________________
निवृत्तिकुल
७७१ आधार पर भोजक का मत सत्यता से परे मालूम होता है । अलावा इसके उस जमाने में श्वेताम्बर परम्परा के मुनिजनों की संख्या भी अल्प ही थी।
उपमितिभवप्रपंचकथा (वि० सं० ९६२ / ई० स० ९०६), सटीक न्यायावतार, उपदेशमालाटीका आदि के रचयिता सिद्धर्षि भी निवृत्तिकुल के थे । उपमितिभवप्रपंचकथा की प्रशस्ति१२ में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है:
सूर्याचार्य
देल्लमहत्तर
दुर्गस्वामी
।
सिद्धर्षि उक्त प्रशस्ति में सिद्धर्षि ने अपने गुरु और स्वयं को दीक्षित करने वाले आचार्यरूपेण गर्गर्षि का नाम भी दिया है। संभवतः यह गर्गर्षि और कर्मसिद्धान्त के ग्रन्थ कर्मविपाक के रचयिता गर्गर्षि१३ एक ही व्यक्ति रहे हों । इसके अलावा पंचसंग्रह के रचयिता पार्श्वर्षि के शिष्य चन्द्रर्षि१४ भी नामाभिधान के प्रकार को देखते हुए संभवतः इसी कुल के रहे होंगे। ___अकोटा की वि० सं० की १०वीं शती की तीन धातु प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में प्रतिमा-प्रतिष्ठापक के रूप में निवृत्तिकुल के द्रोणाचार्य का उल्लेख मिलता है। इनमें से एक प्रतिमा पर प्रतिष्ठा वर्ष वि० सं० १००६ / ई० स० ९५० दिया गया है। इस प्रकार इनका कार्यकाल १०वीं शताब्दी का उत्तरार्ध रहा होगा।
निवृत्तिकुल में द्रोणाचार्य नाम के एक अन्य आचार्य भी हो चुके हैं। प्रभावकचरित के अनुसार ये चौलुक्यनरेश भीमदेव प्रथम के संसारपक्षीय मामा थे। आचार्य हेमचन्द्र के द्वयाश्रयमहाकाव्य के अनुसार चौलुक्यराज
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org