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निवृत्तिकुल
प्राप्तिस्थान - महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर ।
वि० सं० १३०१ / ई० स० १२४५ का एक लेख, जो शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में इस गच्छ के आम्रदेवसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है। मुनि कान्तिसागर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
सं. १३०१ वर्षे हुंबडज्ञातीय निवृत्तिगच्छे श्रे० जरा (श) वीर पुत्र रेना सहितेन स्वश्रेयसे शांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठिता श्रीयामदेवसूरिभिः ॥
प्राप्तिस्थान - बालावसही, शत्रुञ्जय ।
वि० सं० १३७१ / ई० स० १३१५ में इसी कुल के पार्श्वदेवसूरि के शिष्य अम्बदेवसूरि ने समरारासु की रचना की । पार्श्वदेवसूरि के गुरु कौन थे, क्या अम्बदेवसूरि के अलावा पार्श्वदेवसूरि के अन्य शिष्य भी थे, इन सब बातों को जानने के लिये हमारे पास इस वक्त कोई प्रमाण नहीं है।
वि० सं० १३८९ / ई० स० १३२३ का एक लेख, जो पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, में इस कुल के पार्श्वदत्तसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है। बुद्धिसागरसूरिजी३° ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : ।
सं० १३८९ वर्षे वैशाख सुदि ६ बुधे श्री निवृत्तिगच्छे हूवट (हुंबड) ज्ञा० पितृपीमडमातृपीमलदे श्रेयसे श्रीपद्मप्रभस्वामि बिंबं का० प्र० श्रीपार्श्वदत्तसूरिभिः ।
प्राप्तिस्थान - मनमोहनपार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा ।
इस गच्छ का विक्रम की १५वीं शताब्दी का केवल एक लेख मिला है, जो वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। आचार्य विजयधर्मसूरि२१ ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
सं० १४६९ वर्षे फागुण वदि २ शुक्रे हूंबडज्ञातीय ठ० देपाल भा० सोहग पु० ठ० राणाकेन मातृपितृ श्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं निवृत्तिगच्छे श्रीसूरिभिः ॥श्रीः।।
श्री पूरनचन्द नाहर३२ ने भी इस लेख की वाचना दी है, किन्तु
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