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पल्लीवालगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय में चन्द्रकुल से समय-समय पर अस्तित्व में आए विभिन्न गच्छों में पल्लीवालगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है वर्तमान राजस्थान प्रान्त में अवस्थित पाली (प्राचीन पल्ली) नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया । इस गच्छ में महेश्वरसूरि 'प्रथम', अभयदेवसूरि, महेश्वरसूरि 'द्वितीय', नन्नसूरि, अजितदेवसूरि, हीरानंदसूरि आदि कई रचनाकार हो चुके हैं। इस गच्छ से संबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं, जो वि०सं० १२५७ से लेकर वि०सं० १६८१ तक के हैं। इस गच्छ की दो पट्टावलियां भी मिलती हैं, जो सद्भाग्य से प्रकाशित हैं। यहां उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम पट्टावलियों, तत्पश्चात् ग्रन्थ प्रशस्तियों और अन्त में अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण एवं इन सभी का विवेचन किया गया है ।
जैसा कि ऊपर कहा गया है पल्लीवालगच्छ की आज दो पट्टावलियाँ मिलती हैं। प्रथम पट्टावली वि०सं० १६७५ के पश्चात् रची गई है। इसमें उल्लिखित गुरु-परंपरा इस प्रकार है-
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महावीर
1 सुधर्मा
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