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राजगच्छ
२. निशीथचूर्णिविशोद्देशकवृत्ति रचनाकाल वि० सं० ११७४/ई० सन् १११८
___३. नन्दीवृत्तिटिप्पण - यह दुर्गपदव्याख्या के नाम से भी जानी जाती है।
४. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति रचनाकाल वि० सं० १२२२ /ई० सन् ११५६
५. जीतकल्पबृहच्चूर्णिव्याख्या रचनाकाल वि० सं० १२२७/ई० सन् ११६१
६. निरयावलिकावृत्ति रचनाकाल वि० सं० १२२८ /ई० सन् ११६२ ७. चैत्यवंदनसूत्रवृत्ति ८. प्रतिष्ठाकल्प ९. सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय १०. सुखबोधा समाचारी ११. उपसग्गहरस्तोत्रवृत्ति १२. पद्मावत्थष्टकटीका
इसके अतिरिक्त आपने सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११७१ /ई० सन् १११५) के लेखन में अपने गुरु धनेश्वरसूरि को, बृहद्गच्छीय आम्रदेवसूरि को आख्यानकमणिकोशवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११९० /ई० सन् ११३४)में तथा हर्षपुरीयगच्छ के श्रीचन्द्रसूरि को मुनिसुव्रतचरित (रचनाकाल वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७) के लेखन में सहायता की ।
गिरनार स्थित नेमिनाथ जिनालय के उत्तरी द्वार पर एक तिथियुक्त किन्तु खंडित अभिलेख उत्कीर्ण है। वर्जेस ने इस लेख की वाचना की है और इसे वि० सं० १२७६ का बतलाया है। मुनि जिनविजय ने भी बर्जेस का अनुसरण किया है। ढांकी और भोजकर ने इस लेख की
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