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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ___(संवत् ११३०) ज्येष्ठशुक्लपंचम्यां श्री निर्वृत्तककुले श्रीमदाम्रदेवाचार्यगच्छे कोरेस्व (श्व) रसुत दुर्लभ (श्रावकेणे) दं मुक्तये कारितं जिनयुग्ममुत्तमम् ।।
कायोत्सर्ग प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्राप्तिस्थान - पूर्वोक्त ।
संवत् ११३० ज्येष्ठ शुक्लपंचम्यां तिहे (निर्वृ)तककुले श्रीमदा(म्रदेवाचार्यगच्छे)....... ____ कायोत्सर्गप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्राप्तिस्थान - पूर्वोक्त ।
ॐ ॥ संवत् ११४४ ज्येष्ठ वदि ४ श्री त (नि)वृत्तककुले श्रीमदाम्रदेवाचार्यगच्छे लोटाणकचैत्ये प्राग्वाटवंशोद्भवः यांयश्रेष्ठिस (हितेन) आहिल श्रेष्ठिकि (कृ) तं आसदेवेन मोल्यः (?) श्री वीरवर्धमानसा (स्वा) मिप्रतिमा कारिता । कायोत्सर्गप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान एवं प्राप्तिस्थान - पूर्वोक्त।
उक्त लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इस गच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि निवृत्तिकुल की यह शाखा (आम्रदेवाचार्यगच्छ) ईस्वी ११वीं शती के प्रारम्भ में अस्तित्व में आयी होगी। वि० सं० ११४४ - ई० स० १०८८ के पश्चात् आम्रदेवाचार्यगच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिलता, अतः यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि वि० सं० की १२वीं शती के अन्त तक निवृत्तिकुल की इस शाखा का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया होगा।
वि० सं० १२८८ - ई० स० १२३२ का एक लेख, जो नेमिनाथ की धातु की सपरिकर प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में निवृत्तिगच्छ के आचार्य शीलचन्द्रसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है । नाहटा द्वारा इस लेख की वाचना इस प्रकार दी गयी है :
सं० १२८८ माघ सुदि ९ सोमे निवृत्तिगच्छे श्रे० वौहड़ि सुत यसहडेन देल्हादि पिवर श्रेयसे नेमिनाथ कारितं प्र० श्री शीलचन्द्रसूरिभिः
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