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पूर्णतल्लगच्छ
इसके अतिरिक्त इन्होंने वीतरागस्तोत्र, अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका और महादेवस्तोत्र की भी रचना की है।
रामचन्द्रसूरि - ये हेमचन्द्रसूरि के योग्यतम शिष्य थे और उनके निधन के पश्चात् वि० सं० १२२९ / ई० स० ११७३ में उनके पट्टधर बने । इनकी विद्वत्तता की ख्याति पूरे देश में थी और उस काल के विद्वानों में हेमचन्द्रसूरि के पश्चात् इन्हीं का स्थान था। इनके ज्ञाति, जन्मस्थान, मातापिता आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज ने इनकी विद्वता से प्रभावित होकर इन्हें 'कविकटारमल्ल' की उपाधि दी थी। हेमचन्द्रसूरि की मृत्यु से दुःखी कुमालपाल के शोक का शमन रामचन्द्रसूरि ने ही किया था। कुमारपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल (वि० सं० १२२९-१२३२ / ई० सन् ११७३-११७६) और अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता एवं प्रतिद्वन्द्वी बालचन्द्र के सम्मिलित षड्यन्त्र से राजद्रोह के अभियोग में रामचन्द्रसूरि को असमय मृत्यु का वरण करना पड़ा।
रामचन्द्रसूरि अपने समय के श्रेष्ठतम विद्वानों में से थे। इन्होंने अपने ग्रन्थों में प्रबन्धशतकर्तृ इस इस विशेषण का प्रयोग किया है। पं० लालचंद भगवान गांधी का मत है कि इन्होंने १०० प्रबन्ध अवश्य लिखे होंगे, जिनमें से कुछ आज अनुपलब्ध हैं ।२२ डो० भोगीलाल सांडेसरा का मत है कि 'प्रबन्धशत' शब्द किसी संख्या को सूचित नहीं करता अपितु इस नाम का कोई स्वतंत्र ग्रन्थ ही रचा गया होगा। उनके द्वारा रची गयी प्रमुख कृतियां इस प्रकार हैं।
रघुविलास, यदुविलास, सत्यहरिश्चन्द्र, निर्भयभीमव्यायोग, मल्लिकामकरन्दप्रकरण, रोहिणीमृगांकप्रकरण, वनमालानाटिका, कौमुदीमित्रानन्द, नलविलास आदि ११ नाटक तथा सुधाकलश नामक सुभाषित संग्रह, युगादिदेवद्वात्रिंशिका, प्रासादद्वात्रिंशिका, आदिदेवस्तव, मुनिसुव्रतद्वात्रिंशिका आदि कई स्तोत्र । कुमारविहारशतक और
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