SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __६९५ नागेन्द्रगच्छ आर्य नागार्जुन और आर्य भूतदिन्न से सम्बद्ध नाइलकुल की परम्परा तथा विमलसूरि द्वारा उल्लिखित इस कुल की गुरु-परम्परा के बीच क्या सम्बन्ध था, यह अस्पष्ट ही है। इसी प्रकार विमलसूरि के अनुगामियों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिलती। उक्त सभी साक्ष्यों के पश्चात् इस कुल से सम्बद्ध जो साक्ष्य मिलते हैं वे इनसे २०० साल बाद के हैं । ये गुजरात में अकोटा से प्राप्त दो मितिविहीन धातुप्रतिमाओं पर उत्कीर्णं हैं। इनमें से प्रथम प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में नागेन्द्रकुल के सिद्धमहत्तर की शिष्या आर्यिका खम्बलिया का नाम मिलता है । डॉ० उमाकान्त शाह ने प्रतिमा के लक्षण और उस पर उत्कीर्ण लेख की लिपि के आधार पर उसे ई० सन् की सातवीं शताब्दी का बतलाया है। द्वितीय प्रतिमा पर नागेन्द्रकुल के ही एक श्रावक सिंहण का नाम मिलता है। शाह ने इस लेख को भी सातवीं शताब्दी के आसपास का ही दर्शाया है। सातवीं शताब्दी तक इस कुल के आचार्यों को श्वेताम्बर श्रमणसंघ में अग्रगण्य स्थान प्राप्त हो चुका था। इसी कारण उस युग की एक महत्त्वपूर्ण रचना व्यवहारचूर्णी में उनके मन्तव्यों को स्थान प्राप्त हुआ।१३ आठवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में इस कुल से सम्बद्ध दो साहित्यिक प्रमाण मिलते हैं । जम्बूचरियं और रिसिदत्ताचरिय के रचनाकार गुणपाल नागेन्द्रकुल से ही सम्बद्ध थे। रिसिदत्ताचरिय की प्रशस्ति के अनुसार गुणपाल के प्रगुरु का नाम वीरभद्र था, जो नाइलकुल के थे । उक्त प्रशस्ति में यह भी कहा गया है कि उक्त ग्रन्थ हाइकपुर में वर्षावास के समय पूर्ण किया गया। जम्बूचरियं की प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी दी है जिसके अनुसार नाइलकुल में प्रद्युम्नसूरि (प्रथम) नामक आचार्य हुए । उनके शिष्य का नाम वीरभद्र था । वीरभद्र के शिष्य प्रद्युम्नसूरि (द्वितीय) हुए । जम्बूचरियं के रचनाकार गुणपाल इन्हीं के शिष्य थे।१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy