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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास और सिद्धराज का उत्तराधिकारी कुमारपाल (वि० सं० ११९९ - १२२९ / ई० सन् ११४४ - ११७३) इन्हें अपना गुरु मानता था । इन्हीं के प्रभाव से उसने अनेक जिनालयों का निर्माण कराया, तीर्थयात्रायें की तथा अपने साम्राज्य में वर्ष के विशेष दिनों में पशुवध पर रोक लगा दी। वि० सं० १२२९ में ८४ वर्ष की आयु में हेमचन्द्रसूरि का देहावसान हुआ।
आचार्य हेमचन्द्र की साहित्य-साधना का क्षेत्र विशाल था । व्याकरण, छंद, अलंकार, कोश एवं काव्यविषयक इनकी अद्वितीय रचनाओं से प्रभावित होकर पाश्चात्य विद्वानों ने इन्हें 'ज्ञानमहोदधि' कहा है। हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है ।२१ व्याकरण - सिद्धहेमशब्दानुशासन, सिद्धहेमशब्दानु
शासनलघुवृत्ति, सिद्धहेमशब्दानुशासनबृहद्वृत्ति, सिद्धहैमशब्दानुशासनप्राकृतवृत्ति, धातुपारायण, लिंगानुशासन, बृहन्न्यास, उणादिगणविवरण अभिधानचिन्तामणि स्वोपज्ञ टीका सहित, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टुशेष स्वोपज्ञ टीका
सहित, देशीनाममाला स्वोपज्ञ टीका सहित अलंकार काव्यानुशासन स्वोपज्ञ अलंकारचूड़ामणि
और विवेकवृत्ति के साथ छन्द - छन्दानुशासन स्वोपज्ञटीका के साथ दर्शन - प्रमाणमीमांसा स्वोपज्ञ वृत्ति के साथ इतिहास, काव्य - संस्कृतद्वयाश्रयमहाकाव्य एवं व्याकरण - प्राकृतद्वयाश्रयमहाकाव्य पौराणिक
- त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, परिशिष्ट एवं
पर्व, - योगशास्त्रसटीक
कोश
योग
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