SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नेमिचनद्रसूरि द्वारा रचित महावीरचरियं [रचनाकाल वि० सं० ११४१/ई० सन् १०८४] की प्रशस्ति में वडगच्छ को चन्द्रकुल से उत्पन्न माना गया है, अतः समसामयिक चन्द्रकुल [जो पीछे चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ] की आचार्य परम्परा पर भी एक दृष्टि डालना आवश्यक है । चन्द्रगच्छ में प्रख्यात वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, बुद्धिसागरसूरि, नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि आदि अनेक आचार्य हुए । आचार्य जिनेश्वर जिन्होंने चौलक्य नरेश दुर्लभराज की सभा में चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर गुर्जरधरा में विधिमार्ग का बलतर समर्थन किया था, वर्धमानसूरि के शिष्य थे। आबू स्थित विमलवसही के प्रतिमा प्रतिष्ठापकों में वर्धमानसूरि का भी नाम लिया जाता है। इनका समय विक्रम संवत् की ११वीं शती सुनिश्चित है। वर्धमानसूरि कौन थे ? इस प्रश्न का भी उत्तर ढूंढना आवश्यक है। खरतरगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि द्वारा रचित गणधरसार्धशतक [रचनाकाल वि० सं० बारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध] और जिनपालोध्याय द्वारा रचित खरतरगच्छवृहद्गुर्वावली [रचनाकाल वि० सं० तेरहवीं शती का अंतिम चरण] से ज्ञात होता है कि वर्धमानसूरि पहले एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, परन्तु बाद में उनके मन में चैत्यवास के प्रति विरोध की भावना जागृत हुई और उन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर सुविहितमार्गीय आचार्य उद्योतनसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की ।११ ___गणधरसार्धशतक की गाथा ६१-६३ में देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि और उद्योतनसूरि के बाद वर्धमानसूरि का उल्लेख है। पूर्वप्रदर्शित तालिका नं० १ में देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि (प्रथम), उद्योतनसूरि (द्वितीय) के बाद आम्रदेवसूरि का उल्लेख है । इस प्रकार उद्योतनसूरि के दो शिष्यों का अलग-अलग साक्ष्यों से उल्लेख प्राप्त होता है। इस आधार पर उद्योतनसूरि (प्रथम) और वर्धमानसूरि को परस्पर गुरुभ्राता माना जा सकता है। अब वर्धमानसूरि की शिष्य परम्परा पर भी प्रसंगवश कुछ प्रकाश डाला जायेगा। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy