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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चौबीस तीर्थङ्करों के चरित्र की रचना की । इनमें से चन्द्रप्रभ, मल्लिनाथ और नेमिनाथ के चरित्र ही आज उपलब्ध हैं। तीनों ग्रन्थ २४००० श्लोक प्रमाण हैं। यदि एक तीर्थङ्कर का चरित्र ८००० श्लोक माना जाये तो २४ तीर्थङ्करों का चरित्र कुल दो लाख श्लोक के लगभग रहा होगा, ऐसा अनुमान किया जाता है। २ नेमिनाथचरिउ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १२१६ में हुई थी।४३ अपने ग्रन्थों के अन्त में इन्होंने जो प्रशस्ति दी है, उसमें इनके गुरुपरम्परा का भी उल्लेख है जिसके अनुसार वर्धमान महावीर स्वामी के तीर्थ में कोटिक गण और वज्र शाखा में चन्द्रकुल के वडगच्छ के अन्तर्गत जिनचन्द्रसूरि हुए। उनके दो शिष्य थे, आम्रदेवसूरि और श्रीचन्द्रसूरि । इन्हीं श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य थे आचार्य हरिभद्रसूरि जिन्हें आम्रदेवसूरि ने अपने पट्ट पर स्थापित किया।
सोमप्रभसूरि ५ - आचार्य अजितदेवसूरि के प्रशिष्य एवं आचार्य विजयसिंहसूरि के शिष्य आचार्य सोमप्रभसूरि चौलुक्य नरेश कुमारपाल [वि० सं० ११९९-१२२९/ ई० सन् ११४२-११७२] के समलकालीन थे। इन्होंने वि० सं० १२४१/ई० सन् १९८४ में कुमारपाल की मृत्यु के १२ वर्ष पश्चात् अणहिलवाड़ में कुमारपालप्रतिबोध नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में हेमचन्द्रसूरि और कुमारपाल सम्बन्धी वर्णित तथ्य प्रामाणिक माने जाते हैं । इनकी अन्य रचनाओं में "सुमतिनाथचरित", सुक्तमुक्तावली और सिन्दूरप्रकरण के नाम मिलते हैं।
नेमिचन्द्रसूरि ६- ये आम्रदेवसूरि [आख्यानकमणिकोशवृत्ति के रचयिता] के शिष्य थे। इन्होंने प्रवचनसारोद्धार नामक दार्शनिक ग्रन्थ जो ११९९ श्लोक प्रमाण है, की रचना की। __अन्य गच्छों के समान वडगच्छ से भी अनेक शाखायें एवं प्रशाखायें अस्तित्व में आयीं। वि० सं० ११४९ में यशोदेव - नेमिचन्द्र के शिष्य और मुनिचन्द्रसूरि के ज्येष्ठ गुरुभ्राता आचार्य चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमा पक्ष का आविर्भाव हुआ। इसी प्रकार आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि
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