकता है। सुरप्रभसूरि से जयसिंहसूरि तक २५० वर्षों की अवधि तक १० आचार्यों का नायकत्व काल असंभव नहीं लगता । इस आधार पर सुरप्रभसूरि से जयसिंहसूरि तक की गुरुपरम्परा, जो पट्टावली में दी गयी है, प्रामाणिक मानी जा सकती है। इसी प्रकार जयसिंहसूरि और उनके पट्टधर जयप्रभसूरि से लेकर भावप्रभसूरि तक जिन ९ आचार्यों का नाम पट्टावली में आया है, वे सभी पुस्तकप्रशस्तियों द्वारा निर्मित पट्टावली में आ चुके हैं। इस प्रकार श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा की एक मात्र उपलब्ध पट्टावली प्रामाणिक सिद्ध होती है। ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छ प्रधानशाखा की गुरु-परम्परा की तालिका जयसिंहसूरि से प्रारम्भ होती है और जयसिंहसूरि के पूर्ववर्ती आचार्यों के नाम एवं पट्टानुक्रम श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पट्टावली से ज्ञात हो जाते हैं, अतः इस शाखा की गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छ प्रधानशाखा के मुनिजनों का विद्यावंशवृक्ष चन्द्रप्रभसूरि [पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक, वि. सं. ११४९] पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा धर्मघोषसूरि समुद्रघोषसूरि । सुरप्रभसूरि (परमारनरेश) नरवर्मा [वि. सं. ११५१/ई. सन्० १०९४- वि. सं. ११९०/ ई. सन् ११३३ और जयसिंह सिद्धराज [वि. सं. ११५१ / ई. सन् १०९५ - वि. सं. ११९९ /ई. सन् ११४३ के राजदरबार में सम्मानित] प्रधानशाखा या ढंढेरिया शाखा के प्रवर्तक] जिनेश्वरसूरि भद्रप्रभसूरि पुरुषोत्तमसूरि देवतिलकसूरि रत्नप्रभसूरि तिलकप्रभसूरि ललितप्रभसूरि [प्रथम] हरिप्रभसूरि जयसिंहसूरि Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयप्रभसूरि [वि. सं. १५१२-१५५१] प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख जयभद्रसूरि [वि. सं. १५२५-३४] प्रतिमालेख यशस्तिलकसूरि [वि. सं. १५२७-२९) प्रशस्ति में उल्लिखित भुवनप्रभसूरि [वि. सं. १५५१-१५७२] प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख जयमेरुसूरि [वि. सं. १५५१] प्रशस्ति कमलप्रभसूरि [वि. सं. १५८२] प्रतिमालेख मुनिराजसुन्दरसूरि [वि. सं. १५६६] प्रशस्ति मुनिरत्नमेरुसूरि [वि. सं. १५७४ में आदिनाथमहाकाव्य के प्रतिलिपिकार कमलसंयमसूरि [वि. सं. १५५३ में इनके सानिध्य में पाक्षिकसूत्रअवचूरि की प्रतिलिपि की गयी] मुनिवीरकलश [वि. सं. १५५५ में स्नात्रपंचाशिका, के रचनाकार] माणिक्यसूरि पुण्यप्रभसूरि [वि. सं. १५९०-१६११] प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख विद्याप्रभसूरि [वि. सं. १६२४] प्रतिलेखन प्रशस्ति ललितप्रभसूरि [द्वितीय] [वि. सं. १६५०-१६७७] प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख विनयप्रभसूरि [वि. सं. १७१४-१७२२] प्रतिलेखन प्रशस्ति कीर्तिरत्नसूरि [वि.सं. १७१४] प्रतिलिपि प्रशस्ति मुनिहेमराजसूरि [वि. सं. १६८९] प्रतिलेखन प्रशस्ति महिमाप्रभसूरि [वि. सं. १७३६-१७६८] प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सहजरत्नसूरि [वि. सं. १७६१] प्रतिलिपि प्रशस्ति भावप्रभसूरि [वि. सं. १७८३-१७९५] प्रशस्ति भावरत्नसूरि [वि. सं. १७६२-१७९५] प्रशस्ति मुनिलाल [वि. सं. १७६७-१७९१] प्रशस्ति मुनिज्योतिरत्न Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ ढंढेरिया शाखा संदर्भ सूची १. २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग ८, संपा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८७ ईस्वी, पृष्ठ १८९ - १९१. ९९७ Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandar, Cambay [GO.S. No. 135 and 149] Baroda 1961 - 66 A.D., pp. 352-53. Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्धपूर्णिमागच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल [बाद में चन्द्रगच्छ] की एक शाखा वडगच्छ या बृहद्गच्छ से वि० सं० ११४९ या ११५९ में उद्भूत पूर्णिमागच्छ या पूर्णिमापक्ष से भी समय-समय पर विभिन्न उपशाखायें अस्तित्व में आयीं, इनमें सार्धपूर्णिमागच्छ भी एक है। विभिन्न पट्टावलियों में पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसिंहसूरि द्वारा वि० सं० १२३६/ईस्वी सन् ११८० में अणहिल्लपुरपत्तन में इस शाखा का उदय माना गया है। विवरणानुसार श्वेताम्बर श्रमणसंघ में विभिन्न मतभेदों के कारण निरन्तर विभाजन की प्रक्रिया से खिन्न होकर चौलुक्यनरेश कुमारपाल [वि० सं० ११९९-१२२९/ईस्वी सन् ११४३-११७३] ने नयेनये गच्छों के मुनिजनों का अपने राज्य में प्रवेश निषिद्ध करा दिया । वि० सं० १२३६ में पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसूरि विहार करते हुए पाटन पहुंचे। वहां श्रावकों द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने अपने को पूर्णिमागच्छीय नहीं अपितु सार्धपूर्णिमागच्छीय बतलाकर वहां विहार की अनुमति प्राप्त कर ली । इसी समय से सुमतिसूरि की शिष्य परम्परा सार्धपूर्णिमागच्छीय कहलायी । इस गच्छ के मुनिजन भी पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की भांति प्रतिमाप्रतिष्ठापक न होकर मात्र उपदेशक ही रहे हैं, किन्तु ये संडेरगच्छ, भावदेवाचार्यगच्छ, राजगच्छ, चैत्रगच्छ, नाणकीयगच्छ, वडगच्छ आदि के मुनिजनों की भांति चतुर्दशी को पाक्षिक पर्व मनाते थे। यद्यपि इस गच्छ का उदय वि० सं० १२३६ में हुआ माना जाता है, किन्तु इससे सम्बद्ध जो भी साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य आज मिलते हैं वे वि० सं० की १४वीं शती के पूर्व के नहीं हैं । अध्ययन की सुविधा के लिये सर्वप्रथम Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्धपूर्णिमागच्छ साहित्यिक और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है : १. श्री शांतिनाथचरित - वि० सं० १४१२ में लिपिबद्ध की गयी इस कृति की प्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छ के आचार्य अभयचन्द्रसूरि का उल्लेख है। किन्तु वे किसके शिष्य थे, यह बात उक्त प्रशस्ति से ज्ञात नहीं होती। चूंकि सार्धपूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध यह सबसे प्राचीन उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्य है, इसलिये महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। २. रत्नाकरावतारिकाटिप्पण - वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि की प्रसिद्ध कृति प्रमाणनयतत्त्वावलोक [रचनाकाल वि० सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५] पर सार्धपूर्णिमागच्छीय गुणचन्द्रसूरि के शिष्य ज्ञानचन्द्रसूरि ने मलधारगच्छीय राजशेखरसूरि के निर्देश पर रत्नाकरावतारिकाटिप्पण [रचनाकाल वि० सं० की १५वीं शती के प्रथम या द्वितीय दशक के आसपास] की रचना की । यह बात उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है। ३. न्यायावतारवृत्ति की दाता प्रशस्ति - आचार्य सिद्धसेनदिवाकर प्रणीत न्यायावतारसूत्र पर निर्वृत्तिकुलीन सिद्धर्षि द्वारा रचित वृत्ति [रचनाकाल - विक्रम सम्वत् की १०वीं शती के तृतीय चरण के आसपास] की वि० सं० १४५३ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति की दाता प्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छीय अभयचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि का उल्लेख है। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि उक्त प्रति रामचन्द्रसूरि के पठनार्थ लिपिबद्ध करायी गयी थी। इन्हीं रामचन्द्रसूरि ने वि० सं० १४९०/ईस्वी सन् १४३४ में विक्रमचरित की रचना की। ४. सम्यकत्वरत्नमहोदधि वृत्ति की दाताप्रशस्ति - पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरि कृत सम्यकत्वरत्नमहोदधि अपरनाम दर्शनशुद्धि [रचनाकाल विक्रम सम्वत् की १२वीं Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००० - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास शती के मध्य के आसपास] पर पूर्णिमागच्छ के ही चक्रेश्वरसूरि और तिलकाचार्य द्वारा रची गयी वृत्ति [रचनाकाल विक्रम सम्वत् की १३वीं शती के मध्य के आसपास] की वि० सं० १५०४ में लिपिबद्ध की गयी प्रति की दाताप्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छ के पुण्यप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का उल्लेख है। उक्त प्रशस्ति में इस गच्छ के किन्हीं अन्य मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। ५. आरामशोभाचौपाइ - यह कृति सार्धपूर्णिमागच्छ के विजयचन्द्रसूरि के शिष्य [श्रावक ?] कीरति द्वारा वि० सं० १५३५/ईस्वी सन् १४७९ में रची गयी है । ग्रन्थ की प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: रामचन्द्रसूरि पुण्यचन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि कीरति [वि० सं० १५३५/ई० सन् १४७९ में आरामशोभा चौपाइ के रचनाकार] ६. आवश्यकनियुक्तिबालावबोध की प्रतिलिपि की प्रशस्ति - सार्धपूर्णिमागच्छीय विद्याचन्द्रसूरि ने वि० सं० १६१० में उक्त कृति की प्रतिलिपि करायी । इसकी दाताप्रशस्ति में उनकी गुरु-परम्परा का विवरण मिलता है, जो इस प्रकार है : उदयचन्द्रसूरि Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्धपूर्णिमागच्छ १००१ मुनिचन्द्रसूरि विद्याचन्द्रसूरि [वि० सं० १६१० में इनके उपदेश से आवश्यकनियुक्ति बालावबोध की प्रतिलिपि की गयी] जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित वि० सं० १३३१ से वि० सं० १६२४ तक की ५० से अधिक जिनप्रतिमायें मिलती है। इनका विवरण इस प्रकार है : Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | क्रमाङ्क प्रतिष्ठा तिथि/ वर्ष मिति १३३१ | वैशाख सुदि ६ शुक्रवार १. २. ३. ४. १४२१ | वैशाख वदि शनिवार १४२४ | आषाढ़ सुदि ६ गुरुवार १४२४ "" लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम देवेन्द्रसूरि धर्मचन्द्रसूरि अभयचन्द्रसूरि धर्मचन्द्रसूरि के पट्टधर धर्मतिलकसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख महावीर की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख >> प्रतिष्ठा स्थान आबू " पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों का मुहल्ला, बीकानेर चिन्तामणिजीका मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक ५३० वही, लेखांक ५७९ अगरचन्द नाहटा, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १६२८ वही, लेखांक ४६४ १००२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा तिथि / वर्ष मिति ५. ६. १४२८ वैशाख वदि २ सोमवार ८. १४३२ | फाल्गुन सुदि २ शुक्रवार ७. १४३२ १४३३ वैशाख सुदि ९ शनिवार लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम "7 "" 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख " आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख "" प्रतिष्ठा स्थान सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर धर्मनाथ देरासर अहमदाबाद संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक ४८५ विनयसागर, संपा० प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक१५८ | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४९९ बुद्धिसागरसूरि, संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११२७ सार्धपूर्णिमागच्छ १००३ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8००४ वही, क्रमाङ्क | प्रतिष्ठा | तिथि/ | लेख में उल्लिखित प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ वर्ष | मिति | आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ९. | १४३३ वैशाख महावीर की धातु | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ९ प्रतिमा पर मंदिर, बीकानेर लेखांक ५०५ शनिवार उत्कीर्ण लेख १०. | १४३४ | वैशाख पार्श्वनाथ की वदि ११ पंचतीर्थी प्रतिमा लेखांक ५१३ मंगलवार का लेख ११. १४३९ । पौष पद्मप्रभ की | विमलवसही, मुनि जयन्तविजय, वदि ९ प्रतिमा का लेख / देहरी क्रमांक ८, पूर्वोक्त, रविवार आबू लेखांक ५८ १२. | १४५० माघ आदिनाथ की | महावीर जिनालय, | नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ९ चौबीसी प्रतिमा | डागों का मुहल्ला, लेखांक १५३३ सोमवार पर उत्कीर्ण लेख | बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्धपूर्णिमागच्छ वही, क्रमाङ्क प्रतिष्ठा तिथि/ | लेख में उल्लिखित | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ वर्ष । मिति | आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १३ । सुमतिनाथ की | चिन्तामणिजी का वही, सुदि पंचतीर्थी प्रतिमा | मंदिर, बीकानेर लेखांक ८२७ मंगलवार का लेख १४. १४५८ | वैशाख । अभयचन्दसूरि | आदिनाथ की वदि २ प्रतिमा का लेख लेखांक ५८३ बुधवार १५. १४६६ । वैशाख पार्श्वनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ वही, प्रतिमा का लेख | जिनालय, गोगा लेखांक १९३८ सोमवार दरवाजा, बीकानेर १६. १४७१ | माघ पासचन्द्रसूरि अभिनन्दननाथ । | नेमिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, सुदि ५ की धातु की गेला सेठ की संपा० राधनपुरशनिवार चौबीसी का शेरी, राधनपुर प्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ९७ - सुदि३ लेख १००४ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा १७. १८. तिथि/ मिति वर्ष १४८३ | वैशाख सुदि ५ गुरुवार १४८६ चैत्र सुदि १४ बुधवार १९. १४९३ | फाल्गुन सुदि ३ शुक्रवार लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम धर्मतिलकसूरि के पट्टधर हीराणंदसूर अभयचन्द्रसूरि के पट्टधर रामचन्द्रसूरि के पट्टधर मुनिचन्द्रगणि तथा शीलचन्द्र, नयसार, विनयरत्न आदि रामचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख शिलालेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर देवकुलिका स्थित लेख, आबू पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७२२ मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखांक ३४२ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १६०१ १००६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्धपूर्णिमागच्छ क्रमाङ्क | प्रतिष्ठा | तिथि/ | लेख में उल्लिखित | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ वर्ष मिति | आचार्य का नाम | स्तम्भलेख २०. १५०२ माघ हीरानन्दसूरि शांतिनाथ की चन्द्रप्रभ विनयसागर, वदि २ पंचतीर्थी जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, रविवार प्रतिमा का लेख | सांगानेर लेखांक ३५९ २१. " आदिनाथ जिनालय, वही, भाग १, करमदी लेखांक ३६१ २२. १५०४ | फाल्गुन रामचन्द्रसूरि अजितनाथ की । अजितनाथ पूरनचन्द नाहर, सुदि ९ के पट्टधर चौबीसी प्रतिमा | जिनालय, तारंगा संपा० जैनलेखसोमवार ___ पूर्णचन्द्रसूरि का लेख संग्रह, भाग २, लेखांक १७३२ २३. |१५०७ | तिथि पुण्यचन्द्रसूरि | श्रेयांसनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, विहीन प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ९०९ २४. १५०८ | ज्येष्ठ रामचन्द्रसूरि चन्द्रप्रभ की पार्श्वनाथ जिना०, वही, सुदि ५ के पट्टधर चौबीसी प्रतिमा | बीकानेर लेखांक १६२५ रविवार पुण्यचन्द्रसूरि का लेख १००७ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००८ थराद क्रमाङ्क प्रतिष्ठा | तिथि/ लेख में उल्लिखित | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ वर्ष । मिति | आचार्य का नाम स्तम्भलेख २५. | १५०९ । पौष सागरचन्द्रसूरि । नेमिनाथ की शामला पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | जिनालय, डभोइ पूर्वोक्त, भाग १, रविवार सोमचन्द्रसूरि लेखांक ७ २६. - तिथि/ धातु की चौबीसी | आदिनाथ जिना०, दौलतसिंह लोढा, मिति प्रतिमा पर संपा० श्रीप्रतिमाविहीन उत्कीर्ण लेख लेखसंग्रह, लेखांक २२६ २७. १५०९ माघ रामचन्द्रसूरि | अजितनाथ की | शांतिनाथ जिना०, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० के पट्टधर धातु की प्रतिमा कनासा पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार पुण्यचन्द्रसूरि का लेख पाटन लेखांक ३२३ २८. | १५१२ | फाल्गुन पुण्यचन्द्रसूरि धर्मनाथ की | जैन मन्दिर, वही, भाग १, वदि १ प्रतिमा का लेख | ऊंझा लेखांक १४९ रविवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा तिथि/ वर्ष मिति १५१३ २९. ३०. ३१. १५१३ १५१६ ३२. १५१८ वैशाख सुदि १० बुधवार ज्येष्ठ वदि ७ मंगलवार माघ वदि ८ सोमवार आषाढ़ सुदि १० बुधवार लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम गुणचन्द्रसूरि पुण्यचन्द्रसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि हीरानन्दसूरि के पट्टधर देवचन्द्रसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ जिना०, कालू, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २५१४ जैन मन्दिर, ऊंझा बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १६८ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ९९८ शांतिनाथ जिना०, वही, नाहटों में, बीकानेर लेखांक १८२८ सार्धपूर्णिमागच्छ १००९ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा ३३. ३४. ३५. तिथि/ मिति वर्ष १५२० वैशाख वदि ८ ३६. शुक्रवार १५२१ | वैशाख वदि ८ शुक्रवार १५२२ | माघ १५२४ वदि १ गुरुवार आषाढ़ सुदि १० शुक्रवार लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम पुण्यचन्द्रसूरि रामचन्द्रसूरि के पट्टधर चन्द्रसूरि पुण्यचन्द्रसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि पुण्यचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पद्मप्रभ जिना०, पन्नाबाई का उपाश्रय, बीकानेर पंचायती मन्दिर, सराफा बाजार, लस्कर, ग्वालियर जगतसेठ का मंदिर, महिमापुर, मुर्शिदाबाद जैन मंदिर, सौदागर पोल, अहमदाबाद संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक १८७९ नाहटा, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३७८ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८४३ १०१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा तिथि / वर्ष मिति ३७. १५२८ आषाढ़ सुदि ६ रविवार ३८. ३९. ४०. १५२८ पौष १५२८ वदि ५ माघ वदि ५ गुरुवार १५३३ | माघ सुदि ५ लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम श्रीसूरि पुण्यचन्द्रसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि "" जयशेखरसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिना०, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद यति श्यामलाल का उपाश्रय, जयपुर संदर्भ ग्रन्थ सराफा बाजार, लस्कर, ग्वालियर वही, भाग १, लेखांक १३५४ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, | लेखांक ७०९ नाहर, पूर्वोक्त, आदिनाथ जिना०, बालुचर, मुर्शिदाबाद पंचायती जैन मंदिर, वही, भाग २, लेखांक १४०९ भाग १, लेखांक ३५ सार्धपूर्णिमागच्छ १०११ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१२ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा | तिथि/ | लेख में उल्लिखित | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ वर्ष । मिति | आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ४१. | १५३३ | माघ विमलनाथ की वही, भाग २, सुदि १३ पंचतीर्थी प्रतिमा लेखांक १३८१ सोमवार का लेख ४२. | १५३३ | " शांतिनाथ जिना०, | विनयसागर, रतलाम पूर्वोक्त, भाग १, लेखांत ७६५ १५३७ । सिद्धसूरि | वासुपूज्य की | जैन मंदिर, । बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० प्रतिमा का लेख | सौदागर पोल, | पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार अहमदाबाद लेखांक ८४४ ४४. १५४४ | ज्येष्ठ आचार्य का | शीतलनाथ की | आदिनाथ विजयधर्मसूरि, सुदि ९ नाम नष्ट | प्रतिमा का लेख | जिनालय, संपा० प्राचीनसोमवार जामनगर लेखसंग्रह, लेखांक ४९२ वैशाख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा | तिथि/ वर्ष मिति १५५० वैशाख ४५. ४६. ४७. ४८. सुदि ५ रविवार १५५३ वैशाख सुदि १३ शुक्रवार १५५३ पौष वदि १० गुरुवार १५७२ वैशाख सुदि ५ सोमवार लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर उदयचन्द्रसूरि पुण्यरत्नसूरि विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर उदयचन्द्रसूरि उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर मुनिराजसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख विमलनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०९८ सीमंधरस्वामी का मंदिर, अहमदाबाद संदर्भ ग्रन्थ आदिनाथ जिना०, आदिनाथ खड़की, वही, भाग १, लेखांक १२०० मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३१५ राधनपुर चिन्तामणि पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, जिनालय, बीजापुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४२९ सार्धपूर्णिमागच्छ १०१३ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा तिथि / वर्ष मिति ४९. ५०. ५१. ५२. १५७५ फाल्गुन वदि ४ गुरुवार १५७९ वैशाख १५९६ सुदि १२ रविवार वैशाख सुदि ९ १६१० | फाल्गुन वदि २ लेख में उल्लिखित आचार्य का नाम मुनिचन्द्रसूरि उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर विद्याचन्द्रसूरि विद्याचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख "" आदिनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख अरनाथ की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान अक्षयसिंह का देरासर, जैसलमैर सेठ धीरूशाह का देरासर, जैसलमैर संदर्भ ग्रन्थ आदिनाथ जिनालय, राधनपुर नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक १४६९ वही, भाग ३, लेखांक २४५७ धर्मनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १११८ मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३४९ १०१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क प्रतिष्ठा | तिथि/ | लेख में उल्लिखित | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान वर्ष | मिति | आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ५३. १६२४ माघ वासुपूज्य की | लुआणा चैत्य, सुदि १ धातु की प्रतिमा थराद सोमवार का लेख सार्धपूर्णिमागच्छ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक ३६२ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं । उनका विवरण इस प्रकार है : १. धर्मचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर धर्मतिलकसूरि : I धर्मचन्द्रसूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित १ प्रतिमा मिली है। जिस पर वि० सं० १४२१ का लेख उत्कीर्ण है । इनके पट्टधर धर्मतिलकसूरि का ९ जिनप्रतिमाओं पर नाम मिलता है । ये प्रतिमायें वि० सं० १४२४ से वि० सं० १४५० के मध्य प्रतिष्ठापित की गयी थीं। इसके अतिरिक्त एक ऐसी भी प्रतिमा मिली हैं, जिस पर प्रतिष्ठावर्ष नहीं दिया गया है। २. धर्मतिलकसूरि के पट्टधर हीराणंदसूरि : वि० सं० १४८३ और १५०२ में प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं पर इनका नाम मिलता है । ३. हीराणंदसूरि के पट्टधर देवचन्द्रसूरि : इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें [वि० सं० १५१६ और वि० सं० १५१८] मिली है। ४. अभयचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर रामचन्द्रसूरि : अभयचन्द्रसूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं [वि० सं० १४२४, १४५८ और १४६६ ] का उल्लेख मिलता है । इनके पट्टधर रामचन्द्रसूरि का नाम वि० सं० १४९३ के प्रतिमालेख में मिलता है । ५. रामचन्द्रसूरि के पट्टधर पुण्यचन्द्रसूरि : इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ५ प्रतिमायें मिली है, जिन पर वि० सं० १५०४, १५०७, १५०८, १५२० और १५२४ के लेख उत्कीर्ण हैं। ६. रामचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिचन्द्रसूरि : आबू स्थित लूणवसही की एक देवकुलिका पर उत्कीर्ण वि० सं० १४८६ के लेख में मुनिचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्धपूर्णिमागच्छ १०१७ ७. रामचन्द्रसूरि के शिष्य चन्द्रसूरि : पद्मप्रभ की वि० सं० १५२१ में प्रतिष्ठापित प्रतिमा पर चन्द्रसूरि का नाम मिलता है। ८. पुण्यचन्द्रसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि : ___वि० सं० १५१३, १५२२ और १५२८ में प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं पर विजयचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। ९. विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर उदयचन्द्रसूरि : इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिली हैं, जो वि० सं० १५५० और १५५३ की हैं। १०. उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर मुनिराजसूरि : वि० सं० १५७२ में प्रतिष्ठापित श्रेयांसनाथ की धातुप्रतिमा पर इनका नाम मिलता है। ११. उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि : वि० सं० १५७५ और १५७९ में प्रतिष्ठापित २ जिनप्रतिमाओं पर इनका नाम मिलता है। १२. मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर विद्याचन्द्रसूरि : इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ३ जिनप्रतिमाओं का उल्लेख पीछे आ चुका है, ये वि० सं० १५९६, १६१० और १६२४ की हैं। Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १०१८ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर गुर्वावालियों की दो तालिकायें संकलित की जा सकती हैं : तालिका - १ ? 1 धर्मचन्द्रसूरि [वि० सं० १४२१] १ प्रतिमालेख धर्मतिलकसूरि [वि० सं० १४२४ - १४५० ]७ प्रतिमालेख 1 हीराणंदसूरि [वि० सं० १४८३ - १५०२] २ प्रतिमालेख तालिका - २ मुनिराजसूरि 1 देवचन्द्रसूरि [वि० सं० १५१६- १५१८] २ प्रतिमालेख विजयचन्द्रसूरि I उदयचन्द्रसूरि ? I अभयचन्द्रसूरि [वि० सं० १४२४ - १४६६ ] ३ प्रतिमालेख रामचन्द्रसूरि [वि० सं० १४९३] १ प्रतिमालेख मुनिचन्द्रसूरि [ प्रथम ] पुण्यचन्द्रसूरि चन्द्रसूरि [वि० सं० १५९६ - १५१८] [वि० सं० १४८६] [वि० सं० १५२१] १ प्रतिमालेख २ प्रतिमालेख १ प्रतिमालेख [वि० सं० १५१३ - १५२८] ३ प्रतिमालेख [वि० सं० १५५० - १५५३] २ प्रतिमालेख मुनिचन्द्रसूरि [द्वितीय ] [वि० सं० १५७५-१५७९] २ प्रतिमालेख 1 विद्याचन्द्रसूरि [वि० सं० १५९६ - १६२४] ३ प्रतिमालेख Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१९ सार्धपूर्णिमागच्छ अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उक्त दोनों तालिकाओं में परस्पर समायोजन सम्भव नहीं होता, किन्तु द्वितीय तालिका के अभयचन्द्रसूरि, रामचन्द्रसूरि, विजयचन्द्रसूरि, उदयचन्द्रसूरि आदि मुनिजनों के नाम सार्धपूर्णिमा गच्छ के साहित्यिक साक्ष्यों में भी आ चुके हैं, इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा ही एक बड़ी तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है: Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका - ३ १०२० । अभयचन्द्रसूरि [वि० सं० १४२४-१४६६] ३ प्रतिमालेख वि० सं० १४१२ में लिखित शांतिनाथचरित में उल्लिखित रामचन्द्रसूरि [वि० सं० १४९३] १ प्रतिमालेख वि० सं० १४५३ में इनके पठनार्थ न्यायावतारवृत्ति की प्रतिलिपि की गयी, वि० सं० १४९० में विक्रमचरित के रचनाकार शीलचन्द्रसूरि जयसार विनयरत्नसूरि पुण्यचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि [प्रथम] [वि० सं० १५०४-२४] [वि० सं० १४८६ के ५ प्रतिमालेख प्रतिमालेख में उल्लिखित चन्द्रसूरि [वि० सं० १५२१] १ प्रतिमालेख विजयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५१३-१५२८] ३ प्रतिमालेख जयसिंहसूरि [वि० सं० १५०४ में लिखित सम्यकत्वरत्नमहोदधि की प्रशस्ति में उल्लिखित] उदयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५५०-१५५३] २ प्रतिमालेख कीरति [वि० सं० १५३५ में आरामशोभाचौपाइ के रचनाकार] जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मुनिचन्द्रसूरि [द्वितीय] [वि० सं० १५७५-१५७९] २ प्रतिमालेख मुनिराजसूरि [वि० सं० १५९२] १ प्रतिमालेख विद्याचन्द्रसूरि [वि० सं० १५९६-१६२४] ३ प्रतिमालेख वि० सं० १६१० में इनके उपदेश से आवश्यकनियुक्ति बालावबोध की प्रतिलिपि की गयी Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्धपूर्णिमागच्छ १०२१ सन्दर्भसूची: १. षट्व्यर्केषु (१२३६) च सार्धपूर्णिम... । मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, भारतीय विद्याभवन, बम्बई १९६१ ईस्वी, पृष्ठ २१, ३९, ६५, २०१ आदि. त्रिपुटी महाराज - जैनपरम्परानो इतिहास, भाग २, चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५४, अहमदाबाद १९६० ईस्वी, पृष्ठ ५४४-५४६. संवत् १४१२ वर्षे पौष वदि १२ गुरौ अद्येह श्रीमदणहिलपट्टने श्री साधुपूर्णिमापक्षीय श्रीअभयचन्द्रसूरीणां पुस्तकं लिखितं पंडित महिमा(पा?)केन । शुभं भवतु । शांतिनाथचरित की दाता प्रशस्ति मुनि जिनविजय - संपा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १८, भारतीय विद्याभवन, बम्बई १९४४ ईस्वी, पृष्ठ १३९, प्रशस्ति क्रमांक ३१०. ४. मूल ग्रन्थ और उसकी प्रशस्ति उपलब्ध न होने से उक्त उद्धरण निम्नलिखित ग्रन्थों के आधार पर दिया गया है : H. D. Velankar - JINARATNAKOSHA, Government Oriental Series, Class C, No. 4, B.O.R.I., Poona-1944 A.D., p. 267-268. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४३७. संवत् १४५३ वर्षे फाल्गुनसुदिपूर्णिमादिने अद्येह श्रीमत्पत्तने श्रीराउतवाटके श्रीसाधुपूर्णिमापक्षीय भट्टारकश्रीअभयचन्द्रसूरि - शिष्यरामचन्द्रसूरि पठनार्थं ज्ञा(न्या)यावतारवृत्तिप्रकरणं लल(ललित)कीर्तिमुनिना लिखितं । शुभं भवतु । A. P. Shah - Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit MSS : Muni Punyavijayaji's Collection, Part I, L. D. Series No. 2 Ahmedabad 1963 A.D. p. 201. No. 3494. अगरचन्द नाहटा - "विक्रमादित्य सम्बन्धी जैन साहित्य" विक्रमस्मृतिग्रन्थ, संपा० हरिहर निवास द्विवेदी तथा अन्य, उज्जैन वि० सं० २००१, पृष्ठ १४१-१४८. संवत् १५०४ वर्षे आसो सुदि १० सोमवारे साधुपूण्णिमागच्छे चन्द्रप्रभसूरिसंताने भ० श्रीपुण्यचन्द्रसूरि-शिष्यगणिवरजयसिंहगणिना राणपुरनगरे सम्यक्त्वरत्नमहोदधिग्रन्थपुस्तकं लिखितम् ।। A. P Shah, Ibid pp. 149-151, No. 2934. Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पुण्यइं लाभई सुखसंयोग, पुण्यइ काजइ देवगह भोग, पुण्यइं सवि अंतराय टलइ, मनवंछित फल पुण्य लहइ ॥ . साधपूनिम पक्ष गच्छ अहिनाण, श्रीरामचन्द्रसूरि सुगुरु सुजाण । नवरसे फरइ अमृत वखाणि, चतुर्विध श्री संघ मनि आण ॥ तस पाटधर साहसधीर, पाप पखालइ जाणे नीर, पंच महाव्रत पालणवीर, श्रीपुण्यचन्द्रसूरि गुरु बा गंभीर ॥ तास पट्ट उदया अभिनवा भाणु, जाणे महिमा मेरु समान । गिरुआ गुणह तण निधान, श्री विजयचन्द्रसूरि युगप्रधान ॥ संवत पंनर पांत्रीसु जाणि, आसोइ पूनमि अहिनाणि । गुरुवारइ पूक्ष नक्षत्र होइ, पूरव पुण्य तणां फल जोई ।। कर जोडी कीरति प्रणमइ, आरामसोभा रास जे सुणइ । भणइ गुणइ जे नर नि नारि, नवनिधि वलसई तेह घरबारि ॥ -- इति आरामसोभा रास समाप्त । मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीय परिवर्धित संस्करण - संपा० जयन्त कोठारी, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई १९८६ ईस्वी, पृष्ठ ४८३-४८४. इतिश्रीआवश्यकसूत्रस्य बालावि (व) बोध समाप्तं । श्रीरस्तु संवत् १६१० वर्षे वैशाख वदि ३ शुक्रे म० गोवाल लिखितं श्रीसाधुपूर्णिमापक्षे मुख्य भट्टारकश्रीउदयचन्द्रसूरि तत्पट्टे पु (पू) ज्यराज्य (ध्य) श्रीमुनिचन्द्रसूरि तत्पट्टे गच्छाधिराज बारधुरिंधर श्रीश्रीश्री विद्याचन्द्र (?सू) रिंद्रे एषा पुस्तिका लिखापिता ।। सर्वेषां शश्यानां वाचनार्थं ॥ H. R. Kapadia - Ed. Descriptive Catalogue of the Govt. Collection of MSS deposited at the B.O.R.I., Volume XVII B.O.R.I. Poona 1940 A.D. p. 456.१०१८ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल [बाद में चन्द्रगच्छ] से उद्भूत गच्छों में पूर्णिमागच्छ भी एक है । पाक्षिक पर्व पूर्णिमा को मनायी जाये या अमावास्या को, इस प्रश्न पर पूर्णिमा का पक्ष ग्रहण करने वाले चन्द्रगच्छीय मुनिजन पूर्णिमापक्षीय या पूर्णिमागच्छीय कहलाये। वि० सं० ११४९ या ११५९ में इस गच्छ का प्रादुर्भाव माना जाता है। चन्द्रकुल के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि इस गच्छ के प्रवर्तक माने जाते हैं । इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न शाखाओं का जन्म हुआ, जिसमें प्रधानशाखा या ढंढेरियाशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, सार्धपूर्णिमाशाखा, कच्छोलीवालशाखा आदि प्रमुख हैं। यहां भीमपल्लीयाशाखा के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। पूर्णिमागच्छ की यह शाखा भीमपल्ली नामक स्थान से अस्तित्व में आयी प्रतीत होती है। इसके प्रवर्तक कौन थे, यह कब और किस कारण से अस्तित्व में आयी, इस सम्बन्ध में आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है । इस शाखा में देवचन्द्रसूरि, पार्श्वचन्द्रसूरि, जयचन्द्रसूरि, भावचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, विनयचन्द्रसूरि आदि कई महत्त्वपूर्ण आचार्य हुए हैं। भीमपल्लीयाशाखा से सम्बद्ध जो भी साक्ष्य आ उपलब्ध हुए हैं, वे वि० सं० की १५वीं शती से वि० सं० की १८वीं शती तक के हैं और इनमें अभिलेखीय साक्ष्यों की बहुलता है । अध्ययन की सुविधा के लिये सर्वप्रथम अभिलेखीय और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है - Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभिलेखीय 'साक्ष्य : पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों के उपदेश से श्रावकों द्वारा प्रतिष्ठापित ५४ जनप्रतिमायें अद्यावधि उपलब्ध हुई हैं। इन पर वि० सं० १४५९ के वि० सं० १५९८ तक के लेख उत्कीर्ण हैं जिनसे ज्ञात होता है कि ये प्रतिमायें उक्त कालावधि में प्रतिष्ठापित की गयी थीं। इनका विवरण इस प्रकार है : १०२४ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि/ आचार्यनाम मिति १. |१४५९ | चैत्र । देवचन्द्रसूरि सुदि १५ / के पट्टधर शनिवार | पार्श्वचन्द्रसूरि पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा - २. | १४६१ | ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार - प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख । जिनप्रतिमा पर सीमंधरस्वामी का बुद्धिसागरसूरि, | उत्कीर्ण लेख जिनालय, संपा० जैन धातु अहमदाबाद प्रतिमालेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ११८९ पद्मप्रभस्वामी की | चिन्तामणि जी नाहटा, अगरचन्द चौबीसी पर का मंदिर, संपा० बीकानेर उत्कीर्ण लेख | बीकानेर जैन लेख संग्रह, लेखांक ५९७ | नमिनाथ की | महावीर जिनालय, नाहर, पूरनचन्द पंचतीर्थी प्रतिमा | सुधिटोला, |संपा० जैन लेख का लेख लखनऊ संग्रह, भाग २, लेखांक १५६४ १४८२ चैत्र वृदि ५ शुक्रवार पार्श्वचन्द्रसूरि के पट्टधर __ जयचन्द्रसूरि Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२६ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४. १५८५ | वैशाख जयचन्द्रसूरि आदिनाथ की आदिनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय, सुदि ८ धातु प्रतिमा हद्राण ग्राम संपा० अर्बुदाचलसोमवार का लेख प्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, [आबू-भाग ५], लेखांक १९८ ५. १४९२ / चैत्र शीतलनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर पूरनचन्द, वदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | जैसलमेर पूर्वोक्त, भाग ३, शुक्रवार का लेख लेखांक २३०९ ६. १४९२ | चैत्र पार्श्वचन्द्रसूरि कुंथुनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार जयचन्द्रसूरि लेखांक ९०९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि/ मिति ७. ८. ९. १०. ११. १४९६ वैशाख सुदि ११ बुधवार १५०१ वैशाख सुदि ३ १५०२ | माघ सुदि २ शुक्रवार १५०२ माघ सुदि १३ रविवार १५०३ ज्येष्ठ वदि १३ शनिवार आचार्यनाम जयचन्द्रसूरि }} "" "" " प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्यस्वामी की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ७८९ वही, लेखांक ८४२ पार्श्वनाथ देरासर, मुनि बुद्धिसागर, पाटण पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २३० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८६२ मनमोहन पार्श्वनाथ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, जिनालय,, मीयागाम भाग २, लेखांक २७५ पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा १०२७ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् तिथि १२. १३. १४. १५. १५०३ आषाढ़ वदि १३ शनिवार १५०३ माघ वदि २ शुक्रवार १५०४ फाल्गुन सुदि ८ सोमवार १५०६ वैशाख सुदि १२ गुरुवार आचार्य का नाम जयचन्द्रसूरि >> "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभस्वामी की धातु की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ चन्द्रप्रभस्वामी का नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३ लेखांक २३१८ जिनालय, जैसलमेर विजयधर्मसूरि, संपा० प्राचीन लेख संग्रह, लेखांक ७८ आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ९९ शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग १, कनासा पाड़ो, लेखांक १९० पाटण १०२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यनाम जयचन्द्रसूरि क्रमाङ्क | संवत् | तिथि/ मिति १६. | १५०७ | वैशाख सुदि १० बुधवार १७. १५०८ माघ सुदि ५ सोमवार १८. | १५०९ | फाल्गुन पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख संभवनाथ की | जैन मंदिर, बुद्धिसागरसूरि, पंचतीर्थी प्रतिमा | चाणस्मा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ११३ सुमतिनाथ की | जैन देरासर, वही, भाग १, प्रतिमा का लेख | सौदागरपोल, लेखांक ८२७ अहमदाबाद धर्मनाथ की | चन्द्रप्रभस्वामी का | नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | मंदिर, जैसलमेर | भाग ३, लेखांक २३२ विमलनाथ की । प्रेमचन्द्र मोदी नी वही, भाग १, प्रतिमा का लेख | टोंक, शत्रुजय लेखांक ६९२ सुदि ३ गुरुवार १९. |१५११ / ज्येष्ठ वदि ९ रविवार Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३० पूर्वोक्त, क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम , प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २०. १५११ | ज्येष्ठ जयचन्द्रसूरि सुविधिनाथ की आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ९ धातु की प्रतिमा जामनगर पूर्वोक्त, रविवार का लेख लेखांक २१० २१. |१५११ पौष सुमतिनाथ की | चिन्तामणिजी का नाहटा, वदि ५ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ९४८ २२. १५११ | माघ पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि १ साणंद पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६३६ २३. |१५०६ / माघ संभवनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, सुदि ५ धातु की चौबीसी | जिनालय, संपा० राधनपुर रविवार प्रतिमा का लेख | चिन्तामणि शेरी, प्रतिमालेखसंग्रह, राधनपुर लेखांक २२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि/ मिति २४. १५१३ २५. १५१४ माघ २६. माघ सुदि १३ सोमवार २७. सुदि २ सोमवार १५१५ ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार १५१५ | ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार आचार्यनाम जयचन्द्रसूरि "" " प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख कुथुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख विमलनाथ की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख कुथुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान अजितनाथ जिनालय, सिरोही जैन मंदिर, ग्राम - चवेली संदर्भ ग्रन्थ सराफा बाजार, लस्कर, ग्वालियर देहरी नं. २६८ / १ शत्रुंजय विनयसागर, संपा. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५२१ मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २४८ पंचायती जैन मंदिर, नाहर, पूरनचन्द पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३७६ मुनि कंचनसागर, संपा. शत्रुंजयगिरिराजदर्शन, लेखांक १९४ पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा १०३१ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३२ सुदि क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २८. १५१५ | फाल्गुन | जयचन्द्रसूरि | कुंथुनाथ की | जैन मंदिर, नाहर, पूरनचन्द्र, वदि ५ धातु की प्रतिमा | दीनाजपुर, बंगाल पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक ६२९ २९. १५१६ / वैशाख आदिनाथ की मुनि बुद्धिसागर, चौबीसी प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक २१६१ ३०. १५१६ | माघ श्रेयांसनाथ की वही, भाग २, वदि ८ प्रतिमा का लेख लेखांक ६३२ सोमवार ३१. १५१८ | वैशाख विमलनाथ की | आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि १ पंचतीर्थी प्रतिमा | जामनगर पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख लेखांक ३२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा क्रमाङ्क | संवत् / तिथि/ आचार्यनाम मिति ३२. | १५१८ | वैशाख ___ जयचन्द्रसूरि वदि १ गुरुवार ३३. १५१८ / ज्येष्ठ वदि ९ शनिवार ३४. १५१८ माघ सुदि १३ गुरुवार ३५. | १५२० | वैशाख वदि ८ रविवार प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख नमिनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, वही, धातु की पंचतीर्थी| घोघा लेखांक ३२१ प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख | खेडा पूर्वोक्त-भाग-२, अहमदाबाद लेखांक ४१७ चन्द्रप्रभस्वामी की चन्द्रप्रभ जिनालय, | नाहर, प्रतिमा का लेख | जैसलमेर पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २३४२ सुमतिनाथ की | आदिनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय, धातु की प्रतिमा वासा पूर्वोक्त, भाग ५, का लेख लेखांक ५३९ १०३३ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३६. ३७. ३८. ३९. तिथि १५२० कार्तिक वदि २ शनिवार १५२३ वैशाख वदि १ सोमवार १५२४ पौष वदि ५ सोमवार १५२६ आश्विन सुदि ८ शुक्रवार आचार्य का नाम जयचन्द्रसूरि " "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख अभिनन्दनस्वामी की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, कनासा पाडो, पाटण वही कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, मामा की पोल, बड़ोदरा संदर्भ ग्रन्थ मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २९९ वही, भाग १, लेखांक ३०५ वही, भाग २, लेखांक ३४ वही, भाग २, लेखांक ३२४ १०३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा क्रमाङ्क | संवत् | तिथि/ | आचार्यनाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ४०. | १५२७ | ज्येष्ठ जयचन्द्रसूरि | संभवनाथ की शांतिनाथ जिनालय, मुनि कान्तिसागर, सुदि ४ प्रतिमा का लेख | भींडीबाजार, |संपा० जैन धातु गुरुवार बम्बई प्रतिमालेख, लेखांक ६७७ ४१. | १५३६ | माघ । भावचन्द्रसूरि विमलनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ७ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | कनासानो पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार | चारित्रचन्द्रसूरि पाटण लेखांक ३४४ ४२. | १५४७ | पौष जयचन्द्रसूरि | शांतिनाथ की गौड़ीजी का मंदिर, विजरधर्मसूरि, वदि १० के पट्टधर धातु की प्रतिमा | उदयपुर | पूर्वोक्त, बुधवार जयरत्नसूरि का लेख लेखांक ४९४ ४३. | १५५३ | आषाढ़ चारित्रचन्द्रसूरि । मुनिसुव्रत की | अभिनन्दनस्वामी दौलतसिंह लोढ़ा, सुदि २ ___के पट्टधर धातु की प्रतिमा | का मंदिर, श्रीप्रतिमालेखशुक्रवार | मुनिचन्द्रसूरि | का लेख रसियासेरी, थराद संग्रह, लेखांक २६० Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४४. |१५५४ । माघ चारित्रचन्द्रसूरि । चन्द्रप्रभस्वामी की| शांतिनाथ जिनालय, नाहटा, वदि २ के पट्टधर | पंचतीर्थी प्रतिमा | बीकानेर पूर्वोक्त, मुनिचन्द्रसूरि का लेख लेखांक ११२४ | ४५. १५५८ | फाल्गुन संभवनाथ की | आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ पंचतीर्थी प्रतिमा | बडोदरा पूर्वोक्त भाग २, का लेख लेखांक ११२ ४६. १५६० वैशाख वासुपूज्यस्वामी की जैन मंदिर, वही, भाग १, सुदि ३ प्रतिमा का गवाड़ा लेखांक ६५० लेख ४७. १५७१ | वैशाख सुमतिनाथ की. | आदिनाथ जिनालय मुनि विशालविजय, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | आदिनाथ खड़की, पूर्वोक्त, का लेख लेखांक ३२९ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास राधनपुर Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत | तिथि/ मिति ४८. | १५७६ वदि ५ चैत्र आचार्यनाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख मुनिचन्द्रसूरि | मुनिसुव्रत की बड़ा मंदिर, पंचतीर्थी प्रतिमा | नागौर का लेख पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा शनिवार विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९६२ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३०२ नाहर, पूर्वोक्त | भाग १ लेखांक १३२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३८५ ४९. | १५७७ | वैशाख सुदि १३ शांतिनाथ की घर देरासर, प्रतिमा का लेख | कलकत्ता ५०. | घर देरासर, १५७८ | माघ सुदि ९ सोमवार विमलनाथ की प्रतिमा का लेख | पाटण १०३७ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत ५१. ५२. ५३. तिथि १५९१ वैशाख वदि २ सोमवार १५९८ पौष वदि ११ सोमवार १५९८ पौष वदि ३ सोमवार आचार्य का नाम मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर धर्मप्रभसूरि विनयचन्द्रसूरि "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख वासुपूज्यस्वामी की चौबीसी प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, काठीपोल, लेखांक ६२ बड़ोदरा महावीर जिनालय, पुरानी मंडी, बडोदरा पूर्णचन्द्रजी का घर देरासर, पाटण नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३८३ १०३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ – भीमपल्लीयाशाखा - १०३९ उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों द्वारा यद्यपि पूर्णिमागच्छ की भीमपल्लीया शाखा के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं किन्तु उनमें से मात्र ८ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध ही स्थापित हो सके हैं, जो इस प्रकार है : ? ' देवचन्द्रसूरि | पार्श्वचन्द्रसूरि [वि० सं० १४५९ - १४६१] २ प्रतिमालेख T जयचन्द्रसूरि [वि० सं० १४८२ - १५२७] ३९ प्रतिमालेख I जयरत्नसूर [वि० सं० १५४७] १ प्रतिमालेख ? भावचन्द्रसूरि I चारित्रचन्द्रसूरि [वि० सं० १५३६ ] १ प्रतिमालेख | मुनिचन्द्रसूरि [वि० सं० १५५३ - १५९१] ९ प्रतिमालेख विनयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५९८ ] १ प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा की उक्त छोटी-छोटी दो अलग-अलग गुर्वावलियों का उक्त आधार पर परस्पर समायोजन सम्भव नहीं हो सका, अतः इसके लिये पूर्णिमापक्षीय साहित्यिक साक्ष्यों पर भी दृष्टिपात करना अपरिहार्य है । Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पार्श्वनाथचरित की वि० सं० १५०४ में प्रतिलिपि की गयी एक प्रति की दाताप्रशस्ति में भीमपल्लीयाशाखा के पासचन्द्रसूरि [ पार्श्वचन्द्रसूरि ] के शिष्य जयचन्द्रसूरि का उल्लेख है।' इस प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि एक श्रावक परिवार ने अपने माता-पिता के श्रेयार्थ उक्त ग्रन्थ की एक प्रति जयचन्द्रसूरि को प्रदान की । जयचन्द्रसूरि की प्रेरणा से वि० सं० १४८२ / ई० सन् १४२६ से वि० सं० १५२६ / ई० सन् १४६१ के मध्य प्रतिष्ठापित ३९ जिनप्रतिमायें आज मिलती हैं, जिनका अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत उल्लेख आ चुका है । पूर्णिमागच्छीय किन्हीं भावचन्द्रसूरि ने स्वरचित शांतिनाथचरित' [ रचनाकाल वि० सं० १५३५ / ई० सन् १४७९] की प्रशस्ति में अपने गुरु का नाम जयचन्द्रसूरि बतलाया है, जिन्हें इस गच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के पूर्वोक्त जयचन्द्रसूरि से समसामयिकता, गच्छ, नामसाम्य आदि के आधार पर एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक इसी प्रकार इसी शाखा के भावचन्द्रसूरि [वि० सं० १५३६ के प्रतिमालेख में उल्लिखित ] और शांतिनाथचरित के रचनाकार पूर्वोक्त भावचन्द्रसूरि को एक दूसरे से अभिन्न माना जा सकता है I १०४० 1 पूर्णिमागच्छीय किन्हीं जयराजसूरि ने स्वरचित मत्स्योदररास [ रचनाकाल वि० सं० १५५३ / ई० सन् १४९७] की प्रशस्ति में और इसी गच्छ के विद्यारत्नसूरि ने वि० सं० १५७७ / ई० सन् १५२० में रचित कूर्मापुत्रचरित' की प्रशस्ति में मुनिचन्द्रसूरि का अपने गुरु के रूप में उल्लेख किया है । पूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों में तो नहीं किन्तु भीमपल्लीयाशाखा से सम्बद्ध वि० सं० १५५३१५९१ के प्रतिमालेखों में मुनिचन्द्रसूरि का उल्लेख मिलता है । अत: समसामयिकता और गच्छ की समानता को देखते हुए उन्हें एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं है। चूंकि पूर्णिमागच्छ की एक शाखा के रूप में ही भीमपल्लीयाशाखा का जन्म और विकास हुआ, अतः इस शाखा के किन्हीं मुनिजनों द्वारा कहीं कहीं अपने मूलगच्छ का ही उल्लेख करना Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ - भीमपल्लीयाशाखा १०४१ अस्वाभाविक नहीं प्रतीत होता और संभवतः यही कारण है कि उक्त ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों की प्रशस्ति में अपना परिचय पूर्णिमागच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के मुनि के रूप में नहीं अपितु पूर्णिमागच्छ के मुनि के रूप में ही दिया है। विभिन्न गच्छों के इतिहास में इस प्रकार के अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। __ प्रतिमालेखों और ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर पूर्णिमापक्षभीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की एक तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों का विद्यावंशवृक्ष १०४२ ? चन्द्रप्रभसूरि [ पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक ] धर्मघोषसूरि [ चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज सुमतिभद्रसूरि देवचन्द्रसूरि T पासचन्द्र [पार्श्वचन्द्रसूरि] [वि० सं० १४५९ - १४६१] प्रतिमालेख जयचन्द्रसूरि भावचन्द्रसूरि [वि० सं० १५३५ शांतिनाथचरित के कर्ता] ( ई० सन् १०९४ - ११४२) द्वारा सम्मानित ] जयराजसूरि [वि० सं० १५५३ में मत्स्योदररास के कर्ता ] [वि० सं० १५०४ में लिपिबद्ध पार्श्वनाथचरित में उल्लिखित ] चारित्रचन्द्रसूरि [वि० सं० १५३६ ] प्रतिमालेख मुनिचन्द्रसूरि उदयरत्नसूरि [वि० सं० १५४७ ] प्रतिमालेख [वि० सं० १५५३ - १६९१] प्रतिमालेख विद्यारत्नसूरि [वि० सं० १५७७ में कूर्मापुत्रचरित्र के कर्ता] विनयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५९८ ] प्रतिमालेख Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ - भीमपल्लीयाशाखा सन्दर्भसूची : १. ३. ४. संवत् १५०३ वर्षे आसो वदि ४ गुरौ श्रीपार्श्वनाथचरित्र पुस्तकं लिखापितमस्ति ॥ संवत् १५०४ वर्षे वैशाख सुदि षष्ठी भौमे श्री प्राग्वाट ज्ञातीय मं० धना भार्या धांधलदे पुत्र मं० मारू भार्या चमकू पितृमातृ स्वश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथचरित्रपुस्तकं अलेषि ॥ श्री भीमपल्लीय श्रीपूर्णिमापक्षे मुक्ष [मुख्य ] श्रीपासचन्द्रसूरिपट्टे श्री ३ जयचन्द्रसूरिभिः प्रदत्त ॥ अमृतलाल मगनलाल शाह संपा० श्रीप्रशस्तिसंग्रह, अहमदाबाद वि० सं० १९९३, भाग २, पृष्ठ १०. इति श्री श्री श्रीभावचन्द्रसूरिविरचिते गद्यबंधे श्रीशांतिनाथचरिते द्वादशभववर्णनो नाम षष्ठः प्रस्तावः ॥ H. R. Kapadia Ed. Descriptive Catalogue of MSS in the Govt. MSS Library deposited at the Bhadarkar Oriental Research Institute, Serial No. 27 B.O.R.I. Poona, 1987 A. D. No. 733, pp. 118-119. १०४३ -- पूनिमपक्ष मुनिचन्द्रसूरि राजा, तासु ससि जंपर पर जइराज । पनर त्रिपन्न कीधु रास, भणइ गुणइ तेह पूरि आस ॥ मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गूर्जर कविओ भाग १, नवीन संस्करण [ संपा० डॉ. जयन्त कोठारी] महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई १९८६ ईस्वी, पृष्ठ २०३ - २०४. इति श्रीपूर्णिमापक्षे भट्टारकश्रीमुनिचन्द्रसूरि शिष्यमुनिविद्यारत्नविरचिते श्रीकूम्र्म्मापुत्रकेवलिचरित्रे शिवगतिवर्णनो नाम चतुर्थोल्लासः परिपूर्णस्तत्परिपूर्णोपरिपूर्णतामभजतायमपि ग्रन्थ इति भद्रम् ॥ - A. P. Shah Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit MSS : Muni Shree Punyavijayji's Collection Part II, L. D. Series No. 5, Ahmedabad, 1965, A. D. No. 4042 pp. 300-302. Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय में पूर्वमध्यकाल में प्रकट हुए विभिन्न चैत्यवासी गच्छों में ब्रह्माणगच्छ भी एक है । जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है, यह गच्छ अर्बुदगिरि के निकट स्थित ब्रह्माण (वर्तमान वरमाण) नामक स्थान से अस्तित्व में आया । ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते है जो वि० सं० ११२४-ई० स० १०७८ से लेकर वि० सं० १५७६ - ई० स० १५२० तक के हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों की तुलना में इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्य संख्या की दृष्टि से प्रायः नगण्य ही हैं। ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है नवपदप्रकरण की वि० सं० १११२-ई० स० ११३६ में लिखी गयी दाताप्रशस्ति', जिसमें इस गच्छ के विमलाचार्य के एक श्रावक शिष्य द्वारा उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि तैयार करवा कर वहां विराजित साध्वियों को पठनार्थ दान में देने का उल्लेख है। चूंकि इस प्रशस्ति में ब्रह्माणगच्छ के एक आचार्य के नामोल्लेख के अतिरिक्त कोई अन्य ऐतिहासिक सूचना प्राप्त नहीं होती, फिर भी इस गच्छ से सम्बद्ध और अद्यावधि उपलब्ध प्राचीनतम साहित्यिक साक्ष्य होने से यह प्रशस्ति महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है। ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध द्वितीय साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १२१७-ई० स० ११६१ में लिखी गयी चन्द्रप्रभचरित की दाताप्रशस्ति, जिसके अन्त में इस गच्छ के पं. अभयकुमार का नाम मिलता है। भवभावनाप्रकरण की वि० सं० १२८० में लिखी गयी दाताप्रशस्ति के अनुसार ब्रह्माणगच्छ की चन्द्रशाखा में देवचन्द्रसूरि हुए। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ १०४५ उनके पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १२४० - ई० स० ११८४ में पद्रग्राम (पादरा) में उक्त ग्रन्थ की प्रथम बार वाचना की । मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य वाचनाचार्य अभयकुमार हुए जिन्होंने वि० सं० १२४८ में द्वितीय बार इस ग्रन्थ की वाचना की । इसी प्रकार वि० सं० १२५३, १२६५ और १२८० में भी इस ग्रन्थ की वाचना होने का इस प्रशस्ति में उल्लेख है। प्रशस्ति के अन्त में पं० अभयकुमारगणि को उक्त ग्रन्थ भेंट में देने की बात कही गयी है। इस प्रकार उक्त दोनों प्रशस्तियों में पं० अभयकुमार का नाम समान रूप से मिलता है। यद्यपि इन दोनों प्रशस्तियों के मध्य ६३ वर्षों की दीर्घ कालावधि (वि०सं० १२१७ से वि० सं० १२८०) का अन्तराल है, तथापि इतने लम्बे काल तक किसी भी व्यक्ति का सामाजिक या धार्मिक क्रियाकलापों में संलग्न रहना नितान्त असंभव नहीं लगता । चूंकि ब्रह्माणगच्छ सर्वसुविधासम्पन्न एक चैत्यवासी गच्छ था और ऐसा प्रतीत होता है कि पं० अभयकुमार की मुनिदीक्षा कम उम्र (अल्पायु) में हुई होगी और ये दीर्घायु भी हुए इसी कारण ब्रह्माणगच्छ के रंगमंच पर इनकी लम्बे समय तक पंडित, वाचनाचार्य और गणि के रूप में उपस्थित बनी रही। वि० सं० १५२७ में लिखी गयी नेमिनाथचरित्र की प्रतिलेखन प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार ब्रह्माणगच्छीय हर्षमति ने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है: शीलगुणसूरि जगत्सूरि हर्षमति (वि० सं० १५२७ - ई० स० १४७१ में नेमिनाथचरित्र के प्रतिलिपिकर्ता) Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इसी प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि एक श्रावक परिवार द्वारा उक्त प्रति श्री आनन्दविमलसूरि के प्रशिष्य और धनविमलगणि के शिष्य (शिव) विमलगणि को पठनार्थ प्रदान की गयी। आनन्दविमलसूरि किस गच्छ के थे इस बारे में कोई सूचना नहीं मिलती । प्रताप सिंह जी का मंदिर, रामघाट, वाराणसी में संरक्षित नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि० सं० १५२० के लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में भी ब्रह्माणगच्छीय किन्हीं शीलगुणसूरि का नाम मिलता है जो समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि बातों को देखते हुए उक्त प्रशस्ति में उल्लिखित शीलगुणसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। रसरलाकर की वि० सं० १५९८ में लिखी गयी प्रति की दाताप्रशस्ति में प्रतिलिपिकार ब्रह्माणगच्छीय वाचक शिवसुन्दर ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : विमलसूरि साधुकीर्ति वा० शिवसुन्दर (वि० सं० १५९८ में रसरत्नाकर के प्रतिलिपिकार) ब्रह्माणगच्छ में भावकवि नामक एक रचनाकर हो चुके हैं। इनके द्वारा मरु-गुर्जर भाषा में रचित हरिश्चन्द्ररास और अंबडरास ये दो कृतियाँ मिलती हैं। इनकी प्रशस्तियों में इन्होंने अपने गुरु, प्रगुरु, गच्छ आदि का तो उल्लेख किया है। किन्तु रचनाकाल के बारे में वे मौन हैं। अंबडरास की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इन्होंने अपने शिष्य लक्ष्मीसागर के आग्रह पर इसकी रचना की थी । हरिश्चन्द्ररास की वि० सं० १६०७ में लिखी गयी एक प्रति मुनि श्रीपुण्यविजय जी के संग्रह में उपलब्ध है१२, जिसके Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ १०४७ आधार पर इसका रचनाकाल वि० सं० की १६वीं शती माना जा सकता है। प्रशस्ति में उल्लिखित गुर्वावली इस प्रकार है - बुद्धिसागरसूरि विमलसूरि गुणमाणिक्य भावकवि (अंबडरास और हरिश्चन्द्ररास के रचनाकार) बालावसही, शत्रुजय में प्रतिष्ठापित धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि० सं० १५७६ के लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में विमलसूरि का नाम मिलता है जिन्हें समसामयिकता, नामसाम्य आदि के आधार पर उक्त दोनों प्रशस्तियों में उल्लिखित विमलसूरि से अभिन्न मानने में कोई बाधा दिखाई नहीं देती। उक्त दोनों प्रशस्तियों के आधार पर विमलसूरि की शिष्य परम्परा की एक छोटी तालिका बनायी जा सकती है, जो इस प्रकार है : Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४८ तालिका- १ साधुकीर्ति वा० शिवसुन्दर (वि० सं० १५९८ ई० स० १५४२ में रसरत्नाकर के जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास विमलसूरि (वि० सं० १५७६ - ई० स० १५२०) गुणमाणिक्य | भावकवि (अंबडरास और हरिचन्द्ररास के कर्ता) प्रतिलिपिकार) युगादिदेवस्तवनम् की वि० सं० १६१० - ई० स० १५५४ में लिखी गयी प्रति की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार ब्रह्माणगच्छीय नयकुंजर ने स्वयं को गुणसुन्दरसूरि का शिष्य बतलाया है । गुणसुन्दरसूरि I नयकुंजर (वि० सं० १६१० ई० स० १५५४ में युगादिदेवस्तवन प्रतिलिपिकार) ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण का साक्ष्य होने से यह प्रशस्ति इस गच्छ के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है। जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य मिलते हैं जो वि० सं० १९२४ से वि० सं० १५९२ तक के हैं । इनका विवरण इस प्रकार है : Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ ब्रह्माणगच्छ | जैनमंदिर, रांतेज क्रमाङ्क | संवत | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ मिति स्तम्भलेख १. ११२४ -- यशोभद्राचार्य, | प्रतिमा लेख यशोवर्धन, वैरसिंह, जज्जगसूरि, प्रद्युम्नसूरि जैनसत्यप्रकाश, वर्ष २, पृ० ३८३, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, मुनि जिनविजय, भाग-२, लेखांक ४६४ मुनि जिनविजय, वही, भाग २, लेखांक ४६३ जैनसत्यप्रकाश वर्ष ९, पृ. ३८ २. |११२४ - यशोभद्रसूरि वही ३. ११२९ महावीर स्वामी | वही की धातु प्रतिमा का लेख Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अस्पष्ट क्रमाङ्क | संवत | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ४. ११३४ | फाल्गुन प्रद्युम्नसूरि महावीर स्वामी चतुर्मुख विहार मुनि जयन्तविजय, सुदि ७ संतानीय | की प्रतिमा का | (आदिनाथ प्रासाद), आबू, भाग २, गुरुवार लेख अचलगढ लेखांक ४६५ ५. ११४४ | माघ देवाचार्य नवलखा मंदिर पूरनचन्द नाहर, सुदि ११ पाली - जैनलेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ८११ ६. ११४४ | माघ देवाचार्य प्राचीनजैनलेखसुदि ११ संग्रह, भाग-२, लेखांक ३८२ ७. |११६८ | ज्येष्ठ आम्रदेवसूरि | एकतीर्थी प्रतिमा | महावीर जिनालय, आबू, भाग ५, वदि ३ का लेख अजारी लेखांक ४०३ v लेखांक ५ और लेखांक ६ एक ही प्रतीत होते हैं, किन्तु दोनों में पाठभेद द्रष्टव्य है। | वही जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिति ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान - संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख ८. |११७० - शालिभद्राचार्य | परिकर का लेख | जैनमंदिर, रांतेज मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४६८ ९. ११८५ | - | यशोभद्रसूरि धातु की चौबीसी | अनन्तनाथ बुद्धिसागरसूरि, जैन पर उत्कीर्ण लेख | जिनालय, भरुच धातुप्रतिमालेख संग्रह, भाग २, लेखांक २९८ १०. | ११८५ | चैत्र प्रतिमालेख | त्रैलोक्यदीपक नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ जिनालय, भाग १, रैन्पुर तीर्थ, मारवाड़ा लेखांक ७०१ ११. |११८८ | फाल्गुन श्रीपतटुतसूरि | पार्श्वनाथ की पार्श्वनाथजिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ प्रतिमा का लेख | लिंबडीपाड़ा, पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार पाटण लेखांक ७०१ १०५१ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ १०५२ मिति क्रमाङ्क संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १२. ११९० । आषाढ यशोभद्रसूरि जिनप्रतिमा का सुदि ९ लेख । १३. ११९० | मिति विहीन आचार्य का जिनप्रतिमा का नाम अनुपलब्ध | लेख शत्रुजय सम्बोधि, जिल्द ४, पृष्ठ १५, लेखांक ४ शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वीसनगर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५०६ घोघा "घोघानी मध्यकालीन धातुप्रतिमा" लक्ष्मण भोजक, निर्ग्रन्थ, जिल्द १, पृष्ठ ६९ १३(अ) ११९५ | फाल्गुन उद्यातनाच | अरिष्टनेमि की प्रतिमा का लेख सुदि ११ संतानीय जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ थराद क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १४. १२१३ | फाल्गुन वीरसूरि । पंचतीर्थी का लेख शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ६ कनासा पाडो, पूर्वोक्त, भाग २, पाटण लेखांक ३२५ १५. | १२१७ | वैशाख प्रद्युम्नसूरि धातुप्रतिमा लेख | वीरचैत्य के अन्तर्गत | दौलतसिंह लोढ़ा, वदि १ आदिनाथ चैत्य, पूर्वोक्त, . लेखांक-२०० १६. |१२१९ | मिति मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग-२ लेखांक १९ १७. १२२१ | वैशाख | विमलसूरि के | धातु की एकतीर्थी विमलनाथ मुनि विशालविजय, सुदि ११ संतानीय प्रतिमा का लेख | जिनालय, पूर्वोक्त, प्रद्युम्नसूरि भणशाली शेरी, लेखांक १५ राधनपुर विहीन Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ৪৮০১ अस्पष्ट क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १८. १२२३ | फाल्गुन आचार्य का । अजितनाथ |विनयसागर, वदि २ नाम अनुपलब्ध जिनालय, सिरोही पूर्वोक्त, भाग १, मंगलवार लेखांक ३२ १९. १२२४ | अनुपलब्ध प्रद्युम्नसूरि महावीर प्रतिमा चिन्तामणि जी का अगरचंद नाहटा, का लेख मंदिर, बीकानेर पूर्वोक्त, लेखांक ८७ २०. १२२४ | चैत्र आचार्य का धातुप्रतिमा के गौडी पार्श्वनाथ अर्बुदाचलनाम अनुपलब्ध | परिकर का लेख | जिनालय, सिरोही प्रदक्षिणाजैन लेखसंदोह (आबू-भाग ५), लेखांक २४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २१. | १२३४ माघ महेन्द्रसूरि । | पार्श्वनार्थ की धातु आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ की प्रतिमा का मांडवी पोल, पूर्वोक्त, भाग-२ खंभात लेखांक ६२० २२. | १२३५ | फाल्गुन प्रद्युम्नसूरि महावीर की धातु | शांतिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, वदि २ प्रतिमा का लेख | राधनपुर पूर्वोक्त, लेखांक १९ २३. | १२४२ | चैत्र सुदि आचार्य का दीवाल पर | जैन मंदिर, वरमाण | आबू, भाग ५, १५ शनि | नाम अनुपलब्ध | उत्कीर्ण लेख लेखांक ११० २४. १२५९ वैशाखसुदि| । आचार्य का | कायोत्सर्ग प्रतिमा | जैनमंदिर, मंडार वही, भाग ५, ४ बुधवार नाम अनुपलब्ध | पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ६५ २५. |१२६१ / ज्येष्ठ जयप्रभसूरि खंडित परिकर जैन मंदिर, भारोल | श्रीभारोलतीर्थ, सुदि २ का लेख लेखक, मुनि १०५५ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख रविवार विशालविजय, लेखांक १ २६. १२६३ | वैशाख विमलसूरि | महावीर की धातु | पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ६ की प्रतिमा का माणेक चौक, पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार लेख खंभात लेखांक ९२७ २७. |१२७० | वैशाख सुदि प्रद्युम्नसूरि के | नेमिनाथ की धातु | वही वही, भाग २, संतानीय प्रतिमा का लेख लेखांक ९३२ | १२९० वैशाखसुदि मुनिचन्द्रसूरि त्रितीर्थी धातु- पार्श्वनाथ जिनालय, आबू, भाग ५, ६ रविवार प्रतिमा का लेख रोहिडा लेखांक ५६२ २९. १२९५ / पोष वदि देवसूरि के | शांतिनाथ की | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, | ५ गुरुवार प्रशिष्य धातु की प्रतिमा मंदिर, लेखांक १३५ माणिक्यसूरि का लेख बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति | स्तम्भलेख ३०. | १३०२ | ज्येष्ठ लेख अपूर्ण होने से | मूर्ति के साधन | शांतिनाथ जिनालय आबू, भाग २ सुदि ९ | प्रतिष्ठापक का नाम | पर उत्कीर्ण लेख | अचलगढ़ लेखांक ४९२ शुक्रवार नहीं मिलता ३१. | १३०५ | फाल्गुन वीरसूरि आदिनाथ की जैनमंदिर, जिनविजय, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | सलषणपुर | पूर्वोक्त, भाग २, | लेखांक ४८७ ३२. |१३०९ | प्रद्युम्नसूरि जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १८, पृ० २३७-३८ ३३. |१३११ / चैत्र जज्जगसूरि आदिनाथ की | अजितानाथ बुद्धिसागरसूरि, वदि ७ प्रतिमा का लेख | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, बुधवार कवीरपुरा, भरुच लेखांक ३४६ १०५७ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५८ मिति क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख ३४. १३१६ वैशाख विमलसूरि महावीर की जैनमंदिर, रांतेज जिनविजय, वदि..... प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ३४६ ३५. |१३२० | फाल्गुन | जज्जगसूरि के महावीर स्वामी जैनमंदिर, डीसा नाहर, पूर्वोक्त, सुदि २ पट्टधर वयरसेण की प्रितमा |भाग-२, शुक्रवार उपाध्याय का लेख लेखांक २०९८ ३६. |१३२६ | माघ बुद्धिसागरसूरि | नेमिनाथ की जैनमंदिर, शंखेश्वर, मुनि जयन्तविजय, वदि २ चौबीसी का लेख | अगल-बगल शंखेश्वर महातीर्थ, रविवार देवकुलिकाओं में लेखांक २-३ स्थित प्रतिमाओं के लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भग्रन्थ ब्रह्माणगच्छ जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५०० आबू, भाग ५, लेखांक ६८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान मिति स्तम्भलेख ३७. | १३२६ । माघ बुद्धिसागरसूरि | आदिनाथ की । वही वदि २ चौबीसी का लेख रविवार ३८. १३२७ चैत्र मदनप्रभसूरि | धातुप्रतिमालेख | जैनमंदिर, मडार वदि ७ गुरुवार ३९. १३२८ | वैशाख विमलसूरि के | धर्मनाथ की जैनमंदिर, वदि ५ पट्टधर | चौबीसी का लेख | सेलवाड़ा, गुरुवार बुद्धिसागरसूरि थराद ४०. |१३३० | चैत्र जज्जगसूरि अरनाथ की | जैनमंदिर, वदि ७ प्रतिमा सलषणपुर शनिवार का लेख | लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक ३२२ मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४८० ४१०४ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ४१. ४२. १३३० ४३. १३३० ४४. १३३० १३३० तिथि / आचार्य का नाम मिति चैत्र वदि ७ शनिवार चैत्र वदि ७ शनिवार चैत्र वदि ७ शनिवार चैत्र वदि ७ शनिवार जज्जगसूरि वीरसूरि वयरसेण उपाध्याय वीरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिमा स्थापित करने का उल्लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान वही वही भोंयरा स्थित प्राचीन परिकर का लेख, जैनमंदिर, सलषणपुर महावीर स्वामी की वही प्रतिमा का लेख संदर्भग्रन्थ वही, भाग २, लेखांक ४७० वही, भाग २, लेखांक ४७२ वही, भाग २, लेखांक ४७८ वही, भाग २, लेखांक ४७९ १०६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ४५. |१३३० | चैत्र । जज्जगसूरि शांतिनाथ चैत्य में | वही वही, भाग २, वदि ७ जिनविम्ब प्रतिष्ठा लेखांक ४९० शनिवार का उल्लेख ४६. |१३३० | चैत्र । सुविधनाथ की । मूलनायक पार्श्वनाथ | वही, भाग २, वदि ७ प्रतिमा का लेख | की प्रतिमा के दोनों | लेखांक ४९७ शनिवार ओर स्थित प्रतिमाओं के लेख, जैनमंदिर, शंखेश्वर ४७. |१३३० । वैशाख नेमिनाथ की पंचासरा पार्श्वनाथ वही, भाग २, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | जिनालय, पाटण लेखांक ५१८ सोमवार - Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६२ मिति 93३९ चैत्र क्रमाङ्क संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख ४८. १३३० | वैशाख शांतिनाथ की वही वही, भाग २ सुदि ९ प्रतिमा का लेख लेखांक ५१९ सोमवार ४९. १३३९ वयरसेणोपाध्याय / पार्श्वनाथ की नेमिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि २ के शिष्य धातु की प्रतिमा मेहता चौक, पूर्वोक्त, भाग२, शुक्रवार का लेख बड़ोदरा लेखांक १६९ ५०. १३३९ । पौष | शांतिनाथ की सुमतिनाथ का नाहर, पूर्वोक्त, वदि ९ प्रतिमा का लेख | पंचायती भाग-२, . सोमवार बड़ामंदिर, जयपुर लेखांक ११३७ ५१. १३४० - मुनिचन्द्रसूरि प्रतिमा स्थापित नया जैन मंदिर में जिनविजय, करने का उल्लेख भोयरा स्थित पूर्वोक्त, भाग-२, प्राचीन परिकर का लेखांक ४८१ लेख, सलषणपुर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ५२. | १३४१ | मिति श्रीधरसूरि तीर्थंकर प्रतिमा | वीर चैत्यालय के लोढ़ा, पूर्वोक्त, विहीन का लेख अन्तर्गत स्थित लेखांक १४९ आदिनाथ चैत्यालय का लेख, जैनमंदिर, थराद ५३. | १३४४ / ज्येष्ठ वीरसूरि पार्श्वनाथ की चिन्तामणि नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ४ | धातु की प्रतिमा | जिनालय, लेखांक १९९ शुक्रवार का लेख बीकानेर ५४. | १३४७ | ज्येष्ठ नेमिनाथ की भोयरा स्थित जिनविजय, वदि २ प्रतिमा का लेख | प्राचीन परिकर का | पूर्वोक्त-भाग २, लेख, जैनमंदिर, लेखांक ४७५ सलषणपुर १०६३ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत V ५५. ५६. ५७. ५८. तिथि / आचार्य का नाम मिति १३४९ | चैत्र वदि ६ रविवार १३४९ चैत्र वदि ६ रविवार १३५१ | माघ वदि १ सोमवार १३५१ तिथि / मिति जज्जगसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख "" नेमिनाथ की प्रतिमा का लेख अरिष्टनेमि की रत्न प्रतिमा स्थापित करने का उल्लेख प्रतिष्ठापक आचार्य पार्श्वनाथ की का नाम अनुपलब्ध पाषाण की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान वही पंचासरा पार्श्वनाथ जिनालय, पाटण जैनमंदिर स्थित कायोत्सर्ग प्रतिमा का लेख, वरमाण वीर जिनालय, अनुपलब्ध वरमाण लेखांक ५६ और ५८ एक ही लेख प्रतीत होते हैं। दोनों लेखों की वाचनाओं में पाठभेद द्रष्टव्य है । संदर्भग्रन्थ वही, भाग २, लेखांक ४७३ वही, भाग २, लेखांक ५०२ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक ३२५ आबू, भाग ५, लेखांक ११२ 8308 जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ बीकानेर क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ५९. १३५१ / पौष । अम्बिका की वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ३ मूर्ति का लेख | वैदों का चौक, लेखांक १२३० बुधवार ६०. | १३५५ | तिथि विमलसूरि | आदिनाथ की | पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, विहीन प्रतिमा का लेख | करेड़ा, मेवाड़ भाग २, लेखांक १९२२ ६१. | १३५७ तिथि। वीरसूरि | धातुप्रतिमा का जैनमंदिर, थराद लोढ़ा, पूर्वोक्त, विहीन लेख लेखांक १५८ ६२. | १३५९ / तिथि शांतिनाथ की | जैनमंदिर, थराद विहीन प्रतिमा का लेख लेखांक १५८ ६३. १३६७ / - धातुप्रतिमा का जैनमंदिर, धनारी आबू, भाग ५, लेखांक ५०६ वही, लेख Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम मिति ६४. |१३७० | चैत्र जज्जगसूरि वदि ५ शुक्रवार प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख | महावीर स्वामी अजितनाथ विनयसागर, संपा० की पंचतीर्थी का | जिनालय, सिरोही प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेख भाग १, लेखांक ११२ महावीर की सुमतिनाथमुख्य बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख बावन जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५१२ आदिनाथ की आबू, अनुपूर्ति । आबू, भाग २, प्रतिमा का लेख लेख लेखांक ५४२ भद्रेश्वरसूरि ६५. १३७० | तिथि विहीन मातर मुनिचन्द्रसूरि ६६. १३७० | पौष वदि ५ सोमवार ६७. | १३७१ | तिथि विहीन जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास विमलसूरि | पंच परमेष्ठी की प्रतिमा की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, | चौकसी पोल, पूर्वोक्त, भाग २, Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ६८. ६९. ७०. तिथि / आचार्य का नाम मिति १३७५ तिथि विहीन १३८० | ज्येष्ठ सुदि १४ गुरुवार १३८० | वैशाख सुदि १० रविवार मदनप्रभ के शिष्य विजयसेनसूरि बुद्धिसागरसूरि विजयसेनसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख प्रतिष्ठा करने का उल्लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख वही महावीर की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान खंभात महावीर जिनालय, रिलीफ रोड, संदर्भग्रन्थ पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, घीया मंडी, मथुरा अहमदाबाद शांतिनाथ देरासर, कनासा पाडो, पाटण लेखांक ८२९ भाग २, लेखांक १४३४ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९९१ वही, भाग १, लेखांक ३३५ ब्रह्माणगच्छ १०६७ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ७१. १३८२ | वैशाख जज्जगसूरि शांतिनाथ की | नवपल्लव पार्श्वनाथ वही, सुदि १४ धातु की प्रतिमा जिनालय, खंभात | भाग २, गुरुवार का लेख लेखांक १०९३ ७२. १३८६ | माघ बुद्धिसागरसूरि | पार्श्वनाथ की अनन्तनाथ वही, भाग २, वदि २ धातु की प्रतिमा | जिनालय, भरुच लेखांक २९९ का लेख ७३. |१३८७ / वैशाख जज्जगसूरि पार्श्वनाथ की महावीर जिनालय, लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि २ | प्रतिमा का लेख थराद लेखांक १७९ रविवार ७४. १३८८ | वैशाख | बुद्धिसागरसूरि शांतिनाथ की मोतीसा का मंदिर, विनयसागर, सुदि १५ पंचतीर्थी का लेख रतलाम पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ७५. |१३८९ | तिथि गुणाकरसूरि | सुमतिनाथ की | अजितनाथ देरासर, बुद्धिसागर, विहीन प्रतिमा का लेख | वीरमग्राम पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १४८९ ७६. |१३८९ / वैशाख | वीरसूरि | धातु प्रतिमा चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ८ का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ३३० ७७ १३९३ | माघ | माघ । । पद्मदेवसरि आदिनाथपंचतीर्थी यति उपाश्रय, विनयसागर, सुदि १५ का लेख नागौर पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवारे लेखांक १३८ ७८. | १४०५ / मार्गशीर्ष बुद्धिसागरसूरि | धातु की आबू, भाग ५, सुदि १ परिकरवाली जीरावला लेखांक ११८ शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख जैनमंदिर, १०६९ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७० क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ७९. १४०५ | वैशाख __ आचार्य का | महावीर की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ नाम अनुपलब्ध | प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ४०३ सोमवार ८०. १४०५ बुद्धिसागरसूरि | धातुप्रतिमा लेख | प्राचीन जिनालय, विजयधर्मसूरि, लिंबडी पूर्वोक्त, लेखांक ७० ८१. १४०६ । आषाढ़ बुद्धिसागरसूरि | वासुपूज्य की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | मंदिर, बीकानेर लेखांक ४०६ गुरुवार का लेख ८१(अ) | १४०८ वैशाख विजयसेनसूरि के | पार्श्वनाथ की वही वही, सुदि ५ पट्टधर धातु की प्रतिमा लेखांक ४१५ गुरुवार रत्नाकरसूरि का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् ८२. ८३. ८४. ८५. १४१० तिथि / आचार्य का नाम मिति माघ वदि २ सोमवार १४११ ज्येष्ठ वदि ९ शनिवार १४१२ आश्विन वदि ४ बुधवार १४१७ | ज्येष्ठ सुदि ९ "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख महावीर की धातु की प्रतिमा का लेख लब्धिसागरसूरि वैरुट्या देवी की प्रतिमा का लेख पट्टधर रत्नाकरसूरि विजयसेनसूरि के देवकुलिका का लेख शिष्य रत्नाकरसूरि विजयसेनसूरि के आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, चिन्तामणि शेरी, राधनपुर वीरचैत्य के अन्तर्गत आदिनाथ चैत्य, थराद जीरावला तीर्थ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भग्रन्थ मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ६० लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक २२४ वही, लेखांक ३११ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४३८ ब्रह्माणगच्छ १०७१ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २००४ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ८६. १४२० | वैशाख शांतिनाथ की अनुपूर्ति लेख, आबू, भाग २, सुदि १० पंचतीर्थी की लेख आबू लेखांक ५७६ बुधवार ८७. १४२५ । वैशाख । बुद्धिसागरसूरि | धातुपंचतीर्थी का | जैनमंदिर, जेतड़ा लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ११ लेख (थराद) लेखांक ३७२ ८८. १४२६ | द्वितीय | विजयसेनसूरि के | शांतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, पट्टधर धातु प्रतिमा का मंदिर, बीकानेर लेखांक ४७७ सुदि ९ रत्नाकरसूरि लेख रविवार ८९. १४२६ / वैशाख बुद्धिसागरसूरि | पार्श्वनाथ की वही वही, सुदि १० धातु प्रतिमा का लेखांक ४७५ रविवार लेख वैशाख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ९०. | १४२९ | माघ । विजयसेनसूरि के | शांतिनाथ की | वही वही, वदि ६ शिष्य धातु-प्रतिमा का लेखांक-४९३ सोमवार रत्नाकरसूरि लेख ९१. | १४२९ | तिथि। सावदेवसूरि, | शांतिनाथ की संभवनाथ बुद्धिसागर, विहीन बुद्धिसागरसूरि जिनालय, कड़ी पूर्वोक्त, भाग १, लेख लेखांक ७४३ ९२.. | १४३२ | वैशाख | देवचंद्रसूरि शांतिनाथ चौबीसी| आबू, अनुपूर्ति । आबू, भाग २, सुदि १२ का लेख लेख लेखांक ५८८ गुरुवार ९३. | १४३२ / द्वितीय हेमतिलकसूरि | पार्श्वनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वैशाख प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर । लेखांक ४९८ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७४ पाटण क्रमाङ्क संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख वदि ११ सोमवार ९४. १४३३ | तिथि मुनिचन्द्रसूरि शांतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय |बुद्धिसागरसूरि, विहीन प्रतिमा का लेख | कनासा पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३४१ ९५. १४३४ | वैशाख हेमतिलकसूरि महावीर की अनुपूर्ति आबू, भाग २, वदि २ प्रतिमा का लेख लेख, आबू लेखांक ५९२ बुधवार ९६. १४३४ | वैशाख मुनिचन्द्रसूरि | आदिनाथ वही वही, वदि २ पंचतीर्थी का लेखांक५९३ बुधवार लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ९७. | १४३५ | फाल्गुन हेमतिलकसूरि | वासुपूज्य चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १२ पंचतीर्थी का मंदिर, बीकानेर लेखांक ५१९ सोमवार ९८. |१४३७ रत्नाकरसूरि के | धातु प्रतिमा लेख | गौड़ीजी भंडार, विजयधर्मसूरि, पट्टधर उदयपुर पूर्वोक्त, हेमतिलकसूरि लेखांक ८२ ९९. |१४३७ | द्वितीय विमलनाथ की | शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, वैशाख प्रतिमा का लेख | जिनालय, उदयपुर | भाग २, वदि ११ लेखांक ११२३ १००. | १४३९ | पौष । बुद्धिसागरसूरि | शांतिनाथ | पंचायती मंदिर, विनयसागर, वदि ९ पंचतीर्थी का जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेख लेखांक १६५ तथा Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७६ (अ) क्रमाङ्क |संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५७२ १०० १४४० / रत्नाकरसूरि | महावीर की सिरोही सोहनलाल पटनी, के पट्टधर | धातु-प्रतिमा का संपा० अर्बुदहेमतिलकसूरि लेख परिमंडल की जैन || धातुप्रतिमायें एवं मंदिरावली, पृष्ठ ५७, लेखांक ४४ १०१. १४४१ | फाल्गुन । प्रद्युम्नसूरि के | पार्श्वनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय सुदि ९ | प्रतिमा का लेख | जिनालय, पूर्वोक्त, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - शिष्य Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख सोमवार | शीलगुणसूरि चिन्तामणि शेरी, लेखांक ७७ राधनपुर १०२. | १४४५ | फाल्गुन विमलसूरि संभवनाथ की अनन्तनाथ बुद्धिसागरसूरि, वदि ११ चौबीसी का | जिनालय, भरुच पूर्वोक्त, भाग २, रविवार लेख लेखांक ३०४ १०३. | १४४६ | वैशाख | मदनप्रभसूरि के | स्तम्भ लेख वीर जिनालय, आबू, भाग ५, वदि ११ पट्टधर भद्रेश्वरसूरि के वरमाण लेखांक ११३; बुधवार | पट्टधर विजयसेनसूरि नाहर, पूर्वोक्त, पट्टधर रत्नाकरसूरिके भाग १, पट्टधर हेमतिलकसूरि १०४. | १४४७ | फाल्गुन | मुनिचन्द्रसूरि वासुपूज्य की धातु शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ प्रतिमा का लेख | छाणी पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २६९ १०७७ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७८ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १०५. |१४४६ | माघ | उदयाणंदसूरि शांतिनाथ की चिन्तामणि नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १२ प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर लेखांक ६३१ गुरुवार १०६. १४५० | ज्येष्ठ जहागर | पार्श्वनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, वदि ११ | (जज्जिग) सूरि प्रतिमा का लेख जिनालय, पूर्वोक्त, शनिवार चिन्तामणि शेरी, लेखांक ८३ राधनपुर १०७. | १४५४ | माघ । हेमतिलकसूरि | शांतिनाथ की | वीर जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार लेखांक ९७३ . १०८. | १४५४ माघ महावीर की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ८ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ५६५ शनिवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास F Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १०८. | १४५६ | आषाढ़ बुद्धिसागरसूरि वासुपूज्य की वही वही, (अ) सुदि ५ धातु की प्रतिमा लेखांक ५७२ गुरुवार का लेख १०९. | १४५८ | वैशाख मुनिचन्द्रसूरि वासुपूज्य की जैनमंदिर, पाटडी विजयधर्मसूरि, वदि २ धातु की प्रतिमा पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख लेखांक ९८ ११०. | १४५९/ चैत्र । उदयाणंदसूरि | पद्मप्रभ की खरतरगच्छीय बड़ा | मुनि कान्तिसागर, वदि १ धातु की प्रतिमा जिनालय, कलकत्ता संपा०, जैनधातुका लेख प्रतिमालेख, लेखांक ६२ १११. | १४५९ | चैत्र । हेमतिलकसूरि | धर्मनाथ की चिन्तामणि । नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १५ के पट्टधर धातु की प्रतिमा | जिनालय, बीकानेर लेखांक ५८७ शनिवार | उदयाणंदसूरि | का लेख १०७९ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८० भाग १, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ११२. | १४५९ चैत्र । उदयाणंदसूरि पद्मप्रभ की धातु | धर्मनाथ पंचायती नाहर, पूर्वोक्त, वदि १ प्रतिमा का लेख बड़ा मंदिर, बड़ाबाजार, लेखांक ९५ कलकत्ता ११३. |१४५९ | ज्येष्ठ पार्श्वनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १० प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ५९० शनिवार ११४. १४६२ | वैशाख चन्द्रप्रभ की वही वही, सुदि ५ धातु-प्रतिमा का लेखांक ६०५ शुक्रवार लेख ११५. | १४६५ / वैशाख देवेन्द्रसूरि जिनप्रतिमा पर | नवखंडापार्श्वनाथ, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ उत्कीर्ण लेख | जिनालय, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार लेखांक ८६७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिति ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान - संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख ११६. | १४६६ | माघ उदयाणंदसूरि शांतिनाथ की | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १२ धातु की प्रतिमा मंदिर, बीकानेर लेखांक ६३१ गुरुवार का लेख ११७. | १४६६ / वैशाख वीरसूरि वासुपूज्य की संभवनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० प्रतिमा का लेख | जिनालय, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार लेखांक ११३५ ११८. | १४६६ / वैशाख संभवनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | लस्कर, ग्वालियर भाग २, सोमवार लेखांक १३९४ ११९. | १४७१ | माघ उदयाणंदसूरि | पार्श्वनाथ की विमलवसही, आबू आबू, भाग २, सुदि १३ प्रतिमा का लेख लेखांक १७ बुधवार Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८२ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १२०. १४७१ | माघ । मुनिचन्द्रसूरि के संभवनाथ की पद्मावती देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० पट्टधर प्रतिमा का लेख |बीजापुर पूर्वोक्त, भाग १, रविवार | वीरचन्द्रसूरि लेखांक ४१८ १२१ १४७१ माघ उदयाणंदसूरि पार्श्वनाथ की धातु | आदिनाथ नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | जिनालय, भाग २, बुधवार विमलवसही, आबू लेखांक २०१६ १२२. १४७६ | चैत्र वीरसूरि | शांतिनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, वदि १ धातु की प्रतिमा जिनालय, पूर्वोक्त, शनिवार का लेख चिन्तामणि शेरी, लेखांक ९९ राधनपुर १२३. |१४८१ उदयप्रभसूरि पद्मप्रभ की ग्राम का जिनालय, मुनि कान्तिसागर, धातु की प्रतिमा | चांदवाड़, नासिक पूर्वोक्त, का लेख लेखांक ७५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १२४. | १४८३ | ज्येष्ठ वीरसूरि । नेमिनाथ की धातु | वीर जिनालय, लोढ़ा, पूर्वोक्त, वदि ८ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | थराद लेखांक २३ रविवार मुनिचंद्रसूरि १२५. | १४८३ | ज्येष्ठ वीरसूरि । शांतिनाथ की महावीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | डीसा भाग २, मंगलवार लेखांक २१०१ १२६. | १४८४ | वैशाख | प्रद्युम्नसूरि | शीतलनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ | मुनि विशालविजय, सुदि २ धातु की प्रतिमा | जिनालय, पूर्वोक्त, शुक्रवार का लेख चिन्तामणि शेरी, लेखांक ११० राधनपुर १२७. | १४८७ | पौष वीरसूरि आदिनाथ की | नया मंदिर, श्रीशंखेश्वरवदि६ पाषाण की प्रतिमा शंखेश्वर महातीर्थ महातीर्थ, संपा० १०८३ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8208 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख शुक्रवार का लेख मुनि विशालविजय, लेखांक १५ १२८. |१४८६ वीरसूरि धातुप्रतिमा लेख | पार्श्वनाथ जिनालय, मुनि जिनविजय, मांडल पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३१६ १२९. |१४८९ वैशाख । पजून(प्रद्युम्न)सूरि | विमलनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग ३, लेखांक २३०४ १३०. |१४८९ | वैशाख क्षमासूरि आदिनाथ की वीरचैत्य के लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख अन्तर्गत आदिनाथ लेखांक १८८ बुधवार चैत्य, थराद जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १३१. | १४९० | वैशाख वीरसूरि विमलनाथ की चिन्तामणि नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर लेखांक ७४८ सोमवार १३२. | १४९१ माघ उदयप्रभसूरि | आदिनाथ की जैनमंदिर, पामेरा आबू, भाग ५, सुदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक ८२८ बुधवार १३३. | १४९२ | पौष . वीरसूरि विमलनाथ की |सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागरसूरि, वदि ... चौबीसी प्रतिमा | बावन जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार का लेख मातर लेखांक ५०८ १३४. | १४९३ / वैशाख बुद्धिसागरसूरि | शांतिनाथ की कल्याण पार्श्वनाथ वही, भाग १, सुदि ५ के शिष्य प्रतिमा का लेख | देरासर, वीसनगर लेखांक ५३८ बुधवार श्रीसूरि Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८६ मिति क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख १३५. १४९३ | वैशाख | जज्जगसूरि के । नेमिनाथ की | जैनमंदिर, वही, भाग १, सुदि ५ पट्टधर पजूनसूरि | धातु की प्रतिमा | झवेरीवाड़, लेखांक ८२८ बुधवार का लेख अहमदाबाद १३६. |१४९३ | वैशाख मुनिचन्द्रसूरि | वासुपूज्य स्वामी शांतिनाथ देरासर, विजयधर्मसूरि, वदि ११ की प्रतिमा का जामनगर पूर्वोक्त, मंगलवार लेख लेखांक १६१ १३७. | १४९५ | आषाढ़ | जज्जगसूरि के धर्मनाथ की धातु | वीर जिनालय, थराद लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ९ शिष्य प्रद्युम्नसूरि | प्रतिमा का लेख लेखांक १४ रविवार १३७. |१४९७ | आषाढ़ | मुनिचन्द्रसूरि मुनिसुव्रत की। | धनवसही, कांतिसागर, संपा०, (अ) सुदि ८ प्रतिमा का लेख | बाबूमंदिर तलहटी, शत्रुजयवैभव, सोमवार | पालिताना लेखांक ८० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १३८. | १४९८ | - आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, नदियाड़ पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३९० १३९. | १५०० | वैशाख विमलसूरि | शीतलनाथ जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ पंचतीर्थी का लेख सराफाबाजार | भाग २, लस्कर, ग्वालियर | लेखांक १३६८ १४०. | १५०१ | वैशाख प्रद्युम्नसूरि | मुनिसुव्रत स्वामी | आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, सुदि ७ की धातु प्रतिमा | पूना पूर्वोक्त, बुधवार लेखांक १८८ १४१. | १५०१ | आषाढ़ उदयप्रभसूरि | सुमतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि २ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ८४८ सोमवार का लेख १०८७ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८८ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १४२. |१५०१ | माघ | मुनिचन्द्रसूरि धातुप्रतिमा लेख शांतिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, सुदि ५ मांडल पूर्वोक्त, बुधवार लेखांक १७८ १४३. १५०१ / माघ उदयप्रभसूरि चन्द्रप्रभस्वामी |चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ की धातुप्रतिमा | मंदिर, बीकानेर लेखांक ८५३ बुधवार का लेख १४४. |१५०१ | फाल्गुन | पजून (प्रद्युम्न)सूरि | वासुपूज्य की वीर जिनालय, लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | थराद लेखांक ९१ गुरुवार १४४अ. | १५०१ हेमतिलकसूरि | पंचतीर्थी प्रतिमा | चिन्तामणिपार्श्वनाथ अरविन्द कुमार सिंह, वीरचन्द्र- का लेख जिनालय, सादड़ी, चिन्तामणि पार्श्वनाथ जयाणंद मंदिर के तीन मुनितिलकसूरि जैन प्रतिमा लेख - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ मिति स्तम्भलेख ब्रह्माणगच्छ १४५. | १५०३ | ज्येष्ठ । पजून (प्रद्युम्न) | वासुपूज्य की वीर जिनालय, वदि ७ | सूरि प्रतिमा का लेख | थराद १४६. | १५०४ मणिचन्द्र (मुनिचन्द्र) सूरि Aspects of Jainology Vol. III, P.172-173 लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक १६०९ जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ६, पृ० ३७२-७४ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक ८७ वीरसूरि १४७. | १५०५ / वैशाख सुदि ३ शुक्रवार | अजितनाथ की | वीर जिनालय, प्रतिमा का लेख | थराद Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जामनगर मान, .. पर्यो क्रमाङ्क संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १४८. |१५०५ | पौष विमलसूरि नमिनाथ की | आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ७ प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, गुरुवार लेखांक २०९ १४९. |१५०५ | वैशाख मुनिचन्द्रसूरि विमलनाथ की अजितनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ चौबीसी का लेख | शेख पाडो, पूर्वोक्त, भाग-१, अहमदाबाद लेखांक १०६३ १५०. १५०६ | फाल्गुन उदयप्रभसूरि वासुपूज्य की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ९ धातु की प्रतिमा मंदिर, बीकानेर लेखांक ९०८ शुक्रवार का लेख १५१. १५०६ | फाल्गुन आदिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | खंभात पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार का लेख लेखांक ८३७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १५२. | १५०६ | चैत्र | बुद्धिसागरसूरि | मुनिसुव्रत की चिन्तामणि | वही, भाग २, वदि १ धातु की प्रतिमा | जिनालय, खंभात लेखांक ८०८ रविवार का लेख १५३. | १५०६ माघ वीरसूरि सुमतिनाथ की | महावीर चैत्य के लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | अन्तर्गत आदिनाथ | लेखांक २४३ रविवार चैत्य, थराद १५४. | १५०७ | फाल्गुन ___ मुनिचन्द्रसूरि . कुंथुनाथ की वही वही, वदि ११ प्रतिमा का लेख लेखांक १४८ गुरुवार १५५. | १५०८ | ज्येष्ठ सुदि ११ सोमवार विमलसूरि | विमलनाथ की | शांतिनाथ | बुद्धिसागर, धातु की प्रतिमा | जिनालय, खंभात | पूर्वोक्त, भाग २, का लेख लेखांक ९८६ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १५६. |१५०९ | माघ पजून (प्रद्युम्न) | पार्श्वनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग २, सुदि २ सूरि धातु की प्रतिमा | बड़ोदरा लेखांक १९८ गुरुवार का लेख १५७ १५१० | ज्येष्ठ । बुद्धिसागरसूरि मुनिसुव्रत की । बालावसही, शत्रंजयवैभव, सुदि १० विमलसूरि प्रतिमा का लेख शत्रुजय, लेखांक १२८ पालिताना १५८. | १५१० | फाल्गुन विमलनाथ की अष्टापदजी का नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ११ प्रतिमा का लेख भाग २, शनिवार लेखांक २१६८ १५९. १५१० | फाल्गुन मुनिसुव्रत की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ११ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर लेखांक २७७१ शनिवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिति ब्रह्माणगच्छ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख १६०. | १५१० | माघ महावीर स्वामी वही, सुदि ५ का मंदिर, बीकानेर लेखांक १३५६ शुक्रवार १६१. | १५११ | माघ पजूनसूरि शीतलनाथ की शीतलनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | जिनालय, बड़ोदरा | पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार पर उत्कीर्ण लेख लेखांक २०७ १६२. | १५११ फाल्गुन उदयप्रभसूरि । श्रेयांसनाथ की शांतिनाथ जिनालय, | वही, भाग २, वदि २ प्रतिमा का लेख | बड़ोदरा लेखांक ५५ सोमवार १६३. | १५११ | माघ मुनिचन्द्रसूरि | संभवनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, |वही, भाग २, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | खंभात लेखाङ्क ९७७ सोमवार Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १६४. १६५. १६६. तिथि / आचार्य का नाम मिति १५११ पौष वदि ५ १६७. १५११ बुधवार १५११ | पौष वदि ५ बुधवार १५११ पौष वदि १३ शुक्रवार माघ सुदि ५ गुरुवार विमलसूरि " मुनिचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान महावीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, माणिकतल्ला, कलकत्ता महावीर जिनालय, भोंयरा शेरी, राधनपुर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, विजापुर संदर्भग्रन्थ आदिनाथ पंचतीर्थी का लेख जयपुर भाग १, लेखांक ११७ मुनिविशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक १६९ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४२६ श्रीमालों का मंदिर, विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४८० १०९४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १६८. १६९. १७०. १७१. १५११ तिथि / आचार्य का नाम मिति माघ वदि २ सोमवार १५११ वैशाख सुदि ५ गुरुवार १५१२ माघ सुदि ५ गुरुवार १५१३. | पौष वदि ५ रविवार उदयप्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि विमलसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की देहरी का लेख प्राप्ति स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भग्रन्थ चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात मनमोहन पार्श्वनाथ देरासर, पटोलीया पोल, बड़ोदरा नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९५१ पार्श्वनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, मांडल पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २६८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११२५ वही, भाग २, लेखांक ८४ ब्रह्माणगच्छ १०९५ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १७२. तिथि / आचार्य का नाम मिति १७४. १५१३ | फाल्गुन वदि १२ सोमवार १७३. १५१३ माघ सुदि ५ शुक्रवार १५१३ पौष सुदि ७ उदयप्रभसूरि मुनिचन्द्रसूरि उदयप्रभसूरि ( ब्रह्माणगच्छीय) एवं पूर्णचन्द्रसूरि के पट्टधर तपागच्छीय हेमहंससूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ पंचतीर्थी का लेख | जयपुर आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान पद्मप्रभ जिनालय, नमिनाथ की प्रतिमा का लेख महावीर चैत्य के अन्तर्गत आदिनाथ चैत्य, थराद शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर संदर्भग्रन्थ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५२५ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक १३३ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०८९ १०९६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १७५. १७६. १७७. १७८. तिथि / आचार्य का नाम मिति उदयप्रभसूरि १५१५ आषाढ सुदि ५ बुधवार १५१५ कार्तिक वदि ५ गुरुवार १५१५ माघ १५१५ सुदि १ शुक्रवार माघ सुदि १ शुक्रवार " "" " प्रतिमालेख / स्तम्भलेख श्रेयांसनाथ की पंचतीर्थी का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख नेमिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान जैन मंदिर, जूनीया विनयसागर, संदर्भग्रन्थ पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५४४ आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वडनगर नवखंडापार्श्वनाथ देरासर, घोघा महावीर जिनालय, जूनागढ़ पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५५७ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ३०० वही, लेखांक २९८ ब्रह्माणगच्छ १०९७ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2১০১ क्रमाङ्क संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १७९. |१५१६ / वैशाख श्रीसूरि (?) नमिनाथ की सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागरसूरि, वदि १ धातु की प्रतिमा बावन जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, पर उत्कीर्ण लेख मातर लेखांक ४८० १८०. १५१६ | वैशाख । मुनिचन्द्रसूरि के संभवनाथ की पद्मप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ११ पट्टधर वीरसूरि | प्रतिमा का लेख चूड़ी वाली गली, भाग २, शुक्रवार लखनऊ लेखांक १५५१ १८१. १५१६ बुद्धिसागरसूरि के | जीवंतस्वामी पार्श्वनाथदेरासर, बुद्धिसागरसूरि, पट्टधर विमलसूरि | शांतिनाथ की अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा का लेख लेखांक १०८१ १८३. १५१७ | माघ प्रद्युम्नसूरि | अजितनाथ की वीर चैत्य के लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख अन्तर्गत आदिनाथ लेखाङ्क ४४ बुधवार चैत्य, थराद जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिति ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख १८४. | १५१७ / चैत्र । उदयप्रभसूरि | सुमतिनाथ की। महावीर जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख | जूनीमंडी, जोधपुर | भाग १, गुरुवार लेखांक ५८८ १८५. | १५१८ | वैशाख मुनिसुव्रत की | अजितनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | जिनालय, कोचरों लेखांक १५५८ शनिवार का मुहल्ला, बीकानेर १८६. | १५१८ माघ विमलसूरि | धर्मनाथ पंचतीर्थी | नेमिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ४ प्रतिमा का लेख | अजीमगंज, भाग २, बुधवार मुर्शिदाबाद लेखांक १०११ १८७. | १५१८ | माघ । वीरसूरि कुन्थुनाथ की आदिनाथ विजयधर्मसूरि, सुदि ६ धातु प्रतिमा जिनालय, पूर्वोक्त, बुधवार का लेख जामनगर लेखांक ३१८ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भग्रन्थ ११०० वदि ४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान मिति स्तम्भलेख १८८. |१५१९ | कातिक ___ मुनिचन्द्रसूरि | अजितनाथ की धर्मनाथ का के पट्टधर | चौबीसी का लेख | पंचायती बड़ा गुरुवार वीरसूरि मंदिर, कलकत्ता १८९. |१५१९ । माघ सुदि विमलसूरि धर्मनाथ की आदिनाथ ५ सोमवार प्रतिमा का लेख | जिनालय, नागौर १९०. |१५१९ | ज्येष्ठ धर्मनाथ पंचतीर्थी | बड़ा मंदिर, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | अजबगढ़ शुक्रवार १९१. |१५१९ | ज्येष्ठ । | उदयप्रभसूरि सुमतिनाथ की अनुपूर्ति लेख, सुदि ९ पंचतीर्थी प्रतिमा आबू शुक्रवार का लेख नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०४ वही, भाग २, लेखांक १२६९ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५९५ आबू, भाग २, लेखांक ६४३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AtI क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १९२. | १५१९ | ज्येष्ठ विमलसूरि आदिनाथ की । | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग ३, शुक्रवार लेखांक २३४५ १९३. | १५१९ / ज्येष्ठ मुनिसुव्रत स्वामी | पोरवाडों का मंदिर, विजयधर्मसूरि, सुदि ९ की प्रतिमा का पूना पूर्वोक्त, शुक्रवार लेख लेखांक ३३८ १९४. | १५१९ | ज्येष्ठ नेमिनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | जामनगर लेखांक ३३९ शुक्रवार १९५. | १५१९ । माघ धर्मनाथ की बड़ामंदिर, नागौर विनयसागर, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख लेखांक ६०१ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०२ भाग १, क्रमाङ्क |संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान ___ संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख १९६. |१५१९ | फाल्गुन मुनिचन्द्रसूरि के | धर्मनाथ की जैनमंदिर, प्रेमचद नाहर, पूर्वोक्त, वदि ४ पट्टधर वीरसूरि | प्रतिमा का लेख | मोदी की टोंक, गुरुवार शत्रुजय लेखांक ६९३ १९७. १५२० माघ । श्रीसूरि चन्द्रप्रभ की चिन्तामणि बुद्धिसागरसूरि, वदि १० धातु की प्रतिमा | जिनालय, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार का लेख लेखांक ८१६ १९८. १५२० | पौष शीलगुणसूरि नमिनाथ की कुशलाजी का नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | मंदिर, रामघाट, भाग १, शुक्रवार वाराणसी लेखांक ४२२ २००. १५२१ चैत्र विमलसूरि अभिनंदनस्वामी | अजितनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ९ की प्रतिमा का अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार लेखांक १०८७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लेख Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २०१. | १५२२ मार्गशीर्ष ___ वीरसूरि पद्मप्रभ की | नवखंडा पार्श्वनाथ विजयधर्मसूरि, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | देरासर, घोघापूर्वोक्त, गुरुवार लेखांक ३६० २०२. | १५२२ | ज्येष्ठ कुंथुनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ७ प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक ११२० २०३. | १५२३ | वैशाख श्रेयांसनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, वदि ४ पंचतीर्थी प्रतिमा | भोयरापाडो, खंभात | लेखांक ९०१ गुरुवार का लेख २०४. | १५२३ | वैशाख विमलसूरि | धर्मनाथ की भीड़भंजन पार्श्वनाथ | वही, भाग २, सुदि १३ धातु की प्रतिमा | जिनालय, खेड़ा लेखांक ४४४ का लेख Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०४ क्रमाङ्क संवत् । तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २०५. १५२४ चैत्र संभवनाथ की सुमतिनाथ वही, भाग २, वदि ६ धातु की प्रतिमा जिनालय, खंभात लेखांक ६८९ बुधवार का लेख २०६. १५२४ चैत्र वीरसूरि विमलनाथ की मुनिसुव्रत विनयसागर, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | जिनालय, मालपुरा | पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार लेखांक ६३७ २०७. १५२४ वैशाख विमलसूरि नमिनाथ की आदिनाथ का मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि २ प्रतिमा का लेख - भारज, सिरोही भाग २, शनिवार लेखांक २०८८ तथा आबू, भाग ५, लेखांक ६१९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ " | वारसूर क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २०७ अ. १५२४ महावीर जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, रिची रोड, | पूर्वोक्त भाग १, अहमदाबाद लेखांक ९५६ २०८. | १५२५ / ज्येष्ठ वीरसूरि | अजितनाथ की | वीर चैत्य के लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | अन्तर्गत आदिनाथ लेखांक २४० सोमवार चैत्य, थराद २०९. | १५२५ / ज्येष्ठ कुंथुनाथ की वही वही, सुदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक ८७ सोमवार २१०. | १५२५ फाल्गुन शांतिनाथ की वीर चैत्य, थराद वही, सुदि ७ चौबीसी का लेख लेखांक २५ शनिवार Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २११. १५२७ | तिथि । उदयप्रभसूरि सुमतिनाथ पंचायती मंदिर, विनयसागर, विहीन पंचतीर्थी का लेख | जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६९९ २१२. १५२८ १५२८ - वीरसूरि कुन्थुनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागर, प्रतिमा का लेख | माणेक चौक, पूर्वोक्त, भाग २, खंभात लेखांक ८२५ २१३. | १५२८ | - बुद्धिसागरसूरि विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, प्रतिमाका लेख खंभात लेखांक ९०० २१४. १५२८ । वैशाख विमलसूरि धर्मनाथ की । आदिनाथ जिनालय, आबू, भाग ५, वदि ५ के पट्टधर चौबीसी प्रतिमा सेलवाड़ा लेखांक १८८ गुरुवार बुद्धिसागरसूरि का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २१५. | १५२८ | वैशाख उदयप्रभसूरि | वासुपूज्य स्वामी | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ४ की प्रतिमा का मंदिर, बीकानेर लेखांक १०५७ बुधवार लेख २१६. १५२८ | मार्गशीर्ष | । बुद्धिसागरसूरि सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि २ प्रतिमा का लेख | डग पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६०७ २१७. | १५२८ | मार्गशीर्ष सुमतिनाथ की वही, सुदि २ पंचतीर्थी का लेख लेखांक ७०८ २१८. १५२८ माघ संभवनाथ की वीर चैत्य के लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि १ प्रतिमा का लेख | अन्तर्गत आदिनाथ लेखांक १७१ बुधवार चैत्य, थराद ११०७ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०८ क्रमाङ्क संवत् | तिथि / आचार्य का नाम । प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २१९. १५३० | फाल्गुन उदयप्रभसूरि । श्रेयांसनाथ की | गौडी पार्श्वनाथ मुनि कान्तिसागर, वदि २ प्रतिमा का लेख जिनालय, संपा०, शत्रुजयपालिताना वैभव, लेखांक २०६ २२०. |१५३० फाल्गुन | उदयप्रभसूरि के | धर्मनाथ की शीतलनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १३ पट्टधर प्रतिमा का लेख जिनालय, रिणी, लेखांक २४४१ सोमवार राजसुन्दरसूरि तारानगर २२१. १५३१ | वैशाख ___ वीरसूरि | नमिनाथ की | महावीर जिनालय, मुनि विशालविजय, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | भोयरा शेरी, पूर्वोक्त, शनिवार राधनपुर लेखांक २७५ २२२. १५३२ | वैशाख विमलसूरि सुमतिनाथ की | अजितनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ के पट्टधर धातु की प्रतिमा जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार बुद्धिसागरसूरि का लेख अहमदाबाद लेखांक १०५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क संवत् । तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २२३. | १५३६ पौष वदि बुद्धिसागरसूरि | विमलनाथ की धातु पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, २ गुरुवार प्रतिमा का लेख | खंभात लेखांक ९४६ २२४. १५३६ वीरसूरि जीवितस्वामी वही वही, भाग २, सुमतिनाथ की लेखांक ९२३ धातुप्रतिमा का लेख २२५. | १५३६ / मार्गशीर्ष आदिनाथ की गांव का जिनालय, मुनि कान्तिसागर, सुदि ९ प्रतिमा का लेख चांदवड, नासिक शुक्रवार (महा०) प्रतिमालेख, लेखांक २३५ २२६. |१५४० वैशाख बुद्धिसागरसूरि | पद्मप्रभर्की | पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० पंचतीथी प्रतिमा | सूरतगढ़ लेखांक २५२२ बुधवार का लेख Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११० क्रमाङ्क | संवत् । तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान - संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २२७. |१५५९ | वैशाख विमलसूरि । | धर्मनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ के पट्टधर प्रतिमा का जयपुर भाग २, सोमवार | बुद्धिसागरसूरि | आलेख लेखांक ११८८ २२८. | १५६३ वैशाख जाजीग(जज्जग)सूरि आदिनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, भाग ३, सुदि १२ प्रमिका का लेख |डीसा लेखांक २०९७ गुरुवार २२९. १५७३ | वैशाख विमलसूरि के धर्मनाथ की | सुमतिनाथ वही, भाग ३, सुदि १३ पट्टधर | प्रतिमा का लेख | जिनालय, जयपुर लेखांक २३६३ गुरुवार बुद्धिसागरसूरि २३०. १५७६ | वैशाख विमलसूरि । | धर्मनाथ की बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, सुदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक २७३ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २३१. | १५७७ / वैशाख विमलसूरि शांतिनाथ की ऋषभदेव जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ११ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग ३, गुरुवार लेखांक २४३० २३२. १५७९ फागुन । मुनिचन्द्रसूरि | कुंथुनाथ की | वीर जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ __ के पट्टधर | चौबीसी प्रतिमा | गोपटी, खंभात पूर्वोक्त, भाग२, गुरुवार वीरसूरि | का लेख लेखांक ७०४ २३३. | १५८९ / वैशाख बुद्धिसागरसूरि । कुंथुनाथ की सीमंधर स्वामी का | वही, भाग २, सुदि ५ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | मंदिर, खारवाडो, लेखांक १०६१ गुरुवार विमलसूरि खंभात २३४. | १५९२ | वैशाख श्रीसूरि | सुपार्श्वनाथ की झवेरी फतेभाई वही, भाग २, प्रतिमा का लेख | अमीचंद का लेखांक २४१ गुरुवार घर देरासर, सुदि६ बडोदरा Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की छोटी-छोटी कुछ तालिकायें निर्मित की जा सकती हैं, जो इस प्रकार हैं: तालिका-२ वीरसूरि (वि० सं० १२१३) मुनिचन्द्रसूरि (वि० सं० १२९०) वीरसूरि (वि० सं० १३०५-१३३०) मुनिचन्द्रसूरि (वि० सं० १३४७-१३७०) वीरसूरि (वि० सं० १३५९-१३८९) मुनिचन्द्रसूरि वीरसूरि मुनिचन्द्रसूरि वीरसूरि (वि० सं० १४३३-१४५८) (वि० सं० १४६६-१४८३) (वि० सं० १४८३-१५१३) (वि० सं० १५१६-१५३६) (मुनिचन्द्र) वीरसूरि (वि० सं० १५६८) तालिका-३ मदनप्रभसूरि (वि० सं० १३२७) भद्रेश्वरसूरि (वि० सं० १३७०) विजयसेनसूरि (वि० सं० १३७५-१३८०) Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ तालिका-४ 1 रत्नाकरसूरि (वि० सं० १४१२-१४२९) I हेमतिलकसूरि (वि० सं० १४३२ - १४५४) (वि० सं० १४४६ - १४७१) | उदयानंद सूरि ? | विमलसूरि (वि० सं० १३१६) 1 बुद्धिसागरसूरि (वि० सं० १३२६ - १३३९) (वि० सं० १३५५) | बुद्धिसागरसूरि (वि० सं० १३८०) I विमलसूरि I (विमलसूरि) T बुद्धिसागरसूरि (वि० सं० १४०५ - १४३९) I (विमलसूरि) १११३ T (बुद्धिसागरसूरि ) T विमलसूरि (वि० सं० १५००- १५२४) Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बुद्धिसारसूरि (वि० सं० १५२८-१५५९) विमलसूरि (वि० सं० १५७६-१५८९) तालिका-५ जज्जगसूरि प्रद्युम्नसूरि (वि० सं० १२१७-१२३५) जज्जगसूरि (वि० सं० १२३४) प्रद्युम्नसूरिसंतानीय (प्रद्युम्नसूरि) (जज्जगसूरि) (प्रद्युम्नसूरि) जज्जगसूरि (वि०सं० १३३०-१३४९) (प्रद्युम्नसूरि) जज्जगसूरि (वि० सं० १३८७) (प्रद्युम्नसूरि) (जज्जगसूरि) प्रद्युम्नसूरि (वि० सं० १४८९-१५१७) (जज्जगसूरि) (प्रद्युम्नसूरि) जज्जगसूरि (वि० सं० १६६३) चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, सादड़ी (राजस्थान) में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि० सं० १५०१/ई० स० १४४४ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ १११५ के लेख में हेमतिलकसूरि, वीरचन्द्रसूरि, जयाणंदसूरि तथा प्रतिष्ठाकर्ता मुनितिलकसूरि के नाम अंकित हैं । डॉ० अरविन्दकुमार सिंह ने इस लेख की वाचना दी है१५, जो इस प्रकार है: १. संवत् १५०१ वर्षे श्रीपार्श्वनाथः (प्रतिमा) स्थापितः २. ने (?) ने (न) डूलाई प्रासा (द) ++ न परिन ++ श्रावके ३. छे श्री हेमतिलक सूरितः । तत् पट्टे श्री वीरचन्द्र सू (रि) ++देम भापतः ४. (श्री) जयाणंद सूरि प्रतिष्ठित गछनायक ५. (श्री) मुनि तिलक सूरि श्रा० .... ६. ............ वीर जिनालय, वरमाण से प्राप्त एक स्तम्भ लेख६ जो वि० सं० १४४६/ई० स० १३९० का है, में ब्रह्माणगच्छीय कुछ मुनिजनों की गुर्वावली दी गयी है, जो इस प्रकार है : मदनप्रभसूरि भद्रेश्वरसूरि विजयसेनसूरि रत्नाकरसूरि हेमतिलकसूरि सादड़ी से प्राप्त उक्त लेख में भी हेमतिलकसूरि का नाम मिलता है। जैसा कि पूर्व में हम देख चुके हैं वि० सं० १४३२ से १४५४ तक के Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास विभिन्न लेखों में हेमतिलकसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है। ऐसा संभव है कि वि० सं० १५०१/ई० स० १४४५ के लेख में उल्लिखित हेमतिलकसूरि और ब्रह्माणगच्छीय हेमतिलकसूरि एक ही व्यक्ति हों। ऐसा मान लेने पर ब्रह्माणगच्छ के तीन पश्चात्कालीन मुनिजनों के नाम उक्त अभिलेख ज्ञात हो जाते हैं जिन्हें तालिका के रूप में इस प्रकार रखा जा सकता है: तालिका-६ - मदनप्रभसूरि (वि०सं० १३२७) प्रतिमालेख भद्रेश्वरसूरि (वि०सं० १३७०) प्रतिमालेख विजयसेनसूरि (वि०सं० १३७५-१३८०) प्रतिमालेख (वि० सं० १४१२-१४२९) प्रतिमालेख रत्नाकरसूरि हेमतिलकसूरि (वि० सं० १४३२-१४५४) प्रतिमालेख वीरचन्द्रसूरि उदयानंदसूरि (वि०सं० १४४६-१४७१) प्रतिमालेख जयाणंदसूरि Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ १११७ मुनितिलकसूरि (वि० सं० १५०१/ई०स० १४४५ में नाडलाई स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठापक) ब्रह्माणगच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित इस गच्छ के अनेक मुनिजनों में कुछ को छोड़कर अन्य मुनियों के पूर्वापर सम्बन्धों एवं उपलब्धियों के बारे में किन्ही भी साक्ष्यों से किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नहीं मिलती । इन मुनिजनों की नामावली एवं तिथि इस प्रकार है: यशोभद्रसूरि (वि० सं० ११२४ / ई० स० १०६८) देवाचार्य (वि० सं० ११४४ / ई० स० १०८८) आम्रदेवसूरि (वि० सं० ११६८ / ई० स० १११२) शालिभद्रसूरि (वि० सं० ११७० / ई० स० १११४) महेन्द्रसूरि (वि० सं० १२३४ / ई० स० ११७८) जयप्रभसूरि (वि० सं० १२६१ / ई० स० १२०५) देवसूरि के प्रशिष्य माणिक्यसूरि (वि० सं० १२९५ / ई० स० १२३९) जज्जगसूरि के शिष्य वयरसेण उपाध्याय (वि० सं० १३२०-१३३० / ई०स० १२६४-१२७४) श्रीधरसूरि (वि० सं० १३४१ / ई० स० १२८५) भद्रेश्वरसूरि (वि० सं० १३७० / ई० स० १३१४) गुणाकरसूरि (वि० सं० १३८९ / ई० स० १३२३) Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पद्मदेवसूरि (वि०सं० १३९३ / ई० स० १३३७) सावदेवसूरि के पट्टधर बुद्धिसागरसूरि (वि० सं० १४२९ / ई० स० १३६३) लब्धिसागरसूरि (वि० सं० १४११ / ई० स० १३५६) देवचन्द्रसूरि (वि० सं० १४३२ / ई० स० १३६६) प्रद्युम्नसूरि के शिष्य शीलगुणसूरि (वि० सं० १४४१ / ई० स० १३८५) देवेन्द्रसूरि (वि० सं० १४६५ / ई० स० १४०९) उदयप्रभसूरि (वि० सं० १४८१-१५२८ / ई० स० १४२५-१४७२) क्षमासूरि (वि० सं० १४८९ / ई० स० १४३३) शीलगुणसूरि (वि० सं० १५२० / ई० स० १४६४) उदयप्रभसूरि के पट्टधर राजसुन्दरसूरि (वि० सं० १५३० / ई० स० १५७४) विक्रम संवत् की १८वीं शती के छठे दशक के पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध अद्यावधि कोई भी साक्ष्य प्राप्त न होने से यह अनुमान किया जा सकता है कि इस समय के पश्चात् यह गच्छ नामशेष हो गया होगा । संभवतः इसकी मुनिपरम्परा समाप्त हो गयी और इसके अनुयायी श्रावकश्राविकायें किन्हीं अन्य गच्छों की सामाचारी का पालन करने लगे होंगे। यह गच्छ कब और किस कारण अस्तित्व में आया ? इसके आदिम आचार्य या प्रवर्तक कौन थे? प्रमाणों के अभाव में ये सभी प्रश्न आज भी अनिर्णित ही रह जाते हैं। सन्दर्भसूची १. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, (आबू-भाग ४), भावनगर वि०सं० २००४, पृष्ठ ८१-८७. Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्माणगच्छ ___१११९ २. (१) संवत् ११९२ ज्येष्ठ सुदि (२) (ति) अवंतीनाथ श्रीजयसिंहदेव कल्याण विजयराज्ये एवं काले प्रवर्तमाने । इहैव पा.. ...................ग्रामे. (३) लिषिते साधु साध्वी श्रावक श्राविकाचरणाकृते । श्रीब्रह्माणीयगच्छे श्रीविमलाचार्य शिष्य श्रावक आ व टि श... (४) तिहई साढदेव आंवप्रसाद आंबवीर श्रावक............... यक नवपदलघुवृत्तिपूजाष्टकपुस्तिका श्राविका वाल्हविजसदेवि दूल्हेवि श्रीयादेवि सरली वालमत. ............. समस्त श्राविका नाणपंचमी तपकृत निर्जरार्थं च लिषापिता अर्पिता च अत्रस्थित साध्वी मीनागणि नंदागणि तस्य सिसिणी लषमी देम............. | मुनि जिनविजय, संपा०, जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १८, मुम्बई १९४३ ई० स० पृष्ठ. १०३ ३. Muni PunyaVijaya, Ed. New Catalogue of Prakrit & Sanskrit Mss. Jesalmer Collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad 1972 A.D. P. 99-101. Ibid, P-85-87 पण्डिताभयकुमारगणये पुस्तकं ददे । वाचनार्थं जयत्येदं स्वमात्रोः पुण्यवृद्धये ॥२४॥ Ibid, P-87 ६. श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा०, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैन साहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराजक समाज, अहमदाबाद वि० सं० १९९३, भाग २, पृष्ठ ३१. पूरनचंद नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४२२. इति श्रीपार्वतीपुत्रनित्यनाथसिद्धविरचिते रसरत्नाकरे मन्वखण्डे मोहनाधुच्चाटनं नाम नवमोपदेशः। संवत् १५९८ वर्षे आसो वदि १० गुरु । श्रीब्रह्माणगच्छे पूज्यभट्टारकश्री ६ विमलसूरि वा० श्रीसाधुकीर्ति-तशिष्येण वा० शिवसुन्दरलक्षि (लिखि) तं परोपकाराय मंगल्य (ल) श्रेयसे भवतु ॥ वढीआरमद्धे (ध्ये) बोलिराग्रामे चातुर्मासिके स्थिता लक्षि (लिखि) तम् A. P. Shah. Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muni Shree PunyaVijayaJi's Collection, Part II, L.D. Series No. 5, Ahmedabad 1965 A.D., P. 270, No. 4627. Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ९-१०.मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग१, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपादक, डा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ई० स०, पृष्ठ ३७६-३७७. ११. उवझाय भावक कहि, रखे कोइनि हिणंति । शिष्य ज लख्यमीसागरह, कारण करिउ प्रबंध ॥ १२. वही, भाग १, पृष्ठ ३७९. Vidhartri Vora, Ed. Catalogue of Gujarati Manuscripts: Muni Shree Punyavijayaji's Collection, L.D. Series No. 71 Ahmedabad 1978 A.D. p. 641. १३. मुनि कांतिसागर, संपा०, शत्रुंजयवैभव, कुशल संस्थान, पुष्प१, जयपुर १९९० ई०, लेखांक २७३. १४. संवत् १६१० वर्षे श्री बृहद्ब्रह्माणीयागच्छे भट्टारक श्री ५ श्री गुणसुन्दरसूरि शिष्य गणि नयकुंजर लषतं श्रीमोहणग्रामे फागुण वदि ५ शुक्रवासरे ॥ युगादिदेवस्तवनम् की प्रतिलेखनप्रशस्ति श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, पूर्वोक्त, भाग २, पृष्ठ १०९. १५. अरविन्द कुमार सिंह, चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर का तीन जैन प्रतिमा लेख Aspects of Jainology, Vol. III, Ed. M. A. Dhaky and S.M. Jain, Varanasi 1991 A.D., Pp. 172-173. १६. संवत् १४४६ वर्षे वैशाख वदि ११ बुधे ब्रह्माणगच्छीय भट्टारक श्रीमदनप्रसूरि पट्टे श्रीनंदीश्वरसूरि पट्टे श्रीविजयसेनसूरि पट्टे श्रीरलाकरसूरिपट्टे श्रीहेमतिलक सूरिभिः पूर्वं गुरु श्रेयार्थं रंगमंडप : कारापितः ॥ पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९६८ । Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास सातवीं शताब्दी में प्रश्चिम भारत में निर्ग्रन्थ श्वेताम्बर सम्प्रदाय में जो चैत्यवास की नींव पड़ी वह आगे की शताब्दियों में उत्तरोत्तर दृढ होती गयी और परिणामस्वरूप अनेक आचार्य एवं मुनि शिथिलाचारी हो गये। इनमें से कुछ ऐसे भी आचार्य थे जो चैत्यवास के विरोधी और सुविहितमार्ग के अनुयायी थे। चौलुक्य नरेश दुर्लभराज [वि० सं० १०६७-७८/ई० सन् १०१०-२२] की राजसभा में चैत्यवासियों और सुविहितमार्गियों के मध्य जो शास्त्रार्थ हुआ था, उसमें सुविहितमार्गियों की विजय हुई । इन सुविहितमार्गियों में बृहद्गच्छ के आचार्य भी थे। बृहद्गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये भी हमारे पास दोनों प्रकार के साक्ष्य हैं - .. १. साहित्यिक २. अभिलेखिक साहित्यिक साक्ष्यों को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है, प्रथम तो ग्रन्थों एवं पुस्तकों की प्रशस्तियाँ और द्वितीय गच्छों की पट्टावलियाँ, गुर्वावलियाँ आदि। यहां उक्त सक्ष्यों के आधार पर बृहद्गच्छ के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। वडगच्छ /बृहद्गच्छ के उल्लेख वाली प्राचीनतम प्रशस्तियाँ १२वीं शताब्दी के मध्य की हैं । इस गच्छ के उत्पत्ति के विषय में चर्चा करने वाली सर्वप्रथम प्रशस्ति वि० सं० १२३८/ई० सन् ११८२ में बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति की है, जिसके अनुसार आचार्य उद्योतनसूरि ने आबू की तलहटी में स्थित Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२२ ३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास धर्माण नामक सन्निवेश में न्यग्रोध वृक्ष के नीचे सात ग्रहों के शुभ लग्न को देखकर सर्वदेवसूरि सहित आठ मुनिजनों को आचार्यपद प्रदान किया । सर्वदेवसूरि वडगच्छ के प्रथम आचार्य हुये । तत्पश्चात् तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली' (रचनाकाल वि० सं० १४६६ /० सन् १४९०), हरिविजयसूरि के शिष्य धर्मसागरसूरि द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली [ रचनाकाल वि० सं० १६४८/ई० सन् १५९१] बृहद्गच्छीय भावरत्नसूरि के शिष्य पुण्यरत्न द्वारा वि० सं० १६२० में रचित बृहद्गच्छगुर्वावली और मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली* [ रचनाकाल वि० सं० १७५१ / ई० सन् १६९४]; के अनुसार " वि० सं० ९९४ में अर्बुदगिरि के तलहटी में टेली नामक ग्राम में स्थित वटवृक्ष के नीचे सर्वदेवसूरि सहित आठ मुनियों को आचार्य पद प्रदान किया गया । इस प्रकार निर्ग्रन्थ श्वेताम्बर संघ में एक नये गच्छ का उदय हुआ जो वटवृक्ष के नाम को लेकर वटगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।" चूंकि वटवृक्ष के शाखाओं - प्रशाखाओं के समान इस गच्छ की भी अनेक शाखायें - प्रशाखायें हुईं, अतः इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी पड़ा । गच्छ निर्देश सम्बन्धी धर्माण सन्निवेश के सम्बन्ध में दो दलीलें पेश की जा सकती है प्रथम यह कि उक्त मत एक स्वगच्छीय आचार्य द्वारा उल्लिखित है और दूसरे १५वीं शताब्दी के तपागच्छीय साक्ष्यों से लगभग दो शताब्दी प्राचीन भी है अतः उक्त मत को विशेष प्रामाणिक माना जा सकता है । जहाँ तक धर्माण सन्निवेश का प्रश्न है आबू के निकट उक्त नाम का तो नहीं बल्कि वरमाण नामक स्थान है, जो उस समय भी जैन तीर्थ के रूप में मान्य रहा। अतः यह कहा जा सकता है कि लिपि-दोष से वरमाण की जगह धर्माण हो जाना असंभव नहीं । सबसे पहले हम वडगच्छीय आचार्यों की गुर्वावली को, जो ग्रन्थ प्रशस्तियों, पट्टावलियों एवं अभिलेखों से प्राप्त होती है, इकत्र कर Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ ११२३ विद्यावंशवृक्ष बनाने का प्रयास करेंगे । इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम हम वडगच्छ के सुप्रसिद्ध आचार्य नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रचित आख्यानकमणिकोश, (रचनाकाल ई० सन् ११ वीं शती का प्रारम्भिक चरण) की उत्थानिका में उल्लिखित बृहद्गच्छीय आचार्यों की विद्यावंशावली का उल्लेख करेंगे, जो इस प्रकार है। ___ अब हम उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधा टीका (रचनाकाल वि० सं० ११२९/ई० सन् १०७२) में उल्लिखित नेमिचन्द्रसूरि के इस वक्तव्य पर विचार करेंगे कि ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता मुनिचन्द्रसूरि के अनुरोध पर उक्त ग्रन्थ की रचना की। मुनिचन्द्रसूरि ने स्वरचित ग्रन्थों में जो गुरु परम्परा दी है, उससे ज्ञात होता है कि उनके गुरु का नाम यशोदेव और दादागुरु का नाम सर्वदेव था। प्रथम तालिका में उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन जिन ५ आचार्यों का उल्लेख है, उनमें से चौथे आचार्य का नाम देवसूरि है । ये देवसूरि मुनिचन्द्रसूरि के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अभिन्न हैं ऐसा प्रतीत होता है। इस प्रकार नेमिचन्द्रसूरि और मुनिचन्द्रसूरि परस्पर सतीर्थ्य सिद्ध होते हैं। मुनिचन्द्रसूरि का शिष्य परिवार बड़ा विशाल था। इनके ख्यातिनाम शिष्यों में देवसूरि, मानदेवसूरि° और अजितदेवसूरि के नाम मिलते हैं । इसी प्रकार देवसूरि (वादिदेव सूरि) के परिवार में भद्रेश्वरसूरि, रत्नप्रभसूरि, विजयसिंहसूरि आदि शिष्यों एवं प्रशिष्यों का उल्लेख मिलता है । इसी प्रकार वादिदेवसूरि के गुरुभ्राता मानदेवसूरि के शिष्य जिनदेवसूरि और उनके शिष्य हरिभद्रसूरि का नाम मिलता है ।१३ वादिदेवसूरि के तीसरे गुरुभ्राता अजितदेवसूरि के शिष्यों में विजयसेनसूरि और उनके शिष्य सुप्रसिद्ध सोमप्रभाचार्य भी हैं। मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य परिवार का जो वंशवृक्ष बनता है, वह इस प्रकार है Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नेमिचनद्रसूरि द्वारा रचित महावीरचरियं [रचनाकाल वि० सं० ११४१/ई० सन् १०८४] की प्रशस्ति में वडगच्छ को चन्द्रकुल से उत्पन्न माना गया है, अतः समसामयिक चन्द्रकुल [जो पीछे चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ] की आचार्य परम्परा पर भी एक दृष्टि डालना आवश्यक है । चन्द्रगच्छ में प्रख्यात वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, बुद्धिसागरसूरि, नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि आदि अनेक आचार्य हुए । आचार्य जिनेश्वर जिन्होंने चौलक्य नरेश दुर्लभराज की सभा में चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर गुर्जरधरा में विधिमार्ग का बलतर समर्थन किया था, वर्धमानसूरि के शिष्य थे। आबू स्थित विमलवसही के प्रतिमा प्रतिष्ठापकों में वर्धमानसूरि का भी नाम लिया जाता है। इनका समय विक्रम संवत् की ११वीं शती सुनिश्चित है। वर्धमानसूरि कौन थे ? इस प्रश्न का भी उत्तर ढूंढना आवश्यक है। खरतरगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि द्वारा रचित गणधरसार्धशतक [रचनाकाल वि० सं० बारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध] और जिनपालोध्याय द्वारा रचित खरतरगच्छवृहद्गुर्वावली [रचनाकाल वि० सं० तेरहवीं शती का अंतिम चरण] से ज्ञात होता है कि वर्धमानसूरि पहले एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, परन्तु बाद में उनके मन में चैत्यवास के प्रति विरोध की भावना जागृत हुई और उन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर सुविहितमार्गीय आचार्य उद्योतनसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की ।११ ___गणधरसार्धशतक की गाथा ६१-६३ में देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि और उद्योतनसूरि के बाद वर्धमानसूरि का उल्लेख है। पूर्वप्रदर्शित तालिका नं० १ में देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि (प्रथम), उद्योतनसूरि (द्वितीय) के बाद आम्रदेवसूरि का उल्लेख है । इस प्रकार उद्योतनसूरि के दो शिष्यों का अलग-अलग साक्ष्यों से उल्लेख प्राप्त होता है। इस आधार पर उद्योतनसूरि (प्रथम) और वर्धमानसूरि को परस्पर गुरुभ्राता माना जा सकता है। अब वर्धमानसूरि की शिष्य परम्परा पर भी प्रसंगवश कुछ प्रकाश डाला जायेगा। . Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ ११२५ २० । वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है । २° जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि जिनेश्वरसूरि ने चौलुक्यनरेश दुर्लभराज की सभा में शास्त्रार्थ में चैत्यवासियों को परास्त कर विधिमार्ग का समर्थन किया था । जिनेश्वरसूरि के ख्यातिनाम शिष्यों में नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि, जिनभद्र अपरनाम धनेश्वरसूरि और जिनचन्द्रसूरि के उल्लेख प्राप्त होते हैं । २१ इनमें अभयदेवसूरि की शिष्य परम्परा आगे चली । २२ अभयदेवसूरि के शिष्यों में प्रसन्नचन्द्रसूरि, जिलवल्लभसूरि और वर्धमानसूरि के उल्लेख मिलते हैं ।" प्रसन्नचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि हुए, जिन्होंने जिनवल्लभसूरि और जिनदत्तसूरि को आचार्यपद प्रदान किया । २३ जिनवल्लभसूरि वास्तव में एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, परन्तु इन्होंने अभयदेवसूरि के पास विद्याध्ययन किया था और बाद में अपने चैत्यवासी गुरु की आज्ञा लेकर अभयदेवसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की । २४ जिलवल्लभसूरि से ही खरतरगच्छ का प्रारम्भ हुआ । युगप्रधानाचार्यगुर्वावली में यद्यपि वर्धमानसूरि को खरतरगच्छ का आदिम आचार्य कहा गया है, परन्तु वह समीचीन प्रतीत नहीं होता । वस्तुत: अभयदेवसूरि के मृत्योपरान्त उनके अन्यान्य शिष्यों के साथ जिनवल्लभसूरि की प्रतिस्पर्धा रही, अतः इन्होंने विधिपक्ष की स्थापना की, जो आगे चलकर खरतरगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । .२५ मनोरमाकहा [ रचनाकाल वि० सं० आदिनाथचरित [ रचनाकाल वि० सं० अभयदेवसूरि के तीसरे शिष्य और पट्टधर वर्धमानसूरि हुए । इन्होंने ११४० / ई० सन् १०८३] और १९६०/ ई० सन् ११०३] की रचना की । वि० सं० ११८७ एवं वि० सं० १२०८ के अभिलेखों में वडगच्छीय चक्रेश्वरसूरि को वर्धमानसूरि का शिष्य कहा गया है। २७ इसी प्रकार वि० सं० १२१४ के वडगच्छ से ही सम्बन्धित एक अभिलेख में वडगच्छीय २६ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास परमानन्दसूरि के गुरु का नाम चक्रेश्वरसूरि और दादागुरु का नाम वर्धमानसूरि उल्लिखित है। इसी प्रकार वडगच्छीय चक्रेश्वरसूरि के गुरु और परमानन्दसूरि के दादागुरु वर्धमानसूरि और अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि को अभिन्न माना जा सकता है। जहाँ तक गच्छ सम्बन्धी समस्या का प्रश्न है, उसका समाधान यह है कि चन्द्रगच्छ और वडगच्छ दोनों का मूल एक होने से इस समय तक आचार्यों में परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं दिखाई देती। गच्छीयप्रतिस्पर्धा के युग में भी एक गच्छ के आचार्य दूसरे गच्छ के आचार्य के शिष्यों को विद्याध्ययन कराना अपारम्परिक नहीं समझते थे। अतः बृहद्गच्छीय चक्रेश्वरसूरि एवं परमानन्दसूरि के गुरु चन्द्रगच्छीय वर्धमानसूरि हों तो यह तथ्य प्रतिकूल नहीं लगता। इस प्रकार चन्द्रगच्छ और खरतरगच्छ के आचार्यों का जो विद्यावंशवृक्ष बनता है, वह इस प्रकार है: अब हम वडगच्छीय वंशावली और पूर्वोक्त चन्द्रगच्छीय वंशावली को परस्पर समायोजित करते हैं, उससे जो विद्यावंशवृक्ष निर्मित होता है, वह इस प्रकार है अब इस तालिका के बृहद्गच्छीय प्रमुख आचार्यों के सम्बन्ध में ज्ञातव्य बातों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जायेगा। नेमिचन्द्रसूरि - जैसा कि पहले कहा जा चुका है, वडगच्छ के उल्लेख वाली प्राचीनतम प्रशस्तियाँ इन्हीं की हैं । इनका समय विक्रम सम्वत् की बारहवीं शती सुनिश्चित है । इनके द्वारा लिखे गये ५ ग्रन्थ उपलब्ध हैं जो इस प्रकार हैं - १. आख्यानकमणिकोष [मूल] २. आत्मबोधकुलक ३. उत्तराध्ययनवृत्ति [सुखबोधा] ४. रत्नचूड़कथा ५. महावीरचरियं Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ ११२७ इनमें प्रथम दो ग्रन्थ सामान्य मुनि अवस्था में रचे गये थे, इसी लिये इन ग्रन्थों की अन्त्य प्रशस्तियों में इनका नाम देविन्द लिखा मिलता है। उत्तराध्ययनवृत्ति और रत्नचूड़कथा की प्रशस्तियों में देवेन्द्रगणि नाम मिलता है, जिससे स्पष्ट है कि उक्त ग्रन्थ गणि "पद" मिलने के पश्चात् रचे गये । उक्त दोनों ग्रन्थों के कुछ ताड़पत्र की प्रतियों में नेमिचन्द्रसूरि नाम भी मिलता है । अन्तिम ग्रन्थ महावीरचरियं वि० सं० ११४१/ ई० सन् १०८५ में रचा गया है। उक्त ग्रन्थों की प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि इनके गुरु का नाम आम्रदेवसूरि और प्रगुरु का नाम उद्योतनसूरि था, जो सर्वदेवसूरि की परम्परा के थे। ___मुनिचन्द्रसूरि३२ - आप उपरोक्त नेमिचन्द्रसूरि के सतीर्थ्य थे । आचार्य सर्वदेवसूरि के शिष्य यशोभद्रसूरि एवं नेमिचन्द्रसूरि थे। यशोभद्रसूरि से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की एवं नेमिन्द्रसूरि से आचार्य पद प्राप्त किया । ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने कुल ३१ ग्रन्थ रचे थे। इनमें से आज १० ग्रन्थ विद्यमान हैं जो इस प्रकार हैं - १. अनेकान्तजयपताका टिप्पनक २. ललितविस्तरापञ्जिका ३. उपदेशपद-सुखबोधावृत्ति ४. धर्मबिन्दु-वृत्ति ५. योगबिन्दु-वृत्ति ६. कर्मप्रवृत्ति-विशेषवृत्ति ७. आवश्यक [ पाक्षिक ] सप्ततिका ८. रसाउलगाथाकोष ९. सार्धशतकचूर्णी १०. पार्श्वनाथस्तवनम् Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इनके ख्यातिनाम शिष्यों में वादिदेवसूरि, मानदेवसूरि और अजितदेवसूरि प्रमुख थे । वि० सं० १९७८ में इनका स्वर्गवास हुआ। ३३ वादिदेवसूरि - आप मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य थे । आबू से २५ मील दूर मडार नामक ग्राम में वि० सं० ११४३ / ई० सन् १०८६ में इनका जन्म हुआ था । इनके पिता का नाम वारिनाग और माता का नाम जिनदेवी था। आचार्य मुनिचन्द्रसूरि के उपदेश से माता - पिता ने बालक को उन्हें सौंप दिया और उन्होंने वि० सं० १९५२ / ई० सन् १०९६ में इन्हें दीक्षित कर मुनि रामचन्द्र नाम रखा । वि० सं० १९७४ / ई० सन् १९१७ में इन्होंने आचार्य पद प्राप्त किया और देवसूरि नाम से विख्यात हुए । ३४ वि० सं० ११८१-८२ / ई० सन् १९२४ में अणहिलपत्तन स्थित चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज की राजसभा में इन्होंने कर्णाटक से आये दिगम्बर आचार्य कुमुदचन्द्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया और वादिदेवसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। वादविषयक ऐतिहासिक उल्लेख कवि यशश्चन्द्र कृत मुद्रितकुमुदचन्द्र नामक नाटक में प्राप्त होता है । ये गुजरात में प्रमाणशास्त्र के श्रेष्ठ विद्वानों में से थे । इन्होंने प्रमाणशास्त्र पर प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार नामक ग्रन्थ आठ परिच्छेदों में रचा और उसके ऊपर स्याद्वादरत्नाकर नामक मोटी टीका की भी रचना की । इस ग्रन्थ की रचना में आपको अपने शिष्यों भद्रेश्वरसूरि और रत्नप्रभसूरि से सहायता प्राप्त हुई। इसके अलावा इनके द्वारा रचित ग्रन्थ इस प्रकार हैं मुनिचन्द्रसूरिगुरुस्तुति, मुनिचन्द्रगुरुविरहस्तुति, यतिदिनचर्या, उपधानस्वरूप, प्रभातस्मरण, उपदेशकुलक, संसारोदिग्नमनोरथकुलक, कलिकुंडपार्श्वस्तवनम् आदि । हरिभद्रसूरि २८ - बृहद्गच्छीय आचार्य मानदेव के प्रशिष्य एवं Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ ११२९ आचार्य जिनदेव के शिष्य हरिभद्रसूरि चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज के समकालीन थे । इनके द्वारा रचित ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि द्रव्यानुयोग, उपदेश, कथाचरितानुयोग आदि विषयों में संस्कृत - प्राकृत भाषा में इनकी खास विद्वता और व्याख्या शक्ति विद्यमान थी । वि० सं० १९७२ / ई० सन् १११६ में इन्होंने तीन ग्रन्थों की रचना की जो इस प्रकार है बंध स्वामित्व षटशीति कर्म ग्रन्थ के ऊपर वृत्ति; जिनवल्लभसूरि द्वारा रचित आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण पर वृत्ति और श्रेयांसनाथचरित | ३९ वि० सं० १९८५ / ई० सन् १९२९ के पाटण में यशोनाग श्रेष्ठी के उपाश्रय में रहते हुए इन्होंने प्रशमरतिप्रकरण पर वृत्ति की रचना की । रत्नप्रभसूरि आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि विशिष्ट प्रतिभाशाली, तार्किक, कवि और विद्वान् थे । इन्होंने प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार पर ५००० श्लोक प्रमाण रत्नाकरावतारिका नाम की टीका की रचना की है । इसके अलावा इन्होंने उपदेशमाला पर दोघट्टी वृत्ति [ रचनाकाल वि० सं० १२३८ / ई० सन् ११८२]० नेमिनाथचरित [ रचनाकाल वि० सं० १२३३ / ई० सन् ११७६], मतपरीक्षापंचाशत; स्याद्वादूरत्नाकर पर लघु टीका आदि ग्रन्थों की रचना की है । हेमचन्द्रसूरि ४० - आप आचार्य अजितदेवसूरि के शिष्य एवं आचार्य मुनिचन्द्रसूरि के प्रशिष्य थे। इन्होंने नाभेयनेमिकाव्य की रचना की, जिसका संशोधन महाकवि श्रीपाल ने किया । श्रीपाल जयसिंहसिद्धराज के दरबार का प्रमुख कवि था । ४१ हरिभद्रसूरि - इनका जन्म और दीक्षादि प्रसंग जयसिंह सिद्धराज के काल में उन्हीं के राज्य प्रदेश में हुआ, ऐसा माना जाता है । १ ये प्रायः अणहिलवाड़ में ही रहा करते थे । सिद्धराज और कुमारपाल के मन्त्री श्रीपाल की प्रार्थना पर इन्होंने संस्कृत - प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चौबीस तीर्थङ्करों के चरित्र की रचना की । इनमें से चन्द्रप्रभ, मल्लिनाथ और नेमिनाथ के चरित्र ही आज उपलब्ध हैं। तीनों ग्रन्थ २४००० श्लोक प्रमाण हैं। यदि एक तीर्थङ्कर का चरित्र ८००० श्लोक माना जाये तो २४ तीर्थङ्करों का चरित्र कुल दो लाख श्लोक के लगभग रहा होगा, ऐसा अनुमान किया जाता है। २ नेमिनाथचरिउ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १२१६ में हुई थी।४३ अपने ग्रन्थों के अन्त में इन्होंने जो प्रशस्ति दी है, उसमें इनके गुरुपरम्परा का भी उल्लेख है जिसके अनुसार वर्धमान महावीर स्वामी के तीर्थ में कोटिक गण और वज्र शाखा में चन्द्रकुल के वडगच्छ के अन्तर्गत जिनचन्द्रसूरि हुए। उनके दो शिष्य थे, आम्रदेवसूरि और श्रीचन्द्रसूरि । इन्हीं श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य थे आचार्य हरिभद्रसूरि जिन्हें आम्रदेवसूरि ने अपने पट्ट पर स्थापित किया। सोमप्रभसूरि ५ - आचार्य अजितदेवसूरि के प्रशिष्य एवं आचार्य विजयसिंहसूरि के शिष्य आचार्य सोमप्रभसूरि चौलुक्य नरेश कुमारपाल [वि० सं० ११९९-१२२९/ ई० सन् ११४२-११७२] के समलकालीन थे। इन्होंने वि० सं० १२४१/ई० सन् १९८४ में कुमारपाल की मृत्यु के १२ वर्ष पश्चात् अणहिलवाड़ में कुमारपालप्रतिबोध नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में हेमचन्द्रसूरि और कुमारपाल सम्बन्धी वर्णित तथ्य प्रामाणिक माने जाते हैं । इनकी अन्य रचनाओं में "सुमतिनाथचरित", सुक्तमुक्तावली और सिन्दूरप्रकरण के नाम मिलते हैं। नेमिचन्द्रसूरि ६- ये आम्रदेवसूरि [आख्यानकमणिकोशवृत्ति के रचयिता] के शिष्य थे। इन्होंने प्रवचनसारोद्धार नामक दार्शनिक ग्रन्थ जो ११९९ श्लोक प्रमाण है, की रचना की। __अन्य गच्छों के समान वडगच्छ से भी अनेक शाखायें एवं प्रशाखायें अस्तित्व में आयीं। वि० सं० ११४९ में यशोदेव - नेमिचन्द्र के शिष्य और मुनिचन्द्रसूरि के ज्येष्ठ गुरुभ्राता आचार्य चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमा पक्ष का आविर्भाव हुआ। इसी प्रकार आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ ११३१ ने वि० सं० १९७४ / ई० सन् १९१७ में नागौर में तप करने से नागौरी तपा विरुद् प्राप्त किया और उनके शिष्य नागोरीतपागच्छीय कहलाने लगे | इसी प्रकार इस गच्छ के अन्य शाखाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है। .४८ .४९ 1 श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय से सम्बद्ध प्रकाशित जैन लेख संग्रहों में वडगच्छ से सम्बन्धित अनेक लेख संग्रहीत हैं । इन अभिलेखों में वडगच्छीय आचार्यों द्वाराजिन प्रतिमा प्रतिष्ठा, जिनालयों की स्थापना आदि का उल्लेख है । ये लेख १२वीं शताब्दी से लेकर १७वीं - १८वीं शताब्दी तक के हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि वडगच्छीय आचार्य साहित्य सृजन के साथ-साथ जिनप्रतिमा प्रतिष्ठा एवं जिनालयों की स्थापना में समान रूप से रुचि रखते रहे । वर्तमान काल में इस गच्छ का अस्तित्व नहीं है। Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका नं० १ आख्यानकमणिकोष की प्रस्तावना में दी गयी बृहद्गच्छीय आचार्यों की तालिका बृहद्गच्छीय देवसूरि के वंश में ११३२ अजितदेवसूरि आनन्दसूरि (पट्टधर) नेमिचन्द्रसूरि (पट्टधर) [आख्यानकमणिकोष (मूल) के कर्ता] प्रद्योतनसूरि (पट्टधर) जिनचन्द्रसूरि (पट्टधर) आम्रदेवसूरि (शिष्य) [आख्यानकमणिकोष के वृत्तिकार] श्रीचन्द्रसूरि (शिष्य) जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास हरिभद्रसूरि (मुख्य-पट्टधर) विजयसेनसूरि (शिष्य-पट्टधर) नेमिचन्द्रसूरि (शिष्य-पट्टधर) यशोदेवसूरि (शिष्य-पट्टधर) गुणाकरसूरि (शिष्य) पार्श्वदेव (शिष्य) हरिभद्रसूरि (शिष्य) समन्तभद्रसूरि Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका नं०२ वडगच्छीय आचार्य मुनिचन्द्रसूरि के गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका बृहद्गच्छ उद्योतनसूरि (प्रथम) सर्वदेवसूरि उद्योतनसूरि (द्वितीय) के समकालीन ५ आचार्य देवसूरि (विहारुक) नेमिचन्द्रसूरि (प्रथम) यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि देवसूरि अजितदेवसूरि उद्योतनसूरि (द्वितीय) (सर्वदेवसूरि) आम्रदेवसूरि (प्रथम) यशोभद्रसूरि-नेमिचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) मानदेवसूरि अजितदेवसूरि वादिदेवसूरि वि. सं. ११७४-१२२५ विजयदेवसूरि जिनदेवसूरि - विजयसिंहसूरि भद्रेश्वरसूरि (पट्टधर) वि.सं. १२२६ रत्नप्रभसूरि वि. सं. १२३८ में उपदेशमालावृत्ति के रचनाकार । हेमचन्द्रसूरि वि. सं. ११८५ में नाभेयनेमिकाव्य की रचना परमानन्दसूरि खण्डन-मण्डन नामक ग्रन्थ के प्रणेता हरिभद्रसूरि वि. सं. ११८५ में क्षेत्रसमासवृत्ति के कर्ता सोमप्रभसूरि वि. सं. १२४१ में कुमारपालप्रतिबोध के रचयिता Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका नं०३ चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) के आचार्यों का विद्यावंशवृक्ष ११३४ उद्योतनसूरि (प्रथम) उपदेशपद [हरिभद्र] टीका, उपदेशमालाबृहट्टीका उपमितिभवप्रपंचनामसमुच्चय आदि ग्रन्थों के प्रणेता वि. सं. १०८८ में आबू स्थित विमलवसही में प्रतिमा प्रतिष्ठापक वर्धमानसूरि जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि [वि. सं. १०८० में पञ्चग्रंथी व्याकरण की रचमा] प्रमालक्षण [सटीक], पञ्चलिंगीप्रकरण, निर्वाणलीलाकथा वीरचरित्र, हरिभद्रसूरि के अष्टकों पर टीका षट्स्थानप्रकरण, कथाकोषप्रकरण आदि ग्रन्थों के प्रणेता जिनचन्द्रसूरि [पट्टधर] संवेगरंगशाला के रचनाकार [वि.सं. ११२५] अभयदेवसूरि (पट्टधर) जिनभद्र अपरनाम धनेश्वरसूरि सुरसुन्दरीकहा [वि. सं. १०९५] जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रसन्नचन्द्रसूरि जिनवल्लभसूरि वर्धमानसूरि । [अभयदेवसूरि के पट्टधर] वि. सं. ११४० में मनोरमाकहा वि. सं. ११६० में आदिनाथचरित्र [वि. सं. ११८७-१२८८ अभिलेखानुसार] देवभद्रसूरि | जिनदत्तसूरि (खरतरगच्छ प्रारम्भ) चक्रेश्वरसूरि (बृहद्गच्छीय) चन्द्रगच्छीय) Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका नं०४ वडगच्छीय वंशावली और चन्द्रगच्छीय वंशावली के परस्पर समायोजन से निर्मित विद्यावंशवृक्ष उद्योतनसूरि [प्रथम] बृहदगच्छ सर्वदेवसूरि देवसूरि (प्रथम] नेमिचन्द्रसूरि [प्रथम] उद्योतनसूरि [द्वितीय वर्धमानसूरि आम्रदेवसूरि [प्रथम] जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि प्रद्योतनसूरि जिनचन्द्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि [द्वितीय] [आनन्दसूरि के पट्टधर] L1H12-1-11 जिनचन्द्रसूरि [पट्टधर] अभयदेवसूरि [पट्टधर] जिनभद्रसूरि अपरनाम धनेश्वरसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि जिनवल्लभसूरि वर्धमानसूरि [द्वितीय] आम्रदेवसूरि [द्वितीय] श्रीचन्द्रसूरि देवभद्रसूरि जिनदत्तसूरि चक्रेश्वरसूरि (खरतरगच्छ प्रारम्भ) (वडगच्छीय) नेमिचन्द्रसूरि यशोदेवसूरि [शिष्य] गुणाकरसूरि [शिष्य] विजयसेनसूरि [शिष्य [पट्टधर] । [द्वितीय] हरिभद्रसूरि [मुख्य पट्टधर] [श्रीचन्द्रसूरि शिष्य] हरिभद्रसूरि [आम्रदेवसूरि द्वितीय के पट्टधर] परमानन्दसूरि [शिष्य] [पट्टधर] ११३५ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३६ अजितदेवसूरि यशोदेवसूरि .. प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि देवसूरि उद्योतनसूरि द्वितीय के समकालीन पांच आचार्य [सर्वदेवसूरि] | आनन्दसूरि यशोभद्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि अजितदेवसूरि मानदेवसूरि विजयसेनसूरि वादिदेवसूरि [मुख्य पट्टधर] जिनदेवसूरि रत्नप्रभसूरि भद्रेश्वरसूरि विजयसिंहसूरि हेमचन्द्रसूरि हरिभद्रसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सोमभद्रसूरि Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. मुनि बृहद्गच्छ ११३७ संदर्भ सूची : १. श्रीमत्यर्बुदतुंगशैलशिखरच्छायाप्रतिष्ठास्पदे धर्माणाभिधसन्निवेशविषये न्यग्रोधवृक्षो बभौ। यत्शाखाशतसंख्यपत्रबहलच्छायास्वपायाहतं सौख्येनोषितसंघमुख्यशटकश्रेणीशतीपंचकम् ॥ १॥ लग्ने क्वापि समस्तकार्यजनके सप्तग्रहलोकने ज्ञात्वा ज्ञानवशाद्, गुरुं ... देवाभिधः । आचार्यान् रचयांचकार चतुरस्तस्मात् प्रवृद्धो बभौ वंद्रोऽयं वटगच्छनाम रुचिरो जीयाद् युगानां शतीम् ॥ २ ॥ Muni Punyavijay, Ed. Catalogue of Palm-Leaf MSS in the Shantinath Jain Bhandar, Cambay, Part II, Pp. 284-86. मुनि दर्शन विजय-संपा० पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृ० ३४. ३. वही, पृ. ५२-५३. ३A. मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ० ५२-५५. ४. मुनिदर्शन विजय, पूर्वोक्त, भाग २, पृ० १८८. ५. प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी, वाराणसी द्वारा ई० सन् १९६२ में प्रकाशित. देखिये - तालिका नं० १. देवेन्द्रगणिश्चेमामुद्धृतवान् वृत्तिकां तद्विनेयः । गुरुसोदर्यश्रीमन्मुनिचन्द्राचार्यवचनेन ॥ ११ ॥ शोधयतु बृहदनुग्रहबुद्धिं मयि संविधान विज्ञजनः । तत्र च मिथ्यादुष्कृतमस्तु कृतमसंगतं यदिह ।। १२ ।। मुनि पुण्यविजय - पूर्वोक्त, भाग १, पृ० ११४. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २४१-४२. ९. वही, पृ० २४८-४९. १०. वही, पृ० २८३. ११. वही, पृ० ३२१. १२. मुनि पुण्यविजय, भाग २, पृ० २८८. ७ ) Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३८ १३. वही, भाग २, पृ० २३९-४०. १४. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० २८३-४. १५. देखिये - तालिका नं० २. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १६. मुनि पुण्यविजय, पूर्वोक्त, भाग २, पृ० ३३९. १७. कथाकोशप्रकरण - प्रस्तावना विभाग, संपादक मुनि जिनविजय, पृ० २. १८. अगरचन्द नाहटा, – “विमलसही के प्रतिष्ठापकों में वर्धमानसूरि भी थे।" - जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ५, अंक ५-६, पृ० २१२-१२४. १९. मुनि जिनविजय - पूर्वोक्त पृ० २६. २०. वही, पृ० २८. २१. देसाई, पूर्वोक्त पृ० २०८. २२ . वही, पृ० २१७-१९. - २३. मुनि जिनविजय- पूर्वोक्त पृ० १५. २४. वही, पृ० १६. २५. ' वही, पृ० ५. २६. वही, पृ० १४. २७. सं[ वत् ] ११८७ [वर्षे] फागु [ल्गु]ण वदि ४ सोमे रूद्रसिणवाडास्थानीय प्राग्वाटवंसा[शा]न्वये श्रे० साहिलसंताने पलाद्वंदा [?] श्रे० पासल संतणाग देवचंद्र आसधर आंबा अंबकुमार श्रीकुमार लोयण प्रकृति श्वासिणि शांतीय रामति गुणसिरि प्रडूहि तथा पल्लडीवास्तव्य अंबदेवप्रभृतिसमस्त श्रावकश्राविकासमुदायेन अर्बुदचैत्यतीर्थे श्रीरि[ऋ]षभदेवबिंबं निःश्रेयसे कारितं बृहद्गच्छीय श्रीसंविज्ञविहारि श्रीवर्धमानसूरिपादपद्मोप[सेवि ] श्रीचक्रेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ मुनि जयन्तविजय - संपा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसन्दोह, लेखांक ११४. ओम् । संवत् १२०८ फागुणसुदि १० रवौ श्रीबृहद्गच्छीयसंविंज्ञविहारी [र] . श्रीवर्धमानसूरिशिष्यैः श्रीचक्रेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं । मुनि विशालविजय, संपा० श्रीआरासणातीर्थ, लेखांक ११. २८. संवत् १२१४ फाल्गुण वदि - ७ शुक्रवारे श्रीबृहद्गच्छोद्भसंविग्नविहारि श्रीवर्धमानसूरीय श्रीचक्रेश्वरसूरिशिष्य... श्रीपरमानन्दसूरिसमेतैः .... प्रतिष्ठितं । मुनि विशालविजय, वही, लेखांक १४. Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ ___ ११३९ २९. देखिये, तालिका नं० ३. ३०. तालिका नं० ४. ३१. विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य - मुनि पुण्यविजय द्वारा सम्पादित आख्यानकमणिकोष की प्रस्तावना, पृ० ६-८; मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २१८. ३२. रसिकलाल छोटालाल परीख एवं केशवराम काशीराम शास्त्री, संपा० गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास, भाग ४, पृ० २९-९१; देसाई, पूर्वोक्त पृ० ३४१-४३. त्रिपुटी महाराज - जैनपरम्परानो इतिहास, भाग २, पृ० ५६०. ३४. परीख और शास्त्री - पूर्वोक्त भाग ४, २९४. ३५. वही. ३६. वही. ३७. मुनि चतुरविजय - संपा० जैनस्तोत्रसन्दोह, भाग १, पृ० ११८. ३८. परीख और शास्त्री-वही; देसाई, पूर्वोक्त पृ० २५०. ३९. परीख और शास्त्री, - पूर्वोक्त पृ० ३०३-४. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, - पूर्वोक्त पृ० २३५. लालचन्द भगवानदास गांधी - ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृ० १३३. ४२. वही पृ० १३३. ४३. वही पृ० १३४. ४४. मुनि पुण्यविजय संपा० आख्यानकमणिकोषवृत्ति, प्रस्तावना, पृ० ८. ४५. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० २७५. ४६. मुनि पुण्यविजय, पूर्वोक्त पृ० ८. ४७. अगरचन्द नाहटा, - "जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश", श्रीयतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ पृ० १५३. ४८. वही पृ० १५१ तथा इसी पुस्तक के अन्तर्गत द्रष्टव्यः नागपुरीय तपागच्छ का संक्षिप्त इतिहास ४९. वही पृ० १५४. ४१. Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से उद्भूत गच्छों में बृहद्गच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान है । यह गच्छ विक्रम सम्वत् की १०वीं शर्तों में उद्भूत माना जाता है । उद्योतनसूरि, सर्वदेवसूरि आदि इस गच्छ के पुरातन आचार्य माने जाते हैं ।' अन्यान्य गच्छों की भाँति इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न कारणों से अनेक शाखाओं - प्रशाखाओं का जन्म हुआ और छोटे-छोटे कई गच्छ अस्तित्व में आये । बृहद्गच्छ गुर्वावली' [ रचनाकाल वि० सं० १६२०] में उसकी अन्यान्य शाखाओं के साथ मडाहडाशाखा का भी उल्लेख मिलता है । यही शाखा आगे चलकर महाहडागच्छ के रूपमें प्रसिद्ध हुई। यहां इसी गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है 1 जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है मडाहडा नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया होगा । मडाहडा की पहचान वर्तमान मडार नामक स्थान से की जाती है जो राजस्थान प्रान्त के सिरोही जिले में डीसा से चौबीस मील दूर ईशानकोण में स्थित है। चक्रेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं । यह गच्छ कब और किस कारण से अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । अन्य गच्छों की भाँति इस गच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ । विभिन्न साक्ष्यों से इस गच्छ की रत्नपुरीयशाखा, जाखड़ियाशाखा, जालोराशाखा आदि का पता चलता है । महाहडागच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं, किन्तु अभिलेखीय साक्ष्यों की तुलना में साहित्यिक Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ ११४१ साक्ष्य संख्या की दृष्टि से स्वल्प हैं साथ ही वे १६वीं शताब्दी के पूर्व के नहीं हैं। अध्ययन की सुविधा के लिये तथा प्राचीनता की दृष्टि से पहले अभिलेखीय साक्ष्यों तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है । अभिलेखीय साक्ष्य इस गच्छ से सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जो वि० सं० १२८७ से लेकर वि० सं० १७८७ तक के हैं । इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है : Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ ११४२ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ मिति स्तम्भलेख १. |१२८७ | मार्गशीर्ष | आचार्य का नाम | चबुतरे पर सुदि६ । नष्ट हो गया है। | उत्कीर्ण लेख सोमवार मडारदेवी का मुनिजयंतविजय, मन्दिर, मडार संपा० अर्बुदाचल प्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ६६ | नेमिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, आरासणा संपा० आरासणा तीर्थ, लेखांक ३० २. १३३५ | माघ । सुदि १३ शुक्रवार चक्रेश्वरसूरि संतानीय सोमप्रभसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि आदिनाथ की प्रतिमा पर | उत्कीर्ण लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ३. १३३५ / मिति विहीन जिनयुगल प्रतिमा | पल्लवियापार्श्वनाथ मुनि जिनविजय, पर उत्कीर्ण लेख | जिनालय, पालनपुर | संपा० प्राचीनजैन Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि / आचार्य का नाम मिति ४. ५. ६. १३५१ १३५८ मिति विहीन मिति विहीन १३६२ वैशाख रत्नाकरसूरि के पट्टधर सोमतिलकसूरि आनन्दप्रभसूरि पासदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख महावीरकी प्रतिमा शीतलनाथ जिनालय पर उत्कीर्ण लेख उदयपुर आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर संदर्भग्रन्थ लेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५५० पूरनचन्द नाहर, जैन लेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०४६ वही, भाग ३, लेखांक २२४२ अनुपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ५३९ मडाहडागच्छ ११४३ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७. ८. ९. १०. तिथि / आचार्य का नाम मिति १३६६ मिति विहीन १३६७ | वैशाख सुदि ९ १३६७ | आषाढ सुदि ३ रविवार १३७१ | मिति विहीन आनन्दप्रभसूरि चन्द्रसिंहसूरि के शिष्य रविकरसूरि आनंदप्रभसूर आनन्दसूरि के पट्टधर हेमप्रभसूर प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धातु की जिन प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान चिन्तामणिजी का मन्दिर बीकानेर भीलडियातीर्थ चैत्य, थराद चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर "" संदर्भग्रन्थ अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २३५ दौलतसिंह लोढा, पूर्वोक्त, | लेखांक ३३४ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २३७ वही, लेखांक २४९ ११४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ११. १३७१ | " यशोदेवसूरि | महावीर की अनुपूर्तिलेख, आबू अर्बुदप्राचीन| के पट्टधर शांतिसूरि | प्रतिमा का लेख जैनलेखसंदोह (आबू, भाग २), लेखांक ५४३ १२. १३७३, शांतिसूरि परिकर का लेख | मडारदेवी का अर्बुदाचल मन्दिर, मडार प्रदक्षिणाजैन लेखसंदोह (आबू, भाग ५), लेखांक ७१ १३. |१३७९ / मिति आचार्य का | आदिनाथ की चिन्तामणिजी नाहटा, पूर्वोक्त, विहीन नाम नष्ट | धातु की प्रतिमा का मन्दिर, लेखांक २८१ पर उत्कीर्ण लेख | बीकानेर Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् १४. १५. १३८१ | वैशाख वदि ८ १३८६ तिथि / आचार्य का नाम मिति १६. १३८७ मिति विहीन हेमसूरि सर्वदेवसूरि चक्रेश्वरसूरिसंतानीय पद्मचन्द्रसूरि के पट्टधर जयदेवसूरि के शिष्य प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख यशोदेवसूरि की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान अनूपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, संपा० आबू, चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर संदर्भग्रन्थ पंचासरा पार्श्वनाथ जिनालय, पाटण भाग २, लेखांक ५५१ नाहटा, पूर्वोक्त, | लेखांक ३१६ मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५०८ ११४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् १७. १८. १९. तिथि / आचार्य का नाम मिति १३८७ मिति विहीन १३८९ | फाल्गुन सुदि ८ सोमवार १३८९ मिति विहीन यशोदेव की प्रतिमा को शांतिसूरि ने प्रतिष्ठापित की हेमप्रभसूरि के पट्टधर सर्वदेवसूरि रत्नसागरसूरि धर्मदेवसूरि के पट्टधर देवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख " पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर "" संदर्भग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ३२१ अनुपूर्तिलेख. आबू मुनिजयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखांक ५५८ वही, लेखांक ५५९ मडाहडागच्छ ११४७ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7868 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २०. | १३८९ | तिथि रत्नाकरसूरि शांतिनाथ की | अरनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, विहीन के पट्टधर प्रतिमा का लेख | जीरारवाडो, खंभात जैनधातुप्रतिमासोमतिलकसूरि लेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ७६८ २१. | १३९३ | ज्येष्ठ । सोमतिलकसूरि | शांतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ११ धातु की प्रतिमा | मन्दिर, बीकानेर लेखांक ३५६ शुक्रवार का लेख २२. |१३९२ | - सर्वदेवसूरि आदिनाथ की वही, धातु की प्रतिमा लेखांक ३४८ का लेख २३. | १४०४ / वैशाख | मुनिप्रभसूरि धर्मनाथ की वदि १ धातु की प्रतिमा लेखांक ४०४ शनिवार का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ - क्रमाङ्क संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख २४. १४११ । ज्येष्ठ माणिक्यसूरि आदिनाथ की सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागरसूरि, १२ के पट्टधर धातु की प्रतिमा बावन प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार मानदेवसूरि का लेख जिनालय, मातर लेखांक ४६० २५. १४१३ पासदेवसूरि | महावीर की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा मन्दिर, बीकानेर लेखांक ४३१ का लेख २६. १४१५ । ज्येष्ठ मानदेवसूरि शांतिनाथ की वदि १३ धातु की प्रतिमा लेखांक ४३४ रविवार का लेख २७. १४२० | वैशाख पूर्णचन्द्रसूरि | पार्श्वनाथ की अनुपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, सुदि १० प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, भाग २, बुधवार लेखांक ५७५ वही, Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २८. ३०. २९. १४३५ माघ ३१. तिथि / आचार्य का नाम मिति उदयप्रभसूरि १४२३ | फाल्गुन सुदि ९ १४३७ वदि १२ १४३६ वैशाख वदि ११ सोमवार "" "" विजयसिंहसूरि सोमचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर संदर्भग्रन्थ चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४६२ बुद्धिसागरसूरि पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४६३ अनुपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५९५ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५२९ ११५० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ ms क्रमाङ्क |संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ३२. १४४० | पौष आदिनाथ की अनुपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, सुदि १२ प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५३६ ३३. १४४१ | फाल्गुन मुनिप्रभसूरि | शांतिनाथ की | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि २ धातु की प्रतिमा मन्दिर, बीकानेर लेखांक ५४४ रविवार का लेख ३४. |१४४१ । पूर्णचन्द्रसूरि अनुपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, सुदि ३ के पट्टधर पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार हरिभद्रसूरि लेखांक ५९९ ३५. |१४४५ ज्येष्ठ । सोमप्रभसूरि | संभवनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा मन्दिर, बीकानेर लेखांक ५४९ का लेख वैशाख सुदि ... | Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ३६. | १४४६ / वैशाख | मुनिप्रभसूरि | शांतिनाथ की अनूपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, वदि ३ प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार लेखांक ६०२ ३७. | १४५४ | आषाढ विमलनाथ की | आदिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ धातु की प्रतिमा राजलदेसर लेखांक २३४६ गुरुवार का लेख ३८. | १४५७ | आषाढ़ शांतिनाथ की चिन्तामणिजी का वही, सुदि ५ धातु की प्रतिमा । मन्दिर, बीकानेर लेखांक ५८० गुरुवार का लेख ३९. | १४५९ | चैत्र आदिनाथ की धातु वदि १५ की प्रतिमा का लेख लेखांक ५८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास " वही, Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ वही, लेख क्रमाङ्क संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ४०. १४५९ चैत्र सोमचन्द्रसूरि पद्मप्रभ की सुदि १५ धातु की प्रतिमा लेखांक ५८९ सोमवार का लेख ४१. १४६१ | ज्येष्ठ मुनिप्रभसूरि संभवनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, सुदि १० प्रतिमा का लूणकणसर लेखांक २४९७ शुक्रवार ४२. १४६२ वैशाख हरिभद्रसूरि आदिनाथ की वीरचैत्यान्तर्गत- लोढा, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा वासुपूज्यचैत्य, लेखांक १०३ शुक्रवार का लेख थराद ४३. १४७३ | वैशाख मुनिप्रभसूरि | अभिनन्दनाथ की | पार्श्वनाथजिनालय, विनयसागर, संपा० वदि १ पंचतीर्थी प्रतिमा | बूंदी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, का लेख भाग १, लेखांक २१० सुदि ५ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ४३अ. | १४६९ । पौष । उदयप्रभसूरि । आदिनाथ की | धर्मनाथ जिनालय, वही, भाग २, वदि ५ धातु की प्रतिमा | औरंगाबाद लेखांक ४६ शुक्रवार का लेख ४४. | १४८० | फाल्गुन चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० | मन्दिर, बीकानेर लेखांक ७०० बुधवार ४५. १४८१ | वैशाख चन्द्रप्रभ की धातु | शीतलनाथ | विनयसागर, की प्रतिमा | जिनालय, उदयपुर | पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार का लेख लेखांक १२६ ४६. |१४८१ | ,, अभिनन्दनस्वामी | पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, की धातु प्रतिमा | हैदराबाद भाग २, का लेख लेखांक २०४९ सुदि ३ - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ४७. ४८. १४८२ १४८२ ४९. १४८२ ५०. १४८२ ५१. तिथि / आचार्य का नाम मिति माघ सुदि ५ सोमवार "" "" " १४९२ | वैशाख सुदि २ बुधवार ज्ञानचन्द्रसूरि "" "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख "" "" "" प्राप्ति स्थान चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर "" "" " संदर्भग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५१५ वही, लेखांक ५१६ वही, लेखांक ५१७ वही, लेखांक ५१९ वही, लेखांक ७५८ मडाहडागच्छ १९५५ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५६ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ५२. | १४९२ / मार्गशीर्ष ___ मुनिप्रभसूरि | धर्मनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, | वही, वदि ४ प्रतिमा का लेख | नाहटों में, बीकानेर | लेखांक १५१५ गुरुवार ५३. | १४९५ | ज्येष्ठ मतिप्रभसूरि | संभवनाथ की | अजितनाथ मुनि विशालविजय, वदि १४ पंचतीर्थी प्रतिमा | जिनालय, संपा० राधनपुरबुधवार का लेख राधनपुर प्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १२५ ५४. | १४९७ | ज्येष्ठ ___मुनिप्रभसूरि | धर्मनाथ की शान्तिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि २ प्रतिमा का लेख | नाहटों में, बीकानेर | लेखांक १८९४ सोमवार ५५. | १४-- - महावीरस्वामी की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, धातु-प्रतिमा मन्दिर, बीकानेर लेखांक ८१७ का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्ति स्थान - संदर्भग्रन्थ मडाहडागच्छ वही, लेखांक ८४० - वही, लेखांक ८८६ क्रमाङ्क संवत् | तिथि / आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ मिति स्तम्भलेख ५६. १५०१ | वैशाख | गुणसागरसूरि सुविधिनाथ की सुदि ३ धातु-प्रतिमा शनिवार का लेख ५७. १५०४ | फाल्गुन वीरभद्रसूरि श्रेयांसनाथ की सुदि ८ के पट्टधर | धातु-प्रतिमा गुरुवार नयचन्द्रसूरि का लेख ५८. १५०५ | फाल्गुन मुनिसुव्रत की वदि ९ धातु-प्रतिमा सोमवार का लेख ५९. १५०७ माघ नयकीर्तिसूरि | विमलनाथ की सुदि ५ प्रतिमा का लेख रविवार वही, लेखांक ८९६ जैनमन्दिर, नाहर, पूर्वोक्त, जूनावेड़ा, मारवाड़ |भाग १, . लेखांक ९२२ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् ६०. ६१. ६२. १५०८ १५०९ १५२० तिथि / आचार्य का नाम मिति चैत्र बुधवार सुदि ८ आषाढ़ वदि ९ गुरुवार आषाढ़ सुदि २ गुरुवार हीराणंदसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि नयणचन्द्रसूरि हरिभद्रसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख सुविधिनाथ की चौबीसी का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान संभवनाथ जिनालय, देशनोंक, बीकानेर चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर पार्श्वनाथ पंचतीर्थी अजितनाथ प्रतिमा का लेख जिनालय, सिरोही संदर्भग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २२१७ वही, | लेखांक ९३० अगरचन्द नाहटा, "मडाहडागच्छ की कालकाचार्यकथा की प्रशस्ति" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष २०, अंक २, पृ० ४८ ११५८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ६३. ६४. ६५. ६६. १५२५ माघ तिथि / आचार्य का नाम मिति १५३२ १५२७ | वैशाख सुदि ३ सोमवार वैशाख वदि ५ रविवार १५३५ वदि ६ माघ वदि ५ मंगलवार विजयचन्द्रसूरि नयचन्द्रसूरि चक्रेश्वरसूरि के संतानीय के कमलप्रभसूरि के शिष्य ...? वीरभद्रसूरि के शिष्य नयचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शीतलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख कुथुनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर आदिनाथजिनालय, नागौर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर चन्द्रप्रभजिनालय, केकड़ी संदर्भग्रन्थ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६७२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १२७६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०७३ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७८८ मडाहडागच्छ ११५९ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ६७. १५३५ ६८. ६९. १५४२ ७०. तिथि / आचार्य का नाम मिति "" १५४२ फाल्गुन वदि २ शनिवार "" १५४५ | ज्येष्ठ वदि ११ रविवार ,, "" " प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान पार्श्वनाथ जिनालय, वही, साथा सेठ थीरूशाह का देरासर, जैसलमेर, पद्मप्रभजिनालय, घाट, उदयपुर संदर्भग्रन्थ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर लेखांक ७८९ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २४५६ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८३१ नाहटा, पूर्वोक्त, | लेखांक १११० ११६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्राप्ति स्थान | संदर्भग्रन्थ मिति स्तम्भलेख ७१. १५५९ पौष । मतिसुन्दरसूरि वासुपूज्य की जैनमन्दिर, चैलपुरी, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ४ धातु की प्रतिमा | दिल्ली भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक ४९६ ७२. १५८३ / ज्येष्ठ । गुणकीर्तिसूरि श्रेयांसनाथ की आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ९ प्रतिमा का लेख हीराबाड़ी, नागौर पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार लेखांक ९७२ ७३. १५९२ | आषाढ दयाहरसूरि | सुमतिनाथ की | पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि धातु की प्रतिमा नौहर लेखांक २४८३ का लेख ७४. १५९४ | वैशाख नाणचन्द्रसूरि आदिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, सुदि ७ (ज्ञानचन्द्रसूरि) | प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक ११४५ बुधवार - - - Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६२ मिति + - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्राप्ति स्थान । संदर्भग्रन्थ स्तम्भलेख ७५. १६२० | आश्विन भट्टारक श्री विमलवसही, आबू मुनि जयन्तविजय, वदि ४ माणिक्य... पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार लेखांक ६४ ७६. १७२८ | वैशाख तीर्थयात्रा का लूणवसति, आबू वही, भाग २, सुदि ११ उल्लेख करनेवाला लेखांक २९४ शिलालेख ७७. १७७१ | वैशाख मडारदेवी के मडार देवी का आबू, भाग ५, सुदि ३ के मन्दिर में मन्दिर, मडार लेखांक १०१ एक चरणचिह्न पर उत्कीर्ण लेख ७८. १७८७ | माघ । भट्टारक चक्रेश्वरसूरि | मडारदेवी के वही, भाग ५, सुदि ५ | एवं मन्दिर में । लेखांक १०४ भट्टारक देवचन्द्रसूरि | उत्कीर्ण लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ७९. १७८७ तिथि / आचार्य का नाम मिति माघ सुदि ५ रविवार चक्रेश्वरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धातुप्रतिमालेख संदर्भग्रन्थ प्राप्ति स्थान धर्मनाथ जिनालय, वही, भाग ५, लेखांक १०३ मडार मडाहडागच्छ 21 w MY Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नामों का पता चलता है, किन्तु उसके आधार पर उनके गुरुशिष्य परम्परा की कोई विस्तृत तालिका की संरचना कर पाना तो सम्भव नहीं है । फिर भी कुछ मुनिजनों की गुरु- परम्परा की छोटी-छोटी गुर्वावलियों की संरचना की जा सकती है, जो इस प्रकार है चक्रेश्वरसूरि चक्रेश्वरसूरि I पद्मचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि यशोदेवसूरि I शांतिसूरि [वि० सं० १३७० - ८७ प्रतिमालेख] ? I मानदेवसूरि I सोमचन्द्रसूरि I ज्ञानचन्द्रसूरि जयसिंहसूर सोमप्रभसूरि T वर्धमानसूरि [वि० सं० १३३५ प्रतिमालेख] [वि० सं० १४३७-५९] प्रतिमालेख [वि० सं० १४९३] प्रतिमालेख] Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ ११६५ साहित्यिक साक्ष्य मडाहडागच्छ के सम्बद्ध प्रथम साहित्यिक साक्ष्य है कालिकाचार्यकथा की ९ श्लोकों की दाताप्रशस्ति । यह प्रति श्री अगरचन्द नाहटा के संग्रह में संरक्षित है । इस प्रशस्ति के प्रथम ६ श्लोकों में सितरोहीपुर (वर्तमान सिरोही, राजस्थान) निवासी श्रावक तिहुणा-महुणा के पूर्वजों का उल्लेख है। अन्तिम तीन श्लोकों में उक्त श्रावक द्वारा लक्षभूपति [राणालाखा अपरनाम राणालक्षसिंह वि० सं० १४६१-१४७६ / ईस्वी सन् १४०५१४२०] के शासनकाल में महाहडागच्छीय आचार्य कमलप्रभसूरि के शिष्य वाचनाचार्य गुणकीर्ति को कल्पसूत्र के साथ उक्त ग्रन्थ की एक प्रति भेंट में देने का उल्लेख है। ___ मडाहडागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की पूर्व प्रदर्शित सूची [लेख क्रमांक ६२, वि० सं० १५२०] में हरिभद्रसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि का नाम आ चुका है। यद्यपि एक मुनि या आचार्य का नायकत्त्वकाल सामान्य रूप से ३०-३५ वर्ष माना जाता है, किन्तु कोई - कोई मुनि और आचार्य दीर्घजीवी भी होते हैं, इसी कारण स्वाभाविक रूप से उनका नायकत्वकाल सामान्य से कुछ अधिक अर्थात् ४०-४५ वर्ष का होता रहा । अतः वि० सं० की १५वीं शताब्दी के तृतीय चरण में भी इन्हीं कमलप्रभसूरि का विद्यमान होना असंभव नहीं लगता । इसलिए उक्त प्रतिमालेख [वि० सं० १५२०] में उल्लिखित धनप्रभसूरि के गुरु कमलप्रभसूरि उपरोक्त कालिकाचार्यकथा के प्रतिलेखन की दाताप्रशस्ति [लेखनकाल वि० सं० १४६१-१४७६] में उल्लिखित कमलप्रभसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। श्री अगरचन्द नाहटा ने अपनी सिरोही यात्रा के समय वहाँ स्थित मडाहगच्छीय उपाश्रय में रहने वाले एक महात्मा-गृहस्थ कुलगुरु से ज्ञात इस गच्छ के मुनिजनों की एक नामावली प्रकाशित की है, जो इस प्रकार Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १. चक्रेश्वरसूरि १६. उदयसागरसूरि २. जिनदत्तसूरि १७. देवसागरसूरि ३. देवचन्द्रसूरि १८. लालसागरसूरि ४. गुणचन्द्रसूरि कमलसागरसूरि ५. धर्मदेवसूरि २०. हरिभद्रसूरि ६. जयदेवसूरि २१. वागसागरसूरि ७. पूर्णचन्द्रसूरि केशरसागरसूरि ८. हरिभद्रसूरि २३. भट्टारकगोपालजी ९. कमलप्रभसूरि २४. यशकरणजी १०. गुणकीर्तिसूरि २५. लालजी ११. दयानन्दसूरि २६. हुकमचन्द १२. भावचन्द्रसूरि २७. इन्द्रचन्द १३. कर्मसागरसूरि २८. फूलचन्द १४. ज्ञानसागरसूरि २९. रतनचन्द १५. सौभाग्यसागरसूरि ३०. .... श्री नाहटा द्वारा प्रस्तुत उक्त नामावली में गच्छ के प्रवर्तक या आदिम आचार्य के रूप में चक्रेश्वरसूरि का उल्लेख है। अभिलेखीय साक्ष्यों से भी यही संकेत मिलता है । क्योंकि कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य को चक्रेश्वरसूरि संतानीय कहा गया है। नामावली में उल्लिखित द्वितीय पट्टधर जिनदत्तसूरि, तृतीय पट्टधर देवचन्द्र और चतुर्थ पट्टधर गुणचन्द्र के बारे में किन्हीं अन्य साक्ष्यों से कोई सूचना नहीं मिलती। पंचम पट्टधर धर्मदेवसूरि से लेकर अष्टम पट्टधर हरिभद्रसूरि तक के नाम अभिलेखीय साक्ष्यों में भी मिल जाते हैं तथा नवें पट्टधर कमलप्रभसूरि का साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों साक्ष्यों में उल्लेख मिलता है । उक्त नामावली के अन्य मुनिजनों के बारे में (ज्ञानसागर को छोड़कर) किन्हीं Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ ११६७ अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी नहीं मिलती। (जय) देवसूरि, पूर्णचन्द्रसूरि और हरिभद्रसूरि का नाम अभिलेखीय साक्ष्यों में भी मिलता है परन्तु उनके बीच गुरु-शिष्य सम्बन्धों का ज्ञान उक्त नामावली से ही हो पाता है। इस दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है। चक्रेश्वरसूरि धर्मदेवसूरि (जय) देवसूरि पूर्णचन्द्रसूरि हरिभद्रसूरि कमलप्रभसूरि [वि० सं० १५२० में सिरोही के अजितनाथ जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठापक] गुणकीर्तिसूरि कालिकाचार्यकथा की प्रशस्ति [वि० सं० १४६१-७६ में उल्लिखित] धनकीर्तिसूरि [वि० सं० १५२० के प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक कमलप्रभसूरि के साथ उल्लिखित] Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लिंबडी के हस्तलिखित जैन ग्रन्थ भंडार में वि० सं० १५१७ में लिखी गयी कल्पसूत्रस्तवक और कालिकाचार्यकथा' की एक-एक प्रति उपलब्ध है जिसे ग्रन्थभण्डार की प्रकाशित सूची में मडाहडागच्छीय रामचन्द्रसूरि की कृति बतलाया गया है । चूँकि उक्त ग्रन्थभण्डार में संरक्षित हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रशस्तियों अभी अप्रकाशित हैं, अतः ग्रन्थकार की गुरु-परम्परा, ग्रन्थ के रचनाकाल आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती। इसी गच्छ में विक्रम सम्वत् की १५वीं शताब्दी के तृतीयचरण में पद्मसागरसूरि नामक एक विद्वान् मुनि हो चुके हैं, जिनके द्वारा रचित कयवन्नाचौपाइ, स्थूलभद्रअठावीसा आदि कुछ कृतियाँ मिलती हैं। ये मरु-गुर्जर भाषा में रचित हैं । कयवन्नाचौपाई की प्रशस्ति१ में रचनाकार ने अपने गुरु तथा रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है - आदि: सरस वचन आपे सदा, सरसति कवियण माइ, पणमणि कवइन्ना चरी, पभणिसु सुगुरु पसाइ । मम्माडहगच्छे गुणनिलो श्रीमुनिसुन्दरसूरि, पद्मसागरसूरि सीस तसु पभणे आणंदसूरि । अन्त: दान उपर कइवन्न चोपइ, संवत् परन त्रिसठे थई, भाद्र वदि अठमी तिथि जाण, सहस किरण दिन आणंद आणि । पद्मसागरसूरि इम भणंत, गुणे तिहिं काज सरंति, ते सवि पामे वांछित सिद्धि, घर नीरोग घरे अविचल रिद्धि । यद्यपि उक्त ग्रन्थकार और उनके गुरु का अन्यत्र कोई उल्लेख नहीं मिलता और यह रचना भी सामान्य कोटि की है फिर भी मडाहडगच्छ से Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M मडाहडागच्छ ११६९ सम्बन्ध होने के कारण इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। विक्रम सम्वत् की सत्रहवीं शताब्दी के द्वितीय-तृतीय चरण में इस गच्छ में सारंग नामक एक विद्वान् हुए हैं । जिनके द्वारा रचित कविविल्हणपंचाशिकाचौपाई [रचनाकाल वि० सं० १६३९], मुंजभोजप्रबन्ध [रचनाकाल वि० सं० १६५१], किसनरुक्मिणीवेलि पर संस्कृतटीका [रचनाकाल वि० सं० १६७८] आदि कृतियाँ प्राप्त होती हैं। इनके गुरु का नाम पद्मसुन्दर और प्रगुरु का नाम ज्ञानसागर था, जो समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर पूर्वप्रदर्शित मडाहडगच्छ के मुनिजनों की नामावली में उल्लिखित १७वें पट्टधर ज्ञानसागरसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं । मडाहडगच्छ से सम्बद्ध अब तक उपलब्ध यह अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य कहा जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों से इस गच्छ की रत्नपुरीयशाखा और जाखडियाशाखा का अस्तित्व ज्ञात होत है । इनका विवरण निम्नानुसार रत्नपुरीयशाखा जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है, रत्नपुर नामक स्थान से यह अस्तित्व में आयी प्रतीत होती है । इस गच्छ से सम्बद्ध १४ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं जो वि० सं० १३५० से वि० सं० १५५७ तक के हैं । इन लेखों में धर्मघोषसूरि, सोमदेवसूरि, धनचन्द्रसूरि, धर्मचन्द्रसूरि, कमलचन्द्रसूरि आदि का उल्लेख मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है : धर्मघोषसूरि के पट्टधर सोमदेवसूरि इनके द्वारा वि० सं० १३५० में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है . मुनि विद्याविजयजी ने इसकी वाचना की है, जो निम्नानुसार है : Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सं० १३५० वर्षे माह वदि ९ सोमे... कानेन भ्रातृरा.... निमित्तं श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० महडाहडागच्छे रत्नपुरीय श्री धर्मघोषसूरिपट्टे श्रीसोमदेवसूरिभिः । वर्तमान में यह प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, पूना में है । सोमदेवसूरि के पट्टधर धनचन्द्रसूरि- इनके द्वारा प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की धातु की एक पंचतीर्थी प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस पर वि० सं० १४६३ का लेख उत्कीर्ण है। श्री पूरनचंद नाहर ने इसकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : .१४ सं० १४६३ वर्षे आषाढ़ सुदि १० बुधे प्रा०ज्ञा०व्य०हेमा० भा० हीरादे पु० अजाकेन श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं मडाहडागच्छे श्री सोमदेवसूरिपट्टे श्रीधनचन्द्रसूरिभिः । धनचन्द्रसूरि के पट्टधर धर्मचन्द्रसूरि - इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है : प्राचीनलेख लेखांक १२४ संग्रह वि० सं० १४८० फाल्गुन सुदि १०, फाल्गुन सुदि १०, बुधवार वि० सं० १४८५ वैशाख सुदि ३ वि० सं० १४९३ माघ सुदि २, बुधवार वि० सं० १५०१ ज्येष्ठ सुदि १०, रविवार वि० सं० १५०७ फाल्गुन वदि ३, बीकानेरजैन- लेखांक ९२० बुधवार लेखसंग्रह वि० सं० १५१० मार्ग ? सुदि १०, प्राचीनलेख- लेखांक २५६ रविवार संग्रह प्रतिष्ठालेख - लेखांक २५३ संग्रह, भाग १ बीकानेरजैन- लेखांक ७६८ लेखसंग्रह प्रतिष्ठालेख - भाग १ लेखांक ३३९ संग्रह, Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ ११७१ धर्मचन्द्रसूरि के पट्टधर कमलचन्द्रसूरि- इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ४ प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं । इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं : वि० सं० १५३४ ज्येष्ठ सुदि १०, बीकानेरजैन- लेखांक १०८१ सोमवार लेखसंग्रह वि० सं० १५३५ आषाढ़ सुदि ५, वही लेखांक १०९१ गुरुवार वि० सं० १५४१ आषाढ़ सुदि ३, वही लेखांक १३९० शनिवार वि० सं० १५४५ माघ सुदि ३, वही लेखांक २४१३ गुरुवार वि० सं० १५५७ के एक प्रतिमालेख में इस शाखा के गुणचन्द्रसूरि एवं उपाध्याय आनन्दसूरि का उल्लेख मिलता है ।१५ रत्नपुरीयशाखा का उल्लेख करनेवाला यह अन्तिम साक्ष्य है। रत्नपुरीयशाखा के उक्त प्रतिमालेखों में प्रथम [वि० सं० १३५०] और द्वितीय [वि० सं० १४६३] लेख में सोमदेवसूरि का उल्लेख मिलता है । प्रथम लेख में वे प्रतिमाप्रतिष्ठापक हैं तथा द्वितीय लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के गुरु । किन्तु दोनों सोमदेवसूरि के बीच प्रायः १०० सेअधिक वर्षों का अन्तराल है । अतः इस आधार पर दोनों अलग-अलग व्यक्ति सिद्ध होते हैं । यहाँ यह भी विचारणीय है कि इन सौ वर्षों में [वि० सं० १३५० से वि० सं० १४६३] इस शाखा से सम्बद्ध कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः यह सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि दोनों सोमदेव एक ही व्यक्ति हैं और लेख के वाचनाकार की मूल से वि० सं० १४५० की जगह वि० सं० १३५० लिख दिया गया। इस संभावना को स्वीकार कर लेने पर रत्नपुरीयशाखा की वि० सं० १४५० से वि० सं० १५५७ की की एक अविच्छिन्न परम्परा ज्ञात हो जाती है : Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ? धर्मघोषसूरि सोमदेवसूरि T धनचन्द्रसूरि T धर्मचन्द्रसूरि [वि० सं० १४८० - १५१०] छह प्रतिमालेख [वि० सं० १५३४ - १५४५ ] चार प्रतिमालेख इस शाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह शाखा कब अस्तित्व में आयी, इस बारे में प्रमाणों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है । अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर वि० सं० की १५वीं शताब्दी के मध्य से वि० सं० की १६वीं शताब्दी के मध्य तक इस शाखा का अस्तित्व सिद्ध होता है। T कमलचन्द्रसूरि [वि० सं० १३ (४) ५०] [वि० सं० १३ ( ४ ) ५०] एक प्रतिमालेख [वि० सं० १४६३] एक प्रतिमालेख जाखड़ियाशाखा मडाहडागच्छ की इस शाखा का उल्लेख करने वाले ५ प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं । इनमें कमलचन्द्रसूरि, आनन्दमेरु तथा गुणचन्द्रसूरि का नाम मिलता है । इनका विवरण इस प्रकार है : कमलचन्द्रसूरि वि० सं० १५३५ माघ वदि ६, मंगलवार वि० सं० १५४७ ज्येष्ठ सुदि २, मंगलवार अर्बुदप्राचीन- लेखांक ६५५ जैनलेखसंदोह बीकानेरजैन- लेखांक १११२ लेखसंग्रह Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ ११७३ वि० सं० १५५७ वैशाख सुदि ११, प्रतिष्ठालेख - लेखांक ८९१ संग्रह, भाग १ बीकानेरजैन- लेखांक २७५१ लेखसंग्रह वही लेखांक १६३० गुरुवार वि० सं० १५७५ कें लेख " में मडाहडागच्छ की शाखा के रूप में नहीं अपितु स्वतन्त्र रूप से जाखड़ियागच्छ के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। गुरुवार वि० सं० १५६० वैशाख सुदि ३, बुधवार वि० सं० १५७१ फाल्गुन वदि ४, इस शाखा के भी प्रवर्तक कौन थे तथा यह कब और किस कारण से अस्तित्व में आयी, इस बारे में आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है । सन्दर्भ सूची : १. २. ३. बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति [ रचनाकाल वि० सं० १२३८ / ईस्वी सन् १९८२ ] की प्रशस्ति. Muni Punya Vijaya - Catalogue of Plam Leaf Mss in the Shanti Nath Jain Bhandar, Cambay, G.O.S. No. 149, Baroda, 1966 A.D., pp. 284-286. तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावलि [ रचनाकाल वि० सं० १४६६ / ईस्वी सन् १४०९] तपागच्छीय हीरविजयसूरि के शिस्य धर्मसागर द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली [ रचनाकाल वि० सं० १६४८ / ईस्वी सन् १५९२]. इस सम्बद्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य पं. दलसुख मालवणिया अभिनन्दनग्रन्थ ( वाराणसी १९९२) में पृष्ठ १०५ - ११७ पर प्रकाशित "बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास" नामक लेख तथा इसी पुस्तक से अन्तर्गत "बृहदगच्छका संक्षिप इतिहास" मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६१ ईस्वी, पृ० ५२-५५. मुनिजयन्तविजय - अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि० सं० २००४, पृ० ६७-७७. - Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४. अगरचन्द नाहटा - "मडाहडागच्छ" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष २१, अंक ३, पृ० ४७ ४८. 4. R.C. Majumbdar and A.D. Pusalkar, The Delhi Sultanate, Bombay 1960 A.D., pp 331, 834. अगरचन्द भंवरलाल नाहटा - "मड्डाहडगच्छ की परम्परा" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष २०, अंक ५, पृ० ९५-९८. चक्रेश्वरसूरि बृहद्गच्छ के प्रभावक आचार्य थे, उनके द्वारा वि० सं० ११८७ से वि० सं० १२०८ तक प्रतिष्ठापित कई जिनप्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं, ग्रन्थप्रशस्तियों में भी इनका उल्लेख प्राप्त होता है। मोहनलालदलीचन्द देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २८०. मुनि चतुरविजय - संपादक - लींबडीस्थ हस्तलिखित जैन ज्ञान भण्डार सूचीपत्रम् आगमोदयसमिति, ग्रन्थांक ५८, बम्बई १९२८ ईस्वी, क्रमांक ५०१. वही, क्रमांक ५७१. Vidhatri Vora - Catalogue of Gujarati Manuscripts : Muniraja Sri Punyavijayaji's Collection, L.D. Series 71, Ahmedabad 1978, pp. 563. ११. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गूर्जर कविओ, भाग १, नवीन संस्करण, संपादक डॉ० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ईस्वी, पृ० २२४-२२५. १२. वही, भाग २, पृ० १७५-१७७. १३. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४९. १४. जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २१७८. १५. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११३० १६. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १६३०. ८. Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोढगच्छ और मोढचैत्य निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से निष्पन्न गच्छों में मोढगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है मोढेरक [वर्तमान मोढेरा, उत्तर गुजरात] नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति हुई । इस गच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख धातु की दो प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में प्राप्त होता है। प्रथम लेख पार्श्वनाथ की त्रितीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री साराभाई मणिलाल नवाब ने इस लेख की वाचना दी है', जो कुछ सुधार के साथ इस प्रकार है : __ "श्रीचन्द्रकुले माढ [मोढ] गच्छे मुक्ति सामिहय श्रावको गोछी नमामि जिनत्रय।" द्वितीय लेख पार्श्वनाथ की अष्टतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ने इसकी वाचना इस प्रकार दी है: "ॐ श्रीचन्द्रकुले मोढगच्छेनिन्नट श्रावकस्य ।" उक्त दोनों लेखों में न तो प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख है और न ही उनकी प्रतिष्ठातिथि/ मिति आदि की चर्चा है। फिर भी उक्त प्रतिमाओं के प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन और लेख की लिपि के आधार पर इन्हें विक्रम सम्वत् की ११वीं शती का माना गया है। मोढगच्छ से सम्बद्ध तृतीय और अंतिम लेख वि० सं० १२२७ / ई० सन् ११६१ का है जो एक चतुर्विंशतिपट्ट पर उत्कीर्ण है । यह पट्ट आज मधुवन-सम्मेतशिखर स्थित जैन मंदिर में संरक्षित है। श्री पूरनचंद नाहर ने इस लेख की वाचना की है, जो इस प्रकार है : Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास "सं० १२२७ वैशाख सुदि ३ गुरौ नंदाणि ग्रामेन्या श्राविकया आत्मीय पुत्र लूणदे श्रेयोर्थं चतुर्विंशति पट्टः कारितः ॥ श्रीमोढगच्छे बप्पभट्टिसूरिसंताने जिनभद्राचार्यैः प्रतिष्ठितः ॥" __ इस लेख में मोढगच्छीय बप्पभट्टिसूरि के संतानीय अर्थात् उनकी परम्परा में हुए जिनभद्राचार्य का चतुर्विंशतिपट्ट के प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। मोढगच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत दो उल्लेख प्राप्त होते हैं। इनमें प्रथम साक्ष्य है वि० सं० १३२५ की कालिकाचार्यकथा की प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति - जिसमें मोढगुरु हरिप्रभसूरि का उल्लेख है। द्वितीय साक्ष्य है राजगच्छीय आचार्य प्रभाचन्द्रविरचित प्रभावकचरित [रचनाकाल वि० सं० १३३४ /ई० सन् १२७८] के अन्तर्गत "बप्पभट्टिसूरिचरित", जिसमें पाटला स्थित नेमिनाथजिनालय के नियामक के रूप में मोढगच्छीय सिद्धसेनसूरि का उल्लेख है।" प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी के अनुसार इस गच्छ के अनुयायी मुनिजन चैत्यवासी थे और वे जिनालयों से संलग्न उपाश्रयों में रहा करते थे । मोढेरा इनका प्रधान केन्द्र था । इसके अतिरिक्त पाटला, धंधूका, अणहिलपुरपत्तन और मांडल में भी इनके चैत्य थे। मोढेरा जैन तीर्थ के रूप में यथेष्ट प्राचीन समय से ही प्रसिद्ध रहा है । मोढब्राह्मण और मोढवणिक ज्ञाति की उत्पत्ति यहीं से हुई। यशोभद्रसूरिगच्छीय सिद्धसेनसूरिविरचित सकलतीर्थस्तोत्र [रचनाकाल ई० सन् १०७५ प्रायः] में जैनतीर्थस्थानों की सूचि में इस स्थान का उल्लेख है। प्रबन्धग्रन्थों में यहां स्थित महावीर स्वामी के जिनालय का उल्लेख प्राप्त होता है जो मोढ ज्ञाति का प्रधान चैत्य और संभवतः इस ज्ञाति से भी प्राचीन माना जाता है। प्रभावकचरित में बप्पभट्टसूरि द्वारा यहां दर्शनार्थ आने और सिद्धसेनसूरि द्वारा यहां वन्दन करने का Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोढगच्छ ११७७ उल्लेख है । पुरातनप्रबन्धसंग्रह के अनुसार वलभी के नगर देवता द्वारा वलभी भंग के समय वर्धमानसूरि को निर्देश दिया गया था कि साधुओं को जहां भिक्षा में प्राप्त क्षीर रुधिर हो जाये और फिर रुधिर से पुनः क्षीर हो जाये, वहीं उन्हें ठहर जाना चाहिए । इस प्रकार वे मोढेर में ठहरे । १ ११ १४ पाटला स्थित मोढचैत्य भी मोढेरा के महावीर - जिनालय की भांति ही प्राचीन रहा है । १२ यह जिनालय नेमिनाथ को समर्पित था । प्रभावकचरित के अनुसार यह चैत्य सिद्धसेनसूरि के आधिपत्य में था । १३ अचलगच्छीय महेन्द्रसूरि द्वारा रचित अष्टोत्तरीतीर्थमाला [ रचनाकाल - वि० सं० १२८७] के अनुसार कन्नौज के राजा आम ने इस जिनालय का निर्माण कराया था । वि० सं० १३६७ / ई० सन् १३११ में शंखेश्वरपार्श्वनाथ की यात्रा को जाते हुए खरतरगच्छीय आचार्य जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय' यहां पधारे थे । १५ वि० सं० १३७१ / ई० सन् १३१५ में आदिनाथ जिनालय के जीर्णोद्धार से लौटते हुए समराशाह शंखेश्वर और मांडली के साथ यहां भी दर्शनार्थ आये थे । १६ जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के ८४ तीर्थस्थानों की सूची में इस तीर्थ का उल्लेख किया है और यहां नेमिनाथ जिनालय होने की बात कही है । गुजरात पर मुस्लिम आक्रमण के समय यहां स्थित जिनालय को भी क्षति उठानी पड़ी किन्तु खरतरगच्छीय अनुयायियों तथा समराशाह में यहां आने के पूर्व ही वह पुन: अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त कर चुका था । १८ खरतरगच्छीय विनयप्रभसूरि [ई० सन् १३७५ ] और रत्नाकरगच्छीय जिनतिलकसूरि [ई० सन् १५वीं शती का अंतिम चरण ] ने भी यहां स्थित नेमिनाथ जिनालय का उल्लेख किया है । १७ १९ मोढज्ञाति का तीसरा चैत्य धंधूका में था जो मोढसहिका के नाम से जाना जाता था । पूर्णतल्लगच्छीय आचार्य देवचन्द्रसूरि की अपने भावी शिष्य चांगदेव [हेमचन्द्राचार्य ] से यहीं भेंट हुई थी । आख्यानकमणिकोश [ रचनाकाल वि० सं० १२ वी शती / ई० सन् ११-१२ वी शर्ती ] २० Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास की प्रशस्ति में भी इस चैत्य का उल्लेख प्राप्त होता है ।२१ तपागच्छीय जिनहर्षगणि द्वारा रचित वस्तुपालचरित [रचनाकाल वि० सं० १४९७/ई० सन् १४४१] के अनुसार तेजपाल ने इस जिनालय के रंगमण्डप का जीर्णोद्धार कराया था।२२ प्रभावकचरित के अनुसार अणहिलपुरपत्तन में भी एक मोढचैत्य था जिसमें बप्पभट्टिसूरि द्वारा जिनप्रतिमा प्रतिष्ठापित की गयी थी।२३ मण्डली [वर्तमान मांडल] में भी वस्तुपाल के समय एक मोढचैत्य था । वस्तुपालचरित के अनुसार उसने [या उसके लघुभ्राता ने] यहां मूलनायक की प्रतिमा निर्मित करायी थी।४।। जैसा कि यहां पीछे कहा जा चुका है कि मोढवणिक ज्ञाति भी मोढेरा से ही अस्तित्व में आयी । वि० सं० की ११ वीं शती के प्रारम्भ से वि० सं० की १७वीं तक के कई शिलालेखों और ग्रन्थों की दाताप्रशस्तियों में इस ज्ञाति का उल्लेख है, जिससे ज्ञात होता है कि इस ज्ञाति के श्रावक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों में बंटे हुए थे । १६वीं शती में श्रीमद्वल्लभाचार्य के प्रभाव से अनेक मोढ परिवारों ने वैष्णव धर्म स्वीकार कर लिया । १७वीं शती में श्वेताम्बर आम्नाय में लोंकाशाह का उदय हुआ, इनके द्वारा उद्भूत लोकांगच्छ से निकले अमूर्तिपूजक स्थानकवासी सम्प्रदाय में भी अनेक मोढ परिवार दीक्षित हो गये । आज भी पश्चिमी भारत और मध्यभारत में हजारों मोढ परिवार विद्यमान हैं जो वैष्णव और स्थानकवासी परम्परा से सम्बद्ध हैं ।२५ मोढ ज्ञाति द्वारा अपने परम्परागत धर्म के परिवर्तन के परिणामस्वरूप न केवल मोढचैत्य और मोढगच्छ बल्कि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय भी समाप्त हो गया। संदर्भसूची: Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोढगच्छ १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ११७९ Sarabhai Manilal Navab, The Jaina Tirthas in India and Their Architecture, Ahmedabad 1944, p. 28. Umakant P. Shah, Akota Bronzes, Bombay 1959, p.60. पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, कलकत्ता १९२७ ईस्वी, लेखांक १६९४. C. D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Mss in the Jaina Bhandars at Pattan, G. O. S. No. 73, Baroda 1937 A. D., P.201. मुनि जिनविजय (संपा० ), प्रभावकचरित, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक - १३, अहमदाबाद- कलकत्ता १९४० ई०, पृ० ८०. M. A. Dhaky, ``Modhera, Modha-Vamsa, Modha - Gaccha and Modha-Caityas" Journal of the Asiatic Society of Bombay, Vol. 56-59 / 1981-84, New Series, Bombay 1986, pp. 153-154. Ibid, 150-152. दलाल, पूर्वोक्त, पृष्ठ १५६-५७. ढांकी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १५२. ८. ९. १०. प्रभावकचरित, पृष्ठ ८०-८१. ११. मुनि जिनविजय संपा०, पुरातनप्रबन्धसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २, कलकत्ता १९३६ ई०, पृष्ठ ८३. १२. ढांकी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १५२. १३. प्रभावकचरित, पृष्ठ ८०. १४. विधिपक्षगच्छस्य पंचप्रतिक्रमण सूत्राणि [वि० सं० १९८४ ] के अन्तर्गत प्रकाशित. १५. मुनि जिनविजय- (संपा०) खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली, सिंघी जैन ग्रन्थमालाग्रन्थांक ४२, बम्बई १९५६ ई०, पृष्ठ ६३ और ७९. १६. मण्डलि होईउ पाडलए नमियऊ ए । नमियऊ ए नमियऊ नेमि सु जीवतसामि ॥ १२.५ समरारासु रचनाकार-निर्वृत्तिगच्छीय अम्बदेवसूरि, रचनाकाल वि० सं० १३७१ / ई० सन् १३१५ C.D. Dalal, Pracina Gurjara Kavyasangraha, Baroda 1978 A.D. pp. 27-38. Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ११८० १७. मुनि जिनविजय - संपा०, विविधतीर्थकल्प, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १०, शान्तिनिकेतन १९३४ ई०, पृष्ठ ८६. १८. ढांकी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १५२. १९. वही २०. अन्यदा मोढचैत्यान्तः प्रभूणां चैत्यवन्दनम् । "हेमचन्द्रसूरिचरितम् " प्रभावकचरित, पृष्ठ १८३. . देवचन्द्राचार्येषु धन्धुक्कके श्रीमोढवसहिकायां देवनमस्करणाय प्राप्तेषु... । "कुमारपालादिप्रबन्ध", प्रबन्धचिंतामणि (संपा० ) मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १, शांतिनिकेतन १९३३ ई०, पृ० ८३. २१. सीमन्धरजिनबिम्बं रमणीये मोढचैत्यगृहे ॥ २० ॥ ५, मुनि पुण्यविजय (संपा०) आख्यानकमणिकोशः, प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थांक वाराणसी ११६२ ई०, प्रशस्ति, पृष्ठ ३६९-७०. २२. श्रीमोढवसतौ रङ्गमण्डपं विशदाश्मभिः । २३. तेज:पालो व्यधान्नव्यं, दिव्यपाञ्चालिकान्वितम् ॥ ३, ५२ वस्तुपालचरित, श्री शान्तिसूरि जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५, अहमदाबाद १९४१ ई०, पृष्ठ ८७. श्रीपत्तनान्तरा मोढचैत्यान्तर्लेच्छभङ्गतः । पूर्वमासीत् तमैक्षन्त तदानीं तत्र धार्मिकाः || ६५९ ॥ द्वापंचाशत् प्रबन्धाञ्च कृतास्तारागणादयः । श्रीबप्पभट्टिना शैक्षकविसारस्वतोपमाः ॥ ६६० ॥ "बप्पभट्टिसूरिचरितम् " प्रभावकचरित, पृष्ठ १०७. २४. असावादिजिनेन्द्रस्य, मण्डल्यां वसतिं व्यधात् । मोढार्हद्वसतौ मूलनायकं च न्यवीविशत् ॥ ८, ६४ वस्तुपालचरित, पृष्ठ १३४. २५. यह सूचना प्रो० सागरमल जैन से प्राप्त हुई है, जिसके लिये लेखक उनका हृदय से आभारी है। Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशोभद्रसूरिगच्छ निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । इस कुल से समय-समय पर अस्तित्व में आये विभिन्न गच्छों में यशोभद्रसूरिगच्छ भी एक है। यशोभद्रसूरि जिनके नाम पर इस गच्छ का नामकरण हुआ, इसके आदिम आचार्य माने जा सकते जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, यशोभद्रसूरि के पश्चात् उनकी शिष्य-सन्तति यशोभद्रसूरिगच्छ के नाम से जानी गयी होगी। इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो साक्ष्य मिलते हैं। उनमें से प्रथम साक्ष्य है सिद्धसेनसूरि (पूर्व नाम साधारण कवि) द्वारा वि० सं० ११२३/ ई० सन् १०६७ में रची गयी विलासवई (विलासवती) नामक कृति की प्रशस्ति । इसके अनुसार वाणिज्यकुल, कोटिकगण और वज्रशाखा के अन्तर्गत चन्द्रकुल प्रसिद्ध हुआ जिसमें अनेक प्रसिद्ध आचार्य और मुनिजन हुए । प्रसिद्ध जैनाचार्य बप्पभट्टिसूरि इसी गच्छ के थे। इनकी परम्परा में आगे चलकर यशोभद्रसूरि नामक आचार्य हुए । उनके नाम पर उनकी शिष्य-सन्तति यशोभद्रसूरिगच्छीय कहलायी । आगे चलकर शांतिसूरि इस गच्छ के नायक बने । मथुरा के आस-पास के क्षेत्रों पर उनका बड़ा प्रभाव था । उनके पट्टधर यशोदेवसूरि हुए । इन्हीं के शिष्य सिद्धसेनसूरि अपरनाम साधारणकवि ने वि० सं० ११२३ में अपभ्रंश भाषा में विलासवइ नामक कृति की रचना की । इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि कवि ने गोपगिरि (वर्तमान ग्वालियर) के निवासी भिल्लमालकुल के साहु लक्ष्मीधर की प्रार्थना पर उक्त कृति की रचना की । प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने यद्यपि Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास स्वयं को विभिन्न स्तुतियों - स्तोत्रों का भी रचयिता बतलाया है फिर भी उनमें से मात्र एक स्तोत्र सकलतीर्थस्तोत्र - को छोड़कर अन्य कृतियां आज नहीं मिलती। इस गच्छ से सम्बद्ध द्वितीय और अंतिम साक्ष्य है वि० सं० १२१४ का एक लेख जो महावीर मुछाला चैत्य में एक पवासणा पर उत्कीर्ण है। इस अभिलेख में इस गच्छ के प्रीतिसूरि का नाम मिलता है। इसके बारे में कोई अन्य सूचना प्राप्त नहीं होती। उक्त साक्ष्यों से इस गच्छ के मुनिजनों का जो क्रम निश्चित होता है, वह निम्नानुसार है : कोटिकगण, वज्रशाखा और चन्द्रकुल बप्पभट्टिसूरि [गोपगिरि नरेश आम (नागभट्ट 'द्वितीय') के समकालीन] यशोभद्रसूरि शांतिसूरि यशोदेवसूरि साधारणकवि अपरनाम सिद्धसेनसूरि Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८३ यशोभद्रसूरिगच्छ [वि० सं० ११२३ /ई० स० १०६७ में विलासवई के रचनाकार] प्रीतिसूरि [वि० सं० १२१४ के अभिलेख में उल्लिखित] विलासवई की प्रशस्ति में चूंकि बप्पभट्टसूरि के पश्चात् यशोभद्रसूरि नाम आया है, अतः यह माना जा सकता है कि उनके बाद ही यशोभद्रसूरि हुए होंगे । बप्पभट्टिसूरि का काल ई० सन् की आठवीं-नवीं शताब्दी सुनिश्चित है, अत: यह कहा जा सकता है कि यशोभद्रसूरि ई० स० की नवीं-दसवीं शती के आसपास हुए होंगे। इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की दुर्लभता को दृष्टिगत रखते हुए यह कहा जा सकता है कि चन्द्रकुल से उद्भूत अन्यान्य गच्छों की तुलना में इस गच्छ का प्रभाव तथा प्रचार-प्रसार अत्यन्त सीमित रहा । सिद्धसेनसूरि के पश्चात् और प्रीतिसूरि के पूर्व (लगभग एक सौ वर्षों तक) इस गच्छ में हुए मुनिजनों के नामादि के सम्बन्ध में कोई जानकारी आज उपलब्ध नहीं है। प्रीतिसूरि का भी उल्लेख केवल एक लेख में मिलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ईस्वी सन् की १२वीं शताब्दी के मध्य भाग तक इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व तो रहा, परन्तु इससे जुड़े हुए श्रमणों और श्रावकों की संख्या प्रायः नगण्य ही रही होगी और उनमें भी कोई प्रभावशाली या विद्वान् मुनि नहीं हुआ जो सिद्धसेनसूरि द्वारा प्रारम्भ किये गये साहित्य सृजन के कार्य को आगे बढ़ा सके। Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास संदर्भ सूची: १. विलासवईकहा - संपा० रमणलाल म० शाह, लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला, अहमदाबाद १९७७ ईस्वी. २. वही, पृष्ठ १६५. रमणलाल म० शाह - सम्बोधि, वर्ष ७, अंक १-४, पृ० ९५-१००. ४. दौलत सिंह लोढ़ा - श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३२४. Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) से समय-समय पर अनेक गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ । राजगच्छ भी उनमें से एक है। यह गच्छ ११वीं शताब्दी के प्रारम्भ के लगभग अस्तित्व में आया । इस गच्छ में प्रद्युम्नसूरि, अभयदेवसूरि, धनेश्वरसूरि, पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि, सिद्धसेनसूरि, माणिक्यचन्द्रसूरि, मानतुंगसूरि, प्रभाचन्द्रसूरि आदि प्रखर विद्वान् एवं प्रभावक आचार्य हुए। राजगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित ग्रन्थों की प्रशस्तियों एवं इस गच्छ की एकमात्र उपलब्ध पट्टावली का उल्लेख किया जा सकता है। इनमें ग्रन्थ प्रशस्तियां पट्टावली से प्राचीनतर होने के कारण ज्यादा प्रामाणिक हैं। ग्रन्थ प्रशस्तियों की भांति इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं एवं जिनालयों में उत्कीर्ण अभिलेख भी, जो कि अल्प संख्या में मिले हैं, उतने ही प्रामाणिक हैं । अध्ययन की सुविधा के लिये यहां सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। राजगच्छीय आचार्यों की प्रमुख रचनाओं की प्रशस्तियों में प्राप्त गुर्वावली का अलग-अलग विवरण इस प्रकार है : सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति - राजगच्छीय आचार्य शीलभद्रसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि' (द्वितीय) ने वि० सं० ११७१/ई० सन् १११५ में उक्त कृति की रचना की । इसकी प्रशस्ति में अपनी गुरु-परम्परा का उन्होंने Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : धनेश्वरसूरि (प्रथम) अजितसिंहसूरि (प्रथम) (विश्रान्तविद्याधर के रचनाकार) वर्धमानसूरि शीलभद्रसूरि अजितसिंहसूरि (द्वितीय) धनेश्वरसूरि (द्वितीय) (वि० सं० ११७१ / ई० सन् १११५ में सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति के रचनाकार) पार्श्वदेवगणि प्रवचनसारोद्धारटीका - राजगच्छ के देवप्रभसूरि के शिष्य एवं पट्टधर सिद्धसेनसूरि ने वि० सं० १२७८/ई० सन् १२२२ में प्रवचनसारोद्धार पर टीका की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : अभयदेवसूरि धनेश्वरसूरि अजितसिंहसूरि (प्रथम) Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ ___११८७ वर्धमानसूरि देवसूरि चन्द्रप्रभसूरि भद्रेश्वरसूरि अजितसिंहसूरि (द्वितीय) देवप्रभसूरि सिद्धसेनसूरि [वि० सं० १२७८ / ई० सन् १२२२ में प्रवचनसारोद्धार पर टीका के रचनाकार] श्रेयांसचरित - राजगच्छीय आचार्य शीलभद्रसूरि के शिष्य सर्वदेवसूरि की परम्परा में मानतुंगसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १३३२ /ई० सन् १२७६ में संस्कृत भाषा में श्रेयांसचरित की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : शीलभद्रसूरि सर्वदेवसूरि चन्द्रप्रभसूरि जिनेश्वरसूरि Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास रत्नप्रभसूरि | मानतुंगसूरि प्रभावकचरित - राजगच्छ के आचार्य चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य प्रभाचन्द्रसूरि ने वि० सं० १३३४ / ई० सन् १२७८ में उक्त महत्त्वपूर्ण कृति की रचना की । इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपने गच्छ को विस्तृत गुर्वावली दी है, जो इस प्रकार है : प्रद्युम्नसूरि I अभयदेवसूरि 1 धनेश्वरसूरि | अजितसिंहसूरि T वर्धमानसूरि [वि० सं० १३३२ / ई० सन् १२७६ में श्रेयांसचरित के रचनाकार ] T शीलभद्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि भरतेश्वरसूरि धर्मघोषसूरि सर्वदेवसूरि पूर्णभद्रसूरि I जिनेश्वरसूरि जिनदत्तसूरि पद्मदेवसूरि Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ ११८९ चन्द्रप्रभसूरि प्रभाचन्द्रसूरि [वि० सं० १३३४ । ई० सन् १२७८ में प्रभावकचरित के रचनाकार] __ जैसा कि पूर्व में हम देख चुके हैं धनेश्वरसूरि (द्वितीय) ने सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति की प्रशस्ति में राजगच्छीयगुर्वावली का प्रारम्भ धनेश्वरसूरि (प्रथम) से और विजयसिंहसूरि, देवप्रभसूरि एवं सिद्धसेनसूरि द्वारा उल्लिखित ग्रन्थप्रशस्तियों में राजगच्छीयगुर्वावली अभयदेवसूरि से प्रारम्भ हुई है । इसके विपरीत माणिक्यचन्द्रसूरि और प्रभाचन्द्रसूरि ने अपने-अपने ग्रन्थप्रशस्तियों में अभयदेवसूरि के गुरु प्रद्युम्नसूरि को राजगच्छ का आदिम आचार्य बतलाया है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार अभयदेवसूरि ने सन्मतितर्क की तत्त्वबोधविधायिनीटीका की प्रशस्ति में आचार्य प्रद्युम्नसूरि को अपना गुरु बतलाया है। अभयदेवसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि के समय से ही चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) की यह शाखा राजगच्छ के नाम से विख्यात हुई । इसी कारण उत्तरकालीन राजगच्छीय ग्रन्थकार आचार्य अभयदेवसूरि और उनके गुरु प्रद्युम्नसूरि को राजगच्छ का आदिम आचार्य मानते हैं। उपरोक्त ग्रन्थप्रशस्तियों की गुर्वावलियों से यह भी स्पष्ट होता है कि वर्धमानसूरि के समय तक इस गच्छ में कोई शाखा भेद नहीं हुआ था, परन्तु उनके शिष्यों शीलभद्रसूरि और देवभद्रसूरि (प्रथम) से राजगच्छ की अलग-अलग शाखायें अस्तित्व में आयीं । देवप्रभसूरि की परम्परा में Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चन्द्रप्रभसूरि, भद्रेश्वरसूरि, अजितसिंहसूरि (द्वितीय), देवप्रभसूरि (द्वितीय), सिद्धसेनसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, वीरदेवगणि आदि आचार्य हुए। जहां तक शीलभद्रसूरि की शिष्य परम्परा का प्रश्न है धनेश्वरसूरि (द्वितीय) ने सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति की प्रशस्ति में शीलभद्रसूरि को अपना गुरु तथा अजितसिंहसूरि (द्वितीय) को अपना गुरु-भ्राता और पार्श्वदेवगणि को अपना शिष्य बतलाया है । माणिक्यचन्द्रसूरि ने पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति में शीलभद्रसूरि के केवल एक शिष्य भरतेश्वरसूरि के साथ-साथ श्रीचन्द्रसूरि, धर्मघोषसूरि और सर्वदेवसूरि का शीलभद्रसूरि के शिष्य के रूप में उल्लेख किया है। मानतुंगसूरि विरचित श्रेयांसनाथचरित की प्रशस्ति में भी शीलभद्रसूरि के शिष्य सर्वदेवसूरि का नाम आया है। इस प्रकार हमें शीलभद्रसूरि के ६ शिष्यों का उल्लेख मिल जाता है । यहाँ एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि धनेश्वरसूरि ने अपने ग्रन्थ की प्रशस्ति में पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि को अपना शिष्य बतलाया है। श्रीचन्द्रसूरि ने भी स्वरचित ग्रन्थों में धनेश्वरसूरि का अपने गुरु के रूप में सादर उल्लेख किया है। किन्तु आबू स्थित विमलवसही के वि० सं० १२०६/ई० सन् ११५० में मंत्रीश्वर पृथ्वीपाल द्वारा कराये गये जीर्णोद्धार सम्बन्धी लेख में श्रीचन्द्रसूरि को शीलभद्रसूरि का शिष्य बतलाया गया है। इस तथ्य का स्पष्टीकरण इस प्रकार है : श्रीचन्द्रसूरि को आचार्य पद प्राप्त होने से पूर्व गणि अवस्था में पार्श्वदेव नाम था। ऐसा प्रतीत होता है कि शीलभद्रसूरि ने इन्हें गणि पद प्रदान किया होगा और बाद में धनेश्वरसूरि ने इन्हें आचार्यपद दिया, संभवतः इसी कारण इन्होंने धनेश्वरसूरि को अपना गुरु कहा है। धनेश्वरसूरि (द्वितीय) और उनके गुरुभ्राता अजितसिंहसूरि (द्वितीय) के बारे में कोई अन्य सूचना नहीं मिलती। शीलभद्रसूरि के शेष चार शिष्यों पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि, भरतेश्वरसूरि, धर्मघोषसूरि और सर्वदेवसूरि की शिष्यसन्तति आगे चली। श्रीचन्द्रसूरि की परम्परा में प्रभाचन्द्रसूरि और Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ ११९१ भरतेश्वरसूरि की परम्परा में माणिक्यचन्द्रसूरि हुए । धर्मघोषसूरि की शिष्यसंतति उनके नाम पर धर्मघोषगच्छ के नाम से विख्यात हुई ।१° सर्वदेवसूरि की परम्परा में मानतुंगसूरि हुए। ___अज्ञातकृतक राजगच्छपट्टावली १ जो १६वीं शती में रची गयी प्रतीत होती है, में नन्नसूरि को इस गच्छ का आदिम आचार्य कहा गया है। उनके पट्ट पर अजित-यशो-वादि सूरि हुए, जिनके पट्ट पर सर्वदेवसूरि आसीन हुए । सर्वदेवसूरि के पट्टधर प्रद्युम्नसूरि और उनके पश्चात् अभयदेवसूरि आदि वही नाम दिये गये हैं, जो ग्रन्थप्रशस्तियों में आ चुके राजगच्छीयपट्टावली और ग्रन्थप्रशस्तियों में यह अन्तर क्यों हैं ! इस पट्टावली से तो यही लगता है कि धनेश्वरसूरि, विजयसिंहसूरि, देवप्रभसूरि, माणिक्यचन्द्रसूरि, सिद्धसेनसूरि, मानतुंगसूरि, प्रभाचंद्रसूरि आदि ने अपने ग्रन्थप्रशस्तियों की गुर्वावली में उक्त प्रथम तीन नामों को विस्तृत कर दिया है। अब यह प्रश्न उठता है कि वस्तुतः ये तीन नाम छोड़ दिये गये हैं या पट्टावलीकार ने इसे भ्रमवश कहीं से उठा कर जोड़ दिया है ! इसके स्पष्टीकरण के लिये हमें अन्यत्र प्रयास करना होगा। वडगच्छीय आचार्य नेमिचन्द्रसूरि विरचित उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधावृत्ति [रचनाकाल वि० सं० ११४३/ई० सन् १०८७] की वि० सं० १३०७ /ई० सन् १२५१ में लिखी गयी प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति में सर्वप्रथम नन्नसूरि का नाम आता है । उनके पश्चात् अमित यश वाले वादिसूरि हुए, जिनके पट्ट पर प्रद्युम्नसूरि विराजित हुए । यहां तक राजगच्छपट्टावली और उक्त प्रशस्ति की गुर्वावली में साम्य है, अन्तर केवल इतना ही है कि राजगच्छीयपट्टावली में उल्लिखित अजितयशोवादि के स्थान पर अमितयशोवादि नाम दिया गया है। प्रो० एम० ए० ढांकी का मत है कि राजगच्छीयपट्टावली में उल्लिखित अजित-यशो-वादि वस्तुत: उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास की वि० सं० १३०७/ई० सन् १२५१ में लिखी गयी प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति में उल्लिखित अमितयशोवादि अर्थात् अपरिमित यशवाले वादिसूरि होना चाहिए, क्यों कि प्रतिलिपिकार की भूल से 'अमित' के स्थान पर 'अजित' अर्थात् 'म' के स्थान पर 'ज' हो जाना कठिन नहीं हैं। संभवतः राजगच्छपट्टावली के रचनाकार की दृष्टि में उक्त दाताप्रशस्ति आयी होगी और उन्होंने इसमें प्रद्युम्नसूरि का नाम देखकर गच्छवैभिन्य की उपेक्षा करते हुए प्रद्युम्नसूरि के पूर्व में आचार्यों के नामों को अपने गच्छ की गुर्वावली में सम्मिलित कर लिया होगा। प्रो० ढांकी का उक्त कथन सत्य प्रतीत होता है, क्यों कि अन्य गच्छ या आम्नाय के प्रसिद्ध आचार्यों को अपने ही गच्छ या आम्नाय से सम्बद्ध करने का यह एकमात्र उदाहरण नहीं हैं। इसी प्रकार राजगच्छपट्टावली में धर्मघोषगच्छ के आचार्यों को भी राजगच्छीय ही बतलाया गया है । वस्तुतः राजगच्छीय धर्मघोषसूरि के मृत्योपरान्त उनकी शिष्य-सन्तति धर्मघोषगच्छीय कहलाने लगी और उसका स्वतंत्र अस्तित्व प्रमाणित है । अतः भ्रामक विवरणों से युक्त राजगच्छ की एकमात्र उपलब्ध पट्टावली की प्रामाणिकता संदिग्ध है। जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है; राजगच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेख भी प्राप्त होते है, जो वि० सं० ११२८ से वि० सं० १५१० तक के हैं, तथापि इनकी संख्या अल्प ही हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : १- + (व) त + ११ (२?) ८ फाल्गुन सुदि ९ सोमे आरासणाभिधाने स्थाने तीर्थाधिपस्य वीरस्य प्रतिमा [+] + + + + राज्ये कारिता + + + + + ज रा [ज] गच्छे श्री.... यह लेख न केवल राजगच्छ से सम्बद्ध है, बल्कि उस गच्छ के उपलब्ध लेखों में सबसे प्राचीन भी है।१५ २.-सं. १२०६ श्रीशीलचन्द्रसूरीणां शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः । विमलादिसुसंघेन, युतैस्तीर्थमिदं स्तुत [तं] ॥ १ ॥ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ __११९३ अयं तीर्थसमुद्धारो-त्यमुतोऽकारि धीमता । श्रीमदानन्दपुत्रेण, श्रीपृथ्वीपालमंत्रिणा ॥ २ ॥ विमलवसही - देहरी संख्या १४ पर उत्कीर्ण लेख राजगच्छ से सम्बद्ध ४ शिलालेख वि० सं० १२१२ माघ सुदि १० बुधवार के हैं, जो विमलवसही से ही प्राप्त हुए हैं । मुनि कल्याणविजय ने इनकी वाचना इस प्रकार दी है:१७ संवत् १२१२ माघ सुदि १० दशम्यां बुधे महं. ललितांग महं० शीतयोः पुत्रेण ठ० पद्मसिंहेनात्मीय ज्येष्ठभ्रातृ ठ० नरवाहण श्रेयो) श्रीमदजितनाथबिंबंमुर्बदे कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशीलभद्र सूरिशिष्य श्रीभरतेश्वराचार्यशिष्यैः श्रीवैरस्वामिसूरिभिरिति ॥ देहरी क्रमांक ४८, आबू संवत् १२१२ माघ सुदि बुधे १० ठ० अमरसेण ठ० वैजल देव्योः पुत्रेण महं० श्री जज्जुकेन महं० जासुकाकुक्षिससमुद्भूतस्वसुत ठ० कुमरसिंहश्रेयोऽर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबमर्बुदे कारितं ॥ प्रतिष्ठितं च श्रीशीलभद्रसूरिशिष्य श्रीभरतेश्वराचार्यशिष्यैः श्रीवैरस्वामिसूरिभिः । देहरी क्रमाकं ४९, आबू संवत १२१२ माघ सुदि १० महं. श्री जजुक भार्यया महं० जासुकया श्रेयोऽर्थं चतुर्विंशतिपट्टकोऽर्बुदे कारितः प्रतिष्ठतश्च श्रीवैररस्वामिसूरिभिरिति ॥ देहरी क्रमांक ४९, आबू सं० १२१२ माघ सुदि दशम्यां बुधे महामात्य श्रीमदानन्द महं० श्री सलूणयोः पुत्रेण ठ० श्री नानाकेन ठ० श्री त्रिभुवन देवीकुक्षिसमुद्भूत स्वसुतदंडश्री नागार्जुन श्रे०.. .......... कारितं, प्रतिष्ठितं च श्री शीलभद्र सूरि शिष्यश्री भरतेश्वराचार्य शिष्यैः श्रीवैरस्वामिसूरिभिरिति ॥ देहरी क्रमांक ५३, आबू Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त अभिलेखों में उल्लिखित शीलभद्रसूरि, भरतेश्वरसूरि और उनके शिष्य वैरस्वामी माणिक्यचन्द्रसूरि द्वारा रचित पार्श्वनाथचरित (रचनाकाल वि० सं० १२७६/ई० सन् १२२०) की प्रशस्ति में उल्लिखित शीलभद्रसूरि, उनके शिष्य भरतेश्वरसूरि तथा उनके पट्टधर वैरस्वामी से निश्चय ही अभिन्न गिरनार स्थित नेमिनाथ जिनालय के उत्तरी द्वार पर उत्कीर्ण एक खंडित अभिलेख में भी शीलभद्रसूरि के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि का उल्लेख मिलता है। प्रो० एम० ए० ढाकी" ने इस लेख को वि० सं० १२०६ या वि० सं० १२१६ का बतलाया है। राजगच्छ से सम्बद्ध दो लेख वि० सं० की १४ वीं शती के हैं। प्रथम लेख वि० सं० १३२६ का है। बुद्धिसागरसूरि ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है। सं० १३२६ वर्षे माघ वदि २ रवौ ठं मलहाकेन पितृयशश्रेयसे श्री आदिनाथबिंबं कारि० श्रीराजगच्छे श्रीमाणिक्यसूरि शिष्य श्रीहेमसूरिभिः द्वितीय लेख वि० सं० १३९ (?) का है। श्री अगरचन्द नाहटा ने इस लेख की वाचना की है, जो इस प्रकार है: संवत् १३९ () वैशाख सुदि ३ बुधे प्राग्वाटज्ञातीय महं० ससुपाल श्रेयार्थं महं० कविराजेन श्रीपार्श्व बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं राजगच्छीय श्रीमाणिक्यसूरि शिष्य श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः ॥ राजगच्छ से सम्बद्ध अगला लेख वि० सं० १४१० का है। बुद्धिसागरसूरि ने इसकी वाचना निम्नानुसार दी है : सं. १४१० वर्ष माघ वदि ६ बुधे .................... मरसीहेन स्वपितुः सा०............ ............. ) श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठतं श्रीपद (?) मसूरिसंताने श्रीराजगच्छे श्रीहरिभद्रसूरिभिः ॥ वि० सं० १४२० के लेख में भी राजगच्छीय हरिभद्रसूरि का Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ ११९५ प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है।२२लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : सं० १४२० वैशाख सुदि १० शुक्रे उपकेशज्ञातीय ........ पितृमातृपूर्वज .................... श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठित श्रीहेमसूरिसंताने श्रीहरिभद्रसूरिभिः ॥ इस लेख में उल्लिखित हरिभद्रसूरि के गुरु हेमचन्द्रसूरि वही व्यक्ति है जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें वि० सं० १३२६ और १३९ (?) की प्राप्त हुई हैं। माणिक्यसूरि हेमचन्द्रसूरि वि० सं० १३२६ और १३९ (?) (प्रतिमालेख) हरिभद्रसूरि वि० सं० १४१० - १४२० (प्रतिमालेख) राजगच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० १४३८/ई० सन् १३७२ का भी है जो धर्मनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। बुद्धिसागरसूरि ने इस लेख का पाठ इस प्रकार दिया है । २३ सं० १४३८ वर्षे ज्येष्ठ व० ४ शनौ प्राग्वाट व्य० मोषट भा० सोमलदे पु० झांझणेन पित्रोः श्रेयसे श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० श्रीगुणसागरसूरिपट्टे श्रीमलयचन्द्रसूरिणामुपदेशेन ॥ प्रतिष्ठास्थान-सुमतिनाथमुख्यबावन जिनालय, मातर यद्यपि इस लेख में राजगच्छ का उल्लेख नहीं है किन्तु वि० सं० १४९१ /ई० सन् १४३५ के एक लेख से, जो राजगच्छ से सम्बद्ध है, यह स्पष्ट हो जाता है कि गुणसागरसूरि और उनके पट्टधर मलयचन्द्रसूरि राजगच्छ से ही सम्बद्ध थे। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : श्रीमन्नृपविक्रमसमयातीतसंवत् १४९१ आषाढ़ादि ९२ वर्षे शाके १३५७ प्रवर्त्तमाने मार्गशीर्षशुक्लत्रयोदश्यां १३ तिथौ शनिवारे कृत्तिकायां Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास घड़ी ३८ अपरांतरोहिणीनक्षत्रे सिद्धियोगे रात्रिघ० १२ समये सिंहलग्ने वहमानेऽस्यां शुभग्रहावलोकितकल्याणवतीवेलायां श्रीराजगच्छे श्रीराजप्रभुगुरुसंताने श्रीहेमप्रभसूरिसंताने श्रीहरिप्रभसूरिपट्टे श्रीभट्टारकसंताने श्रीमेरुचन्द्रसूरिजीवितस्वामिमूर्तिः ॥ चिरं जयतु शुभं भवतु ॥ (दाहिने हाथ) श्रीमलयचंद्रसूरिमूर्तिरियं ।। (बायें हाथ) श्रीमुनितिलकसूरिमूर्तिरियं ।। प्राप्तिस्थान - चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, खंभात । राजगच्छ से सम्बद्ध अगलालेख वि० सं० १५०३ का है जो पार्श्वनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं दिया गया है। वि० सं० १५०४२५ और १५०९२६ के दो लेख भी राजगच्छ से सम्बद्ध हैं । ये लेख कुंथुनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । महोपाध्याय विनयसागर जी ने इनकी वाचना इस प्रकार दी है : सं० १५०४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे उसिवालज्ञातीय । सुराणागोत्रे । सा० लखणा भा० लखणश्री पु० सा० सकर्मण सा० शिवरामेन श्रीकुन्थुनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितं प्रतिष्ठितं श्रीराजगच्छे । भट्टारिक श्रीपद्माणंदसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ प्रतिष्ठास्थान-पंचायती मंदिर, जयपुर सं० १५०९ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे ओसवालज्ञातीय सुराणागोत्रे सा० लखमण भा० लखणश्री पु० सा० सकर्मण भा० सावराजेन श्रीकुन्थुनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितं प्रतिष्ठितं श्रीराजगच्छे । भट्टारक श्रीपद्मानन्दसूरिभिः ॥ श्री ॥ प्रतिष्ठास्थान-पूर्वोक्त उक्त दोनों लेखों में न केवल एक ही माह, तिथि और वार का उल्लेख है बल्कि दोनों ही कुन्थुनात की चौबीसी पर उत्कीर्ण और पंचायती मंदिर, जयपुर में रखी बतलायी गयी हैं। साथ ही इन्हें बनवाने वाले Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ ११९७ श्रावक-श्राविका और प्रतिष्ठापक आचार्य भी एक ही हैं, अन्तर केवल प्रतिष्ठावर्ष का है। ऐसी परिस्थिति में यह प्रश्न उठता है कि क्या ये दोनों लेख कुन्थुनाथ की अलग-अलग दो चौबीसी पट्ट पर उत्कीर्ण हैं या एक ही चौबीसी का लेख है जिसका संग्रहकार ने भ्रमवश दो बार पाठ ले लिया और उनको दोनों वाचनाओं में किन्ही अज्ञात कारणों से प्रतिष्ठावर्ष के पाठ में भेद आ जाने से यह गड़बड़ी उत्पन्न हो गयी, यह विचारणीय है। राजगच्छ का उल्लेख करने वाला एक लेख वि० सं० १५१० का भी है, परन्तु इसमें प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम मिट गया है। लेख का मूल पाठ इस प्रकार है : संवत् १५१० वर्षे वैशाख वदि १३ सोमे.......श्रीसंघ श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीराजगच्छे ..... उसूरिभिः ॥ राजगच्छ के प्रमुख आचार्यों और ग्रन्थकारों का परिचय इस प्रकार है: प्रद्युम्नसूरिः श्वेताम्बर जैन परम्परा में प्रद्युम्नसूरि नाम के कई विद्वान् मुनि और आचार्य हो चुके हैं । विवेच्य प्रद्युम्नसूरि चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) की एक शाखा राजगच्छ के प्रथम आचार्य धनेश्वरसूरि(प्रथम) के दादागुरु थे। माणिक्यचन्द्रसूरि कृत पार्श्वनाथचरित, प्रभाचन्द्रसूरि कृत प्रभावकचरित और चन्द्रगच्छीय प्रद्युम्नसूरि कृत समरादित्यसंक्षेप आदि ग्रन्थों से इनके बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है जिसके अनुसार इन्होंने अल्लू की राजसभा में दिगम्बरमतावलम्बियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया एवं सपादलक्ष तथा त्रिभुवनगिरि के राजाओं को जैन धर्म में दीक्षित किया । अल्लू को नागदा के गुहिलशासक भर्तृपट्ट के पुत्र अल्लट (वि० सं० १००८-२८ /ई० सन् ९५२-७२) से समीकृत किया जा सकता है। प्रद्युम्नसूरि के बारे में विशेष विवरण का अभाव है। इनके शिष्य और पट्टधर अभयदेवसूरि हुए। Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभयदेवसूरिः आप आचार्य प्रद्यम्नसूरि के शिष्य तथा सिद्धसेनदिवाकरप्रणीत सन्मतितर्क के टीकाकार के रूप में विख्यात है। यह बात उक्त टीका की प्रशस्ति से ज्ञात होती है, परन्तु इस प्रशस्ति में इन्होंने अपने गच्छ, समय, शिष्यसन्तति आदि की कोई चर्चा नहीं की है। राजगच्छीय विद्वानों ने अपनी कृतियों में इन्हें 'तर्कपंचानन' जैसे विरुद् प्रदान किये हैं।३३ सन्मतितर्कटीका की प्रस्तावना में पं० सुखलाल जी और पं० बेचरदास जी ने इनका समय विक्रम सम्वत् की १० वीं शती का अन्तिम भाग और ११वीं शती का पूर्वभाग निश्चित किया है।२४ उत्तराध्ययनसूत्र पर थारापद्रगच्छीय वादिवेताल शांतिसूरि द्वारा रचित 'पाइय' टीका की प्रशस्ति में टीकाकार ने किन्ही अभयदेवसूरि का अपने प्रमाणशास्त्र के गुरु के रूप में अत्यन्त आदर के साथ उल्लेख किया है।३५ पं० सुखलाल जी और पं० बेचरदास जी ने शांतिसूरि के गुरु के रूप में इन्हीं अभयदेवसूरि के संभावना प्रकट की है।५ प्रभावकचरित के अनुसार शांतिसूरि का स्वर्गवास वि० सं० १०९६/ई० सन् १०४० में हुआ था।३७ शांतिसूरि ने महाकवि धनपालकृत तिलकमञ्जरी का संशोधन किया था और उस पर एक टिप्पणी भी लिखी थी ।२८ धनपाल परमारनरेश मुंज (ई० सन् ९७३-९९६) तथा भोज (ई० सन् १०१०१०५५) के राजदरबार के कवि थे । इन सब तथ्यों को देखते हुए पं० महेन्द्रकुमारजी ने अभयदेवसूरि का काल वि० सं० की ११ वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक निश्चित किया है।३९ सरसरे तौर पर उनका कार्यकाल ईस्वी ९५०-१००० के बीच रखा जा सकता है। धनेश्वरसूरि 'प्रथम': आप अभयदेवसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। राजगच्छ के उत्तरकालीन ग्रन्थकारों की रचनाओं की प्रशस्तियों से इनके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है । प्रभावकचरित की प्रशस्ति के अनुसार आप त्रिभुवनगिरि के राजा कर्दम थे । आप ने अभयदेवसूरि से Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९९ राजगच्छ दीक्षा ग्रहण की और धनेश्वरसूरि के नाम से विख्यात हुए । चूंकि दीक्षित होने के पूर्व ये राजा थे, अंत: इनकी शिष्य सन्तति (चन्द्रगच्छ की एक शाखा) राजगच्छ के नाम से विख्यात हुई। राजगच्छीय सिद्धसेनसूरि ने प्रवचनसारोद्धारटीका (रचनाकाल वि० सं० १२७८/ई० सन् १२२२) की प्रशस्ति में इन्हें परमार नरेश मुंज (ई० सन् ९७३-९९६) द्वारा सम्मानित बतलाया है। राजगच्छ के ही माणिक्यचन्द्रसूरि ने पार्श्वनाथचरित (रचनाकाल वि० सं० १२७६/ई० सन् १२२०) की प्रशस्ति में अभयदेवसूरि के शिष्य के रूप में धनेश्वरसूरि का नहीं अपितु जिनेश्वरसूरि का उल्लेख करते हुए उन्हें परमार नरेश मुंज द्वारा सम्मानित बतालाया हैं । अब हमारे सामने यह प्रश्न उठता है कि ये धनेश्वरसूरि और जिनेश्वरसूरि क्या दो भिन्न-भिन्न आचार्य हैं या एक ही आचार्य के दो नाम हैं ? अथवा पार्श्वनाथचरित की मूलप्रशस्ति में शायद बाद के लिपिकार की भूल से 'ध' के स्थान पर 'जि' लिख दिया गया और वह भूल अन्य प्रतियों में भी चलती रही है ०३ ! जो भी हो, इस सम्बन्ध में पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में निश्चयपूर्वक कुछ कह पाना कठिन हैं। अजितसिंहसूरि (प्रथम): राजगच्छीय ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों की प्रशस्ति में इनका उल्लेख करते हुए इन्हें धनेश्वरसूरि (प्रथम) का शिष्य एवं पट्टधर बतलाया है । धनेश्वरसूरि (द्वितीय) एकमात्र राजगच्छीय विद्वान् हैं, जिन्होंने अपनी कृति सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११७१/ई० सन् १११५) की प्रशस्ति में न केवल इनका उल्लेख किया है, अपितु इन्हें विश्रान्तविद्याधर नामक कृति की रचना का श्रेय भी दिया है। विश्रान्तविद्याधर आज अनुपलब्ध है। इनके पट्टधर वर्धमानसूरि हुए। शीलभद्रसूरि : जैसा कि राजगच्छीय गुरु-परम्परा की तालिका से स्पष्ट है, इनके समय से राजगच्छ की दो अलग-अलग शाखायें अस्तित्व Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास में आयीं । एक शाखा के प्रधान शीलभद्रसूरि हुए और दूसरी शाखा के देवप्रभसूरि (प्रथम)। शीलभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित न तो कोई लेख मिला है और न ही इनकी किसी कृति का कही नामोल्लेख है, फिर भी राजगच्छीय ग्रन्थकारों ने बड़े ही सम्मान के साथ इनका उल्लेख किया है। जैसा कि ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर पीछे हम देख चुके हैं, इनके ६ शिष्यों का उल्लेख मिलता है। इनमें अजितसिंहसूरि (द्वितीय) को छोड़कर शेष ५ शिष्यों की परम्परा आगे चली । धनेश्वरसूरि (द्वितीय) अल्पजीवी थे, अतः इनके पट्टधर पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि हुए, जिनकी परम्परा में प्रभाचन्द्रसूरि हुए । भरतेश्वरसूरि की परम्परा में माणिक्यचन्द्रसूरि तथा सर्वदेवसूरि की परम्परा में मानतुंगसूरि हुए। धर्मघोषसूरि की शिष्यसन्तति अपने गुरु के नाम पर धर्मघोषगच्छीय कहलायी। धनेश्वरसूरि (द्वितीय) : जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है आप शीलभद्रसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। आप द्वारा रचित एकमात्र कृति है सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति जो वि० सं० ११७१/ई० सन् १११५ में रची गयी है। इसके लेखन में इन्हें अपने शिष्य पार्श्वचन्द्रगणि से सहायता प्राप्त हुई थी, इस बात का इन्होंने अपनी कृति की प्रशस्ति में उल्लेख किया पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरिः जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है आप शीलभद्रसूरि के दीक्षाशिष्य तथा अपने ज्येष्ठ गुरुभ्राता धनेश्वरसूरि (द्वितीय) के पट्टधर थे। सूरि-पद प्राप्ति से पूर्व इनका नाम पार्श्वदेवगणि था । ये अपने समय के अद्वितीय विद्वान् थे। इनके द्वारा रचित १२ रचनायें अद्यावधि उपलब्ध हैं।४६ १. न्यायप्रवेशवृत्तिपंजिका रचनाकाल वि० सं० ११६९ /ई० सन् १११३ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०१ राजगच्छ २. निशीथचूर्णिविशोद्देशकवृत्ति रचनाकाल वि० सं० ११७४/ई० सन् १११८ ___३. नन्दीवृत्तिटिप्पण - यह दुर्गपदव्याख्या के नाम से भी जानी जाती है। ४. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति रचनाकाल वि० सं० १२२२ /ई० सन् ११५६ ५. जीतकल्पबृहच्चूर्णिव्याख्या रचनाकाल वि० सं० १२२७/ई० सन् ११६१ ६. निरयावलिकावृत्ति रचनाकाल वि० सं० १२२८ /ई० सन् ११६२ ७. चैत्यवंदनसूत्रवृत्ति ८. प्रतिष्ठाकल्प ९. सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय १०. सुखबोधा समाचारी ११. उपसग्गहरस्तोत्रवृत्ति १२. पद्मावत्थष्टकटीका इसके अतिरिक्त आपने सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११७१ /ई० सन् १११५) के लेखन में अपने गुरु धनेश्वरसूरि को, बृहद्गच्छीय आम्रदेवसूरि को आख्यानकमणिकोशवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११९० /ई० सन् ११३४)में तथा हर्षपुरीयगच्छ के श्रीचन्द्रसूरि को मुनिसुव्रतचरित (रचनाकाल वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७) के लेखन में सहायता की । गिरनार स्थित नेमिनाथ जिनालय के उत्तरी द्वार पर एक तिथियुक्त किन्तु खंडित अभिलेख उत्कीर्ण है। वर्जेस ने इस लेख की वाचना की है और इसे वि० सं० १२७६ का बतलाया है। मुनि जिनविजय ने भी बर्जेस का अनुसरण किया है। ढांकी और भोजकर ने इस लेख की Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पुनर्वाचना की और इसे वि० सं० १२०६ या १२१६ का बतलाया है। उनके द्वारा यह लेख इस प्रकार पढ़ा गया है : श्रीमत्सूरिधनेश्वरः समभवन्नी शीलभ (ट्टा?द्रा)त्मजः शिष्यस्तत्पदपंकजे मधुकर क्रीडाकरो योऽभवत् । शिष्यः शोभितवेत्र नेमिसदने श्रीचन्द्रसूरि.... त...... श्रीमद्रेवतके चकार शुभदे कार्य प्रतिष्ठादिकम् ।। १ ॥ श्री सङ्गातमहामात्य पृष्टार्थविहितोत्तरः भे समुदभूतवशा देवचण्डादि जनतान्वितः ॥ सं. १२ (७१०) ॥ ६ ॥ वि० सं० १२०६ में आबू पर मंत्रीश्वर पृथ्वीपाल द्वारा करायी गयी प्रतिष्ठा के समय भी श्रीचन्द्रसूरि वहां उपस्थित थे। यह बात विमलवसही के देहरी संख्या ३८ पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होती है। मुनि कल्याणविजय५३ ने इस लेख का पाठ इस प्रकार दिया है : __ सं० १२०६ श्री शीलचन्द्रसूरीणां शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः । विमलादिसुसंघेन, युतैस्तीर्थमिदं स्तुत (तं) ॥ १ ॥ अयं तीर्थसमुद्धारोत्ममुतोऽकारि धीमता। श्रीमदानन्दपुत्रेण, श्रीपृथ्वीपालमंत्रिणा ॥ २ ॥ इस प्रकार यह स्पष्ट है कि श्रीचन्द्रसूरि ने साहित्योपासना के साथसाथ जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा में भी समान रूप से सहयोग दिया। देवप्रभसूरि : ये राजगच्छीय भद्रेश्वरसूरि के प्रशिष्य और अजितसिंहसूरि 'तृतीय' के शिष्य थे। जैसा कि यहां लेख के प्रारम्भ में कहा गया है इन्होंने प्राकृत भाषा में श्रेयांसनाथचरित की रचना की । इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत विवरण दिया है। यद्यपि उन्होंने इस कृति के रचनाकाल के बारे में कुछ नहीं कहा है, किन्तु इसे वि० सं० १२४२/ई० सन् ११८६ के आसपास रचा माना गाय है। इसकी प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि इन्होंने तत्त्वबिन्दु और प्रमाणप्रकाश की भी रचना की थी। ये दोनों रचनायें आज अनुपलब्ध हैं। Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ १२०३ सिद्धसेनसूरि : ये देवभद्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने वडगच्छीय नेमिचन्द्रसूरिविरचित प्रवचनसारोद्धार पर वृत्ति की रचना की । इसी प्रशस्ति के अन्तर्गत वृत्तिकार ने अभयदेवसूरि से लेकर अपने गुरु देवप्रभसूरि तक राजगच्छीय गुर्वावली के साथ-साथ इस वृत्ति के रचनाकाल का भी उल्लेख किया है : करिसागरविसङ्खये श्रीविक्रमनृपतिवत्सरे चैत्रे । पुर्किदिने शुक्लाष्टम्यां वृत्तिः समाप्ताऽसौ ॥ १८ ॥ श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई,५० हरिदामोदर वेलणकर५ आदि विद्वानों ने वृत्तिकार द्वारा दिये गये रचनाकाल करिसागरविसड्खये की करि=८, सागर=४ और रवि=१२ अर्थात् १२४८ माना है। किन्तु यदि वृत्तिकार द्वारा प्रशस्तिगत दी गयी अभयदेवसूरि से सिद्धसेनसूरिपर्यन्त राजगच्छीय आचार्यपरम्परा पर दृष्टि डालें, तो उक्त मत ग्राह्य प्रतीत नहीं होता । चूंकि अभयदेवसूरि के पश्चात् और सिद्धसेनसूरि के पूर्व ८ आचार्य हो चुके हैं और अभयदेवसूरि का काल वि० सं० की ११वीं शती का पूर्वार्ध निश्चित किया जा चुका है। यदि प्रत्येक मुनि का आचार्यत्वकाल लगभग २५ वर्ष माना जाये तो अभयदेवसूरि के नवीं पीढ़ी में हुए सिद्धसेनसूरि का काल वि० सं० १२७५ के आसपास ठहरता है। साथ ही सात की संख्या के लिए साधारणतया सागर शब्द का ही प्रयोग होता है, अतः ऐसी स्थिति में देसाई और वेलणकर आदि विद्वानों द्वारा मान्य प्रवचनसारोद्धारवृत्ति की रचनातिथि वि० सं० १२४८ के स्थान पर वि० सं० १२७८/ई० सन् १२२२ मानने में कोई बाधा नहीं दिखलाई देती। मामिक्यचन्द्रसूरि : ये राजगच्छ के प्रभावशाली और विद्वान् आचार्य थे । इन्होंने पार्श्वनाथचरित, शांतिनाथचरित तथा आचार्य मम्मट के काव्यप्रकाश पर संकेत नामक टीका की रचना की । पार्श्वनाथचरित का रचनाकाल वि० सं० १२७६/ई० सन् १२२० माना गया Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास है।५६ प्रथम दो रचनायें अप्रकाशित हैं किन्तु काव्यप्रकाश अपनी संकेत नामक टीका के साथ प्रकाशित हो चुका है।५७ महामात्य वस्तुपाल इनके समकालीन और प्रशंसक थे। प्रभाचन्द्रसूरि : आप राजगच्छीय पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि की परम्परा में हुए चन्द्रप्रभसूरि के पट्टधर थे। आप ने वि० सं० १३३४/ई० सन् १२७८ में प्रभावकचरित की रचना की । यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में पद्यमय ५७७४ श्लोकों में निबद्ध है। इस ग्रन्थ का संशोधन चन्द्रगच्छीय कनकप्रभसूरि के शिष्य प्रद्युम्नसूरि ने किया । इस ग्रन्थ में वज्रस्वामी से लेकर हेमचन्द्रसूरि तक के प्रभावक जैनाचार्यों का चरित्र वणित है। इनमें से वीरसूरि, शांतिसूरि, महेन्द्रसूरि, सूराचार्य, अभयदेवसूरि, वीरदेवगणि, देवसूरि और हेमचन्द्रसूरि ये आठ आचार्य सोलंकी काल में पाटण में हुए । सोलंकी राजाओं के साथ इस आचार्यों का घनिष्ट सम्बन्ध रहा । गुजरात के इतिहास में इस ग्रन्थ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। संदर्भ सूची: १. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Ac. VijayadevaSuri's and KsantiSuris Collections Part IV (L.D. Series No. 20, Ahmedabad-1968) No. 651, Pp. 75-76. २. जम्बद्वीपसमासटीका संशोधक-पंन्यास हर्षविजयगणि के शिष्य मानविजयमुनि (श्रीसत्यविजय ग्रन्थमाला नं० २, अहमदाबाद, वि० सं० १९७९) प्रशस्ति, पृष्ठ २६-२८. C.D. Dalal - A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, Vol I, (G.O. S. No. - LXXVI, Baroda - 1937) No. 403, Pp. 224-246. ४. Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti -natha Jain Bhandar, Cambay, Part II (G. O. S. No. 149. Baroda -1966) No. 207, Pp. 343-349. प्रवचनसारोद्धार, पूर्वभाग एवं उत्तरभाग (देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धारे, ग्रन्थांक ५८, ६४; ई० सन् १९२२) टीकाकार की प्रशस्ति, पृष्ट ४४८. Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. शिव राजगच्छ १२०५ श्रेयांसनाथचरित (गुजराती अनुवाद) सेठ भोगीलालभाई मगनलाल सिरिज नं० १ जैन आत्मानन्दसभा, भावनगर वि० सं० २००९, प्रशस्ति, पृष्ठ २६९. प्रभावकचरित, संपा० मुनि जिनविजय (सिंघी जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थांक १३, अहमदाबाद १९४० ई०) प्रशस्ति, पृष्ठ २१३-२१६. द्रष्यव्य - संदर्भ संख्या १. ९. सं० १२०६ श्रीशीलचन्द्रसूरीणां, शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः । विमलादिसुसंघेन, युतैस्तीर्थमिदं स्तुत (तं) ॥१॥ अयं तीर्थसमुद्धारो-त्यमुतोऽकारि धीमता। श्रीमदानन्दपुत्रेण, श्रीपृथ्वीपालमंत्रिणा ॥ २ ॥ मुनि कल्याणविजय गणि-प्रबन्धपारिजात (श्री कल्याणविजय शास्त्र संग्रह समिति, जालोर १९६६ ई०) लेखांक ३८. शिवप्रसाद 'धर्मघोषगच्छ का संक्षिप्त इतिहास' श्रमण, वर्ष ४१, अंक १-३ (वाराणसी १९९० ई०) पृष्ठ ४५-१०३. ११. मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, भाग १, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६१ ई०, पृष्ठ ५७-७१. १२. मुनि जिनविजय, संपा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, भाग १, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १८, बम्बई १९४३ ई० पृष्ट ३०-३२. मुनि जिनविजयजी ने शांतिनाथ जैन ज्ञानभंडार, खंभात के इस ग्रन्थ के प्रतिलेखन की प्रशस्ति पीटर्सन की रिपोर्ट-भाग ३ पृष्ट ८६-८९ से संकलित की है। पीटर्सन को इस ग्रन्थ की पूर्ण प्रति प्राप्त हुई थी . परन्तु मुनि पुण्यविजयजी को इस ग्रन्थ भंडार की सूची तैयार करते समय यह ग्रन्थ अत्यन्त भग्न और त्रुटित रूप में प्राप्त हुआ था और उसी रूप में उन्होंने इसे प्रकाशित भी कराया। द्रष्टव्य Muni Punyavijaya - Catalogue of Plam-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandar, Cambay, Part I, G.O.S. No. 139, Baroda 1961, Pp. 112-118. १३. प्रो० एम० ए० ढांकी, एसोसिएट डायरेक्टर-रिसर्च, अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डियन स्टडीज, वाराणसी, द्वारा व्यक्तिगत चर्चा पर आधारित. Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०६ १४. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास एम० ए० ढांकी - आरासणानी जैन प्रतिमालेखनी पुर्नवाचना, स्वाध्याय, जिल्द ८, क्रमांक १ - २, पृष्ठ १८९-१९८. एम० ए० ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा पर आधारित. १५. १६. द्रष्टव्य, संदर्भ संख्या ९. १७. मुनि कल्याणविजय, पूर्वोक्त, लेखांक १३२, १३४, १३५, १४१. १८. एम० ए० ढांकी एवं लक्ष्मण भोजक- 'उज्जयंतगिरिना पूर्वप्रकाशित अभिलेखो विषे', पं० बेचरदास दोशी स्मृति ग्रन्थ (वाराणसी १९८९ ई० ) पृष्ठ १९३-९४, लेखांक ३. १९. बुद्धिसागरसूरि, संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४१३. अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा संपा० बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ३७६. बुद्धिसागर, संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २ लेखांक ५३२. २०. २१. २२ . वही, भाग २, लेखांक ६४१. २३. वही, भाग २, लेखांक ५२६ २४. वही, भाग २, लेखांक ५६४. २५. विनयसागर, संपा० प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३७९. २६. वही, लेखांक ४४१. २७. वही, लेखांक ४५८ २८. द्रष्टव्य, संदर्भ संख्या ४. २९. द्रष्टव्य, संदर्भ संख्या ७. ३०. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास द्वितीय संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि सूरत २००६ ई०, पृष्ठ १३४, कंडिका २४३. G.C. Chaudhary-Political History of Northen India From Jain Sources (Sohan Lal Jain Dharma Pracharak Samiti, Amritsar1963) Pp. 172-173. ३२. पं० सुखलालजी और पं० बेचरदासजी, संपा० सन्मतिप्रकरण (द्वितीय संस्करण, अहमदाबाद १९५२ ई०, पृष्ठ १४०-४१. ३३. तर्कग्रन्थविचारदुर्गमवनीसंचारपंचानन ३१. स्तत्पट्टेऽभयदेवसूरिरजनि श्वेताम्बरग्रामणीः । Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगच्छ १२०७ । सद्वाक्यश्रुतिलालसा मधुकरी कोलाहलाशंकिनी । हित्वा विष्टरपंकजं श्रितवती ब्राह्मी यदीयाननम् ॥ ६ ॥ पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ४. ३४. पं० सुखलाल जी और पं० बेचरदास जी, पूर्वोक्त, प्रस्तावना, पृष्ठ १४४. ३५. सूरीशोऽभयदेवसूरिरवनिख्यातः प्रमाणेऽपि च । तस्येयं सुगुरुद्वयादधिगतस्वल्पात्मविद्यागुणप्रख्याताय चिरं भुवि प्रचरतु श्रीशांतिसूरेः कृतिः ॥ ७॥ उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्ति (पाइयवृत्ति) की प्रशस्ति Muni Punyavijay - Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandar, Cambay Part I, P.- 111. ३६. पं० सुखलालजी और पं० बेचरदासजी, पूर्वोक्त, प्रस्तावना, पृष्ठ १४२-४३ श्रीविक्रमवत्सरतो वर्ष सहस्र गते सषण्णवतौ (१०९६) । शुचिसितिनवमीकुजकृत्तिकासु शान्तिप्रभोरभूदस्तम् ॥ १३० ॥ 'वादिवेतालशान्तिसूरिचरितम्' प्रभावकचरित, पृष्ठ १३७. अन्यदाऽवन्तिदेशीय सिद्धसारस्वतः कविः । ख्यातोऽभूद् धनपालाख्यः प्राचेतस इवापरः ॥ २२ ॥ स गोरसे त्यहातीते साधुभिर्जीवदर्शनात् । यैरवोध्यत तत्पूज्यश्रीमहेन्द्रगुरोगिरा ॥ २३ ॥ गृहीतदृढसम्यक्त्वः कथां तिलकमञ्जरीम् । कृत्वा व्यजिज्ञपत् पूज्यान् क एनां शोधयिष्यति ॥ २४ ॥ 'वादिवेतालशान्तिसूरिचरितम्' प्रभावकचरित पृष्ठ १३३. ३९. पं० महेन्द्रकुमार शास्त्री. संपा० प्रमेयकमलमार्तण्ड (निर्णयसागर प्रेस बम्बई १९४१ ई०) प्रस्तावना, पृष्ठ ४६-४७. ३७. Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४०. त्रिभुवनगिरिस्वामी श्रीमान् स कर्दमभूपति स्तदुप समभूत् शिष्यः श्रीमद्धनेश्वरासज्ञया । अजनि सुगुरुस्त्पट्टेऽस्मात् प्रभृत्यवनिस्तुतः । तदनु विदितो विश्वे गच्छः स 'राज' पदोत्तरः ॥ ५ ॥ प्रभावकचरित, प्रशस्ति, श्लोक ५. ४१. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या ५. ४२. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या ४. ४३. पं० महेन्द्रकुमार शास्त्री, पूर्वोक्त, पृष्ठ ४६-४७. ४४. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या १. ४५. वही ४६. मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई, पूर्वोक्त, कंडिका ३३५. द्रष्टव्य-संदर्भ संख्या १. अन्यच्च नेमिचन्द्रा गुणाकरा: पार्श्वदेवनामनः । एते त्रयोऽपि गणयो विपश्चितो मुख्य निजशिष्याः ॥ ३०॥ साहाय्यं कृतवन्तो मम लेखन-शोधनादिकृत्येषु । आधानोद्धरणे च प्रमादविकला: कलाकुशलाः ॥ ३१ ॥ मुनि पुण्यविजय-संपा० आख्यानकमणिकोश-वृत्तिसह (प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थांक ५, वाराणसी १९६२ ई०) प्रशस्ति, पृष्ठ ३६९-३७०. ४९. रूपेन्द्रकुमार पगारिया-संपा० मुनिसुव्रतस्वामिचरित (लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १०६, अहमदाबाद १९८९ ई०) प्रशस्ति, पृष्ठ ३३७ - ३४१. 40. Report on the Antiquities of Kathiawad and Kacch (1874-75), Archaeological Survey of Western India, Reprint, Varanasi-1971, p. 167. ५१. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, जैन आत्मानन्दसभा, भावनगर १९२१ ई०, लेखांक ५२. ५२. ढांकी और भोजक, पूर्वोक्त, ५३. मुनि कल्याणविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३८. ५४. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४८९. Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०९ H. D. Velankar - Jinaratnakosa, Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona - 1944, P. 400. भोगीलाल जयचंद सांडेसरा - वस्तुपाल का साहित्यमंडल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, जैन संस्कृति संशोधन मंडल, वाराणसी १९५९ ई०, पृष्ठ ११०११२. ५७. वेलणकर, पूर्वोक्त, पृष्ठ ९०. राजगच्छ ५५. ५६. Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायडगच्छ का संक्षिप्त इतिहास गुजरात के प्राचीन और मध्ययुगीन नगरों तथा ग्रामों से अस्तित्व में आये चैत्यवासी श्वेताम्बर जैन गच्छों में थाराप्रद्र' और मोढगच्छ के पश्चात् वायडगच्छ का नाम उल्लेखनीय है। वायड (वायट) नामक स्थान से अस्तित्व में आने के कारण इस गच्छ का उक्त नाम और उसका पर्याय वायटीय प्रसिद्ध हुआ। ब्राह्मणीय और जैन साक्ष्यों के अनुसार पूर्वकाल में वायड महास्थान के रूप में विख्यात रहा । वायडगच्छ के सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों के रूप में कुछ प्रतिमालेखों का उल्लेख किया जा सकता है जो पीतल की जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं। इनमें से प्रथम लेख भरुच से प्राप्त वि० सं० १०८६/ ई० स० १०३० की एक जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है । द्वितीय लेख साणंद से प्राप्त वि० सं० ११३१/ ई० स० १०७५ की एक जिनप्रतिमा पर खुदा हुआ है । तृतीय और चतुर्थ लेख शत्रुञ्जय से प्राप्त वि० सं० ११२९ और वि० सं० ११३२ की जिनप्रतिमाओं से ज्ञात होते हैं । इस प्रकार उक्त साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि ईस्वी सन् की ११वीं शती में यह गच्छ सुविकसित स्थिति में विद्यमान था। मध्ययुगीन प्रबन्धग्रन्थों में वायडगच्छ के मुनिजनों के सम्बन्ध में वर्णित प्रशंसात्मक विवरणों से प्रतीत होता है कि इस गच्छ के मुनि चैत्यवासी थे। वायडगच्छ के प्रधानकेन्द्र वायडनगर में जीवन्तस्वामी का एक मंदिर था । कल्पप्रदीप (ई० सन् १३३३) में उल्लिखित चौरासी तीर्थस्थानों की सूची में इसका नाम मिलता है । पुरातनप्रबन्धसंग्रह (ई० सन् १५वीं Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायडगच्छ १२११ शती) में मंत्री उदयन के पुत्र वाग्भट्ट के संदर्भ में वायटस्थित जीवन्तस्वामी, मुनिसुव्रत और महावीर के मन्दिरों का उल्लेख मिलता है । अंचलगच्छीय महेन्द्रसूरिकृत अष्टोत्तरीतीर्थमाला (ई० सन् १२३७) में भी इसी प्रकार का विवरण प्राप्त होता है । इससे पूर्व संगमसूरि के चैत्यपरिपाटीस्तवन (ई० सन् १२वीं शताब्दी) में वायड का महातीर्थ के रूप में वर्णन मिलता है। साधारणांक सिद्धसेनसूरि द्वारा रचित सकलतीर्थस्तोत्र (प्रायः ई० सन् १०६०-७५) में भी इस स्थान का एक जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख प्रभावकचरित (वि० सं० ११३४ / ई० सन् १२७८) के अनुसार विक्रमादित्य के मंत्री लिम्बा द्वारा यहां स्थित महावीर जिनालय का जीर्णोद्धार कराया गया१३ । वहां यह भी कहा गया कि उसने राशिल्लसूरि के शिष्य और जिनदत्तसूरि के प्रशिष्य जीवदेवसूरि को उक्त जिनालय का अधिष्ठाता नियुक्त किया । प्रबन्धकोश (वि० सं० १४०५ / ई० सन् १३४९) में भी यही बात कही गयी है किन्तु वहाँ मंत्री का नाम निम्बा बतलाया गया है जो अक्षरान्तर मात्र है। प्रबन्धग्रन्थों के उक्त उल्लेखों में वर्णित कथानक में विक्रमादित्य (चन्द्रगुप्त 'द्वितीय' विक्रमादित्य - ईस्वी सन् ३७५-४१२) के काल की कल्पना की गयी है जिसको तो हम स्वीकार नहीं कर सकते फिर भी इतना संभव हो सकता है कि नवीं शताब्दी के किसी प्रतिहार नरेश के प्राकृत नामधारी मंत्री निंबा या लिंबा ने उक्त जिनालय का निर्माण कराया होगा और यही तो जीवदेवसूरि का संभवित समय भी है। प्रभावकचरित' में वायडगच्छ के प्रारम्भिक आचार्यों के सम्बन्ध में प्राप्त विवरण, जिसका एक अंश कथानक ही है, से ज्ञात होता है कि वायड नामक ग्राम में धर्मदेव नामके एक श्रेष्ठी थे। उनके बड़े पुत्र का नाम महीधर और छोटे पुत्र का नाम महीपाल था। महीधर ने श्वेताम्बर जैनाचार्य जिनदत्तसूरि के दीक्षा ग्रहण कर ली और राशिल्लसूरि के नाम से विख्यात Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास हुए। छोटे पुत्र महीपाल ने राजगृह (संभवत: वर्तमान राजोरगढ, राजस्थान) के दिगम्बर आचार्य श्रुतकीर्ति से दीक्षा लेकर सुवर्णकीर्ति नाम प्राप्त किया । आगे चलकर सुवर्णकीर्ति ने श्वेताम्बर सम्प्रदाय में अपनी आस्था व्यस्त की और अपने संसारपक्षीय भ्राता राशिल्लसूरि के पास दीक्षित हो कर जीवदेवसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। निम्बा द्वारा कराये गये जीर्णोद्धार से पूर्व भी उक्त जिनालय जीवदेवसूरि के अधिकार में था । प्रभावकचरित के इसी चरित में आगे लल्ल नामक एक ब्राह्मण धर्मानुयायी श्रेष्ठी का विवरण है जिसने यज्ञ में होनेवाली हिंसा को देखकर जैन धर्म स्वीकार किया और महावीर का एक मन्दिर बनवाया' । इससे नाराज ब्राह्मणों ने वहाँ द्वेषवश रात्रि में एक मृत गाय रख दिया, किन्तु जीवदेवसूरि की चमत्कारिक शक्ति से वह गाय उठी और निकटस्थित ब्रह्मा के मन्दिर में जाकर गिर पड़ी | बाद में दोनों पक्षों में हुए समझौते की शर्तों से स्पष्ट होता है कि इस गच्छ के अनुयायी मुनिजन चैत्यवासी परम्परा से संबद्ध थे । . १७ I .१९ ० अमरचन्द्रसूरि कृत पद्मानंदमहाकाव्य (वि० सं० १२९७ के पूर्व ) की प्रशस्ति" में कुछ परिवर्तन के साथ उक्त कथानक प्राप्त होता है । वहां ब्रह्मा का मंदिर न कहकर ब्रह्मशाला कहा गया है । उन्होंने इस गच्छ के प्रारम्भिक आचार्यों का जो क्रम बतलाया है वह प्रभावकचरित में भी मिलता है। अमरचन्द्रसूरि ने इस सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बात यह बतलायी है कि वायडगच्छ में पट्टधर आचार्यों को जिनदत्तसूरि, राशिल्लसूरि और जीवदेवसूरि - ये तीन नाम पुनः प्राप्त होते हैं । जब कि यह नियम अमरचन्द्रसूरि के बारे में नहीं लागू हुआ । यद्यपि उनके तीन पूर्ववर्ती आचार्यों का क्रम वैसा ही रहा जैसा कि उन्होंने बतलाया है । अमरचन्द्रसूरि के गुरु का नाम जिनदत्तसूरि था । जिनदत्तसूरि के गुरु का नाम जीवदेवसूरि और प्रगुरु का नाम राशिल्लसूरि था । जिनदत्तसूरि वि० सं० १२६५ / ई० सन् २१ १२०९ में गच्छनायक बने । अरिसिंह द्वारा रचित सुकृतसंकीर्तन (वि० सं० १२८७ / ई० सन् १२३१ लगभग) के अनुसार इन्होंने ई० सन् २२ Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायडगच्छ १२१३ १२३० में मंत्री वस्तुपाल के संघ में शत्रुजय और गिरनार की यात्रा की थी२३ । विवेकविलास की संक्षिप्त प्रशस्ति में उन्होंने स्वयं को जीवदेवसूरि और उनके गुरु राशिल्लसूरि की परम्परा का बतलाया है । यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या इस गच्छ के प्रारंभिक आचार्यों का भी नाम और पट्टक्रम ठीक उसी प्रकार का रहा जैसा कि १२वीं-१३वीं शती में हम देखते हैं । वस्तुतः यह जीवदेवसूरि 'प्रथम' की ऐतिहासिकता और उनसे सम्बन्धित विभिन्न कथानकों का विकास १३वीं शताब्दी में श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में उस महान् आचार्य के प्रति व्यक्त श्रद्धा और सम्मान का परिणाम माना जा सकता है। १३वीं शताब्दी के पूर्व भी श्वेताम्बर ग्रन्थकारों ने इनका अत्यन्त सम्मान के साथ उल्लेख किया है। हर्षपुरीयगच्छ के लक्ष्मणगणि ने प्राकृतभाषा में रचित सुपासनाहचरिय (सुपार्श्वनाथचरित, रचनाकाल ई० स० ११३७) में अत्यन्त आदर के साथ इनके साहित्यिक क्रियाकलापों का वर्णन किया है" । उपाध्याय चन्द्रप्रभ द्वारा प्रणीत वासुपूज्यचरित की प्रशस्ति में सस्नेह इनका उल्लेख है२६ । परमारनरेश भोज के दरबारी कवि धनपाल ने अपनी अमर कृति तिलकमंजरी (प्रायः ई० सन् १०२०-२५) में जीवदेवसूरि का अन्य प्रसिद्ध कवियों के साथ सादर स्मरण किया है । इनसे भी पूर्व चन्द्रगच्छीय गोग्गटाचार्य के शिष्य समुद्रसूरि (प्रायः वि० सं० १००६/ई० सन् ९५०) ने जीवदेवसूरि द्वारा प्रणीत जिनस्नात्रविधि पर टिप्पण की रचना की है। ___ वि० सं० १२९८ में महामात्य वस्तुपाल द्वारा शत्रुजय महातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में अन्य गच्छों के आचार्यों के साथ वायडगच्छीय जीवदेवसूरि का भी नाम मिलता है। उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के आचार्यों के गुरु-परम्परा की एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - जिनदत्तसूरि राशिल्लसूरि जीवदेवसूरि 'प्रथम' (जिनस्नात्रविधि के रचनाकार, अनुमानितकाल वि० सं० की नवीं-दसवीं शताब्दी) जिनदत्तसूरि (षष्ठ) ई० सन् १२०९ में विवेकविलास और शकुनशास्त्र, के रचनाकार) राशिल्लसूरि अमरचन्द्रसूरि (बालभारत, पद्मानन्दमहाकाव्य, काव्यकल्पलता, काव्यकल्पलतावृत्ति, काव्यकल्पलतापरिमल आदि ग्रन्थों के रचनाकार) जीवदेवसूरि (सप्तम) (वि० सं० १२९८ के शत्रुजय के शिलालेख में उल्लिखित) Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायडगच्छ १२१५ वायडगच्छ से सम्बद्ध कुछ अन्य अभिलेखीय साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं जो विक्रम सम्वत् की चौदहवीं शती तक के हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है : Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१६ + क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | लेख का प्रकार प्रतिष्ठास्थान ११३९ अनुपलब्ध पार्श्वनाथ की प्रतिमा | वीर जिनालय, पर उत्कीर्ण लेख | अजारी ११६१ | कार्तिक ..?| सप्तफणा पार्श्वनाथ | अजितनाथ तिथि | की प्रतिमा का लेख | जिनालय, विहीन सिरोही ११६२ तिथि चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर संदर्भ ग्रन्थ आबू, भाग ५, लेखांक ३९८ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२ विहीन १२७३ । कार्तिक सुदि १ गुरुवार जैन मंदिर, शत्रुजय मुनि यशोवर्धन की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जैनलेखसंग्रह, भाग ३ लेखांक २२१८ | M.A. Dhaky and | L. Bhojaka "Some Inscriptions on mount Shatrunjaya" M.J. V.G.V., Part 1, P.162-69. No.7 जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायडगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | लेख का प्रकार ६. । १२९८ | वैशाख | पार्श्वनाथ की वदि २ | की धातुप्रतिमा रविवार | पर उत्कीर्णलेख | १२९८ । - | शिलालेख वणा, । प्रतिष्ठास्थान । संदर्भ ग्रन्थ | जैन देरासर, प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३७ काठियावाड | शत्रुजय U.P. Shah- “A forgotten Chapter in the History of Shvetambar Jaina Church" J.O. A. S. B. Vol. 30, Part 1, 1955, A.D., Pp-100-113. अनुपूर्तिलेख, आबू, भाग २ आबू लेखांक ५२६ ८. | १३०० | वैशाख | पार्श्वनाथ - वदि ५ | की प्रतिमा पर बुधवार | उत्कीर्ण लेख Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १३३५ १२१८ ९. १३३८ | तिथि | लेख का प्रकार तिथि जिन प्रतिमा पर । विहीन | उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ । शांतिनाथ वदि १ | की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख __ चैत्र | अमरचन्द्रसूरि वदि ६ | की प्रतिमा पर शनिवार उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान | संदर्भ ग्रन्थ अजितनाथ जिनालय, | प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, सिरोही लेखांक ७ चन्द्रप्रभ जैनलेखसंग्रह, जिनालय, भाग ३, लेखांक २२३२ जैसलमेर टांगडियावाला प्राचीनजैनलेखसंग्रह, जैन मंदिर, पाटण भाग २, लेखांक ५२३ १३४९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायडगच्छ १२१९ अंतिम दो प्रतिमालेखों को छोड़ कर शेष अन्य लेखों में यद्यपि इस गच्छ से सम्बद्ध कोई महत्त्वपूर्ण विवरण ज्ञात नहीं होता फिर भी वे लगभग १५० वर्षों तक इस गच्छ के स्वतंत्र अस्तित्व के प्रबल प्रमाण हैं । वि० सं० १३३८ के लेख से ज्ञात होता है कि इस गच्छ की पूर्व प्रचलित परिपाटी, जिसके अनुसार प्रतिमाप्रतिष्ठा का कार्य श्रावकों द्वारा होता था, को त्याग कर अब स्वयं मुनि या आचार्य द्वारा प्रतिपारित किया जाने । वायडगच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम साक्ष्य इस गच्छ के प्रसिद्ध आचार्य जिनदत्तसूरि के ख्यातिनाम शिष्य प्रसिद्ध ग्रन्थकार अमरचन्द्रसूरि की पाषाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। मुनि जिनविजयजी ने इस लेख की वाचना दी है३१, जो निम्नानुसार है : ३० लगा सं० १३४९ चैत्रवदि ६ शनौ श्री वायटीयगच्छे- श्री जिनदत्तसूरि शिष्य पंडित श्री अमरचन्द्रमूर्तिः पं० महेन्द्रशिष्यमदनचंद्रख्या (ख्येन) कारिता शिवमस्तु ॥ इस प्रकार स्पष्ट है कि विक्रम संवत् की चौदहवीं शताब्दी में इस गच्छ के अनुयायियों ने अपने पूर्वगामी आचार्य की प्रतिमा निर्मित कराकर उनके प्रति पूज्यभाव एवं सम्मान व्यक्त किया । इस गच्छ के प्रमुख ग्रन्थकारों का विवरण इस प्रकार है : जीवदेवसूरि 'प्रथम' वायडगच्छ के पुरातन आचार्य जीवदेवसूरि 'परकायप्रवेशविद्या' में निपुण और अपने समय के प्रभावक जैन मुनि थे । इनके गुरु का नाम राशिल्लसूरि और प्रगुरु का नाम जिनदत्तसूरि था । जैसा कि इसी लेख के अन्तर्गत पीछे कहा जा चुका है विभिन्न जैन ग्रन्थकारों धनपाल, लक्ष्मणगणि, उपाध्याय चन्द्रप्रभ, प्रभाचन्द्र, राजशेखर, आदि ने अपनी कृतियों में इनका सादर उल्लेख किया है । इनके द्वारा रचित केवल एक ही कृति आज मिलती है जिसका नाम है जिनस्नात्रविधि ३२ । चन्द्रगच्छीय - Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गोग्टाचार्य के शिष्य समुद्रसूरि ने वि० सं० १००६/ई० सन् ९५० में इस पर टिप्पण की रचना की३३ । प्रभावकचरित और प्रबन्धकोश में इन्हें विक्रमादित्य का समकालीन् बतलाया गया है परन्तु वर्तमान युग के विद्वानों ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका काल विक्रम संवत् की ८वीं९वीं शताब्दी के आस-पास बतलाया है, जो उचित प्रतीत होता है। जिनदत्तसूरि : महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल के समकालीन वायडगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि द्वारा प्रणीत विवेकविलास एवं शकुनशास्त्र ये दो कृतियाँ मिलती हैं। विवेकविलास की प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु-परम्परा के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी है जिसके अनुसार वायडगच्छ में राशिल्लसूरि नामक एक प्रसिद्ध आचार्य हुए । उनके शिष्य एवं पट्टधर जीवदेवसूरि परकायप्रवेशविद्या में निपुण थे। इसी परम्परा में आगे चलकर जिनदत्तसूरि हुए जिन्होंने उक्त ग्रन्थ की रचना की। प्राकृत भाषा में रचित इस ग्रन्थ में १२ अध्याय हैं जो उल्लास कहे गये हैं। इनमें कुल १३२३ श्लोक हैं । इस कृति में मानव-जीवन के उत्कर्ष के लिये कतिपय आवश्यक सभी तथ्यों का सारगर्भित विवरण है। प्रथम पाँच उल्लासों में दिनचर्या, छठे में ऋतुचर्या, सातवें में वर्षचर्या और आठवें में जन्मचर्या अर्थात् समग्र भव के जीवनव्यवहार का संक्षिप्त विवेचन है। नवें और दसवें उल्लास में अनुक्रम से पाप और पुण्य के कारकों का विवरण है। ग्यारहवें उल्लास में आध्यात्मिक विचार और ध्यान के स्वरूप का वर्णन है। अंतिम १२वें उल्लास में मृत्यु के समय के कर्तव्य तथा परलोक के साधनों की चर्चा है । कृति के अन्य में १० श्लोकों की प्रशस्ति दी गयी है। यह कृति वि० सं० १२७७/ई० सन् १२२१ में रची गयी मानी जाती है । ब्राह्मणीय परम्परा के प्रसिद्ध ग्रन्थकार माधव (ई० स० की १४वीं शताब्दी) द्वारा प्रणीत सर्वदर्शनसंग्रह में भी आचार्य जिनदत्तसूरि की उक्त कृति का उल्लेख प्राप्त होता है । Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायडगच्छ १२२१ शकुनशास्त्र नौ प्रस्तावों में विभक्त पद्यात्मककृति है। इसमें संतान के जन्म,लग्न और शयन सम्बन्धी शकुन, प्रभात में उठने के समय के शकुन, दातून करने एवं स्नान करने के समय के शकुन, परदेश जाने एवं नगर में प्रवेश करने के समय के शकुन आदि अनेक शकुन और उनके शुभाशुभ फल आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। अमरचन्द्रसूरि : ___ वायडगच्छीय जिनदत्तसूरि के शिष्य और वाघेलानरेश वीसलदेव (वि० सं० १२९४-१३२८) और उनके मंत्री वस्तुपाल-तेजपाल द्वारा सम्मानित अमरचन्द्रसूरि उस युग के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से थे। जैन श्रमण की दीक्षा लेने से पूर्व ये वायटीय ब्राह्मण थे। इन्होंने स्वरचित बालभारत, पद्मानन्दमहाकाव्य काव्यकल्पलता, स्यादिशब्दसमुच्चय आदि में अपने सम्बन्ध में कुछ जानकारी दी है। इसके अतिरिक्त परवर्ती ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों यथा अरिसिंह द्वारा रचित सुकृतसंकीर्तन, मेरुतुंगसूरि द्वारा रचित प्रबन्धचिन्तामणि, राजशेखरसूरि द्वारा प्रणीत चतुर्विंशतिप्रबन्ध, रत्नमंदिरगणि द्वारा रचित उपदेशतरंगिणी, नयचन्द्रसूरि द्वारा रचित हम्मीरमहाकाव्य (रचनाकाल वि० सं० १४४४ के आसपास) आदि से भी इनके जीवन पर कुछ प्रकाश पडता है२ । वायड निवासी ब्राह्मणों के अनुरोध पर इन्होंने महाभारत पर पूर्वरूपेण आधारित बालभारत नामक कृति की रचना की । मूल महाभारत की भाति यह भी १८ पर्यों में विभाजित है। ये पर्व एक या अधिक सर्गों में विभाजित हैं। इनकी कुल संख्या ४४ है । सम्पूर्ण ग्रन्थ में ६९५० श्लोक हैं । बालभारत के रचनाकाल के सम्बन्ध में रचनाकार ने कोई उल्लेख नहीं किया है । इस सम्बन्ध में चतुर्विंशतिप्रबन्ध से विशेष जानकारी प्राप्त होती है। उसके अनुसारी वीसलदेव के सम्पर्क में आने से पूर्व ही इन्होंने बालभारत की रचना की थी। चूकि वीसलदेव का शासनकाल (वि० सं० १२९४-१३२८ । ई० सन् १२३८-१२७२) निश्चित है और और अमरचन्द्रसूरि के गुरु जिनदत्तसूरि की कृति विवेकविलास का रचनाकाल वि० सं० १२७७/ ई० Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सन् १२२१ माना गया है४४ अतः बालभारत का रचनाकाल वि० सं० १२७७ से वि० सं० १२९४ के बीच माना जा सकता है । पद्मानन्दमहाकाव्य का प्रथम सर्ग प्रस्तावना के रूप में है । दूसरे से छठ्ठे सर्ग तक आदिनाथ के पूर्वभवों का विवरण है, सातवें में जन्म, आठवें में बाल्यकाल, यौवन, विवाह, नवें में सन्तानोत्पत्ति, दशम में राज्याभिषेक, ११ वें और १२वें में कैवल्यप्राप्ति, १४वें में समवशरण - देशना आदि, सोलहवें, सत्रहवें और अठारहवें में भरत - बाहुबलि और मरीच के वृत्तान्त के साथ अन्त में ऋषभदेव एवं भरत के निर्वाण का वर्णन है और यहीं पर कथा समाप्त हो जाती है । १९ वें सर्ग में कवि ने प्रशस्ति के रूप में अपनी विस्तृत गुरु- परम्परा, काव्यरचना का उद्देश्य, मंत्री पद्म की वंशावली आदि का वर्णन किया है । कवि अमरचन्द्रसूरि ने अपनी इस कृति में भी इसके रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है। चूँकि यह वीसलदेव के शासनकाल में रची गयी है और इसकी वि० सं० १२९७ में लिखी गयी एक प्रति खंभात के शांतिनाथ जैन भंडार में संरक्षित है अतः यह उक्ततिथि के पूर्व ही रचा गया होगा । इस आधार पर पद्मानन्दमहाकाव्य वि० सं० १२९४ से वि० सं० १२९७ के मध्य की कृति मानी जाती है ४५ 1 1 अमरचन्द्रसूरि ने चतुर्विंशतिजिनेन्द्रसंक्षिप्तचरितानि नामक अपनी कृति में चौबीस तीर्थंकरों का संक्षिप्त जीवनपरिचय प्रस्तुत किया है४६ इसमें २४ अध्याय और १८०२ श्लोक हैं । इनके द्वारा रचित अन्य कृतियाँ भी हैं जो इस प्रकार हैं : काव्यकल्पलता, काव्यकल्पलतावृत्ति अपरनाम कविशिक्षा, सुकृतसंकीर्तन के प्रत्येक सर्ग के अंतिम ४ श्लोक, स्यादिशब्दसमुच्चय, काव्यकल्पलतापरिमल छन्दोरत्नावली, अलंकारप्रबोध; कलाकलाप, काव्यकल्पलतामंजरी और सूक्तावली । इनमें से अंतिम चार ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं | प्रथम पाँच प्रकाशित हो चुके हैं तथा बीच के दो ग्रन्थ काव्यलतापरिमल और छन्दोरत्नावली अभी अप्रकाशित हैं । Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ वायडगच्छ १२२३ संदर्भसूची: १. थारापद्र-वर्तमान थराद, जिला बनासकांठा, उत्तर गुजरात. मोढेरा-तालुका चाणस्मा, जिला मेहसाना, उत्तर गुजरात. उमाशंकर जोशी-पुराणोमां गुजरात संशोधन ग्रन्थमाला, ग्रंथांक ७; गुजरात विद्यासभा, अहमदाबाद ११४६ ईस्वी०, पृष्ट १६१. भोगीलाल सांडेसरा-जैन आगम साहित्यमां गुजरात, संशोधन ग्रन्थमाला, ग्रंथांक ८, गुजरात विद्यासभा, अहमदाबाद १९५२ ईस्वी, पृष्ठ १४९. यह सूचना प्रो० एम० ए० ढांकी से प्राप्त हुई है, जिसके लिये लेखक उनका हृदय से आभारी है। स्व० डा० उमाकान्त प्रेमानन्द शाह से प्राप्त सूचना पर आधारित. प्रो. ढांकी से प्राप्त व्यतिगत सूचना पर आधारित. मधुसूदन ढांकी और लक्ष्मण भोजक "शत्रुजयगिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमालेखो" सम्बोधि, वर्ष ७, अंक १-४, लेखांक १-२, पृष्ठ १४-१५. ८. मोढेर वायडे खेडे नानके पल्लयां मतुण्डके मुण्डस्थले श्रीमालपत्तने उपकेशपुरे कुण्डग्रामे सत्यपुरे टङ्कायां गङ्गाहदे सरस्थाने वीतभये चम्पायां अपापायां-पुण्ड्रपर्वते नन्दिवर्धन-कोटिभूमौ वीरः । "चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प" विविधतीर्थकल्प, संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १०, शांतिनिकेतन १९३४ ई०, पृष्ठ ८५-८६. वायडपुरे जीवितस्वामिनं श्रीमुनिसुव्रतमपरं श्रीवीरं नन्तुं चलत। "मन्त्रिउदयनप्रबन्धः" पुरातनप्रबन्धसंग्रह, संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रंथांक २, कलकत्ता १९३६ ई०, पृष्ठ ३२. अष्टोत्तरी तीर्थमाला चैत्यवन्दन विधिपक्षगच्छस्य पंचप्रतिक्रमणसूत्राणि, वि० सं० १९८४. ११. यह सूचना प्रो० एम० ए० ढांकी से प्राप्त हुई है जिसके लिये लेखक उनका आभारी ) थाराउद्दय-वायड-जालीहर-नगर-खेड-मोढेरे । अणहिल्लवाडनयरे व (च) ड्डावल्लीय बंभाणे ॥ २७ ॥ "सकलतीर्थस्तोत्र" A descriptive Catalogue of Mss in the Jains Bhandars at Pattan, G.O.S. No. LXXVI, Baroda 1937 A. D, Pp. 155-156. Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १३. इतः श्रीविक्रमादित्यः शास्त्यवन्तीं नराधिपः । अनृणां पृथिवीं कुर्वन् प्रवर्तयतिवत्सरम् ॥ ७१ ।। वायटे प्रेषितोऽमात्यो लिम्बाख्यस्तेन भूभुजा । जनानृण्याय जीर्णं चापश्यच्छीवीरधाम तत् ॥ ७२ ॥ उद्यधारस्ववंशेन निजेन सह मन्दिरम् । अर्हतस्तत्र सौवर्णकुम्भदण्डध्वजालिभृत् ॥ ७३ ॥ "जीवदेवसूरिचरितम्" प्रभावकचरित, संपा० मुनि जिनविजय, सिंघीजैनग्रन्थमाला, ग्रंथांक १३, कलकत्ता १९४० ई०, पृष्ठ ४७-५३. १४. स निम्बो वायटे श्रीमहावीरप्रासादमचीकरत् । "जीवदेवसूरि प्रबन्ध" प्रबन्धकोश संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६, शांतिनिकेतन १९३५ ईस्वी सन् पृष्ठ ७-९. १५. M.A. Dhaky-Vayata Gaccha and Vayatiya Caityas, Unpublished. "जीवदेवसूरिचरितम्" श्लोक १-४६. प्रभावकचरित, पृष्ठ ४७-४८. वही, श्लोक ११८ और आगे. Padmananda Mahakavya, Ed. H. R. Kapadia, G.O.S. No. LVIII, Baroda 1932 A.D. Prashsti, Pp. 437-446. गौरेका पतिता कथञ्चन मृता श्रीब्रह्मशालान्तरे न म्लेच्छाः प्रविशन्ति तत्र न मृतं कर्षन्ति विप्राः पशुम्। धर्माधार ! कृपाधुरीण ! तरसा तस्मान्महाकश्मला-दस्मानन्यपुरप्रवेशकलयैवोत्कर्षतः कर्षः तत् ॥ १९ ॥ वही, प्रशस्ति, श्लोक १९, पृष्ठ ४४०. २०. वही, श्लोक ३६-३८, २१. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास बम्बई १९३२ ई०, पृष्ठ ३४१, कंडिका ४९६. २२. संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रंथांक ३२, बम्बई १९६१ ईस्वी. २३. अथाचलन् वायटगच्छवत्सला:, कलास्पदं श्रीजिनदत्तसूरयः । निराकृत श्रीषु न येषु मन्मथः, चकार केलि जननी विरोधतः ।। सुकृतसंकीर्तन, सर्ग ५, श्लोक ११. Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२५ २५. वायडगच्छ २४. आस्ति प्रीतिपदं गच्छो, जगतः सहकारवत् ।। जनपुंस्कोकिलाकीर्णो, वायडस्थानकस्थितिः ॥ १॥ अर्हन्मतपुरीवप्र-स्तत्र श्रीराशिलः प्रभुः ॥ अनुल्लङ्घ्यः पेरेर्वादि-वीरैः स्थैर्यगुणैकभूः ।। २ ॥ गुणा: श्रीजीवदेवस्य, प्रभोरद्भुतकेलयः ॥ विद्वज्जनशिरोदोलां यत्रोज्झन्ति कदाचन ॥ ३ ॥ विवेकविलास, संपा० भृगुभाई फतेहचंद कारबारी, बम्बई १९१६ ई० सन्, प्रशस्ति, श्लोक १-३. मंदारमंजर पिव सुरावि सवणावयं सयं णिति । पागयपबंधकदूणो वाणि सिरिजीवदेवस्स ॥ ११ ॥ सुपासनाहचरि, संपा० एवं संस्कृतभावानुवादक पं० हरगोविन्ददास त्रिकमचंद सेठ, प्रथम भाग, जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला, ग्रंथांक ४, बनारस १९१८ ई० मंगलाचरण, पृष्ठ १. २६. सिरिजीवदेवसूरिं वंदे जस्स प्पबंधकुसुमरसं। आसाईऊण सुचिरं अज्ज वि मज्जति कविभसला ॥ वासुपूज्यचरित प्रशस्ति C.D. Dalal and L.B. Gandhi - A Descriptive Catalogue of Manuscripts in The Jain Bhandars at Pattan, Vol 1, Pp. 140-142. २७. तिलकमंजरी, संपा० पं० भवदत्तशास्त्री एवं काशीनाथ पाण्डुरंग परब, काव्यमाला ८५, मुम्बई १९०३ ई०, मंगलाचरण, पृष्ठ ३. २८. जिनस्नात्रविधिः पञ्चिकयासहितः संपा० पं० लालचंद भगवानदास गांधी, बम्बई १९६५ ई० सन्. २९. U. P. Shah - "A Forgotten Chapter in the history of Svetambar Jaina Church" J. O. A. S. B. Vol. 30, Part I 1955 A. D. Pp 100 113. ३०. पूरनचन्द नाहर-संपा० जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २२३२. Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ३१. मुनि जिनविजय - संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, भावनगर १९२१ ई० सन्, लेखांक ५२३. ३२. द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक २५. ३३. वही ३४. प्रो० एम० ए० ढांकी से प्राप्त व्यतिगत सूचना पर आधारित. ३५. विवेकविलास, संशोधक एवं संपादक : भृगुभाई फतेहचंद कारबारी, प्रकाशक - मेघजी हीरजी बुकसेलर, मुम्बई १९१६ ई० सन्. द्रष्टव्य-संदर्भक्रमांक २४. ३७. मोहनलाल मेहता और हीरालाल रसिकलाल कापडिया - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला-१२, वाराणसी १९६८ ई०, पृष्ठ २१७. ३८. भोगीलाल सांडेसरा - वस्तुपाल का साहित्य मंडल और संस्कृत साहित्य को उसकी देन, पृष्ठ ८९. राजबली पाण्डेय - हिन्दूधर्मकोश, लखनऊ १९८८ ई०, पृष्ठ ५१३-१४. ४०. मेहता और कापडिया, पूर्वोक्त, पृष्ठ २१७. ४१. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृष्ठ १९७. ४२. H. R. Kapadia, Padmananda Mahakavya, Introduction, Pp 31 33. श्यामशंकर दीक्षित-तेरहवीं चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, जयपुर १९६९ ईस्वी, पृष्ठ २५४-२५६. ४३. प्रबन्धकोश, "अमरचन्द्रकविप्रबन्ध" पृष्ठ ६१-६३. ४४. सांडेसरा, पूर्वोक्त, पृष्ठ ८९. ४५. दीक्षित, पूर्वोक्त, पृष्ट ३०३-३०४. ४६. गुलाबचंद चौधरी - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृष्ठ ७६-७७. ३९. Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्याधरकुल / विद्याधरगच्छ उत्तर भारतीय निर्ग्रन्थ संघ के अल्पचेल (बाद में श्वेताम्बर) सम्प्रदाय के अंतर्गत विद्याधरकुल (बाद में विद्याधरगच्छ) का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा। अब से लगभंग ५०० वर्ष पूर्व तक विद्यमान इस गच्छ की उत्पत्ति कोटिकगण की विज्जाहरी (विद्याधरी) शाखा से हुई, ऐसा पर्दूषणाकल्प की "स्थविरावली" (जिसका प्रारम्भिक भाग ई० स० १०० के बाद का माना जाता है) से ज्ञात होता है। इसके अनुसार आर्य सुहस्ति के प्रशिष्य और स्थविर सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध के शिष्य विद्याधर गोपाल से विद्याधरशाखा का उद्भव हुआ। विद्याधरशाखा ही आगे की शताब्दियों में 'विद्याधरकुल' के रूप में प्रसिद्ध हुई। विद्याधरकुल (शाखा) से संबद्ध अगला साक्ष्य ई० स० की छठी शताब्दी के मध्य का है जो गुजरात प्रान्त में आकोटा नामक स्थान से प्राप्त धातु की मितिविहीन अम्बिका की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । डा० उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : १- १. (ॐ) दे (व) धर्मोयं (वि) य १- २. ह (२) कुले xxxह १- ३. ज (र -? रि?) णि (?) x शाह जी ने उक्त प्रतिमालेख की लिपि के आधार पर ई० स० की छठी शती के अंतिम चरण का बतलाया है। विद्याधरकुल से सम्बद्ध अगला साक्ष्य भी आकोटा से ही प्राप्त हुआ है । यह साक्ष्य ऋषभदेव की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इसकी वाचना निम्नानुसार दी गयी है: Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १ - १. ॐ देवधर्मोयं १ - २. वियहर कुलेयो १ - ३. गुण लिपिशास्त्र के आधार पर शाह जी ने इस प्रतिमा लेख को ई० स० ६५० का बतलाया है। आकोट से ही प्राप्त ऋषभदेव और पार्श्वनाथ की धातु-प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में भी विद्याधरकुल का उल्लेख मिलता है। डा० शाह ने इन लेखों को ई० स० ७०० का माना है। - खानदेश से प्राप्त और वर्तमान में लालभाई दलपतभाई संग्रहालय, अहमदाबाद में संरक्षित भगवान् आदिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में विद्याधरगच्छ ऐसा अभिधान मिलता है। प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख की लिपि के आधार पर डा. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ने ई० स० की आठवी शताब्दी का माना है। ई० स० की आठवीं शताब्दी में विद्याधर कुल में आचार्य हरिभद्रसूरि जैसे महान् आचार्य हो चुके हैं, जिनके द्वारा प्रणीत छोटी-बड़ी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ आज मिलती हैं । आवश्यकटीका की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को आचार्य जिनभट (जिनभद्र) का प्रशिष्य और जिनदत्तसूरि का शिष्य एवं याकिनी महत्तरा नामक साध्वी का धर्मपुत्र कहा है : ___"समाप्ता चेयं शिष्यहिता नामावश्यकटीका । कृतिः सिताम्बराचार्यजिनभटनिगदानुसारिणो विद्याधरकुलतिलकाचार्यजिनदत्तशिष्यसा धर्मतो जाइणीमहत्तरासूनोरल्पमतेराचार्य हरिभद्रस्य ।" (आवश्यकटीका की प्रशस्ति) हरिभद्रसूरि के उपनाम के रूप में 'भवविरह' नामक विशेषण प्रसिद्ध था । अष्टकप्रकरण, धर्मबिन्दु, ललितविस्तरा, पंचवस्तुटीका, शास्त्रवार्तासमुच्चय, योगदृष्टिसमुच्चय, षोडशक, अनेकान्तजयपताका, योगबिन्दु, संसारदावानलस्तुति, धर्मसंग्रहणी, उपदेशपद, Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्याधरगच्छ १२२९ पंचाशक और सम्बोधप्रकरण की प्रशस्तियों में उन्होंने स्वयं के लिए 'भवविरह' शब्द का प्रयोग किया है। ___भद्रेश्वरसूरि द्वारा रचित कहावली (ई० स० की १२वीं शताब्दी) में इनके लिये 'भवविरहसूरि' शब्द का कई बार प्रयोग किया गया है। कहावली में इनके दो शिष्यों-जिनभद्र और वीरभद्र का नाम मिलता है११ जबकि उत्तरकालीन विभिन्न ग्रन्थों में इनके शिष्यों के अन्य ही नाम दिये गये हैं। निर्वाणकलिका (प्रायः ९५० ई० स०) के रचनाकार पादलिप्तसूरि (तृतीय) भी विद्याधरकुल के थे। उक्त कृति की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को संगमसिंह का प्रशिष्य और मण्डनगणि का शिष्य बतलाया है : श्रीविद्याधर वंशभूषणमणिः प्रख्यातनामा भुवि । श्रीमन्सङ्गमसिंह इत्यधिपतिः श्वेताम्बराणामभूत् ।। शिष्यस्तस्य बभूव मण्डनगणिर्योवाचनाचार्य । इत्युच्चैः पूज्यपदं गुणैर्गुणवतामग्रेसरः प्राप्तवान् ॥१॥ क्षान्तेः क्षेत्रं गुणमणिनिधिस्तस्य पादलिप्तसूरिर्जातः शिष्यो निरुपमयशः पूरिताशावकाशः ॥ विन्यस्तेयं निपुणमनसा तेन सिद्धान्तमन्त्राण्यालोच्यैषा विधिमविदुषां पद्धतिर्बोधिहेतोः ॥ २ ॥ विद्याधरकुल से संबद्ध अगला साक्ष्य है वि० सं० १०६४ / ई० स० १००८ का प्रतिमालेख, जो शत्रुजंय पर स्थित पुण्डरीकस्वामी की संगमरमर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह ने इसकी वाचना दी है,१३ जो इस प्रकार है : श्रीमद्युगादिदेवस्य पुंडरीकस्य च क्रमौ । ध्यात्वा शत्रुजये शुद्धयन् सल्लेखाध्यानसंयमैः ॥ १ ॥ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास श्रीसंगमसिद्धमुनिविद्याध () रकुलनभस्थलमृगांकः । दिवसैश्चतुर्भिरधिकं मासमुपोष्याचलितसत्व ॥ २ ॥ वर्षे सहस्त्रे षष्टयां चतुरन्वितयाधिके दिवमगच्छत् । () सोमदिने आग्रहायणमासे कृष्णद्वितीयायां ॥ ३ ॥ अम्मेयकः शुभं तस्य श्रेष्ठिरोधेयकात्मजः । पुंडरीकपदासंगि चैत्यमेतदचीकरत् ॥ ४ ॥ वि० सं० १२५४ /ई० स० ११९८ में जालिहरगच्छीय देवप्रभसूरि द्वारा रचित पद्मप्रभचरित की प्रशस्ति के अनुसार काशहद और जालिहरगच्छों का उद्भव विद्याधरकुल से बतलाया गया है।१४ _ विद्याधरगच्छ से संबद्ध कुछ अन्य अभिलेखीय साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं जो वि० सं० १४०८ से लेकर वि० सं०.१५३४ तक के हैं। इनका विवरण इस प्रकार है। Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्याधरगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / मुनि का नाम लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १. १४०८ | वैशाख उदयदेवसूरि आदिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | शांतिनाथ पोल, संपा० जैनधातुगुरुवार का लेख अहमदाबाद प्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२५६ २. १४०९ / वैशाख देवप्रभसूरि सुविधिनाथ की | विमलनाथ वही, भाग २, सुदि ७ धातु की प्रतिमा | जिनालय, चौकसी लेखांक ८१७ गुरुवार का लेख पोल, खंभात ३. १४११ | वैशाख विजयप्रभसूरि | धर्मनाथ की गौडी पार्श्वनाथ पूरनचन्द नाहर, वदि ५ धातु की प्रतिमा | जिनालय, उदयपुर संपा० जैनलेखशनिवार का लेख संग्रह, भाग २, लेखांक १११८ १२३१ Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि / मुनि का नाम मिति १२३२ - ४. विनयप्रभसूरि ५. १४१३ | फाल्गुन वदि ११ १४२९ | माघ वदि ७ सोमवार उदयदेवसूरि तिका स्वरूप लेख का स्वरूप | पतिप्रस्थान | संदर्भग्रन्थ । प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख वासुपूज्य की जैन मंदिर, रोहीडा, वही, भाग २, प्रतिमा का लेख | सिरोही लेखांक २०८४ । पार्श्वनाथ की जैन मंदिर, नाणा नाहर, पूर्वोक्त, पंचतीर्थी प्रतिमा |भाग १, का लेख लेखांक ८८६, मुनि जिनविजय, संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - विद्याधरगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| मुनि का नाम | लेख का स्वरूप | प्रतिष्ठास्थान । संदर्भग्रन्थ मिति प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ६. १४४० पौष । गुणप्रभसूरि पार्श्वनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १२ पंचतीर्थी प्रतिमा | जैसलमेर भाग १, बुधवार का लेख लेखांक २२७८ ७. १४४५ | फाल्गुन गुणप्रभसूरि पार्श्वनाथ की विमलनाथ बुद्धिसागरसूरि, वदि १२ धातु की प्रतिमा | जिनालय, चौकसी | पूर्वोक्त, भाग २, रविवार का लेख पोल, खंभात लेखांक ८७८ वैशाख उदयदेवसूरि | अजितनाथ की साराभाई मणिलाल वदि १ प्रतिमा का लेख नवाब, सोमवार "राजनगरना ऐतिहासिक जैन अवशेषों" १२३३ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / मुनि का नाम मिति १२३४ लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, अंक ८, पृष्ठ ३८२, लेखांक २१. तीर्थंकर की गौड़ी जी का मंदिर |विजयधर्मसूरि, धातु की प्रतिमा | उदयपुर संपा० प्राचीनका लेख लेखसंग्रह, लेखांक २६९ | शांतिनाथ की अजितनाथ बुद्धिसागरसूरि, धातु की प्रतिमा जिनालय, शेखनो पूर्वोक्त, भाग २, का लेख पाडो, अहमदाबाद लेखांक १००१ ९. १५११ वैशाख | विजयप्रभसूरि वदि ५ शनिवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - १०. | हेमप्रभसूरि - १५१५ | ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार - - Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्याधरगच्छ क्रमाङ्क | संवत | तिथि / मुनि का नाम लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ११. १५१८ | माघ हेमप्रभसूरि शांतिनाथ की स्वामी जी का नाहर, पूर्वोक्त, वदि ७ प्रतिमा का लेख | मंदिर, सहादतगंज, भाग २, शुक्रवार लखनऊ लेखांक १६२४ १२. १५२० / पौष विजयप्रभसूरि । कुन्थुनाथ की बड़ा मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ के पट्टधर | चौबीसी प्रतिमा | नागौर भाग २, शुक्रवार हेमप्रभसूरि का लेख लेखांक १३१३ एवं विनयसागर, संपा० प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६०८ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १३. १५३४ तिथि / मिति माघ सुदि ५ मुनि का नाम हेमप्रभसूर लेख का स्वरूप प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान महावीर जिनालय, ओसिया संदर्भग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भा-१, लेखांक ७९८ १२३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्याधरगच्छ १२३७ उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों के आधार पर विद्याधरगच्छ के जिन मुनिजनों के नाम प्राप्त होते हैं, वे इस प्रकार हैं : मुनिसंगमसिद्ध (वि० सं० १०६४) उदयदेवसूरि 'प्रथम' (वि० सं० १४०८ - १४२९ ) देवप्रभसूरि (वि० सं० १४०९) विजयप्रभसूरि 'प्रथम' (वि० सं० १४११ - १४१३) गुणप्रभसूरि (वि० सं० १४४० - १४४५) उदयदेवसूरि 'द्वितीय' (वि० सं० १४५२) विजयप्रभसूरि 'द्वितीय' (वि० सं० १५११) हेमभद्रसूरि (वि० सं० १५१५ - १५३४ ) विक्रम संवत् की १६वीं शताब्दी के मध्य के पश्चात् इस गच्छ से संबद्ध कोई भी साहित्यिक या अभिलेखीय साक्ष्य नहीं मिलता, अत: यह माना जा सकता है कि इस समय के पश्चात् विद्याधरगच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा । Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ 3 ; i १२३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास संदर्भ सूची : १. कल्पसूत्र ‘स्थविरावली', संपा० देवेन्द्रमुनि शास्त्री, श्री अमर जैन आगम शोध संस्थान, गढ़ सिवाना, बाडमेर (राजस्थान), १९६८ ई० स० पृष्ठ ३००. प्रो० मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर । थेरेहितो ण विज्जाहरगोवालेहिंतो तत्थ णं विज्जाहरी साहा निग्गया ॥ २१७ ॥ देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३०२. U. P. Shah, Akota Bronzes, Bombay 1959 A.D. P. 31. Ibid. P. 38 Ibid. Ibid. P.44-45. U. P. Shah, Treasures of Jaina Bhandars, L.D. Series No. 69, ___Ahmedabad 1978A.D., 55-57. ९. मुनि जिनविजय, "हरिभद्रसूरि का समय निर्णय" पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४७, द्वितीय संस्करण, वाराणसी १९८८ ई० स० पृष्ठ ६. १०. पं० सुखलाल जी संघवी, समदर्शी आचार्य हरिभद्र, राजस्थान पुरातत्त्व ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६८, जोधपुर १९६३ ई०सं० पृष्ठ १३. ११. वही, पृष्ठ १४. १२. संशोधक - मोहनलाल भगवानदास झवेरी, मुम्बई १९२६ ई० स०. H.D. Velankar, Jinaratnakosha, Poona 1944 A.D. P. 214. 83. A. P. Shah, "Some Early Inscriptions and Images on Mount. Shatrunjaya”. Mahaveera Jain Vidyalaya Golden Jubile Volume, Part I, Bombay 1968 A.D., English Section, P. 164, No 1. १४. विज्जाहरसाहाए गुच्छा गुच्छ सुमणमणहरणा। जालिहर - कासहरया मुणिमहुअरपरि (गया) दुन्नि ॥ ३४ ॥ C. D. Dalal, Ed. Descriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhadars at Pattan, P. 212. Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्वमध्यकाल में पश्चिमी भारत में निर्ग्रन्थ श्वेताम्बर श्रमण संघ की विभिन्न गच्छों के रूप में विभाजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। कुछ गच्छों का नामकरण विभिन्न नगरों के नाम के आधार पर हुआ, जैसे कोरंट (वर्तमान कोटा) से कोरंट गच्छ, नाणा (वर्तमान नाना) से नाणकीय गच्छ, ब्रह्माण (वर्तमान वरमाण) से ब्रह्माणगच्छ, संडेर (वर्तमान सांडेराव) से संडेरगच्छ, पल्ली (वर्तमान पाली) से पल्लीवालगच्छ, उपकेशपुर (वर्तमान ओसिया) से उपकेशगच्छ, काशहृद (वर्तमान कायंद्रा) से काशहदगच्छ आदि । यहां संडेरगच्छ के सम्बन्ध में यथाज्ञात साक्ष्यों के आधार पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है I संडेरगच्छ चैत्यवासी आम्नाय के अन्तर्गत था । यह गच्छ १०वीं शती के लगभग अस्तित्व में आया । ईश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। उनके शिष्य एवं पट्टधर श्री यशोभद्रसूरि गच्छ के महाप्रभावक आचार्य हुए। संडेरगच्छीय परम्परा के अनुसार यशोभद्रसूरि के पश्चात् उनके पट्टधर शालिसूरि और आगे क्रमशः सुमतिसूरि, शांतिसूरि और ईश्वरसूरि (द्वितीय) हुए। पट्टधर आचार्यों के नामों का यह क्रम लम्बे समय तक चलता रहा । संडेरगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये हमारे पास मूलकर्ता के ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराने वाले गृहस्थों की प्रशस्तियां एवं स्वगच्छीय आचार्यों के रचनाओं की प्रशस्तियां सीमित संख्या में उपलब्ध हैं । इनके अतिरिक्त राजगच्छीयपट्टावली (रचनाकाल वि० सं० १६वीं शती लगभग) एवं वीरवंशावली (रचनाकाल वि० सं० १७वीं शती लगभग) से भी इस Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गच्छ के प्रारम्भिक आचार्यों के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है । संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं। इनमें से अधिकांश प्रतिमायें लेखयुक्त हैं। पट्टावलियों की अपेक्षा ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियाँ और प्रतिमालेख समसामयिक होने से ज्यादा प्रामाणिक हैं । यहां इन्ही आधारों पर संडेरगच्छ के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है। इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है - साहित्यिकसाक्ष्य षड्विधावश्यकविवरण की दाता प्रशस्ति' (लेखनकाल वि० सं० १२९५ / ई० सन् १२२९) इस ग्रन्थ की दाता प्रशस्ति में सौवर्णिक पल्लीवालज्ञातीय श्रावक तेजपाल द्वारा षड्विधावश्यकविवरण (आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित योगशास्त्र का एक अध्याय) की प्रतिलिपि संडेरगच्छीय गणि आसचन्द्र के शिष्य पंडित गुणाकर को दान में देने का उल्लेख है। परन्तु गणि आसचन्द्र संडेरगच्छ के किस आचार्य के शिष्य थे, यह ज्ञात नहीं होता है। संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है, इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है। त्रिष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अन्तर्गत महावीरचरित्र की दाता प्रशस्ति (लेखन काल वि० सं० १३२४/ई० सन् १२६७) इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि का महान् प्रभावक आचार्य के रूप में उल्लेख है। यह प्रशस्ति खंडित है; अतः इसमें यशोभद्रसूरि के बाद के आचार्य का नाम (जो शालिसूरि होना चाहिए) नहीं मिलता, फिर आगे सुमतिसूरि का नाम आता है और इन्हें दशवैकालिकटीका का रचयिता बताया गया है। इनके पश्चात् शान्तिसूरि और फिर ईश्वरसूरि के नाम आते हैं। प्रशस्ति में आगे दाता श्रावक परिवार की विस्तृत वंशावली दी गयी है। इसी श्रावक परिवार के एक सदस्य द्वारा कल्पसूत्र एवं कालकाचार्यकथा की प्रतिलिपि करायी गयी। यद्यपि इनकी दाताप्रशस्ति में रचनाकाल नहीं दिया गया है, फिर भी इस प्रशस्ति को लिखवाने वाला Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२४१ श्रावक उक्त (श्रावक) परिवार का ही एक सदस्य होने से इसका रचनाकाल वि० सं० की चौदहवीं शताब्दी का मध्य माना जा सकता है। इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि और फिर ईश्वरसूरि का नाम आता है और अन्त में उसी श्रावक परिवार की वंशावली दी गयी है। इस प्रशस्ति से यह सिद्ध हो जाता है कि संडेरगच्छ में इन्हीं चार पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति होती रही। इस तथ्य का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम साहित्यक प्रमाण है। परिशिष्टपर्व के वि० सं० १४७९ / ई० स० १४२२ में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति इस प्रशस्ति के अनुसार संडेरगच्छीय आचार्य यशोभद्रसूरि के संतानीय शांतिसूरि के शिष्य मुनि विनयचन्द्र ने श्री सोमकलश के उपदेश से वि० सं० १४७९ ज्येष्ठ सुदि प्रतिपदा मंगलवार को उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि तैयार की। वि० सं० १४७९ में आचार्य शांतिसूरि संडेरगच्छ के प्रमुख थे, ऐसा इस प्रशस्ति से स्पष्ट होता है। कल्पसूत्र के वि० सं० १५८६ में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति इस प्रशस्ति में संडेरगच्छीय आचार्यों की जो गुर्वावली मिलती है, वह इस प्रकार है - यशोभद्रसूरि शालिसूरि सुमतिसूरि शांतिसूरि Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ईश्वरसूरि शालिसूरि वाचक हर्षसागर मुनिगंगा (वि० सं० १५८६) इस प्रशस्ति से स्पष्ट है कि शालिसूरि के प्रशिष्य एवं वाचक हर्षसागर के शिष्य मुनि गंगा के पठनार्थ एक श्रावक द्वारा कल्पसूत्र की प्रतिलिपि तैयार करायी गयी । हर्षसागर और मुनिगंगा शालिसूरि के संभवत: पट्टधर नहीं थे, अतः उनका नाम परिवर्तित नहीं हुआ । इस प्रशस्ति की गुर्वावली में भी चार नामों के पुनरावृत्ति की झलक है, परन्तु इन आचार्यों के किन्ही विशिष्ट कृत्यों यथा साहित्य रचना आदि की कोई चर्चा नहीं हैं। भोजचरित्र के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि-सुमतिसूरि-शांतिसूरि का उल्लेख करते हुए शांतिसूरि के शिष्य नयनकुञ्जर और हंसराज द्वारा भोजचरित्र की प्रतिलिपि करने का उल्लेख है। षट्पंचासिकास्तवक के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति- इस प्रशस्ति में आचार्यों की गुर्वावली न मिलकर उपाध्याय धर्मरत्न और उनके शिष्यों की गुर्वावली मिलती है और यही कारण है कि इसमें परम्परागत नाम नहीं मिलते हैं । सन्देहशतक की वि० सं० १७५० में तैयार की गयी प्रतिलिप की दाता प्रशस्ति से भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है। Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४३ संडेरगच्छ इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संडेरगच्छ में गच्छनायक आचार्यों को ही परम्परागत नाम दिये जाते थे, शेष मुनिजनों के वही नाम अन्त तक बने रहते थे जो उन्हें दीक्षा के समय दिये जाते थे। संडेरगच्छीय आचार्यों की लम्बी परम्परा में सुमतिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य शांतिसूरि (चतुर्थ) ने वि० सं० १५५० में सागरदत्तरास और इनके शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) ने वि० सं० १५६१ में ललितांगचरित; वि० सं० १५६४ में श्रीपालचौपाई तथा इनके शिष्य धर्मसागर ने वि० सं० १५८७ में आरामनंदनचौपाई की रचना की । इनके समबन्ध में यथास्थान प्रकाश डाला गया है। यहाँ इन रचनाओं के सम्बन्ध में यही कहना अभीष्ट है कि इनकी प्रशस्ति में भी परम्परागत पट्टधर आचार्यों के नामोल्लेख के अतिरिक्त अन्य कोई सूचना नहीं मिलती, जिससे इस गच्छ के इतिहास पर विशेष प्रकार डाला जा सके। संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण संडेरगच्छ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन उपलब्ध अभिलेख वि० सं० १०३९ / ई० सन् ९८२ का है जो आज करेड़ा (प्राचीन करहेटक) स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है - (१) संवत् १०३९ (व)र्षे श्री संडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि सन्तानीय श्री श्यामा ...(?) चार्या ........... (२) ............प्र० भ० श्रीयशोभद्रसूरिः श्रीपार्श्वनाथ बिबं प्रतिष्ठितं ॥ न ॥ पूर्व चन्द्रेण कारितं .......... ____संडेरगच्छ के आदिम एवं महाप्रभावक आचार्य यशोभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित एवं अद्यावधि एकमात्र उपलब्ध प्रतिमा पर उत्कीर्ण यह लेख संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला प्रथम अभिलेख है। साहित्यिक साक्ष्यों Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (पट्टावलियों) के आधार पर यशोभद्रसूरि का समय वि० सं० ९५७/ई० सन् ९०० से वि० सं० १०३९/ई० सन् ९८२ माना जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यशोभद्रसूरि° अपने जीवन के अन्तिम समय तक पूर्णरूप से धार्मिक क्रियाकलापों में संलग्न रहे। वि० सं० १११० से वि० सं० ११७२ तक के ४ में अभिलेख, जो संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं, में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य का कोई उल्लेख नहीं मिलता, इनका विवरण इस प्रकार है(१) वि० सं० ११२३ सुदि ८ सोमवार परिकर पर उत्कीर्ण लेख, इस परिकर में आज पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित है, परन्तु इस लेख में ज्ञात होता है, कि इसमें पहले महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित रही। स्थान - जैन मन्दिर, बीजोआना (२) वि० सं० १११० (तिथिविहीन)१२ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, राधनपुर (३) वि० सं० ११६३ ज्येष्ठ सुदि १०१३ (४) वि० सं० ११७२ (तिथिविहीन लेख)१४ प्रतिष्ठास्थान - जैनमन्दिर, सेवाड़ी सांडेराव स्थित जिनालय के गूढ मंडप में एक आचार्य और उनके शिष्य की प्रतिमा स्थापित है। इस पर वि० सं० ११९७ का एक लेख" भी उत्कीर्ण जिससे ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा संडेरगच्छीय पं० जिनचन्द्र के गुरु देवनाग की है। देवनाग सन्डेरगच्छीय किस आचार्य के शिष्य थे? यह ज्ञात नहीं हैं। Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२४५ जैसा कि हम पहले देख चुके हैं इस गच्छ में आचार्य यशोभद्रसूरि के सन्तानीय (शिष्य) के रूप में सर्वप्रथम शालिसूरि, उनके पश्चात् सुमतिसूरि उनके बाद शांतिसूरि और शांतिसूरि के बाद ईश्वरसूरि क्रमश: पट्टधर होते हैं, ऐसी परम्परा रही है, परन्तु इन परम्परागत नामों के उल्लेख वाला सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १९८१ का है, १६ जो नाडोल के एक जैन मन्दिर में मूलनायक के परिकर के नीचे उत्कीर्ण है । इसमें यशोभद्रसूरि के संतानीय शालिभद्रसूरि ( प्रथम ) का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में रूप में उल्लेख है । इसके बाद वि० सं० १२१० पंचतीर्थी के १७ लेख जो जैन मन्दिर, सम्मेदशिखर में आज प्रतिष्ठित है, प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता । वि० सं० १२१५ के एक लेख में पुनः शालिभद्रसूरि का उल्लेख आता है । अतः वि० सं० १२१० के उक्त पंचतीर्थी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक शालिसूरि (प्रथम) ही रहे होंगे ऐसा माना जा सकता है । वि० सं० १२१८, १२२१, १२३३ और १२३६ के लेखों में यद्यपि प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं है, तथापि उनका विवरण इस प्रकार है - १९ वि० सं० १२१८ श्रावण सुदि १४ रविवार ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख यह ताम्रपत्र पहले जैन मन्दिर नाडोल में था, परन्तु अब रायल एशियाटिक सोसायटी, लन्दन में संरक्षित है । २० वि० सं० १२२१ माघ वदि शुक्रवार सभा मंडप में उत्कीर्ण लेख ..२१ प्रतिष्ठा स्थान - महावीर जिनालय, सांडेराव वि० सं० १२३३ ज्येष्ठ वदि ७ गुरुवार भगवान् शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - जैन मन्दिर, अजारी Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १२३६ ज्येष्ठ सुदि १३ शनिवार २२ वि० सं० १२३७, १२५१ एवं १२५२ के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में यशोभद्रसूरि के सन्तानीय एवं शालिसूरि के पट्टधर सुमतिसूरि (प्रथम) का नाम आता है। इनका विवरण इस प्रकार है वि० सं० १२३७ फाल्गुन सुदि १२ मंगलवार२३ परिकर के नीचे का लेख प्रतिष्ठापक आचार्य - सुमतिसूरि; प्रतिष्ठास्थल-बड़ा जैन मन्दिर, नाडोल वि० सं० १२५१ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार२४ आदिनाथ की परिकर युक्त प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मन्दिर, बोया, मारवाड़ वि० सं० १२५२ माघ वदि ५ रविवार२५ । शान्तिनाथ और कुन्थुनाथ की प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख वर्तमान प्रतिष्ठा स्थान - सोमचिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात जैसलमेर ग्रन्थ भण्डार२६ में बोधकाचार्य के शिष्य सुमतिसूरि द्वारा वि० सं० १२२० में रचित दशवैकालिकटीका उपलब्ध है। बोधकाचार्य और उनके शिष्य सुमतिसूरि किस गच्छ के थे, यह ज्ञात नहीं होता है। जैसा कि पहले देख चुके हैं, सन्डेरगच्छीय शालिसूरि (प्रथम) द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर वि० सं० ११८१ से वि० सं० १२१५ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनके शिष्य सुमतिसूरि (प्रथम) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि० सं० १२३६ से १२५२ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि वि० सं० १२१५ के पश्चात् ही सुमतिसूरि अपने गुरु के पट्ट पर आसीन हुए। ऐसी स्थिति में वि० सं० १२२० में दशवैकालिकटीका के रचनाकार सुमतिसूरि को संडेरगच्छीय सुमतिसूरि से अभिन्न मानने में कोई बाधा नहीं प्रतीत होती है। Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२४७ यशोभद्रसूरि के तृतीय संतानीय एवं शान्तिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि० सं० १२४५ से वि.सं. १२९८ तक के लेख उत्कीर्ण हैं। नाडोल के चाहमान नरेश का मन्त्री और महामात्य वस्तुपाल का अनन्य मित्र यशोवीर इन्हीं शान्तिसूरि का शिष्य था । यशोवीर ने आबू स्थित विमलवसही में जो देवकुलिकायें निर्मित करायीं, उनमें प्रतिमा प्रतिष्ठापन का कार्य शान्तिसूरि ने ही सम्पन्न किया था । इसी कालावधि वि० सं० १२४५ - १२९८ के मध्य वि० सं० १२६६ एवं वि० सं० १२६९ में प्रतिष्ठापित कुछ प्रतिमायें जो संडेरगच्छ से सम्बन्धित हैं, में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता, तथापि ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि उक्त प्रतिमायें भी शान्तिसूरि ने ही प्रतिष्ठापित की होगीं । शान्तिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार है - शांतिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमालेखों का विवरण वि० सं० १९२४५ ( तिथि विहीन लेख ) २७ मंत्री यशोवीर द्वारा नेमिनाथ की प्रतिमा को देवकुलिका में स्थापित करने का इस लेख में विवरण दिया गया है । प्रतिष्ठा स्थान - देहरी संख्या ४५, विमलवसही (आबू) .२८ वि० सं० १२६९ माघ ३ शनिवार प्रतिष्ठा स्थान जैन मन्दिर, अजारी भगवान् चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १२७४ वैशाख सुदि ३ २९ प्रतिष्ठा स्थान - जैन मन्दिर, डभोई वि० सं० १२९१ (तिथि विहीन लेख ) मंत्री यशोवीर द्वारा पद्मप्रभ की प्रतिमा को देवकुलिका में स्थापित कराने का विवरण प्रतिष्ठा स्थान लूणवसही - आबू (देहरी संख्या ४१ ) Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देहरी संख्या ४० पर भी वही लेख है, परन्तु इसमें सुमतिनाथ की प्रतिमा को देवकुलिका में स्थापित कराने का उल्लेख है। वि० सं० १२९७ वैशाख सुदि ३३१ शान्तिसूरि के परिकर वाली प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मन्दिर - अजारी वि० सं० १२९८ तिथि विहीन लेख मल्लिनाथ जिनालय, खंभात में मन्त्री यशोवीर के पुत्र देवधर, उसकी पत्नी देवश्री और उनके पुत्रों द्वारा नन्दीश्वरद्वीप की स्थापना का उल्लेख है। वर्तमान में यह चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय के गर्भगृह के बगल में दीवाल में स्थापित है।३२ दो लेख, जिनमें प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं हैवि० सं० १२६६ कार्तिक वदि २ बुधवार२३ स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - वीर जिनालय, सांडेराव वि० सं० १२६९ फाल्गुन सुदि ४ गुरुवार स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मन्दिर, सांडेराव शान्तिसूरि (प्रथम) के पट्टधर ईश्वरसूरि (द्वितीय) हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठित वि० सं० १३०७ एवं १३१७ के दो लेख मिले हैं जो इस प्रकार वि० सं० १३०७ वैशाख सुदि ५ गुरुवार २५ शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात वि० सं० १३१७ ज्येष्ठ वदि ११ बुधवार Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२४९ .संभवनाथ की प्रतिमा को देवकुलिका सहित प्रतिष्ठित कराने का उल्लेख, प्रतिष्ठा स्थान - बावनजिनालय, की देहरी, उदयपुर संडेरगच्छीय गुर्वावली का सामान्य रूप से यही क्रम प्राप्त होता है, परन्तु शान्तिसूरि और शालिसूरि द्वारा प्रतिष्ठित कुछ जिनप्रतिमायें जो वर्तमान में स्तम्भतीर्थ स्थित मल्लिनाथ जिनालय में सुरक्षित हैं, उनपर उत्कीर्ण लेखों से विचित्र तथ्य प्राप्त होते हैं। जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, शालिसूरि का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम अभिलेख वि० सं० ११८१ और अन्तिम अभिलेख वि० सं० १२१५ का है । इसके बाद सुमतिसूरि द्वारा प्रतिष्ठित वि० सं० १२३७ से वि० सं० १२५२ तक के लेख विद्यमान हैं । इसके आगे शान्तिसूरि द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाओं के लेख भी वि० सं० १२४५ से वि० सं० १२९८ तक के हैं । यह स्वाभाविक क्रम है, परन्तु वि० सं० १२१५ में शान्तिसूरि२७ (प्रथम) शालिसूरि के साथ एवं वि० सं० १२५२ में शालिसूरि३८ सुमतिसूरि (प्रथम) के साथ प्रतिष्ठाकार्य सम्पन्न करा रहे हैं, यह विचारणीय है। ईश्वरसूरि (द्वितीय) के पट्टधर शालिभद्रसूरि (द्वितीय) हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमालेख आज उपलब्ध हैं। उनका विवरण इस प्रकार है - वि० सं० १३३१ वैशाख सुदि ९ सोमवार३९ कपर्दियक्ष की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैनमन्दिर, बयाना वि० सं० १३३७ चैत्र सुदि ११ शुक्रवार शान्तिनाथ प्रतिमा का लेख Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० ११४५ श्रावण वदि १३०१ शान्तिनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, खंभात शालिसूरि (द्वितीय) के पट्टधर सुमतिसूरि (द्वितीय) हुए इनके द्वारा प्रतिष्ठापित जो जिन (तीर्थंकर) प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं, उन पर वि० सं० १३३८ से वि० सं० १३८९ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनका विवरण इस प्रकार है: १. वि० सं० १३३८ फाल्गुन सुदि १० गुरुवार तीर्थङ्कर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - जैन मन्दिर, रत्नपुर, मारवाड़ वि० सं० १३४२ ज्येष्ठ सुदि ९ गुरुवार ०३ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - ऋषभनाथ जिनालय, हाथीपोल, उदयपुर ३. वि० सं० १३५० ज्येष्ठ वदि ५ अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - जैन मन्दिर, ईडर ४. वि० सं० १३५७ ज्येष्ठ वदि ५ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ५ प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १३९१ वैशाख सुदि ९ सोमवार पार्श्वनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर ६. वि० सं० १३७९ ज्येष्ठ वदि ७४७ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२५१ प्राप्तिस्थान - श्वेताम्बर जैन मन्दिर, रामघाट, वाराणसी वि० सं० १३८८ वैशाख सुदि८५ भगवान् पार्श्वनाथ की पाणाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १३८९ ज्येष्ठ सुदि ९८ भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - पूर्वोक्त, बीकानेर इस प्रकार स्पष्ट है कि सुमतिसूरि (द्वितीय) दीर्घजीवी एवं प्रतिभाशीली जैन आचार्य थे। संडेरगच्छ से सम्बन्धित वि० सं० १३७१५० एवं १३९२५१ के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम श्रीसूरि दिया गया है। श्रीसूरि कौन थे? क्या ये सुमतिसूरि (द्वितीय) से भिन्न कोई अन्य आचार्य हैं या स्थानाभाव से सूत्रधार ने सुमतिसूरि न लिखकर श्रीसूरि नाम उत्कीर्ण कर दिया ? यह विचारणीय है। सुमतिसूरि (द्वितीय) के पश्चात् उनके पट्टधर शान्तिसूरि (द्वितीय) संडेरगच्छ के नायक बने । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कोई भी प्रतिमा आज उपलब्ध नहीं है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं, इनके गुरु सुमतिसूरि (द्वितीय) की अन्तिम ज्ञात तिथि वि० सं० १३८९ है, अतः ये उक्त तिथि के पश्चात् ही अपने गुरु के पट्टधर हुए होगें । इसी प्रकार इनके शिष्य ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित सर्वप्रथम अभिलेख वि० सं० १४४७ का है, अतः इनका गच्छ नायकत्व का काल वि० सं० १३८९ से वि० सं० १४१७ के मध्य मान सकते हैं । इनके पट्टधर ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित दो प्रतिमाओं का लेख आज उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार वि० सं० १४१७ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार५२ वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५२ प्राप्ति स्थान चिन्तामणि जी का मंदिर, ५३ वि० सं० १४२५ माघ वदि ७ सोमवार" जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बीकानेर आदिनाथ पंचतीर्थी का लेख प्राप्ति स्थान शांतिनाथ जिनालय, नमक मंडी, आगरा ईश्वरसूरि (तृतीय) के पट्टधर शालिसूरि (तृतीय) हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित २ प्रतिमार्थे आज उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है ५४ वि० सं० १४२२ माघ वदि १२ मंगलवार --- वासुपूज्य पंचतीर्थी का लेख, प्राप्ति स्थान - विमलनाथ जिनलाय, कोचरों का चौक, बीकानेर वि० सं० १४४६ आषाढ़ वदि १ पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान - ऋषभदेव जिनालय की भाण्डारस्थ प्रतिमा, नाहटों की गवाड़, बीकानेर शालिसूरि (तृतीय) के पट्टधर सुमतिसूरि (तृतीय) हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित वि० सं० १४४२ से वि० सं० १४६९ तक के जो प्रतिमायें आज उपलब्ध हैं, उन पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण इस प्रकार है ५६ वि० सं० १४४२ वैशाख सुदि ३ सोमवार प्राप्ति स्थान अनुपूर्ति लेख, आबू ५७ वि० सं० १४४३ प्राप्ति स्थान - जैन मन्दिर, राजनगर वि० सं० १४५९ प्राप्ति स्थान - अजितनाथ देरासर, शेख पाडो, अहमदाबाद वि० सं० १४६१ वैशाख सुदि ५९ शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर - Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ ६० वि० सं० १६४२ वैशाख सुदि ५ शुक्रवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १४६५ तिथिविहीन मूर्तिलेख " प्राप्ति स्थान चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर _६२ वि० सं० १४६९ माघ सुदि ६ रविवार वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता ६३ सुमतिसूरि (तृतीय) के पट्टधर शांतिसूरि (तृतीय) हुए । सन्डेरगच्छ के वि० सं० १४७२ से १५१३ तक के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में इनका उल्लेख मिलता है; जिसका विवरण इस प्रकार हैवि० सं० १४७२ फाल्गुन सुदि ९ शुक्रवार भगवान् पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली वि० सं० १४७५ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार भगवान् शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १४७६ मार्गशीर्ष सुदि ३ .६४ ६५ शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - वही ६६ वि० सं० १४८३ फागुण वदि ११ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान जैन मंदिर, चैलपुरी दिल्ली एवं वीर जिनालय, बीकानेर १२५३ - Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का लख १२५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १४८३ फागुण वदि ११ को इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुल ४ जिन प्रतिमायें वर्तमान में उपलब्ध हुई हैं। इनमें से श्रेयांसनाथ और पद्मप्रभ की प्रतिमायें आज चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर में संरक्षित हैं।६७ वि० सं० १४८६ माघ सुदि ११ शनिवार६८ मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - सम्भवनाथ जिनालय, अजमेर वि० सं० १४९२ माघ वदि ५ गुरुवार६९ वासुपूज्य प्रतिमा का लेख प्राप्तिस्थान - चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर वि० सं० १४९२ वैशाख सुदि ५७० प्राप्तिस्थान - ग्राम का जिनालय, चाँदवाड़, नासिक वि० सं० १४९३ वैशाख सुदि ५ ७१ शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - पार्श्वनाथ जिनालय, करेड़ा वि० सं० १४९३ तिथि विहीन २ प्राप्ति स्थान - जैन मंदिर, राणकपुर वि० सं० १४९४ माघ सुदि ११ गुरुवार७३ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान- सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर वि० सं० १४९४ माघ सुदि ११ गुरुवार ४ संभवनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - महावीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर वि० सं० १४९९ फागुण वदि २७५ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५५ संडेरगच्छ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १५०१ माघ सुदि १० सोमवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर वि० सं० १५०१ ज्येष्ठ सुदि १००० धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - जैन मंदिर, लींच वि० सं० १५०३ ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्रवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - आबू वि० सं० १५०३ तिथि विहीन प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात वि० सं० १५०५ वैशाख सुदि ६ सोमवार शान्तिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वि० सं० १५०५ माघ सुदि १५०१ प्राप्ति स्थान -- जैन मंदिर मालपुरा वि० सं० १५०६ ......११ रविवार २ प्राप्ति स्थान - गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, बम्बई वि० सं० १५०६ माघ वदि ५८३ सुविधनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - सेठ के बाग में स्थित जिनालय, उदयपुर वि० सं० १५०६ फाल्गुन सुदि ९ शुक्रवार Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५६ कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १५०६ फाल्गुन सुदि ९ ८५ संभवनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान चौक, बीकानेर वि० सं० १५०६ ( तिथि विहीन लेख ) ८६ प्राप्ति स्थान - गौड़ी पार्श्वनाथ देरासर, मुम्बई वि० सं० १५०६ ( तिथि विहीन लेख) ८७ भाण्डारस्थ जिन प्रतिमा, महावीर जिनालय, वैदों का प्राप्ति स्थान - मुनिसुव्रतजिनालय, भरुच वि० सं० १५०६, ११ रविवार " ८८ प्राप्ति स्थान गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुम्बई ८९ वि० सं० १५०७ ज्येष्ठ सुदि ९ रविवार" शांतिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - शीतलनाथ जिनालय, रिणी - तारानगर वि० सं० १५०७ माघ सुदि ५ ९० शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख — प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १५०८ वैशाख वदि ४ शनिवार .९१ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - वही .९२ वि० सं० १५०८ वैशाख वदि ४ शनिवार शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान चन्द्रप्रभ जिनालय; चूड़ी वाली गली, वि० सं० १५०८ वैशाख सुदि ३ ९३ लखनऊ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२५७ सुपार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चौमुख जी देरासर, अहमदाबाद वि० सं० १५०८ (तिथि विहीन)९४ अजितनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - शांतिनाथ जिनालय, खंभात वि० सं० १५०९ माघ सुदि १०९५ वासुपूज्य की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - भाण्डारस्थ धातु प्रतिमा, वीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर वि० सं० १५१० फागुण वदि ८९६ सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - शामला पार्श्वनाथ जिनालय, राधनपुर वि० सं० १५१० ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्रवार प्राप्ति स्थान - जैन मंदिर, राणकपुर वि० सं० १५११ माघसुदि २ गुरुवार शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर वि० सं० १५१३ माघ वदि ९ गुरुवार संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर जैसा कि हम पहले देख चुके हैं परिशिष्टपर्व की वि० सं० १४७९ की प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति में भी शांतिसूरि (तृतीय) का उल्लेख है। शांतिसूरि (तृतीय) के पट्टधर ईश्वरसूरि (चतुर्थ) हुए, जिनके द्वारा Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १५१३ से वि० सं० १५१९ तक की प्रतिष्ठापित प्रतिमायें उपलब्ध हैं। इनका विवरण इस प्रकार है - वि० सं० १५१३ ज्येष्ठ वदि १११०० कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चन्द्रप्रभ जिनालय, रंगपुर (बंगाल) वि० सं० १५१५ माह (माघ) वदि ९ शुक्रवार ०१ नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान- आदिनाथ जिनालय, दिलवाड़ा (आबू) वि० सं० १५१७ (तिथि विहीन)१०२ प्राप्ति स्थान – मुनिसुव्रत जिनालय, खंभात वि० सं० १५१९ (तिथि विहीन लेख)१०३ प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात ईश्वरसूरि (चतुर्थ) के पट्टधर शालिसूरि (चतुर्थ) हुए, जिनके द्वारा वि० सं० १५१९ से वि० सं० १५४५ तक प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं के लेखों का विवरण इस प्रकार है वि० सं० १५१९ (तिथि विहीन)१०४ सीमंधर स्वामी का प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - जैन मन्दिर, खारबाड़ो, खंभात वि० सं० १५१९ ज्येष्ठ सुदि १३ सोमवार ०५ प्रतिष्ठा स्थान - जैनमन्दिर, पायधुनी, मुम्बई वि० सं० १५१९ (तिथि विहीन)१०६ प्रतिष्ठा स्थान - जैनमन्दिर, गुलाबबाड़ी, मुम्बई वि० सं० १५२० ज्येष्ठ सुदि ९ शक्रवार Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ .१०८ शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिमा स्थान - तपागच्छ उपाश्रय, दिलवाड़ा वि० सं० १५२१ माह (माघ) सुदि ७ शुक्रवार धर्मनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - गौड़ी जी का मन्दिर, उदयपुर वि० सं० १५२१ (तिथि विहीन) १०९ प्रतिष्ठा स्थान - दादापार्श्वनाथ जिनालय, नरसिंहजीकी पोल, बड़ोदरा वि० सं० १५२६ ज्येष्ठ सुदि १३ ११० आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर १११ - ११२ वि० सं० १५२८ ( तिथि विहीन लेख ) प्राप्ति स्थान - भग्न जैनमंदिर (राजनगर) वि० सं० १५३२ चैत्र सुदि ३ गुरुवार प्राप्ति स्थान - नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली वि० सं० १५३२ वैशाख वदि सोमवार ११३ धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख ११४ प्राप्ति स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १५३५ माह (माघ) सुदि ३ सुपार्श्वनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान- वही वि० सं० १५३६ माह (माघ) सुदि ९ आदिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान ऋषभदेव जिनालय के अन्तर्गत पार्श्वनाथ का मन्दिर, नाहटों की गवाड़, बीकानेर ११५ .११६ वि० सं० १५३६ मार्गशीष सुदि १० बुधवार १२५९ Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वि० सं० १५३६ ज्येष्ठ सुदि ५ रविवार १७ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ का नवीन जिनालय, जयपुर वि० सं० १५४५ ज्येष्ठ सुदि १२ गुरुवार १८ आदिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - गौड़ीजी का मंदिर, उदयपुर शालिसूरि (चतुर्थ) के पट्टधर सुमतिसूरि (चतुर्थ) हुए, जिनके द्वारा वि० सं० १५४५ से १५५९ तक प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमायें; इनके शिष्य एवं पट्टधर शांतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा वि० सं० १५५२ से वि० सं० १५७२ तक की जिन प्रतिमायें और शांतिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) द्वारा प्रतिष्ठापित वि० सं० १५६० से १५९७ तक की जिन प्रतिमायें उपलब्ध हैं, अर्थात् विक्रम सम्वत् की सोलहवीं शती के छठे दशक में सुमतिसूरि (चतुर्थ), शांतिसूरि (चतुर्थ) और ईश्वरसूरि (पंचम) ये तीनों आचार्य विद्यमान थे। इससे प्रतीत होता है कि ये तीनों आचार्य शालिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य और परस्पर गुरुभ्राता थे। ज्येष्ठताक्रम से इनका पट्टधर नाम निर्धारित हुआ होगा ऐसा प्रतीत होता है। शालिसूरि के पश्चात् ये क्रम से गच्छनायक के पद पर प्रतिष्ठित हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण अभिलेखों का विवरण इस प्रकार है - सुमतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण वि० सं० १५४७ माघ सुदि १२ रविवार १९ वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - शत्रुञ्जय वि० सं० १५४९ ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार१२० Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२६१ वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - पंचायती मंदिर, लश्कर-ग्वालियर वि० सं० १५५९ वैशाख वदि १ शनिवार१२१ पार्श्वनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - अजितनाथ देरासर, शेख पाड़ो, अहमदाबाद शांतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा प्रतिष्ठापित उपलब्ध जिन-प्रतिमाओं का विवरण वि० सं० १५५२ (तिथि विहीन प्रतिमा लेख)१२२ चन्द्रप्रभ स्वामी की चौबीसी पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - विमलनाथ जिनालय, चौकसी पोल, खंभात वि० सं० १५५५ ज्येष्ठ वदि १ शुक्रवार १२३ । प्रतिष्ठा स्थान - नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली वि० सं० १५६३ माह (माघ) सुदि १५ गुरुवार २४ मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान - सुपार्श्वनाथ जिनालय, जयपुर वि० सं० १५७२ वैशाख सुदि पंचमी सोमवार २५ शान्तिनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जिनालय, दिलवाड़ा, आबू वि० सं० १५७२ वैशाख सुदि पंचमी सोमवार २६ धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मन्दिर - नाणा वि० सं० १५५० में रचित सागरदत्तरास२७ के रचयिता यही शान्तिसूरि (चतुर्थ) माने जा सकते हैं। ईश्वरसूरि (पंचम) द्वारा प्रतिष्ठापित उपलब्ध प्रतिमाओं का विवरण Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास . १२८ वि० सं० १५६० ज्येष्ठ वदि ८ बुधवार विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान पार्श्वनाथ देरासर, नाडोल, १२९ वि० सं० १५६७ ( तिथि विहीन) १२६२ - विमलवसही की दीवाल पर उत्कीर्ण लेख - १३० वि० सं० १५८१ पौष सुदि ५ शुक्रवार अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सं० १५८१ वर्ष पौष सुदि ५ शुक्र दिने उ० शीसोद्या गौत्र गोत्रजा वायण सा० पद्मा भा० चांगू पु० दासा भा. करमा पु० कमा अषाई लावेता पातिः स्वश्रेयसे श्री अजितनाथ बिंबं का प्र. श्री संडेर गच्छे कवि श्री ईश्वरसूरिभिः ॥ श्री ॥ श्री चित्रकूटदुर्गे । वि० सं० १५९७ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार १३१ आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन मंदिर, नाडुलाई १३३ ईश्वरसूरि (पंचम) ने अपने गुरु द्वारा प्रारम्भ किये गये साहित्यसर्जन की परम्परा को जीवन्त बनाये रखा । इनके द्वारा रचित ललिताङ्गचरित्र (रचनाकाल वि० सं० १५६१) १३२, श्रीपालचौपाई (रचनाकाल वि० सं० १५६४) एवं सुमित्रचरित्र ( रचनाकाल वि० सं० १५८१) आदि १३४ ३ रचनायें वर्तमान में उपलब्ध हैं । सुमित्रचरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने जीवविचारविवरण; षट् भाषास्तोत्र ( सटीक ); नन्दिसेणमुनिगीत; यशोभद्रसूरिप्रबन्ध; मेदपाटस्तवन आदि की भी रचना की थी । ये रचनायें आज अनुपलब्ध हैं। १३५ - वि० सं० १५९७ में ईश्वरसूरि (चतुर्थ) के पश्चात् वि० सं० १६५० में शान्तिसूरि के शिष्यों नयकुञ्जर और हंसराज द्वारा धर्मघोषगच्छीय राजवल्लभ पाठक द्वारा रचित भोजचरित्र १३६ की प्रतिलिपि तैयार करने का उल्लेख Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ १२६३ मिलता है। वि० सं० १६८९ का एक लेख,१३७ जो पार्श्वनाथजिनालय में स्थित पुण्डरीकस्वामी की मूर्ति पर उत्कीर्ण है, भी संडेरगच्छ से ही सम्बन्धित है। परन्तु इसमें प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं मिलता है। इसके पश्चात् वि० सं० १७२८ और वि० सं० १७३२ के प्राप्त अभिलेख भी सन्डेरगच्छ से ही सम्बन्धित हैं। इनका विवरण इस प्रकार है - वि० सं० १७२८ वैशाख सुदि १४१३८ देहरी का लेख, लूणवसही, आबू वि० सं० १७२८ वैशाख सुदि ११,१३९ देहरी का लेख, लूणवसही, आबू वि० सं० १७२८ वैशाख सुदि १५१४० देहरी का लेख, लूणवसही, आबू वि० सं० १७३२ वैशाख सुदि ७१४१, जैनमंदिर, छाणी इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि १६वीं शताब्दी (विक्रमी) के पश्चात् ही इस गच्छ का गौरवपूर्ण इतिहास समाप्त हो गया, तथापि १७वीं - १८वीं शताब्दी तक इसका स्वतन्त्र अस्तित्व बना रहा और बाद में यह तपागच्छ में विलीन हो गया।१४२ (देखें - अगले पृष्ठ पर तालिका) Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित _संडेरगच्छीय आचार्यों के परम्परा की तालिका ईश्वरसूरि (प्रथम) (संडेरगच्छ के आदिम | आचार्य) यशोभद्रसूरि (संडेरगच्छ के महाप्रभावक आचार्य) इन्होंने संवत १०३९/ई० सन् ९८२ में पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की जो वर्तमान में करेड़ा (प्राचीन करहेटक) में स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रतिष्ठित है।) श्यामाचार्य (यशोभद्रसूरि के शिष्य) शालिभद्रसूरि (प्रथम) [वि० सं० ११८१-१२१५ प्रतिमालेख] सुमतिसूरि (प्रथम) [वि० सं० १२३७-१२५२ । प्रतिमालेख] शांतिसूरि (प्रथम) [वि० सं० १२४५-१२९८ प्रतिमालेख] ईश्वरसूरि (द्वितीय) [वि० सं० १३०७-१७ प्रतिमालेख] शालिसूरि (द्वितीय) [वि० सं० १३३१-४५ प्रतिमालेख] इनके उपदेश से वि० सं० १३२४ में महावीर Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ २. ३. ४. सुमतिसूरि (द्वितीय) 1 शांतिसूरि ? 1 ईश्वरसूरि (तृतीय) १२६५ चरित्र की प्रतिलिपि तैयार की गयी । [वि० सं० १३३८-८९ प्रतिमालेख] सुमतिसूरि (तृतीय) I शांतिसूरि (तृतीय) 1 [ इनके बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है] [वि० सं० १४१७- १४२५ प्रतिमालेख] 1 शालिसूरि (तृतीय) [वि० सं० १४२२-१४४६ प्रतिमालेख] संदर्भ सूची : १. C. D. Dalal, Ed. - A Descriptive Catalogue of Manuscripts In the Jaina Bhandar's at Pattan, Vol I., Baroda 1937 No. 37, Pp. 32-33. [वि० सं० १४४२ - १४६९ प्रतिमालेख] [वि० सं० १४७२-१५०६ प्रतिमालेख] इनके शिष्य विनयचन्द्र ने वि० सं० १४७९ में परिशिष्टपर्व की प्रतिलिपि तैयार की Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay, No. 189, Pp. 306-7. - Muni Punyavijaya, Ibid, No. 52. Pp. 79-80. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Muni Punyavijayaji's Collection, By A. P. Shah, Part II, No. 3790, P. 217. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts : Jesalmer Collection - Compiled By Muni Shree Punyavijayaji, No. 1398, P.297. - Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६६ ६. ७. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास श्रीसंडेकीयगच्छे श्रीयशोभद्रसूरिसंताने तत्पट्टे श्रीशालिसूरिः, तत्पट्टे श्रीसुमतिसूरिः तत्पट्टे श्रीशान्तिसूरयः । तदन्वये श्रीशान्तिसूरिविजयराज्ये वा० श्रीनइ (य) कुंजरद्वितीयशिष्यमु० हंसराज : (जेन) श्री भोजचरित्रं सम्पूर्णं कृतम् ॥ Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Ed. by A. P. Shah, Part Punyavijayjis Collection 4936, P. 313. मू. अन्तः - इति षट्पञ्चाशिकाटीका समाप्ता ॥ श्रीबृहत् श्रीश्रीसंडेरगच्छे उपाध्या [य] श्रीधर्म्मरत्नशिष्यवा० श्रीसि (स) हजसुन्दरउपाध्या [य] श्रीजि [ज] यतिलक - पं० श्रीभावसुन्दरउपाध्या [य] श्रीक्षमामूर्ति उपाध्या [य] श्री क्षमासुन्दरविजयराज्ये ग० श्रीसंयमवल्लभ - वा० श्री आणन्दचन्द्र - वा० श्री न्या [ ज्ञा] नसागर मु० सामलमु० देषा - जीवन्त - डङ्गासमस्तसाधुयुते उपाध्या [य] श्रीक्षमासुन्दर - शिष्य चेलानेतालिखितं, सांप्रतं राणाश्रीउदयसङ्घराज्ये उटालाग्रामे लिखितम् । Shah, Ibid, Part III, No. 7261, P. 447. - ८. Ibid, Part I, No. 3269, P. 182. ९. पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९४८. १०. यशोभद्रसूरि के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण के लिए द्रष्यव्य 'वीरवंशावली' (विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह [संपा० मुनि जिनविजय ] में प्रकाशित); ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग २; जैनपरम्परानोइतिहास, भाग १, ( त्रिपुटी महाराज) आदि. ११. विजयधर्मसूरि सम्पा० प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १ १२. मुनि विशालविजय - सम्पा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३. १३. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष- २, पृ०५४३, क्रमाङ्क ४१. १४. मुनि जिनविजय, संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २२३. १५. मुनि विशालविजय - सांडेराव, पृ० १५. १६. विजयधर्मसूरि, संग्राहक एवं सम्पादक - प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ५. - १७. पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १६८७; १८. जे. पी. अमीन, खंभातनुं जैन मूर्ति विधान, पृ० ३२, लेखांक २. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८३९. १९. Muni II, No. - Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६. संडेरगच्छ १२६७ २०. मुनि विशालविजय- सांडेराव, पृ० १६. मुनि जिनविजय - प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३४९. मुनि जयन्तविजय - अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग ५) लेखांक ४१. २२. अम्बालाल पी० शाह, - जैनतीर्थसर्वसंग्रह, पृ० २१३. २३. विजयधर्मसूरि - पूर्वोक्त, लेखांक २३. २४. विजयधर्मसूरि - पूर्वोक्त, लेखांक २६. २५. जे० पी० अमीन, - पूर्वोक्त, पृ० ३२-३३. Catalouge of Sanskrit & Prakrit Mss: Jesalmer Collection, P. 30-31. नोट : पूना और खंभात के ग्रन्थ भण्डारों में भी दशवैकालिकटीका की प्रतियां विद्यमान हैं : जिनरत्नकोश, पृ० १७०. द्रष्टव्य - Descriptive Catalouge of the Govt. Collection of Mss. Vol. XVIII, Jaina Literature & Philosophy, Part III, No. - 716; Catalogue of Palm-Leaf Mss in the ShantiNath Jain Bhandar, Cambay, Part II, P-305; जिनरलकोश पृ० १७०. २७. मुनि जिनविजय - पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २१३. मुनि कल्याणविजय - प्रबन्धपारिजात, पृ० ३६२, लेखांक १२१. २८. मुनि जयन्तविजय - आबू, भाग २, लेखांक ४२०. २९. बुद्धिसागर - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५६. ३०. मुनि कल्याणविजय - पूर्वोक्त, लेखांक ४०-४१ (लूणवसही के लेख). ३१. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग ५ लेखांक ४२३. ३२. जे. पी. अमीन, - पूर्वोक्त, पृ० १४ एवं ३३. ३३. मुनि विशालविजय, सांडेराव, पृ० १८-१९. ३४. वही, पृ० २१. ३५. अमीन-पूर्वोक्त, पृ० १२ और ३३. ३६. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १९५१. ३७. अमीन, पूर्वोक्त, लेखांक ३. Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६८ ३८. वही, लेखांक ५. ३९. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५५४. अगरचन्द, नाहटा, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १८८. ४०. ४१. अमीन, पूर्वोक्त, पृ० १२ एवं ३३. ४२. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १७०८. ४३. वही, भाग २, लेखांक १८९२. ४४. वही, भाग १, लेखांक ५१९. ४५. ४६. ४७. ४८. ४९. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बुद्धिसागरसूरि पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १४०९. अगरचन्द नाहटा, - पूर्वोक्त, लेखांक २५०. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४१५. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ३२२. वही, लेखांक ३३३. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०९९. ५०. ५१. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३३१. ५२. वही, लेखांक ४३७. ५३. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १४८८. ५४. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १५७४. ५५. वही, लेखांक १४७९. ५७. ५६. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखांक ६००. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, पृ० ३८२, लेखांक २०. ५८. बुद्धिसागरसूरि - पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०४१. नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२८४. ५९. ६०. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ६०४. ६९. वही, लेखांक, ६२५. ६२. ६३. वही, भाग १, लेखांक ६६४. ६४. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५७७. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७५८. Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ ६५. ६६. वही, लेखांक ६८२. नाहर, पूर्वोक्त, लेखांक ४६८. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३३६. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७२५ और ७२६. ६७. ६८. ६९. वही, भाग ३, लेखांक २३०८. ७०. मुनि कान्तिसागर जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ८१. ७१. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १९३३. ७२. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १८, पृ० ८९-९३. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११४२. ७३. ७४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५४९. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३३९. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८१३. ७५. ७६. नाहटा, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११४२. ७७. विजयधर्मसूरि - प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १८९. ७८. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखांक ६३५. ७९. बुद्धिसागरसूरि - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५५०. ८०. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २२१ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग- २, लेखांक १०८१. ८१. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ११, पृ० ३७५-८३. ८२. मुनि कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक १०३. ८३. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २२०. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९०७. ८४. ८५. वही, लेखांक १३१८. ८६. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, पृ० ५१४ - ६००. ८७. बुद्धिसागरसूरि - पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३५३. ८८. मुनि कान्तिसागर - पूर्वोक्त, लेखांक १०३. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २४५०. ८९. ९०. वही, लेखांक ९१८. १२६९ Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७० ९९. वही, लेखांक ९२४. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ९२. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १५४८. ९३. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १४३. ९४. वही, भाग २, लेखांक ७५१. ९५. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३६१. ९६. मुनि विशालविजय, सम्पा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १६४. ९७. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १८, पृ० ८९ - ९३. ९८. नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २१८४. ९९. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९७६. १००. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०२५. १०१. वही, भाग २, लेखांक १९९१९. १०२. बुद्धिसागरसूरि - पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ८५०. १०३. वही, भाग २, लेखांक ५४०. १०४. वही, भाग २, लेखांक १०६२. १०५. मुनि कान्तिसागर - पूर्वोक्त, लेखांक १६९. १०६. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ५, पृ० १६० - ६५. १०७. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, क्रमाङ्क २००२. १०८. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त लेखांक ३५४. १०९. बुद्धिसागरसूरि - पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३४. ११०. नाहटा - पूर्वोक्त, लेखांक १०४६. १११. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, पृ० ३७९, लेखांक ३३. ११२. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३८८. ११३. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०७६. ११४. वही, लेखांक १०९३. ११५. वही, लेखांक १५१६. ११६. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०९९. ११७. वही, भाग २, लेखांक १२१०. Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडेरगच्छ ११८. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ४९३. ११९. मुनि कंचनसागर - शत्रुञ्जयगिरिराजदर्शन, लेखांक ४४९. १२०. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३८३. १२१. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०४१. १२२ . वही, भाग २, लेखांक ७९२. १२३. मुनि जिनविजय पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३८५. १२४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११९०. १२५. वही, भाग २, लेखांक १९९२. १२६. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग ५, लेखांक ३५८. १२७. मोहनलाल दलीचन्द देसाई जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ५२६ एवं जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृ० ९१. १२८. बुद्धिसागरसूरि - पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४५३. - १२९. आबू, भाग २, लेखांक ५९. १३०. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १४१६. १३१. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त भाग २, लेखांक ३३६. १३२. जैन गूर्जर कविओ (मोहनलाल दलीचन्द देसाई) द्वितीय संस्करण - संपा० डा० जयन्त कोठारी, भाग १, पृ० २२०. १३३. वही, पृष्ठ २२२. १३४. जैन गूर्जर कविओ (द्वितीय संस्करण), भाग १, पृ० २१९. १३५. वही, पृष्ठ २१९. १२७१ १३६. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts: Muni Shree Punyavijayji's Collection; Ed. A. P. Shah, Vol II, No - 4936. १३७. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १९६२. १३८. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखांक ३०९. १३९. वही, भाग २, लेखांक २९३. १४०. वही, भाग २, लेखांक २९१. १४१. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५४०. १४२. त्रिपुटी महाराज - जैन परम्परानो इतिहास, भाग १, पृ० ५५८ - ६९. Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरवालगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर श्रमण सम्प्रदाय के अन्तर्गत पूर्वमध्ययुग के चैत्यवासी गच्छों में सरवालगच्छ भी एक था । चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) की एक शाखा के रूप में इस गच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है। इस गच्छ के प्रवर्तक कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। सरवालगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये सीमित संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य, जो वि० सं० १११० से वि० सं० १२८३ /ई० सन् १०५४ से १२२७ तक के हैं, तथा एक ही ग्रन्थ प्रशस्ति मिलती है। सरवालगच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख करने वाला वि० सं० १११० / ई० सन् १०५४ का एक लेख पार्श्वनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। पूरनचन्द नाहर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : श्री सरवालगच्छे असामूकेन कारिता ॥ संतु १११० .... | यह प्रतिमा आज सुमतिनाथजिनालय, अजीमगंज जिला मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल में है। यद्यपि इस लेख में इस गच्छ के किसी आचार्य या मुनि का उल्लेख प्राप्त नहीं होता, फिर भी सरवालगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य होने से महत्त्वपूर्ण है। यही बात इस गच्छ से सम्बद्ध द्वितीय लेख, जो वि० सं० ११४५/ई० सन् १०८९ का है', के संबंध में कही जा सकती है। कालक्रम की दृष्टि से इस गच्छ से सम्बदन्ध तृतीय लेख वि० सं० ११४९/ई० सन् १०९३ का है, जो राधनपुर स्थित विमलनाथ जिनालय में Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरवालगच्छ १२७३ रखी एक धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। मुनि विशालविजय के अनुसार इस लेख की वाचना इस प्रकार है : सं० १९४९ माघ वदि ४ श्रीसरवालगच्छे वर्धमानाचार्य संताने श्रीकुपांगजनागेनात्मश्रेयोर्थं कारिता ॥ इस लेख में वर्धमानसूरि के संतानीय अर्थात् श्रावकशिष्य द्वारा प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है । सरवालगच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम लेख है, अतः महत्त्वपूर्ण है । इस गच्छ से सम्बद्ध वि० सं० ११५९ / ई० सन् ११०३ और वि० सं० ११६४ / ई० सन् १९०८ के लेख, जो राधनपुर स्थित जिनालय की धातु प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेकिन इनमें इस गच्छ के किसी आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता । मुनि विशालविजय ने इन लेखों की वाचना इस प्रकार दी है : सं० ११५९ श्रीसरवालगच्छे सूहनश्राविकया सोमति दुहितृश्रेयो कारितः ॥ सं० ११६४ फाल्गुन सु० ७ गुरौ सरवालगच्छे श्रावक मोहलाकेन कारिता ॥ इस गच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १९७४ / ई० सन् १९१८ का एक लेख वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है। इस लेख का कुछ अंश घिस जाने से नष्ट हो गया है। विजयधर्मसूरि^ ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : संवत् ११७४ फाल्गुन वदि ४ श्रीसरवालसंस्थितगच्छप्रतिपालकश्रीजिनेश्वराचार्ये श्रीवर्धमानपुरे परि० महणसुत. . कन देव श्रेयार्थं श्रीसीतलदेवप्रतिमा कारिता || इस लेख में सरवालगच्छीय जिनेश्वरसूरि के श्रावकशिष्य द्वारा शीतलनाथ की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है । कालक्रम की दृष्टि से इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अगला लेख Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० ११८२/ई० सन् ११२६ का है, जो राधनपुर स्थित जिनालय के एक पंचतीर्थी जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस लेख में सरवालगच्छ के एक श्रावक शिष्य द्वारा आत्मश्रेयार्थ उक्त प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। सं० ११८२ श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्यसंताने वरुणाग सुत प्ररम (परम) ब्रह्मदेवभार्यमा लाहितगतपुत्रिया सीतया च आत्मश्रेयो) कारिता ॥ इस गच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० ११९४ /ई० सन् ११३८ का है। यह लेख भी वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है। इस लेख में सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के एक श्रावकशिष्य देवानन्द द्वारा अपनी माता के श्रेयार्थ विमलनाथ की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। मुनि विजयधर्मसूरि ने इस लेख की वाचना निम्न प्रकार से दी ___ सं. ११९४ माघ सुदि ६ भू (भौ) मे श्रीवर्धमानपुरे श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्यसंताने ठ० देवानन्देन स्वमातुः सज्जणिश्रेयोर्थं श्रीविमलनाथप्रतिमा कारापिता ॥ सरवालगच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० १२०८ / ई० सन् ११५२ का है। यह लेख भी वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है । इस लेख में सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के श्रावक शिष्य नेमिकुमार की भार्या लक्ष्मी द्वारा आत्मश्रेयार्थ जिनप्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। विजयधर्मसूरि के अनुसार लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : संवत १२०८ ज्येष्ठ (ष्ठ) सुदि २ बुधे श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्य संताने वोहासुतवता नेमिकुमारेण भार्या लक्ष्मी आत्मश्रेयोर्थं प्रतिमा कारिता । सरवालगच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १२०८/ ई० स० १९५२ का एक अन्य लेख भी मिला है, जो जैसलमेर स्थित चन्द्रप्रभजिनालय की एक चौबीसी जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख से ज्ञात होता है कि सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा यह प्रतिमा Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरवालगच्छ १२७५ आत्मश्रेयार्थ बनवायी गयी । पूरनचन्द नाहर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है: सं० १२०८ श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्यैः वालचंद किसुणारीमातृ महणीश्रेयसे कारिता ॥ इस गच्छ से सम्बद्ध अगला लेख वि० सं० १२९२ /ई० सन् ११५६ का है, जो वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है।° इस लेख में भी सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा अपनी माता के श्रेयार्थ वासुपूज्य की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। लेख की वाचना इस प्रकार है। सं० १२१२ माघ सुदि ११ श्रीवर्धमानपुरे श्रीसरवालगच्छे श्री जिनेश्वराचार्यसंताने आमचंडसुतेन वोसिना मातुः मोहिणिश्रेयो) श्रीवासुपूज्य प्रतिमा कारिता ॥ सरवालगच्छ से सम्बद्ध एक प्रतिमालेख वि०सं० १२२६/ ई० सन् ११७० का भी है। यह प्रतिमा आज जैसलमेर स्थित महावीरजिनालय में है जिसे सरवालगच्छीय वर्धमानाचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा आत्मकल्याणार्थ बनवाया गया । नाहर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : ॐ सं० १२२६ माघ सुदि १३ गुरौ श्रीसरवालगच्छे श्रीवर्धमानाचार्यसंताने रावड पुत्र माणु तथा भार्या वालेवि (?) सहितेन सुत देदा कवडि आलणकेन आत्मश्रेयो) कारिता ॥ ___ इसके अलावा वि० सं० १२५१/ई० सन् ११९५ का भी एक लेख इस गच्छ से सम्बद्ध है। यह लेख राधनपुर स्थित जैन मंदिर में रखी धातु की एक परिकर की गादी के नीचे उत्कीर्ण है । इस लेख में सरवालगच्छीय वर्धमानाचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा अपने कुटुंब के श्रेयार्थं शांतिनाथ की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। मुनि विशालविजय ने उक्त लेख का मूलपाठ इस प्रकार दिया है। Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १. संवत् १२५१ आषाढ़ सुदि ९ रवौ श्रीसरवालगच्छे श्रीवर्धमानाचार्य संताने श्रे० पुनहइ सुत जसपाल तत्सुत श्रे० आमकुमार माणिकाभ्यां २. पुत्र लुणिगवरदेव तथा आस्वसिरि अभयसिरिप्रभृति स्वकुटुंबमानुषोपेताभ्यां श्रीशांतिनाथप्रतिमा कारापिता ॥ सरवालगच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० १२५५/ई० सन् ११९९ का भी है । यह लेख एक चौबीसी जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है, जो आज चन्द्रप्रभजिनालय, जैसलमेर में है । १३ इस लेख में सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के श्रावकशिष्य द्वारा प्रतिमा बनवाने की बात कही गयी है । लेख का पाठ इस प्रकर है । सं० १२५५ मार्ग सुदि १५ रवौ श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराभय संताने व्य० साढदेव भार्या अवियदेवि श्रेयोर्थं सुत वीमकेन प्रतिमा कारिता || इस गच्छ का उल्लेख करने वाला एक लेख वि० सं० १२५८ / ई० सन् १२०२ का भी है, जो धातु एक पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस लेख में सरवालगच्छ के किसी आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता, केवल प्रतिमा बनवाने वाले श्रावक का ही नाम मिलता है। मुनि विशालविजय' ने इस लेख की वाचना की है, इस प्रकार है : .१४ सं० १२५८ माघ वदि १० श्रीसरवालगच्छे वासुअलेनजि (जन) नी माढा श्रेयार्थं प्री (प्र) तमां (मा) कारिता । सरवालगच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम लेख वि० सं० १२८६ / ई० सन् १२३० का है जो पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में सरवालगच्छीय वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि द्वारा पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने का उल्लेख है । मुनि कान्तिसागर " ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : 1 संवत् १२८६ ( वर्षे) वै० सुद ५ शुक श्री सरपुनवास्तवव्य: Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरवालगच्छ १२७७ श्रीमालज्ञातीय श्रे० लाखू सावकुमार भार्या.... दे० सयार्थं (श्रेयार्थ) संखीसर (शंखेश्वर) वर्ति श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीसरवालगच्छे श्रीवर्धमानसूरि शिष्य श्रीजिनेश्वरसूरिभिः ॥ अभिलेखीय साक्ष्यों के उक्त विवरणों से स्पष्ट है कि कई लेखों में वर्धमानाचार्य और जिनेश्वराचार्य ये दो नाम आये हैं, किन्तु वि० सं० १२८६ / ई० सन् १२३० के लेख को छोड़कर किसी अन्य लेख में इन्हें गुरु-शिष्य नहीं बतलाया गया है । इस दृष्टि से उक्त लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और यह कहा जा सकता है कि सरवालगच्छ में पट्टधर आचार्यों को यही दो नाम पुनः पुनः प्राप्त होते थे। उक्त साक्ष्यों के आधार पर सरवालगच्छ की गुरु-परम्परा की एक तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : [?] वि० सं० १११०/ई० सन् १०५४ प्रतिमालेख [आचार्य का नाम अनुपलब्ध] [?] वि० सं० ११४५ / ई० सन् १०८९ प्रतिमा लेख [आचार्य का नाम अनुपलब्ध] वर्धमानाचार्य वि० सं० ११४९/ई० सन् १०९३ में इनके श्रावकशिष्य ने जिनप्रतिमा निर्मित करायी । वि० सं० ११५९ / ई० सन् ११०३ और वि० सं० ११६४ / ई० सन् ११०८ के प्रतिमा लेखों में यद्यपि किसी आचार्य Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु, सम्भवतः उक्त प्रतिमाओं के निर्माता भी वर्धमानाचार्य के श्रावकशिष्य रहे होंगे। जिनेश्वराचार्य वि० सं० ११७४ / ई० सन् १११८ प्रतिमालेख [वि० सं० १९८२ / ई० सन् ११२६, वि० सं० ११९४ /ई० सन् वि० सं० १२०८ /ई०सन् ११५२ एवं वि० सं० १२१२। ई० सन् ११५६ में इनके उपदेश से इनके श्रावक शिष्योंने जिनप्रतिमायें बनवायी] वर्धमानचार्य वि० सं० १२२६/ई० सन् ११७० एवं वि० सं० १२५१ /ई० सन् ११९५ में इनके उपदेश से इनके श्रावकशिष्यों ने जिनप्रतिमायें निर्मित करायीं जिनेश्वराचार्य वि० सं० १२५५/ई० सन् ११९९ में इनके श्रावक शिष्य ने इनके उपदेश से जिनप्रतिमा निर्मित करायी। वि० सं० १२५८/ई० सन् १२०२ के प्रतिमालेख में यद्यपि किसी आचार्य का नाम । Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरवालगच्छ १२७९ नहीं है, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त प्रतिमा भी इन्हीं की प्रेरणा से निर्मित करायी गयी रही होगी। वि० सं० १२८६/ई० सन् १२३० में पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि सरवालगच्छ से सम्बद्ध एक ही साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध है और वह है पिण्डनियुक्ति की शिष्यहितावृत्ति की प्रशस्ति१६ । इससे ज्ञात होता है कि सरवालगच्छीय ईश्वरगणि के शिष्य वीरगणि अपरनाम समुद्रघोषसूरि ने वि० सं० ११६०/ ई० सन् ११०४ में दधिपद्र (वर्तमान दाहोद, गुजरात राज्य) में इस कृति की रचना की। इस कार्य में उन्हें अपने गुरु-भ्राताओं-महेन्द्रसूरि, पार्श्वदेवगणि और देवचन्द्रगणि से सहायता प्राप्त हुई । इसे नेमिचन्द्रसूरि और जिनदत्तसूरि ने अणहिलपुरपत्तन (वर्तमान पाटन, उत्तर गुजरात) में संशोधित किया । वृत्तिकार वीरगणि ने इस प्रशस्ति में अपनी दीक्षा के पूर्व अपने गृहस्थजीवन का उल्लेख करते हुए अपने पिता का नाम वर्धमान और माता का नाम श्रीमती बतलाया है। सरवालगच्छीय ईश्वरगणि Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८० महेन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास 7 पार्श्वदेवगण देवचन्द्रगणि वीरगणि अपरनाम (पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति के लेखन में सहायक) समुद्रघोषसूरि [वि० सं० ११६० / ई० सन् १९०४ में पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति के रचनाकार ] सरवालगच्छीय ईश्वरगणि के गुरु कौन थे, क्या ईश्वरगणि के शिष्यों महेन्द्रसूरि, पार्श्वदेवगणि, देवचन्द्रगणि और वीरगणि की शिष्यपरम्परायें आगे चलीं या नहीं, इस सम्बन्ध में साक्ष्यों के अभाव में उत्तर दे पाना संभव नहीं । जैसा कि हम पहले देख चुके हैं अभिलेखीय साक्ष्यों से हमें इस गच्छ के केवल दो आचार्यों- वर्धमानाचार्य और जिनेश्वराचार्य के नाम ज्ञात होते हैं, किन्तु पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति के प्रशस्तिगत सरवालगच्छीय मुनिजनों से उनका कोई भी संबंध ज्ञात नहीं होता । इससे यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि ये दोनों परम्परायें सरवालगच्छ की दो अलग-अलग शाखाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस गच्छ के प्रथम आचार्य कौन थे, ये शाखायें कब अस्तित्व में आयीं, ये सभी प्रश्न इस वक्त तो अनुत्तरित ही रह जाते हैं । वि० सं० की १३वीं शती के पश्चात् तो इस गच्छ से सम्बद्ध प्रमाणों का पूर्णतया अभाव है, अत: यह कहा जा सकता है कि १४वीं शती के प्रारंभ में ही इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा और ऐसी परिस्थिति में इस गच्छ के अनुयायी मुनिजन और श्रावक किन्हीं अन्य गच्छ की सामाचारी का पालन करने लगे होंगे । सरवाल जैनों के किसी ज्ञाति का नाम था अथवा किसी नगर या ग्राम विशेष का नाम रहा, जिसके आधार पर इस गच्छ का यह नामकरण हुआ, यह अन्वेषणीय है । Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 ; सरवालगच्छ १२८१ संदर्भ सूची: १. पूरनचन्द नाहर - जैनलेखसंग्रह, भाग १, (कलकत्ता, १९१८ ई०) लेखांक १. २. मुनि विशालविजय राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, (यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, ई० सन् १९६०), लेखांक ६. वहीं, लेखांक ७. ४. वही, लेखांक ९,१०. विजयधर्मसूरि - प्राचीनलेखसंग्रह, (यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, ई० सन् १९२९), लेखांक ४. मुनि विशालविजय - पूर्वोक्त, लेखांक १२. विजयधर्मसूरि - पूर्वोक्त, लेखांक ७. वही, लेखांक ११. ९. पूरचन्द नाहर - पूर्वोक्त, भाग ३, (कलकत्ता ई० सन् १९२९), लेखांक २२२०. १०. विजयधर्मसूरि - पूर्वोक्त, लेखांक १५. ११. पूरनचन्द नाहर- पूर्वोक्त - भाग ३, लेखांक २४१५. १२. मुनि विशालविजय - पूर्वोक्त, परिशिष्ट, लेखांक १. १३. नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२२२. मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २४. मुनि कान्तिसागर - जैनधातुप्रतिमालेख, (जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, सुरत १९५० ई०), लेखांक १३. १६. H.R. Kapadia - Descriptive Catalogue of the government Collections of Manuscripts deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Volume XVII Part III (B.O.R.I., Pune - 1940 A.D.) Pp 283-287. i १४. Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में पूर्वमध्यकालीन सुविहितमार्गीय गच्छों में हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का विशिष्ट स्थान है। जैसा कि इसके नाम से ही विदित होता है यह गच्छ राजस्थान में हर्षपुर नामक स्थान से उद्भूत हुआ माना जाता है। हर्षपुर वर्तमान में हरसोर के नाम से जाना जाता है। यह नागौर जिले में पुष्कर-डेगाना मार्ग पर स्थित है। प्रस्तुत गच्छ की गुर्वावली में जयसिंहसूरि का नाम इस गच्छ के आदिम आचार्य के रूप में मिलता है । उनके शिष्य अभयसिंहसूरि का नाम इस गच्छ के आदिम आचार्य के रूप में मिलता है। उनके शिष्य अभयदेवसूरि हुए जिन्हें चौलुक्य नरेश कर्ण (वि० सं० ११२०-११५०/ईस्वी सन् १०६४१०९४) से मलधारी विरुद् प्राप्त हुआ था। बाद में यही विरुद् इस गच्छ के एक नाम के रूप में प्रचिलत हो गया । कर्ण का उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-११९९/ईस्वी १०९४-११४३) भी इनका बड़ा सम्मान करता था । इन्हीं के उपदेश से शाकम्भरी के चाहमान नरेश पृथ्वीराज 'प्रथम' ने रणथम्भौर के जैन मन्दिर पर स्वर्णकलश चढ़ाया था। गोपगिरि (ग्वालियर) के राजा भुवनपाल (विक्रम सम्वत् की १२वीं शती का छठ्ठां दशक) और सौराष्ट्र का राजा राखंगार पर भी इनका प्रभाव था । अभयदेवसूरि के शिष्य विभिन्न ग्रन्थों के रचनाकार प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य हेमचन्द्रसूरि हुए । अपनी कृतियों की अन्त्यप्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को प्रश्नवाहनकुल, मध्यमिका शाखा और हर्षपुरीयगच्छ के मुनि के रूप में बतलाया है । कल्पसूत्र की 'स्थविरावली' में भी प्रश्नवाहकुल और Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १२८३ मध्यमिका शाखा का उल्लेख प्राप्त होता है । इनके शिष्य परिवार में विजयसिंहसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, विबुधचन्द्रसूरि, लक्ष्मणगणि और आगे चल कर मुनिचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि, देवप्रभसूरि, यशोभद्रसूरि, नरचन्द्रसूरि, नरेन्द्रप्रभसूरि, पद्मप्रभसूरि, श्रीतिलकसूरि, राजशेखरसूरि, वाचनाचार्य सुधाकलश आदि कई विद्वान् आचार्य एवं मुनि हुए हैं। इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिए साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा बड़ी संख्या में रची गयी कृतियों की प्रशस्तियों अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । इसके अतिरिक्त इस गच्छ की एक पट्टावली भी मिलती है, जो सद्गुरुपद्धति के नाम से जानी जाती है। इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा वि० सं० ११९० से वि० सं० १६९९ तक प्रतिष्ठापित १०० से अधिक सलेख जिन प्रतिमाएं मिलती हैं। यहां उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। अनुयोगद्वारवृत्ति संस्कृत भाषा में ५६०० श्लोकों में निबद्ध यह कृति मलधारी हेमचन्द्रसूरि की रचना है। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : जयसिंहसूरि अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि (अनुयोगद्वारवृत्ति के रचनाकार) हेमचन्द्रसूरि विरचित विशेषावश्यकभाष्यबृहवृत्ति के अन्त में भी यही प्रशस्ति मिलती है। उनके द्वारा रचित आवश्यकप्रदेशव्याख्यावृत्ति, Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास आवश्यक टिप्पन, शतकविवरण, उपदेशमालावृत्ति आदि रचनायें मिलती हैं, जिनके बारे में आगे यथास्थान विवरण दिया गया है 1 धर्मोपदेशमालावृत्ति मलधारी हेमचन्द्रसूरि के शिष्य विजयसिंहसूरि ने वि० सं० १९९१ / ई० सन् ११३५ में उक्त कृति की रचना की । इसकी प्रशस्ति' में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : जयसिंहसूरि 1 अभयदेवसूरि | हेमचन्द्रसूरि | विजयसिंहसूरि (वि० सं० १९९१ ई० /सन् ११३५ में धर्मोपदेशमाला वृत्ति के रचनाकार मुनिसुव्रतचरित यह प्राकृतभाषा में इस तीर्थङ्कर के जीवन पर लिखी गयी एकमात्र कृति है जो मलधारी गच्छ के प्रसिद्ध आचार्य श्रीचन्द्रसूरि द्वारा वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७ में रची गयी है । इसकी प्रथमादर्श प्रति आचार्य के गुरुभ्राता विबुधचन्द्रसूरि द्वारा लिखी गयी । ग्रन्थ की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु- परम्परा के साथ अपने गुरुभ्राता के इस सहयोग का भी उल्लेख किया है : जयसिंहसूर अभयदेवसूरि Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ T हेमचन्द्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि (वि० सं० ११९३/ ई० सन् ११३५ में धर्मोपदेशमालावृत्ति के रचनाकार विबुधचन्द्रसूरि (धर्मोपदेशमालावृत्ति की प्रथमादर्श प्रति के लेखक ) सुपासनाहचरिय प्राकृत भाषा में ८००० गाथाओं में निबद्ध यह कृति वि० सं० ११९९ / ई० सन् ११४३ में मलधारी लक्ष्मणगणि द्वारा रची गयी है । इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु- परम्परा का इस प्रकार उल्लेख किया है : जयसिंहसूरि I अभयदेवसूरि 1 हेमचन्द्रसूरि १२८५ | लक्ष्मणगणि (वि० सं० १९४४ / ई० सन् ११४३ में सुपासनाहचरिय के रचनाकार) संग्रहणीवृत्ति यह मलधारी श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि की कृति है । इसकी प्रशस्ति' के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि देवभद्रसूरि (संग्रहणीवृत्ति के रचनाकार) यह कृति वि० सं० की १३वीं शती के प्रथम अथवा द्वितीय दशक की रचना मानी जा सकती है। पाण्डवचरितमहाकाव्य यह लोकप्रसिद्ध पाण्डवों के जीवनचरित पर जैनपरम्परा पर आधारित ८ हजार श्लोकों की रचना है । इसके रचनाकार मलधारी देवप्रभसूरि हैं । ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार ने अपने ज्येष्ठ गुरुभ्राता देवानन्दसूरि के अनुरोध पर यह रचना की । इस कार्य में उन्हें अपने एक अन्य गुरुभ्राता यशोभद्रसूरि और शिष्य नरचन्द्रसूरि से भी सहायता प्राप्त हुई । प्रशस्ति में उल्लिखित ग्रन्थकार की गुरु-परम्परा इस प्रकार है: अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि श्रीचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि देवानन्दसूरि देवप्रभसूरि यशोभद्रसूरि Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८७ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ (पाण्डवचरित- (पाण्डवचरित महाकाव्य महाकाव्य की रचना के प्रेरक) के रचनाकार) (ग्रन्थलेखन में सहायक) नरचन्द्रसूरि (ग्रन्थलेखन में सहायक) ग्रन्थकार ने ग्रन्थ की प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है किन्तु श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने उपलब्ध अन्य साक्ष्यों के आधार पर इसे वि० सं० १२७०/ई० सन् १२१४ के आस-पास रचित बतलाया है, जो उचित प्रतीत होता है। कथारत्नसागर यह देवप्रभसूरि के शिष्य प्रसिद्ध ग्रन्थकार नरचन्द्रसूरि की रचना है। इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है : अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि देवानन्दसूरि देवप्रभसूरि यशोभद्रसूरि नरचन्द्रसूरि (कथारत्नसागर के रचनाकार) Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इसका एक नाम कथारलाकर भी मिलता है । जैनधर्म सम्बन्धी कथानक सुनने की महामात्य वस्तुपाल की उत्कण्ठा को शान्त करने के लिए नरचन्द्रसूरि ने इसकी रचना की । इस कृति की वि० सं० १३१९/ई० सन् १२५३ की लिखी गयी ताड़पत्र की एक प्रति पाटन के संघवीपाडा ग्रन्थ भण्डार में संरक्षित है। नरचन्द्रसूरि महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरु थे। उनके द्वारा रचित प्राकृतदीपिकाप्रबोध, अनर्घराघवटिप्पन, ज्योतिषसार आदि कई अन्य कृतिया भी मिलती हैं । वस्तुपाल के गिरनार के दो लेखों के पद्यांश भी नरचन्द्रसूरि द्वारा रचित हैं और वस्तुपालप्रशस्ति भी इन्हीं की कृति है। अलंकारमहोदधि महामात्य वस्तुपाल के अनुरोध एवं मलधारी आचार्य नरचन्द्रसूरि के आदेश से उनके शिष्य नरेन्द्रप्रभसूरि ने वि० सं० १२८० में अलंकारमहोदधि तथा वि० सं० १२८२/ई० सन् १२२६ में इस पर वृत्ति की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है: अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि देवानन्दसूरि देवप्रभसूरि यशोभद्रसूरि Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ नरचन्द्रसूरि T नरेन्द्रप्रभसूर न्यायकंदलीपंजिका यह हर्षपुरीयगच्छ के प्रसिद्ध आचार्य राजशेखरसूरि द्वारा वि० सं० १३८५ / ई० सन् १३२९ में रची गयी है । इसकी प्रशस्ति' में उन्होंने लम्बी गुरु - परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : अभयदेवसूरि 1 हेमचन्द्रसूरि | श्रीचन्द्रसूरि 1 मुनिचन्द्रसूरि 1 देवप्रभसूरि T नरचन्द्रसूरि | पद्मदेवसूरि 1 श्री तिलकसूरि १२८९ (वि० सं० १२८२ / ई० सन् १२२६ में अलंकारमहोदधिवृत्ति के रचनाकार) | राजशेखरसूरि (वि० सं० १३८५ / ई० सन् Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १३२९ में न्यायकंदली पंजिका के रचनाकार) संगीतोपनिषत्सारोद्धार यह इस गच्छी के वाचनाचार्य सुधाकलश द्वारा वि० सं० १४०६/ई० सन् १३५० में रची गयी ६१० श्लोकों की रचना है। यह ६ अध्यायों में विभक्त है। इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी लम्बी गुरु-परम्परा का परिचय न देते हुए अपने पूर्वज अभयदेवसूरि तथा उनकी परम्परा में हुए श्रीतिलकसूरि एवं उनके शिष्य राजशेखरसूरि का अपने गुरु के रूप में उल्लेख किया है : मलधारी अभयदेवसूरि श्रीतिलकसूरि राजशेखरसूरि सुधाकलश (वि० सं० १४०६/ ई० १३५० में संगीतोपनिषत् सारोद्धार के रचयिता) उक्त साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की एक तालिका इस प्रकार निर्मित होती है (द्रष्टव्य तालिका क्रमाङ्क - १) Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९१ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ तालिका क्रमांक -१ जयसिंहसूरि अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि श्रीचन्द्रसूरि विबुधचन्द्रसूरि लक्ष्मणगणि (वि० सं० (वि० सं० (मुनिसुव्रत (वि० सं० ११९१/ ११९३/ स्वामिचरित ११९९/ ई० सन् ई० सन् के लेखन ई० सन् ११३५ में ११३७ में में सहायक) ११४३ में धर्मोपदेशमाला- मुनिसुव्रत सुपासनाहवृत्ति स्वामिचरित चरिय के के रचनाकार) के रचनाकार) रचनाकार) मुनिचन्द्रसूरि देवभद्रसूरि (संग्रहणीवृत्ति के रचनाकार) देवानन्दसूरि यशोभद्रसूरि देवप्रभसूरि (पाण्डवचरित- (पाण्डवचरित- (पाण्डवचरितमहाकाव्य महाकाव्य महाकाव्य की रचना की रचना के रचनाकार) के प्रेरक में सहायक Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास 1 नरचन्द्रसूरि ( कथारत्नाकर के रचनाकार) नरेन्द्रप्रभसूरि (वि० सं० १२८२ / ई० सन् १२२६ में अलंकारमहोदधि के रचनाकार पद्मदेवसूरि श्री तिलकसूरि | राजशेखरसूरि (वि० सं० १३८५/ ई० सन् १३२९ में न्यायकंदलीपंजिका के रचनाकार) सुधाकलश (वि० सं० १४०६ / ई० सन् १३५० में संगीतोपनिषत्सारोद्धार के रचनाकार) हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारी गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण दत्ताणी से प्राप्त और वर्तमान में धवली ग्राम स्थित जिनालय में संरक्षित एक खंडित प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में इस गच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है। मुनि जयन्तविजयजी ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है : Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १२९३ श्री हर्षपुरगच्छेश्री....................दिवा......... ............श्रावक धाहिल सुत चाहिल..........कारिता सं [०] ११३९ ॥ अर्बुदाचलप्रदक्षिणा जैनलेखसंग्रह (आबू भाग ५), लेखांक ५६. यदि मुनिश्री की वाचना को सही मानें तो उक्त लेख को इस गच्छ का अबतक उपलब्ध सर्वप्राचीन साक्ष्य माना जा सकता है। इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित १०० से अधिक सलेख जिनप्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं, जो वि० सं० ११९० /ई० सन् ११३४ से वि० सं० १६९९ /ई० सन् १६४३ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है - Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम स्तम्भलेख १. ११९० । जिनप्रतिमा पर एम०ए० ढांकीऔर उत्कीर्ण खंडित लक्ष्मणभोजक लेख "शत्रुजयगिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमालेखो" | सम्बोधि, वर्ष ७, अंक १-४, पृष्ठ १३-२५, लेखांक ५ २. | १३२४ | आखलु । पूर्णचन्द्रसूरि | पार्श्वनाथ की चीराखाना स्थित जैनलेखसंग्रह, (आश्विन) प्रतिमा पर | जैन मन्दिर, दिल्ली | भाग -२ वदि २ उत्कीर्ण लेख लेखांक १८७५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् ३. ४. ५. ६. १२५९ तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम देवाणंदसूरि वैशाख सुदि ३ बुधवार १२८८ फाल्गुन सुदि १० बुधवार १२८८ फाल्गुन सुदि १० १२८८ फाल्गुन सुदि १० बुधवार नरचन्द्रसूरि "" नरेन्द्रप्रभसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख "" "" प्रतिष्ठास्थान धर्मनाथ का पंचायती मन्दिर, बड़ा बाजार, कलकत्ता वस्तुपाल द्वारा निर्मित आदिनाथ जिनालय, गिरनार "" • वस्तुपाल तेजपाल द्वारा निर्मित प्रासाद, गिरनार संदर्भग्रन्थ वही, भाग १, लेखांक ८९ प्राचीनजैनलेख संग्रह, संपा० मुनि जिनवजय, भाग २, लेखांक ३९ वही, लेखांक ४० मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ ११९५ Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ७. १२९८ | फाल्गुन | नरचन्द्रसूरि के | शिलालेख श@जय U.P. Shah, “A Forgवदि १४ । शिष्य (वर्तमान में otten Chapter in the रविवार | माणिक्यचन्द्रसूरि | अनुपलब्ध) the History of Shvetambara Jaina Church”, Journal of Asiatic Society of Bombay, Vol.30, Part 1, 1955 A.D. Pp. 100-113. ८. |१३२१ | फाल्गुन | प्रभाणंदसूरि | नेमिनाथ की गूढमण्डप, मुनि जयन्तविजय| सुदि १२ प्रतिमा पर लूणवसही, आबू | अर्बुदप्राचीनजैन-| उत्कीर्ण लेख लेखसंदोह, (आबू, भा. २,) | लेखांक २५३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् १०. ११अ. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम प्रभाणंदसूरि १३३७ | वैशाख सुदि ३ शनिवार १३४४ ज्येष्ठ वदि ४ शुक्रवार १३६४ पौष सुदि १२ शुक्रवार रत्नदेवसूरि " प्रतिमालेख / स्तम्भलेख महावीरस्वामी की चन्द्रप्रभजिनालय, प्रतिमा पर जैसलमेर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का लेख महावीर जिनालय, डीसा पुरतत्त्व संग्रहालय सिरोही संदर्भग्रन्थ पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २२३१ वही, भाग २, लेखांक २०९९ सोगनलाल पटनी, अर्बुद परिमंडल की जैनधातु प्रतिमायें एवं मंदिरवालि, हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ ११९७ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख लेखांक ३९, पृष्ठ ४६. ११. १३५२ वैशाख पद्मदेवसूरि के | शीतलनाथ की मनमोहनपार्श्वनाथ । बुद्धिसागरसूरि - वदि ५ शिष्य प्रतिमा का लेख | जिनलाय, मीयागाम | सम्पादक, जैनधातु सोमवार श्रीतिलकसूरि प्रतिमालेखसंग्रह, भाग २ लेखांक२७९ १२. १३७१ / माघ । श्रीतिलकसूरि | शांतिनाथ की सुमतिनाथ मुख्य- | वही, भाग - २ सुदि १४ प्रतिमा का लेख | बावन जिनालय, | लेखांक ५१९ सोमवार मातर १३. | १३७५ |...सुदि ९ शीतलनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग-२, प्रतिमा का लेख | खारवाडो, खंभात | लेखांक १०२८ १४. १३७८ मिति मुनिसुव्रत की । देवकुलिका मुनि जिनविजय, विहीन प्रतिमा का लेख | विमलवसही, । पूर्वोक्त, भाग -२, आबू लेखांक १४४ + जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १५. १६. १६अ. १७. १८. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनिका नाम १३७८ मिति विहीन १३७८ मिति वीहीन १३६९ आषाढ वदि ५ शुक्रवार १३८० वैशाख वदि ५ गुरुवार १३८० माघ "" " "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख महावीरस्वामी की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिष्ठास्थान प्रेमचन्द्रमोदी की टोंक, शत्रुञ्जय पुरातत्त्व संग्राहलय सिरोही शांतिनाथ जिनालय, राधनपुर महावीर जिनालय, संदर्भग्रन्थ वही, लेखांक १४५ पूरनचन्द नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६८४ पटनी, पूर्वोक्त, लेखांक ५६, पृष्ठ ४८. मुनिविशालविजय, संपा० राधनपुर प्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ४९ अगरचन्द नाहटा, हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १२९९ Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख सुदि ६ प्रतिमा पर बीकानेर संपा० बीकानेरसोमवार उत्कीर्ण लेख जैनलेखसंग्रह, लेखांक १२१४ १९. |१३८६ | माघ श्रीतिलकसूरि | पार्श्वनाथ की चिन्तामणिजी का | वही, वदि २ के शिष्य धातु की प्रतिमा । मंदिर, बीकानेर | लेखांक ३१३ राजशेखरसूरि | का लेख २०. १३९३ | पौष राजशेखरसूरि जैन मन्दिर, विजयधर्मसूरि, वदि ५ संपा. प्राचीनलेख संग्रह, लेखांक ६२ २१. १३९३ | फाल्गुन चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ३ मंदिर, बीकानेर लेखांक ३५८ वढवाण जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २२. २३. २४. २५. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम १४०८ वैशाख उदयदेवसूरि सुदि ५ गुरुवार १४०९ फाल्गुन वदि २ २६. १४१५ ज्येष्ठ वदि १३ १४२७ | ज्येष्ठ वदि १ १४४० वैशाख राजशेखरसूरि >> मुनिशेखरसूरि राजशेखरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख तीर्थङ्कर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख "" प्रतिष्ठास्थान शांतिनाथ देरासर शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद आदिनाथ जिनालय (नाहटों में) बीकानेर चिन्तामणिजी का संदर्भग्रन्थ मंदिर, बीकानेर गौड़ीजी भण्डार, उदयपुर बुद्धिसागरसूरि पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १२५६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १४४२ वही, लेखांक ४३५ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ७८ शांतिनाथ जिनालय मुनिकान्तिसागर, हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३०१ Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०२ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान । संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख सुदि ३ कोट, मुम्बई संपा० जैनधातु प्रतिमालेख, लेखांक ५० २७. | १४५४ | पौष । मुनिसागरसूरि वासुपूज्य की बालावसही, मुनि कान्तिसागर, सुदि १२ प्रतिमा का लेख | शत्रुञ्जय संपा० शत्रुञ्जयसोमवार वैभव, लेखांक ४९ २८. | १४५८ | वैशाख | मतिसागरसूरि आदिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, | विनयसागर, संपा० पञ्चतीर्थी प्रतिमा | बूंदी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, बुधवार का लेख भाग १, लेखांक १८१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वदि २ Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २९. ३०. ३१. ३२. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम १४५८ ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार १४७९ माघ वदि ४ शुक्रवार १४७६ चैत्र वदि १ शनिवार १४७७ ज्येष्ठ वदि १ 77 विद्यासागरसूरि " मुनिशेखरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नमिनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान वीर जिनालय, बीकानेर "1 महावीर जिनालय डीसा गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, रङ्गपुर, उत्तरी बंगाल संदर्भग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १२७८ वही, लेखांक १३०० पूरनचन्द नाहर, पूर्वोक्त, लेखांक २१०० वही, भाग २, लेखांक ११२५ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३०३ Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३३. ३३अ. ३४. ३५. तिथि // प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम मतिसागरसूरि १४७९ माघ सुदि ४ शनिवार १४७४ | माघ वदि ४ १४८३ वैशाख सुदि ५ गुरुवार १४८३ भाद्रपद वदि ७ गुरुवार विद्यासागरसूरि 11 मतिसागरसूरि के पट्टधर विद्यासागरसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख देवकुलिका का लेख प्रतिष्ठास्थान भण्डारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, किशनगढ़ जैन मन्दिर, थराद संदर्भग्रन्थ मुनि कान्तिसागर, जैनधातुप्रतिमा लेख, लेखांक १६ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक १३०० विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २३९ दौलतसिंह लोढा, संपा० श्रीप्रतिमा लेखसंग्रह, लेखांक २९२ ब १३०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठास्थान T संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ३६. १४८४ वैशाख | विद्यासागरसूरि कुन्थुनाथ की माणिकसागरजी का | विनयसागर, सुदि ३ पंचतीर्थी प्रतिमा | मन्दिर, कोटा | पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार का लेख लेखांक २४८ ३७. १४८५ | आषाढ़ पार्श्वनाथ की पठानी टोला स्थित / नाहर, पूर्वोक्त सुदि १० प्रतिमा का लेख | जैन मंदिर, भाग १ रविवार वाराणसी लेखांक ४०६ ३८. १४८७ | मार्गशीर्ष | विद्यासागरसूरि | अरनाथ की | मुनिसुव्रत जिनालय, | विनयसागर, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | मालपुरा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक २६७ ३९. १४८८ | मार्गशीर्ष आदिनाथ की चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १२ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर | लेखांक ७३८ गुरुवार ४०. १४९७ | ज्येष्ठ गुणसुन्दरसूरि आदिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १3०५ Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०६ - - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख सुदि २ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग ३, लेखांक २३१२ ४१. १४९८ धर्मनाथ की चिन्तामणि जी का नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ८०० ४२. | १४९८ | फाल्गुन आदिनाथ की वही वही, सुदि १० प्रतिमा का लेख लेखांक ८०६ ४३. | १४९९ । माघ । विद्यासागरसूरि के | धर्मनाथ की बालावसही, शत्रुञ्जयवैभव, वदि ५ । पट्टधर प्रतिमा का लेख शत्रुजय लेखांक ८३ रविवार गुणसुन्दरसूरि ४४. |१४९९ । माघ गुणसुन्दरसूरि । श्रेयांसनाथ की बड़ा मंदिर, नागौर | विनयसागर, सुदि६ पंचतीर्थी प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ३३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि // प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ४५. १४९९ | फाल्गुन धर्मनाथ की खरतरगच्छीय | वही, भाग १, वदि ४ पंचतीर्थी प्रतिमा | आदिनाथ जिनालय, लेखांक ३३४ शनिवार का लेख कोटा ४६. १५०२ वैशाख | गुणकीर्तिसूरि । आदिनाथ की जैनमंदिर, वही, भाग १, सुदि २ | लक्ष्मीसागरसूरि | पंचतीर्थी प्रतिमा | मेड़ता सिटी लेखांक ३५७ सोमवार का लेख ४७. | १५०४ | फाल्गुन | विद्यासागरसूरि के | कुन्थुनाथ की माणिकसागरजी वही, भाग १, | वदि ११ पट्टधर पंचतीर्थी प्रतिमा का मंदिर, कोटा लेखांक ३८४ गुणसुन्दरसूरि | का लेख (राज०) ४८. | १५०४ | फाल्गुन कुन्थुनाथ की चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ११ पंचतीर्थी प्रतिमा | मंदिर, बीकानेर | लेखांक ८८७ का लेख हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३०७ Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ४९. | १५०५ | माघ । सुविधिनाथ की | शांतिनाथ देरासर, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त सुदि १० चौबीसी प्रतिमा । शांतिनाथ पोल, भाग -१ रविवार का लेख अमहदाबाद लेखांक १३१३ ५०. १५०६ / माघ अजितनाथ वही, भाग १, सुदि ८ जिनालय, शेख लेखांक १००९ पाडो, अहमदाबाद ५१. १५०८ चैत्र । सुमतिनाथ की । आदिनाथ जिनालय, वही, भाग -२, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | माणेक चौक, लेखांक ९९९ बुधवार खंभात ५२. | १५०८ वैशाख अजितनाथ की सुमतिनाथ मुख्य | वही, भाग २, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | बावन, जिनालय, | लेखांक ४७२ सोमवार . जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मातर Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठास्थान । संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ५३. १५०८ | ज्येष्ठ । सुमतिनाथ की धर्मनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय, सुदि १३ धातु की मडार आबू, भाग ५, बुधवार प्रतिमा का लेख लेखांक ८२ ५४. |१५०८ आषाढ़ वासपूज्य की दादा पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ प्रतिमा का लेख | जिनालय, बड़ोदरा | पूर्वोक्त, भाग -२, सोमवार लेखांक १२६ ५५. |१५०८ | मार्गशीर्ष संभवनाथ की नेमिनाथ जिनालय, | मुनि विशालविजय, वदि २ धातु की राधनपुर पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख लेखांक १५५ ५६. १५०९ | वैशाख शीतलनाथ की जैन मंदिर, चालीस | मुनि कान्तिसागर, सुदि ११ धातु की प्रतिमा |गांव, महाराष्ट्र | जैनधातुप्रतिमाशुक्रवार का लेख लेख, लेखांक १२० हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३०९ Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोटा क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान । संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ५७. १५०९ । माघ पद्मप्रभ की खरतरगच्छीय विनयसागर, सुदि १० पंचतीर्थी प्रतिमा | आदिनाथ जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ४४६ ५८. |१५०९ माघ । विद्यासागरसूरि | शांतिनाथ की पंचायती जैनमंदिर, वही, भाग १, सुदि १० के पट्टधर | पंचतीर्थी प्रतिमा | जयपुर लेखांक ४४७ गुणसुन्दरसूरि | का लेख ५९. १५१० | पौष सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | देलवाड़ा, मेवाड़ भाग २, लेखांक १९९० । ६०. |१५११ | आषाढ़ आदिनाथ की आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, वदि ९ पंचतीर्थी प्रतिमा | करमदी पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक ४७३ वदि १० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ६१. |१५११ माघ आदिनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग -२, गुरुवार का लेख जीरारपाडो, खंभात | लेखांक ७२० ६२. १५१२ मार्गसिर कुन्थुनाथ की आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, वदि १२ पंचतीर्थी प्रतिमा |वींबडोद पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ४८५ ६३. १५१२ | फाल्गुन सुमतिनाथ की जैन मंदिर, अलवर | नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १२ प्रतिमा का लेख भाग १, बुधवार लेखांक ९९९ ६४. |१५१२ फाल्गुन कुन्थुनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, वदि... चौबीसी प्रतिमा घोघा लेखांक १७७५ शनिवार का लेख (काठियावाड़) हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१३ -- - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ६५. | १५१३ चैत्र पार्श्वनाथ की | विमलनाथ जिनालय विनयसागर, सुदि६ पंचतीर्थी प्रतिमा सवाई माधोपुर पूर्वोक्त,भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक ५०० ६६. १५१३ | वैशाख आदिनाथ की महावीर जिनालय, | वही, भाग १, सुदि २ पंचतीर्थी प्रतिमा | भिनाय लेखांक ५०४ का लेख ६७. | १५१३ | आश्विन शांतिनाथ की महावीर जिनालय, | वही, भाग १, पंचतीर्थी प्रतिमा | सांगानेर लेखांक ५१६ का लेख ६८. १५१५ | माघ वासुपूज्य की महावीर जिनालय, | मुनि विशालविजय, सुदि १ धातु की राधनपुर पूर्वोक्त, शुक्रवार प्रतिमा का लेख लेखांक १८९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् ६९. ७०. ७१. ७२. मिति तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम श्रीसूरि १५१५ फाल्गुन सुदि ४ शुक्रवार १५१५ "" १५१६ वैशाख सुदि १३ रविवार १५१७ वैशाख सुदि ३ सोमवार " "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान सुपार्श्वनाथ का पंचायती मंदिर, जयपुर चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेर महावीर जिनालय, सांगानेर संदर्भग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११५४ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५४८ वही, भाग १, लेखांक ५५६ बालावसही, शत्रुञ्जय शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक १५९अ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३१३ Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७३. ७४. ७५. ७६. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम १५१७ फाल्गुन सुदि ३ शुक्रवार १५१५ ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार १५१८ | मार्गसिर वदि ५ शनिवार १५१८ | फाल्गुन वदि १ सोमवार विद्यासागरसूरि के पट्टधर गुणसुन्दरसूरि हेमप्रभसूर गुणसुन्दरसूरि 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुविधिनाथ की प्रतिमा चौबीसी का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख नमिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद अजितनाथ जिनालय, शेख पाडो, अहमदाबाद लीलाधरजी का उपाश्रय, जयपुर नवखण्डा पार्श्वनाथ जिनालय, भोंयरापाडो, खंभात संदर्भग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३१४ वही, भाग - १ लेखांक १००१ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५८० बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ८६३ १३१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि /| प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ७७. १५२० चैत्र सुमतिनाथ की अजितनाथ | मुनि विशालविजय वदि ८ धातु की जिनालय, राधनपुर | पूर्वोक्त, शुक्रवार प्रतिमा का लेख लेखांक २२७ एवं विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ३४७ ७८. १५२१ | माघ धर्मनाथ की धातु | वीर जिनालय, | बुद्धिसागरसूरि, वदि ९ की प्रतिमा खारवाड़ो, खंभात | पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार का लेख लेखांक १०३० ७९. १५२१ माघ अभिनन्दनस्वामी | अजितनाथ | वही, भाग -१, सुदि १३ की धातु की जिनालय, शेख लेखांक १०१३ गुरुवार प्रतिमा का लेख | पाडो, अहमदाबाद हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ८०. १५२२ | कार्तिक आदिनाथ की | वीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, | वदि ५ प्रतिमा का लेख | डीसा भाग २, गुरुवार लेखांक २१०४ ८१. १५२२ | पौष चन्द्रप्रभ की धातु | लोढण पार्श्वनाथ- बुद्धिसागरसूरि, वदि १र की प्रतिमा का | देरासर, डभोई पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेख लेखांक ३९ ८२. | १५२२ | फाल्गुन चन्द्रप्रभस्वामी की पंचायती मंदिर, विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख लेखांक ६२३ ८३. | १५२३ | मार्गशीर्ष कुन्थुनाथ की | पुंगलियों का मंदिर, | वही, भाग १, वदि २ पंचतीर्थी प्रतिमा लेखांक ६३० शुक्रवार का लेख जयपुर सुदि ३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ८३अ. ८४. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम १५२५ मार्गशीर्ष ८५. २ शुक्रवार १५२७ पौष सुदि ६ शुक्रवार १५२८ वैशाख वदि ६ ८६. १५२८ माघ " "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख मुनिसव्रत की धातु की प्रतिमा का लेख सुविधिनात की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिष्ठास्थान वीर जिनालय, वृजनगर बड़ा मंदिर, नागौर पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर जैनमंदिर, भिनाय संदर्भग्रन्थ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३० वही, लेखांक ६९५ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १२७८ | अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १९८३ विनयसागर, हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३१७ Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख सुदि ३ पंचतीर्थी पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार प्रतिमा का लेख लेखांक ७१० ८७. १५२९ | वैशाख पद्मप्रभ की | आदिनाथ जिनालय, अगरचन्द नाहटा, वदि ६ प्रतिमा का लेख | राजलदेसर पूर्वोक्त, लेखांक २३५१ बालावसही, शत्रुञ्जयवैभव, विहीन शत्रुञ्जय लेखांक ८४ वही वही, विहीन लेखांक १५९ ब ९० १५२९ | फाल्गुन गुणनिधानसूरि | सुविधिनाथ की कुन्थुनाथ जिनालय, | बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, सुदि ७ प्रतिमा का लेख | छाणी भाग -२, बुधवार लेखांक २६६ तिथि + तिथि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ९१. १५३२ | वैशाख । पुण्यनिधानसूरि | सुविधिनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख । नागौर भाग -२ शुक्रवार लेखांक १२८५ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७४८ ९२. १५३३ चैत्र । गुणसुन्दरसूरि के | अभिनन्दस्वामी | बड़ा मंदिर, नागौर | विनयसागर, सुदि ४ पट्टधर | की पञ्चतीर्थी पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार | गुणनिधानसूरि । प्रतिमा का लेख लेखांक ७५३ ९३. १५३३ | मिति आदिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, | वही, विहीन पंचतीर्थी प्रतिमा | दाहोद लेखांक ७६७ का लेख १३१२ Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२० क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान - संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख ९४. | १५३४ आषाढ़ अजितनाथ की | चिन्तामणिजी का | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १०८३ गुरुवार ९५. १५३४ | आषाढ़ शीतलनाथ की वही वही, सुदि १ प्रतिमा का लेख लेखांक १०८४ गुरुवार ९६. १५३४ | आषाढ़ | गुणनिर्मलसूरि आदिनाथ की सवाईराम बाफणा | नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ७ प्रतिमा का लेख | का मंदिर, भाग-३, मंगलवार जैसलमेर लेखांक २५२७ ९७. १५३४ मार्गशीर्ष गुणनिधानसूरि कुन्थुनाथ की। | शंखेश्वर पार्श्वनाथ | नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखांक १९०८ सोमवार आसानियों का जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९८. ९९. १००. १०१. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम गुणनिधानसूरि १५३६ वैशाख वदि ११ शुक्रवार १५४३ ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवार १५४६ | आषाढ़ वदि २ शनिवार १५४६ आषाढ़ वदि १२ रविवार गुणनिधानसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि श्री ... सूरि गुणसागरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान चौक, बीकानेर शांतिनाथ जिनालय, लिबंडीपाड़ा, पाटण विमलनाथ जिनालय, सवाई माधोपुर, राजस्थान शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ जिनालय, सिरपुर, अकोला (महाराष्ट्र) संदर्भग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २९५ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८३६ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १२९४ कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक २४९ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३२१ Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् १०२ १०३. १०४. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम १५४९ वैशाख सुदि ५ रविवार १५४९ | ज्येष्ठ सुदि १३ १५५१ माघ वदि २ सोमवार लक्ष्मीसागरसूरि गुणकीर्तिसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान शांतिनाथ जिनालय, लिंबडीपाडा, पाटण रामचन्द्रजी का मंदिर, पठानीटोला, वाराणसी वीर जिनालय, बीकानेर संदर्भग्रन्थ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग -१ लेखांक २७९ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १ लेखांक ४१३ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १२७१ १३२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०५. १५५३ आषाढ़ सुदि २ रविवार १०६. १०७. १०८. मिति तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम श्रीसूरि १५५३ १५५४ पौष सुदि १२ सोमवार १५५७ वैशाख सुदि ५ गुरुवार मतिसागरसूरि गुण... सूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान जैनमंदिर, चेलापुरी, नाहर, दिल्ली पूर्वोक्त, लेखांक ४९४ कुन्थुनाथ देरासर, बीजापुर अनुपूर्ति लेख, बीजापुर संदर्भग्रन्थ सुपार्श्वनाथ का पंचायती मंदिर, जयपुर बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४४१ मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखांक ६५९ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ११६८ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३२३ Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०९. ११०. १११. ११२. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम पुण्यवर्धनसूरि १५५७ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार १५५८ फाल्गुन सुदि १२ शुक्रवार १५६८ फाल्गुन सुदि ४ गुरुवार १५६९ मिति विहीन लक्ष्मीसागरसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान शांतिनाथ जिनालय, लिंबडीपाड़ा, पाटण जैन मंदिर, मोतिसुखिया की धर्मशाला, पालिताना पार्श्वनाथ जिनालय, (कोचरों में) बीकानेर गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय रङ्गपुर, संदर्भग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २९१ शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक २५७ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ६४८ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १६०६ नाहर, पूर्वोक्त, भाग - २, १३२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११३. ११४. ११५. ११६. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम १५७२ वैशाख सुदि २ सोमवार १५७३ वैशाख सुदि ३ गुरुवार १५८४ फाल्गुन सुदि १० गुरुवार १६९९ मिति विहीन गुणसुन्दरसूरि महिमासागरसूरि के पट्टधर कल्याणसागरसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख मूलनायक आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान उत्तरी बंगाल धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी जैनमंदिर, ईडर संदर्भग्रन्थ आदिनाथ जिनालय उदयपुर लेखांक ११३१ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९५० बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १४४२ पार्श्वनाथ जिनालय, विनयसागर, सांथा पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९७६ नाहर, पूर्वोक्त, भाग - २, लेखांक १८९९ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३२५ Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पद्मदेवसूरि के शिष्य राजशेखरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ५ सलेख जिनप्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि० सं० १३८६ माघ वदि २ बी० जै० ले० सं०, लेखांक ३१३ वि० सं० १३९३ पौष वदि २ प्रा० ले० सं०, लेखांक ६२ वि० सं० १३९३ फाल्गुन सुदि २ बी० जै० ले० सं०, लेखांक ३५८ वि० सं० १४०९ फाल्गुन वदि २ वही, लेखांक १४४२ वि० सं० १४१५ ज्येष्ठ वदि १३ वही, लेखांक ४४५ मलधारिंगच्छीय प्रतिमा लेखों की सूची में वि० सं० १२५९ के प्रतिमालेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक मलधारी देवानन्दसूरि का नाम आ चुका है । जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है मलधारी देवप्रभसूरि कृत पाण्डवचरित की प्रशस्ति में भी ग्रन्थकार के ज्येष्ठ गुरुभ्राता और ग्रन्थ की रचना के प्रेरक के रूप में देवानन्दसूरि का नाम मिलता है । पाण्डवचरित का रचनाकाल वि० सं० १२७०/ई० सन् १२१४ माना जाता है। अतः समसामयिकता के आधार पर उक्त प्रशस्ति में उल्लिखित देवानन्दसूरि और वि० सं० १२५९ ई० सन् १२०३ में पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक देवानन्दसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। महामात्य वस्तुपाल द्वारा निर्मित गिरनार स्थित आदिनाथ जिनालय के वि० सं० १२८८/ई० सन् १२३२ दो अभिलेखों के रचनाकार नरचन्द्रसूरि और यहीं स्थित इसी तिथि के एक अन्य अभिलेख के रचनाकार नरेन्द्रप्रभसूरि महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरु नरचन्द्रसूरि और उनके शिष्य नरेन्द्रप्रभसूरि से अभिन्न हैं । यही बात वि० सं० १२९८/ई० सन् १२४२ के लेख में उल्लिखित माणिक्यचन्द्रसूरि के गुरु नरचन्द्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार वि० सं० १३५२/ईस्वी सन् १२९६ से वि० सं० १३८० / ईस्वी सन् १३३४ तक के प्रतिमालेखों में उल्लिखित पद्मतिलकसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि एवं वि० सं० १३८६/ई० सन् १३३० से० वि० सं० १४१५/ Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३२७ ई० सन् १३५९ तक के प्रतिमालेखों में उल्लिखित उनके शिष्य राजशेखरसूरि समसामयिकता के आधार पर प्रतिमालेखों में प्रसिद्ध आचार्य राजशेखरसूरि और उनके गुरु श्रीतिलकसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर मलधारिगच्छीय मुनिजनों की गुरु परम्परा की पूर्वोक्त तालिका को जो वृद्धिगत स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है (द्रष्टव्य - तालिका क्रमांक २) : तालिका क्रमांक - २ जयसिंहसूरि अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि श्रीचन्द्रसूरि विबुधचन्द्रसूरि लक्ष्मणगणि वि० सं० ११९१/वि० सं० ११९३/ मुनिसुव्रत- वि० सं० ११९९/ ई० सन् ई० सन् स्वामिचरित ई० सन् ११३५ में ११३७ में के लेखन ११४३ में धर्मोपदेशमाला- मुनिसुव्रत- में सहायक) सुपासनाहवृत्ति स्वामिचरित चरिय के के रचनाकार) के रचनाकार) रचनाकार) मुनिचन्द्रसूरि देवभद्रसूरि (संग्रहणीवृत्ति के रचनाकार) Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२८ देवानन्दसूरि (पाण्डवचरित महाकाव्य की रचना के प्रेरक वि० सं० १२५९ में पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) अलंकार महोदधि के रचनाकार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवप्रभसूर (पाण्डवचरित यशोभद्रसूरि (पाण्डवचरित महाकाव्य की रचना में सहायक नरेन्द्रप्रभसूरि माणिक्यचन्द्रसूरि (वि० सं० १२८२ / ( वि० सं० १२९८ / ई० स० १२२६ में ई० स० १२४२ के शत्रुञ्जय के प्रशस्तिलेख में उल्लिखित महाकाव्य के रचनाकार) नरचन्द्रसूरि ( कथारत्नाकर के रचनाकार) वि० सं० १२८८ में में महामात्य वस्तुपाल की गिरनार प्रशस्ति के रचयिता) पद्मदेवसूरि 1 श्री तिलकसूरि रचनाकार (वि० सं० १३५२-८० प्रतिमालेख) I Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ राजशेखरसूरि (वि० सं० १३८६ - १४१४ प्रतिमालेख. अनेक ग्रन्थों के रचनाकार) सुधाकलश (वि० सं० १४०६ / ई० सन् १३५० में संगीतोपनिषत्सारोद्धार के रचयिता ) .१४ जैसा कि प्रारम्भ में कहा गया है कि इस गच्छ की सद्गुरुपद्धति नामक एक गुर्वावली भी मिलती है । प्राकृत भाषा में २६ गाथाओं में रची गयी यह कृति वि० सं० की १४वीं शती की रचना मानी जा सकती है। इसमें अभयदेवसूरि से लेकर पद्मदेवसूरि तक के मुनिजनों की गुरु- परम्परा इस प्रकार दी गयी है : अभयदेवसूरि T हेमचन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि श्रीचन्द्रसूरि विबुधचन्द्रसूरि मुनिचन्द्र हरिभद्र मानदेव सूरि सूरि सूरि सिद्ध सूरि १३२९ महेन्द्र सूरि देवभद्र सूरि Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवानन्दसूरि नेमिचन्द्रसूरि यशोभद्रसूरि देवप्रभसूरि नरचन्द्रसूरि माणिक्यचन्द्र नरेन्द्रप्रभ रत्नप्रभ प्रभानन्द पद्मदेव ग्रन्थप्रशस्तियों से जहाँ श्रीचन्द्रसूरि के केवल दो शिष्यों मुनिचन्द्रसूरि और देवप्रभसूरि के बारे में ही जानकारी प्राप्त हो पाती है, वहीं इस गुर्वावली से ज्ञात होता है कि उनके अतिरिक्त श्रीचन्द्रसूरि के हरिभद्रसूरि, सिद्धसूरि, मानदेवसूरि आदि शिष्य भी थे । यही बात मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार इस गुर्वावली में उल्लिखित नरचन्द्रसूरि के सभी शिष्यों के नाम साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात हो जाते हैं । वस्तुतः इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से यह गुर्वावली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि पीछे हम देख चुके है इस गच्छ से सम्बद्ध १५वीं-१६वीं शती की जिनप्रतिमाओं की संख्या पूर्व की शताब्दियों की अपेक्षा अधिक है। इन पर उत्कीर्ण लेखों से इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते है, तथापि उनमें से कुछ के पूर्वापर सम्बन्ध ही निश्चित हो पाते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: १. मतिसागरसूरि (वि० सं० १४५८-१४७९) . ३ प्रतिमालेख २. मतिसागरसूरि के पट्टधर विद्यासागरसूरि ७ प्रतिमालेख (वि० सं० १४७६-१४८८) ३. विद्यासागरसूरि के पट्टधर गुणसुन्दरसूरि ४३ प्रतिमालेख (वि० सं० १४९७-१५२९) Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ ४. गुणसुन्दरसूरि के पट्टधर गुणनिधानसूरि ८ प्रतिमालेख (वि० सं० १५२९-१५३६) ५. गुणनिधानसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि २ प्रतिमालेख (वि० सं० १४४३-१५४६) ६. गुणसागरसूरि के शिष्य (?) लक्ष्मीसागरसूरि ६ प्रतिमालेख (वि० सं० १५४९-१५७२) मलधारी गुणसुन्दरसूरि के शिष्य सर्वसुन्दरसूरि ने वि० सं० १५१० / ईस्वी सन् १४५४ में हंसराजवत्सराजचौपाई की रचना की । यह इस गच्छ से सम्बद्ध विक्रम सम्वत् की १६वीं शती का एकमात्र साहित्यिक साक्ष्य माना जा सकता है। जैसा कि अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत हम देख चुके हैं वि० सं० १४९७ से वि० सं० १५२९ तक के ४३ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में गुणसुन्दरसूरि का नाम मिलता है । हंसराजवत्सराजचौपाई के रचनाकार सर्वसुन्दरसूरि ने भी अपने गुरु का यही नाम दिया है, अत: समसामयिकता के आधार पर दोनों साक्ष्यों में उल्लिखित गुणसुन्दरसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। वि० सं० की १५वीं शती के उत्तरार्ध और १६वीं शती तक के इस गच्छ से सम्बन्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर गुरु - शिष्य परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है : - - Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (वि० सं० १४५८ - १४७९) प्रतिमालेख मतिसागरसूरि सर्वसुन्दरसूरि (वि० सं० १५१० में हंसराजवत्सराजचौपाई अपरनाम कथासंग्रह के रचनाकार) विद्यासागरसूरि T गुणसुन्दरसूरि (वि० सं० १४७६- १४८८) प्रतिमालेख (वि० सं० १४९७ - १५२९) प्रतिमालेख गुणनिधानसूरि (वि० सं० १५२९ - १५३६) प्रतिमालेख गुणसागरसूरि (वि० सं० १५४३ - १५४६) प्रतिमालेख लक्ष्मीसागरसूरि ( वि० सं० १५४९ - १५७२) प्रतिमालेख वि० सं० की १६वीं शती के अन्तिम चरण से मलधारगच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की विरलता इस गच्छ के अनुयायियों की घटती हुई संख्या का परिचायक है । वि० सं० की १७वीं शती के इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो साक्ष्य मिलते हैं। इनमें प्रथम है सिन्दूरप्रकरवृत्ति", जो हर्षपुरीयगच्छ के Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ गुणनिधानसूरि के शिष्य गुणकीतिसूरि द्वारा वि० सं० १६६७/ईस्वी सन् १६११ में रची गयी है। इसी प्रकार वि० सं० १६९९ के प्रतिमालेख में इस गच्छ के महिमासागरसूरि के शिष्य कल्याणराजसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है । यह इस गच्छ का उल्लेख करनेवाला अन्तिम उपलब्ध साक्ष्य है । यद्यपि इनसे विक्रम सम्वत् की १७वीं शती के अन्त तक हर्षपुरीयगच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध होता है, तथापि वह अपने पूर्व गौरवमय स्थिति से च्युत हो चुका था और वि० सं० की १८वीं शती से इस गच्छ के अनुयायी ज्ञातियों को हम तपागच्छ से सम्बद्ध पाते हैं।१८ इस गच्छ के प्रमुख आचार्यों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : अभयदेवसूरि : श्वेताम्बर परम्परा में अभयदेवसूरि नामक कई आचार्य हो चुके हैं । विवेच्य अभयेदवसूरि प्रश्नवाहनकुल व माध्यमिकाशाखा से सम्बद्ध हर्षपुरीयगच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य थे । प्रस्तुत लेख के प्रारम्भ में इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित जिन ग्रन्थों की प्रशस्तियों का विवरण दिया जा चुका है, उन सभी में इनके मुनि जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण विवरण संकलित है। चौलुक्य नरेश कर्ण (वि० सं० ११२०-११५०)ने इनकी निस्पृहता और त्याग से प्रभावित होकर इन्हें 'मलधारी' विरुद् प्रदान की । कर्ण का उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-११९९) भी इनका बड़ा सम्मान करता था । इनके उपदेश से उसने अपने राज्य में पर्युषण और अन्य विशेष अवसरों पर पशुबलि निषिद्ध कर दी थी। गोपगिरि के राजा भुवनपाल (वि० सं० की १२वीं शती का छठा दशक) और सौराष्ट्र के राजा राखेंगार पर भी इनका प्रभाव था। अपनी आयुष्य को क्षीण जानकर इन्होंने ४५ दिन तक अनशन किया और अणहिलपुरपत्तन में स्वर्गवासी हुए। इनकी शवयात्रा प्रातःकाल प्रारम्भ हुई और तीसरे प्रहर दाहस्थल तक पहुची । जयसिंह सिद्धराज ने अपने परिजनों के साथ राजप्रासाद की छत पर से इनकी अन्तिम यात्रा का Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अवलोकन किया । इनके पट्टधर हेमचन्द्रसूरि हुए। हेमचन्द्रसूरि जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है आप हर्षपुरीयगच्छालंकार अभयदेवसूरि के शिष्य और पट्टधर थे । श्रीचन्द्रसूरि विरचित मुनिसुव्रतचरित° (रचनाकाल वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७) एवं राजशेखरसूरि कृत प्राकृतद्वयाश्रयवृत्ति की प्रशस्तियों से इनके सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११७०/ई० सन् १११४) की प्रशस्ति में इन्होंने स्वरचित ९ ग्रन्थों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : १. आवश्यकटिप्पण, २. शतकविवरण, ३. अनुयोगद्वारवृत्ति, ४. उपदेशमालासूत्र, ५. उपदेशमालावृत्ति, ६. जीवसमासविवरण, ७. भवभावनासूत्र, ८. भवभावनाविवरण, ९. नन्दीटिप्पण। आवश्यकटिप्पण : ४६०० श्लोकों की यह कृति आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित आवश्यकवृत्ति पर लिखी गयी है । इसे आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्या के नाम से भी जाना जाता है। इस पर हेमचन्द्रसूरि के ही एक शिष्य एवं पट्टधर श्रीचन्द्रसूरि ने एक और टिप्पण लिखा है जो प्रदेशव्याख्याटिप्पण के नाम से प्रसिद्ध है। शतकविवरण : शिवशर्मसूरिविरचित प्राचीन पंचम कर्मग्रन्थ शतक पर मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने संस्कृत भाषा में ३७४० श्लोक प्रमाण वृत्ति अथवा विवरण की रचना की । जैसलमेर के ग्रन्थभंडार में १३वीं - १४वीं शती की इसकी कई प्रतियाँ संरक्षित हैं। अनुयोगद्वारवृत्ति : यह अनुयोगद्वारसूत्र के मूलपाठ पर ५९०० श्लोकों में रची गयी है । इसमें सूत्रों के पदों का सरल व संक्षिप्त अर्थ दिया गया है । कलकत्ता, मुम्बई, एवं पाटन से इसके चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।२३ Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३३५ उपदेशमालासूत्र : सुभाषित और सूक्ति के रूप में रचित जैन मनीषियों की अनेक कृतियाँ मिलती हैं । यह कृति भी उसी कोटि में मानी गयी है । इसमें सदाचार और लोकव्यवहार का उपदेश देने के लिए स्वतंत्र रूप से अनेक सुभाषित पदों का निर्माण किया गया है, जिसमें जैनधर्मसम्मत आचारों और विचारों के उपदेश प्रस्तुत किये गये हैं । रचनाकार ने अपनी इस कृति पर वि० सं० ११७५/ई० सन् १९१९ में वृत्ति की भी रचना की है। पाटण के जैन ग्रन्थ भण्डारों में इसकी कई प्रतियाँ संरक्षित हैं । जैन श्रेयस्कर मंडल, मेहसाणा से ई० सन् १९११ में यह प्रकाशित भी हो चुकी है । जीवसमासविवरण : आचार्य हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित यह कृति ६६२७ श्लोकों में निबद्ध है । इसकी स्वयं ग्रन्थकार द्वारा लिखी गयी एक ताड़पत्रीय प्रति खंभात के शांतिनाथ जैन भंडार में संरक्षित है । इस प्रति से ज्ञात होता है कि यह चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज के शासनकाल में वि० सं० १९६४ / ई० सन् १९०८ में पाटण में लिखी गयी । भावभावनासूत्र : जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट होता है इसमें भवभावना अर्थात् संसारभावना का वर्णन किया गया है । इसके अन्तर्गत ५३१ गाथायें हैं । इसमें भवभावना के साथ-साथ अन्य ११ भावनाओं का भी प्रसंगवश निरूपण किया गया 1 है I ग्रन्थकार ने अपनी इस कृति पर वि० सं० १९७०/ई० सन् १११४ में वृत्ति की रचना की । यह १२५० श्लोकों में निबद्ध है । इस वृत्ति के अधिकांश भाग में नेमिनाथ एवं भुवनभानु के चरित्र आते हैं । यह कृति स्वोपज्ञटीका के साथ ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम द्वारा दो भागों में प्रकाशित हो चुकी है । नंदीटिप्पण : जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है ग्रन्थकार ने विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति की प्रशस्ति में स्वरचित ग्रन्थों में इसका भी उल्लेख किया है । परन्तु इसकी कोई प्रति अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति : यह हेमचन्द्रसूरि की बृहत्तम कृति है। इसके अन्तर्गत २८००० श्लोक हैं । इसमें विशेषावश्यकभाष्य के विषयों का सरल एवं सुबोध रूप से प्रतिपादन किया गया है। इस टीका के कारण विशेषावश्यकभाष्य के पठनपाठन में अत्यधिक वृद्धि हुई । इसके अन्त में दी गयी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह वि० सं० ११७५/ई० सन् १११९ में पूर्ण की गयी। विजयसिंहसूरि __आप हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे । श्रीचन्द्रसूरि कृति मुनिसुव्रतस्वामिचरित (रचनाकाल वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७), लक्ष्मणगणि विरचित सुपासनाहचरिय (रचनाकाल वि० सं० १११९/ई० सन् ११४३), नरचन्द्रसूरि द्वारा रचित कथारत्नसागर एवं देवप्रभसूरि कृत पाण्डवचरितमहाकाव्य की प्रशस्तियों में इनका सादर उल्लेख है । कृष्णर्षिगच्छीय जयसिंहसूरि विरचित धर्मोपदेशमाला (रचनाकाल वि० सं० ९१५/ई० सन् ८५९) पर इन्होंने वि० सं० ११९१/सन् ११३५ में १४४७१ श्लोक परिमाण संस्कृत भाषा में वृत्ति की रचना की । इसके अन्तर्गत कथाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्रीचन्द्रसूरि - आप विजयसिंहसूरि के लघु गुरुभ्राता और मलधारी हेमचन्द्रसूरि के पट्टधर थे। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है इन्हों ने वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७ में प्राकृत भाषा में मुनिसुव्रतस्वामिचरित की रचना की । यह प्राकृत भाषा में उक्त तीर्थङ्कर पर लिखी गयी एकमात्र कृति है। इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का अत्यन्त विस्तार से साथ परिचय दिया है। इनकी दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति है संग्रहणीरत्नसूत्र जिस पर इनके शिष्य देवभद्रसूरि ने साढ़े तीन हजार श्लोक प्रमाण वृत्ति की रचना की। वि० सं० १२२२/ई० सन् ११६६ में इन्होंने अपने गुरु की कृति आवश्यकप्रदेशव्याख्या पर टिप्पण की रचना की। लघुक्षेत्रसमास भी इन्हीं की कृति है।२७ Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ लक्ष्मणगणि - आप भी मलधारी आचार्य हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है इन्होंने वि० सं० १९९९ / ई० सन् १९४३ में प्राकृत भाषा में सुपासनाहचरिय की रचना की । इसके अतिरिक्त इन्होंने अपने गुरु को विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति के लेखन में सहायता दी । २८ यह बात उक्त ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होती है । देवभद्रसूरि १३३७ जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है ये श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने अपने गुरु की कृति संग्रहणीरत्नसूत्र पर वृत्ति की रचना की । न्यायावतारटिप्पनक और बृहत्क्षेत्रसमासटिप्पणिका (रचनाकाल वि० सं० १२३३ / ई० सन् ११७७) भी इन्हीं की कृति है । देवप्रभसूरि .३० ये मलधारी श्रीचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य थे । इनके द्वारा रचित पाण्डवचरित का पूर्व में उल्लेख किया गया है। २९ इसमें १८ सर्ग हैं। इसका कथानक लोकप्रसिद्ध पाण्डवों के चरित्र पर आधारित है, जो कि जैन परम्परा के अनुसार वर्णित है । यह एक वीररस प्रधान काव्य है | पाण्डवचरित के कथानक का आधार षष्ठांगोपनिषद् त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित तथा कुछ अन्य ग्रन्थ हैं, यह बात स्वयं ग्रन्थकर्ता ने ग्रन्थ के १८वें सर्ग के २८० वें पद्य में कही है। इसके अतिरिक्त मृगावतीचरित अपरनाम धर्मशास्त्रसार, सुदर्शनाचरित, काकुस्थकेलि आदि भी इन्हीं की कृतियाँ हैं । I , नरचन्द्रसूरि जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है ये मलधारी देवप्रभसूरि के शिष्य और महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरु थे। ये कई बार वस्तुपाल के साथ तीर्थयात्रा पर भी गये थे । महामात्य के अनुरोध पर Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इन्होंने १५ तरंगों में कथारत्नसागर की रचना की । इसमें तप, दान, अहिंसा आदि सम्बन्धी कथायें दी गयी हैं । इसका एक नाम कथारत्नाकर भी मिलता है । वि० सं० १३१९ में लिखी गयी इस ग्रन्थ की एक प्रति पाटण के संघवीपाड़ा ग्रन्थभंडार में संरक्षित है। इसके अतिरिक्त इन्होंने प्राकृतप्रबोधदीपिका, अनर्घराघवटिप्पण, ज्योतिषसार अपरनाम नारचन्द्रज्योतिष, साधारणजिनस्तव आदि की भी रचना की और अपने गुरु देवप्रभसूरि के पाण्डवचरित तथा नागेन्द्रगच्छीय उदयप्रभसूरि के धर्माभ्युदयमहाकाव्य का संशोधन किया। महामात्य वस्तुपाल के वि० सं० १२८८ के गिरनार के दो लेखों के पद्यांश तथा २६ श्लोकों की वस्तुपालप्रशस्ति भी इन्होंने ही लिखी है। ३३ नरेन्द्रप्रभसूरि ये मलधारी नरचन्द्रसूरि के शिष्य एवं पट्टधर थे । महामात्य वस्तुपाल के अनुरोध एवं अपने गुरु के आदेश पर इन्होंने वि० सं० १२८० में अलंकारमहोदधि की रचना की। यह आठ तरंगों में विभक्त है। इसके अन्तर्गत कुल ३०४ पद्य हैं। यह अलंकार - विषयक ग्रन्थ है । वि० सं० १२८२ में इन्होंने अपनी उक्त कृति पर वृत्ति की रचना की जो ४५०० श्लोक परिमाण है । ३५ इसके अतिरिक्त विवेककलिका, विवेकपादप, वस्तुपाल की क्रमशः ३७ और १०४ श्लोकों की प्रशस्तियों ३६ तथा वस्तुपाल द्वारा निर्मित गिरनार स्थित आदिनाथ जिनालय के वि० सं० १२८८ के एक शिलालेख का पद्यांश भी इन्हीं की कृति है । राजशेखरसूरि I राजशेखरसूरि मलधारी नरेन्द्रप्रभसूरि के पट्टधर पद्मतिलकसूरि के प्रशिष्य तथा श्रीतिलकसूरि के शिष्य थे । न्यायकंदलीपंजिका (वि० सं० १३८५/ई० सन् १३२९); प्राकृतद्वयाश्रयवृत्ति (वि० सं० १३८६ / ई० सन् १३३०) तथा प्रबन्धकोश अपरनाम चतुर्विंशतिप्रबन्ध (वि० सं० १४०५ / ई० सन् १३४९) इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं । इनके अतिरिक्त इन्होंने Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ १३३९ ३९ स्याद्वादकलिका, रत्नकरावतारिकापंजिका, कौतुककथा और नेमिनाथफागु की भी रचना की । १ वि० सं० १३८६ से वि० सं० १४१५ तक इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ उपलब्ध जिनप्रतिमाओं का पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है। इनके शिष्य सुधाकलश द्वारा रचित दो कृतियाँ मिलती हैं, इनमें प्रथम हैं संगीतोपनिषद्सारोद्धार जो वि० सं० १४०६ / ईस्वी सन् १३५० में रचा गया है । इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थकार द्वारा वि० सं० १३८० / ई० सन् १३२४ में लिखी गयी संगीतोपनिषद् का संक्षिप्त रूप है। ५० गाथाओं में रचित एकाक्षरनामाला इनकी दूसरी उपलब्ध कृति है । सन्दर्भ सूची : १. Muni Punya Vijaya Catalogue of Palm Leaf Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandara, Cambay, Vol. I, G. O. S. No. 135, Baroda, 1961, A.D. Pp. 66-67. २. ३. ४. ५. ६. P. Peterson Fifth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Bombay 1896 A.D. pp. 88-89. C.D. Dalal A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandars at Pattan, Vol. I. G. O. S. No. LXXVI, Baroda 1937 A. D. pp. 311-313. मुनिसुव्रतस्वामिचरित, संपा० पं० रूपेन्द्रकुमार पगारिया, लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १०६, अहमदाबाद १९८९ ईस्वी, पृष्ठ ३३७-३४१. सुपासनाहचरिय, संपा० पं० हरगोविन्ददास, जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला, ग्रन्थांक १२, बनारस १९१८ ई०, प्रशस्ति. Muni Punya Vijaya : Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandara, Cambay, Vol. II, GO.S., No. 149, Baroda 1966 A.D. Pp. 243-244. Ibid, Pp. 374-376. Muni Punya Vijaya New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Jesalmer Collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad 1972 A.D. Pp. 177. Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ६अ. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, द्वितीय संस्करण, संपा० आचार्य विजय मुनिचंद्रसूरि सूरत ई० सन् २००६, कंडिका ५५८, पृष्ठ २५८. ७. ८. १०. C. D. Dalal A Descriptive Catalogue of Mss. In the Jaina Bhandars at Pattan, P. 14. A. P. Shah : Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss. Muni Shree Punya Vijayaji's Collection, Vol. II, L. D. Series No. 6, Ahmedabad 1965 AD. Pp 217-218. Sangitopanisat-Saroddhara, Ed. U. P. Shah, G.O.S. No. 133, Baroda 1961 A.D. ११. द्रष्टव्य : संदर्भ क्रमांक ६ । १२. मोहनलाल दलीचंद देसाई : जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ३८९ । १३. भोगीलाल सांडेसरा : महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमंडल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, सन्मति प्रकाशन नं० १५, वाराणसी १९५९ ईस्वी, पृष्ठ १०१-१०४. - अलंकारमहोदधि, संपा० पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, गायकवाड प्राच्य ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक XLV, बडोदरा १९४२ ईस्वी, प्रशस्ति, पृष्ठ ३३९-३४०. पं॰ लालचन्द भगवानदास गाँधी : ऐतिहासिकलेखसंग्रह, सयाजीराव साहित्यमाला, पुष्प ३३५, बडोदरा १९६२ ईस्वी, पृष्ठ ७६-७७. १४. P. Peterson : Search of Sanskrit Mss., Vol. V., Pp. 95-97. १५. देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ ५१४. १६. H.D. Vilankar : Jinaratnakosha, Bhandarkar Oriental Research Institute, Government Oriental Series, Class C, No. 4, Poona 1944 A.D., Pp. 442. २०. १७. पूरनचन्द नाहर, संपा० जैनलेखसंग्रह, भाग १८९९. १८. त्रिपुटी महाराज : जैन परम्परानो इतिहास, भाग २, चारित्र स्मारक, ग्रन्थमाला, ग्रंथांक ५४, अहमदाबाद १९६० ईस्वी, पृष्ठ ३३८. १९. पं० लालचन्द भगवानदास गाँधी : ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृष्ठ १७ - ४९ तथा श्रीचन्द्रसूरि विरचित मुनिसुव्रतस्वामिचरित की प्रशस्ति. द्रष्टव्य : संदर्भ, क्रमांक ३. २ कलकत्ता १९२७ ईस्वी० लेखांक Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४१ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ २१. पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, पूर्वोक्त, पृष्ठ ७६. २२. मोहनलाल मेहता : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग -३, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ११, वारामसी १९६७ ईस्वी., पृष्ठ २४२. ___ वही, पृष्ठ २४३. २४. पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, पूर्वोक्त, पृष्ठ ८०-८१. २५. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ४१०. २६. वही, पृष्ठ ३८. २७. द्रष्टव्य : संदर्भ क्रमांक ४. २८. गांधी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १२३. २९. द्रष्टव्य : संदर्भ क्रमांक ६. ३०. ज्ञातधर्मकथा का एक नाम. ३१. द्रष्टव्य : संदर्भ क्रमांक ७. ३२. सांडेसरा, पूर्वोक्त, पृष्ठ १०२-१०४. ३३. मुनि जिनविजय : प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग-२, भावनगर १९२१ ईस्वी, लेखांक ३९-२, ४२-५छ. ३४. अलंकारमहोदधि, संपा० पं० लालचंद भगवानदास गांधी, परिशिष्ट क्रमांक ४, पृष्ठ ४०१-४०३. ३५. सांडेसरां, पूर्वोक्त, पृष्ठ १०४-१०६. ३६. अलंकारमहोदधि, परिशिष्ट, क्रमांक ५-६, पृष्ठ ४०४-४१६. ३७. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ४१-४. ३८. प्रबन्धकोश, संपा० मुनिजिनविजय, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६,शांति निकेतन १९३५ ई०. ३९. मोहनलाल दलीचंद देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ ४३७. संकेत सूची: जै०ले०सं० - जैनलेखसंग्रह, संपा० पूरनचन्द नाहर प्रा० जै० ले० सं० - प्राचीनजैनलेखसंग्रह, संपा० मुनि जिनविजय अ० प्रा० जै० ले० सं० - अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, संपा० मुनि जयन्तविजय Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जै० धा० प्र० ले० सं० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० बुद्धिसागरसूरि, भाग १, २ प्रा० ले० सं० - प्राचीनलेखसंग्रह, संपा० विजयधर्मसूरि बी० जै० ले० सं० - बीकानेरजैनलेखसंग्रह, संपा० अगरचन्द नाहटा जे० ए० एस० ओ० बी० - जर्नल ऑव एशियाटिक सोसाइटी ऑव बाम्बे Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारीजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास प्राक्मध्यकाल और मध्यकाल में निर्ग्रन्थ परम्परा के अल्पचेल (श्वेताम्बर) आमान्य के अन्तर्गत विभिन्न नगरों या ग्रामों से उद्भूत अल्पजीवी गच्छों में हारीजगच्छ भी एक है । पाटण और शंखेश्वर के मध्य महेसाणा जिले में जिला मुख्यालय से ६७ किलोमीटर दूर पश्चिम में हारीज नामक एक स्थान है ।' यह गच्छ सम्भवतः वहीं से अस्तित्व में आया प्रतीत होता है । इस गच्छ से सम्बद्ध केवल एक साहित्यिक साक्ष्य आज मिलता है वह है कातंत्रव्याकरण पर दुर्गसिंह द्वारा प्रणीत वृत्ति पर वि० सं० १५५६ / ईस्वी सन् १५०० में रची गयी अवचूर्णि; जो आज श्री विजयसूरीश्वर ज्ञानमन्दिर, राधनपुर में संरक्षित है । श्री अमृतलाल मगनलाल शाह ने उक्त कृति की प्रशस्ति का पाठ दिया है, जो सुधारों के साथ निम्नानुसार है : कुछ सं. १५ आषाढ़ादि ५६ वर्षे । शाके १४२१ प्रवर्तमाने फाल्गुनमासे शुक्ल पक्षे । तृतीयातिथौ । रविदिने । मीनराशिस्थितचन्द्रे ॥ तद्दिने || श्री भानुराज्ञि राज्यं कुर्वाणे अह । श्री इलदुर्गे ॥ श्री श्री ॥ हारीजगच्छे | पूज्ये श्री सिंघ (ह) दत्तसूरि तच्छिष्येण उदयसागरेण अवचूर्णिः कृता । जयकलशेन सूत्रमलिखितम् ॥ सूत्रद्वयस्वादि । अवचूर्णि जयकुशलेनेव कृता । शुभमस्तु । लेखक पाठकयोः । उक्त प्रशस्ति से स्पष्ट है कि इसमें हारीजगच्छ के सिंहदत्तसूरि के शिष्य उदयसागर का अवचूर्णि के रचनाकार के रूप में नाम मिलता है । लिपिकार के रूप इस प्रशस्ति में उल्लिखित जयकलश एवं जयकुशल भी इसी गच्छ से सम्बद्ध प्रतीत होते हैं । इसके अतिरिक्त उक्त प्रशस्ति से 1 Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ऐसी कोई बात ज्ञात नहीं होती जिससे इस गच्छ के इतिहास पर कुछ विशेष प्रकाश पड़ सके । फिर भी हारीजगच्छ से सम्बद्ध एकमात्र साहित्यिक साक्ष्य होने से इस प्रशस्ति का विशिष्ट महत्त्व है। इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं जो वि० सं० १३३० से लेकर वि० सं० १५७७ तक के हैं । इनका विवरण निम्नानुसार है - Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख १. १३३० शीलभद्रसूरि | पार्श्वनाथ की । नया जैन मंदिर, प्रतिमा का लेख | सलषणपुर हारीजगच्छ मुनिजिनविजय संपा० प्राचीनजैन, लेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४९१ २. १३३० वही, ३. १३३३ गुणभद्रसूरिशिष्य | महावीर की वही प्रतिमा का लेख शीलभद्रसूरि नेमिनाथ की । वही प्रतिमा का लेख शीलभद्रसूरि जिनप्रतिमा का वही लेख लेखांक ४७४ वही, लेखांक ४८५ वही, लेखांक ४८९ ४. १३४३ १३४५ Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् ६. ७. १३५५ १३८३ १३९० तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम श्रीसूरि महेन्द्रसूरि माघ सुदि ९ रविवार सिंहदत्तसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान वही महावीर जिनालय, बड़ोदरा संदर्भग्रन्थ वही, लेखांक ४७७ बुद्धिसागरसूरि, संपा० जैनधातु प्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३८ मुनि कंचनसागर, संपा० शत्रुंजय गिरिराजदर्शन, लेखांक २६७ १३४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ८. ९. १०. तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम सिंहदत्तसूरि १३९४ वैशाख वदि ५ १४४५ | फाल्गुन वदि १० रविवार १४६६ वैशाख सुदि ३ सोमवार शीलभद्रसूरि शीलभद्रसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख महावीर की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान अनुपूर्ति लेख, आबू पार्श्वनाथ जिनालय, हरसूली महावीर जिनालय, रीज रोड, अहमदाबाद संदर्भग्रन्थ मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुद प्राचीनजैनलेख संदोह, | लेखांक ५६३ विनयसागर, संपा० प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १७० बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९६५ हारीजगच्छ १३४७ Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४८ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठास्थान । संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख १. १४९४ | वैशाख | शांतिनाथ की बड़ा जैन मंदिर, मुनि विद्याविजय, सुदि प्रतिमा का लेख लिंबडी संपा० प्राचीनशुक्रवार लेखसंग्रह, प्रथम भाग, लेखांक १६४ २. १५०१ / चैत्र वासुपूज्य की आदिनाथ जिनालय, वही, वदि ७ धातु की प्रतिमा जामनगर लेखांक १८४ का लेख ३. १५०३ मुनि कंचनसागर, पूर्वोक्त, लेखांक २७७ १४. |१५११ माघ शीतलनाथ की बडा जैन मंदिर, मुनि विद्याविजय, वदि ३ धातुप्रतिमा शिहोर पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार का लेख लेखांक २६६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १५. १५१७ १६. १७. १५२३ तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य मिति या मुनि का नाम महेश्वरसूरि मार्गशिर वदि ६ गुरुवार पौष वदि ८ गुरुवार १५२३ वैशाख वदि १ सोमवार प्रतिमालेख / स्तम्भलेख श्रेयांसनाथ की धातुप्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख नमिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर बालावसही, शत्रुंजय चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भग्रन्थ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५१४ मुनि कांतिसागर, संपा० शंत्रुजय वैभव, लेखांक १७३ अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा, संपा० बीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक १०२९ हारीजगच्छ १३४९ Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५० क्रमाङ्क संवत् । तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठास्थान - संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख १८. १५२३ | वैशाख मुनिसुव्रत की साराभाई मणिलाल | वदि १ प्रतिमा का लेख नवाब, 'राजनगरना सोमवार जिनमंदिरोमां सचवायेलां ऐतिहासिक अवशेषो', जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९,अंक ८, पृष्ट ३७८-३८३, लेखांक ३२ १९. १५२८ माघ शीतलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, मुनि विद्याविजय, वदि ५ प्रतिमा का लेख | राधनपुर पूर्वोक्त, गुरुवार लेखांक ४१८ एवं जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारीजगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि / प्रतिष्ठापक आचार्य | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठास्थान | संदर्भग्रन्थ मिति | या मुनि का नाम | स्तम्भलेख मुनि विशालविजय, संपा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक २५६ २०. |१५७७ | मिति । शीलभद्रसूरि वासुपूज्य की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, विहीन प्रतिमा को लेख | कड़ी पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७३४ २१. १५७७ | मिति सुविधिनाथ की | वही वही, भाग १, विहीन प्रतिमा का लेख लेखांक ७३९ १३५१ Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों में से केवल द्वितीय लेख में (वि० सं० १३३०) प्रतिमाप्रतिष्ठापक मुनि ने अपने गुरु का नाम गुणभद्रसूरि बतलाया है, किन्तु अपना नाम नहीं बतलाया है। इसके विपरीत अन्य सभी लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक मुनिजनों का नाम मिलता है किन्तु उनके गुरु का नामोल्लेख नहीं है, अत: ऐसी स्थिति में इन मुनिजनों के परस्पर सम्बन्धों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं हो पाती है। जैसा कि इस निबन्ध के प्रारम्भ में हम देख चुके हैं कातंत्रव्याकरण पर दुर्गसिंह द्वारा रची गयी वृत्ति पर रची गयी अवचूर्णि की प्रशस्ति में रचनाकार उदयसागरसूरि ने अपने गुरु सिंहदत्तसूरि का नाम दिया है। उपरोक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों शीलभद्रसूरि 'प्रथम', महेन्द्रसूरि, सिंहदत्तसूरि 'प्रथम', शीलभद्रसूरि 'द्वितीय', महेश्वरसूरि, सिंहदत्तसूरि 'द्वितीय', शीलभद्रसूरि 'तृतीय' आदि के नाम तो ज्ञात हो जाते हैं, परन्तु वहाँ इनके गुरु का नाम न होने से इनके परस्पर सम्बन्धों के बारे में हमें कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, फिर भी इन्हें कालक्रमानुसार निम्नलिखित क्रम में रखा जा सकता है : ? गुणभद्रसूरि शीलभद्रसूरि (वि० सं० १३३०-४३) 'प्रथम' प्रतिमालेख गुणभद्रसूरिशिष्य (वि० सं० १३३०) प्रतिमालेख श्रीसूरि I (वि० सं० १३५५) प्रतिमालेख Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारीजगच्छ ? | I T महेन्द्रसूरि | 1 T सिंहदत्तसूरि 'प्रथम' 1 (वि० सं० १३८३) प्रतिमालेख (वि० सं० १३९४) प्रतिमालेख १३५३ 1 1 I शीलभद्रसूरि (वि० सं० १४४५-६६ ) प्रतिमालेख 'द्वितीय' I महेश्वरसूरि (वि० सं० १४९४ - १५२८) प्रतिमालेख सिंहदत्तसूरि ( दुर्गासिंहवृत्तिअवचूर्णि 'द्वितीय' की प्रशस्ति में ग्रंथकार के 1 गुरु के रूप में उल्लिखित) Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जयकलश एवं उदयसागरसूरि (वि० सं० १५५६जयकुशल ई० स० १५०० में (कातंत्रव्याकरण कातंत्रव्याकरणदुर्गसिंहवृत्ति दुर्गसिंहवृत्तिअवचूर्णि अवचूर्णि की प्रशस्ति के रचनाकार) में लिपिकार के रूप में उल्लिखित) शीलभद्रसूरि (वि० सं० १५७७) 'तृतीय' प्रतिमालेख इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर विक्रम संवत् की चौदहवी शताब्दी के प्रथम चरण से लेकर वि० संवत् की सोलहवीं शताब्दी के अंतिम चरण (लगभग २५० वर्षों तक) हारीजगच्छ की विद्यमानता सिद्ध होती है । शीलभद्रसूरि 'प्रथम' और शीलभद्रसूरि 'द्वितीय' तथा महेश्वरसूरि इस गच्छ के अन्य मुनिजनों की अपेक्षा विशेष प्रभावशाली प्रतीत होते हैं क्योंकि उनके द्वारा प्रतिष्ठापित कई जिनप्रतिमायें मिली हैं । विक्रम संवत् की १६वीं शती के पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की दुर्लभता को देखते हुए यह माना जा सकता है कि इसके पश्चात् इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा। यह गच्छ कब, किस कारण एवं किस गच्छ या कुल से अस्तित्व में आया, इसके आदिम आचार्य कौन थे? साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाते हैं। संदर्भ सूची: १. रसिकलाल छोटालाल परीख एवं हरिप्रसाद गंगाशंकर शास्त्री, गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास, भाग १, अहमदाबाद १९७२ ई० स०, पृष्ठ ३७३. श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा० श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैन साहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराजक समाज, अहमदाबाद वि० सं० १९९३, भाग २, पृष्ठ ५७; प्रशस्ति क्रमांक २२६. ३. वही, पृष्ठ ५७, प्रशस्ति क्रमांक २२६. Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रन्थ सूची प्राचीन जैन साहित्य ( आगमिक, अंगबाह्य और अन्य जैन साहित्य ) अष्टोत्तरी तीर्थमाला चैत्यवंदन विधिपक्षगच्छ पंचप्रतिक्रमण सूत्राणि, वि.सं. १८९४ अलंकार महोदधि, संपा० पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, बड़ोदरा १९४२ ई० अख्यानकमणिकोश, संपा० मुनि पुण्यविजयजी, वाराणसी १९६२ ई० उत्पादादिसिद्धद्वात्रिंशिकाविवरण, रतलाम वि० सं० १९९३ उपमितिभवप्रपंचकथासारोद्धार, संपा० संशोधक, पंन्यास मानविजय, कांतिविजय, पाटण वि० सं० २००६ उपमितिभवप्रपंचकथासारोद्धार, हिन्दी अनु० - महो० विनयसागर, जयपुर १९८५ ई० कथाकोशप्रकरण, संपा० मुनि जिनविजय, मुम्बई १९४९ ई० कल्पसूत्र, संपा० देवेन्द्रमुनि शास्त्री, बाड़मेर १९६८ ई० कर्पूरप्रकर, अहमदाबाद १९२६ ई० कुवलयमालाकहा, भाग १, संपा० ए० एन० उपाध्ये, मुम्बई १९५९ ई० चउपन्नमहापुरुषचरियं, संपा० अमृतलाल मोहनलाल भोजक, वाराणसी १९६१ ई० चन्द्रप्रभचरित, संपा० संशोधक - विजयजिनेन्द्रसूरि, सौराष्ट्र वि.सं. २०४२. जम्बूचरियं, संपा० मुनि जिनविजय, मुम्बई १९५९ ई० जम्बूद्वीपसमासटीका, संशोधक- पंन्यास हर्षविजयगणि के शिष्य मानविजय मुनि, अहमदाबाद वि.सं. १९७९ तत्त्वार्थसूत्र, विवेचनाकार सुखलालजी संघवी, तृतीय संस्करण, वाराणसी १९८५ ई० दशवैकालिकसूत्र निर्युक्ति एवं चूर्णिसहित, संपा० मुनि पुण्यविजय, अहमदाबाद १९७३ ई० Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास दानादिप्रकरण, संपा० अमृतलाल भोजक एवं नगीन जे. शाह, अहमदाबाद १९८३ ई० धर्माभ्युदयमहाकाव्य, संपा० मुनि पुण्यविजय, मुम्बई वि०सं० २००५ धर्मोपदेशमालाविवरण, संपा० मुनि पुण्यविजय, मुम्बई, वि०सं० १९४९ ई० नन्दीसूत्र, संपा० आचार्य आत्मारामजी, लुधियाना १९६६ ई० नलविलास, संपा० जी०के० श्रीगोण्डेकर एवं लालचन्द भगवानदास गांधी, बडोदरा १९२६ ई० नन्दीचूर्णी, संपा० मुनि पुण्यविजय, अहमदाबाद १९६६ ई० नवपदप्रकरणबृहवृत्ति, देवचन्दलालभाई जैन पुस्तकोद्धारे, १९२७ ई० न्यायावतारवार्तिकवृत्ति, संपा० दलसुख मालवणिया, मुम्बई वि०सं० २००५. न्यायतात्पर्यदीपिका, संपा० महामहोपाध्याय सतीशचंद्र विद्याभूषण, कलकत्ता १९१० ई० पुरातनप्रबन्धसंग्रह, संपा० मुनि जिनविजय, शांतिनिकेतन १९३६ ई० पुहवीचंदचरिय, संपा० मुनि रमणीकविजय, वाराणसी १९७२ ई० प्रबन्धकोश, संपा० मुनि जिनविजय, शांतिनिकेतन १९३५ ई० प्रबन्धचिन्तामणि, संपा० मुनि जिनविजय, शांतीनिकेतन १९३३ ई० प्रबन्धचिन्तामणि, अंग्रेजी अनुवादक सी० एच० टॉनी, कलकत्ता १८९९ ई० प्रबन्धचिन्तामणि, हिन्दी अनुवादक, हजारीप्रसाद द्विवेदी, शांतिनिकेतन, १९४० ई० प्रभावकचरित, संपा० मुनि जिनविजय, अहमदाबाद १९४० ई० प्रभावकचरित, गुजराती अनुवाद, आचार्य मुनिचन्द्रसूरि, सुरत २००० ई० प्रवचनसारोद्धार, संपा० मुनिचन्द्रविजयजी, सुरत १९८८ ई० प्रमेयकमलमार्तण्ड, संपा० पं० महेन्द्रकुमार शास्त्री, मुम्बई १९४१ ई० बृहत्कथाकोश, संपा० ए० एन० उपाध्ये, मुम्बई १९४३ ई० भुवनदीपक, प्रकाशक गंगाविष्णुदास श्रीकृष्णदास, लक्ष्मीवेंकटेश्वर प्रेस, मुम्बई वि०सं० १९९६ मुनिसुव्रतस्वामिचरित, संपा० पं० रूपेन्द्रकुमार पगारिया, अहमदाबाद १८८९ ई० Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रन्थ सूची १३५७ वस्तुपालचरित, श्रीशांतिसूरि ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५, अहमदाबाद १९४१ ई० वासुपूज्यचरित, प्रका० जैन धर्मप्रचारक सभा, भावनगर वि०सं० १९८२ विलासवईकहा, संपा० रमणलाल म० शाह, अहमदाबाद १९७७ ई० विविधतीर्थकल्प, संपा० मुनि जिनविजय, शांतिनिकेतन १९३४ ई० विवेकविलास, संपा० भृगुभाई फतेहचंद कारबारी, मुम्बई १९१६ ई० श्रेयांसनाथचरित, गुजराती अनुवाद, भावनगर वि०सं० २००९ शीलोपदेशमाला, गुजराती अनुवादक, हरिशंकर कालिदास शास्त्री, अहमदाबाद १९०० ई० सन्मतिप्रकरण, संपा० पं० सुखलालजी एवं पं० बेचरदासजी, द्वितीय संस्करण, अहमदाबाद, १९५२ ई० सुकृतकीर्तिकल्लोलिन्यादि वस्तुपालप्रशस्तिसंग्रह, संपा० मुनि पुण्यविजय, मुम्बई १९६१ ई० स्याद्वादमंजरी, सपाः आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव, मुम्बई १९३२ ई० सुपासनाहचरियं, संपा० एवं संस्कृत भाषानुवादक पं० हरगोविन्द त्रिकमचंद शेठ. बनारस १९१८ ई० त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित, भाग १-६, अंग्रेजी अनुवादक हेलेन एच० जॉनसन, बडोदरा १९३९-६२ ई० हम्मीरमहाकाव्य, संपा० मुनि जिनविजय, जोधपुर १९६८ ई० ग्रंथभंडार-सूचीपत्र (1) (2) Operation in search of sanskrit Mss in Bombay Circle, Vol. I-VI, Ed. P. Peterson, Bombay 1884-1899 A.D. A Descriptive Catalogue of Manuscripts at Jain Bhandars at Pattan, Ed. C.D. Dalal, Baroda 1937 A.D. Descriptive Catalogue of Government Collection of Manuscripts diposited at Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona, Vol. XVII-XIX Ed. H.R. Kapadia, Poona 1935-77 A.D. (3) Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५८ (4) जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandar Cambay, Vol. I-II, Ed. Muni Shree Panya Vijaya, Baroda 1962-66 A.D. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss: Muni Shree Panya Vijayajis Collection, Vol. I-III, Ed. A. P. Shah, Ahmedabad-1963 (5) (6) (7) (8) Catalouge of Gujarati Mss: Muni Shree Panya Vijayajis Collection Ed. Vidhatri Vora, Ahmedabad-1978 A. D. (९) जैन ग्रन्थावली, जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स, मुम्बई १९०२ ई० Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Aearya Khantisuris Collection, Vol. IV, Ed. A. P. Shah, Ahmedabad-1968 A.D. New Catalouge of Sanskrit & Prakrit Collection, Jesalmer Collection, Ed. Muni Panya Vijayaji, Ahmedabad-1972 A.D. (१०) लिंबडीस्थ हस्तलिखित जैन ज्ञान भंडार सूची पत्रम्, संपा० मुनि चतुरविजय आगमोदय समिति, ग्रन्थांक ५८, मुम्बई १९२८ ई० (११) जिनदत्तसूरी ज्ञानभंडार जैसलमेर के हस्तलिखित ग्रंथों का सूचीपत्र, संपा० जौहरीमल पारेख, जोधपुर १९८८ ई० प्रशस्तिसंग्रह (१) श्रीप्रशस्तिसंग्रह, संपा० अमृतलाल मगनलाल शाह, अहमदाबाद वि० सं० १९९३. (२) जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, संपा० मुनि जिनविजय, मुम्बई १९४४ ई० (३) प्रशस्तिसंग्रह, संपा० कस्तूरचंद कासलीवाल, जयपुर १९५० ई० (४) जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, संपा० जुगलकिशोर मुख्तार, दिल्ली १९५४ ई० पट्टावलियां (१) पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, संपा० मुनि दर्शनविजयजी, वीरमगाम १९३३ ई० (२) पट्टावलीसमुच्चय, द्वितीय भाग, संपा० त्रिपुटीमहाराज, अहमदाबाद १९५० ई० (३) पट्टावलीपरागसंग्रह, संपा० मुनि कल्याणविजयजी, जालोर १९६६ ई० (४) विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, संपा० मुनि जिनविजय, मुम्बई १९६१ ई० Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रन्थ सूची जैन अभिलेख साहित्य (१) अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह (आबू, भाग - २), संपा० मुनि जयन्तविजय, उज्जैन वि० सं० १९९४ (२) अर्बुदपरिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मंदिरावलि, संग्रा० संपा० सोहनलाल पटनी, सिरोही २००२ ई० १३५९ (३) अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसन्दोह (आबू, भाग - ५) संपा० मुनि जयन्त विजय, भावनगर वि०सं० २००५ (४) आरासणा अने कुंभारियाजी तीर्थ, संपा० मुनि विशालविजय, भावनगर १९६१ ई० (५) जैनधातुप्रतिमालेख, संपा० मुनि कान्तिसागर, सुरत १९५० ई० (६) जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १ - २, संपा० आचार्य बुद्धिसागरसूरि १९१७-२४ ई० (७) जैनप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० दौलतसिंह लोढा, धामणिया (मेवाड़) १९५१ ई० (८) जैनलेखसंग्रह, भाग १ - ३, संपा० पूरनचन्द नाहर, कलकत्ता १९९८-२८ ई० (९) जैन शिलालेख संग्रह, भाग २- ४, संपा० विजयमूर्ति शास्त्री, मुबई १९५२६४ ई० (१०) पाटणजैनधातु प्रतिमालेखसंग्रह, संपा० लक्ष्मणभोजक, दिल्ली २००२ ई० (११) प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १ - २, संपा० विनयसागर, कोटा- जयपुर १९५३ - २००३ ई० (१२) प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग-२, संपा० मुनि जिनविजय, भावनगर १९२१ ई० (१३) प्राचीनलेखसंग्रह, संपा० विद्याविजयजी, भावनगर १९२९ ई० (१४) बाड़मेर के जैन शिलालेख, संपा० चंपालाल सालेचा, मेवानगर - बाड़मेर १९८७ ई० (१५) बीकानेरजैनलेखसंग्रह, संपा० अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता १९५६ ई० (१६) मालवांचल के जैनलेख, संपा० नन्दलाल लोढा, उज्जैन १९९५ ई० (१७) राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० मुनि विशालविजय, भावनगर १९६० ई० Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (१८) शत्रुजयगिरिराजदर्शन, संपा० मुनि कंचनसागर, कपडवज १९८३ ई० (१९) शत्रुजयवैभव, संपा० मुनि कांतिसागर, जयपुर १९९० ई० (20) Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, Ed. P. C. Parikha & Bharti Shelat, Ahmedabad-1997 A.D. (६) आधुनिक ग्रंथ (१) अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, जैनतीर्थ सर्वसंग्रह, भाग-१ (खंड १-२) भाग-२, अहमदाबाद १९५३ ई० (२) अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, कालकाचार्यकथासंग्रह, अहमदाबाद १९४९ ई० (३) उमाशंकर जोशी, पुराणों मां गुजरात, अहमदाबाद १९४६ ई० (४) कल्याणविजयमुनि, प्रबन्ध पारिजात, जालोर १९६६ ई० (५) केशवराम काशीराम शास्त्री, गुजरातना सारस्वतो, अहमदाबाद १९७७ ई० गिरजाशंकर वल्लभजी शास्त्री, संपा० गुजरातना ऐतिहासिक लेखो, भाग १-३, मुम्बई १९३३-४२ ई० (७) गुलाबचन्द चौधरी, जैनसाहित्य का बृहद इतिहास, भाग-६, वाराणसी १९७३ ई० (८) गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान के इतिहास के स्रोत, जयपुर १९७३ ई० (९) चतुरविजयजी, संपा० जैनस्तोत्रसंदोह भाग १-२, अहमदाबाद १९३२-३६ ई० (१०) चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, संपा० प्राचीनगुर्जरकाव्यसंग्रह, बडोदरा १९२० ई० (११) जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, वाराणसी १९६५ ई० (१२) जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, वाराणसी १९६१ ई० (१३) जयकुमार जैन, पार्श्वनाथचरित का समीक्षात्मक अध्ययन, मुजफ्फरपुर १९८६ ई० (१४) जयन्तविजयजी, आबू, भाग-१, भावनगर वि०सं० १९८५ Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रन्थ सूची १३६१ (१५) जयन्तविजयजी, अर्बुदाचल प्रदक्षिणा, (आबू, भाग-३) भावनगर वि०सं० २००५ (१६) जयन्तविजयजी, शंखेश्वर महातीर्थ, भावनगर वि.सं. २००३ (१७) जिनविजयमुनि, गुजरात का जैनधर्म, वाराणसन १९४८ ई० (१८) जिनविजयमुनि, हरिभद्रसूरि का समयनिर्णय, द्वितीय संस्करण वाराणसी १९८८ ई० (१९) जिनविजयमुनि, राजर्षि कुमारपाल, वाराणसी १९४८ ई० (२०) जे०पी० अमीन, खंभातनुं जैन मूर्ति विधान, खंभात १९७९ ई० (२१) दलसुख मालवणिया, गणधरवाद, अहमदाबाद, १९५२ ई० (२२) दुर्गाशंकर केवलराम शास्त्री, गुजरातनो मध्यकालीन राजपूत इतिहास, भाग १ - २, अहमदाबाद १९४० ई० (२३) नीना जैन, मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति पर जैन संतों का प्रभाव, शिवपुरी १९९९ ई० (२४) भोगीलाल सांडेसरा, जैन आगमसाहित्यमां गुजरात, अहमदाबाद १९५२ ई० (२५) भोगीलाल सांडेसरा, महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मंडल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, वाराणसी १९५८ ई० (२६) भोगीलाल सांडेसरा, हेमचन्द्राचार्य का शिष्यमंडल, वाराणसी १९५१ ई० (२७) मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगुर्जर कविओ, नवीन संस्करण, भाग १ - १०, संपा० डॉ० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ - ९७ ई० (२८) मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, प्रथम संस्करण, मुम्बई १९३२ ई०, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा० मुनिचन्द्रसूरि, सुरत २००६ ई० (२९) मोहनलाल मेहता और हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-४, वाराणसी १९६८ ई० (३०) यतीन्द्रसूरि यतीन्द्रविहार दिग्दर्शन, भाग १ - ४, १९२८ - ३७ ई० Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (३१) रसिकलाल छोटालाल परीख और हरिप्रसाद शास्त्री, संपा० गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास, भाग १-६, अहमदाबाद १९७२-७८ई० (३२) लालचंद भगवानदास गांधी, ऐतिहासिक लेख संग्रह, बडोदरा १९६३ ई० (३३) वि० भा० मुसलगांवकर, आचार्य हेमचन्द्र, भोपाल १९७१ ई० (३४) विजयेन्द्रकुमार माथुर, ऐतिहासिक स्थानावली, दिल्ली १९६८ ई० (३५) मुनि विशालविजय, सांडेराव भावनगर, १९६३ ई० (३६) विशुद्धान्द पाठक, उत्तर भारत का राजनैतिक इतिहास, लखनऊ १९७२ ई० (३७) शितिकंठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, (मरु-गुर्जर) भाग १-४, वाराणसी-१९९०-९४ ई० (३८) श्यामशंकर दीक्षित, तेरहवीं -चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, जयपुर १९६९ ई० (३९) सुखलाल संघवी, समदर्शी आचार्य हरिभद्र, जोधपुर १९६३ ई० (४०) हरिप्रसाद शास्त्री, मैत्रक कालीन गुजरात, भाग १-२, अहमदाबाद १९५५ ई० (४१) हस्तिमलजी महाराज, जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग-२, जयपुर १९६७ ई० (४२) हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, भोपाल १९६२ ई० (४३) हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, पाइय भाषा अने साहित्य, द्वितीय संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि, सुरत २००६ ई० (४४) हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, द्वितीय संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि, सुरत-२००४ ई० (४५) त्रिपुटी महाराज, जैनपरम्परानो इतिहास, द्वितीय संस्करण, भाग १-३, संपा० आचार्य विजयभद्रसेनसूरि, सुरत २००१-२००३ ई० (४६) त्रिपुटी महाराज, जैन तीर्थोनो इतिहास, अहमदाबाद-१९४९ ई० (47) A. K. Chatarjee, A Comprehensive History of Jainism, Vol.1, Calcutta 1984A.D. Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रन्थ सची १३६३ (48) A. K. Majmudar, Chulakyas of Gujarat, Bombay 1956 A.D. (49) C. B. Shetha, Jainism in Gujarat, Bombay 1956 A.D. (50) Dasharatha Sharma, Early Chauhan Dynesties, New Delhi 1959 A.D. (51) Dasharatha Sharma, Rajasthan Through the Ages, Bekaner 1966 A.D. G. Bahlar, Life of Hemachandra, Shanti Niketan 1936 A.D. (53) G. C. Chauradhary, Political History of Northern India from Jain sources, Amritsar 1963 A.D. (54) J. P. Singh, Aspects of Early Jainism, Varanasi 1972 A.D. (55) K. C. Jain, Ancient Cities and Towns of Rajasthan, Delhi 1972 A.D. (56) MohanLal BhagawanDas Jhavery, Comprative and Critical Study of Mantrashastra, Ahmedabad 1944 A.D. (57) M. R. Majamudar, Cultural History of Gujarat, Bombya, 1965 A.D. (58) P. K. Gode, Studies, in Indian Literary History, Vol.-1, Bombay, 1953 A.D. (59) R. V. Somani, Jain Inscriptions of Rajasthan, Jaipur 1982 A.D. (60) R. C. Majmudar and A. D. Pusalkar, Ed. The Struggle for Empire, III Edition, Bombay 1979 A.D. Sarabhai Manilal Navab, The Jain Tirthas in India and their Architecture, Ahmedabad 1944 A.D. (62) U. P. Shah, Treasures of Jaina Bhandars, Ahmedabad 1970 A.D. (63) U. P. Shah, Akota Bronges, Bombay 1956 A.D. (61) स्मारक ग्रंथ - अभिनन्द ग्रंथ - स्मृति ग्रंथ (१) श्री आत्मानंद शताब्दी ग्रंथ, संपा० मोहनलाल दलीचंद देसाई, मुम्बई १९३६ ई० (२) ज्ञानाञ्जलि (मुनि पुण्यविजय अभिनन्दन ग्रंथ), संपा० मुनि रमणीक विजय, भोगीलाल सांडेसरा आदि, बडोदरा १९६९ ई० (३) दलसुखभाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रंथ, संपा० प्रो० सागरमल जैन, वाराणसी १९९२ ई० Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (४) प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ, टीकमगढ १९४६ ई० (५) पं० बेचरदासदोसी स्मृति ग्रंथ, संपा० प्रो० एम० ए० ढांकी तथा प्रो० सागरमल जैन, वाराणसी १९८७ ई० (६) यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रंथ, संपा० मुनि विद्याविजयजी आदि, आहोर १९५८ ई० (७) विक्रमस्मृतिग्रंथ, संपा० हरिहर निवास त्रिवेदी तथा अन्य, उज्जैन वि०सं० २००२. (८) विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ, संपा० भोगीलाल सांडेसरा, डॉ० मोतीचन्द आदि मुम्बई १९५६ ई० (९) श्री महावीर जैन विद्यालय रौप्य जयन्ती स्मारक ग्रंथ, संपा० मोतीचंद गिरधरलाल कापडिया, मुम्बई १९४० ई० (१०) श्री महावीर जैन विद्यालय, सुवर्ण महोत्सव ग्रंथ, भाग १-२, संपा० कांतिलाल डी० कोरा तथा अन्य, मुम्बई १९६५ ई० (११) H.G. Shastri Felicitation Volume, Ed. P.C. Parikha & Bharti Shelat. Ahmedabad 1994 A.D. कोश ग्रन्थ (१) गुजराती साहित्य कोश, भाग १-२, संपा० जयन्त कोठारी, अहमदाबाद १९८८-८९ ई० (२) हिन्दूधर्मकोश, संपा० राजबली पाण्डेय, लखनऊ १९७८ ई० (3) Jinaratnakosha, Ed. H. D. Valankar, Poona 1944 A.D. New Catalogus, Catalogorum, Vol. I-XIII, Ed. V. Raghavan, Madras 1968-84A.D. (५) Geographical Dictionary of Ancient & Mediaeval India, By N. L. Day, Reprint, Delhi 1994 A.D. (६) PraRrit Proper Names, Vol. I, II, Ahmedabad 1970-72 A.D. (४) Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६५ सहायक ग्रन्थ सूची पत्र-पत्रिकायें/Journals अनेकान्त, दिल्ली कलासरोवर, वाराणसी जैनसत्यप्रकाश, अहमदाबाद जैन साहित्य संशोधक, पूना फार्बस गुजराती सभा पत्रिका, शोधादर्श, लखनऊ श्रमण, वाराणसी सम्बोधि, अहमदाबाद सामीप्य, अहमदाबाद संस्कृति संधान, वाराणसी स्वाध्याय, बडोदरा Buletin of the Baroda Museum and Pictures Gallary Epiraphiya Indica Indian Antiquary Journal of the Rayal Asiatic Society of Bombay Jain Journlal Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास KIRIT GRAPHICS 09898490091 Jain Education Intemational