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हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ
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उपदेशमालासूत्र : सुभाषित और सूक्ति के रूप में रचित जैन मनीषियों की अनेक कृतियाँ मिलती हैं । यह कृति भी उसी कोटि में मानी गयी है । इसमें सदाचार और लोकव्यवहार का उपदेश देने के लिए स्वतंत्र रूप से अनेक सुभाषित पदों का निर्माण किया गया है, जिसमें जैनधर्मसम्मत आचारों और विचारों के उपदेश प्रस्तुत किये गये हैं । रचनाकार ने अपनी इस कृति पर वि० सं० ११७५/ई० सन् १९१९ में वृत्ति की भी रचना की है। पाटण के जैन ग्रन्थ भण्डारों में इसकी कई प्रतियाँ संरक्षित हैं । जैन श्रेयस्कर मंडल, मेहसाणा से ई० सन् १९११ में यह प्रकाशित भी हो चुकी है ।
जीवसमासविवरण : आचार्य हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित यह कृति ६६२७ श्लोकों में निबद्ध है । इसकी स्वयं ग्रन्थकार द्वारा लिखी गयी एक ताड़पत्रीय प्रति खंभात के शांतिनाथ जैन भंडार में संरक्षित है । इस प्रति से ज्ञात होता है कि यह चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज के शासनकाल में वि० सं० १९६४ / ई० सन् १९०८ में पाटण में लिखी गयी ।
भावभावनासूत्र : जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट होता है इसमें भवभावना अर्थात् संसारभावना का वर्णन किया गया है । इसके अन्तर्गत ५३१ गाथायें हैं । इसमें भवभावना के साथ-साथ अन्य ११ भावनाओं का भी प्रसंगवश निरूपण किया गया
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ग्रन्थकार ने अपनी इस कृति पर वि० सं० १९७०/ई० सन् १११४ में वृत्ति की रचना की । यह १२५० श्लोकों में निबद्ध है । इस वृत्ति के अधिकांश भाग में नेमिनाथ एवं भुवनभानु के चरित्र आते हैं । यह कृति स्वोपज्ञटीका के साथ ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम द्वारा दो भागों में प्रकाशित हो चुकी है ।
नंदीटिप्पण : जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है ग्रन्थकार ने विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति की प्रशस्ति में स्वरचित ग्रन्थों में इसका भी उल्लेख किया है । परन्तु इसकी कोई प्रति अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है।
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