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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास और धर्मप्रभसूरि के बीच लगभग १०० वर्षों का अन्तर है और इस अवधि मे पाँच पट्टधर आचार्यों का पट्टपरिवर्तन असम्भव नहीं, अतः समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर वि० सं० १३८६ / ई० सन् १३३० में प्रतिमाप्रतिष्ठापक पिप्पलगच्छीय धर्मदेवसूरि और इस गच्छ के त्रिभवीया शाखा के प्रवर्तक धर्मदेवसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। ठीक यही बात पिप्पलगच्छगुरुस्तुति के रचनाकार के गुरु धर्मप्रभसूरि और पिप्पलगच्छीय धर्मप्रभसूरि के बारे में भी कही जा सकती है।
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- ४८ ऐसे भी प्रतिमालेख मिलते हैं जिनपर स्पष्ट रूप से पिप्पलगच्छ त्रिभवीयाशाखा का उल्लेख है । इनका विवरण निम्नानुसार है :
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