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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (पट्टावलियों) के आधार पर यशोभद्रसूरि का समय वि० सं० ९५७/ई० सन् ९०० से वि० सं० १०३९/ई० सन् ९८२ माना जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यशोभद्रसूरि° अपने जीवन के अन्तिम समय तक पूर्णरूप से धार्मिक क्रियाकलापों में संलग्न रहे।
वि० सं० १११० से वि० सं० ११७२ तक के ४ में अभिलेख, जो संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं, में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य का कोई उल्लेख नहीं मिलता, इनका विवरण इस प्रकार है(१) वि० सं० ११२३ सुदि ८ सोमवार
परिकर पर उत्कीर्ण लेख, इस परिकर में आज पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित है, परन्तु इस लेख में ज्ञात होता है, कि इसमें पहले महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित रही।
स्थान - जैन मन्दिर, बीजोआना (२) वि० सं० १११० (तिथिविहीन)१२ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्रतिष्ठास्थान - चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, राधनपुर (३) वि० सं० ११६३ ज्येष्ठ सुदि १०१३ (४) वि० सं० ११७२ (तिथिविहीन लेख)१४ प्रतिष्ठास्थान - जैनमन्दिर, सेवाड़ी
सांडेराव स्थित जिनालय के गूढ मंडप में एक आचार्य और उनके शिष्य की प्रतिमा स्थापित है। इस पर वि० सं० ११९७ का एक लेख" भी उत्कीर्ण जिससे ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा संडेरगच्छीय पं० जिनचन्द्र के गुरु देवनाग की है। देवनाग सन्डेरगच्छीय किस आचार्य के शिष्य थे? यह ज्ञात नहीं हैं।
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