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________________ ७७२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भीमदेव के पिता नागराज नड्डल के चाहमानराज महेन्द्र की भगिनी लक्ष्मी से विवाहित हुए थे। इस देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उक्त द्रोणाचार्य नड्डल के राजवंश से सम्बद्ध रहे होंगे । इनकी एकमात्र कृति है ओघनियुक्ति की वृत्ति । नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि द्वारा नौ अंगों पर लिखी गयी टीकाओं का इन्होंने संशोधन भी किया। इनके इस उपकार का अभयदेवसूरि ने सादर उल्लेख किया है। परन्तु इनके गुरु कौन थे, इस सम्बन्ध में न तो स्वयं इन्होंने कुछ बतलाया है और न किन्हीं साक्ष्यों से इस सम्बन्ध में कोई सूचना प्राप्त होती है। ___ द्रोणाचार्य के शिष्य और संसारपक्षीय भतीजा सूराचार्य भी अपने समय के उद्भट्न विद्वान् थे° । परमारनरेश भोज (वि० सं० १०६६११११) ने अपनी राजसभा में इनका सम्मान किया था२१ । इनके द्वारा रचित दानादिप्रकरण२२ नामक एक ग्रन्थ उपलब्ध है। ये संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान् थे। निवृत्तिकुल से सम्बद्ध तीन अभिलेख विक्रम संवत् की ११वीं शती के हैं। इनमें से प्रथम लेख वि० सं० १०२२ / ई० स० ९६६ का है जो भाषा की दृष्टि से कुछ हद तक भ्रष्ट है और धातु की एक चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री अगरचन्द नाहटा ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी गच्छे श्रीनृवितके तते संताने पारस्वदत्तसूरीणांवृसभ पुत्र्या सरस्वत्याचतुर्विंशति पटकं मुक्त्यथ चकारे ।। प्राप्तिस्थान-चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । द्वितीय लेख आबू के परमार राजा कृष्णराज के समय का वि० सं० १०२४ / ई० स० ९६८ का है, जो आबू के समीप केर नामक स्थान से, प्राप्त हुआ है । यह लेख यहां स्थित जिनालय के गूढमंडप के बांयी ओर स्तम्भ पर उत्कीर्ण था। मुनि जयन्तविजय जी ने इस लेख की वाचना दी है, जो कुछ सुधार के साथ यहां दी जा रही है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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