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बृहद्गच्छ
११२३ विद्यावंशवृक्ष बनाने का प्रयास करेंगे । इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम हम वडगच्छ के सुप्रसिद्ध आचार्य नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रचित आख्यानकमणिकोश, (रचनाकाल ई० सन् ११ वीं शती का प्रारम्भिक चरण) की उत्थानिका में उल्लिखित बृहद्गच्छीय आचार्यों की विद्यावंशावली का उल्लेख करेंगे, जो इस प्रकार है। ___ अब हम उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधा टीका (रचनाकाल वि० सं० ११२९/ई० सन् १०७२) में उल्लिखित नेमिचन्द्रसूरि के इस वक्तव्य पर विचार करेंगे कि ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता मुनिचन्द्रसूरि के अनुरोध पर उक्त ग्रन्थ की रचना की।
मुनिचन्द्रसूरि ने स्वरचित ग्रन्थों में जो गुरु परम्परा दी है, उससे ज्ञात होता है कि उनके गुरु का नाम यशोदेव और दादागुरु का नाम सर्वदेव था। प्रथम तालिका में उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन जिन ५ आचार्यों का उल्लेख है, उनमें से चौथे आचार्य का नाम देवसूरि है । ये देवसूरि मुनिचन्द्रसूरि के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अभिन्न हैं ऐसा प्रतीत होता है। इस प्रकार नेमिचन्द्रसूरि और मुनिचन्द्रसूरि परस्पर सतीर्थ्य सिद्ध होते हैं।
मुनिचन्द्रसूरि का शिष्य परिवार बड़ा विशाल था। इनके ख्यातिनाम शिष्यों में देवसूरि, मानदेवसूरि° और अजितदेवसूरि के नाम मिलते हैं । इसी प्रकार देवसूरि (वादिदेव सूरि) के परिवार में भद्रेश्वरसूरि, रत्नप्रभसूरि, विजयसिंहसूरि आदि शिष्यों एवं प्रशिष्यों का उल्लेख मिलता है । इसी प्रकार वादिदेवसूरि के गुरुभ्राता मानदेवसूरि के शिष्य जिनदेवसूरि और उनके शिष्य हरिभद्रसूरि का नाम मिलता है ।१३ वादिदेवसूरि के तीसरे गुरुभ्राता अजितदेवसूरि के शिष्यों में विजयसेनसूरि
और उनके शिष्य सुप्रसिद्ध सोमप्रभाचार्य भी हैं। मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य परिवार का जो वंशवृक्ष बनता है, वह इस प्रकार है
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