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१०. शिव
राजगच्छ
१२०५ श्रेयांसनाथचरित (गुजराती अनुवाद) सेठ भोगीलालभाई मगनलाल सिरिज नं० १ जैन आत्मानन्दसभा, भावनगर वि० सं० २००९, प्रशस्ति, पृष्ठ २६९. प्रभावकचरित, संपा० मुनि जिनविजय (सिंघी जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थांक १३, अहमदाबाद १९४० ई०) प्रशस्ति, पृष्ठ २१३-२१६.
द्रष्यव्य - संदर्भ संख्या १. ९. सं० १२०६ श्रीशीलचन्द्रसूरीणां, शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः ।
विमलादिसुसंघेन, युतैस्तीर्थमिदं स्तुत (तं) ॥१॥ अयं तीर्थसमुद्धारो-त्यमुतोऽकारि धीमता। श्रीमदानन्दपुत्रेण, श्रीपृथ्वीपालमंत्रिणा ॥ २ ॥ मुनि कल्याणविजय गणि-प्रबन्धपारिजात (श्री कल्याणविजय शास्त्र संग्रह समिति, जालोर १९६६ ई०) लेखांक ३८. शिवप्रसाद 'धर्मघोषगच्छ का संक्षिप्त इतिहास' श्रमण, वर्ष ४१, अंक १-३
(वाराणसी १९९० ई०) पृष्ठ ४५-१०३. ११. मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, भाग १, सिंघी जैन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६१ ई०, पृष्ठ ५७-७१. १२. मुनि जिनविजय, संपा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, भाग १, सिंघी जैन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक १८, बम्बई १९४३ ई० पृष्ट ३०-३२. मुनि जिनविजयजी ने शांतिनाथ जैन ज्ञानभंडार, खंभात के इस ग्रन्थ के प्रतिलेखन की प्रशस्ति पीटर्सन की रिपोर्ट-भाग ३ पृष्ट ८६-८९ से संकलित की है। पीटर्सन को इस ग्रन्थ की पूर्ण प्रति प्राप्त हुई थी . परन्तु मुनि पुण्यविजयजी को इस ग्रन्थ भंडार की सूची तैयार करते समय यह ग्रन्थ अत्यन्त भग्न और त्रुटित रूप में प्राप्त हुआ था और उसी रूप में उन्होंने इसे प्रकाशित भी कराया। द्रष्टव्य Muni Punyavijaya - Catalogue of Plam-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandar, Cambay, Part I, G.O.S. No. 139,
Baroda 1961, Pp. 112-118. १३. प्रो० एम० ए० ढांकी, एसोसिएट डायरेक्टर-रिसर्च, अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑफ
इन्डियन स्टडीज, वाराणसी, द्वारा व्यक्तिगत चर्चा पर आधारित.
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