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संडेरगच्छ
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जैसा कि हम पहले देख चुके हैं इस गच्छ में आचार्य यशोभद्रसूरि के सन्तानीय (शिष्य) के रूप में सर्वप्रथम शालिसूरि, उनके पश्चात् सुमतिसूरि उनके बाद शांतिसूरि और शांतिसूरि के बाद ईश्वरसूरि क्रमश: पट्टधर होते हैं, ऐसी परम्परा रही है, परन्तु इन परम्परागत नामों के उल्लेख वाला सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १९८१ का है, १६ जो नाडोल के एक जैन मन्दिर में मूलनायक के परिकर के नीचे उत्कीर्ण है । इसमें यशोभद्रसूरि के संतानीय शालिभद्रसूरि ( प्रथम ) का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में रूप में उल्लेख है । इसके बाद वि० सं० १२१० पंचतीर्थी के १७ लेख जो जैन मन्दिर, सम्मेदशिखर में आज प्रतिष्ठित है, प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता । वि० सं० १२१५ के एक लेख में पुनः शालिभद्रसूरि का उल्लेख आता है । अतः वि० सं० १२१० के उक्त पंचतीर्थी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक शालिसूरि (प्रथम) ही रहे होंगे ऐसा माना जा सकता है ।
वि० सं० १२१८, १२२१, १२३३ और १२३६ के लेखों में यद्यपि प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं है, तथापि उनका विवरण इस प्रकार है -
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वि० सं० १२१८ श्रावण सुदि १४ रविवार
ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख
यह ताम्रपत्र पहले जैन मन्दिर नाडोल में था, परन्तु अब रायल एशियाटिक सोसायटी, लन्दन में संरक्षित है ।
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वि० सं० १२२१ माघ वदि शुक्रवार सभा मंडप में उत्कीर्ण लेख
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प्रतिष्ठा स्थान - महावीर जिनालय, सांडेराव वि० सं० १२३३ ज्येष्ठ वदि ७ गुरुवार भगवान् शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - जैन मन्दिर, अजारी
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