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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उन्होंने वि० सं० १४६९ को १४९६ पढ़ा है। इन दोनों वाचनाओं में कौन सा पाठ सही है, इसका निर्णय तो इस लेख को फिर से देखने से ही संभव है।
निवृत्तिगच्छ से सम्बद्ध एक और लेख एक चतुर्विंशतिपट्ट पर उत्कीर्ण है। श्री नाहर२३ ने इसे वि० सं० १५०६ (?) का बतलाया है और इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : ___ॐ ।। श्रीमन्निवृतगच्छे संताने चाम्रदेव सूरीणां । महणं गणि नामाद्या चेल्ली सर्व्वदेवा गणिनी । वित्तं नीतिश्रमायातं वितीर्य शुभवारया । चतुर्विंशति पट्टाकं कारयामास निर्मलं ।
प्राप्तिस्थान - आदिनाथ जिनालय, कलकत्ता ।
इस गच्छ का एक लेख वि० सं० १५२९ / ई० स० १४७३ का भी है। पं० विनयसागर३४ ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
सं० १५२९ वर्षे वैशाख वदि ४ शुक्रे हुंबडज्ञातीय मंत्रीश्वरगोत्रे । दोसी वीरपाल भा० वारु सु० सोमा. करमाभ्यां स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का० निवृत्तिगच्छे । पु० श्रीसिंघदेवसूरिभिः जिनदत्त चांपा ।
प्राप्तिस्थान - आदिनाथ जिनालय, करमदी।
वर्तमान में उपलब्धता की दृष्टि से इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम लेख वि० सं० १५६८ / ई० स० १५१२ का है।५ । यह लेख मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इसका मूलपाठ इस प्रकार
सं० १५६८ वर्षे सुदि ५ शुक्रे हूँब० मंत्रीश्वर गोत्रे । दोसी चांपा भा० चांपलदे सु० दिनकर वना निव्रत्तगच्छे । श्री मुनिसुव्रतबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीसंघदत्तसूरिभिः ॥
प्राप्तिस्थान -शांतिनाथ जिनालय, रतलाम ।
इस गच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, यह कुल या गच्छ कब अस्तित्वमें आया, इस बारे में उक्त साक्ष्यों से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती
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