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________________ पिप्पलगच्छ ८८७ अमरचन्द्रसूरि । (वि०सं० १५१९-१५३६) प्रतिमालेख सर्वदेवसूरि (वि०सं० १५२९) प्रतिमालेख घोघा स्थित नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय के निकट भूमिगृह से प्राप्त २४० धातु प्रतिमाओं में से ६ प्रतिमाओं पर पिप्पलगच्छीय मुनिजनों के नाम उत्कीर्ण है। इन प्रतिमाओं पर ई० सन् १३१५, १४४७, १४४९, १४५० और १४५७ के लेख खुदे हुए हैं । चूकि ढांकी ने अपने उक्त निबन्ध में प्रतिमालेखों का मूल पाठ नहीं दिया है अतः इन लेखों में आये आचार्यों के नाम आदि के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। जैसा कि प्रारम्भ में कहा चुका है इस गच्छ की दो शाखाओंत्रिभवीया और तालध्वजीया - का पता चलता है। प्रथम शाखा से सम्बद्ध पिप्पलगच्छगुरुस्तुति और पिप्पलगच्छ गुर्वावली का पूर्व में उल्लेख आ चुका है। इसके अनुसार धर्मदेवसूरि ने गोहिलवाड़ (वर्तमान गुहिलवाड़, अमरेली, जिला भावनगर, सौराष्ट्र) के राजा सारंगदेव को उसके तीन भव बतलाये इससे उनकी शिष्यसन्तति त्रिभवीया कहलायी । यह सारंगदेव कोई स्थानीय राजा रहा होगा। पिप्पलगच्छीय प्रतिमालेखों की पूर्वप्रदर्शित लम्बी सूची में किन्ही धर्मदेवसूरि द्वारा वि०सं० १३८३ में प्रतिष्ठापित एक जिन प्रतिमा का उल्लेख आ चुका है। चूंकि उक्त गुरुस्तुति में रचनाकार ने अपने गुरु धर्मप्रभसूरि को त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक धर्मदेवसूरि से ५ पीढ़ी बाद का बतलाया है, साथ ही पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की पूर्वप्रदर्शित तालिका में भी धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १४७१-१४७६) का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है। इसप्रकार अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित धर्मदेवसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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