SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 666
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अवलोकन किया । इनके पट्टधर हेमचन्द्रसूरि हुए। हेमचन्द्रसूरि जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है आप हर्षपुरीयगच्छालंकार अभयदेवसूरि के शिष्य और पट्टधर थे । श्रीचन्द्रसूरि विरचित मुनिसुव्रतचरित° (रचनाकाल वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७) एवं राजशेखरसूरि कृत प्राकृतद्वयाश्रयवृत्ति की प्रशस्तियों से इनके सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११७०/ई० सन् १११४) की प्रशस्ति में इन्होंने स्वरचित ९ ग्रन्थों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : १. आवश्यकटिप्पण, २. शतकविवरण, ३. अनुयोगद्वारवृत्ति, ४. उपदेशमालासूत्र, ५. उपदेशमालावृत्ति, ६. जीवसमासविवरण, ७. भवभावनासूत्र, ८. भवभावनाविवरण, ९. नन्दीटिप्पण। आवश्यकटिप्पण : ४६०० श्लोकों की यह कृति आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित आवश्यकवृत्ति पर लिखी गयी है । इसे आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्या के नाम से भी जाना जाता है। इस पर हेमचन्द्रसूरि के ही एक शिष्य एवं पट्टधर श्रीचन्द्रसूरि ने एक और टिप्पण लिखा है जो प्रदेशव्याख्याटिप्पण के नाम से प्रसिद्ध है। शतकविवरण : शिवशर्मसूरिविरचित प्राचीन पंचम कर्मग्रन्थ शतक पर मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने संस्कृत भाषा में ३७४० श्लोक प्रमाण वृत्ति अथवा विवरण की रचना की । जैसलमेर के ग्रन्थभंडार में १३वीं - १४वीं शती की इसकी कई प्रतियाँ संरक्षित हैं। अनुयोगद्वारवृत्ति : यह अनुयोगद्वारसूत्र के मूलपाठ पर ५९०० श्लोकों में रची गयी है । इसमें सूत्रों के पदों का सरल व संक्षिप्त अर्थ दिया गया है । कलकत्ता, मुम्बई, एवं पाटन से इसके चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy