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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कुवलयमालाकहा (रचनाकाल शक सं०७०० / ई० सन् ७७८) के कर्ता उद्योतनसूरि ने अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति में अपने सिद्धान्तगुरु के रूप में किन्हीं वीरभद्रसूरि का उल्लेख किया है जिन्हें समसामयिकता
और नामसाम्य के आधार पर गुणपालकथित वीरभद्रसूरि से समीकृत किया जा सकता है१७ -
प्रद्युम्नसूरि (प्रथम)
वीरभद्रसूरि
प्रद्युम्नसूरि (द्वितीय) उद्योतनसूरि
(ई० सन् ७७८ में गुणपाल
कुवलयमलाकहा (रिसिदत्ताचरिय एवं के रचनाकार)
जम्बूचरियं के रचनाकार)
नागेन्द्रकुल से सम्बद्ध अगला साक्ष्य ईस्वी सन् की १०वीं शताब्दी के तृतीय चरण का है । जम्बूमुनि द्वारा रचित जिनशतक की पंजिका (रचनाकाल वि० सं० १०२५/ ई० सन् ४६९) के रचनाकार साम्बमुनि इसी कुल के थे ।१८ भृगुकच्छ से प्राप्त शक संवत् ४१०/ ई० सन् ४८८ की पीतल की एक त्रितीर्थी जिनप्रतिमा पर नागेन्द्रकुल के पाश्विलगणि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में उल्लेख मिलता है। वहीं उक्त मुनि के गुरु और प्रगुरु का भी नाम दिया गया है -
१. आसीन्नागांद्रकुल लक्ष्मणसूरिनितांतसांत २. मतिः ॥ तद्गाच्छे गुरुतरुयन्नाम्नासीत् सीलरुद्रगणि
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