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संडेरगच्छ
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संडेरगच्छ में गच्छनायक आचार्यों को ही परम्परागत नाम दिये जाते थे, शेष मुनिजनों के वही नाम अन्त तक बने रहते थे जो उन्हें दीक्षा के समय दिये जाते थे।
संडेरगच्छीय आचार्यों की लम्बी परम्परा में सुमतिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य शांतिसूरि (चतुर्थ) ने वि० सं० १५५० में सागरदत्तरास और इनके शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) ने वि० सं० १५६१ में ललितांगचरित; वि० सं० १५६४ में श्रीपालचौपाई तथा इनके शिष्य धर्मसागर ने वि० सं० १५८७ में आरामनंदनचौपाई की रचना की । इनके समबन्ध में यथास्थान प्रकाश डाला गया है। यहाँ इन रचनाओं के सम्बन्ध में यही कहना अभीष्ट है कि इनकी प्रशस्ति में भी परम्परागत पट्टधर आचार्यों के नामोल्लेख के अतिरिक्त अन्य कोई सूचना नहीं मिलती, जिससे इस गच्छ के इतिहास पर विशेष प्रकार डाला जा सके। संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण
संडेरगच्छ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन उपलब्ध अभिलेख वि० सं० १०३९ / ई० सन् ९८२ का है जो आज करेड़ा (प्राचीन करहेटक) स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है -
(१) संवत् १०३९ (व)र्षे श्री संडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि सन्तानीय श्री श्यामा ...(?) चार्या ...........
(२) ............प्र० भ० श्रीयशोभद्रसूरिः श्रीपार्श्वनाथ बिबं प्रतिष्ठितं ॥ न ॥ पूर्व चन्द्रेण कारितं .......... ____संडेरगच्छ के आदिम एवं महाप्रभावक आचार्य यशोभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित एवं अद्यावधि एकमात्र उपलब्ध प्रतिमा पर उत्कीर्ण यह लेख संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला प्रथम अभिलेख है। साहित्यिक साक्ष्यों
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