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निवृत्तिकुल
विष्टितक (निवृत्तक) कुले गोष्ठ्या वि (व)मानस्य कारितं । (सुरूपं) मुक्तये बिंबं कृष्णराजे महीपतौ ॥ अ (आ)षाढ़सु (शु) द्धषष्ठ्यां समासहस्रे जिनैः समभ्यधिके (१०२४) हस्तोत्तरादि संस्थे निशाकरे (रित) सपरिवारे ॥
(ना वा) हरे रं - : नरादित्यः सुशोभतां घटितवान् वीरनाथस्य शिल्पिनामग्रणीः पर (म्) ॥
यद्यपि इस लेख में निवृत्ति कुल के किसी आचार्य या मुनि का कोई उल्लेख नहीं है, परन्तु आबू के परमारनरेशों के काल-निर्धारण में यह लेख अत्यन्त मूल्यवान है।
वि० सं० की ११वीं शताब्दी का तृतीय लेख वि० सं० १०९२ / ई० स० १०३६ का है । इस लेख में निवृत्तिकुल के आम्रदेवाचार्यगच्छ का उल्लेख है। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है :
संवत् १०९२ फाल्ग (ल्गु) न सुदि ९ रवौ श्री निवृत्तककुले श्रीमदानदेवाचार्यगच्छे नंदिग्रामचैत्ये सोमकेन जाया........ सहितेन तत्सुतसहजुकेन च निजपुत्रसंवीरणसहिलान्वितेन नि (:) श्रेयसे वृषभजिनप्रतिमा - वार्थ (?) कारिता ।
प्रतिष्ठास्थान - नांदिया, प्राप्ति स्थान - जैन मंदिर, अजारी,
वि० सं० की १२वीं शताब्दी के चार लेखों२६ (वि० सं० ११३० - ई० स० १०७४, तीन प्रतिमा लेख और वि० सं० ११४४ - ई० स० १०८८ एक प्रतिमालेख) में भी निवृत्तिकुल के पूर्वकथित आम्रदेवाचार्यगच्छ का उल्लेख है। इन लेखों का मूलपाठ इस प्रकार है :
संवत् ११३० ज्येष्ठ शुक्लपंचम्यां श्री निर्वृत्तककुले श्रीमदाम्रदेवाचार्यगच्छे कोरेस्व (श्व) रसुत दुल्ल (ल) भश्रावकेणेदं मुक्तये कारितं जिनयुग्ममुत्तमं ॥
प्राप्तिस्थान - आदिनाथ जिनालय, लोटाणा ।
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