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________________ १२०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास है।५६ प्रथम दो रचनायें अप्रकाशित हैं किन्तु काव्यप्रकाश अपनी संकेत नामक टीका के साथ प्रकाशित हो चुका है।५७ महामात्य वस्तुपाल इनके समकालीन और प्रशंसक थे। प्रभाचन्द्रसूरि : आप राजगच्छीय पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि की परम्परा में हुए चन्द्रप्रभसूरि के पट्टधर थे। आप ने वि० सं० १३३४/ई० सन् १२७८ में प्रभावकचरित की रचना की । यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में पद्यमय ५७७४ श्लोकों में निबद्ध है। इस ग्रन्थ का संशोधन चन्द्रगच्छीय कनकप्रभसूरि के शिष्य प्रद्युम्नसूरि ने किया । इस ग्रन्थ में वज्रस्वामी से लेकर हेमचन्द्रसूरि तक के प्रभावक जैनाचार्यों का चरित्र वणित है। इनमें से वीरसूरि, शांतिसूरि, महेन्द्रसूरि, सूराचार्य, अभयदेवसूरि, वीरदेवगणि, देवसूरि और हेमचन्द्रसूरि ये आठ आचार्य सोलंकी काल में पाटण में हुए । सोलंकी राजाओं के साथ इस आचार्यों का घनिष्ट सम्बन्ध रहा । गुजरात के इतिहास में इस ग्रन्थ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। संदर्भ सूची: १. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Ac. VijayadevaSuri's and KsantiSuris Collections Part IV (L.D. Series No. 20, Ahmedabad-1968) No. 651, Pp. 75-76. २. जम्बद्वीपसमासटीका संशोधक-पंन्यास हर्षविजयगणि के शिष्य मानविजयमुनि (श्रीसत्यविजय ग्रन्थमाला नं० २, अहमदाबाद, वि० सं० १९७९) प्रशस्ति, पृष्ठ २६-२८. C.D. Dalal - A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, Vol I, (G.O. S. No. - LXXVI, Baroda - 1937) No. 403, Pp. 224-246. ४. Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti -natha Jain Bhandar, Cambay, Part II (G. O. S. No. 149. Baroda -1966) No. 207, Pp. 343-349. प्रवचनसारोद्धार, पूर्वभाग एवं उत्तरभाग (देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धारे, ग्रन्थांक ५८, ६४; ई० सन् १९२२) टीकाकार की प्रशस्ति, पृष्ट ४४८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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