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________________ १२०२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पुनर्वाचना की और इसे वि० सं० १२०६ या १२१६ का बतलाया है। उनके द्वारा यह लेख इस प्रकार पढ़ा गया है : श्रीमत्सूरिधनेश्वरः समभवन्नी शीलभ (ट्टा?द्रा)त्मजः शिष्यस्तत्पदपंकजे मधुकर क्रीडाकरो योऽभवत् । शिष्यः शोभितवेत्र नेमिसदने श्रीचन्द्रसूरि.... त...... श्रीमद्रेवतके चकार शुभदे कार्य प्रतिष्ठादिकम् ।। १ ॥ श्री सङ्गातमहामात्य पृष्टार्थविहितोत्तरः भे समुदभूतवशा देवचण्डादि जनतान्वितः ॥ सं. १२ (७१०) ॥ ६ ॥ वि० सं० १२०६ में आबू पर मंत्रीश्वर पृथ्वीपाल द्वारा करायी गयी प्रतिष्ठा के समय भी श्रीचन्द्रसूरि वहां उपस्थित थे। यह बात विमलवसही के देहरी संख्या ३८ पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होती है। मुनि कल्याणविजय५३ ने इस लेख का पाठ इस प्रकार दिया है : __ सं० १२०६ श्री शीलचन्द्रसूरीणां शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः । विमलादिसुसंघेन, युतैस्तीर्थमिदं स्तुत (तं) ॥ १ ॥ अयं तीर्थसमुद्धारोत्ममुतोऽकारि धीमता। श्रीमदानन्दपुत्रेण, श्रीपृथ्वीपालमंत्रिणा ॥ २ ॥ इस प्रकार यह स्पष्ट है कि श्रीचन्द्रसूरि ने साहित्योपासना के साथसाथ जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा में भी समान रूप से सहयोग दिया। देवप्रभसूरि : ये राजगच्छीय भद्रेश्वरसूरि के प्रशिष्य और अजितसिंहसूरि 'तृतीय' के शिष्य थे। जैसा कि यहां लेख के प्रारम्भ में कहा गया है इन्होंने प्राकृत भाषा में श्रेयांसनाथचरित की रचना की । इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत विवरण दिया है। यद्यपि उन्होंने इस कृति के रचनाकाल के बारे में कुछ नहीं कहा है, किन्तु इसे वि० सं० १२४२/ई० सन् ११८६ के आसपास रचा माना गाय है। इसकी प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि इन्होंने तत्त्वबिन्दु और प्रमाणप्रकाश की भी रचना की थी। ये दोनों रचनायें आज अनुपलब्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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