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________________ बृहद्गच्छ ११२५ २० । वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है । २° जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि जिनेश्वरसूरि ने चौलुक्यनरेश दुर्लभराज की सभा में शास्त्रार्थ में चैत्यवासियों को परास्त कर विधिमार्ग का समर्थन किया था । जिनेश्वरसूरि के ख्यातिनाम शिष्यों में नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि, जिनभद्र अपरनाम धनेश्वरसूरि और जिनचन्द्रसूरि के उल्लेख प्राप्त होते हैं । २१ इनमें अभयदेवसूरि की शिष्य परम्परा आगे चली । २२ अभयदेवसूरि के शिष्यों में प्रसन्नचन्द्रसूरि, जिलवल्लभसूरि और वर्धमानसूरि के उल्लेख मिलते हैं ।" प्रसन्नचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि हुए, जिन्होंने जिनवल्लभसूरि और जिनदत्तसूरि को आचार्यपद प्रदान किया । २३ जिनवल्लभसूरि वास्तव में एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, परन्तु इन्होंने अभयदेवसूरि के पास विद्याध्ययन किया था और बाद में अपने चैत्यवासी गुरु की आज्ञा लेकर अभयदेवसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की । २४ जिलवल्लभसूरि से ही खरतरगच्छ का प्रारम्भ हुआ । युगप्रधानाचार्यगुर्वावली में यद्यपि वर्धमानसूरि को खरतरगच्छ का आदिम आचार्य कहा गया है, परन्तु वह समीचीन प्रतीत नहीं होता । वस्तुत: अभयदेवसूरि के मृत्योपरान्त उनके अन्यान्य शिष्यों के साथ जिनवल्लभसूरि की प्रतिस्पर्धा रही, अतः इन्होंने विधिपक्ष की स्थापना की, जो आगे चलकर खरतरगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । .२५ मनोरमाकहा [ रचनाकाल वि० सं० आदिनाथचरित [ रचनाकाल वि० सं० अभयदेवसूरि के तीसरे शिष्य और पट्टधर वर्धमानसूरि हुए । इन्होंने ११४० / ई० सन् १०८३] और १९६०/ ई० सन् ११०३] की रचना की । वि० सं० ११८७ एवं वि० सं० १२०८ के अभिलेखों में वडगच्छीय चक्रेश्वरसूरि को वर्धमानसूरि का शिष्य कहा गया है। २७ इसी प्रकार वि० सं० १२१४ के वडगच्छ से ही सम्बन्धित एक अभिलेख में वडगच्छीय २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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