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________________ निवृत्तिकुल | ওওও और न ही उनके आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की कोई व्यवस्थित तालिका ही बन पाती है। यद्यपि मध्यकालीन पट्टावलियों में नागेन्द्र, चन्द्र और विद्याधर कुलों के साथ निवृत्तिकुल के उत्पत्ति का भी विवरण है, किन्तु ये पट्टावलियां उत्तरकालीन एवं अनेक भ्रामक विवरणों से युक्त होने के कारण किसी भी गच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन के लिये सर्वथा प्रामाणिक नहीं मानी जा सकतीं । इतना जरूर है कि इस कुल - गच्छ के मुनिगण प्राय: चैत्यवासी परम्परा के रहे होंगे। महावीर की पुरातन परम्परा में तो निवृत्तिकुल का उल्लेख नहीं मिलता, अतः क्या यह कुल पार्खापत्यों की परम्परा से लाट देश में निष्पन्न हुआ था ? यह अन्वेषणीय है। सन्दर्भ सूची :१. U. P. Shah, Akota Bronzes, Bombay 1959, pp 29-30 २. पं० दलसुख मालवणिया, गणधरवाद, अहमदाबाद १९५२, पृ० ३०-३१. ३. वही. ४. वही, पृ० ३२-३४ ५. मोहनलाल मेहता, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ३, प्रथम संस्करण, वाराणसी १९६७, पृ० ३८२ और आगे. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, सं० पं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, गन्थाङ्क ३, वाराणसी १९६१, प्रशस्ति, पृ० ३३४. मुनि जिनविजय, जीतकल्पसूत्र, प्रस्तावना. (मूल ग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह उद्धरण श्री भोजक द्वारा लिखित चउप्पनमहापुरिसचरियं की प्रस्तावना, पृ० ५५ के आधार पर दिया गया है। यहां उन्होंने ग्रन्थ का प्रकाशनस्थान एवं वर्ष सूचित नहीं किया है।) ८. प्रस्तावना, चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, पृ० ५५. ९. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० १८०-८१. १०. पं० दलसुख मालवणिया और प्रो० मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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