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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
ईश्वरसूरि
शालिसूरि
वाचक हर्षसागर
मुनिगंगा (वि० सं० १५८६) इस प्रशस्ति से स्पष्ट है कि शालिसूरि के प्रशिष्य एवं वाचक हर्षसागर के शिष्य मुनि गंगा के पठनार्थ एक श्रावक द्वारा कल्पसूत्र की प्रतिलिपि तैयार करायी गयी । हर्षसागर और मुनिगंगा शालिसूरि के संभवत: पट्टधर नहीं थे, अतः उनका नाम परिवर्तित नहीं हुआ । इस प्रशस्ति की गुर्वावली में भी चार नामों के पुनरावृत्ति की झलक है, परन्तु इन आचार्यों के किन्ही विशिष्ट कृत्यों यथा साहित्य रचना आदि की कोई चर्चा नहीं हैं। भोजचरित्र के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति
इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि-सुमतिसूरि-शांतिसूरि का उल्लेख करते हुए शांतिसूरि के शिष्य नयनकुञ्जर और हंसराज द्वारा भोजचरित्र की प्रतिलिपि करने का उल्लेख है। षट्पंचासिकास्तवक के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति- इस प्रशस्ति में आचार्यों की गुर्वावली न मिलकर उपाध्याय धर्मरत्न और उनके शिष्यों की गुर्वावली मिलती है और यही कारण है कि इसमें परम्परागत नाम नहीं मिलते हैं । सन्देहशतक की वि० सं० १७५० में तैयार की गयी प्रतिलिप की दाता प्रशस्ति से भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है।
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