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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चन्द्रप्रभसूरि, भद्रेश्वरसूरि, अजितसिंहसूरि (द्वितीय), देवप्रभसूरि (द्वितीय), सिद्धसेनसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, वीरदेवगणि आदि आचार्य हुए।
जहां तक शीलभद्रसूरि की शिष्य परम्परा का प्रश्न है धनेश्वरसूरि (द्वितीय) ने सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति की प्रशस्ति में शीलभद्रसूरि को अपना गुरु तथा अजितसिंहसूरि (द्वितीय) को अपना गुरु-भ्राता और पार्श्वदेवगणि को अपना शिष्य बतलाया है । माणिक्यचन्द्रसूरि ने पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति में शीलभद्रसूरि के केवल एक शिष्य भरतेश्वरसूरि के साथ-साथ श्रीचन्द्रसूरि, धर्मघोषसूरि और सर्वदेवसूरि का शीलभद्रसूरि के शिष्य के रूप में उल्लेख किया है। मानतुंगसूरि विरचित श्रेयांसनाथचरित की प्रशस्ति में भी शीलभद्रसूरि के शिष्य सर्वदेवसूरि का नाम आया है। इस प्रकार हमें शीलभद्रसूरि के ६ शिष्यों का उल्लेख मिल जाता है । यहाँ एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि धनेश्वरसूरि ने अपने ग्रन्थ की प्रशस्ति में पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि को अपना शिष्य बतलाया है। श्रीचन्द्रसूरि ने भी स्वरचित ग्रन्थों में धनेश्वरसूरि का अपने गुरु के रूप में सादर उल्लेख किया है। किन्तु आबू स्थित विमलवसही के वि० सं० १२०६/ई० सन् ११५० में मंत्रीश्वर पृथ्वीपाल द्वारा कराये गये जीर्णोद्धार सम्बन्धी लेख में श्रीचन्द्रसूरि को शीलभद्रसूरि का शिष्य बतलाया गया है। इस तथ्य का स्पष्टीकरण इस प्रकार है :
श्रीचन्द्रसूरि को आचार्य पद प्राप्त होने से पूर्व गणि अवस्था में पार्श्वदेव नाम था। ऐसा प्रतीत होता है कि शीलभद्रसूरि ने इन्हें गणि पद प्रदान किया होगा और बाद में धनेश्वरसूरि ने इन्हें आचार्यपद दिया, संभवतः इसी कारण इन्होंने धनेश्वरसूरि को अपना गुरु कहा है। धनेश्वरसूरि (द्वितीय) और उनके गुरुभ्राता अजितसिंहसूरि (द्वितीय) के बारे में कोई अन्य सूचना नहीं मिलती। शीलभद्रसूरि के शेष चार शिष्यों पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि, भरतेश्वरसूरि, धर्मघोषसूरि और सर्वदेवसूरि की शिष्यसन्तति आगे चली। श्रीचन्द्रसूरि की परम्परा में प्रभाचन्द्रसूरि और
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